गुरुवार, 24 जनवरी 2019

भरद्वाजः शब्द की व्युत्पत्ति भागवतपुराण आदि ग्रन्थों में ...


एक बार बृहस्पति ने अपने भाई उतथ्य की गर्भवती पत्नी  ममता से मैथुन करना चाहा।
उस समय ममता के  गर्भ में जो बालक था ,उसने बृहस्पति मनाकर दिया। किन्तु बृहस्पति ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया  क्यों कि बृहस्पति कामोत्तेजित हो गये थे ।
और बृहस्पति ने ऩस बालक से कहा:- तू अन्धा हो जा ऐसा शाप सुनकर बालक गर्भ से निकल भागा !
तब बृहस्पति ने  बलपूर्वक  ममता के गर्भाधान कर दिया। उतथ्य की पत्नी ममता इस बात से डर गई कि कही मेरा पति मेरा त्याग न कर दे।
बृहस्पति द्वारा ममता से(भाई की पत्नी) के जबरन भोग के परिमाण स्वरूप जो सन्तान जन्म हुई 'वह भरद्वाज कहलायी  और माता - पिता द्वारा त्याग देने से इस वर्णसंकर (द्वाज) सन्तान का भरण  मरुद्गणों ने किया तथा लालन पालन किया और देवताओं ने इसका द्वाज नाम रखा।अर्थात्  उतथ्य और बृहस्पति दोनों का पुत्र द्वाज है। और बृहस्पति और ममता व दोनों उसको छोड़कर चले गए।इसका लालन पालन मरुदगणों ने किया अतः नाम भरद्वाज रखा गया ।
और आज --जो स्वयं को भारद्वाज कहते हैं वे ब्राह्मण इन्हीं भरद्वाज की सन्तानें हैं ।
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भरद्वाजः शब्द की व्युत्पत्ति भागवतपुराण आदि ग्रन्थों में इस प्रकार दर्शायी गयी है !👇
भरद्वाभ्यां जायते इति भरद्वाज: कथ्यते
भरद्वाजः- ( भर द्वाभ्यां जायते इति भरद्वाज: कथ्यते
अर्थात् दो परुषों अर्थात् बृहस्पति और उनके छोटे भाई उतथ्य की पत्नी ममता से उत्पन्न सन्तान ।
भर द्वाभ्यां जायते इति भरद्वाज: ततः पृषोदरादित्वात् द्वाजः सङ्करः ।

भागवतपुराण 9/20/36, में भरद्वाज की उत्पत्ति का प्रसंग इस प्रकार है ।
एक वार बृहस्पति ने अपने छोटे भाई उतथ्य की पत्नी ममता के साथ उसको पहले से भी गर्भवती होने पर बलात्कार करना चाहा  उस समय गर्भस्थ शिशु ने मना किया परन्तु बृहस्पति नहीं माने काम वेग ने उन्हें बलात्कार करने के लिए विवश कर दिया । गर्भस्थ शिशु ने मना करने पर
बृहस्पति नें बालक को शाप दे दिया की तू दीर्घ काल तक अन्धा (तमा) हो जाय । भागवतपुराण स उद्धृत मूल संस्कृत पाठ निम्न है !  👇
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बृहस्पतेरग्रजस्योतथ्यस्य ममताख्या पत्नी गर्भिण्यासीत् तस्यां बृहस्पतिः कामाभिभूतो वीर्य्यं व्यसृजत् ।
तच्च गर्भं प्रविशद्गर्भस्थेन स्थानसङ्कोचभयात् पार्ष्णिप्रहारेणापास्तं बहिः पतितमपि अमोघ वीर्य्यतया बृहस्पतेर्भरद्वाजनामपुत्त्रोऽभूत् ।
गर्भस्थश्च बृहस्पतिना तस्मादेवापराधादन्धो भवेति शप्तो दीर्घतमा नामाभवत् !

यह सुनकर बालक तो निकल भागा परन्तु बृहस्पति ने ममता के साथ बलात्कार करके उसे पुन: गर्भ वती कर दिया  तब वह बालक उत्थ्य और बृहस्पति दौनों की सन्तान होने से
भरद्वाज कहलाया ।
शाप के कारण 'वह बालक दीर्घतमा कहलाया -
फिर बृहस्पति बोले ममता से ! 
हे मूढे ममते द्बाजं द्वाभ्यामावाभ्यां जातमिमं पुत्त्रं त्वं भर रक्ष ।
अर्थात् हे ममता मुझ बृहस्पति और उतथ्य द्वारा उत्पन्न इस पुत्र का तू पालन  कर !

एवं बृहस्पतिनोक्तेव ममता तमाह हे बृहस्पते !
द्वाजं द्बाभ्यां जातमिममेकाकिनी किमित्यहं भरिष्यामि । त्वमिमं भरेति परस्परमुक्त्वा तं पुत्त्रं त्यक्त्वा यस्मात् पितरौ ममताबृहस्पती ततो यातौ ।
ततो भरद्वाजाख्योऽयम् ।

पाठान्तरे एवं विवदमानौ ।
यद्दुःखात् यन्निमित्ताद् दुःखात् पितरौ यातावित्यर्थः । तदेवं ताभ्यां त्यक्तो मरुद्भिर्भृतः ।
मरुत्सोमाख्येन च यागेनाराधितैर्मरुद्भिस्तस्य वितथे पुत्त्र- जन्मनि सति दत्तत्वाद्बितथसंज्ञाञ्चावाप ।
इति विष्णुपुराण ४ अंशे १९ अध्यायः।

(द्वादशद्बापरेऽसावेव व्यासः ।
यथा, देवीभागवते । १ । ३ । २९ ।
“एकादशेऽथ त्रिवृषो भरद्वाजस्ततःपरम् ।
त्रयोदशे चान्तरिक्षो धर्म्मश्चापि चतुर्द्दशे ॥
यथा च भावप्रकाशस्य पर्व्वूर्खण्डे प्रथमे भागे ।
“रोगाः कार्श्यकरा वलक्षयकरा देहस्य चेष्टाहराः दृष्टा इन्द्रियशक्तिसंक्षयकराः सर्व्वाङ्गपीडाकराः । धर्म्मार्थाखिलकाममुक्तिषु महाविघ्नस्वरूपा बलात् प्राणानाशु हरन्ति सन्ति यदि ते क्षेमं कुतः प्राणिनाम् ॥ तत्तेषां प्रशमाय कश्चन विधिश्चिन्त्यो भवद्भिर्बुधै- र्योग्यैरित्यभिधाय संसदि भरद्वाजं मुनिं तेऽब्रुवन् ।
त्वं योग्यो भगवन् !

ज्येष्ठस्य भ्रातुरुतथ्यस्य पत्न्यां ममतायां वृहस्पतिना जनिते मुनिभेदे । तदुत्पत्तिकथा विष्णु पु० ४ अं० १९ अ० । भाग० ९ । २० अ० ।
द्वाजशब्दे ३७९५ पृ० तन्निरुक्ति- रुक्ता । भा० अनु० ९३ अ० अन्यथा निर्वचनमुक्तं यथा “भरेऽसुतान् भरेऽशिष्यान् भरे देवान् भरे द्विजान् ।
भरे भार्य्या भरद्वाजं भरद्वाजोऽस्वि शोभने!” । “प्रजा वै वाजस्ता एष विभर्त्ति यद्बिभर्त्ति तस्याद्भरद्वाज इति श्रुत्यनुसारेण खनामाह ।

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