गुरुवार, 3 जनवरी 2019

सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति। अजानता महिमानं तवेदं मया प्रमादात्प्रणयेन वापि।। (अध्याय 11. श्लोक 41)।।

श्रीमद्भागवत् गीता का वह मूल श्लोकः
जिसमें कृष्ण के स्पष्ट शब्दों में यादव कहा गया है ।

न कि ठाकुर देखें--- सभी जिज्ञासु 👇

सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति। अजानता महिमानं तवेदं मया प्रमादात्प्रणयेन वापि।। (अध्याय 11. श्लोक 41)।।
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Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka ।।11.41।।

क्यों कि मैं आपकी महिमा को न जाननेका अपराधी रहा हूँ? इसलिये --, आपकी महिमा को अर्थात् आप ईश्वरके इस विश्वरूपको न जाननेवाले मुझ मूढ़द्वारा विपरीत बुद्धिसे आपको मित्रसमान अवस्थावाला समझकर जो अपमानपूर्वक हठ से इत्यादि वचन कहे गये हैं --हे कृष्ण हे यादव हे सखे -- तव इदं महिमानम् अजानता इस पाठमें इदम् शब्द नपुंसक लिङ्ग है और महिमानम् शब्द पुंल्लिङ्ग है?
अतः इनका आपसमें व्याधिकरण्यसे विशेष्य विशेषणभावसम्बन्ध है।
यदि इदम् की जगह इमम् पाठ हो तो सामानाधिकरण्यसे सम्बन्ध हो सकता है।
इसके सिवा प्रमादसे यानी विक्षिप्तचित्त होने के कारण अथवा प्रणयसे भी -- स्नेहनिमित्तक विश्वासका नाम प्रणय है? 
उसके कारण भी मैंने जो कुछ कहा है।  उसे क्षमा ही करें !

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya ।।11.41।।
--,सखा समानवयाः इति मत्वा ज्ञात्वा विपरीतबुद्ध्या प्रसभम् अभिभूय प्रसह्य यत् उक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति च अजानता अज्ञानिना मूढेन किम् अजानता इति आह
-- महिमानं माहात्म्यं तव इदम् ईश्वरस्य विश्वरूपम्। तव इदं महिमानम् अजानता इति वैयधिकरण्येन संबन्धः। तवेमम् इति पाठः यदि अस्ति?
तदा सामानाधिकरण्यमेव।
मया प्रमादात् विक्षिप्तचित्ततया?
प्रणयेन वापि? प्रणयो नाम स्नेहनिमित्तः विस्रम्भः? तेनापि कारणेन यत् उक्तवान् अस्मि।।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas ।।11.41
।।आपकी महिमा और स्वरूपको न जानते हुए मेरे सखा हैं ऐसा मानकर मैंने प्रमादसे अथवा प्रेमसे हठपूर्वक (बिना सोचे समझे) हे कृष्ण हे यादव हे सखे इस प्रकार जो कुछ कहा है और हे अच्युत हँसी दिल्लगी में? चलते फिरते? सोते जागते? उठते बैठते? खाते पीते समयमें अकेले अथवा उन सखाओं? कुटुम्बियों आदिके सामने मेरे द्वारा आपका जो कुछ तिरस्कार किया गया है?
वह सब अप्रमेयस्वरूप आपसे मैं क्षमा करवाता हूँ।
Hindi Translation By Swami Tejomayananda ।।11.41।।
हे भगवन् आपको सखा मानकर आपकी इस महिमा को न जानते हुए मेरे द्वारा प्रमाद से अथवा प्रेम से भी हे कृष्ण हे यादव हे सखे इस प्रकार जो कुछ बलात् कहा गया है।।

यद्यपि यादवों का व्यवसाय गत विशेषण गोप / गौश्चर:
भी लोक में प्रसिद्ध रहा और स्वभाव ( प्रवृत्ति-मूलक) विशेषण आभीर अथवा अहीर सर्व विदित ही है ।

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