शनिवार, 5 जनवरी 2019

अहीर शब्द के जन्म- सूत्र

आर्य और वीर दौनों शब्द मूलत: एस रूप ही हैं ।
और आर्य शब्द आधिर प्राचीनत्तम रूप है ।
आर्य शब्द के जन्म- सूत्र. असीरियन संस्कृतियों से सम्बद्ध है ।

सुमेरियन( माइथॉलॉजी) पूरातन कथाओं में आर्य शब्द असुरों का वाचक था ।

क्यों कि यही लोग वे यौद्धा थे --जो अपने प्रतिद्वन्द्वीयों  क्रूरता पूर्वक अारों से काट देते थे ।

असुर संस्कृति के अनुयायी वीरों का विशेषण था ।
और आर्य तथा वीर दौनों ही शब्द भाषा विज्ञान की सम्प्रसारण क्रिया के द्वारा परस्पर विकसित रूप हैं ।

 जैस वस् धातु का उस् रूपन्तरण होना तथा वी धातु का अज् रूपान्तरण होना 

वीरम्, नपुंसकलिङ-्ग  (अज् धातु + "स्फायितञ्चिवञ्चीति । उणा० १ । १३ । इत्यादिना रक् प्रत्यये । अज् का  वी  सम्प्रसारण  'होने से  वीर शब्द बनता है ।

वीरः, पुं, (वीरयतीति । वीर विक्रान्तौ + पचा- द्यच् । यद्वा, विशेषेण ईरयति दूरीकरोति शत्रून् = वि + ईर + इगुपधात् कः  यद्वा, अजति क्षिपति शत्रून्  । 

 अर्थात् जो शत्रु को दूर करता है 'वह  वीर है 

अज + स्फायितञ्चीत्या दिना रक् । अजेर्व्वीः ।) शौर्य्यविशिष्टः । तत्पर्य्यायः । १ शूरः २ विक्रान्तः ३ । इत्यमरःकोश । २ । ८ । ७७ ॥ गण्डीरः ४ तरस्वी ५ । इति जटाधरः ॥ 

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आचार्य यास्क ने उषस् नामपद के दो निर्वचन प्रस्तुत किये हैः-(क)-उषा वष्टेः कान्तिकर्मणः 

कि उषस् शब्द कान्ति अर्थ वाली ‘वश्’ धातु से निष्पन्न होता है।
(ख)-उच्छतेरितरा माध्यमिका वाक्’ कि मध्यस्थानी देवता वाचक उषस् विवासनार्थक ‘उच्छ्’ धातु से निष्पन्न होता है। 

           विवासे

 - उच्छति व्युष्टिः ''व्युष्टं कल्ये विपाशिते'' अयमपि भ्वादौ पठितः स्वरभेदाय 15

यास्क के उपर्युक्त वक्तव्य से दुर्गाचार्य यह आशय ग्रहण करते हैं कि द्युस्थानी उषस् का निर्वचन ‘वश’ कान्तौ’ तथा ‘उच्छी’ विवासे’ इन दोनों धातुओं से हो सकता है।
जबकि मध्यस्थानी ‘उषस्’ देवतापद का निर्वचन केवल ‘उच्छी’ विवासे’ धातु से होता है।
          

  वश् धातु का  लट्  लकार (वर्तमान काल-) का  परस्मैपदीय रूप

                 एकवचनम्.   द्विवचनम्.      बहुवचनम्
प्रथमपुरुषः  वष्टि               उष्टः              उशन्ति 

मध्यमपुरुषः वक्षि.             उष्टः.             उष्ट 

उत्तमपुरुषः वश्मि             उश्वः              उश्मः

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वास्तव में आर्य शब्द   असुर वीरं का विशषण था 🌹

ऋग्वेद १०/१०/८८६७ में यम का कथन है—न ते सखा सख्यं वष्टये वत्सलक्ष्यामद्वि पुरुषा भवति। महष्पुमान्सो असुरस्य वीरा दिवोध्वरि उर्विया परिख्यानि।

--हे सखी! आपका यह सहयोगी आपके साथ इस प्रकार के संपर्क का इच्छुक नहीं है क्योंकि आप सहोदरा बहन हैं| 

हमें यह अभीष्ट नहीं है |

आप असुरों के वीर पुत्रों, जो सर्वत्र विचरण करते हैं की संगति करें |

मिश्र की पुरातन कथाओं में यम को हेम कहा गया है ।

जहाँ भाई-बहिन ही विवाह कर लेते हैं ।

परवर्ती युग में असुर का प्रयोग देवों (सुरों) के शत्रु रूप में प्रसिद्ध हो गया।

हिन्दू धर्मग्रन्थों में असुर वे लोग हैं जो 'सुर' (देवताओं) से संघर्ष करते हैं। 

धर्मग्रन्थों में उन्हें शक्तिशाली, अतिमानवीय, असु राति अर्थात् जो प्राण देता है, के रूप में चित्रित किया गया है

'असुर' शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में लगभग १०५ बार हुआ है। उसमें ९० स्थानों पर इसका प्रयोग 'असु युक्त अथवा प्राण -युक्त के अर्थ में किया गया है ।

और केवल 15 स्थलों पर यह 'देवताओं के शत्रु' का वाचक है।

'असुर' का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है- प्राणवंत, प्राणशक्ति संपन्न ('असुरिति प्राणनामास्त: शरीरे भवति, निरुक्ति ३.८) 

और इस प्रकार यह वैदिक देवों के एक सामान्य विशेषण के रूप में व्यवहृत किया गया है।

विशेषत: यह शब्द इंद्र, मित्र तथा वरुण के साथ प्रयुक्त होकर उनकी एक विशिष्ट शक्ति का द्योतक है।

इंद्र के तो यह वैयक्तिक बल का सूचक है, परंतु वरुण के साथ प्रयुक्त होकर यह उनके नैतिक बल अथवा शासनबल का स्पष्टत: संकेत करता है।

असुर शब्द इसी उदात्त अर्थ में पारसियों के प्रधान देवता 'अहुरमज़्द' ('असुर: महत् ') के नाम से विद्यमान है।

यह शब्द उस युग की स्मृति दिलाता है जब वैदिक आर्यों तथा ईरानियों (पारसीकों) के पूर्वज एक ही स्थान पर निवास कर एक ही देवता की उपासना में निरत थे। अन्तर आर्यों की इन दोनों शाखाओं में किसी अज्ञात विरोध के कारण फूट पड़ी गई।

फलत: वैदिक आर्यों ने 'न सुर: असुर:' यह नवीन व्युत्पत्ति मानकर असुर का प्रयोग दैत्यों के लिए करना आरम्भ किया ।

और उधर ईरानियों ने भी देव शब्द का ('द एव' के रूप में) अपने धर्म के दानवों के लिए प्रयोग करना शुरू किया। 

और दष्यु अथवा दास को ईरानी आर्यों ने श्रेष्ठ व पूज्य अर्थ में ग्रहण किया है ।

फलत: वैदिक 'वृत्रघ्न' (इन्द्र) अवस्ता में 'वेर्थ्रोघ्न' के रूप में एक विशिष्ट दैत्य का वाचक बन गया तथा ईरानियों का 'असुर' शब्द पिप्रु आदि देवविरोधी दानवों के लिए ऋग्वेद में प्रयुक्त हुआ जिन्हें इंद्र ने अपने वज्र से मार डाला था। 

(ऋक्. १०।१३८।३-४)। शतपथ ब्राह्मण की मान्यता है कि असुर देवदृष्टि से अपभ्रष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं (तेऽसुरा हेलयो हेलय इति कुर्वन्त: पराबभूवु:)। 

अर्थात् वे असुर हे अरय: हे अरय इस प्रकार करते हुए पराजित हो गये ।


वाल्मीकि-रामायण में वर्णित किया गया है कि देवता सुरा पान करने के कारण सुर कहलाए ,

और जो सुरा पान नहीं करते वे असुर कहलाते थे  ।

" सुरा प्रति ग्रहाद् देवा: सुरा इति अभिविश्रुता ।

अप्रति ग्रहणात् तस्या दैतेयाश्चासुरा: स्मृता ।।

वस्तुत देव अथवा सुर जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध हैं ।

स्वीडन के स्वीअर (Sviar)लोग जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध हैं ।

यूरोपीय संस्कृतियों में सुरा एक सीरप (syrup)

के समान है l

यूरोपीय लोग शराब पीना शुभ और स्वास्थ्य प्रद समझते है ।

कारण वहाँ की शीतित जल-वायु के प्रभाव से बचने के लिए शराब औषधि तुल्य है ।     फ्रॉञ्च भाषा में शराब को सीरप (syrup )ही कहते हैं ।

अत: वाल्मीकि-रामायण कार ने सुर शब्द की यह अानुमानिक व्युत्पत्ति- की है ।

परन्तु सुर शब्द का विकास जर्मनिक जन-जाति स्वीअर (Sviar) से हुआ है 




ब्राह्मण कभी भी आर्य नहीं हो सकता क्यों कि युद्ध उसका धर्म या स्वभाव नहीं है ।
यौद्धा का पर्याय रूप है आर्य.........

उ०—बीछी आर सरिस टेई मूछैं सबही की ।—प्रेमघन, भा०१, पृ० ८० ।

तीर
प्रारंभिक 14c।, पुरानी अंग्रेज़ी के arwan , पूर्व में "तीर", संभवतः प्रोटो-जर्मेनिक *arkhwo (स्रोत गोथिक arhwanza ), जो कि PIE रूट *arku- , लैटिन का स्रोत है, से पुराने नॉर्स örvar ( örvar ) से उधार लिया गया है। arcus (देखें arc (एन।))। जमीनी भावना "धनुष से संबंधित चीज" होगी। कार्टोग्राफी आदि में "एक चिह्न जैसे तीर" 1834 से है। पुरानी अंग्रेजी में एक दुर्लभ शब्द। "तीर" के लिए और अधिक सामान्य शब्द stræl थे (जो स्लाव में अभी भी सामान्य शब्द से जाना जाता है और एक बार जर्मनिक में प्रचलित है, जिसका अर्थ "फ्लैश, स्ट्रीक" शब्दों से संबंधित है) और fla , flan (in -n एक बहुवचन विभक्ति के लिए गलत है ), ओल्ड नॉर्स से, एक उत्तरी जर्मेनिक शब्द, शायद मूल रूप से "स्प्लिन्टर" की भावना के साथ। 1200 से गायब हो गया Stræl ; fla प्रारंभिक मध्य अंग्रेजी में flo बन गया और 1500 के बाद तक स्कॉटिश में लिंगर्ड रहा। रॉबिन ने अपने जॉली धनुष को झुकाया उसमें उन्होंने एक फ़्लैट स्थापित किया। ["रॉबिन एंड गैंडलीएन," सी से एक नाबालिग किताब में। ब्रिटिश संग्रहालय में 1450] संबंधित प्रविष्टियाँ चाप तीर सिर अरारोट दूसरे पढ़ रहे हैं

Ir 46. ​​अबीर ir
दृढ़ संकल्प
अबीर: मजबूत
मूल शब्द: אָבִיר
भाषण का हिस्सा: विशेषण पुरुष
लिप्यंतरण: अबीर
ध्वन्यात्मक वर्तनी: (बीर बीयर)
परिभाषा: मजबूत
एनएएस एग्ज़ॉस्टिव कॉनकॉर्डेंस
शब्द उत्पत्ति
अबर के समान
परिभाषा
बलवान
एनएएसबी अनुवाद
माइटी वन (6)।

ब्राउन-ड्राइवर-ब्रिग्स
[ विशेषण विशेषण मजबूत ; हमेशा = भगवान के लिए मजबूत , पुराना नाम (कविता); केवल निर्माण ַ construct constructִ ר יֲעֹק Genב उत्पत्ति 49:24 में और भजन संहिता 132: 2 ; भजन १३२: ५ ; यशायाह 49:26 ; यशायाह 60:16  ; यशायाह 1:24 (चे क्रिटिकल नोट की तुलना करें) - बा एनबी 51 इस निर्माण को अलौकिक को सौंपता है ।

मजबूत की प्रबल संकल्‍पना
पराक्रमी
'अबर से ; पराक्रमी (भगवान की बात) - पराक्रमी (एक)।

HEBREW 'अबर देखें

प्रपत्र और लिप्यंतरण
אבֲיר אֲבִ֣יר אִ֥בריר אביר לַאֲבליר לאביר '·r' ḇîr 'ăḇîr aVir la'ăḇîḇî la ·' ă · lar laaVir
लिंक
इंटरलीनियर ग्रीक • इंटरलीनियर हिब्रू • मजबूत संख्याएं • अंग्रेजों की यूनानी सहमति • अंग्रेजों की हिब्रू सहमति • समानांतर ग्रंथों
अंग्रेजों की सांठगांठ
उत्पत्ति 49:24
HEB: יB יו מִי : יֲ אִ֣בריר י עֲקֹ֔ב מָדָ֑
NAS: याकूब के पराक्रमी एक के हाथों से
केजेवी: याकूब के शक्तिशाली [भगवान] के हाथों से ;
INT: हाथ वहाँ जैकब के ताकतवर के हाथ
भजन १३२: २
HEB: לB יהוָ֑ה נ ר לֲאִ֥בריר יַע׃ֲַַַַ
NAS: और याकूब के पराक्रमी व्यक्ति को वचन दिया,
केजेवी: [और] याकूब के शक्तिशाली [भगवान] की कसम खाई;
INT: यहोवा के पास गया और याकूब की ताकत की कसम खाई

भजन १३२: ५
HEB: לB יהוָ֑ה מ֗נֹו ת לֲא בִ֥יר יֹֽע׃קַבַ
NAS: याकूब के शक्तिशाली एक के लिए एक निवास स्थान।
केजेवी: जैकब के शक्तिशाली [भगवान] के लिए एक बस्ती।
INT: यहोवा एक याकूब की ताकत का निवास है

यशायाह 1:24
HEB: יB הוָ֣ה : ב֔אֹוֲת אִ֖ב יר יֵ֑ר֚א֚ל הָוֹי
NAS: मेजबानों की, इज़राइल की ताकतवर ,
KJV: मेजबानों में से एक , इजरायल के शक्तिशाली  ,
INT: GOD ऑफ द माइटी ऑफ इजरायल आह

यशायाह 49:26
HEB: מְגֹוֹשִׁיעֵ֔ךְ וֲאֵ֖ךְלֲ אִ֥בריר יַע׃קסבֽ ֽ
NAS: एंड योर रिडीमर, द माइटी वन ऑफ़ जैकब।
KJV: और तेरा उद्धारक, याकूब का पराक्रमी ।
INT: आपका उद्धारकर्ता और आपका उद्धारक जैकब का पराक्रमी हूँ

यशायाह 60:16
HEB: מְגֹוֹשִׁיעֵ֔ךְ וֲאֵ֖ךְלֲ אִ֥בריר יַע׃קֽבֽ
NAS: एंड योर रिडीमर, द माइटी वन ऑफ़ जैकब।
KJV: और तेरा उद्धारक, याकूब का पराक्रमी ।
INT: आपका उद्धारकर्ता और आपका उद्धारक जैकब का पराक्रमी हूँ

6 घटनाएँ

मजबूत हिब्रू 46
6 घटनाएँ

'' · ·r - 4 सम।
la · 'ă · ḇîr - 2 व्यवसाय।

अमरकोशः

अरि पुं। 

शत्रुः 

समानार्थक:रिपु,वैरिन्,सपत्न,अरि,द्विषत्,द्वेषण,दुर्हृद्,द्विष्,विपक्ष,अहित,अमित्र,दस्यु,शात्रव,शत्रु,अभिघातिन्,पर,अराति,प्रत्यर्थिन्,परिपन्थिन्,भ्रातृव्य,वृत्र 

2।8।10।2।4 

आ + ऋ--अच् । १ चर्म्मभेदकास्त्रभेदे । (टेको) इति ख्याते २ लौहास्त्रे । “आराग्रमात्रो ह्यवरोऽपि दृष्टः” श्रुतिः ३ प्रतोदे च “या पूषन् ब्रह्मचोदनीमारां विभर्ष्यामृणे” ऋ० ६, ५, ८, । “उद्यम्यारामग्रकायोत्थितस्य” माघः । “आरां प्रतोदम्” मल्लिनाथः ।

      शूद्र शब्द के जन्म सूत्र

संज्ञा पुं० [हिं० सुतार] शिल्पकार। कारीगर। उ०— हरिजन माण का कीठरा आप सुतारी आहि। मुएहू न त्यागत टकानज ताह त छो़डचा नाहि।—विश्राम (शब्द०)।
अहीरों का एेतिहासक परिचय ..~~~ ~~~~~~~~~~~~~~~~ अहीरों को संस्कृत भाषा में अभीरः अथवा आभीरः संज्ञा से अभिहित किया गया .. संस्कृत भाषा में यह शब्द " अभि ईरयति इति अभीरः" अर्थात् चारो तरफ घूमने बाला निर्भीक जनजाति " अभि एक धातु ( क्रियामूल ) से पूर्व लगने बाला उपसर्ग Prifix..तथा ईर् धातु जिसका अर्थ गमन करना है इसमें कर्तरिसंज्ञा भावे में अच् प्रत्यय के द्वारा निर्मित विशेषण -शब्द अभीरः है | अभीरः शब्द में श्लिष्ट अर्थ है... जो पूर्णतः भाव सम्पूर्क है ...अ निषेधात्मक उपसर्ग तथा भीरः/ भीरु = कायर ..अर्थात् जो भीरः अथवा कायर न हो वीर पुरुष ..यहूदीयो की भाषा हिब्रू में भी अबीर Abeer शब्द का अर्थ वीर तथा सामन्त है ..तात्पर्य यह कि इजराईल के यहूदी वस्तुतः यदु की सन्तानें थी जिन्हें अबीर भी कहा जाता था यद्यपि आभीरः शब्द अभीरः शब्द का ही बहुवचन समूह वाचक रूप है | अभीरः+ अण् = आभीरः ..हिब्रू बाईबिल में सृष्टिखण्ड Genesis ..में यहुदः तथा तुरबजू के रूप में यदुः तुर्वसू का ही वर्णन है आर्यों के प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में जैसा कि वर्णन है ऋग्वेद के दशम् मण्डल के 62 में सूक्त मन्त्र में ..~~------उत दासा परिविषे स्मद्दिष्टी ( समत् दिष्टी )गोपरीणसा यदुस्तुर्वश् च मामहे = 🏒🏒🏒🏒🏒🏒🏒 अर्थात् यदु और तुर्वशु नामक जो दास हैं गोओं से परिपूर्ण है अर्थात् चारो ओर से घिरे हुए हैं हम सब उनकी स्तुति करते हैं | 🐂🐂🐂 🐂. 🐇 🐂🐄🐃🐄. 🐄🐄 वस्तुतः अभीरः शब्द से कालान्तरण में स्वतन्त्र रूप से एक अभ्र् नाम धातु का विकास हुआ जो संस्कृत धातु पाठ में परिगणित है जिसका अर्थ है...----चारौ ओर घूमना ..इतना ही नही मिश्र के टैल ए अमर्ना के शिला लेखों पर हबीरु शब्द का अर्थ भी घुमक्कड़ ही है ..अंग्रेजी में आयात क्रिया शब्द Aberrate का अर्थ है ...to Wander or deviate from the right path...अर्थात् सही रास्ते से भटका हुआ..आवारा ..संस्कृत रूप अभीरयति परस्मै पदीय रूप ... सत्य तो यह है कि सदीयों से आभीरः जनजाति के प्रति तथा कथित कुछ ब्राह्मणों के द्वारा द्वेष भाव का कपट पूर्ण नीति निर्वहन किया गया जाता रहा ..शूद्र वर्ग में प्रतिष्ठित कर उनके लिए शिक्षा और संस्कारों के द्वार भी पूर्ण रूप से बन्द कर दिए गये .. जैसा कि " स्त्रीशूद्रौ नाधीयताम् " अर्थात् स्त्री और शूद्र ज्ञान प्राप्त न करें ...अर्थात् वैदिक विधान का परिधान पहना कर इसे ईश्वरीय विधान भी सिद्ध किया गया ... क्यों कि वह तथाकथित समाज के स्वमभू अधिपति जानते थे कि शिक्षा अथवा ज्ञान के द्वारा संस्कारों से युक्त होकर ये अपना उत्धान कर सकते हैं ..शिक्षा हमारी प्रवृत्तिगत स्वाभाविकतओं का संयम पूर्वक दमन करती है अतः दमन संयम है और संयम यम अथवा धर्म है ... यद्यपि कृष्ण को प्रत्यक्ष रूप से तो शूद्र अथवा दास नहीं कहा गया परन्तु परोक्ष रूप से उनके समाज या वर्ग को आर्यों के रूप में स्वीकृत नहीं किया है ..कृष्ण को इन्द्र के प्रतिद्वन्द्वी के रूप मे भी वैदिक साहित्य में वर्णित किया गया है .. वस्तुतः अहीर एक गौ पालक जाति है, जो उत्तरी और मध्य भारतीय क्षेत्र में फैली हुई है। इस जाति के साथ बहुत ऐतिहासिक महत्त्व जुड़ा हुआ है, ...... क्योंकि इसके सदस्य संस्कृत साहित्य में उल्लिखित आभीर के समकक्ष माने जाते हैं। हिन्दू पौराणिक ग्रंथ 'महाभारत' में इस जाति का बार-बार उल्लेख आया है। कुछ विद्वानों का मत है कि इन्हीं गौ पालकों ने, जो दक्षिणी राजस्थान और सिंध (पाकिस्तान) में बिखरे हुए हैं, गोपालन भगवान् कृष्ण की कथा का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं। 'अहीर' भारत की प्राचीन जाति है, जो अराजकता के लिए काफ़ी प्रसिद्ध रही है।यह सर्व सत्य है कि शिक्षा और संस्कारों से वञ्चित समाज कभी सभ्य या सांस्कृतिक रूप से समुन्नत नहीं हो सकता है अतः आभीरः जनजाति भी इसका अप वाद नहीं है ... जैसा की तारानाथ वाचस्पत्यम् ने अहीरों की इसी प्रवृत्ति गत स्वभाव को आधार मानकर संस्कृत भाषा में आभीरः शब्द की व्युत्पत्ति भी की है--------------* "आ समन्तात् भीयं राति इति आभीरः कथ्यते "..अर्थात् जो चारो ओर से जो भय प्रदान करता है वह आभीरः है ...यद्यपि यह शब्द व्युत्पत्ति प्रवृत्ति गत है अन्यत्र दूसरी व्युत्पत्ति अभीरः शब्द की है --------- अभिमुखी कृत्य ईरयति गाः इति अभीरः अर्थात् दौनो तरफ मुख करके जो गायें चराता है या घेरता है वह अभीरः है..... शब्द- विश्लेषक योगेश कुमार रोहि ग्राम आजादपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़ के द्वारा प्रायोजित है .....फारसी मूल का आवरा शब्द भी अहीर /आभीरः का तद्भव रुप है .. जाटों का इन अहीरों से रक्त सम्बन्ध तथा सामाजिक सम्बन्ध मराठों और गूजरों जैसा निकटतम है।स्वयं गुज्जर / गूजर अथवा संस्कृत गुर्जरः भी संस्कृत के पूर्ववर्ती शब्द गोश्चरः ----गायों को चराने बाला ,🐄🐄. 🏌🐄🐄🐄. 🐄. 🐂..का परवर्ती रूप है जिससे गुर्जरायत या गुजरात प्रदेश वाची शब्द का विकास हुआ है .. यादव प्राय: 'अहीर' शब्द से भी नामांकित होते हैं, जो संभवत: आभीर जाति से संबद्ध हैं कुछ लोग आभीरों को अनार्य कहते हैं,...क्यो ऋग्वेद के दशम् मण्डल के62 में सूक्त के 10 वें मन्त्र में यदु और तुर्वशु को दास कहा गया है .. जैसा कि उपर्यक्त वर्णित है |
यादव योगेश कुमार "रोहि" का यह लघु ऐैतिहासिक शोध है |
ऋग्वेद से प्रमाण----
" उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टि गोपरीणसा यदुस्तुर्वसुश्च मामहे ||ऋ०10/62/10/|
प्रस्तुत ऋचा में यदु और तुर्वसु को गायों से घिरा हुआ बताया गया है |
परन्तु दास के रूप में -दास शब्द लौकिक संस्कृत में शूद्र का वाचक होगया परन्तु वैदिक काल में असुर को दास कहा गया यह सर्व-विदित है कि ईरानी आर्यों की भाषा में दास और असुर उच्च व पूज्य अर्थों में प्रकाशित हैं !
क्रमश: "दाहे " और "अहुर" रूप में
वस्तुत वेदों में भी असुर शब्द  बहुत वार प्रारम्भिक चरणों में वरुण सूर्य तथा अग्नि का भी वाचक है !
परन्तु बाद में सुर के विपरीत रूप को असुर कहा गया !
वाल्मीकि रामायण में सुरा का पान करे वाले सुर तथा सुरा (शराब) का पान नकरने वाले असुर बतलाए हैं |
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" सुरा प्रति ग्रहाद् देवा: सुरा: अभिविश्रुता:
अप्रति ग्रहणाद् दैतेयाश्चासुरा: स्मृता: ||(वाल्मीकि रामायण बाल काण्ड)
अतः आभीरः जनजाति के पूर्व- पुरुष यदु आर्यों के समुदाय से बहिष्कृत कर दिये गये थे ..यदि आभीरः जनजाति को अभीर जाति से संबंधित किया जाये तो ये विदेशी ठहरते हैं।
परन्तु यह मूर्खों की मिथ्या धारणा है |
आभीर एशिया की सबसे प्राचीन व वृहद जन जाति है |
ईसा मसीह (कृष्ट:) तथा कृष्ण: दौनों ही महा मानवों का प्रादुर्भाव इसी यदु अथवा यहुद: वंश में हुआ है |
जैसा कि इजराईल के यहूदी अबीर Abeer जनजाति जो युद्ध और पराक्रम के लिए दुनिया मे विख्यात हैं |

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