शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

संस्कृत व्याकरण-

संस्कृत व्याकरण संस्कृत में व्याकरण की परम्परा बहुत प्राचीन है।
संस्कृत भाषा को शुद्ध रूप में जानने के लिए व्याकरण शास्त्र का अध्ययन किया जाता है।
अपनी इस विशेषता के कारण ही यह वेद का सर्वप्रमुख अंग माना जाता है ।
व्याकरण के मूलतः पाँच प्रयोजन हैं
- रक्षा, ऊह, आगम, लघु और असंदेह।
व्याकरण के बारे में निम्नलिखित श्लोक बहुत प्रसिद्ध है।
- यस्य षष्ठी चतुर्थी च विहस्य च विहाय च।
यस्याहं च द्वितीया स्याद् द्वितीया स्यामहं कथम् ॥ जिसके लिए "विहस्य" छठी विभक्ति का है और "विहाय" चौथी विभक्ति का है ; "अहम् और कथम्"(शब्द) द्वितीया विभक्ति हो सकता है। मैं ऐसे व्यक्ति की पत्नी (द्वितीया) कैसे हो सकती हूँ ?

(ध्यान दें कि किसी पद के अन्त में 'स्य' लगने मात्र से वह षष्टी विभक्ति का रूप नहीं हो जाता, और न ही 'आय' लगने से चतुर्थी विभक्ति का रूप ।

विहस्य और विहाय ये दोनों अव्यय हैं,
इनके रूप नहीं चलते ।

इसी तरह 'अहम्' और 'कथम्' में अन्त में 'म्' होने से वे द्वितीया विभक्ति के नहीं हो गये।
अहम् यद्यपि म्-में अन्त होता है फिर भी वह प्रथमपुरुष​-एकवचन का रूप है ।

इस सामान्य बात को भी जो नहीं समझता है, उसकी पत्नी कैसे बन सकती हूँ ?
अल्प ज्ञानी लोग ऐसी गलती प्रायः कर देते हैं।
यह भी ध्यान दें कि उन दिनों में लडकियां इतनी पढी-लिखी थीं वे मूर्ख से विवाह करना नहीं चाहती थीं
और वे अपने विचार रखने के लिए स्वतन्त्र थीं ।
भी वह प्रथमपुरुष​-एकवचन का रूप है ।
इस सामान्य बात को भी जो नहीं समझता है,
उसकी पत्नी कैसे बन सकती हूँ ?

अल्प ज्ञानी लोग ऐसी गलती प्रायः कर देते हैं।
यह भी ध्यान दें कि उन दिनों में लडकियां इतनी पढी-लिखी थीं वे मूर्ख से विवाह करना नहीं चाहती थीं और वे अपने विचार रखने के लिए स्वतन्त्र थीं।
वचन लिंग ,पुल्लिंग-
जिस शब्द में पुरुष जाति का बोध होता है, उसे पुलिंग कहते हैं।
(जैसे रामः, बालकः, सः आदि)
स्त्रीलिंग- जिस शब्द से स्त्री जाति का बोध होता है,
उसे स्त्रीलिंग कहते हैं।
(जैसे रमा, बालिका, सा आदि)
नपुंसकलिंग (जैसे: फलम् , गृहम, पुस्तकम , तत् आदि)
पुरुष कारक
वाच्य संस्कृत में तीन वाच्य होते हैं-
कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य और भाववाच्य।
कर्तृवाच्य में कर्तापद प्रथमा विभक्ति का होता है।
छात्रः श्लोकं पठति- यहाँ छात्रः कर्ता है और प्रथमा विभक्ति में है।
कर्मवाच्य में कर्तापद तृतीया विभक्ति का होता है।
जैसे, छात्रेण श्लोकः पठ्यते।
यहाँ छात्रेण तृतीया विभक्ति में है।
अकर्मक धातु में कर्म नहीं होने के कारण क्रिया की प्रधानता होने से भाववाच्य के प्रयोग सिद्ध होते हैं।

कर्ता की प्रधानता होने से कर्तृवाच्य प्रयोग सिद्ध होते हैं। भाववाच्य एवं कर्मवाच्य में क्रियारूप एक जैसे ही रहते हैं। कर्तृवाच्य         भाववाच्य
1.भवान् तिष्ठतु.    भवता स्थीयताम्
2.भवती नृत्यतु.    भवत्या नृत्यताम्
3.त्वं वर्धस्व.        त्वया वर्ध्यताम्
4.भवन्तः न सिद्यन्ताम्.  भवद्भिः न खिद्यताम् 5.भवत्यः उत्तिष्ठन्तु.   भवतीभिः उत्थीयताम्
6.यूयं संचरत.     युष्माभिः संचर्यताम्
7.भवन्तौ रुदिताम्. भवद्भयां रुद्यताम्
8.भवत्यौ हसताम्  भवतीभ्यां हस्यताम्
9.विमानम् उड्डयताम् विमानेन उड्डीयताम्
10सर्वे उपविशन्तु सर्वेः उपविश्यताम

लकार-संस्कृत में - लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् , लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् –
ये दस लकार होते हैं।
वास्तव में ये दस प्रत्यय हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं। इन दसों प्रत्ययों के प्रारम्भ में 'ल'  (काल )है इसलिए इन्हें 'लकार' कहते हैं (ठीक वैसे ही जैसे ॐकार, अकार, इकार, उकार इत्यादि)।

इन दस लकारों में से आरम्भ के छः लकारों के अन्त में 'ट्' है- लट् लिट् लुट् आदि इसलिए ये टित् लकार कहे जाते हैं और अन्त के चार लकार ङित् कहे जाते हैं क्योंकि उनके अन्त में 'ङ्' है।
व्याकरणशास्त्र में जब धातुओं से पिबति, खादति आदि रूप सिद्ध किये जाते हैं तब इन टित् और ङित् शब्दों का बहुत बार प्रयोग किया जाता है।
इन लकारों का प्रयोग विभिन्न कालों की क्रिया बताने के लिए किया जाता है।
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जैसे – जब वर्तमान काल की क्रिया बतानी हो तो धातु से लट् लकार जोड़ देंगे,
परोक्ष भूतकाल की क्रिया बतानी हो तो लिट् लकार जोड़ेंगे।
(१) लट् लकार (= वर्तमान काल) जैसे :- श्यामः खेलति । ( श्याम खेलता है।)
(२) लिट् लकार (= अनद्यतन परोक्ष भूतकाल) जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो जैसे :-- रामः रावणं ममार ।
( राम ने रावण को मारा ।)
(३) लुट् लकार (= अनद्यतन भविष्यत् काल)
जो आज का दिन छोड़ कर आगे होने वाला हो । जैसे :-- सः परश्वः विद्यालयं गन्ता।
( वह परसों विद्यालय जायेगा ।)
(४) लृट् लकार (= सामान्य भविष्य काल) जो आने वाले किसी भी समय में होने वाला हो ।
जैसे :--- रामः इदं कार्यं करिष्यति ।
(राम यह कार्य करेगा।)
(५) लेट् लकार (= यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है, ईश्वर के लिए, क्योंकि वह किसी काल में बंधा नहीं है।)
(६) लोट् लकार (= ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है ।)
जैसे :- भवान् गच्छतु । (आप जाइए )
; सः क्रीडतु । (वह खेले) ;
त्वं खाद । (तुम खाओ ) ;
किमहं वदानि । (क्या मैं बोलूँ ?)
(७) लङ् लकार (= अनद्यतन भूत काल ) आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो ।
जैसे :- भवान् तस्मिन् दिने भोजनमपचत् ।
(आपने उस दिन भोजन पकाया था।)
(८) लिङ् लकार = इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं :-- (क) आशीर्लिङ् (= किसी को आशीर्वाद देना हो) जैसे :- भवान् जीव्यात् (आप जीओ ) ; त्वं सुखी भूयात् । (तुम सुखी रहो।)
(ख) विधिलिङ् (= किसी को विधि बतानी हो ।)
जैसे :- भवान् पठेत् । (आपको पढ़ना चाहिए।) ;
अहं गच्छेयम् । (मुझे जाना चाहिए।)

(९) लुङ् लकार (= सामान्य भूत काल) जो कभी भी बीत चुका हो । जैसे :- अहं भोजनम् अभक्षत् ।
(मैंने खाना खाया।)
(१०) लृङ् लकार (= ऐसा भूत काल जिसका प्रभाव वर्तमान तक हो) जब किसी क्रिया की असिद्धि हो गई हो । जैसे :- यदि त्वम् अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् भवितुम् अर्हिष्यत् । (यदि तू पढ़ता तो विद्वान् बनता।)
इस बात को स्मरण रखने के लिए कि धातु से कब किस लकार को जोड़ेंगे, निम्नलिखित श्लोक स्मरण कर लीजिए-
लट् वर्तमाने लेट् वेदे भूते लुङ् लङ् लिटस्‍तथा । विध्‍याशिषोर्लिङ् लोटौ च लुट् लृट् लृङ् च भविष्‍यति ॥
(अर्थात् लट् लकार वर्तमान काल में, लेट् लकार केवल वेद में, भूतकाल में लुङ् लङ् और लिट्, विधि और आशीर्वाद में लिङ् और लोट् लकार तथा भविष्यत् काल में लुट् लृट् और लृङ् लकारों का प्रयोग किया जाता है।) लकारों के नाम याद रखने की विधि- ल् में प्रत्याहार के क्रम से ( अ इ उ ऋ ए ओ ) जोड़ दें और क्रमानुसार ( ट् ) जोड़ते जाऐं ।
फिर बाद में ( ङ् ) जोड़ते जाऐं जब तक कि दश लकार पूरे न हो जाएँ ।
जैसे लट् लिट् लुट् लृट् लेट् लोट् लङ् लिङ् लुङ् लृङ् ॥ इनमें लेट् लकार केवल वेद में प्रयुक्त होता है ।
लोक के लिए नौ लकार शेष रहे ।
अब इन नौ लकारों में लङ् के दो भेद होते हैं :-- आशीर्लिङ् और विधिलिङ् ।
इस प्रकार लोक में दश के दश लकार हो गए ।
२) द्वन्द्व ३) कर्मधारय ४) बहुव्रीहि ५) अव्ययीभाव ६) द्विगु समास क्रिया पदों में नहीं होता। समास के पहले पद को 'पूर्व पद' कहते हैं, बाकी सभी को 'उत्तर पद' कहते हैं। समास के तोड़ने को विग्रह कहते हैं, जैसे -- "रामश्यामौ" यह समास है और रामः च श्यामः च (राम और श्याम) इसका विग्रह है।
पाठको को याद करने के लिये समास की ट्रिक - 'अब तक दादा' अ= अव्ययीभाव, ब= बहुव्रीहि, त= तत्पुरुष क= कर्मधारयः, द= द्वंद्व, और द= द्विगु। संस्कृत व्याकरण शब्द:-
संस्कृत शब्दतुल्य अंग्रेजीपाणिनि द्वारा प्रयुक्त शब्द विशेषणadjective—
adverb agreement
महाप्राणaspirated—
आत्मनेपदātmanepada— विभक्तिcase— प्रथमाcase 1 (subject)— द्वितीयाcase 2 (object)— तृतीयाcase 3 ("with")— चतुर्थीcase 4 ("for")— पञ्चमीcase 5 ("from")— षष्ठीcase 6 ("of")— सप्तमीcase 7 ("in")— संबोधनcase 8 (address)—
causal verbणिजन्त आज्ञाcommand moodलोट् समासcompound (word)— संध्यक्षरcompound vowelएच् संकेतconditional moodलृङ् व्यञ्जनconsonantहल् desiderativeसन्नन्त अनद्यतनdistant future tenseलुट् परोक्षभूतdistant past tenseलिट् अभ्यासdoubling— द्विवचनdual (number)— द्वन्द्वdvandva— स्त्रीलिङ्गfeminine gender— उत्तमfirst person— लिङ्गgender— gerundक्त्वान्त grammatical case व्याकरणgrammar तालु hard palate—

गुरु heavy (syllable)— intensiveयणन्त लघुlight (syllable)— ओष्ठ lip— दीर्घ long vowel— पुंलिङ्गmasculine gender— गुणmedium vowel— अनुनासिक nasal— नपुंसकलिङ्गneuter gender noun ending सुप् नामधातुnoun from verb noun सुबन्त वचनnumber कर्मन् object—
विधिoption mood

लङ् भविष्यन्ordinary future tense अनद्यतनभूतordinary past tenseलङ् परस्मैपदparasmaipada— participle पुरुषpersonपुरुष बहुवचनplural (number) स्थानpoint of pronunciation prefix वर्तमानpresent tenseलट् कृत्primary (suffix) सर्वनामन्pronoun— भूतrecent past tenseलुङ् ऊष्मन्"s"-sound— —sandhi— मध्यमsecond personमध्यम तद्धितsecondary (suffix)— अन्तःस्थsemivowel ह्रस्वshort vowel— समानाक्षरsimple vowel— एकवचनsingular (number)— कण्ठsoft palate
प्रातिपदिक :-संज्ञा पुं० [सं०] १. अग्नि।

२. संस्कृत व्याकरण के अनुसार वह अर्थवान् शब्द जो धातु न हो जौर न उसकी सिद्बि विभक्ति लगने से हुई हो। जैसे, पेड़, अच्छा आदि।
विशेष—प्रातिपदिक के अंतर्गत ऐसे नाम, सर्वनाम, तद्बितांत कृदत और समासांत पद आते हैं
जिनमें कारक की विभक्तियाँ न लगाई गई हों।
व्याकरण मे उनकी 'प्रातिपादक' संज्ञा केवल विभक्तियों को लगाकर उनसे सिद्ब पद बनाने के लिये की गई है।🌹🌹

stem (of a noun)— अङ्गstem (of any word)— स्पर्शstop वृद्धिstrong vowel कर्तृsubject प्रत्ययsuffix— अक्षरsyllable प्रथमthird person— दन्तtooth उभयपद ubhayapada अल्पप्राणunaspirated अव्ययuninflected wordअव्यय अघोष unvoiced गणverb class— verb endingतिङ् उपसर्ग verb prefixउपसर्ग धातुverb root— verbतिङन्त verbless sentence घोषवत्voiced— स्वर vowelअच्
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