सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

आभीर

कर्म से वर्ण या जाति व्यवस्था ! ...जन्म से वर्ण नहीं .. प्राचीन काल में जब बालक समिधा हाथ में लेकर पहली बार गुरुकुल जाता था तो कर्म से वर्ण का निर्धारण होता था .. यानि के बालक के कर्म गुण स्वभाव को परख कर गुरुकुल में गुरु बालक का वर्ण निर्धारण करते थे ! यदि ज्ञानी बुद्धिमान है तो ब्राह्मण ..यदि निडर बलशाली है तो क्षत्रिय ...आदि ! यानि के एक ब्राह्मण के घर शूद्र और एक शूद्र के यहाँ ब्राह्मण का जन्म हो सकता था ! ..लेकिन धीरे-धीरे यह व्यवस्था लोप हो गयी और जन्म से वर्ण व्यवस्था आ गयी ..और हिन्दू धर्म का पतन प्रारम्भ हो गया !...नरेश आर्य ! इतिहास में ऐसे कई जाति बदलने उद्धरण है .. ..यह एक विज्ञान है ..ऋतु दर्शन के सोलहवीं अट्ठारहवीं और बीसवी रात्रि में मिलने से सजातीय संतान और अन्य दिनों में विजातीय संतान उत्पन्न होते है . एकवर्ण मिदं पूर्व विश्वमासीद् युधिष्ठिर ।। कर्म क्रिया विभेदन चातुर्वर्ण्यं प्रतिष्ठितम्॥ सर्वे वै योनिजा मर्त्याः सर्वे मूत्रपुरोषजाः ।। एकेन्दि्रयेन्द्रियार्थवश्च तस्माच्छील गुणैद्विजः ।। शूद्रोऽपि शील सम्पन्नों गुणवान् ब्राह्णो भवेत् ।। ब्राह्णोऽपि क्रियाहीनःशूद्रात् प्रत्यवरो भवेत्॥ (महाभारत वन पर्व) पहले एक ही वर्ण था पीछे गुण, कर्म भेद से चार बने ।। सभी लोग एक ही प्रकार से पैदा होते हैं ।। सभी की एक सी इन्द्रियाँ हैं ।। इसलिए जन्म से जाति मानना उचित नहीं हैं ।। यदि शूद्र अच्छे कर्म करता है तो उसे ब्राह्मण ही कहना चाहिए और कर्तव्यच्युत ब्राह्मण को शूद्र से भी नीचा मानना चाहिए ।। ब्राम्हण क्षत्रिय विन्षा शुद्राणच परतपः। कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभाव प्रभवे गुणिः ॥ गीता॥१८-१४१॥ चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः । तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् ॥ गीता॥४-१३॥ अर्तार्थ ब्राह्मण, क्षत्रिया , शुद्र वैश्य का विभाजन व्यक्ति के कर्म और गुणों के हिसाब से होता है, न की जन्म के. गीता में भगवन श्री कृष्ण ने और अधिक स्पस्ट करते हुए लिखा है की की वर्णों की व्यवस्था जन्म के आधार पर नहीं कर्म के आधार पर होती है. षत्रियात् जातमेवं तु विद्याद् वैश्यात् तथैव च॥ (मनुस्मृति) आचारण बदलने से शूद्र ब्राह्मण हो सकता है और ब्राह्मण शूद्र ।। यही बात क्षत्रिय तथा वैश्य पर भी लागू होती है ।। वेदाध्ययनमप्येत ब्राह्मण्यं प्रतिपद्यते ।। विप्रवद्वैश्यराजन्यौ राक्षसा रावण दया॥ शवृद चांडाल दासाशाच लुब्धकाभीर धीवराः ।। येन्येऽपि वृषलाः केचित्तेपि वेदान धीयते॥ शूद्रा देशान्तरं गत्त्वा ब्राह्मण्यं श्रिता ।। व्यापाराकार भाषद्यैविप्रतुल्यैः प्रकल्पितैः॥ (भविष्य पुराण) ब्राह्मण की भाँति क्षत्रिय और वैश्च भी वेदों का अध्ययन करके ब्राह्मणत्व को प्राप्त कर लेता है ।। रावण आदि राक्षस, श्वाद, चाण्डाल, दास, लुब्धक, आभीर, धीवर आदि के समान वृषल (वर्णसंकर) जाति वाले भी वेदों का अध्ययन कर लेते हैं ।। शूद्र लोग दूसरे देशों में जाकर और ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि का आश्रय प्राप्त करके ब्राह्मणों के व्यापार, आकार और भाषा आदि का अभ्यास करके ब्राह्मण ही कहलाने लगते हैं ।। जातिरिति च ।। न चर्मणो न रक्तस्य मांसस्य न चास्थिनः ।। न जातिरात्मनो जातिव्यवहार प्रकल्पिता॥ जाति चमड़े की नहीं होती, रक्त, माँस की नहीं होती, हड्डियों की नहीं होती, आत्मा की नहीं होती ।। वह तो मात्र लोक- व्यवस्था के लिये कल्पित कर ली गई ।। अनभ्यासेन वेदानामाचारस्य च वर्जनात् ।। आलस्यात् अन्न दोषाच्च मृत्युर्विंप्रान् जिघांसति॥ (मनु.) वेदों का अभ्यास न करने से, आचार छोड़ देने से, कुधान्य खाने से ब्राह्मण की मृत्यु हो जाती है ।। अनध्यापन शीलं दच सदाचार बिलंघनम् ।। सालस च दुरन्नाहं ब्राह्मणं बाधते यमः॥ स्वाध्याय न करने से, आलस्य से ओर कुधान्य खाने से ब्राह्मण का पतन हो जाता है ।। एक ही कुल (परिवार) में चारों वर्णी-ऋग्वेद (9/112/3) में वर्ण-व्यवस्था का आदर्श रूप बताया गया है। इसमें कहा गया है- एक व्यक्ति कारीगर है, दूसरा सदस्य चिकित्सक है और तीसरा चक्की चलाता है। इस तरह एक ही परिवार में सभी वर्णों के कर्म करने वाले हो सकते हैं।कर्म से वर्ण-व्यवस्था को सही ठहराते हुए भागवत पुराण (7 स्कंध, 11वां अध्याय व 357 श्लोक) में कहा गया है- जिस वर्ण के जो लक्षण बताए गए हैं, यदि उनमें वे लक्षण नहीं पाए जाएं बल्कि दूसरे वर्ण के पाए जाएं हैं तो वे उसी वर्ण के कहे जाने चाहिए। भविष्य पुराण ( 42, श्लोक35) में कहा गया है- शूद्र ब्राह्मण से उत्तम कर्म करता है तो वह ब्राह्मण से भी श्रेष्ठ है। ‘भृगु संहिता’ में भी चारों वर्णों की उत्पत्ति का उल्लेख इस प्रकार है कि सर्वप्रथम ब्राह्मण वर्ण था, उसके बाद कर्मों और गुणों के अनुसार ब्राह्मण ही क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण वाले बने तथा इन वर्णों के रंग भी क्रमशः श्वेत, रक्तिम, पीत और कृष्ण थे। बाद कें तीनों वर्ण ब्राह्मण वर्ण से ही विकसित हुए। यह विकास अति रोचक है जो ब्राह्मण कठोर, शक्तिशाली, क्रोधी स्वभाव के थे, वे रजोगुण की प्रधानता के कारण क्षत्रिय बन गए। जिनमें तमोगुण की प्रधानता हुई, वे शूद्र बने। जिनमें पीत गुण अर्थात् तमो मिश्रित रजो गुण की प्रधानता रही, वे वैश्य कहलाये तथा जो अपने धर्म पर दृढ़ रहे तथा सतोगुण की जिनमें प्रधानता रही वे ब्राह्मण ही रहे। इस प्रकार ब्राह्मणों से चार वर्णो का गुण और कर्म के आधार पर विकास हुआ। इसी प्रकार ‘आपस्तम्ब सूत्रों’ में भी यही बात कही गई है कि वर्ण ‘जन्मना’ न होकर वास्तव में ‘कर्मणा’ हता है - “धर्मचर्ययाजधन्योवर्णः पूर्वपूर्ववर्णमापद्यतेजातिपरिवृत्तौ। अधर्मचर्यया पूर्वो वर्णो जधन्यं जधन्यं वर्णमापद्यते जाति परिवृत्तौ।। अर्थात् धर्माचरण से निकृष्ट वर्ण अपने से उत्तम वर्ण को प्राप्त होता है और वह उसी वर्ण में गिना जाता है - जिस-जिस के वह योग्य होता है । वैसे ही अधर्म आचरण से पूर्व अर्थात् उत्तम वर्ण वाला मनुष्य अपने से नीचे-नीचे वाले वर्ण को प्राप्त होता है और उसी वर्ण में गिना जाता है। मनु’ने ‘मनुस्मृति’ में बताया है – “शूद्रो बा्रह्मणतामेति ब्राह्मणश्चेति शूद्रताम्। क्षत्रियाज्जात्मेवन्तु विद्याद् वैश्यात्तथैव च।। अर्थात् शूद्र कुल में उत्पन्न होकर ब्राह्मण, क्षत्रिय के समान गुण, कर्म स्वभाव वाला हो, तो वह शूद्र, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य हो जाता है। वैसे ही जो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य कुल में उत्पन्न हुआ हो, उसके गुण व कर्म शूद्र के समान हो, तो वह शूद्र हो जाता है, वैसे ही क्षत्रिय या वैश्य कुल में उत्पन्न होकर ब्राह्मण व शूद्र के समान होने पर, ब्राह्मण व शूद्र हो जाता है। ऋग्वेद में भी वर्ण विभाजन का आधार कर्म ही है। निःसन्देह गुणों और कर्मो का प्रभाव इतना प्रबल होता है कि वह सहज ही वर्ण परिवर्तन कर देता है; यथा विश्वामित्र जन्मना क्षत्रिय थे, लेकिन उनके कर्मो और गुणों ने उन्हें ब्राह्मण की पदवी दी। राजा युधिष्ठिर ने नहुष से ब्राह्मण के गुण - यथा, दान, क्षमा, दया, शील चरित्र आदि बताए। उनके अनुसार यदि कोई शूद्र वर्ण का व्यक्ति इन उत्कृष्ट गुणों से युक्त हो तो वह ब्राह्मण माना जाएगा। वर्ण परिवर्तन के कुछ उदाहरण - (a) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे | परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की | ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है | (b) ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे | जुआरी और हीन चरित्र भी थे | परन्तु बाद में उन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये |ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया | (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९) (c) सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए | (d) राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र हो गए थे, प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.१.१४) अगर उत्तर रामायण की मिथ्या कथा के अनुसार शूद्रों के लिए तपस्या करना मना होता तो पृषध ये कैसे कर पाए? (e) राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए | पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया | (विष्णु पुराण ४.१.१३) (f) धृष्ट नाभाग के पुत्र थे परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया | (विष्णु पुराण ४.२.२) (g) आगे उन्हींके वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुए | (विष्णु पुराण ४.२.२) (h) भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुए | (i) विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने | (j) हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मण हुए | (विष्णु पुराण ४.३.५) (k) क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.८.१) वायु, विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए| इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्य के उदाहरण हैं | (l) मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने | (m) ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपने कर्मों से राक्षस बना | (n) राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ | (o) त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे | (p) विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्र वर्ण अपनाया | विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया | (q) विदुर दासी पुत्र थे | तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया | (r) वत्स शूद्र कुल में उत्पन्न होकर भी ऋषि बने (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९) | (s) मनुस्मृति के प्रक्षिप्त श्लोकों से भी पता चलता है कि कुछ क्षत्रिय जातियां, शूद्र बन गईं | वर्ण परिवर्तन की साक्षी देने वाले यह श्लोक मनुस्मृति में बहुत बाद के काल में मिलाए गए हैं | इन परिवर्तित जातियों के नाम हैं – पौण्ड्रक, औड्र, द्रविड, कम्बोज, यवन, शक, पारद, पल्हव, चीन, किरात, दरद, खश | (t) महाभारत अनुसन्धान पर्व (३५.१७-१८) इसी सूची में कई अन्य नामों को भी शामिल करता है – मेकल, लाट, कान्वशिरा, शौण्डिक, दार्व, चौर, शबर, बर्बर| (u) आज भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और दलितों में समान गोत्र मिलते हैं | इस से पता चलता है कि यह सब एक ही पूर्वज, एक ही कुल की संतान हैं | लेकिन कालांतर में वर्ण व्यवस्था गड़बड़ा गई और यह लोग अनेक जातियों में बंट गए | उच्च वर्ण में विजातीय संतान उत्पन्न होने की बात गले नहीं उतर रही है परन्तु यही सत्य है और शास्त्रोक्त भी ..इसी से भारत में वर्ण व्यवस्था और मजबूत होगी और ऊँच नीच का भेदभाव भी समाप्त होगा ! हिन्दू एकता बढेगी !सौ सुनार की तो एक लुहार की ..इस लेख से भारतवर्ष में चली आ रही लाखो साल पुरानी ऊँचनीच जातिवाद आदि की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो जायेगी ! नरेश आर्य ओउम् ..! पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ टिप्पणी करें साझा करें 278 490 साझाकरण पिछली टिप्पणियाँ देखें… आशुतोष राय मनुस्मृति से ऐसे सैंकड़ों श्लोक दिए जा सकते हैं, जिन्हें जन्मना जातिवाद और लिंग-भेद के समर्थन में पेश किया जाता है | क्या आप बतायेंगे कि इन सब को कैसे प्रक्षिप्त माना जाए ? अग्निवीर: यही तो सोचने वाली बात है कि मनुस्मृति में जन्मना जातिवाद के विरोधी और समर्थक दोनों तरह के श्लोक कैसे हैं ? इस का मतलब मनुस्मृति का गहरे से अध्ययन और परीक्षण किए जाने की आवश्यता है | जो हम अगले लेख में करेंगे, अभी संक्षेप में देखते हैं – आज मिलने वाली मनुस्मृति में बड़ी मात्रा में मनमाने प्रक्षेप पाए जाते हैं, जो बहुत बाद के काल में मिलाए गए | वर्तमान मनुस्मृति लगभग आधी नकली है| सिर्फ़ मनुस्मृति ही प्रक्षिप्त नहीं है | वेदों को छोड़ कर जो अपनी अद्भुत स्वर और पाठ रक्षण पद्धतियों के कारण आज भी अपने मूल स्वरुप में है, लगभग अन्य सभी सम्प्रदायों के ग्रंथों में स्वाभाविकता से परिवर्तन, मिलावट या हटावट की जा सकती है | जिनमें रामायण, महाभारत, बाइबल, कुरान इत्यादि भी शामिल हैं | भविष्य पुराण में तो मिलावट का सिलसिला छपाई के आने तक चलता रहा | आज रामायण के तीन संस्करण मिलते हैं – १. दाक्षिणात्य २. पश्चिमोत्तरीय ३. गौडीय और यह तीनों ही भिन्न हैं | गीता प्रेस, गोरखपुर ने भी रामायण के कई सर्ग प्रक्षिप्त नाम से चिन्हित किए हैं | कई विद्वान बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड के अधिकांश भाग को प्रक्षिप्त मानते हैं | महाभारत भी अत्यधिक प्रक्षिप्त हो चुका ग्रंथ है | गरुड़ पुराण ( ब्रह्मकांड १.५४ ) में कहा गया है कि कलियुग के इस समय में धूर्त स्वयं को ब्राह्मण बताकर महाभारत में से कुछ श्लोकों को निकाल रहे हैं और नए श्लोक बना कर डाल रहे हैं | महाभारत का शांतिपर्व (२६५.९,४) स्वयं कह रहा है कि वैदिक ग्रंथ स्पष्ट रूप से शराब, मछली, मांस का निषेध करते हैं | इन सब को धूर्तों ने प्रचलित कर दिया है, जिन्होंने कपट से ऐसे श्लोक बनाकर शास्त्रों में मिला दिए हैं | मूल बाइबल जिसे कभी किसी ने देखा हो वह आज अस्तित्व में ही नहीं है | हमने उसके अनुवाद के अनुवाद के अनुवाद ही देखे हैं | कुरान भी मुहम्मद के उपदेशों की परिवर्तित आवृत्ति ही है, ऐसा कहा जाता है | देखें –http://satyagni.com/3118/miracle-islam/ 5 1 वर्षपसंद करेंअधिक Prashant Singh सबका का जड़ है वर्ण बेवस्था ये बनाया गया है । भरतीय लोगो के द्वरा 1 वर्षपसंद करेंअधिक Avnish Krishna Ap sabse nivedan karta hu Ap Sab apvadon ka tyag kr insan ban kr hi dikhayen or sudhh sanskar dharan Karen akhady padartho ka Sevan na Karen Apne karyo ko prabhu ka name lete lete poornta se karte rahen adhik jativad me na padkar hindutv ki Raksha Karen 1 वर्षपसंद करेंअधिक Avnish Krishna Or Ek nivedan karta hu g Yadi Koi jati he hi nahi to aarakshan Kyu mangte he vo log Kya jaroorat he svayam pr vishwas rakho sudhh kamao sudhh Khao sudhh vichar rakho bs 2 1 वर्षपसंद करेंअधिक Pradeep Dubey बहुत ज्ञान को प्राप्त किया , धन्य है भारतभूमि जहाँ इतने योग्य रत्न आज भी है। 1 1 वर्षपसंद करेंअधिक Om Prakas Rao Agar karmo se hi jaatiyon ka nirdharan hota hai to sabhi safai karmiyon ko apni jati bhangi likhna chahiye na ki.... 1 1 वर्षपसंद करेंअधिक Pramod Samrat Naresh Bhai main to apka fan ho gaya 1 12 महीनेपसंद करेंअधिक Ramakant Ranjan वर्ण व्यवस्था का जन्म ही गहरी साजिश से हुआ है ।वास्तव मे इस व्यवस्था का निर्माण मुफ्त मे खाने को मिले इस थीम पर हुआ है ।गुण-अवगुण तो बाद मे इसमे डाले गए ।जैसे देवी-देवता, स्वर्ग-नर्क, शुभ-अशुभ, रीति-रिवाज, और धर्म आदि की रचना करने का केवल और केवल उद्देश्य मुफ्त मे बिना मेहनत किये खाने को मिले रहा है ।पुण्य पाप तो इसमे बाद मे जोडा गया लोगो को गुमराह करने के लिए ।यह कोई दैवीय व्यवस्था नही थी सिर्फ स्वार्थी मनुष्यों द्वारा की गई है ।इसलिए भाइयो इस झूठी व काल्पनिक व्यवस्था के गुण-अवगुण पर चर्चा करना ही मै बेफिजूल मानता हूं ।देश व मानव कल्याण हेतु आवश्यक है कि ऐसी व्यवस्था को छोड़कर जो संवैधानिक व्यवस्था है उसका पालन किया जाए और उसका प्रचार प्रसार किया जाए।जय भीम जय भारत ।। 8 11 महीनेपसंद करेंअधिक Dharmendra Kumar 7800203531 मयंक 1 11 महीनेपसंद करेंअधिक Dharmendra Kumar मेरे चीकू 3 11 महीनेपसंद करेंअधिक Ashish Kumar Pyasi समधिकारसेवा संयुक्तहितविकास आदर्शचरित्रजनसंघएकता,जन जागरूकता अभियान, देश हित में सेवा, समाज में सर्वहितकल्याण ओर मानव धर्म, पुरुषार्थ, दैवीय गुणों नैतिक मूल्यों आदर्शचरित्र आध्यात्मिक शिक्षा सत्यसंगवृत्ति। आशीष कुमार प्यासी मो-🇮🇳-+091-8319220533/9669938129 2 11 महीनेपसंद करेंअधिक Atul Rajpal तो फिर कर्ण सुत पुत्र क्यों कहलाये गए। 4 10 महीनेपसंद करेंअधिक Pawan Kumar स्वामी विवेका नन्द भी तो उच्च ज्ञानी थे उन्हें क्यों शुद्र कहा गया ब्राह्मणों द्वारा 6 10 महीनेपसंद करेंअधिक Shekhar Shinde शुद्र अपने आचार विचार और संस्कृति संस्कार से होते है शुद्र अपनी भाषा बोली से ही पहचाये जाते है यही 100 आने सच है विद्रोह वोही करता है जो उंगली करता है और जो उंगली करता वेद पुराण शास्र को गलत तरह से जोड़ मोड़ के पेश करता है या उनका इतिहास अरोड़ मरोड़ से पेश करता है उनका नाश होना करीब न तय हो जाता है भारत वर्ष में अभी भी कुछ गलत डीएनए पाए जाते है जिनकी रगों में गलत खून का अंश पाया जाता है सभु देख रहे है उनकी रणनीति अश 10 महीनेपसंद करेंअधिक Chandra Mohan Meena मेरे लिए कोई धर्म नही है में एक ही धर्म को मानता हूँ और वह है मान धर्म 2 10 महीनेपसंद करेंअधिक Hakim Singh विज्ञान के युग में जियो बस। आस्था है तो ईश्वर का नाम लो बस।। 1 9 महीनेपसंद करेंअधिक Hakim Singh बड़ा छोटा कुछ भी नहीं है। सब मिथ्या है।। 2 9 महीनेपसंद करेंअधिक Saurabh Mishra Kishan kaha hai is vyawastha mai 1 8 महीनेपसंद करेंअधिक विष्णु शर्मा नरेश जी क्या आपके इस लेख को पीडीऍफ़ के रूप में बदल सकता हूँ मैं 2 7 महीनेपसंद करेंअधिक नरेश आर्य जी बिलकुल pdf बना कर अधिक से अधिक प्रचार प्रसार कीजिये ओउम् । 2 7 महीनेपसंद करेंअधिक T Arun A Vinay Dashore 1 7 महीनेपसंद करेंअधिक Mridul Gaurav Lodhi आज का सच ब्राह्मण=बुरामन👹 सवर्ण =सुअरड़🐗 4 7 महीनेपसंद करेंअधिक Ankit Rajak बहुत सुंदर, दुर्लभ जानकारी , इस जानकारी से मेरे मन से बहुत सारे भ्रम दूर हो गये हैं आपको बहुत बहुत धन्यवाद और प्रणाम. 3 5 महीनेपसंद करेंअधिक Thakur Adarsh Pratap Singh Chaloye maan lete hai sir par dyanand ji ne jo karma kiye unhone bhi eshi koi baat nhi btayi ese kayi udaharan hai jo batlate hai varna hi jati h jaise eklavya nishad th uska angutha kawa diya gya karn jo kshtriye the sada sood putra kahe gye rajput hote huye bhi ravidas ji janm se sudra the or ant tak unhe brahman shereni nhi mili valmiki ji ko bhi nhi mili ese kayi udaharan hai vedo me hi likha hai sabse sudra the is dhara par fir braman aaye gyan ekatrit karne taki devtao ko or adhik shaktisaali bna sake pr rakshaso ne brahmno pr atyachar kiye fir devtao ne apni santane kshatriye roop me brahmn ki raksha k liye bheje fir dhire dhire samaj toote ne vayavsay ho sake isiliye veshya bhi aaye ye hai asli apki jankari achi thi pr asli nhi 1 5 महीनेपसंद करेंअधिक Suresh Mamta Naugraiya सर नमस्कार मे एक पुस्तक सर्व वैश्य समाज पर लिख रही हूं आपसे इस विषय पर आपसे बात करना चाहती हूँ मेरा फोन नं.9837292148 है आप मिस काल कर दीजिए 1 5 महीनेपसंद करेंअधिक Suresh Mamta Naugraiya धन्यवाद 1 5 महीनेपसंद करेंअधिक Umesh Sharma मनुस्मृति में मिलावट की गई है कुछ मुगल शासको द्वारा करवायी गई और करने वाले अपने ही देश के धूर्त थे 1 3 महीनेपसंद करेंअधिक Bhagwant Dayal Badonia सत्य 2 महीनेपसंद करेंअधिक Bhagwant Dayal Badonia जो अपनी निजता,विशुद्ध ब्रह्म रुपी आत्मा को न जानकर आजीवन मात्र अपने आपको जाति, वर्ण, ब्राह्मण या वेश्यादि घोषित करने में ही लगा रहता है वह अभागा छोटे बड़े की समस्या में ही जीवन नष्ट कर दिया करता है। सत्य मात्र यही है कि अपने आपको परम ब्रह्म से एकाकार मानों और अपने में पूर्ण की सत्यता को स्वीकार करो क्योंकि पूर्ण से उत्पन्न सदा ही पूर्ण होता है, जिसके कर्म निकृष्टता से युक्त हैं और जो अपने को ब्राह्मण (ब्रह्म से युक्त) मानता जानता है उसे भी सम्मान पूर्वक देखें क्योंकि वह गलत नहीं और आप स्वयं तो तद्रूपता से युक्त अद्वैत वादी हो ही फिर झगड़ा किस बात का। कृति -अक्षय आनन्द एक अद्वितीय कृति जिला गुना मध्य प्रदेश लेखक :अंशभूत शिव 7987294981

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