रविवार, 10 फ़रवरी 2019

भारत की बोलियाँ

आपस में सम्बंधित भाषाओं को भाषा-परिवार कहते हैं। कौन भाषाएँ किस परिवार में आती हैं, इनके लिये वैज्ञानिक आधार हैं।

इस समय संसार की भाषाओं की तीन अवस्थाएँ हैं। विभिन्न देशों की प्राचीन भाषाएँ जिनका अध्ययन और वर्गीकरण पर्याप्त सामग्री के अभाव में नहीं हो सका है, पहली अवस्था में है। इनका अस्तित्व इनमें उपलब्ध प्राचीन शिलालेखो, सिक्कों और हस्तलिखित पुस्तकों में अभी सुरक्षित है। मेसोपोटेमिया की पुरानी भाषा ‘सुमेरीय’ तथा इटली की प्राचीन भाषा ‘एत्रस्कन’ इसी तरह की भाषाएँ हैं। दूसरी अवस्था में ऐसी आधुनिक भाषाएँ हैं, जिनका सम्यक् शोध के अभाव में अध्ययन और विभाजन प्रचुर सामग्री के होते हुए भी नहीं हो सका है। बास्क, बुशमन, जापानी, कोरियाई, अंडमानी आदि भाषाएँ इसी अवस्था में हैं। तीसरी अवस्था की भाषाओं में पर्याप्त सामग्री है और उनका अध्ययन एवं वर्गीकरण हो चुका है। ग्रीक, अरबी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि अनेक विकसित एवं समृद्ध भाषाएँ इसके अन्तर्गत हैं।

वर्गीकरण के आधार संपादित करें

भाषा का सम्बन्ध व्यक्ति, समाज और देश से होता है। इसलिए प्रत्येक भाषा की निजी विशेषता होती है। इनके आधार पर वह एक ओर कुछ भाषाओं से समानता स्थापित करती है और दूसरी ओर बहुत-सी भाषाओं से असमानता। मुख्यतः यह वैशिष्टयगत साम्य-वैषम्य दो प्रकार का होता है–आकृतिमूलक और अर्थतत्त्व सम्बन्धी। प्रथम के अन्तर्गत शब्दों की आकृति अर्थात् शब्दों और वाक्यों की रचनाशैली की समानता देखी जाती है। दूसरे में अर्थतत्त्व की समानता रहती है। इनके अनुसार भाषाओं के वर्गीकरण की दो पद्धतियाँ होती हैं–आकृतिमूलक और पारिवारिक या ऐतिहासिक। इस विवेचन का सम्बन्ध ऐतिहासिक वर्गीकरण से है इसलिए उसके आधारों को थोड़ा विस्तार से जान लेना चाहिए। इसमें आकृतिमूलक समानता के अतिरिक्त निम्निलिखित समानताएँ भी होनी चाहिए।

भौगोलिक समीपता संपादित करें
भौगोलिक दृष्टि से प्रायः समीपस्थ भाषाओं में समानता और दूरस्थ भाषाओं में असमानता पायी जाती है। इस आधार पर संसार की भाषाएँ अफ्रीका, यूरेशिया, प्रशांतमहासागर और अमरीका के खड़ों में विभाजित की गयी हैं। किन्तु यह आधार बहुत अधिक वैज्ञानिक नहीं है। क्योंकि दो समीपस्थ भाषाएँ एक-दूसरे से भिन्न हो सकती हैं और दो दूरस्थ भाषाएँ परस्पर समान। भारत की हिन्दी और मलयालम दो भिन्न परिवार की भाषाएँ हैं किन्तु भारत और इंग्लैंड जैसे दूरस्थ देशों की संस्कृत और अंग्रेजी एक ही परिवार की भाषाएँ हैं।

शब्दानुरूपता संपादित करें
समान शब्दों का प्रचलन जिन भाषाओं में रहता है उन्हें एक कुल के अन्तर्गत रखा जाता है। यह समानता भाषा-भाषियों की समीपता पर आधारित है और दो तरह से सम्भव होती है। एक ही समाज, जाति अथवा परिवार के व्यक्तियों द्वारा शब्दों के समान रूप से व्यवहृत होते रहने से समानता आ जाती है। इसके अतिरिक्त जब भिन्न देश अथवा जाति के लोग सभ्यता और साधनों के विकसित हो जाने पर राजनीतिक अथवा व्यावसायिक हेतु से एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तो शब्दों के आदान-प्रदान द्वारा उनमें समानता स्थापित हो जाती है। पारिवारिक वर्गीकरण के लिए प्रथम प्रकार की अनुरूपता ही काम की होती है। क्योंकि ऐसे शब्द भाषा के मूल शब्द होते हैं। इनमें भी नित्यप्रति के कौटुम्बिक जीवन में प्रयुक्त होनेवाले संज्ञा, सर्वनाम आदि शब्द ही अधिक उपयोगी होते हैं। इस आधार में सबसे बड़ी कठिनाई यह होती है कि अन्य भाषाओं से आये हुए शब्द भाषा के विकसित होते रहने से मूल शब्दों में ऐसे घुलमिल जाते हैं कि उनको पहचान कर अलग करना कठिन हो जाता है।

इस कठिनाई का समाधान एक सीमा तक अर्थगत समानता है। क्योंकि एक परिवार की भाषाओं के अनेक शब्द अर्थ की दृष्टि से समान होते हैं और ऐसे शब्द उन्हें एक परिवार से सम्बन्धित करते हैं। इसलिए अर्थपरक समानता भी एक महत्त्वपूर्ण आधार है।

ध्वनिसाम्य संपादित करें
प्रत्येक भाषा का अपना ध्वनि-सिद्धान्त और उच्चारण-नियम होता है। यही कारण है कि वह अन्य भाषाओं की ध्वनियों से जल्दी प्रभावित नहीं होती हैं और जहाँ तक हो सकता है उन्हें ध्वनिनियम के अनुसार अपनी निकटस्थ ध्वनियों से बदल लेती है। जैसे फारसी की क, ख, फ़ आदि ध्वनियाँ हिन्दी में निकटवर्ती क, ख, फ आदि में परिवर्तित होती है। अतः ध्वनिसाम्य का आधार शब्दावली-समता से अधिक विश्वसनीय है। वैसे कभी-कभी एक भाषा के ध्वनिसमूह में दूसरी भाषा की ध्वनियाँ भी मिलकर विकसित हो जाती हैं और तुलनात्मक निष्कर्षों को भ्रामक कर देती हैं। आर्य भाषाओं में वैदिक काल से पहले मूर्धन्य ध्वनियाँ नहीं थी, किन्तु द्रविड़ भाषा के प्रभाव से आगे चलकर विकसित हो गयीं।

व्याकरणगत समानता संपादित करें
व्याकरणिक आधार सबसे अधिक प्रामाणिक होता है। क्योंकि भाषा का अनुशासन करने के कारण यह जल्दी बदलता नहीं है। व्




भारत की बोलियाँ भारत में ‘भारतीय जनगणना 1961’ (संकेत चिह्न = जन0) के अनुसार 1652 मातृभाषाएँ (बोलियाँ) चार भाषा परिवारों में वर्गीकृत की गई हैं। नीचे बोलियों के विवरण में आधार डॉ॰ ग्रियर्सन का ‘भारत भाषा सर्वेक्षण’ (संकेत चिह्न = ग्रि0) है, किंतु नीवनतम शोध अध्ययन सर्वोपरि माने गए हैं। तुलना के लिये जन0 का उल्लेख किया गया है। बोलियों के मिलनस्थलों पर मतभेद असंभव नहीं है। कोष्ठकों में बोलियों के स्थान वर्णित है। भारोपीय भाषा परिवार संपादित करें संसार के भाषापरिवारों में कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण भारोपीय भाषापरिवार की दरद शाखा के दरद वर्ग की शिना भाषा की बोली गिलगिती (गिलगित) और कश्मीरी भाषा की किश्टवारी (किश्टवार क्षेत्र), पोंगुली (जम्मू), भुजवाली (दोड़ा जिला), सिराजी (जम्मू कश्मीर) विशेषत: उल्लेख्य हैं। यद्यपि मूल लहँगा तथा सिंधी क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया है, फिर भी विस्थापितों के रूप में लहँदा की 14 बोलियों में मुल्तानी तथा पुच्छी (जम्मू) एवं सिंधी की सात बोलियों में कच्छी (कच्छ) प्रमुखत: पाई गई। जन0 में मराठी की 65 बोलियाँ हैं। दक्षिण महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, में (उत्तर) बोली जानेवाली कोंकणी वस्तुत: स्वतंत्र भाषा है, मराठी की बोली, जैसा गियर्सन ने कहा था, नहीं है। कोंकणी की 16 बोलियों में चेट्टि भाषा कोंकणी (केरल) गोअनीज (गोआ) एवं कुदबी प्रमुख है। मराठी के अंतर्गत हलबी (बस्तर), कमारी (रायपुर), कटिया (छिंदवाड़ा, बेतुल) कटकारी (कोलाबा) कोष्ठी मराठी (कोष्ठी जाति द्वारा आंध्र, म0 प्र0 प्रमुखत: नागपुर एवं भंडारा में प्रयुक्त), क्षत्रिय मराठी (केवल मैसूर राज्य), छिंदवाड़ा शिओनी ठाकरी (कोलाबा) बोलियाँ जन0 में उल्लिखित हैं। शेष करहंडी, मिरगानी, भंडारी प्रभृति उल्लेख्य हैं। उड़ीसा की 24 बोलियों में भमी (प्रमुखत: बस्तर), भुइया (सुंदरगढ़, धेनकनाल, केओंझर), रेल्ली (आंध्र) पइड़ी (आंध्र) प्रमुख हैं। कटक की कटकी, आंध्र सीमा पर गंजामी, संभलपुर में संभलपुरी भी उल्लेख हैं। बंगाली के अंतर्गत जन0 में उल्लिखित 15 बोलियों में चकमा (मीजो पहाड़ियाँ, त्रिपुरा, असम,) किसनगॅँजिया (बिहार), राजवंशी (जलपाईगुड़ी) प्रमुख है। ग्रियर्सन ने सरकी, खड़ियाठार, कोच आदि भी गिनाई हैैं। जन0 में असम की कोई बोली नहीं वर्णित है, किंतु ग्रियर्सन ने कछार के हिंदुओं की बिशुनपुरिया का उल्लेख किया था। हिंदी क्षेत्र में बिहारी वर्ग में 35 मातृ बोलिया हैं जिनमें (1) भोजपुरी (पूर्वी फैजाबाद, दक्षिणी पूर्वी मिर्जापुर, वराणसी, पूर्वी जौनपुर, गाजीपुर, बलिया, बस्ती का पूर्वी भाग, गोरखपुर, देवरिया, सारन, शाहाबाद) (2) मैथिली (तिरहुतिया) मिथिला प्रदेश (चंपारन, मुजफ्फरपुर, मुंगेर, भागलपुर, दरभंगा, पूर्णिया, सहरसा, माल्टा, तथा दिनाजपुर) (3) मगही (गया, पटना, तथा संथाल परगना में अंशत:) प्रमुख बोलियाँ हैं। (4) नागपुरी(झारखंड के लातेहार, छात्रा, पालामु, लोहारदागा, गुमला, राचीं, सिमडेगा जिले, छत्तीसगढ़ के जाशपुर, उड़ीसा के सुनदरगड़ जिला) मैथिली की उपबोली सिराजपुरी पूर्णिया में बोली जाती है। पूर्वी हिंदी की अवधी एवं छत्तीसगढ़ी प्रमुख बोलियाँ हैं। अवधी लखीमपुर, सीतापुर, लखनऊ, उन्नाव, फतेहपुर बहराइच, बाराबंकी, रायबरेली, गोंडा, फैजाबाद, सुलतानपुर, प्रतापगढ़ जौनपुर, मिर्जापुर जिलों की बोली है। इसमें बाँदा भी गिना जा सकता है। बधेली रीवा सतना शहडोल के अतिरिक्त ग्रि0 के अनुसार दमोह, जबलपुर, मांडला, बालाघाट तक फैली है अवधी की मरारी पोआली तथा परदेशी महाराष्ट्र भी बोलियाँ हैं। छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़, रायपुर, रायगढ़ दुर्ग बिलासपुर, सरगुजा, बस्तर में (डॉ॰ उदयनारायण के अनुसार) काकेर, कबर्धा चाँदा उत्तर पूर्व में भी बोली जाती है। सरगुजिया सरगुजा में ग्रियर्सन के अनुसार कोरिया उदयपुर में भी, ग्वारो उपबोली असम में, तथा लरिया उड़िसा में बोली जाती है। पश्चिमी हिंदी (१) कौरवी खड़ी बोली (रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, देहरादून-मैदानी भाग, अंबाला, कलसिया, आदि), (2) बांगरू (द0 पंजाब के करनाल, रोहतक, हिसार, पटियाला, का कुछ भाग, नाभा, जींद), (3) ब्रजभाषा (ग्रियर्सन के अनुसार मथुरा, अलीगढ़, आगरा, एटा, बुलंदशहर, मैनपुरी, बदायूँ, बरेली, गुड़गाँव जिला पूर्वी पट्टी, भरतपुर, धौलपुर, करौली, जयपुर पूर्व,) डॉ॰ धीरेंन्द्र वर्मा के अनुसार (4) कन्नौजी बोली ब्रजभाषा के अंतर्गत है, अत: पीलीभीत, शाहजहाँपुर, फर्रुखाबाद, हरदोई, इटावा और कानपुर भी ब्रजभाषा में गिने जा सकते हैं। नवीनतम शोध के अनुसार (5) बुंदेली झाँसी, हमीरपुर, जालौन, छतरपुर, छीकमगढ़ दतिया, भिंड, ग्वालियर, मुरैना, शिवपुरी, गुना, सागर, पन्ना, दमोह, सिवनी, छिंदवाड़ा, नरसिंहपुर, रायसेन, विदिशा, होशंगाबाद, तथा बेतूल जिलों में बोली जाती है। पूरे राजस्थान में राजस्थानी बोली 71 मातृ बोलियों सहित फैली है। जन0 के अनुसार इनमें बागरी राजस्थानी (गंगानगर, सीकर,) बंजारी (महाराष्ट्र मैसूर), धुघारी (जयपुर, सीकर, सवाई माधोपुर, टोंक), लमनी (लंबडी) (आंध्र), गोजरी (जम्मू कश्मीर), हाड़ौती (बूँदी, कोटा, झालावार) खैसरी (बूंदी भीलवारा), मालवा (मालवा में - मंदसौर, उज्जैन, इंदौर, देवास, शाजपुर, रतलाम, चित्तोड़गढ़), माराड़ी (मारवाड़ में गंगानगर, बीकानेर, चूरू, झुंझुनू, सीकर, अजमेर, जैसलमेर, जोधपुर, नागौर, पाली, बाड़मेर, जालोर, सिरोही), मेवाड़ी (मेवाड़ भीलवड़ा, उदयपुर, चितौरगढ़) शेखावटी (झुंझुनू), प्रमुख बोलियाँ हैं। निमाड़ी धार तथा निमाड़ की बोली हैं। ग्रि0 में भीली तथा खानदेशी मिश्रित बोलियाँ भाषा के रूप में पृथक वर्णित हैं। जन0 के अनुसार भीलो की 36 उपबोलियों में बारेल (छोटा उदयपुर स्टेट) (भिलाली भीलो, भीलोड़ो) (बरार, खानदेश, म0 प्र0 एवं महाराष्ट्र का कुछ भाग), गमती गवित (गुजरात), कोकना (कुन्ना) (बड़ौदा, सूरत, नासिक), बागड़ी (मेवाड़ के आसपास), पावरी (ग्रि0 खानदेश) प्रमुख है खान देश की अहीरनी खानदेश में प्रयुक्त है। 86 बोलियों के समूह वाले पहाड़ी वर्ग की पश्चिमी पहाड़ी के अंतर्गत भद्रवाही (जम्मू कश्मीर) सिरमौरी, भरमौर, मंडेआली, चमेआलो, चुरही (पाँचों हिमांचल प्रदेश) जौनसारी (जानसार बाबर), कुलुई (कुल्लु) उपबोलियाँ हैं। पूर्वी पहाड़ी मे नैपाली तथा मध्य पहाड़ी में कुमाउनी (अल्मोड़ा, नैनीताल), गढ़वाली (गढ़वाल, मसूरी) प्रमुख है। वस्तुत: इनमें प्राकृतिक दूरी है। जन0 में गुजराती का 27 बोलियों में धिसादी (आंध्र महाराष्ट्र में लाहारों द्वारा प्रयुक्त) कोल्ची (सूरतक में कोल्वा जाति द्वारा प्रयुक्त), पारसी (महाराष्ट्र सौराष्ट्र (मद्रास), सौराष्ट्री (गुजरात) प्रमुख वर्णित हैं। इसके अतिरिक्त गामड़िया, चरोतरी, काठियावाड़ी भी उल्लेख है। पंजाबी की 29 बोलियों में जन0 के अनुसार बिलासपुरी (कल्हरी) (विलासपुर, मंगल, होशीयारपुर), डोगरी (जम्मू एवं पंजाब के कुछ भाग), कांगरी (कांगड़ा) राठी जालंधरी, फिरोजपुरी, पट्टियानी (बीकानेर, फिरोजपुर) माँझी (अमृतसर के आसपास) प्रमुख बोलियाँ हैं। द्रविड़ भाषा परिवार संपादित करें भारत में संख्या की दृष्टि से दूसरे भाषापरिवार द्रविड़ में जन0 में 161 मातृभाषाएँ गिनाई गई है जिनमें 104 को संविधानगत तमिल, तेलुगु, कन्नड़ मलयालम चार भाषाओं के संदर्भ में विवेचित किया जा सकता है। तमिल की 22 बोलियों में येरुकुल आंध्र में, कैकादी महाराष्ट्र में (ग्रि0 के अनुसार दक्षिण में) कोरवा पहले मद्रास में, पट्टापु भाषा आंध्र में प्रमुख बोलियों के रूप में बोली जाती है। ग्रि0 के अनुसार सालेवारी (चाँदा), बेराडी (बेलग्राम) भी प्रधान बोलियाँ हैं। कन्नड़ की 32 मातृ बोलियों में प्रमुखतम बडगा (नीलगिरि, मैसूर) है। होलिया प्रमुखत- महाराष्ट्र में, गतार कन्नड़ म0 प्र0 में, मोंटाडेंत्यी मद्रास में पाई गई हैं। कोरचा बोली कोरवा की पर्याय नहीं है, जैसा ग्रि0 में वर्णित है, अपित यह मैसूर में बोली जानेवाली, कन्नड़ की प्रमुख बोली है। मलयालम की 14 बोलियों में येरव जाति की येरव बोली मैसूर में, पनिया मद्रास तथा केरल में बोली जाती है। नागरी मलयालम त्रिचूर जिले के संस्कृतज्ञ ब्राह्मणों की मलयालम है। शेष बोलियाँ गौण हैं। तुलू कोर्गी (कोडगू) (कुर्ग), टोडा, कोटा, (मद्रास) चार भाषाओं की भी कई बोलियाँ हैं। कोर्गा तुलू की प्रधान बोली है। ये मद्रास, मैसूर, महाराष्ट्र में बिखरी हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर द्रविड़ समूह की कुरुख (ओराँव) भाषा में वाँगरी नागेसियाँ (अंतिम दोनो बंगाल में) तथा माल्टी भाषा की सौरिया (म0 प्र0) प्रमुख है। नई शोधों के आधार पर कहा जा सकता है कि गोडी, कुई (उड़िसा में कोरापत), खोंड़ (कोंध) (उड़िसा), कोया (आंध्र), पार्जी (म0 प्र0), कोलामी (आंध्र0) कोंडा भाषाएँ सिद्ध हुई है। ग्रि0 में ये बोलियों के रूप में वर्णित हैं। गोंडी की डोटली, भरिया (म0 प्र0 बिहार, उड़िसा की सीमाएँ) कुई की पेंगु (उड़िसा), कोलामी की माने (आध्र में अदीलाबाद) एवं नइकी (ददरा हवेली) बोलियाँ उल्लेख हैं। तिब्बत-चीनी भाषा परिवार संपादित करें तिब्बत-चीनी परिवार की भाषाएँ लद्दाख से लेकर असम से पूर्व तक उत्तुंग हिमानी शिखरों, बीहड़ जंगलो, घाटियों में दूर तक फैली हुई है। जन0 में 226 मातृभाषाएँ (बोलियाँ) गिनाई गई हैं। (1) तिब्बत भोटिया वर्ग में 33 मातृ बोलियाँ हैं जिनमें भोटिया, बाल्ती, भूटानी, लाहुली, स्पीती, कागेती प्रमुख हैं। कई एक का नामकरण स्थानविशेष के आधार पर हुआ है। (2) हिमालय वर्ग की 24 मातृ बोलियों में मलानी प्रमुख बोलीयुत कंसी, कनौरी (5 बोलियाँ) राई टामंग, लोचा प्रमुख भाषा (बोलियाँ) हिमाचल प्रदेश में बोली जाती है। असम शाखा के नेफा वर्ग में 24 मातृभाषाएँ (बोलियाँ) हैं जिनमें आका, हासो, दफ्का (दो बोलियाँ) अबोर (मियोंग प्रमुख बोली सहित कुल 14), मीरी, (प्रमुख बोली मीशियांग) तथा मिश्मी प्रमुख मातृभाषाएँ (बोलियाँ) हैं। असम-बर्मी शाखा के (1) बोदो वर्ग में 40 मातृभाषाएँ (बोलियाँ) हैं, जिनमें बोड़ो सहित चार बोलियाँ कचारी, दिमासा, गारो (अचिक दालू, प्रमुख), त्रिपुरी (जयंतिया प्रमुख बोली) मिकीर, राब्भा (रँगदनियाँ प्रमुख बोली), उल्लेखनीय हैं और जो असम में बिखरी हुई हैं। (2) नाना वर्ग की कुल 47 मातृभाषाओं (बोलियाँ) में कीन्याक (तीन बोलियाँ), आओ (मोक्सेन प्रमुख), अंगामी (चकू प्रमुख), सेमा, टाँगखुल आदि नागालैंड तथा नेफा में बोली जाती हैं। (3) कूकी-चिनवर्ग की 61 मातृभाषाओं (बोलियों) में प्रमुख भाषा मनीपुरी (मेथेई) की विशुनपरिया बोली त्रिपुरा तथा कछार में बोली जाती है। इसके अतिरिक्त वैसें, खोंगजई, हालम कूकी अनिश्चित भाषाएँ (बोलियाँ) असम तथा नागा पहाड़ियों में है। (4) बर्मा वर्ग की अर्कनीज भाषा क मोध प्रमुख बोली त्रिपुरा में बोली जाती है। आस्ट्रिक भाषा परिवार संपादित करें आस्ट्रिक भाषा परिवार की मॉन ख्मेर शाखा में सात तथा मुंडा शाखा में 58, कुल मिलाकर 65 मातृभाषाएँ जन0 में वर्णित हैं। खासी भाषा की जयंतिया तथा प्नार बोलियाँ खासी तथा जयंतिया पहाड़ियों में बोली जाती है। खेरवारी भाषा के अंतर्गत संथाली (बंगाल, बिहार उड़िसा की सीमाएँ), मुंडारी, हो, कुरुख, कोर्कू (कूर्कू) (सतपुड़ा पहाड़, महादेव पहाड़ियाँ), भूमिज (सिंहभूमि, मानभूमि), गदबा (मद्रास की उत्तरी पूर्वी पहाड़ियाँ) बोलियाँ गिनाई गई हैं। वस्तुत: इन्हें भाषाएँ कहना, जैसा जन0 में है, अधिक उपयुक्त होगा, क्योंकि बोधगम्यता के सिद्धांत के आधार पर उनमें अत्यधिक दूरी आ गई है। मुंडा शाखा की शेष बोलियाँ हैं - मकारी (महाराष्ट्र म0 प्र0), कोडा (कोरा) संबंधित मिरधा (पं0 बंगाल), बइरी, लोढ़ाजो खरिया से संबंधित हैं, (प0 बंगाल), निकोबारी (अंडमान निकोबार), तथा कोल भाषाएँ। इन्हें भी देखें संपादित करें

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