सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

यादव जन-जाति काआभीर विशेषण -

यादव जन-जाति काआभीर विशेषण -

गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? सभी यादव बन्धु इस लेख को पूर्ण मनोयोग से पढ़कर कृपया प्रतिक्रिया दें आपका बन्धु यादव योगेश कुमार 'रोहि' ग्राम-आज़ादपुर पत्रालय-पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---उ०प्र० _________________________
गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? सभी यादव बन्धु इस लेख को पूर्ण मनोयोग से पढ़कर कृपया प्रतिक्रिया दें आपका बन्धु यादव योगेश कुमार 'रोहि' ग्राम-आज़ादपुर पत्रालय-पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---उ०प्र० ____________________________________________
महाभारत में वर्णित कथा इस प्रकार है 👇 "जब अर्जुन और दुर्योधन दौनों विपक्षी यौद्धा ; कृष्ण के पास युद्ध में सहायता माँगने के लिए गये तो ; श्री कृष्ण ने प्रस्तावित किया कि आप दौनों मेरे लिए समान रूप में हो ! आपकी युद्धीय स्तर पर सहायता के लिए :- एक ओर तो मेरी गोपों (यादवों )की नारायणी सेना होगी ! जो एक अरब से भी ज्यादा है । और दूसरी और ---मैं स्वयं नि:शस्त्र रहुँगा ! दौनों विकल्पों में जो अच्छा लगे उसका चयन कर लो ! तब स्थूल बुद्धि दुर्योधन ने कृष्ण की नारायणी गोप - सेना को चयन किया ! और अर्जुन ने स्वयं कृष्ण को ! गोप अर्थात् अहीर निर्भीक यदुवंशी यौद्धा तो थे ही इसमें कोई सन्देह नहीं ! इसी लिए दुर्योधन ने उनका ही चुनाव किया ! और समस्त यादव यौद्धा तो अर्जुन से तो पहले से ही क्रुद्ध थे ! क्योंकि... यादवों की वीरता को धता बता कर अर्जुन ने धोखे से बलराम तथा कृष्ण की बहिन सुभद्रा का अपहरण कर लिया था । कहते हैं कि इस अपहरण के लिए कृष्ण की सहमति थी ... परन्तु ये तो यादवों अथवा समस्त गोपों के पौरुष को ललकारना ही था और गोप अथवा यादव इसे यदु वंश का अपमान समझ रहे थे । यही कारण था कि ; गोपों (अहीरों)ने अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर लूट लिया था । क्योंकि नारायणी सेना के ये यौद्धा दुर्योधन के पक्ष में थे । और कृष्ण का देहावसान हो गया था और बलदाऊ भी नहीं रहे थे । फिर तो इन यदुवंशी गोपों ने अर्जुन पर तीव्रता से आक्रमण कर तीर कमानों से उसे परास्त कर दिया । और यदुवंश की सभी स्त्रीयों को अर्जुन के साथ न जाने के लिये कहा ! परन्तु ---जो साथ चलने के लिए सहमत नहीं हुईं उन्हें प्रताडित कर चलने के लिए कहा ! और यादव अथवा अहीर स्वयं ही ईश्वरीय शक्तियों (देवों) के अंश थे तब प्रभास क्षेत्र में अर्जुन इनका मुकाबला कैसे करता ? ____________________________________________ इसी लिए भागवतपुराण पुराण कार ने गोप शब्द के द्वारा तो महाभारत के मूसल पर्व की रचना करने वाले ने आभीर शब्द के द्वारा अर्जुुन और नारायणी सेना के गोपोंं के पारस्परिक युद्ध का आँशिक विवरण दिया । जो दौनों के मध्य में हुए युद्ध भूमि की पृष्ठ-भूमि का वर्णन न करके वस्तुत प्रक्षिप्त ही श्लोक हैं ।👇 __________________________________________ महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह प्रक्षिप्त (नकली)श्लोक उद्धृत करते हैं । ________________________________________ ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७। अर्थात् वे पापकर्म करने वाले तथा लोभ से पतित चित्त वाले ! अशुभ -दर्शन अहीरों ने एकत्रित होकर वृष्णि वंशी यादवों को लूटने की सलाह की ।४७। अब इसी बात को बारहवीं शताब्दी में रचित ग्रन्थ श्री-मद्भगवद् पुराण के प्रथम अध्याय में आभीर शब्द के स्थान पर गोप शब्द सम्बोधन द्वारा कहा गया है । इसे देखें-- "सो८हं नृपेन्द्र रहित: पुरुषोत्तमेन । सख्या प्रियेण सुहृदा हृदयेन शून्य: ।। अध्वन्युरूक्रम परिग्रहम् अंग रक्षन् । गौपै: सद्भिरबलेव विनिर्जितो८स्मि ।२०। हे राजन् ! जो मेरे सखा अथवा -प्रिय मित्र -नहीं , नहीं मेरे हृदय ही थे ; उन्हीं पुरुषोत्तम कृष्ण से मैं रहित हो गया हूँ। कृष्ण की पत्नीयाें को द्वारिका से अपने साथ इन्द्र-प्रस्थ लेकर आर रहा था । परन्तु मार्ग में दुष्ट गोपों ने मुझे एक अबला के समान हरा दिया । और मैं अर्जुन उनकी गोपिकाओं तथा वृष्णि वंशीयों की पत्नीयाें की रक्षा नहीं कर सका! ( श्रीमद्भगवद् पुराण अध्याय एक श्लोक संख्या २०(पृष्ट संख्या --१०६ गीता प्रेस गोरखपुर देखें--- महाभारत के मूसल पर्व में गोप के स्थान पर आभीर शब्द का प्रयोग सिद्ध करता है कि गोप ही आभीर है। ____________________________________________ क्योंकि अहीरों का मुकाबला तो त्रेता युग में राम भी नहीं कर पाये थे। यद्यपि अवान्तर काल में बहुत सी काल्पनिक घटनाओं का समायोजन ही है ---जो अहीरों को हेय सिद्ध करने के लिए जोड़ी यादव किसी के साथ विश्वास घात कभी नहीं करते थे । क्यों कि यह क्षात्र-धर्म के विरुद्ध भी था । गर्ग संहिता अश्व मेध खण्ड अध्याय 60,41,में यदुवंशी गोपों ( अहीरों) की कथा सुनने और गायन करने से मनुष्यों के सब पाप नष्ट हो जाते हैं ; एेसा वर्णन है । महाभारत के मूसल पर्व में आभीर शब्द के द्वारा अर्जुन को परास्त कर लूट लेने की घटना वर्णित की गयी है । निश्चित रूप से वह मूल भाव से मेल नहीं खाती है । क्योंकि यहाँ अर्जुन और यादवों (गोपों) के युद्ध की पृष्ठ-भूमि का वर्णन नहीं है ;और अहीरों को अशुभ-दर्शी तथा पापकर्म करनेवाला, लोभी के रूप में वर्णन करना महाभारत कार की अहीरों के प्रति विकृतिपूर्ण अभिव्यक्ति मात्र है । इतना ही नहीं भागवतपुराण पुराण कार ने भी आभीर के स्थान पर गोप शब्द के प्रयोग द्वारा गोपों को दुष्ट विशेषण से अभिव्यक्ति किया है । जैसा कि हमने अभी उपर्युक्त दर्शाया अहीरों अथवा गोपों ने अर्जुन सहित कृष्ण की 16000 गोपिकाओं के रूप में पत्नियों को लूटा था । एेसा वर्णन है निश्चित रूप से गोपों द्वारा अर्जुन को परास्त करने की घटना तो रही होगी परन्तु स्त्रीयाँ लूटने और धन लूटने की घटना काल्पनिक व मनगढ़न्त ही हैं । कुछ मूर्ख रूढ़ि वादी ब्राह्मणों ने यादवों के प्रति द्वेष स्वरूप गलत रूप में प्रस्तुत करने के लिए ही बहुत सी काल्पनिक घटनाओं का समायोजन कर दिया है। क्योंकि अर्जुन और यादवों (गोपों)के मध्य पूर्व युद्ध की पृष्ठ-भूमि को वर्णित ही नहीं किया है । यादवों की किसी कन्या का अपहरण उस समय उनकी प्रतिष्ठा का विषय था । अब गोपों ने भी एक स्त्री के अप हरण में अर्जुन के साथ चलने वाली हजारों स्त्रीयों का अपहरण किया ! और वे स्त्रीयाँ वृष्णि वंशी गोपों की पत्नी रूप में गोपिकाऐं ही थीं । तब भी आश्चर्य क्या ? परन्तु इनकी घटनाओं के विस्तार में कल्पना मात्र है । ________________________________________ और इसी लिए कुछ मूर्खों को अहीरों के विषय में यह कहने का अवसर मिल जाता है कि " अहीरों ने गोपिकाओं सहित प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर लूट लिया था । परन्तु जिसे द्वेष वश कुछ अर्जुन और नाराणी सेना के गोपों की यौद्धिक घटनाओं को जो दुर्योधन की पक्ष लेने वाली थी । रूढ़ि वादीयों ने गलत रूप में प्रस्तुत किया है । कि जैसे अहीरों ने अर्जुन सहित यदुवंशी गोपिकाओं को लूट लिया था। _________________________ और राज पूत इस बात को अहीरों (गोपों) के यादव न होने के रूप में प्रमाण के तौर पर पेश करते हैं । और मूर्ख स्वयं को यदुवंशी होने की दलील देते हैं। महाभारत के विक्षिप्त (नकली )मूसल पर्व के अष्टम् अध्याय का वही श्लोक यह है और जिसका प्रस्तुती करण ही गलत है । ____________________________________________ महाभारत के मूसल पर्व में गोप के स्थान पर आभीर शब्द का प्रयोग सिद्ध करता है। कि गोप शब्द ही अहीरों का विशेषण है। तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान। भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण।। अर्थ- तुलसी दास जी कहते हैं । कि समय बड़ा बलवान होता है। वो समय ही है जो व्यक्ति को छोटा या बड़ा बनाता है। जैसे एक बार जब महान धनुर्धर अर्जुन का समय खराब हुआ तो वह भीलों के हमले से गोपियों की रक्षा नहीं कर पाए। पता नहीं तुलसी ने भीलों वाला अनुवाद कहाँ से किया । क्योंकि तुलसी ने अहीरों को पापी भी कहा है । पाई न केहिं गति पतित पावन रामभजि सुनु सठ मना। गनिका अजामिल ब्याध गीध गजादि खल तारे घना।। आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूपजे। कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते।। अरे मूर्ख मन! सुन पतितों को भी पान करने वाले राम हि हें जिन्हे भज कर सभी ने परम गति पायी गणिका अजामिल व्याध गीध गज आदि बहुत से दुष्टो को उन्होने तार दिया। आभिर यवन किरात खस चाण्डाल आदि जो अत्यन्त पापरुप ही हैं, वे भी केवल एक बार जिनका नाम लेकर पवित्र हो जाते है, उन श्री राम जी को मैं नमस्कार करता हूँ।। हरिवंश पुराण यादवों का गोप (अहीर) अथवा आभीर रूप में ही वर्णन करता है । यदुवंशीयों का गोप अथवा आभीर विशेषण ही वास्तविक है ; क्योंकि गोपालन ही इनकी शाश्वत वृत्ति (कार्य) वंश परम्परागत रूप से आज तक अवशिष्ट रूप में मिलता है । महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण में नन्द ही नहीं अपितु वसुदेव को गोप ही कहा गया है। और कृष्ण का जन्म भी गोप (आभीर)के घर में बताया है प्रथम दृष्ट्या तो ये देखें-- कि वसुदेव को गोप कहा है। यहाँ हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत किया जाता है । ___________________________________________ "इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेनाहमच्युत । गावां कारणत्वज्ञ:कश्यपे शापमुत्सृजन् ।२१ येनांशेन हृता गाव: कश्यपेन महर्षिणा । स तेन अंशेन जगतीं गत्वा गोपत्वमेष्यति।२२ द्या च सा सुरभिर्नाम अदितिश्च सुरारिण: ते८प्यमे तस्य भार्ये वै तेनैव सह यास्यत:।।२३ ताभ्यां च सह गोपत्वे कश्यपो भुवि संस्यते। स तस्य कश्यस्यांशस्तेजसा कश्यपोपम: ।२४ वसुदेव इति ख्यातो गोषु तिष्ठति भूतले । गिरिगोवर्धनो नाम मथुरायास्त्वदूरत: ।२५। तत्रासौ गौषु निरत: कंसस्य कर दायक:। तस्य भार्याद्वयं जातमदिति सुरभिश्च ते ।२६। देवकी रोहिणी देवी चादितिर्देवकी त्यभृत् ।२७। सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति। _______________________________________ गीता प्रेस गोरखपुर की हरिवंश पुराण 'की कृति में श्लोक संख्या क्रमश: 32,33,34,35,36,37,तथा 38 पर देखें--- अनुवादक पं० श्री राम नारायण दत्त शास्त्री "राम" ब्रह्मा जी का वचन " नामक 55 वाँ अध्याय। उपर्युक्त संस्कृत भाषा का अनुवादित रूप इस प्रकार है :-हे विष्णु ! महात्मा वरुण के ऐसे वचनों को सुनकर तथा इस सन्दर्भ में समस्त ज्ञान प्राप्त करके भगवान ब्रह्मा ने कश्यप को शाप दे दिया और कहा ।२१। कि हे कश्यप अापने अपने जिस तेज से प्रभावित होकर वरुण की उन गायों का अपहरण किया है । उसी पाप के प्रभाव-वश होकर तुम भूमण्डल पर तुम अहीरों (गोपों) का जन्म धारण करें ।२२। तथा दौनों देव माता अदिति और सुरभि तुम्हारी पत्नीयाें के रूप में पृथ्वी पर तुम्हरे साथ जन्म धारण करेंगी।२३। इस पृथ्वी पर अहीरों ( ग्वालों ) का जन्म धारण कर महर्षि कश्यप दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि सहित आनन्द पूर्वक जीवन यापन करते रहेंगे । हे राजन् वही कश्यप वर्तमान समय में वसुदेव गोप के नाम से प्रसिद्ध होकर पृथ्वी पर गायों की सेवा करते हुए जीवन यापन करते हैं। मथुरा के ही समीप गोवर्धन पर्वत है; उसी पर पापी कंस के अधीन होकर वसुदेव गोकुल पर राज्य कर रहे हैं। कश्यप की दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि ही क्रमश: देवकी और रोहिणी के नाम से अवतीर्ण हुई हैं २४-२७।(उद्धृत सन्दर्भ --) यादव योगेश कुमार' रोहि' की शोध श्रृंखलाओं पर आधारित--- पितामह ब्रह्मा की योजना नामक ३२वाँ अध्याय पृष्ठ संख्या २३० अनुवादक -- पं० श्रीराम शर्मा आचार्य " ख्वाजा कुतुब संस्कृति संस्थान वेद नगर बरेली संस्करण) अब कृष्ण को भी गोपों के घर में जन्म लेने वाला बताया है । ____________________________________________ गोप अयनं य: कुरुते जगत: सार्वलौकिकम् । स कथं गां गतो देशे विष्णुर्गोपर्त्वमागत: ।।९। अर्थात्:-जो प्रभु भूतल के सब जीवों की रक्षा करनें में समर्थ है । वे ही प्रभु विष्णु इस भूतल पर आकर गोप (आभीर) क्यों हुए ? अर्थात् अहीरों के घर में जन्म क्यों ग्रहण किया ? ।९। हरिवंश पुराण "वराह ,नृसिंह आदि अवतार नामक १९ वाँ अध्याय पृष्ठ संख्या १४४ (ख्वाजा कुतुब वेद नगर बरेली संस्करण) सम्पादक पण्डित श्री राम शर्मा आचार्य . तथा गीता प्रेस गोरखपुर की हरिवंश पुराण की कृति में वराहोत्पत्ति वर्णन " नामक पाठ चालीसवाँ अध्याय और इतना ही नहीं समस्त ब्राह्मणों की आराध्या ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सत्ता गायत्री भी नरेन्द्र सेन अहीर की कन्या हैं । और उसका वर्णन भी आभीर तथा गोप शब्द के पर्याय वाची रूप में वर्णित किया है । देखें--- निम्न श्लोकों में - और अनेक भारतीय पुराणों में जैसे अग्निपुराण,पद्मपुराण आदि में अहीरों को देवताओं के रूप में अवतरित किया है और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी गायत्री को भी नरेन्द्र सेन अहीर की कन्या के रूप में भी वर्णन किया गया है। वहाँ भी अहीर (आभीर) तथा गोप शब्द परस्पर पर्याय वाची रूप में वर्णित हैं। ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी गायत्री अहीर ( गोप ) की कन्या और ज्ञान के अधिष्ठाता कृष्ण भी अहीर( गोप) वसुदेव के पुत्र देखें प्रमाणों के दायरे में --- पुराणों के आधार पर --- _________________________ पद्म पुराण के सृष्टि खण्ड के अध्याय १६ में गायत्री को नरेन्द्र सेन आभीर (अहीर)की कन्या के रूप में वर्णित किया गया है । _________________________ " स्त्रियो दृष्टास्तु यास्त्व , सर्वास्ता: सपरिग्रहा : | आभीरः कन्या रूपाद्या शुभास्यां चारू लोचना ।७। न देवी न च गन्धर्वीं , नासुरी न च पन्नगी । वन चास्ति तादृशी कन्या , यादृशी सा वराँगना ।८। ________________________ अर्थात् जब इन्द्र ने पृथ्वी पर जाकर देखा तो वे पृथ्वी पर कोई सुन्दर और शुद्ध कन्या न पा सके परन्तु एक नरेन्द्र सेन आभीर की कन्या गायत्री को सर्वांग सुन्दर और शुद्ध देखकर आश्चर्य चकित रह गये ।७। उसके समान सुन्दर कोई देवी न कोई गन्धर्वी न सुर और न असुर की स्त्री ही थी और नाहीं कोई पन्नगी (नाग कन्या ) ही थी। इन्द्र ने तब उस कन्या गायत्री से पूछा कि तुम कौन हो ? और कहाँ से आयी हो ? और किस की पुत्री हो ८। ____________________________________________ गोप कन्यां च तां दृष्टवा , गौरवर्ण महाद्युति:। एवं चिन्ता पराधीन ,यावत् सा गोप कन्यका ।।९ ।। पद्म पुराण सृष्टि खण्ड अध्याय १६ १८२ श्लोक में इन्द्र ने कहा कि तुम बड़ी रूप वती हो , गौरवर्ण वाली महाद्युति से युक्त हो इस प्रकार की गौर वर्ण महातेजस्वी कन्या को देखकर इन्द्र भी चकित रह गया कि यह गोप कन्या इतनी सुन्दर है ! यहाँ विचारणीय तथ्य यह भी है कि पहले आभीर-कन्या शब्द गायत्री के लिए आया है फिर गोप कन्या शब्द । अत: अहीर और गोप शब्द परस्पर पर्याय हैं । जो कि यदुवंश का वृत्ति ( व्यवहार मूलक ) विशेषण है । क्योंकि यादव प्रारम्भिक काल से ही गोपालन वृत्ति ( कार्य) से सम्बद्ध रहे है । आगे के अध्याय १७ के ४८३ में इन्द्र ने कहा कि यह _________________________ गोप कन्या पराधीन चिन्तासे व्याकुल है ।९। देवी चैव महाभागा , गायत्री नामत: प्रभु । गान्धर्वेण विवाहेन ,विकल्प मा कथाश्चिरम्।१०। १८४ श्लोक में विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा कि हे प्रभो इस कन्या का नाम गायत्री है । अब यहाँ भी देखें--- भागवत पुराण :--१०/१/२२ में भी स्पष्टत: गायत्री आभीर अथवा गोपों की कन्या है । और गोपों (अहीरों) को देवीभागवतपुराण तथा महाभारत , हरिवंश पुराण आदि मे देवताओं का अवतार बताया गया है । _________________________ " अंशेन त्वं पृथिव्या वै , प्राप्य जन्म यदो:कुले । भार्याभ्याँश संयुतस्तत्र , गोपालत्वं करिष्यसि ।१४। अर्थात् अपने अंश से तुम पृथ्वी पर गोप बनकर यादव कुल में जन्म ले !और अपनी भार्य वस्तुत आभीर और गोप शब्द परस्पर पर्याय वाची हैं पद्म पुराण में पहले आभीर- कन्या शब्द आया है फिर गोप -कन्या भी गायत्री के लिए .. तथा अग्नि पुराण मे भी आभीरों (गोपों) की कन्या गायत्री को कहा है । _________________________ आभीरा स्तच्च कुर्वन्ति तत् किमेतत्त्वया कृतम् अवश्यं यदि ते कार्यं भार्यया परया मखे ४० एतत्पुनर्महादुःखं यद् आभीरा विगर्दिता वंशे वनचराणां च स्ववोडा बहुभर्तृका ५४ आभीर इति सपत्नीति प्रोक्तवंत्यः हर्षिताः (इति श्रीवह्निपुराणे (अग्नि पुराणे )ना नान्दीमुखोत्पत्तौ ब्रह्मयज्ञ समारंभे प्रथमोदिवसो नाम षोडशोऽध्यायः संपूर्णः) ऋग्वेद भारतीय संस्कृति में ही नहीं अपितु विश्व- संस्कृतियों में प्राचीनत्तम है । अब निश्चित रूप से आभीर और गोप परस्पर पर्याय वाची रूप हैं। यह शास्त्रीय पद्धति से प्रमाणित भी है । और सुनो ! गो-पालन यदु वंश की परम्परागत वृत्ति ( कार्य ) होने से ही भारतीय इतिहास में यादवों को गोप ( गो- पालन करने वाला ) कहा गया है । वैदिक काल में ही यदु को दास सम्बोधन के द्वारा असुर संस्कृति से सम्बद्ध मानकर ब्राह्मणों की अवैध वर्ण-व्यवस्था ने शूद्र श्रेणि में परिगणित किया था । तो यह दोष ब्राह्मणों का ही है । यदु की गोप वृत्ति को प्रमाणित करने के लिए ऋग्वेद की ये ऋचा सम्यक् रूप से प्रमाण है । " उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे । (ऋ०10/62/10) अर्थात् यदु और तुर्वसु नामक दौनों दास गायों से घिरे हुए हैं ; गो-पालन शक्ति के द्वारा सौभाग्य शाली हैं हम उनका वर्णन करते हैं । (ऋ०10/62/10/) विशेष:- व्याकरणीय विश्लेषण - उपर्युक्त ऋचा में दासा शब्द प्रथमा विभक्ति के अन्य पुरुष का द्विवचन रूप है । क्योंकि वैदिक भाषा ( छान्दस् ) में प्राप्त दासा द्विवचन का रूप पाणिनीय द्वारा संस्कारित भाषा लौकिक संस्कृत में दासौ रूप में है । परिविषे:-परित: चारौ तरफ से व्याप्त ( घिरे हुए) स्मद्दिष्टी स्मत् + दिष्टी सौभाग्य शाली अथवा अच्छे समय वाले द्विवचन रूप । गोपर् +ईनसा सन्धि संक्रमण रूप गोपरीणसा :- गो पालन की शक्ति के द्वारा । गोप: ईनसा का सन्धि संक्रमण रूप हुआ गोपरीणसा जिसका अर्थ है शक्ति को द्वारा गायों का पालन करने वाला । अथवा गो परिणसा गायों से घिरा हुआ यदु: तुर्वसु: च :- यदु और तुर्वसु दौनो द्वन्द्व सामासिक रूप मामहे :- मह् धातु का उत्तम पुरुष आत्मने पदीय बहुवचन रूप अर्थात् हम सब वर्णन करते हैं । अब हम इस तथ्य की विस्तृत व्याख्या करते हैं । पुराणों में कहीं गोपों को क्षत्रिय कहा गया है तो स्मृति-ग्रन्थों में उन्हीं गोपो को शूद्र रूप में वर्णित कर दिया है । अब निश्चित रूप से आभीर और गोप परस्पर पर्याय वाची रूप हैं। यह शास्त्रीय पद्धति से प्रमाणित भी है । अब स्मृति-ग्रन्थों में गोपों को शूद्र कह कर वर्णित किया गया है। यह भी देखें--- व्यास -स्मृति )तथा सम्वर्त -स्मृति में एक स्थान पर लिखा है ------------------------------------------------------------- " क्षत्रियात् शूद्र कन्यानाम् समुत्पन्नस्तु य: सुत: । स गोपाल इति ज्ञेयो भोज्यो विप्रैर्न संशय: ----------------------------------------------------------------- अर्थात् क्षत्रिय से शूद्र की कन्या में उत्पन्न होने वाला पुत्र गोपाल अथवा गोप होता है । और विप्रों के द्वारा उनके यहाँ भोजान्न होता है इसमे संशय नहीं .... पाराशर स्मृति में वर्णित है कि.. __________________________________________ वर्द्धकी नापितो गोप: आशाप: कुम्भकारक: । वणिक् किरात: कायस्थ: मालाकार: कुटुम्बिन: एते चान्ये च बहव शूद्र:भिन्न स्व कर्मभि: चर्मकारो भटो भिल्लो रजक: पुष्करो नट: वरटो मेद। चाण्डालदास श्वपचकोलका: ।।११।। एतेsन्त्यजा समाख्याता ये चान्ये च गवार्शना: एषां सम्भाषणाद् स्नानंदर्शनादर्क वीक्षणम् ।।१२।। ----------------------------------------------------------------- वर्द्धकी (बढ़ई) , नाई , गोप , आशाप , कुम्हार ,वणिक् ,किरात , कायस्थ, माली , कुटुम्बिन, ये सब अपने कर्मों से भिन्न बहुत से शूद्र हैं । चमार ,भट, भील ,धोवी, पुष्कर, नट, वरट, मेद , चाण्डाल ,दाश,श्वपच , तथा कोल (कोरिया)ये सब अन्त्यज कहे जाते हैं । और अन्य जो गोभक्षक हैं वे भी अन्त्यज होते हैं । इनके साथ सम्भाषण करने पर स्नान कर सूर्य दर्शन करना चाहिए तब शुद्धि होती है । ____________________________ अभोज्यान्ना:स्युरन्नादो यस्य य: स्यात्स तत्सम: नापितान्वयपित्रार्द्ध सीरणो दास गोपका:।।४९।। शूद्राणामप्योषान्तु भुक्त्वाsन्न नैव दुष्यति । धर्मेणान्योन्य भोज्यान्ना द्विजास्तु विदितान्वया:।५०।। (व्यास-स्मृति) नाई वंश परम्परा व मित्र ,अर्धसीरी ,दास ,तथा गोप ,ये सब शूद्र हैं । तो भी इन शूद्रों के अन्न को खाकर दूषित नहीं होते ।। जिनके वंश का ज्ञान है ;एेसे द्विज धर्म से परस्पर में भोजन के योग्य अन्न वाले होते हैं ।५०। ________________________________________ (व्यास- स्मृति प्रथम अध्याय श्लोक ११-१२) -------------------------------------------------------------- स्मृतियों की रचना काशी में हुई , वर्ण-व्यवस्था का पुन: दृढ़ता से विधान पारित करने के लिए काशी के इन ब्राह्मणों ने रूढ़ि वादी पृथाओं के पुन: संचालन हेतु स्मृति -ग्रन्थों की रचना की जो पुष्यमित्र सुंग की परम्पराओं के अनुगामी थे । देखें--- निम्न श्लोक दृष्टव्य है इस सन्दर्भ में.. _________________________________________ " वाराणस्यां सुखासीनं वेद व्यास तपोनिधिम् । पप्रच्छुमुर्नयोSभ्येत्य धर्मान् वर्णव्यवस्थितान् ।।१।। __________________________________________ अर्थात् वाराणसी में सुख-पूर्वक बैठे हुए तप की खान वेद व्यास से ऋषियों ने वर्ण-व्यवस्था के धर्मों को पूछा । -------------------------------------------------------------- निश्चित रूप इन विरोधाभासी तथ्यों से ब्राह्मणों के विद्वत्व की पोल खुल गयी है । जिन्होंने योजना बद्ध विधि से समाज में ब्राह्मण वर्चस्व स्थापित कर के लिए सारे -ग्रन्थों पर व्यास की मौहर लगाकर अपना ही स्वार्थ सिद्ध किया है । देव संस्कृति के विरोधी दास अथवा असुरों की प्रशंसा असंगत बात है ; अत:मह् धातु का अर्थ प्रशंसायाम् के सन्दर्भों में नहीं है । ऋग्वेद के प्राय: ऋचाओं में यदु और तुर्वसु का वर्णन नकारात्मक रूप में ही हुआ है ! दास शब्द ईरानी भाषाओं में दाहे शब्द के रूप में विकसित है । ---जो एक ईरानी असुर संस्कृति से सम्बद्ध जन-जाति का वाचक है । ---जो वर्तमान में दाहिस्तान Dagestan को आबाद करने वाले हैं । दाहिस्तान Dagestan वर्तमान रूस तथा तुर्कमेनिस्तान की भौगोलिक सीमाओं में है । दास अथवा दाहे जन-जाति सेमेटिक शाखा की असीरियन (असुर) जन जातियों से निकली हुईं हैं । यहूदी और असीरियन दौनों सेमेटिक शाखा से सम्बद्ध हैं हरिवंश पुराण यादवों का गोप (अहीर) अथवा आभीर रूप में ही वर्णन करता है । यदुवंशीयों का गोप अथवा आभीर विशेषण ही वास्तविक है ; क्योंकि गोपालन ही इनकी शाश्वत् वृत्ति (कार्य) वंश परम्परागत रूप से विख्यात है । इतना कुुछ शास्त्रीय प्रमाण होने को बावजूद भी रूढ़ि वादी लोग चिल्ला चिल्ला कर कहते रहते हैं कि अहीरों को बुद्धि 12 बजे आती है इतना ही नहीं अहीरों के सीधेपन को मूर्खता सहन शीलता को कमजोरी समझ कर इनका उपहास उड़ाने वाले भी समाज में चौराहे चौराहे पर खड़े मिल- जाते हैं। नि:सन्देह जिस यदु वंश में गायत्री सदृश्या ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी का जन्म नरेन्द्र सेन अहीर के घर में हुआ हो । और उन्हीं अहीरों के समाज में कृष्ण का जन्म हुआ हो फिर अहीरों को मूर्खों की उपधियाँ क्यों दी गयी ? अहीरों को पृथ्वी पर ईश्वरीय शक्तियाँ का रूप माना गया है । समस्त ब्राह्मणों की साधनाऐं गायत्री के द्वारा सिद्ध होने वाली हैं और वह गायत्री नरेन्द्र सेन अहीर की कन्या है । भागवत पुराण :--१०/१/२२ में स्पष्टत: गायत्री आभीर अथवा गोपों की कन्या है । और गोपों को भागवतपुराण तथा महाभारत हरिवंश पुराण आदि मे देवताओं का अवतार बताया गया है । उपर्युक्त श्लोकों में पहले आभीर शब्द है फिर गोप शब्द एक ही कन्या गायत्री के वर्णन में । " आभीरा स्तच्च कुर्वन्ति तत् किमेतत्त्वया कृतम् अवश्यं यदि ते कार्यं भार्यया परया मखे ४० एतत्पुनर्महादुःखं यद् आभीरा विगर्दिता वंशे वनचराणां च स्ववोडा बहुभर्तृका ५४ आभीर इति सपत्नीति प्रोक्तवंत्यः हर्हर्षिता: श्रीवह्निपुराणे (अग्नि पुराणे )ना नान्दीमुखोत्पत्तौ ब्रह्मयज्ञ समारंभे प्रथमोदिवसो नाम षोडशोऽध्यायः संपूर्णः) ऋग्वेद भारतीय संस्कृति में ही नहीं अपितु विश्व- संस्कृतियों में प्राचीनत्तम है । हरिवंश पुराण यादवों का गोप (अहीर) अथवा आभीर रूप में ही वर्णन करता है । यदुवंशीयों का गोप अथवा आभीर विशेषण ही वास्तविक है । क्योंकि गोपालन ही इनकी शाश्वत् वृत्ति (कार्य) वंश परम्परागत रूप से विख्यात है ।। हरिवंश पुराण में आभीर और गोप शब्द परस्पर पर्याय वाची हैं । हरिवंश पुराण में नन्द ही नहीं अपितु वसुदेव को _________________________________ वसुदेवदेवक्यौ च कश्यपादिती। तौच वरुणस्य गोहरणात् ब्रह्मणः शापेन गोपालत्वमापतुः। यथाह (हरिवंश पुराण :- ५६ अध्याय ) “इत्यम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेनाहमच्युत!। गवां का-रणतत्त्वज्ञः कश्यपे शापमुत्सृजम्। येनांशेन हृता गावःकश्यपेन महात्मना। स तेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्व-मेष्यति। या च सा सुरभिर्नाम अदितिश्च सुरारणी। उभे ते तस्य वै भार्य्ये सह तेनैव (यास्यतः। ताभ्यांसह स गोपत्वे कश्यपो भुवि रंस्यते। तदस्य कश्यपस्यां-शस्तेजसा कश्यपोपमः वसुदेव इति ख्यातो गोषु ति-ष्ठति भूतले। गिरिर्गोवर्द्धनो नाम मथुरायास्त्वदूरतः। तत्रासौ गोष्वभिरतः कंसस्य करदायकः। तस्यभार्य्या-द्वयञ्चैव अदितिः सुरभिस्तथा। देवकी रोहिणी चैववसुदेवस्य धीमतः। तत्रावतर लोकानां भवाय मधुसू-दन!। जयाशीर्वचनैस्त्वेते वर्द्धयन्ति दिवौकसः। आत्मानमात्मना हि त्वमवतार्य्य महीतले। देवकीं रो-हिणीञ्चैव गर्भाभ्यां परितोषय। तत्रत्वं शिशुरेवादौगोपालकृतलक्षणः। वर्द्धयस्व महाबाहो! पुरा त्रैविक्रमेयथा॥ छादयित्वात्मनात्मानं मायया गोपरूपया। गोपकन्यासहस्राणि रमयंश्चर मेदिनीम्। गाश्च ते रक्षिता विष्णो! वनानि परिधावतः। वनमालापरिक्षिप्तंधन्या द्रक्ष्यन्ति ते वपुः। विष्णो! पद्मपलाशाक्ष! गोपाल-वसतिङ्गते। बाले त्वयि महाबाहो। लोको बालत्व-मे कुछ पुराणों ने गोपों (यादवों ) को क्षत्रिय भी स्वीकार किया है । ब्रह्म पुराण में वर्णन है कि " नन्द क्षत्रियो गोपालनाद् गोप : अर्थात् नन्द क्षत्रिय गोपलन करने ही गोप कहलाते हैं । ( इति ब्रह्म पुराण) और भागवतपुराण में भी यही संकेत मिलता है वसुदेव उपश्रुत्वा,भ्रातरं नन्दमागतम् । पूज्य:सुखमाशीन: पृष्टवद् अनामयम् आदृत:।47। भा०10/5/20/22 यहाँ स्मृतियों के विधान के अनुसार अनामयं शब्द से कुशलक्षेम क्षत्रिय जाति से पूछी जाती है । ब्राह्मणं कुशलं पृच्छेत् बाहु जात: अनामयं । वैश्य सुख समारोग्यं , शूद्र सन्तोष नि इव च।63। ब्राह्मण: कुशलं पृच्छेत् क्षात्र बन्धु: अनामयं । वैश्य क्षेमं समागम्यं, शूद्रम् आरोग्यम् इव च।64। संस्कृत ग्रन्थ नन्द वंश प्रदीप में वर्णित है कि नन्द का जन्म यदुवंशी देवमीढ़ के वंश में हुई " नन्दोत्पत्तिरस्ति तस्युत, यदुवंशी नृपवरं देवमीढ़ वंशजात्वात ।65। भागवतपुराण के दशम् स्कन्ध अध्याय 5 में नन्द के विषय में वर्णन है । यदुकुलावतंस्य वरीयान् गोप: पञ्च प्राणतुल्येषु । पञ्चसुतेषु मुख्यमस्य नन्द राज:। 67। प्रसिद्ध पर्जन्य गोप के प्रणों के सामान -प्रिय पाँच पुत्र थे जिसमें नन्द राय मुख्य थे । अब ब्रह्माण्डपुराण के उत्तरखण्ड राधा हृदय अध्याय 6 में वर्णित है कि " जज्ञिरे वृष्णि कुलस्थ, महात्मनो महोजस: नन्दाद्या वेशाद्या: श्री दामाश्च सबालक: ।68। अर्थात् यदुवंश की वृष्णि शाखा में उत्पन्न नन्द आदि गोप तथा श्री दामा गोप आदि बालक सहित थे ब्रह्म वैवर्त पुराण श्री कृष्ण जन्म खण्ड अ०13,38,39,में सर्वेषां गोप पद्मानां गिरिभानुश्च भाष्कर: पत्नी पद्मावते समा तस्य नाम्ना पद्मावती सती ।। तस्या: कन्या यशोदात्वं लब्धो नन्दश्च वल्लभा: ।94। जब गर्गाचार्य नन्द जी के घर गोकुल में राम और श्याम का नामकरण संस्कार करने गए थे ; तब गर्ग ने कहा कि नंद जी और यशोदा तुम दोनों उत्तम कुल में उत्पन्न हुए हो; यशोदा तुम्हारे पिता का नाम गिरिभानु गोप है और माता का नाम पद्मावती सती है तुम नन्द जी को पति रूप पाकर कृतकृत्य हो गईं हो! _________________________ विचार-विश्लेषण -- यादव योगेश कुमार 'रोहि' ग्राम-आज़ादपुर पत्रालय-पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---उ०प्र० सम्पर्क 8077160219.. परन्तु कालान्तरण में स्मृति-ग्रन्थों में गोपों को शूद्र रूप में वर्णित करना यादवों के प्रति द्वेष भाव को ही इंगित करता है । परन्तु स्वयं वही संस्कृत -ग्रन्थों में गोपों को परम यौद्धा अथवा वीर के रूप में वर्णन किया है । गोप शूद्र नहीं अपितु स्वयं में क्षत्रिय ही हैं । जैसा की संस्कृति साहित्य का इतिहास 368 पर वर्णित है _________________________ अस्त्र हस्ताश़्च धन्वान: संग्रामे सर्वसम्मुखे । प्रारम्भे विजिता येन स: गोप क्षत्रिय उच्यते ।। यादव: श्रृणोति चरितं वै गोलोकारोहणं हरे : मुक्ति यदूनां गोपानं सर्व पापै: प्रमुच्यते ।102। _______________________________________ अर्थात् जिसके हाथों में अस्त्र एवम् धनुष वाण है । ---जो युद्ध को प्रारम्भिक काल में ही विजित कर लेते हैं वह गोप क्षत्रिय ही रहे जाते हैं । जो गोप अर्थात् आभीर यादवों के चरित्रों का श्रवण करता है ।वह समग्र पाप -तापों से मुक्त हो जाता है ।।102।

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