रविवार, 3 फ़रवरी 2019

गुर्जर और अहीरों का सम्बन्ध - भाग एक

गुर्जर और अहीरों का सम्बन्ध - भाग एक
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गुर् शत्रुकृतताडनंबधोद्यमादिकंवा उज्जरयतियोदेशः।
कलिङ्गाःसाहसिका इतिवद्देशस्थजनेलक्षणेतिज्ञेयम्
गुज्जराटदेशः।
इतिशब्दरत्नावलि॥

शब्दरत्नी वली के रचयिता ने काल्पनिक रूप से गुर्जर शब्द की व्युत्पत्ति की है :---
'शत्रु का वध करने वाला '
यद्यपि गुर्जर वीर और निर्भीक होते हीे हैं , इसमें कोई सन्देह नहीं ,परन्तु व्युत्पत्ति-आनुमानिक रूप से ही की गयी है ।
संस्कृत भाषा में और भी गुर्जर जन-जाति के उद्धरण ---
प्राप्त हैं ।
परन्तु बहुत बाद के जो गुर्जर शब्द की व्युत्पत्ति पर स्पष्ट प्रकाश - प्रक्षेपण नहीं करते हैं ।
गुर्जर :--( गुर्+जॄ + णिच् + अच्)।गुरितिशत्रुकृतताडनादिकंतज्जीर्य्यत्यत्रइतिअधिकरणे
अप्। गुर्ज्जरःदेशःतस्यप्रियेतिङीष्।यद्वागुर्ज्जरदेशःप्रियोऽस्याइतिअण्ङीप्च।गुर्ज्जरदेशवासिनीअतोगुर्ज्जरीतिकेचित्।)   रागिणीविशेषः।
इतिहलायुधः॥
इयन्तुभैरवरागस्यरागिणीतिबोध्यम्।
यथा  सङ्गीतदर्पणेरागविवेकाध्याये।१६।     “भैरवीगुर्ज्जरीरामकिरीगुणकिरीतथा।वाङ्गालीसैन्धवीचैवभैरवस्यवराङ्गनाः॥”     अस्यागानवेलानिर्णयोयथा  तत्रैव।२०।     “वेलावलीचमल्लारीवल्लारीसोमगुर्ज्जरी।”     इयंहिग्रीष्मऋतौस्वस्वामिनाभैरवरागेणसहगीयते।यथा  तत्रैव।२७।
“भैरवःससहायस्तुऋतौग्रीष्मेप्रगीयते।”     इतिसोमेश्वरमतम्।हनूमन्मतेतु।इयमेवमेघरागस्यस्त्री।यथा  तत्रैव।३७।     “मल्लारीदेशकारीचभूपालीगुर्ज्जरीतथा।टङ्काचपञ्चमीभार्य्यामेघरागस्ययोषितः॥”     इयंपुनारागार्णवमतेपञ्चमरागाश्रयारागिणीत्यवधेयम्।यथा  तत्रैव।४०।     “ललितागुर्ज्जरीदेशीवराडीरामकृत्तथा।मतारागार्णवेरागाःपञ्चैतेपञ्चमाश्रयाः॥)
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चौदहवीं सदी की रचना योग वाशिष्ठ महारामायण में वर्णित है 👇

वैराग्य- प्रकरण 37 वें सर्ग के श्लोक संख्या 19 में
गुर्जरानीकनाशेन गुर्जरीकेशलुञ्चनम् ।
अर्थात् गुर्जर सेना के विनाश होने पर गुर्ज्जरः नारीयों ने अपने केश काट लिए -
तथा इसी सर्ग में  21 वें श्लोक में
आभीरेष्वरय: पातेर्गोगणा हरितेषु इव ।।
अहीरों के उस देश में 'वह शत्रु सेना उसी प्रकार टूट पड़ी जैसे हरी घास पर गायों की समूह

वस्तुत यहाँं गौश्चर :(गुर्ज्जरः) विशेषण आभीर का प्रतिनिधित्व करते हुए समानार्थक रूप से प्रयुक्त है ।
वैसे भी संस्कृत कोश कारों ने गुर्ज्जरः अहीरों की एक शाखा के रूप में वर्णित है ।
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गुर्जर शब्द का यह प्रयोग केवल काव्य-गत है ।
जो राज शेखर से सम्बद्ध है ।
राजशेखर का समय  (विक्रमाब्द 930- 977 तक) है  ये काव्यशास्त्र के पण्डित थे।
वे कान्यकुब्ज के गुर्जरवंशीय नरेश महेंद्रपाल एवं उनके बेटे महिन्द्र पाल के गुरू एवं मंत्री थे।
उनके पूर्वज भी प्रख्यात पण्डित एवं साहित्य मनीषी रहे थे।
काव्यमीमांसा उनकी प्रसिद्ध रचना है।
समूचे संस्कृत साहित्य में कुन्तक और राजशेखर ये दो ऐसे आचार्य हैं जो परंपरागत संस्कृत पंडितों के मानस में उतने महत्त्वपूर्ण नहीं हैं जितने रसवादी या अलंकारवादी अथवा ध्वनिवादी हैं।
राजशेखर लीक से हट कर अपनी बात कहते हैं, और कुन्तक विपरीत धारा में बहने का साहस रखने वाले आचार्य हैं।
राजशेखर महाराष्ट्र देशवासी थे और यायावर वंश  में उत्पन्न हुए थे किन्तु उनका जीवन बंगाल में बीता। इनकी माता का नाम शिलावती तथा पिता का नाम दुहिक या दुर्दुक था , और वे महामंत्री थे।
इनके प्रपितामह अकालजलद का विरद 'महाराष्ट्रचूड़ामणि' था।
राजशेखर की पत्नी चौहान कुल की क्षत्राणी विदुषी महिला थी जिसका नाम अवन्तिसुन्दरी था। महेंद्रपाल के उपाध्याय होने के साथ ये उसके पुत्र महीपाल के भी कृपापात्र बने रहे।
इन दोनों नरेशों के शिलालेख दसवीं शताब्दी के प्रथम चरण (९०० ई. और ९१७ ई.) के प्राप्त होते हैं अत: राजशेखर का समय ८८०-९२० ई० के लगभग मान्य है।
परन्तु इनके समय तक प्राकृत भाषाओं का बोल-बाला था ।
गुर्जर शब्द प्रारम्भिक चरण गौश्चर के रूप में रहा  जो कालान्तरण में गुर्जर रूप हो गया ।
गौश्चर शब्द गोपों का विशेषण था ।
परन्तु यह शब्द ऐैतिहासिक सन्दर्भों में ही रहा है, साहित्य सन्दर्भों में नहीं -
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हिन्दी व्रज भाषाओं के कवियों ने गूजर शब्द अहीरों के लिए किया है । जैसे ---
संज्ञा पुं० [सं० गुर्जर] [स्त्री० गूजरी, गुजरिया] १. अहीरों की एक जाति  ग्वाला ।
२. क्षत्रियों का एक भेद ।संज्ञा स्त्री० [हिं० गूजरी] १. गूजर जाति की स्त्री । ग्वालिन । गोपी ।
२. धोबियों के नृत्य में स्त्री के रूप में नाचनेवाला । उ०—लो छनछन, छनछन, छनछन, छनछन, नाच गुजरिया हरती मन ।—ग्राम्या०, पृ० ३१
संस्कृत भाषा के विद्वान् मदन- मोहन झा ने अपने हिन्दी कोश में ये उद्धृत किया है।
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मीरा वाई ने गोपिकाओं के लिए अहीरिणी शब्द का प्रयोग अपने पदों में किया है ---
जो ठेठ राजस्थानी रूप है । देखें--👇
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अच्छे मीठे चाख चाख, बेर लाई भीलणी।।
ऐसी कहा अचारवते, रूप नहीं एक रती;
नीचे कुल ओछी जात, अति ही कुचीलणी।
जूठे फल लीन्हें राम, प्रेम की प्रतीत जाण;
ऊच नीच जाने नहीं, रस की रसीलणी।
ऐसी कहा वेद पढ़ी, छिन में बिमाण चढ़ी;
हरि जूँ सूँ बाँध्यो हेत बैकुण्ठ मैं झूलणी।
दासी मीराँ तरै सोइ ऐसी प्रीति करै जोई;
पतित-पावन प्रभु गोकुल अहीरणी।।222।।
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शब्दार्थ-अचारवती = अचार-विचार से रहने वाली। एक रती = रत्ती भर भी। कुचीलणी = मैंले-कुचैले वस्त्रों वाली। प्रतीति = प्रतीत, विश्वास। रस की रसीलणी = भक्ति का प्रेम-रस की रसिकता। छिन में विमाण चढ़ी = स्वर्ग चली गई। हेत = प्रेम। गोकुल = अहीरणी = गोकुल की ग्वालिन; पूर्व जन्म की गोपी।
अब रीति कालीन व्रज के कवियों ने राधा आदि गोपिकाओं को गुजरिया शब्द से सम्बोधित करते हुए वर्णन किया है ।
इसे भी देखें---
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" खातिर करले नई गुजरिया
रसिया ठाडो तेरे द्वार ।।
                  ये रसिया नित द्वार न आवे,
                  प्रेम होय तो दरसन पावे।
अधरामृतको भोग लगावे,
कर महेमानी अब मत चूक
            समय न वारंवार ।।
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निश्चित रूप से ये पक्तियाँ श्रृंगारिकता की पराकाष्ठा का भी अतिक्रमण करते हुए, अश्लीलता की उद्भावक हो गयी हैं ।
जो रीति कालीन हैं ।
गुर्जर जन-जाति का ऐैतिहासिक सन्दर्भों में जो वर्णन है वह यथार्थ की सीमाओं से परे है ।
देखें---
गुर्जर मुख्यत: उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफ़्ग़ानिस्तान में बसे हैं।
इस जाति का नाम अफ़्ग़ानिस्तान के राष्ट्रगान में भी आता है।
गुर्जरों के ऐतिहासिक प्रभाव के कारण उत्तर भारत और पाकिस्तान के बहुत से स्थान गुर्जर जाति के नाम पर रखे गए हैं, जैसे कि भारत का गुजरात राज्य, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरात ज़िला और गुजराँवाला ज़िला और रावलपिंडी ज़िले का गूजर ख़ान शहर।
इसको उदाहरण- है ।
आधुनिक स्थिति में गुर्जर जन-जाति -
" प्राचीन काल में युद्ध कला में निपुण रहे गुर्जर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।
निश्चित रूप से ये आभीर जन-जाति से सम्बद्ध हैं " गुर्जर अच्छे योद्धा माने जाते थे ,और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है।
अभीर शब्द भी अपने इसी निर्भीकता के अर्थ को ध्वनित करता है ।
अ नकारात्मक उपसर्ग (Prefix) + भीर -- कायर /डरपोंक अर्थात् जो कायर (भीर) नहीं है ।
वह अभीर है ।
भारत मे गुर्जर की जनसंख्या लगभग 20 करोड की है। गुर्जर महाराष्ट्र (जलगाँव जिला), दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं।
राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं।
सामान्यत: गुर्जर हिन्दू, सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो मे देखे जा सकते हैं।
वर्ण-व्यवस्था के समर्थकों ने गुर्जर जन-जाति को शूद्र घोषित करने की चेष्टा की तो ये अपने स्वाभिमान की खातिर मुसलमान ,सिक्ख  और ईसाई हो गये । ईसाई
मुस्लिम तथा सिख ,गुर्जर, हिन्दू गुर्जरो से ही परिवर्तित हुए थे।
पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है।

गुर्जर और अहीरों का सम्बन्ध - अहीरों को संस्कृत भाषा में अभीरः अथवा आभीरः संज्ञा से अभिहित किया गया ।

संस्कृत भाषा में इस शब्द की व्युपत्ति
" अभित: ईरयति इति अभीरः" अर्थात् चारो तरफ घूमने वाली निर्भीक जनजाति " अभि एक धातु ( क्रियामूल ) से पूर्व लगने वाला उपसर्ग (Prifix)..तथा ईर् एक धातु है । परन्तु कुछ संस्कृत कोश कारों ने 👇☘

(अभीरयति गा अभिमुखीकृत्य गोष्ठं नयति इति अभीर
अभि + ईर + णिच् + अच् ।)
आभीरः ।  गोपः ।
इत्यमरटीकायां रमानाथः ॥
अमर कोश के अभीर शब्द की टीका ( व्याख्या-)
परन्तु यह व्युत्पत्ति केवल आनुमानिक अवधारणाओं पर अवलम्बित है ।
अभि उपसर्ग + ईर् धातु -
जिसका अर्थ :-  चारो ओर गमन करना (जाना)है इसमें कर्तरिसंज्ञा भावे में अच् प्रत्यय के द्वारा निर्मित विशेषण -शब्द अभीरः विकसित होता है |
और इस अभीरः शब्द में श्लिष्ट अर्थ है... जो पूर्णतः भाव सम्पूर्क है
..."अ" निषेधात्मक उपसर्ग तथा भीरः/ भीरु कृदन्त शब्द जिसका अर्थ है कायर ..अर्थात् जो भीरः अथवा कायर न हो वीर पुरुष ।
(अ)नञ्  भीरव: कायरा: असौ अभीर: तत्पश्चात् सन्तति अथवा समूह वाची रूप में तद्धित प्रत्यय अण् होने से आभीर: शब्द बनता है ।
ईज़राएल के यहूदीयो की भाषा हिब्रू में भी अबीर (Abeer) शब्द का अर्थ वीर तथा सामन्त का वाचक है।
..तात्पर्य यह कि इजराईल के यहूदी वस्तुतः यदु की सन्तानें थीं जिनमें अबीर भी एक प्रधान युद्ध कौशल में पारंगत शाखा थी ।
यद्यपि आभीरः शब्द अभीरः शब्द का ही बहुवचन समूह वाचक रूप है |
अभीरः+ अण् = आभीरः ..हिब्रू बाईबिल में सृष्टिखण्ड (Genesis) ..में यहुदः तथा तुरबजू के रूप में यदुः तुर्वसू का ही वर्णन है !
और देव संस्कृति के अनुयायीयों के प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में जैसा कि वर्णन है देखें -
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ऋग्वेद के दशम् मण्डल के 62 में सूक्त का 10 वीं ऋचा में उत दासा परिविषे स्मद्दिष्टी (समत् दिष्टी ) गोपरीणसा यदुस्तुर्वश् च मामहे
= अर्थात् यदु और तुर्वशु नामक जो दास हैं ! जो गोओं से परिपूर्ण है अर्थात् चारो ओर से घिरे हुए हैं हम सब उनकी स्तुति करते हैं |
वस्तुतः अभीरः शब्द से कालान्तरण में स्वतन्त्र रूप से एक अभ्र् नामधातु का विकास हुआ ; जो संस्कृत धातु पाठ में भी परिगणित है !
जिसका अर्थ है...----चारौ ओर घूमना ..इतना ही नही मिश्र के टैल ए अमर्ना के शिला लेखों पर हबीरु शब्द का अर्थ भी घुमक्कड़ ही है।
..अंग्रेजी में आयात क्रिया शब्द (Aberrate ) का अर्थ है ।...to Wander or deviate from the right path"turn aside or wander from the (right) way," from Late Latin deviatus, past participle of deviare "to turn aside, turn out of the way," from Latin phrase de via, from de "off" (see de-) + via "way" (see via). Meaning "take a different course, diverge,
बाद की लैटिन में डेवियतस से अर्थ अलग-अलग मोड़ने के लिए, रास्ते से बाहर निकलने के लिए, "लैटिन वाक्यांश से," ऑफ "से (दाएं देखें) से (दाएं) रास्ते से अलग हो जाएं, + "रास्ता" के माध्यम से (देखें)।

मतलब "1690 से एक अलग कोर्स लेना, अलग करना, आदि अर्थ रूढ़ हो गये व्युत्पत्ति रूप - लैटिन aberrātus से, aberrō ("भटकना, या विचलित होना") Ab + errō ("भटकना घुम्मकड़ होना ") से बना है। aberrate (तीसरे व्यक्ति एकवचन सरल वर्तमान aberrates, वर्तमान भागने aberrating, सरल अतीत और पिछले भाग aberrated) Etymology -- शब्द- व्युपत्ति From Latin aberrātus, perfect passive participle of aberrō अबेरो (“wander, stray or deviate from ), formed from ab (“from, away from”) + errō (“stray” or Go).
(अप्रचलित रूप ) भटकने के लिए; अलग करना; विचलित करने के लिए से सम्बद्ध अर्थ;
[18 वीं शताब्दी के मध्य से प्रारम्भ है । ____________________________________________ अर्थात् सही रास्ते से भटका हुआ..आवारा ..संस्कृत रूप अभीरयति परस्मै पदीय रूप ... सत्य तो यह है कि सदीयों से आभीरः जनजाति के प्रति तथा कथित कुछ ब्राह्मणों के द्वारा द्वेष भाव का कपट पूर्ण नीति निर्वहन किया गया जाता रहा ..शूद्र वर्ग में प्रतिष्ठित कर उनके लिए शिक्षा और संस्कारों के द्वार भी पूर्ण रूप से बन्द कर दिए गये .. जैसा कि
" स्त्रीशूद्रौ नाधीयताम् " अर्थात् स्त्री और शूद्र ज्ञान प्राप्त न करें ...अर्थात् वैदिक विधान का परिधान पहना कर इसे ईश्वरीय विधान भी सिद्ध किया गया ... क्यों कि वह तथाकथित समाज के स्वमभू अधिपति जानते थे कि शिक्षा अथवा ज्ञान के द्वारा संस्कारों से युक्त होकर ये अपना उत्धान कर सकते हैं ..शिक्षा हमारी प्रवृत्तिगत स्वाभाविकतओं का संयम पूर्वक दमन करती है अतः दमन संयम है और संयम यम अथवा धर्म है ... यद्यपि कृष्ण को प्रत्यक्ष रूप से तो शूद्र अथवा दास नहीं कहा गया परन्तु परोक्ष रूप से उनके समाज या वर्ग को आर्यों के रूप में स्वीकृत नहीं किया है .
.कृष्ण को इन्द्र के प्रतिद्वन्द्वी के रूप मे भी वैदिक साहित्य में वर्णित किया गया है .. वस्तुतः अहीर एक गौ पालक जाति है, जो उत्तरी और मध्य भारतीय क्षेत्र में फैली हुई है।
इस जाति के साथ बहुत ऐतिहासिक महत्त्व जुड़ा हुआ है ।
क्योंकि इसके सदस्य संस्कृत साहित्य में उल्लिखित आभीर के समकक्ष माने जाते हैं।
हिन्दू पौराणिक ग्रंथ 'महाभारत' में इस जाति का बार-बार उल्लेख आया है। कुछ विद्वानों का मत है कि इन्हीं गौ पालकों ने, जो दक्षिणी राजस्थान और सिंध (पाकिस्तान) में बिखरे हुए हैं, गोपालन भगवान् कृष्ण की कथा का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं।
'अहीर' भारत की प्राचीन जाति है, जो अराजकता के लिए काफ़ी प्रसिद्ध रही है।
यह सर्व सत्य है कि शिक्षा और संस्कारों से वञ्चित समाज कभी सभ्य या सांस्कृतिक रूप से समुन्नत नहीं हो सकता है अतः आभीरः जनजाति भी इसका अपवाद नहीं है ... जैसा की तारानाथ वाचस्पत्यम् ने अहीरों की इसी प्रवृत्ति गत स्वभाव को आधार मानकर संस्कृत भाषा में आभीरः शब्द की व्युत्पत्ति भी की है।
"आ समन्तात् भीयं राति इति आभीरः कथ्यते "..अर्थात् जो चारो ओर से जो भय प्रदान करता है वह आभीरः है।
...यद्यपि यह शब्द व्युत्पत्ति प्रवृत्ति गत है अन्यत्र दूसरी व्युत्पत्ति अभीरः शब्द की है ।
अभिमुखी कृत्य ईरयति गाः इति अभीरः अर्थात् दौनो तरफ मुख करके जो गायें चराता है या घेरता है वह अभीरः है।
शब्द- विश्लेषक यादव योगेश कुमार "रोहि" ग्राम- आजादपुर पत्रालय -पहाड़ीपुर जनपद -अलीगढ़ के द्वारा प्रायोजित है .....फारसी मूल का आवरा शब्द भी अहीर /आभीरः का तद्भव रुप है ।
.. जाटों का इन अहीरों से रक्त सम्बन्ध तथा सामाजिक सम्बन्ध मराठों और गूजरों जैसा निकटतम है।स्वयं गुज्जर / गूजर अथवा संस्कृत गुर्जरः भी संस्कृत के पूर्ववर्ती शब्द गोश्चरः ---- गायों को चराने वाला !
परवर्ती रूप है जिससे गुर्जरायत या गुजरात प्रदेश वाची शब्द का विकास हुआ है ..
यादव प्राय: 'अहीर' शब्द से भी नामांकित होते हैं, जो  आभीर जाति से संबद्ध हैं कुछ लोग आभीरों को देव-संस्कृति को न मानने वाला  कहते हैं ! .
..क्यो ऋग्वेद के दशम् मण्डल के 62 में सूक्त के 10 वें मन्त्र में यदु और तुर्वशु को दास कहा गया है ..
जैसा कि उपर्यक्त वर्णित है ।
उत दासा परिविषे स्मत् दृष्टी गोपरिणसा यदुस्तुर्वसुश्च मामहे |
अतः आभीरः जनजाति के पूर्व- पुरुष यदु आर्यों के समुदाय से बहिष्कृत कर दिये गये थे ..यदि आभीरः जनजाति को अभीर जाति से संबंधित किया जाये तो ये विदेशी ठहरते हैं।

जैसा कि इजराईल के यहूदी अबीर Abeer जनजाति जो युद्ध और पराक्रम के लिए दुनिया मे विख्यात हैं ..से साम्य है.. श्रीकृष्ण को जाे दोनों ही अपना पूर्व-पुरुष मानते हैं।
यद्यपि अहीरों में परस्पर कुछ ऐसी दुर्भावनाएं उत्पन्न हो गई हैं कि वे स्वयं एक शाख वाले, दूसरी शाख वालों को, अपने से हीन समझते हैं।

लेकिन जाटों का सभी अहीरों के साथ चाहे वे अपने लिए यादव, गोप, नंद, आभीर कहें, एक-सा व्यवहार है। जैसे खान-पान में जाट और गूजरों में कोई भेद नहीं, वैसे ही अहीर और जाटों में भी कोई भेद नहीं।
पाश्चात्य इतिहास कारों की अवधारणा है कि गुर्जर और आभीर आयबेरिया या गुर्जिस्तान के निवासी भी रहे हैं जो जॉर्जिया अथवा आयरलेण्ड का का ही एक उपनिवेश था । इस शब्द के अन्य अर्थ हैं, इबेरिया । Iberia, Iberia, Iviria Kartli , ग्रीक में Ἰβηρία , लैटिन इबेरिया ) ________________________________________ - जॉर्जियाई और प्राचीन आर्मेनियाई, बीजान्टिन लेखकों दोनों द्वारा वर्णित ऐतिहासिक पूर्वी जॉर्जिया के क्षेत्र में प्राचीन जॉर्जियाई साम्राज्य को आइबेरिया कहते थे । ( ქართლი )यह राज्य तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व - 537 वर्ष तक ट्रांसकेशिया के नक्शा में राजधानी अरमाजी , मत्शेखे , तबीलिसी आद रूपों में रहा है । (5 वीं शताब्दी के बाद से) सबसे बड़े शहर आर्मज़ी , मत्शेखे , तबीलिसी , अपलिस्टिचे , नेकेरेस , तुंडा भाषाएं जॉर्जियाई सरकार का फॉर्म साम्राज्य इतिहास प्राचीन काल से इबेरिया का क्षेत्र कई संबंधित रूपों में रहा है । _________________________________________ यहाँ कभी अवर और कज़र जनजातियों ने निवास किया गया था ।
जिनकी एक रूपता अहीरों और गुर्जर (गौश्चर) से है । लेखकों ने इसको "सस्पेरी", "तिब्बारेन्स" और सामूहिक "इबेरियन" ( पूर्वी इबेरियन ) कहा जाता है। स्थानीय लोगों ने बाद में एक लोकप्रिय संस्करण के अनुसार अपने देश को कार्तली कह कर बुलाया, ऐसा माना जाता है ।
कि देश का नाम कार्तलोस के पौराणिक पूर्वजों की ओर से दिखाई दिया।
द्वितीय सहस्राब्दी ईसा पूर्व में दक्षिण जॉर्जियाई भूमि में 7 वीं शताब्दी में ताओ या दीओही ईरानी रूप दह्यु जिसे वेदों में दास रूप में वर्णित किया है इस नाम का एक राज्य था।
ईसा पूर्व में उरर्तू ने किस पर हमला किया था ।
और आंशिक रूप से अपनी रचना में प्रवेश किया, और आंशिक रूप से कोल्किस ।

तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की बारी में इबेरिया के क्षेत्र में एक वर्ग राज्य का गठन किया गया था।
समुदाय में एकजुट कुछ किसान स्वतंत्र थे, अन्य शाही परिवार और कुलीनता के अधीन थे। गुलामों(मुख्य रूप से युद्ध के कैदियों से) श्रम का निर्माण और अन्य भारी काम के साथ-साथ महल निर्माण का कार्य भी अर्थव्यवस्था के सुधार रूप में भी किया जाता था। इबेरियन बस्तियों के बीच प्रमुख स्थिति ने मत्शेता पर कब्जा कर लिया, जो बाद में इबेरिया की राजधानी बन गया।
इसमें, साथ ही Urbnisi, Uplistsikhe और अन्य शहरों में, विकसित और व्यापार किया। पहली शताब्दी ईसा पूर्व में। इबेरिया ने यूनानी और अरामाईक लेखन का उपयोग किया।
साथ ही, इबेरिया में विशेष रूप से फारसमैन द्वितीय (द्वितीय शताब्दी ईस्वी) के शासनकाल में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। चौथी शताब्दी में, इबेरिया में सामंती संबंध विकसित होने लगे। 318-332 ग्राम की अवधि में। (विभिन्न स्रोतों के अनुसार), मिरियन III ने ईसाई धर्म को राज्य धर्म घोषित कर दिया। चौथी शताब्दी के अंत में, इबेरिया फारस के अधीन था और भारी श्रद्धांजलि से घिरा हुआ था।👇

अहीरों और गुज्जर दोैंनों को हूणों की एक शाखा के रूप में विदेशी इतिहास कारों ने वर्णित किया है

Each year, the Huns [Avars] came to the Slavs, to spend the winter with them; then they took the wives and daughters of the Slavs and slept with them, and among the other mistreatments [already mentioned] the Slavs were also forced to pay levies to the Huns. But the sons of the Huns, who were [then] raised with the wives and daughters of these Wends could not finally endure this oppression anymore and refused obedience to the Huns and began, as already mentioned, a rebellion. When now the Wendish army went against the Huns, the [aforementioned] merchant Samo accompanied the same. And so the Samo’s bravery proved itself in wonderful ways and a huge mass of Huns fell to the sword of the Wends.

— Chronicle of Fredegar, Book IV, Section 48, written circa 642

पांचवीं शताब्दी के मध्य में, इबेरिया वख्तंग प्रथम गोरगासली का राजा सासनिद की शक्ति के विरूद्ध विद्रोह का प्रमुख बन गया।
प्राचीन इतिहास हेलेनिस्टिक काल में पहले से ही, इबेरिया शब्द ने एक निश्चित राजनीतिक इकाई (राज्य) को बताया, जो आज के जॉर्जिया के दक्षिण और पूर्व के क्षेत्र में स्थित था। इस क्षेत्र में, बहुमत में, जॉर्जियाई जनजाति (कार्तवेली-इबरी) रहते थे।
हेलेनिस्टिक काल के दौरान, कई अंतःविषय संघों का निर्माण यहां किया गया था, और प्रारंभिक वर्ग राज्य गठन की अवधारणाओं को पहले से ही देखा गया था।
अक्मेनिड्स के युग में, इस क्षेत्र में मौजूद जॉर्जियाई जनजातियों के संगठन को एरियन-कार्तली के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ है पूर्वी जॉर्जियाई संघ, जो सीधे फारसी साम्राज्य में प्रवेश करता था। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की बारी में यह संगठन शिदा कार्तली को अपनी शक्ति का विस्तार करने में सक्षम था। इस प्रकार, एक राज्य मत्शेता के आसपास के केंद्र के साथ बनाया गया था।
"मत्शेता" नाम शायद जीवन के जीवन को दर्शाने वाले शब्दों के जॉर्जियाई रूट से निकला है, लेकिन मेस्केटियन के जनजातियों में से एक से इस नाम की उपस्थिति का संस्करण अधिक आम है। एशिया माइनर से यहां पहुंचे मेस्की उन्हें हित्ती देवताओं ( आर्मज़ी , ज़ेडनी ) को पूजा की पंथ लेकर आए थे। जिन्होंने धीरे-धीरे सर्वोच्च देवताओं के रूप में माना जाने लगा। मत्शेता के आसपास के इलाकों में इन देवताओं के सम्मान में दो बड़े किलों का निर्माण किया गया - अरमात्त्शेखे और ज़ेडांतेशीखे। 1706 में लीपजिग में प्रकाशित क्रिस्टोफर सेलियस द्वारा कोल्किस और इबेरिया का मानचित्र इबेरिया की मुक्ति की अवधि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की शुरुआत में। कार्तली (इबेरिया) में शक्ति पर फर्नवाज ने कब्जा कर लिया था, जो स्थानीय लोगों में से एक थे (जीनस "मत्शेतेस ममास्खलिसेबी" के एक प्रतिनिधि), जो फार्नवाज़ीड्स के राजवंश के संस्थापक बने। फार्नवाज और उसके तत्काल वंशजों के शासनकाल के दौरान, इबेरिया एक बड़े क्षेत्र के साथ एक राज्य बन गया। शिडा कार्तली, कखेती और मेस्केती के अलावा, इसमें कोल्किस (Argveti, Achara) का हिस्सा शामिल था। यह माना जाता है कि इसकी संरचना में मूल रूप से पाराड्रा की तलहटी में गोगारेन और खॉर्डन क्षेत्र थे (स्ट्रैबो के अनुसार, वे द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व में आर्मेनियाई साम्राज्यों द्वारा इबेरिया से अलग हो गए थे)। अस्वीकार अवधि हेलेनिस्टिक काल का इबेरिया एक प्रारंभिक वर्ग पूर्व-सामंती राज्य था।
उत्पादकों का बड़ा हिस्सा मुक्त किसान और योद्धा थे। मुख्य रूप से शाही परिवार के प्रतिनिधियों द्वारा विजय प्राप्त कृषि जनजातियों का शोषण किया गया था।
जनसंख्या के विशेषाधिकार वर्गों का भी सेना, अदालत अभिजात वर्ग और पुजारी द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया था। वर्णित अवधि में, शाही सिंहासन की विरासत का सिद्धांत अभी तक पुष्टि नहीं हुई है।
और सिंहासन पर मृत राजा के निकटतम रिश्तेदारों में से सबसे पुराना बनाया गया था। सीमा शुल्क के लिए, पहाड़ी इलाकों के निवासी निचले इलाकों के निवासियों से बहुत अलग थे, न केवल चरित्र में बल्कि जीवन के रास्ते में भी। उस समय वे एक आदिवासी सांप्रदायिक प्रणाली में रहते थे।
65 ईसा पूर्व में रोमन सैन्य नेता गेनेस पोम्पी द ग्रेट ने इबेरिया के खिलाफ अभियान चलाया। जोरदार प्रतिरोध के बावजूद, इबेरियन राजा आर्टक को रोमियों को जमा करना पड़ा।
रोम के साथ संघ लेकिन बहुत जल्दी Iberia रोम पर निर्भर होने के लिए बंद कर दिया।

Iसे II शताब्दी ईस्वी में इबेरिया एक बार फिर से मजबूत हो गया और अक्सर ट्रांसकेशसस और मध्य पूर्व में रोम के दुश्मन के रूप में कार्य करता था।
कोबेकन रिज के पारों पर नियंत्रण स्थापित करने और उत्तरी काकेशस के क्षेत्र में रहने वाले मनोदशाओं के उपयोग से इबेरिया को सुदृढ़ बनाना था। पहली शताब्दी ईस्वी के दूसरे छमाही में। इबेरिया ने रोम के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखा, लेकिन 130-150 के दशक में। किंग फार्समैन II के समय, इबेरिया की उच्चतम शक्ति की अवधि के दौरान, रोम के साथ संबंध अधिक जटिल हो गए।
किंग फार्समैन द्वितीय ने रोमन सम्राट हैड्रियन के निमंत्रण को नजरअंदाज कर दिया, और केवल अपने बेटे एंटोनिनस पायस के शासनकाल के दौरान, रोम की अपनी पत्नी, बेटे और सहयोगियों के एक बड़े सूट के साथ रोम का दौरा किया। सम्राट रोम में इबेरिया के राजा के लिए एक घोड़ा स्मारक रखा गया। शासन राजवंश फार्नवाज़ीडी (2 9 -18-18 बीसी Artashesides (लगभग 165-30 ईसा पूर्व) अर्शाकिड्स (18 9 -284) Khosroids (284 के बाद) नोट्स ↑ किरिल तुमानोव "क्रॉनोलॉजी ऑफ़ द अर्ली किंग्स ऑफ इबेरिया", ट्रेडिटीओ, वॉल्यूम। 25 (1 9 6 9), पीपी। 8-17। द्वारा प्रकाशित: फोर्डहम विश्वविद्यालय ↑ सिरिल टौमनॉफ « क्रोनोलॉजी ऑफ़ द अर्ली किंग्स ऑफ इबेरिया » पृष्ठ 11-12 साहित्य संपादित करें Apakidze ए, "प्राचीन जॉर्जिया के शहरों का जीवन", पुस्तक। 1. टीबी।, 1 9 63; लॉर्टकिप्निडेज़ ओ।, "प्राचीन दुनिया और कार्तली का राज्य (इबेरिया)", तबील।, 1 9 68; जॉर्जिया का इतिहास, खंड 1. टीबी।, 1 9 62; मत्शेता, पुरातात्विक शोध के परिणाम, खंड 1, टीबी।, 1 9 58; बोल्टुनोवा एआई, स्ट्रैबो के "भूगोल" में इबेरिया का विवरण, "प्राचीन इतिहास बुलेटिन", 1 9 47, संख्या 4; मेलिकिशविली जीए, प्राचीन जॉर्जिया के इतिहास पर, तबील।, 1 9 5 9। Etymology Gyula Németh, following Zoltán Gombocz, derived Xazar (कज़र) from a hypothetical *Qasar (क़सर) reflecting a Turkic root qaz- ("to ramble, to roam") गुजरना being an hypothetical velar variant of Common Turkic kez-. In the fragmentary Tes and Terkhin inscriptions of the Uyğur empire (744–840) the form 'Qasar' is attested, though uncertainty remains whether this represents a personal or tribal name, gradually other hypotheses emerged. Louis Bazin derived it from Turkic qas- ("tyrannize, oppress, terrorize") on the basis of its phonetic similarity to the Uyğur tribal name, Qasar. András Róna-Tas connects it with Kesar, the Pahlavi transcription of the Roman title Caesar. D.M.Dunlop tried to link the Chinese term for "Khazars" (ख़ज्जर) to one of the tribal names of the Uyğur Toquz Oğuz, namely the Gésà. The objections are that Uyğur Gesa/Qasar was not a tribal name but rather the surname of the chief of the Sikari tribe of the Toquz Oğuz, and that in Middle Chinese the ethnonym "Khazars", always prefaced with the word Tūjué (Tūjué Kěsà bù:突厥可薩部; Tūjué Hésà:突厥曷薩), is transcribed with characters different from those used to render the Qa- in the Uyğur word 'Qasar'. After their conversion it is reported that they adopted the
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मिहिर -अथवा महर :- . व्रज में बोला जानेवाला एक आदर- सूचक शब्द था ।
जिसके अवशेष आज भी हैं ।
महर शब्द जिसका व्यवहार विशेषतः जमादारों और वैश्यों व्यापारियों  आदि के सम्बन्ध में होता है।
(कभी कभी इस शब्द का व्यवहार केवल श्रीकृष्ण के पालक और पिता नंद के लिये भी बिना उनका नाम लिए ही होता रहा है)।
व्रज भाषा के कवियों ने लिखा भी है 👇

" महर निनय दोउ कर जोरे घृत मिष्टान पय बहुत मनाया।—सूर (शब्दावली)।
फूर आभलाषन को चाखने के माखन लै दाखन मधुर भरे महर मंगाय रे।
(ग) व्रज की विरह अरु संग महर की कुवरिहि वरत न नेकु लजान।—तुलसी

इधर राजस्थान में गुर्ज्जरों को मिहर कहा जाता है जो सम्मानित व महाशय होते हैं ।
मिहिर ! विभासि यतः सुतरां त्रिभुवनभावनभानिकरैः सूर्य का वाचक ॥
सूर्य से सम्बद्ध होने के कारण आक( अकौआ) वृक्ष का वाचक अर्क  ।  इत्यमरः कोश।
मह्- पूजायाम् धातु से महिर या मिहिर - पूज्य व सम्माननीय व्यक्ति --जो ज्ञान वृद्ध तथा आयु- वृद्ध भी हो
मेघ का भी वाचक -
  १ । ३ ।  २९ ॥  वृद्धः । इति मेदिनीशब्दरत्नावल्यौ ।
  रे   २०४ ॥  मेघः । इति हेमचन्द्रः ।  २ ।  ११ ॥

व्रज भाषा में कृष्ण को महार का बेटा कहा गया

प्रदेश के प्रसिद्ध हूण राजा तीरमाण
(तुरमान शाह) के पुत्र का नाम। मिहिर था
विशेष— इसने गुप्त सम्राटों पर विजय प्राप्त करके मध्य भारत पर अधिकार जमाया था।
यह बौद्धों का बहुत बड़ा शत्रु था।एक बार मगध के राजा बालादित्य ने इसे पकड़ लिया था; पर फिर अपनी माता के कहने से छोड़ दिया था।
इसने कुछ दिनों तक काश्मीर पर भी शासन किया था। यह ईसवी छठी शताब्दी के मध्य में हुआ था।

_______________________________________ गुर्जर ईसाईयों के रूप में -- Hebrew script, and it is likely that, though speaking a Türkic language, the Khazar chancellery under Judaism probably corresponded in Hebrew. In Expositio in Matthaeum Evangelistam, Gazari, presumably Khazars, are referred to as the Hunnic people living in the lands of Gog and Magog and said to be circumcised and omnem Judaismum observat, observing all the laws of Judaism.
व्युत्पत्ति एपिट्यूशन ग्यूला नेमेट, ज़ोलटान गॉंबोकज़ के बाद, एक तुष्टीकरणिक रूप क़ाज़- ("घूमने के लिए, घूमने के अर्थ में") एक अवधारणात्मक रूप * कसार से एक्सज़र बनाकर आम तुर्किक कीज़ का एक काल्पनिक वेल्टर प्रकार होता है। उज्गुर साम्राज्य (744-840) के खंडित टेस और टेरखिन शिलालेख में 'कसार' रूप को प्रमाणित किया गया है, हालांकि अनिश्चितता यह बनी हुई है कि यह एक निजी या आदिवासी नाम का प्रतिनिधित्व करती है, धीरे-धीरे अन्य परिकल्पना उभरेगी। लुइस बज़िन ने इसे तुर्किक क्यूस ("जबरन, दमन, आतंकित") से उयगुर आदिवासी नाम, कसार को अपनी ध्वन्यात्मक समानता के आधार पर प्राप्त किया। एंड्रॉस रोना-तास ने केसर के साथ, रोमन शीर्षक सीज़र के पहलवी ट्रांसक्रिप्शन को जोड़ लिया है। डी.एम.डुनलोप ने उइगुर टोक्ज़ ओगुज़ नामक गेजा के आदिवासी नामों में से एक को "खजार" के लिए चीनी शब्द को जोड़ने का प्रयास किया। आपत्तियां हैं कि उइगुर जीसा / क़सर एक आदिवासी नाम नहीं था, बल्कि टोक्ज़ ओगुज़ के सिकरी जनजाति के प्रमुख का उपनाम नहीं था, और मध्य चीनी नाम में "खजार" नाम हमेशा ताजूज़ (तुरवसु) से सम्बद्ध है । तुरवसु भारतीय वैदिक साहित्य में यदु का सहवर्ती तथा तुर्की संस्कृति का पूर्व-पिता है ।

ऋग्वेद १०/ ६२/ १०/ उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे----अर्थात् यदु और तुर्वसु नामक दौनों दास---जो गायों से घिरे हुए हैं हम उनका वर्णन करते हैं ।
उनका सराहना अथवा वर्णन करते हैं । दास शब्द का ईरानी रूप दाहे है ---जो दाहिस्तान Dagestan के अधिवासी हैं । यहूदी और तुर्की दौनों कबीले दाहे कहलाते थे ।
(तुजूई कासा ब्यू) : 突厥 可 薩 部; तुजूए हस्सा: 突厥 曷 薩), उन पात्रों के साथ लिखे गए हैं जो क्यू-क्यू के उत्तरार्द्ध शब्द 'कसार' में प्रस्तुत किए गए थे। अपने रूपांतरण के बाद यह सूचित किया जाता है कि उन्होंने हिब्रू लिपि को अपनाया है, और यह संभव है कि, हालांकि तुर्किक भाषा की बात करते हुए, यहूदी धर्म के तहत खजार चांसलर शायद हिब्रू में लिखे हुए थे। मैथ्यूम इंजीलिस्टम में एक्सपोजिटियो में, गज़री, संभवत: खजर्स को गोग और मागोग की भूमि में रहने वाले हुन्नी लोगों के रूप में जाना जाता है । और ये यहूदी धर्म के सभी कानूनों की देखरेख में सुन्नत और यहूदी धर्म की सभी विशेषताओं से युक्त हैं। हिन्दुस्तान में गोर्जी गौर्जर गूज़र तथा घोषी इन्हीं से सम्बद्ध हैं। _______________________________________ शूद्र शब्द का जन्म शूत्र- Oswald Szemerényi devotes a thorough discussion to the etymologies of ancient ethnic words for the Scythians in his work Four Old Iranian Ethnic Names: Scythian – Skudra – Sogdian – Saka. वैदिक सन्दर्भों में दास शब्द का रूपान्तरण शूद्र के रूप में होना है । In it, the names provided by the Greek historian Herodotus and the names of his title, except Saka, as well as many other words for "Scythian," such as Assyrian Aškuz and Greek Skuthēs, descend from *skeud-, an ancient Indo-European root meaning "propel, shoot" (cf. English shoot).skud- is the zero-grade; that is, a variant in which the -e- is not present. The restored Scythian name is *Skuda (archer), which among the Pontic or Royal Scythians became *Skula, in which the d has been regularly replaced by an l. According to Szemerényi, Sogdiana (Old Persian: Suguda-; Persian: سغد‎‎ Soġd; Tajik: Суғд, سغد Suġd; Chinese: 粟特 Mandarin sùtè; Ancient Greek: Σογδιανή) was named from the Skuda form. Starting from the names of the province given in Old Persian inscriptions, Sugda and Suguda, and the knowledge derived from Middle Sogdian that Old Persian -gd- applied to Sogdian was pronounced as voiced fricatives, -γδ-, Szemerényi arrives at *Suγδa as an Old Sogdian endonym. Applying sound changes apparent in other Sogdian words and inherent in Indo-European he traces the development of *Suγδa from Skuda, "archer," as follows: Skuda > *Sukuda by anaptyxis > *Sukuδa > *Sukδa (syncope) > *Suγδa (assimilation). शूद्र शब्द का जन्म शूत्र- ओसवल्ड ज़ेमेरेनी अपने काम में सिथियन के लिए प्राचीन जातीय शब्दों के व्यथा के लिए एक संपूर्ण चर्चा को समर्पित करता है। चार पुरानी ईरानी जातीय नाम: सिथियन - स्कूद्रा - सोग्दियन - शक हैं । इसमें, ग्रीक इतिहासकार हेरोडोटस द्वारा दिए गए नाम और उनके शीर्षक के नाम, शक को छोड़कर, साथ ही "सिथीयन" के लिए कई अन्य शब्द, जैसे कि अश्शुरियाई एस्कुज़ और ग्रीक स्कूथ्स, * स्कीड, एक प्राचीन भारत- यूरोपीय रूट जिसका अर्थ है "प्रोपेल, शूट" ( इंग्लिश शूट)। * स्कूड- शून्य-ग्रेड है; वह, एक प्रकार है जिसमें -e- मौजूद नहीं है बहाल सिथिअन नाम * स्कुडा (आर्चर) है, जो पोंटिक या रॉयल सिथियन के बीच * स्कुला बन गया था, जिसमें डी को नियमित रूप से एल द्वारा बदल दिया गया था। स्ज़ेमेरिनी के अनुसार, सोग्डिआना (पुरानी फारसी: सुगुदा-; फ़ारसी: सगड़े सूद; ताजिक: Судд, सगड़े सूद; चीनी: 粟特 मंदारिन संत); प्राचीन यूनानी: Σογδιανή का स्काडा रूप से नामित किया गया था। पुरानी फारसी शिलालेख, शुगडा और शुगुडा में दिए गए प्रांत के नामों से शुरू करते हुए, और मध्य सोग्डियन से प्राप्त ज्ञान, जो पुराने फारसी -गडी- सोग्डियन को लागू किया गया था, उच्चारण-फ़्रैंकिटि के रूप में उच्चारित किया गया, -इसीडी-, स्ज़ेमेरियेनी * सुइग्डाइ में एक पुरानी सोग्द्दीन एंडोम। अन्य सोग्डियन शब्दों में स्पष्ट रूप से ध्वनि परिवर्तन लागू करना और इंडो-यूरोप में अंतर्निहित वह स्कुडा से "स्वर्ग" से सुइग्डाका के विकास को दर्शाता है, जैसा कि निम्नानुसार है: स्कूडा> सुप्ता द्वारा एनेप्टीक्सिस> सुकुडा> * सक्का (सिंकोपे)> * सुग्ग्डा ( आत्मसात)। रोमन शब्द सॉडियर Soudiour तथा Soldier शब्द का सम्बन्ध पूर्ण रूपेण शूद्र शब्द से है ।जो ईरानी स्कूद्रा से सम्बद्ध है। ________________________________________ गुर्जर (इरानी ख़ज़्जर) यहूदीयों की शाखा (हारातज़) - एक हिब्रू यूनिवर्सिटी के इतिहासकार द्वारा नए शोध के अनुसार, आज के अशकेनाजी यहूदियों को खजरों से उभरा हुआ माना जाती है । जो मध्य युग में परिवर्तित होकर मिथक बन गया है। ________________________________________ गुर्जर (ईरानी ख़ज्जर ) यहूदीयों की एक शाखा (Haaretz) — The claim that today’s Ashkenazi Jews are descended from Khazars who converted in the Middle Ages is a myth, according to new research by a Hebrew University historian. The Khazar thesis gained global prominence when Prof. Shlomo Sand of Tel Aviv University published “The Invention of the Jewish People” in 2008. In that book, which became a best seller and was translated into several languages, Sand argued that the “Jewish people” is an invention, forged out of myths and fictitious “history” to justify Jewish ownership of the Land of Israel. Now, another Israeli historian has challenged one of the foundations of Sand’s argument: his claim that Ashkenazi Jews are descended from the people of the Khazar kingdom, who in the eighth century converted en masse on the instruction of their king. In an article published this month in the journal “Jewish Social Studies,” Prof. Shaul Stampfer concluded that there is no evidence to support this assertion. “Such a conversion, even though it’s a wonderful story, never happened,” Stampfer said. Stampfer, an expert in Jewish history, analyzed material from various fields, but found no reliable source for the claim that the Khazars – a multiethnic kingdom that included Iranians, Turks, Slavs and Circassians – converted to Judaism. “There never was a conversion by the Khazar king or the Khazar elite,” he said. “The conversion of the Khazars is a myth with no factual basis.” (हारातज़) - एक हिब्रू यूनिवर्सिटी के इतिहासकार द्वारा नए शोध के अनुसार, आज के अशकेनाजी यहूदियों को खजरों से उभरा हुआ माना जाती है । जो मध्य युग में परिवर्तित होकर मिथक बन गया है। खैरस थीसिस ने विश्व की प्रमुखता प्राप्त की जब तेल अवीव विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्लोमो रेड ने 2008 में " यहूदी लोगों की खोज" प्रकाशित की। उस किताब में, जो एक बेहतरीन विक्रेता बन गया और कई भाषाओं में अनुवाद किया गया, रेत ने तर्क दिया कि "यहूदी लोग "इजरायल की भूमि के यहूदी स्वामित्व को औचित्य देने के लिए मिथकों और काल्पनिक" इतिहास "से बाहर निकला हुआ एक आविष्कार ही है जिनका भारतीय यादवों से साम्य परिलक्षित होता है । अब, एक अन्य इज़राइली इतिहासकार ने रेत के तर्क की नींव को चुनौती दी है: उनका दावा है कि अशकेनाजी यहूदियों का खज़ार साम्राज्य के लोग हैं, जो आठवीं शताब्दी में अपने राजा के निर्देश पर सामूहिक रूप से परिवर्तित हो गए थे। पत्रिका "यहूदी सोशल स्टडीज" में इस महीने प्रकाशित एक लेख में, प्रोफेसर शैल स्टैम्पफर ने निष्कर्ष निकाला कि इस अभियोग का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं है। "ऐसा रूपांतरण, हालांकि यह एक अद्भुत कहानी है, कभी नहीं हुआ," स्टैंपफर ने कहा। यहूदी इतिहास में एक विशेषज्ञ स्टैम्फेर ने विभिन्न क्षेत्रों से सामग्री का विश्लेषण किया है, लेकिन इस दावे के लिए कोई विश्वसनीय स्रोत नहीं पाया गया कि खजर्स - एक ईसाई, तुर्क, स्लाव और सर्कैसियन सहित बहु-जातीय साम्राज्य - "खजार राजा या खजर संभ्रांत ने कभी भी एक रूपांतरण नहीं किया", उन्होंने कहा। "खजरों का रूपांतरण कोई वास्तविक आधार नहीं है | As a historian, he said he was surprised to discover how hard it is “to prove that something didn’t happen. Until now, most of my research has been aimed at discovering or clarifying what did happen in the past … It’s a much more difficult challenge to prove that something didn’t happen than to prove it did.” That’s because the proof is based primarily on the absence of evidence rather than its presence – like the fact that an event as unprecedented as an entire kingdom’s conversion to Judaism merited no mention in contemporaneous sources. “The silence of so many sources about the Khazars’ Judaism is very suspicious,” Stampfer said. “The Byzantines, the geonim [Jewish religious leaders of the sixth to eleventh centuries], the sages of Egypt – none of them have a word about the Jewish Khazars.” The research ended up taking him four years. “I thought I’d finish in two months, but I discovered that there was a huge amount of work. I had to check sources that aren’t in my field, and I consulted and got help from many people.” Stampfer said his research had no political motives, though he recognizes that the topic is politically fraught. “It’s a really interesting historical question, but it has political implications,” he said. “As a historian, I’m naturally worried by the misuse of history. I think history should be removed from political discussions, but anyone who nevertheless wants to use history must at least present the correct facts. In this case, the facts are that the Khazars didn’t convert, the Jews aren’t descendants of the Khazars and the contemporary political problems between Israelis and Palestinians must be dealt with on the basis of current reality, not on the basis of a fictitious past.” Sand had tied the Khazar issue directly to the Israeli-Palestinian conflict, telling Haaretz in 2008 that many Jews fear that wide acceptance of his thesis would undermine their “historic right to the land. The revelation that the Jews are not from Judea [ancient Israel] would ostensibly knock the legitimacy for our being here out from under us … There is a very deep fear that doubt will be cast on our right to exist.” Stampfer believes the persistence of the Khazar conversion myth attests to researchers’ reluctance to abandon familiar paradigms. “Those who believed this story – and they are many – usually didn’t do so for malicious reasons,” he says. “I tell my students that the only thing I want them to remember from my classes is the need to investigate and ask – to investigate whether the arguments ____________________________________ The first known mention of the term Turk (Old Turkic: 𐱅𐰇𐰼𐰰 Türük or 𐱅𐰇𐰼𐰰:𐰜𐰇𐰛 Kök Türük Chinese: 突厥, Old Tibetan: duruggu/durgu (meaning "origin"), Pinyin: Tūjué, Middle Chinese (Guangyun): [tʰuot-küot]) applied to a Turkic group was in reference to the Göktürks in the 6th century. A letter by Ishbara Qaghan to Emperor Wen of Sui in 585 described him as "the Great Turk Khan." The Orhun inscriptions (735 CE) use the terms Turk and Turuk. Previous use of similar terms are of unknown significance, although some strongly feel that they are evidence of the historical continuity of the term and the people as a linguistic unit since early times. This includes Chinese records Spring and Autumn Annals referring to a neighbouring people as Beidi.During the first century CE, Pomponius Mela refers to the "Turcae" in the forests north of the Sea of Azov, and Pliny the Elder lists the "Tyrcae" among the people of the same area. There are references to certain groups in antiquity whose names could be the original form of "Türk/Türük" such as Togarma, Turukha/Turuška, Turukku and so on. But the information gap is so substantial that we cannot firmly connect these ancient people to the modern Turks.Turkologist András Róna-Tas posits that the term Turk could be rooted in the East Iranian Saka languageor in Turkic. However, it is generally accepted that the term "Türk" is ultimately derived from the Old-Turkic migration-term[48] 𐱅𐰇𐰼𐰰 Türük/Törük,which means "created", "born", or "strong",from the Old Turkic word root *türi-/töri- ("tribal root, (mythic) ancestry; take shape, to be born, be created, arise, spring up") and conjugated with Old Turkic suffix 𐰰 (-ik), perhaps from Proto-Turkic *türi-k ("lineage, ancestry"), from the Proto-Turkic word root *töŕ ("foundation, root; origin, ancestors"), possibly from a Proto-Altaic source *t`ŏ̀ŕe ("law, regulation"). This etymological concept is also related to Old Turkic word stems 'tür' ("root, ancestry, race, kind of, sort of"), 'türi-' ("to bring together, to collect"), 'törü' ("law, custom") and 'töz' ("substance"). The earliest Turkic-speaking peoples identifiable in Chinese sources are the Dingling, Gekun(Jiankun), and Xinli, located in South Siberia. The Chinese Book of Zhou (7th century) presents an etymology of the name Turk as derived from "helmet", explaining that this name comes from the shape of a mountain where they worked in the Altai Mountains.[58] According to Persian tradition, as reported by 11th-century ethnographer Mahmud of Kashgar and various other traditional Islamic scholars and historians, the name "Turk" stems from Tur, one of the sons of Japheth (see Turan). During the Middle Ages, various Turkic peoples of the Eurasian steppe were subsumed under the identity of the "Scythians".Between 400 CE and the 16th century, Byzantine sources use the name Σκύθαι (Skuthai) in reference to twelve different Turkic peoples. In the modern Turkish language as used in the Republic of Turkey, a distinction is made between "Turks" and the "Turkic peoples" in loosely speaking: the term Türk corresponds specifically to the "Turkish-speaking" people (in this context, "Turkish-speaking" is considered the same as "Turkic-speaking"), while the term Türki refers generally to the people of modern "Turkic Republics" (Türki Cumhuriyetler or Türk Cumhuriyetleri). However, the proper usage of the term is based on the linguistic classification in order to avoid any political sense. In short, the term Türki can be used for Türk or vice versa. एक इतिहासकार के रूप में, उन्होंने कहा कि वह यह मैं जानकर हैरान था कि यह शोध कितना कठिन है "यह साबित करने के लिए कि कुछ नहीं हुआ। अब तक, मेरे अधिकांश शोध का पता लगाया जा रहा है कि अतीत में क्या हुआ या पता चल गया ... यह साबित करने के लिए बहुत मुश्किल है कि यह साबित करने के लिए कुछ नहीं हुआ। ऐसा इसलिए है क्योंकि सबूत मुख्य रूप से इसकी उपस्थिति के बजाय साक्ष्य की अनुपस्थिति पर आधारित है - इस तथ्य की तरह कि एक पूरे राज्य के रूप में अभूतपूर्व घटना के रूप में यहूदी धर्म को समकालीन स्रोतों में कोई भी उल्लेख नहीं किया गया। "खज़ारों के यहूदी धर्म के बारे में इतने सारे स्रोतों की चुप्पी बहुत संदेहास्पद है," स्टैंपफर ने कहा। "बीजान्टिन, जीओनीम [छठी से ग्यारहवीं शताब्दी के यहूदी धार्मिक नेता], मिस्र के ऋषि - उनमें से कोई भी यहूदी खजरों के बारे में एक शब्द नहीं है।" अनुसंधान ने उसे चार साल ले लिया। "मैंने सोचा कि मैं दो महीने में खत्म होगा, लेकिन मुझे पता चला कि काम का एक बहुत बड़ा हिस्सा था। मुझे उन स्रोतों की जांच करनी पड़ी जो मेरे क्षेत्र में नहीं हैं, और मैंने सलाह दी और कई लोगों से मदद की। " स्टैंपफर ने कहा कि उनके शोध में कोई राजनैतिक इरादा नहीं है, हालांकि वह मानते हैं कि विषय राजनैतिक रूप से भरा है। "यह एक बहुत ही रोचक ऐतिहासिक सवाल है, लेकिन इसमें राजनीतिक प्रभाव पड़ता है," उन्होंने कहा। "एक इतिहासकार के रूप में, मैं स्वाभाविक रूप से इतिहास के दुरुपयोग से चिंतित हूँ मुझे लगता है कि इतिहास को राजनीतिक चर्चाओं से हटा देना चाहिए, लेकिन जो कोई भी इतिहास का उपयोग करना चाहता है, वह कम से कम सही तथ्यों को प्रस्तुत करना चाहिए। इस मामले में, तथ्य यह है कि खजरों को परिवर्तित नहीं किया गया, यहूदियों को खजरों के वंशज नहीं हैं और इजरायल और फिलिस्तीनियों के बीच की समकालीन राजनीतिक समस्याओं को वर्तमान वास्तविकता के आधार पर निपटा जाना चाहिए, न कि एक काल्पनिक अतीत। " रेत ने खाजार मुद्दे को सीधे इज़राइली-फिलिस्तीनी संघर्ष से बंधे, 2008 में हारातज़ को बताया कि कई यहूदियों को यह डर है कि उनकी थीसिस की व्यापक स्वीकृति से उनके "भूमि पर ऐतिहासिक अधिकार कमजोर पड़ेंगे। यह रहस्योद्घाटन कि यहूदी यहूदिया [प्राचीन इज़राइल] से नहीं हैं, हमारे सामने से हमारे यहां से बाहर रहने के लिए वैधता पर दस्तखत करेंगे ... एक बहुत डर है कि संदेह हमारे अस्तित्व के अधिकार पर डाली जाएगी। " स्टैंपफर का मानना ​​है कि खजार रूपांतरण मिथक की दृढ़ता से शोधकर्ताओं ने परिचित पैराग्जम्स को छोड़ने के लिए अनिच्छा को प्रमाणित किया है। "जो लोग इस कहानी को मानते हैं - और वे बहुत से हैं - आमतौर पर दुर्भावनापूर्ण कारणों के लिए ऐसा नहीं किया है," वे कहते हैं। "मैं अपने छात्रों से कहता हूं कि केवल एक चीज जिसे मैं अपने वर्गों से याद रखना चाहता हूं, उन्हें जांचना और पूछने की ज़रूरत है - जांच करने के लिए कि क्या तर्क ____________________________________ तुर्क (ओल्ड तुर्कुक: 𐱅𐰇𐰼𐰰 तुर्कुक या 𐱅𐰇𐰼𐰰: 𐰜𐰇𐰛 कोक तुर्कुक चीनी: 突厥, ओल्ड तिब्बती: डुरगुगु / दुर्गु (जिसका अर्थ "मूल" शब्द का पहला ज्ञात उल्लेख है) ), पिन्यिन: टूजूए, मध्य चीनी (ग्वांग्युन): [ट्यूट-क्यूट]) एक तुर्किक समूह पर लागू हुआ 6 वीं शताब्दी में गॉटर्क्स के संदर्भ में था। 585 में सम्राट वेन ऑफ सुई के लिए ईशबारा कछान ने एक पत्र को "महान तुर्क खान" के रूप में वर्णित किया। ऑरहुन शिलालेख (735 सीई) शब्द तुर्क और तुर्कुक का प्रयोग करते हैं। इसी तरह की शर्तों का पिछला उपयोग अज्ञात महत्व का है, हालांकि कुछ लोगों को यह महसूस होता है कि वे शब्द की ऐतिहासिक निरंतरता के साक्ष्य हैं और लोगों को शुरुआती समय से भाषाई इकाई के रूप में देखते हैं। इसमें चीनी रिकॉर्ड स्प्रिंग एंड शरम एनलल्स भी शामिल हैं, जो कि बीडी के रूप में पड़ोसी लोगों का जिक्र करते हैं।पहली सदी के दौरान, पोम्पोनियस मेला में Azov के सागर के उत्तर के जंगलों में "टर्काई" का उल्लेख है, और प्लिनी एल्डर ने उसी क्षेत्र के लोगों के बीच "टिर्का" को सूचीबद्ध किया है। पुरातन काल के कुछ समूहों के संदर्भ हैं जिनके नाम "तुर्क / तुर्कुक" का मूल रूप है जैसे टोगर्मा, तुरुखा / तुरुस्का, तुरुक्कु और इतने पर। लेकिन जानकारी अंतर इतनी महत्वपूर्ण है कि हम इन प्राचीन लोगों को आधुनिक तुर्कों को दृढ़ता से जोड़ नहीं सकते हैं। तुर्कोलिस्ट एंड्रस रोना-टीस का मानना ​​है कि तुर्क शब्द पूर्वी ईरानी Saka भाषा या तुर्की में निहित हो सकता है। हालांकि, आम तौर पर यह स्वीकार किया जाता है कि शब्द "तुर्क" अंततः पुराने-तुर्की प्रवासन अवधि 𐱅𐰇𐰼𐰰 तुर्कुक / तेर्गाक से प्राप्त होता है, जिसका अर्थ है "बनाया", "जन्म", या "मजबूत", [52] पुराने तुर्की शब्द जड़ से * टुरी / टोरि- ("आदिवासी जड़, (पौराणिक) वंश, आकार लेना, पैदा होने, पैदा किया जाना, उठना, बसना") और पुराने के साथ संयुग्मित प्रोटो-तुर्किक शब्द जड़ * तौ ("नींव, मूल; मूल, पूर्वजों") से, शायद प्रोटो-तुर्किक * टुरी-कश्मीर ("व से तुर्किक प्रत्(-संभवत: एक प्रोटो-अल्टेइक स्रोत * टी'घी ("कानून, विनियमन") से। यह व्युत्पत्तिपूर्ण अवधारणा पुरानी तुर्क शब्द से भी संबंधित है, 'टर' ("जड़, वंश, वंश, प्रकार, प्रकार"), 'तुरी' ("इकट्ठा करने के लिए, इकट्ठा करने के लिए"), 'टर्उ' (" कानून, कस्टम ") और 'टोज़' (" पदार्थ ")। [4 9] चीनी स्रोतों में जल्द से जल्द तुर्की-भाषी लोग डिंगलिंग, गेकुन (जियांकुन) और ज़िनली, दक्षिण साइबेरिया में स्थित हैं।चीनी बुक ऑफ झोउ (7 वीं शताब्दी) ने "हेलमेट" से व्युत्पन्न तुर्क नाम की एक व्युत्पत्ति प्रस्तुत की, जिसमें समझाया गया कि यह नाम एक पर्वत के आकार से आता है जहां उन्होंने अल्ताई पर्वत में काम किया था। फारस की परंपरा के अनुसार, 11 वीं शताब्दी के नृवंशविज्ञानी कश्गर के महमूद और अन्य पारंपरिक इस्लामिक विद्वानों और इतिहासकारों द्वारा की गई सूचना के अनुसार, "तुर्क" का नाम तुप से होता है, जोपथ के पुत्रों में से एक (तुरुणा देखें)। मध्य युग के दौरान, यूरेशियन स्टेप के विभिन्न तुर्की लोगों को "सिथियन" की पहचान के तहत शामिल किया गया था। 400 सीई और 16 वीं शताब्दी के बीच, बीजान्टिन सूत्रों ने बारह अलग तुर्किक लोगों के संदर्भ में Σκύθαι (स्कुथै) नाम का प्रयोग किया। तुर्की की गणराज्य में इस्तेमाल की जाने वाली आधुनिक तुर्की भाषा में, तुर्क और तुर्क लोगों के बीच एक भेद स्पष्ट रूप से बोलने में किया जाता है: टर्म टर्क विशेष रूप से "तुर्की-भाषी" लोगों के साथ मेल खाती है (इस संदर्भ में, तुर्की-भाषी "को" तुर्क-बोलने "के रूप में माना जाता है), जबकि तुर्की शब्द आधुनिक" तुर्की गणराज्यों "(तुर्की क्यूरूयुएटलर या टर्क Cumhuriyetleri) के लोगों को संदर्भित करता है। हालांकि, किसी भी राजनीतिक समझ से बचने के लिए शब्द का उचित उपयोग भाषाई वर्गीकरण पर आधारित होता है। संक्षेप में, टर्म का उपयोग तुर्की या इसके विपरीत के लिए किया जा सकता है। _________________________________________ (Caucasus) This article is about the modern North Caucasian Avars. For the separate medieval ethnic group from the Pannonian Basin of Central and Eastern Europe, see Pannonian Avars. For other uses, see Avar (disambiguation). The Avars (Avar: аварал / магIарулал, awaral / maⱨarulal; "mountaineers") constitute a Caucasus native ethnic group, the most predominant of several ethnic groups living in the Russian republic of Dagestan.[6] The Avars reside in a region known as the North Caucasus between the Black and Caspian Seas. Alongside other ethnic groups in the North Caucasus region, the Caucasian Avars live in ancient villages located approximately 2,000 m above sea level.[7] The Avar language spoken by the Caucasian Avars belongs to the family of Northeast Caucasian languages and is also known as Nakh–Dagestanian. Sunni Islam has been the prevailing religion of the Avars since the 13th century. Avars आभीर - (Аварал) _______________________________________ दास ---The Dahae, also known as the Daae, Dahas or Dahaeans (Latin: Dahae; Ancient Greek: Δάοι, Δάαι, Δαι, Δάσαι Dáoi, Dáai, Dai, Dasai; Sanskrit: Dasa; दासा Chinese Dayi 大益) were a people of ancient Central Asia. A confederation of three tribes – the Parni, Xanthii and Pissuri – the Dahae lived in an area now comprising much of modern Turkmenistan. The area has consequently been known as Dahestan, Dahistan and Dihistan. Dahae Daae People _________________________________________ Origins( दास) The Dahae may be connected to the Dasas (Sanskrit दास Dāsa), mentioned in ancient Hindu texts such as the Rigveda as enemies of the Ārya. The proper noun Dasa appears to share the same root as the Sanskrit dasyu, meaning "hostile people" or "demons" (as well as the Avestan dax́iiu and Old Persian dahyu or dahạyu, meaning "province" or "mass of people"). Because of these pejorative implications, a tribe called the Dāhī – mentioned in Avestan sources (Yašt 13.144) as adhering to Zoroastrianism – is not generally identified with the Dahae.[4] Conversely the Khotanese word daha- meaning "man" or "male" was linked to the Dahae by the Indologist Sten Konow (1912). This appears to be cognate with nouns in other Eastern Iranian languages, such as a Persian word for "servant", dāh and the Sogdian dʾyh or dʾy, meaning "slave woman". (काकेशस) यह लेख आधुनिक उत्तरी कोकेशियान अवर्स के बारे में है। मध्य और पूर्वी यूरोप के पैनोनियन बेसिन से अलग मध्ययुगीन जातीय समूह के लिए, पैनोनियन अवतार देखें। अन्य उपयोगों के लिए, अवतार देखें (निःसंकोच)। अवतार (अवतार: аварал / магIарулал, awaral / maⱨarulal; "पर्वतारोही") एक काकेशस देशी जातीय समूह का गठन करते हैं, जो द्विसेस्टन के रूसी गणराज्य में रहने वाले कई जातीय समूहों का सबसे प्रमुख है। अवतार ब्लैक और कैस्पियन सागरों के बीच उत्तर काकेशस के रूप में जाने वाले एक क्षेत्र में रहते हैं। उत्तर काकेशस क्षेत्र के अन्य जातीय समूहों के साथ-साथ, काकेशियान अवतार समुद्र के स्तर से लगभग 2,000 मीटर ऊपर स्थित प्राचीन गांवों में रहते हैं। कोकेशियान अवर्स द्वारा बोली जाने वाली अवतार भाषा पूर्वोत्तर कोकेशियन भाषाओं के परिवार से संबंधित है और इसे नख-दगेस्टेनेशियन भी कहा जाता है 13 वीं शताब्दी के बाद से सुन्नी इस्लाम अवर्व का प्रचलित धर्म रहा है। Avars (Аварал) _______________________________________ दास --- दहा, जिसे दाए, दाहस या दाहिया के नाम से भी जाना जाता है (लैटिन: डाहै; प्राचीन यूनानी: Δάοι, Δάαι, Δαι, Δάσαι डाई, दाई, दाई, दासाई; संस्कृत: दासा; चीनी दाई 大 益) प्राचीन मध्य एशिया के एक लोग थे तीन जनजातियों - पारनी, Xanthi और Pissuri- एक Dahae का एक सम्मेलन अब एक क्षेत्र में रहता था जिसमें आधुनिक तुर्कमेनिस्तान के बहुत अधिक शामिल थे इस क्षेत्र को फलस्वरूप डेस्टेन, दाहिस्तान और दहिस्तान के रूप में जाना जाता है। Dahae daae लोग _________________________________________ मूल (दास) दहेह दास से जुड़ा हो सकता है (संस्कृत दास दास), प्राचीन हिंदू ग्रंथों में वर्णित है जैसे ऋग्वेद आर्य के दुश्मन के रूप में। उचित संज्ञा दास संस्कृत द्रव्य, जिसका अर्थ है " शत्रुतापूर्ण लोग" या " असुर" (साथ ही साथ अवेस्टेन डैसिआइयू और पुरानी फारसी डाह्यु या दहौय, जिसका अर्थ है "प्रांत" या "लोगों का द्रव्यमान") के रूप में एक ही जड़ को साझा करना है। इन झूठी निहितार्थों के कारण, एक जनजाति जिसे दही कहा जाता है - अवेस्तान सूत्रों (यति 13.144) में ज़ोरोस्ट्रियनवाद का पालन करने के रूप में उल्लेख किया गया - आम तौर पर दहे के साथ नहीं पहचाना गया है। इसके विपरीत खोतानी शब्द डाह- जिसका अर्थ है "आदमी" या "पुरुष" का अर्थ डाहई से इंडोलस्टस्ट स्टन कोनोव (1 9 12) ने जोड़ा था। खोतान यदु को पुत्र क्रोष्टा से सम्बद्ध क्रोष्टास्थान का तद्भव रूप है । यह अन्य पूर्वी ईरानी भाषाओं में संज्ञाओं के साथ संगत हो गया है, जैसे कि "दास", दाह और सोगिदियन डीह या डी, जिसका अर्थ है "दास महिला" के लिए एक फारसी शब्द। Some scholars also maintain that there were etymological links between the Dahae and Dacians (Dacii), a people of ancient Eastern Europe.[5] Both were nomadic Indo-European peoples who shared variant names such as Daoi. David Gordon White, an Indologist and historian of religion, has reiterated a point made by previous scholars – that the names of both peoples resemble the Proto-Indo-European root: *dhau meaning "strangle" and/or a euphemism for "wolf". (Similarly, the Massagetae, the northern neighbors of the Dahae, have been linked to the Getae, a people related to the Dacians.) The country neighbouring the Dahae to the south, Verkāna – often known by its Greek name, Hyrcania (Ὑρκανία) – has sometimes been conflated with Dahistan. Like Dahae and Dacia, Verkâna appears to have a root in an Indo-European word for "wolf", the Proto-Iranian: *vrka.[6] The name of Sadrakarta (later Zadracarta), the capital of Verkâna, apparently has the same etymological roots, and may be synonymous with one of two modern cities in Iran: Sari or Gorgan. (The modern name Gorgan is also derived ultimately from the Proto-Iranian *vrka for "wolf" and is cognate with the New Persian gorgān (i.e. v > g). कुछ विद्वानों का यह भी कहना है कि प्राचीन पूर्वी यूरोप के लोग, दहा और डेसीयन (दासी) के बीच व्युत्पन्न लिंक थे। [5] दोनों भटकाने वाले इंडो-यूरोपीय लोग थे, जिन्होंने दाओई जैसे भिन्न नाम साझा किए थे डेविड गॉर्डन व्हाईट, जो धर्म के एक इतिहासकार और इतिहासकार हैं, ने पिछले विद्वानों द्वारा बनाये गये एक बिंदु को दोहराया है - कि दोनों लोग प्रोटो-इंडो-यूरोपियन जड़ के समान हैं: * धाउ का अर्थ "गड़गड़ाहट" और / या "भेड़िया" के लिए एक व्यंजना । (इसी प्रकार, दाहाई के उत्तरी पड़ोसी, मेसागेटे, गेटे से जुड़े हैं, जो डेसीयन से संबंधित हैं।) दक्षिण में दाहा के पड़ोसी देश, वक्रना - अक्सर ग्रीक नाम, ह्यक्रानिया (Ὑρκανία) के नाम से जाना जाता है - कभी-कभी दाहिस्तान के साथ मिलकर संघर्ष किया जाता है दाह और डेसिया की तरह, वर्नाः "वुल्फ", प्रोटो-ईरानी: * वीरा के लिए इंडो-यूरोपीय शब्द में जड़ है। सरक्रार्ता का नाम (बाद में ज़द्रक्रारटा), वक्केना की राजधानी, जाहिरा तौर पर एक ही व्युत्पत्तिगत जड़ है, और ईरान में दो आधुनिक शहरों में से एक का अर्थ हो सकता है: साड़ी या गोरगान (आधुनिक नाम गोरगन भी अंततः प्रोटो-ईरान के 'वुल्फ' के लिए व्रका से प्राप्त हुआ है और यह नई फारसी गोरन (यानी वी> जी) के साथ संगत है। History _____________________________________ दाहे Already in 1912 the Old Persian ethnonym Daha­- (Gk. Dáoi, Dáai; Lat. Dahae) had been connected by Sten Konow with Khotanese daha- “man, male,” an etymology that is all the more plausible as it is com­mon throughout the world for nations to designate themselves with the words meaning “man” in their respective languages (for a few examples, see Bailey, 1958, pp. 109-10). The corresponding long-grade form *dāha- is represented by New Persian dāh “ser­vant,” Buddhist Sogdian dʾyh, Christian Sogdian dʾy “slave woman,” and apparently also Avestan *Dāha-­(or rather *Dåŋha-), attested only as feminine Dāhī-, in Yašt 13.144, where it occurs, together with the Airiia-, Tūiriia-, Sairima- and Sāinu-, as the name of one of the tribes that followed the Zoroastrian religion. The fact that Old Persian Daha- and Avestan *Dāha- seem to be related etymologically is not, however, necessarily proof that the two names referred to the same ethnic group; if the Daha- were indeed a Scythian tribe (see ii, below) it would be difficult to identify them with a group that is clearly excluded from the Airiia- (Ary­ans) in the Avesta. The ancient Indians also knew of a people called *Dasa- (attested only in adjectival dāsa-), depicted in the Rigveda as enemies of the Ārya-. The same root is also apparent in Avestan dax́iiu-, Old Persian dahyu- (dahạyu-) “province” (i.e., “(mass of) people”; cf. Skt. dasyu- “(hostile) people, demons”), and perhaps also Avestan aži- dahāka- अजि दाहक ­“manlike serpent” (cf. Schwartz, 123-24). ______________________________________ Daeva देवा (daēuua, daāua, daēva) is an Avestan language term for a particular sort of supernatural entity with disagreeable characteristics. In the Gathas, the oldest texts of the Zoroastrian canon, the daevas are "wrong gods दुष्ट शक्तियाँ", "false gods" or "gods that are (to be) rejected". This meaning is – subject to interpretation – perhaps also evident in the Old Persian "daiva inscription" of the 5th century BCE. In the Younger Avesta, the daevas are noxious creatures that promote chaos and disorder. In later tradition and folklore, the dēws (Zoroastrian Middle Persian; New Persian divs) are personifications of every imaginable evil. Daeva, the Iranian language term, should not be confused with the devas of Indian religions. While the word for the Vedic spirits and the word for the Zoroastrian entities are etymologically related, their function and thematic development is altogether different. The once-widespread notion that the radically different functions of Iranian daeva and Indic deva (and ahura versus asura) represented a prehistoric inversion of roles is no longer followed in 21st century academic discourse (see In comparison with Vedic usage for details). Equivalents for Avestan daeva in Iranian languages include Pashto, Balochi, Kurdish dêw, Persian dīv/deev, all of which apply to demons, monsters, and other villainous creatures. The Iranian word was borrowed into Old Armenian as dew, Georgian as devi, and Urdu as deo, with the same negative associations in those languages. In English, the word appears as daeva, div, deev, and in the 18th century fantasy novels of William Thomas ... The Dahae may be connected to the Dasas (Sanskrit दास Dāsa), mentioned in ancient Hindu texts such as the Rigveda as enemies of the Ārya. The proper noun Dasa appears to share the same root as the Sanskrit dasyu, meaning "hostile people" or "demons" (as well as the Avestan dax́iiu and Old Persian dahyu or dahạyu, meaning "province" or "mass of people"). Because of these pejorative implications, a tribe called the Dāhī – mentioned in Avestan sources (Yašt 13.144) as adhering to Zoroastrianism – is not generally identified with the Dahae.[4] Conversely the Khotanese word daha- meaning "man" or "male" was linked to the Dahae by the Indologist Sten Konow (1912). This appears to be cognate with nouns in other Eastern Iranian languages, such as a Persian word for "servant", dāh and the Sogdian dʾyh or dʾy, meaning "slave woman" Some scholars also maintain that there were etymological links between the Dahae and Dacians (Dacii), a people of ancient Eastern Europe.[5] Both were nomadic Indo-European peoples who shared variant names such as Daoi. David Gordon White, an Indologist and historian of religion, has reiterated a point made by previous scholars – that the names of both peoples resemble the Proto-Indo-European root: *dhau meaning "strangle" and/or a euphemism for "wolf". (Similarly, the Massagetae, the northern neighbors of the Dahae, have been linked to the Getae, a people related to the Dacians.) The country neighbouring the Dahae to the south, Verkāna – often known by its Greek name, Hyrcania (Ὑρκανία) – has sometimes been conflated with Dahistan. Like Dahae and Dacia, Verkâna appears to have a root in an Indo-European word for "wolf", the Proto-Iranian: *vrka. The name of Sadrakarta (later Zadracarta), the capital of Verkâna, apparently has the same etymological roots, and may be synonymous with one of two modern cities in Iran: Sari or Gorgan. (The modern name Gorgan is also derived ultimately from the Proto-Iranian *vrka for "wolf" and is cognate with the New Persian gorgān (i.e. v > g). History---- Berossus's biography of Cyrus the Great (c. 589–530 BCE) claims that he was killed by Dahae archers near the Syr Darya (Jaxartes) river (modern Uzbekistan/Kazakhstan).[8] Later sources, such as Alexander the Great and Strabo also claimed that some of the Dahae were located near the Jaxartes. The Encyclopedia Iranica considers that the Dahae "were said to have lived in ... wastes northeast of Bactria and east of Sogdiana. At least some of the Dahae must thus be placed along the eastern fringes of the Karakum desert, near ancient Margiana..." This suggests that elements of the Dahae were near neighbours of a now-obscure Bronze Age civilisation known to archaeologists as the Bactria-Margiana Archaeological Complex (BMAC). It is possible that the Dahae were confused in secondary accounts with a contemporaneous, possibly related people from Balkh (Bactria), who were known in ancient China as Daxia 大夏 (also Ta-Hsia, or Ta-Hia). Whereas the Dahae were known in Chinese sources as Dayi 大益.[1] Later historical accounts place the Dahae entirely on the south-eastern shores of the Caspian Sea. The first reliable mention of the Dahae is considered to be the Daeva inscription by Xerxes the Great of Persia (reigned 486–465 BCE). In a list in Old Persian of the peoples and provinces of the Achaemenid Empire, the Daeva identifies the Dāha as neighboring the Saka. It is unclear whether the Dahae are also the *Dāha or *Dåŋha (only attested in the feminine Dahi) mentioned by the Avestani Yasht (13.144), which may date from the 5th century BCE. अवेस्ता में दास को दाहे रूप में ई०पू० 500 में वर्णित किया गया है एेसी सम्भावना है। Moreover, any etymological relationship would not be proof that both names refer to exactly the same people. Dahae and Saka tribes are known to have fought at the Battle of Gaugamela (331 BCE), in which the armies of the Achaemenid Empire were defeated by Alexander the Great. After the Achaemenid regime collapsed the following year, Ale इतिहास में इनके रहने का भी स्थान निकट-निकट बतलाया गया है। भारत से बाहर भी जहां कहीं जाटों का अस्तित्व पाया जाता है, वहीं अहीरों की बस्तियां भी मिलती हैं। ... ज्ञान की गहराईयों में प्रेषित योगेश कुमार रोहि की जानिब से यह महान ऐेतिहासिक महत्व का सन्देश.....प्रथम भाग

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..विचार- विश्लेषक--- यादव योगेश कुमार रोहि ग्राम आजादपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़ उ०प्र० सम्पर्क 8979503784.../

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