सोमवार, 26 जून 2023

पारसी के चार वर्ण-


पारसी इस समय दुनिया की माइक्रो मॉइनोरिटी (अल्पसंख्यक) मानी जाती है, जो भारत के गुजरात और महाराष्ट्र मे अभी भी मिलते हैं।

अवेस्ता को खोजते हुये मुझे गुजराती लिपि की काफी प्राचीन प्रति मिली, जो 1880 मे प्रकाशित हुई थी।

वैसे लगभग सभी को यह पता ही है कि पहले ईरान मे पारसीधर्म था, बाद मे मुसलमानों के अतिक्रमण ने पारसियों और उनके धर्म को कुचल दिया गया, तथा कुछ पारसी किसी तरह अपनी जान बचाकर भारत (गुजरात) आ गये।

अवेस्ता की लेखनशैली वेदों से इतनी मिलती है कि आप यदि एक बार अवेस्ता पढ़ो तो आपको भ्रम हो जायेगा कि आप ऋग्वेद ही पढ़ रहे हो ! अवेस्ता मे वेदों की तरह ऋचायें तो हैं ही साथ ही इन्द्र, चन्द्र और मित्र सोम( होम)जैसे देवताओं के नाम भी हैं।

यही नही, अवेस्ता में चार समाजिक वर्गों की  व्यवस्था भी है जो ऋग्वेद के पुरुषसूक्त में भी लिखी है। परन्तु वर्ग और वर्ण शब्द वृणोति क्रिया क्रिया पद के मूल धातु "वृ" है।
अवेस्ता के एक अध्याय जिसे "आफरीन अषो जरथुस्त्र" कहते हैं, उसमे लिखा है कि अवेस्ता का ईश्वर (अहुर मज्द) जरथुस्त्र (पारसी धर्म के प्रवर्तक) से कहते हैं कि "हमारे दस पुत्र हुये! उनमे से तीन अर्थवान (अथर्वऋषि जैसे ज्ञानी अर्थात ब्राह्मण) तीन रथेस्टार (क्षत्रिय) तीन वास्त्रेय (व्यापारी अर्थात वैश्य) हुये, और दसवां पुत्र हुतोक्ष (कुशल कारीगर अर्थात शूद्र) हुआ।

हांलाकि पारसियों के ईश्वर अहुर मज्द ने दसवें पुत्र की बहुत प्रशंसा भी की है और कहा कि मेरा यह पुत्र चन्द्रमा जैसा प्रकाशवान, अग्नि जैसा चमकदार, इन्द्र की तरह शत्रुओं का दमन करने वाला और राम की तरह आदरणीय होगा।"

अवेस्था कि वर्णव्यवस्था ठीक वेदों जैसी नहीं है ही है, बस वैदिक-वर्णव्यवस्था मे शूद्र को निम्न दिखाया गया है, जबकि अवेस्ता का ईश्वर शूद्र को ही सबसे अधिक प्रेम करता है।


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