व्यक्ति को अपने लम्बे समय से चाहे हुए (आकाँक्षित) अभियान की शुरुआत स्थान को बदलकर ही करनी चाहिए।
क्योंकि वह जिस स्थान पर दीर्घकाल से रह रहा है। वहाँ के लोगों की दृष्टि में वह प्रभाव हीन और गुणों से हीन हो गया है। और वे लोग उसको लगातार हतोत्साहित और हीन बनाने के लिए मौके की तलाश में बैठे हैं।
अच्छा है उस स्थान को बदल ही दिया जाए -
जैसे कोई वाहन भार से युक्त होने पर आगे गति करते हुए यदि सिलप होने लगे तो फिर लीख काटकर ही आगे बढ़ पाता है।
क्योंकि उस वाहन की गति के अवरोधक तत्व निरन्तर उसकी गति को अवरोधित अथवा क्षीण करते हुए अपनी अवरोधन क्रिया का विस्तार ही करते ही रहते हैं।
अन्य गाँव का जोगिया
और गाँव का सिद्ध ।
बराबर से दिखने लगे
लोगों को हंस और गिद्ध ।
प्रेम धोखा पाई हुई स्त्री उस नागिन के समान आक्रामक होती है जिसकी खोंटी कर दी गयी हो। और प्रेम में धोखा खाया हुआ पुरुष पागल हो जाता है जैसे उसकी बुद्धि को लकवा मार गया हो ! इस प्रकार का विश्लेषण प्राय हम करते रहते हैं।
परन्तु ये वास्तव में प्रेम के नाम पर यह केवल सांसारिक स्वार्थ परक वासना मूलक आकर्षण ही है। इसे आप प्रेम नही कह सकते हैं।
क्योंकि प्रेम कभी आक्रामक हो ही नहीं सकता प्रेम तो बलिदान और त्याग का दूसरा नाम है।
स्त्रीयाँ में दर -असल व्यक्तियों के गुण - वैभव और साहस की आकाँक्षी होती हैं।
विशेषत: उन चीजों की जो उनके अन्दर नहीं हैं।
जैसे तर्क " विश्लेषण की शक्ति " विचार अथवा चिन्तन और साहस या कठोरता प्राय: स्त्रियों में कम ही होता है पुरुष के मुकाबले स्त्रियाँ
पुरुष के महज सौन्दर्य की आकाँक्षी कभी नहीं होती हैं।
स्त्रियों तथा पुरुषों की दृष्टि में सौन्दर्य आवश्यकता मूलक दृष्टिकोण या नजरिया है। पुरुष की दृष्टि में स्त्रीयों की कोमलता ही सौन्दर्य है। पुरुष में कोमलता होती नहीं हैं पुरुष तो परुषता या कठोरता का पुतला है।
और स्त्री रबड़ की गुड़िया-
जैनों एक दूसरे के भावों के तलबदार हैं यही उनके परस्पर आकर्षण और मिलन का कारण भी है।
यदि पुरुष इश्क कि शहंशाह है तो स्त्री हुश्न की मलिका है दोनों को एक दूसरे की चाह ( इच्छा) है।
यह उनका एक बहुत महान दृष्टिकोण है। अधिकतर स्त्रीयाँ प्राय: समर्पित" सहनशील और निष्ठावान प्रवृत्ति की होती हैं।
आपने स्त्रियों को नास्तिक होते नहीं पाया होगा वे भावनाओं से आप्लावित होती हुई श्रद्धा भावनाओं का घनीभूत रूप है।
श्रद्धा भक्ति का ही समर्पण युक्त रूपांतरण है।
जबकि अहंकार इसके विपरीत भाव है। अहंकार के जन्म जन्मातरों का घनीभूत रूप ही नास्तिकता है।
स्त्रीया" भावनाओं से आप्लावित एक नाव को समान होती हैं।
महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा अधिक जितेन्द्रिया और व्यवस्थापिका होती हैं।
यह उनके गुण अनुकरणीय हैं।
परन्तु दु:ख की बात की धर्म शास्त्र लिखने वाले पुरुषों ने स्त्रीयों के दोषों को ही देखा है गुणों को नहीं यही उनका पूर्वदुराग्रह उनकी विद्वत्ता पर कलंक है।
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प्रस्तुति करण:-
यादव योगेश कुमार रोहि-
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