भगवान को मान कह्यो तबही
कवि स्याम कहे अति ही चितसौं।
इन सीख लई गति गामन ते सुर भामन ते कि किधौं कितसौ।
अब मोहि इहै समझ्यो सु परै
जब कान्ह सिखै इनहूँ तितसौं।
एक नचै एक गावत गीत ।
बजावत ताल दिखावत भावन।
रास बिसै अति ही रससौं।
सन रिझाबत काज सब मनभावन ।
चाँदनी सुन्दर रात बिसै
कवि स्याम कहै सुबिसै रससावन।
ग्वारनिया तजिकैं पुर को ।
मिलि खेल करै रस नीक ठिठावन
रुखनतें रस चुवन लाग।
झरै झरना गिरि ते सुखदाई।
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