–एक आवेश हो मन में और चंचलता क्षण क्षण
समझो तूफानों का दौर है , होगी बड़ी गड़बड़।।
ये उमंग और रंगत , लगें मोहक नजारे
सयंम की राह हे मन पकड़ ! ,इधर उधर 'न जारे ।।
–सच बयान करने वाले मुख नहीं
दुनियाँ में अब महज चहरे होते हैं ।
केवल शब्दों की ही भाषा सुनने वाले ।
लोग तो अक्सर बहरे होते हैं ।।
अरे तेरी आँखें जो कहती हैं पगले ।
वो भाव ही असली तेरे होते हैं।
उमड़ आते हैं वे एकदम चहरे पर
बर्षों से दिल में जो ठहरे होते हैं ।।
दर्द देते हमको वीरानी राहों में "रोहि" अक्सर
तन्हाई में अपने जब कहीं बसेरे होते हैं ।
अपमान हेयता की चोटों के जख़्म ,
जो न भरने वालेे और बड़े गहरे होते हैं ।।
यादव योगेश कुमार 'रोहि' ...... 8077160219
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