रविवार, 29 सितंबर 2019

दुर्गा का सुमेरियन रूप


पुराणों में दुर्गा को यादवी अर्थात् यादव कन्या कहा -
प्रस्तुत हैं उसके कुछ पौराणिक सन्दर्भ :-👇
प्रथम गायत्री माता के विषय में देखें
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                  ।सावित्र्युवाच।
लक्ष्मीर्नाद्यापिचायातिसतीनैवेहदृश्यते।बृहदाग्रायणेहूताशक्राणीगच्छतीत्विह।

नाहमेकाकिनीयास्येयावन्नायान्तिताःस्त्रियः॥ब्रूहिगत्वाविरिञ्चिन्तंतिष्ठत्विहृमुहूर्त्तकम्॥

वदमानांतथाध्वर्य्युस्त्यक्त्वादेवमुपागमत्।सावित्रीव्याकुलादेवीप्रसक्तागृहकर्म्मणि॥

सख्योनाभ्यागतायावत्तावन्नागमनंमम।एवमुक्तोऽस्मिवैदेव !कालश्चाप्यतिवर्त्तते॥

यश्चयोम्यंभवेदत्रतत्कुरुष्वपितामह !।
एवमुक्तेतदावाक्यंकिञ्चित्कोपसमन्वितः॥

पत्नीञ्चान्यांमदर्थन्तुशीघ्रंत्वञ्चसमानय।प्रवर्त्ततेयथायज्ञःकालहीनोनजायते॥

तथाशीघ्रंविधेहित्वंनारींकाञ्चिदुपानय।एवमुक्तस्तथाशक्रोगत्वासर्व्वंधरातलम्॥

स्त्रियोदृष्टास्तुयास्तेनसर्व्वास्तास्तुपरिग्रहाः

आभीरकन्यासुरूपासुभाषाचारुलोचना
॥ददर्शतांसुचार्व्वङ्गींकमलायतलोचनाम्।

कासिकस्यकुतश्चत्वमागतासुभ्रु !
कथ्यताम्॥
एकाकिनीकिमर्थञ्चवीथिमध्येऽवतिष्ठसे।रूपान्विताचसाकन्याशक्रंप्रोवाचवेपती॥गोपकन्याअहंवीर !

विक्रेतुमिहगोरसम्।समागताघृतादीनांप्रगृह्णीष्वयथेप्सितम्॥

एवमुक्तस्तदाशक्रोगृहीत्वातांकरेदृढम्।आनीयतांविशालाक्षींयत्रब्रह्माव्यवस्थितः॥

कमलाक्षींस्फुरद्वाणींपुण्डरीकनिभेक्षणाम्।गान्धर्व्वेणतदाब्रह्माग्रहीतुंमनआदघे॥

प्रभुत्वमात्मनोदानेगोपकन्नाप्यमन्यत।यदेवंमांसुरूपत्वादिच्छत्यादातुमाग्रहात्॥

नास्तिसीमन्तिनीकाचिन्मत्तोधन्यतरायतः।अनेनाहंसमानीतायस्यदृग्गोचरंगता॥

एवंचिन्तापरादीनायावत्सागोपकन्यका।भवत्येषामहाभागागायत्त्रीनामतःप्रभो !

तावदेवमहाविष्णुःप्रोक्तवानिदमुत्तमम्।
अनुग्रहेणदेवेश !

अस्याःपाणिग्रहंकुरु॥गन्धर्व्वेणविवाहेनउपयेमेषितामहः॥

          ॥अस्याध्यानंयथा --
सन्दर्भ - ग्रन्थ👇
पद्म पुराण - सृष्टिखण्ड - स्कन्द पुराण । अग्नि पुराण आदि।

   (अब देखें दुर्गा के विषय में पौराणिक सन्दर्भ)

परन्तु हद की सरहद तो तब खत्म हो गयी जब
इस सुमेरियन कैनानायटी आदि संस्कृतियों में द्रुएगा (Druega) नाम से विख्यात ईश्वरीय सत्ता को
कुछ  रूढ़िवादी मानवों ने अपने पूर्वदुराग्रहों के द्वारा
अपना अशालीनताओं से पूर्ण मनोवृत्ति के अनुकूल चित्रित करने की असफल चेष्टा की !

       जिसे भारतीय पुराणों मे दुर्गा कहा गया ।

शारदीय नवरात्रि के  प्राकृतिक परिवर्तन के प्रतिनिधि पर्व पर  जब सांस्कृतिक आयोजन रूढ़िवादी श्रृद्धा से प्रवण होकर देवता विषयक बन गये   तो जगह-जगह भव्य पाण्डाल सजाये जाने लगे हैं ।

  और वहाँ जोर-जोर से "जय महिषासुर मर्दिनी" के जयकारे लगाये जाते हैं !

कुछ अहंवादी परोक्ष विवादी  जान्यवर  कहते हैं कि दुर्गा वंगाल वैश्या थी और उसने महिषासुर को नौंवी रात धोखे से मार दिया तो मूर्ख चन्द से मेरा प्रश्न है कि
नव दुर्गा का पर्व साल में दो वार क्यो मनाया जाता है ?
क्योंकि महिषासुर तो एक ही वार किसी विशेष ऋतु और विशेष महीने में ही मारा होगा ।
परन्तु ये परोक्ष विवादी जानवर स्वयं को ज्ञान वर
सिद्ध करें मेरे इस प्रश्न का उत्तर देकर
अन्यथा भौंकता बन्द कर दें
क्यों कि किसी की श्रृद्धा पर आघात करना भी जुल्म है ।

और महिषासुर कार्तिक में शरद ऋतु में मारा था ।
या चैत्र में वसन्त ऋतु में
यदि बुद्धि हो तो दुर्गा को वैश्या कहने वाले जान्यवर मनहूस एकजुट होकर इस प्रश्न उत्तर दें !

क्योंकि नव दुर्गा का पर्व वर्ष में दो वार मानाया जाता है।

कुछ रूढ़िवादी प्रमाण प्रस्तुत करने लगे कि दुर्गा आदिवासी महषासुर की हत्यारी थी।

वास्तव में ये मत उन रूढ़िवादी भ्रान्त-चित्त महामानवों का है ।
जो केवल अपने प्रतिद्वन्द्वी की बुराई में अच्छाई का आविष्कार करते हैं ।

परन्तु दुर्गा प्राकृतिक शक्तियों की अधिष्ठात्री देवता है विशेषत: ऋतु सम्बन्धित गतिविधियों की ।
इस विषय में सुमेरियन देवी स्त्री अथवा ईष्टर का वर्णन भी है ।

और इस कारण से वासन्तिक नवदुर्गा शब्द सारदीय नव रात्रि के समानान्तरण है ।

यद्यपि कथाओं में मिथकीयता का समावेश उन्हें चमत्कारिक बना देता है ।

रूढ़िवादी धर्मावलम्बी व्यक्तियों के अनुसार -

नवरात्रि इसीलिये मनायी जाती है ; क्योंकि विश्वास है कि दुर्गा ने इसी नौ दिनों में युद्ध करके महिषासुर का वध किया था ।

अन्वेषणों में अपेक्षित यह बात  है ; कि आखिर तथ्यों के क्या ऐतिहासिक प्रमाण है ?

कि कोई दुर्गा थी, या कोई महिषासुर था ?

यद्यपि भारतीय पुराणों में दुर्गा को महामाया एवं महाप्रकृति माना जाता है ।

जो यादव अथवा गोपों की कन्या के रूप में प्रकट होती है ।

और गायत्री भी इसी प्रकार नरेन्द्र सेन आभीर (अहीर) की कन्या है जो वेदों की अधिष्ठात्री देवी है ।

महिषासुर के विषय में जो भी  जानकारी पौराणिक कथाओं में है, वह मिथक ही प्रतीत होती है!
क्यों कि

देवीपुराण के पञ्चम् स्कन्द में एक कथा आती है ; कि असुरों के राजा रम्भ को अग्निदेव ने वर दिया कि तुम्हारी पत्नी के  एक पराक्रमी पुत्र का जन्म  होगा।

जब एक दिन रम्भ भ्रमण कर रहा था तो उसने एक नवयौवना उन्मत्त  महिषी को  देखा ।

रम्भ का मन उस भैंस पर आ गया और उसने उससे सम्भोग किया ! तब कालान्तरण में रम्भ के वीर्य से गर्भित होकर उसी भैंस( महिषी ) ने महिषासुर को जन्म दिया !

और इस महिषासुर को यादव बताने वाले भ्रमित हैं ।

यद्यपि असुर असीरियन जन-जाति का भारतीय संस्करण है ।

जो साम की सन्तति( वंशज) होने से सोमवंशी हैं ।

परन्तु महिषासुर जैसे काल्पनिक पात्र को हम कैसे यादव मानें ।

क्यों कि इसकी जन्म कथा ही स्वयं में हास्यास्पद व अशालीनताओं से पूर्ण मनोवृत्ति की द्योतक है ।

महिषासुर की काल्पनिक कथा का अंश आगे इस प्रकार है ।👇

कुछ दिनों बाद जब वह महिषी ग्रास चर रही थी तो अकस्मात्  एक भयानक भैसा कहीं आ गया, और वह उस भैंस  से मैथुन करने के लिये उसकी ओर दौड़ा...
रम्भ भी वहीं था, उसने देखा कि एक भैसा मेरी भैंस से  सम्भोग करने का प्रयास कर रहा है!

तो उसकी स्वाभिमानी वृत्ति जाग गयी और वह भैंसे से भिड़ गया।
फिर क्या था, उस भैसे की नुकीली सींगों से रम्भ मारा गया, और जब रम्भ के सेवकों ने उसके शव को चिता पर लेटाया तो उसकी पत्नी पतिव्रता भैंस भी चिता पर चढ़कर रम्भ के साथ सती हो गयी।👅

वास्तव में सतीप्रथा राजपूती काल की उपज है ।
यह कथा भी उसी समय की है ।

यह विचार कर भी आश्चर्य होता है कि किसी जमाने मे भारत मे इतनी पतिव्रता भैंस भी हुआ करती थी जो अपने पति के साथ आत्मदाह कर लेती थी।
👅
अस्तु !... ऐसे ही अनेक मनगड़न्त व काल्पनिक कथाओं का सृजन राजपूती काल में हुआ ।

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महिषासुर से सम्बन्धित एक दूसरी कथा वराहपुराण अध्याय-95 मे भी मिलती है,
जो निम्न है-

विप्रचित नामक दैत्य की एक सुन्दर कन्या थी माहिष्मती! माहिष्मती मायावी-शक्ति से वेष बदलना जानती थी ।

एक दिन वह अपनी सखियों के साथ घूमती हुई एक पर्वत की तराई मे आ गयी, जहाँ एक सुन्दर उपवन था और एक ऋषि (सुपार्श्व) वहीं तप कर रहे थे।

माहिष्मती उस मनोहर उपवन मे रहना चाहती थी, उसने सोचा कि इस ऋषि को डराकर भगा दूँ और अपनी सखियों के साथ यहाँ कुछ दिन विहार करूँ!
यही सोचकर माहिष्मती ने एक भैंस का रूप धारण किया और सुपार्श्व ऋषि को पास आकर उन्हे डराने लगी! ऋषि ने अपनी योगशक्ति से सत्य को जान लिया और माहिष्मती को श्राप दिया कि तू भैंस का रूप धारण करके मुझे डरा रही है तो जाऽऽ ...
मै तुझे श्राप देता हूँ कि तू सौ वर्षों तक इसी भैंस-रूप मे रहेगी!

अब माहिष्मती भैंस बनकर नर्मदा तट पर रहने लगी; वहीं नजदीक सिन्धुद्वीप नामक एक ऋषि तप करते थे। एक दिन जब ऋषि स्नान करने के लिये नर्मदा नदी के तट पर गये तो उन्होने देखा कि वहाँ एक सुन्दर दैत्यकन्या इन्दुमती नंगी होकर स्नान कर रही थी।

उसे नग्नावस्था मे देखकर ऋषि का जल मे ही वीर्यपात हो गया!
माहिष्मती ने उसी जल को पी लिया, जिससे वह गर्भवती हो गयी और कुछ महीनों बाद इसी माहिष्मती भैंस ने महिषासुर को जन्म- दिया ।

महिषासुर की कथा केवल इन्ही दो पुराणों में मिलती है, और दोनो के अनुसार वह भैंस के पेट से पैदा हुआ।

साधारण बुद्धि तो यह मानने को तैयार नही कि एक भैंस किसी व्यक्ति के भ्रूण को जन्म दे सकती है!
अतः इससे स्पष्ट है कि पौराणिक कहानी तो पूरी तरह से काल्पनिक है।

अब बड़ा सवाल यह होता है कि क्या महिषासुर काल्पनिक है!

इतिहासकारों ने भी महिषासुर पर अलग-अलग राय दी है!
कोसम्बी कहते थे कि वह म्हसोबा (महोबा) का था, तो मैसूर के निवासी कहते हैं कि मैसूर का पुराना नाम ही महिष-असुर ही था !

मैसूर मे महिषासुर की एक विशालकाय प्रतिमा भी है।

रही बात दुर्गा की तो उनके बारें मे भी पढ़े तो कुछ अता-पता नही चलता!

एक पुराण कहता है कि दुर्गा कात्यायन ऋषि की पुत्री थी।

दूसरा कहता है कि दुर्गा मणिद्वीप मे रहने वाली जगदम्बा ही थी।

यही नही.. कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि वह चोलवंश की राजकुमारी थी।

अगर दुर्गा को जानने के लिये देवीपुराण पढ़ो तो पूरी पौराणिक-मान्यताऐं ही पलट जाती है!

देवीपुराण मे लिखा है कि अब तक राम-कृष्ण समेत जितने भी अवतार हुये हैं, वह सब दुर्गा के थे, विष्णु के नही!
बल्कि यह पुराण तो कहता है कि विष्णु भी दुर्गा की प्रेरणा से ही जन्मे!

दुर्गा चालीसा मे भी नरसिंह अवतार दुर्गा का कहा गया है।
ये निम्न चौपाई देखें-

"धरा रूप नरसिंह को अम्बा।
प्रकट भई फाड़ कर खम्बा।।
रक्षा करि प्रहलाद बचायो।
हिरनाकुश को स्वर्ग पठायो।।"

जहाँ तक मेरा मानना है तो यह कथा पाखण्ड ही हैं और दुर्गा को प्रतिष्ठित करना या पूजना बेकार मे समय की बर्बादी के अलावा और कुछ नही है!

वैसे भी जो गलती हमारे पूर्वजों ने अज्ञानतावश की है, उसे हम परम्परा मानकर आखिर कब तक दोहरा रहेंगे।

नना ( दुर्गा )वैदिक सन्दर्भों में तो इनन्ना Inanna सुमेरियन सभ्यता में है ।

यह ईश्वरीय शक्ति को पुनर्निदेशित करती है
इनान्ना एक प्राचीन मेसोपोटामियन देवी है जो प्यार, सौंदर्य, लिंग, इच्छा, प्रजनन, युद्ध, न्याय और राजनीतिक शक्ति से जुड़ी है।

उनकी मूल रूप से सुमेर में पूजा की गई थी और बाद में उन्हें अक्कदार नाम के तहत अक्कडियन , बाबुलियों और अश्शूरियों में भी पूजा की थी।

इसे रानी " के रूप में जाना जाता था; और उरुक शहर में ईन्ना मंदिर की संरक्षक देवी थी, जो उसका मुख्य पंथ केंद्र था।
वह वीनस ग्रह से जुड़ी थी।

और उसके सबसे प्रमुख प्रतीकों में शेर और आठ-बिन्दु वाले तारे शामिल थे ।

उसका पति देवम डुमुज़िद (जिसे बाद में तमुज़ के नाम से जाना जाता था) कहा गया ।

और उसका सुक्कल , या व्यक्तिगत परिचर, देवी निनशूबुर (जो बाद में पुरुष देवता पाप्सुकल बन गया) था।

इनान्ना (ईश्वर) स्वर्ग की रानी प्यार, सौंदर्य, लिंग, इच्छा, प्रजनन, युद्ध, न्याय और राजनीतिक शक्ति की अधिष्ठात्री देवी थी ।

निप्पपुर में इनन्ना के मंदिर से एक पत्थर की पट्टिका का टुकड़ा प्राप्त हुआ है जो सुमेरियन देवी, संभवतः इनान्ना ( 2500 ईसा पूर्व) का दिखाई देता  है ।

हित्ताइट पौराणिक कथाओं में: तेशब (भाई) समकक्ष ग्रीक समकक्ष Aphrodite हिंदू धर्म समकक्षदुर्गा कनानी समकक्ष Astarte बेबीलोनियन समकक्षIshtar इनुना की पूजा कम से कम उरुक काल (सदी 4000 ईसा पूर्व -से 3100 ईसा पूर्व) के रूप में की गई थी।

लेकिन अक्कड़ के सरगोन की विजय से पहले उनकी छोटी पंथ थी।

सर्गोनिक युग के बाद, वह मेसोपोटामिया के मंदिरों के साथ सुमेरियन बहुदेवों  में सबसे व्यापक रूप से पूजा देवताओं में से एक बन गई।

इनाना-ईश्वर की पंथ, जो समलैंगिक ट्रांसवेस्टाइट पुजारी और पवित्र वेश्यावृत्ति समेत विभिन्न यौन संस्कारों से जुड़ी हो सकती है।

पूर्वी सेमिटिक-भाषी  लोगों द्वारा जारी की गई थी जो इस क्षेत्र में सुमेरियनों का उत्तराधिकारी बन गए थे।

वह अश्शूरियों द्वारा विशेष रूप से प्यारी थी, जिसने उन्हें अपने स्वयं के राष्ट्रीय देवता अशूर के ऊपर रैंकिंग में अपने देवता में सर्वोच्च देवता बनने के लिए प्रेरित किया ।

इनान्ना-ईश्वर को हिब्रू बाइबल में बताया गया है और उसने फीनशियन देवी स्त्री (एस्त्रेत) को बहुत प्रभावित किया, !
जिसने बाद में ग्रीक देवी एफ़्रोडाइट के विकास को प्रभावित किया।

और ईसाई धर्म के मद्देनजर पहली और छठी शताब्दी ईस्वी के बीच धीरे-धीरे गिरावट तक उसकी पंथ बढ़ती रही,
हालांकि यह अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ऊपरी मेसोपोटामिया के कुछ हिस्सों में उसके अवशिष्ट रूप बचे।
इनना किसी भी अन्य सुमेरियन देवता की तुलना में अधिक मिथकों में दिखाई देता है।

उन्हें अन्य देवताओं के क्षेत्र पर ले जाना शामिल है। माना जाता था कि वह पुरुषों को चुरा लेती थीं, जो ज्ञान के देवता एनकी से सभ्यता के सभी सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती थीं।

माना जाता था कि वह आकाश के देवता ए से ईन्ना मंदिर ले गई थी। अपने जुड़वां भाई उतु (जिसे बाद में शमाश के नाम से जाना जाता था) के साथ, इनाना दिव्य न्याय का प्रवर्धक था;

गिलगमेश के महाकाव्य के मानक अक्कडियन संस्करण में, ईश्वर को एक खराब और गर्म सिर वाली महिला फेटेल के रूप में चित्रित किया गया है, जो गिलगाम की मांग करता है।

जब वह मना कर देता है, तो वह स्वर्ग की बुल को उजागर करती है, जिसके परिणामस्वरूप एन्किडू और गिलगमेह की मृत्यु दर उसके मृत्यु के साथ होती है। इनान्ना-ईश्वर की सबसे मशहूर मिथक कुर , प्राचीन सुमेरियन अंडरवर्ल्ड , कुर से लौटने और वापस लौटने की कहानी है जिसमें वह अंडरवर्ल्ड की रानी, ​​अपनी बड़ी बहन ईरेस्किगल के डोमेन पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करती है,।

अत: दुर्गा की अवधारणा सुमेरियन पुरालेखों में वर्णित
स्त्री , नना अथवा द्रुएगा का पर्वर्तित रूप है ।

Ishtar ( स्त्री )
मेसोपोटामियन देवी है
: यह लेख एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के संपादक द्वारा लिखित है।
पिछले अद्यतन: 28 अगस्त, 2019 अनुच्छेद इतिहास देखें
वैकल्पिक शीर्षक: इन्ना
मेसोपोटामियन धर्म में ईशर (अशेरा)(अक्कादियन) पुरालेखों में  तो  सुमेरियन लेखों इन्ना (नना), युद्ध की देवी और लैंगिक  प्रेम की देवी है ।

 ईशर पश्चिम सेमिटिक देवी अस्तेर के अकाडियन समकक्ष हैं।

 सुमेरियन पैन्थियॉन (बहुदेववाद) में एक महत्वपूर्ण देवी इन्ना की पहचान ईशर के साथ हुई थी।

लेकिन यह अनिश्चित है कि क्या इन्नना सेमिटिक मूल की है या नहीं,
जैसा कि अधिक संभावना है, ईशर के लिए उसकी समानता की वजह से दोनों की पहचान की जा सकती है।

इन्ना की आकृति में कई परंपराओं को जोड़ दिया गया लगता है: जैसे
वह कभी आकाश देव की बेटी है, तो कभी उसकी पत्नी;
अन्य मिथकों में
वह नन्ना, चंद्रमा के देवता या पवन देवता एनिल की बेटी है।
अपनी शुरुआती अभिव्यक्तियों में वह भंडारगृह से जुड़ी हुई थीं और इस तरह उन्हें खजूर, ऊन, मांस, और अनाज की देवी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया; भंडारगृह उसके प्रतीक थे।
श्री का रूपान्तरण यहीं से लक्ष्मी के रूप में हुआ ।

वह बारिश और गरज की देवी भी थी - एक आकाश देवता के साथ उसके संबंध के लिए अग्रणी - और अक्सर शेर के साथ चित्रित किया गया था,
जिसकी गर्जन गड़गड़ाहट से मिलती-जुलती थी।
भारतीय पुराणों मे यही रूप दुर्गा का है

युद्ध में उसके लिए जिम्मेदार शक्ति तूफान के साथ उसके संबंध से उत्पन्न हो सकती है।

 इन्ना भी एक उर्वरता की आकृति थी, और, भंडार गृह की देवी के रूप में और
भगवान दुमूज़ी-अमौशमगलाना की दुल्हन, जिसने खजूर के पेड़ की वृद्धि और मादकता का प्रतिनिधित्व किया, उसे युवा, सुंदर और आवेगी के रूप में चित्रित किया गया - कभी भी मददगार के रूप में या मां
उन्हें कभी-कभी (लेडी ऑफ द डेट क्लस्टर्स )
के रूप में जाना जाता है।

सुमेरियन परम्परा से ईशर की प्राथमिक विरासत प्रजनन क्षमता की भूमिका है;
वह, हालांकि, एक और अधिक जटिल चरित्र में, मृत्यु और आपदा, विरोधाभासी धारणाओं और ताकतों की एक देवी - आग और आग-शमन, आनन्द और आँसू, निष्पक्ष खेल और दुश्मनी से मिथक में घिरा हुआ है।

 अकाडियन ईशर भी एक हद तक, एक सूक्ष्म देवता है, जो शुक्र ग्रह से जुड़ा हुआ है।

शमाश के साथ, सूर्य देव, और चंद्रमा भगवान, वह एक माध्यमिक सूक्ष्म त्रय का निर्माण करते हैं।

 इस अभिव्यक्ति में उसका प्रतीक एक चक्र के भीतर 6, 8, या 16 किरणों वाला एक तारा है।
शुक्र की देवी के रूप में, शारीरिक प्रेम में प्रसन्न, ईशर जनसंपर्क के रक्षक थे
शगुन और आश्रय के संरक्षक।

 उसकी पंथ पूजा में शायद मंदिर की वेश्यावृत्ति शामिल थी।

 प्राचीन मध्य पूर्व में उसकी लोकप्रियता सार्वभौमिक थी, और पूजा के कई केंद्रों में उसने संभवतः
कई स्थानीय देवी-देवताओं की उपासना की थी।

 बाद के मिथक में वह एन, एनिल और एनकी की शक्तियों को लेते हुए क्वीन ऑफ़ द यूनिवर्स के रूप में जानी जाती थी।

एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के संपादक
यह लेख एडम ऑगस्टीन, प्रबंध संपादक द्वारा हाल ही में संशोधित और अद्यतन किया गया था।

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ANCIENT शहर, IRAQ
द्वारा लिखित: एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के संपादक
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वैकल्पिक शीर्षक: ऐश-शर्क़, असुर, क़ालत शरक़ै, शरक़, क़ालत
अशूर, ने उत्तरी इराक में तिग्रिस नदी के पश्चिमी तट पर स्थित असीरिया की प्राचीन धार्मिक राजधानी, कलूरत शरक़, असुर को भी याद किया। वाल्टर आंद्राई के नेतृत्व में एक जर्मन अभियान (1903–13) द्वारा वहां पहले वैज्ञानिक उत्खनन किए गए थे। अशूर शहर, देश के लिए और प्राचीन अश्शूरियों के प्रमुख देवता पर लागू होने वाला एक नाम था।

आशूर, इराक
नवंबर 2008 में इराक के आशूर के खंडहर में अमेरिकी सैनिक।
अमेरिकी सेना
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