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क्षत्रात्करणकन्यायां राजपुत्रो बभूव ह ।।
राजपुत्र्यां तु करणादागरीति प्रकीर्तितः ।।
~ब्रह्मवैवर्तपुराणम्/खण्डः १ (ब्रह्मखण्डः)/अध्यायः १० श्लोक ११०
क्षत्रिय पुरुष से करण कन्या में जो पुत्र पैदा होवे उसे राजपूत कहते हैं।
मिश्रित अर्थात् दोगली जाति की स्त्री ।
एक जाति ।
विशेष—ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार करण वैश्य और शूद्रा से उत्पन्न है और लिखने का काम करते थे । तिरहुत में अब भी करण पाए जाते हैं ।
●वैश्य पुरुष और शूद्र कन्या से उत्पन्न हुए को करण कहते हैं और ऐसी करण कन्या से क्षत्रिय के सम्बन्ध से राजपुत्र (राजपूत) पैदा हुआ।
देवतायाञ्च । “सुदामा नाम गोपालः श्रीमान् सुन्दरठक्वुरः” अनन्तसंहिता ।
इति वाचस्पत्ये ठकारादिशब्दार्थसङ्कलनम् ।
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गुजरात में भी ठाकुर ब्राह्मण समाज की उपाधि है ।
यद्यपि ठाकरे शब्द महाराष्ट्र के कायस्थों का वाचक है, जिनके पूर्वजों ने कभी मगध अर्थात् वर्तमान विहार से ही प्रस्थान किया था ।
कायस्थों का कुछ साम्य यादवों के मराठी जाधव कबींले से है ।
जो जादव तथा जादौन के रूप में है ।
परन्तु जादौन बंजारे समुदाय का रूपान्तरण है।
जो जैसलमैर और बीकानेर में बहुतायत से विद्यमान थे ।
यद्यपि इस ठाकुर शब्द का साम्य तमिल शब्द (तेगुँर )से भी प्रस्तावित हैै ।
यद्यपि ठाकुर शब्द तुर्की आरमेनियन व फारसी भाषाओं का शब्द है ।
जिसका रूप है तक्वुर जो जमींदार अथवा जागीरदार का वाचक है।
और ठाकुर शब्द तुर्कों और ईरानियों के
साथ भारत आया ।
ठाकुर जी सम्बोधन का प्रयोग वस्तुत : स्वामी भाव को व्यक्त करने के निमित्त है ।
न कि जन-जाति विशेष के लिए ।
कृष्ण को ठाकुर सम्बोधन का क्षेत्र अथवा केन्द्र नाथद्वारा ही प्रमुखत: है।
यहाँ के मूल मन्दिर में कृष्ण की पूजा ठाकुर जी की पूजा ही कहलाती है।
यहाँ तक कि उनका मन्दिर भी हवेली कहा जाता है।
विदित हो कि हवेली (Mansion)और तक्वुर (ठक्कुर)" A person who wearer of the crown is called Takvor " दौनों शब्दों की पैदायश ईरानी भाषा से है
कालान्तरण में भारतीय समाज में ये शब्द रूढ़ हो गये ⛺⛺.🌲☘🌴 🌉 ..................................
पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय के देशभर में स्थित अन्य मन्दिरों में भी भगवान को ठाकुर जी कहने का परम्परा रही है। __________________________________________ तुर्किस्तान में (तेकुर अथवा टेक्फुर )परवर्ती सेल्जुक तुर्की राजाओं की उपाधि थी । यहाँ पर ही इसका जन्म हुआ । _________________________________________ "तब निस्सन्देह इस्लाम धर्म का आगमन नहीं हो पाया था मध्य एशिया में ।
वहाँ सर्वत्र ईसाई विचार धारा ही प्रवाहित थी , केवल छोटे ईसाई राजा होते थे ।
ये स्थानीय बाइजेण्टाइन ईसाई सामन्त (knight) अथवा माण्डलिक ही होते थे तब तुर्की भाषा में इन्हें तक्वुर (ठक्कुर) ही कहा जाता था ! उस समय एशिया माइनर (तुर्की) और थ्रेस में ही इस प्रकार की शासन प्रणाली होती थी "
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आइए देखें--- ठाकुर शब्द के विशेष सन्दर्भों को तुर्की इतिहास के आयने में -----
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" Tekfur was a title used in the late Seljuk and early Ottoman periods to refer to independent or semi-independent minor Christian rulers or local Byzantine governors in Asia Minor and Thrace."
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Origin and meaning of thakur- (ठाकुर शब्द की व्युत्पत्ति- और अर्थ )
The Turkish name, Tekfur Saray, means "Palace of the Sovereign" from the Persian word meaning
"Wearer of the Crown". It is the only well preserved example of Byzantine domestic architecture at Constantinople. The top story was a vast throne room. The facade was decorated with heraldic symbols of the Palaiologan Imperial dynasty and it was originally called the House of the Porphyrogennetos - which means "born in the Purple Chamber". It was built for Constantine, third son of Michael VIII and dates between 1261 and 1291.
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From Middle Armenian թագւոր (tʿagwor), from Old Armenian թագաւոր (tʿagawor).
Attested in Ibn Bibi's works......
(Classical Persian) /tækˈwuɾ/
(Iranian Persian) /tækˈvoɾ/
تکور • (takvor) (plural تکورا__ن_ हिन्दी उच्चारण
ठक्कुरन) (takvorân) or تکورها (takvor-hâ)
alternative form of
Persian
in Dehkhoda Dictionary
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tafur on the Anglo-Norman On-Line Hub
Old Portuguese ( पुर्तगाल की भाषा)
Alternative forms (क्रमिक रूप )
takful
Etymology (शब्द निर्वचन)-----
From Arabic تَكْفُور (takfūr, “Armenian king”), from Middle Armenian թագւոր (tʿagwor, “king”), from Old Armenian թագաւոր (tʿagawor, “king”), from Parthian. ( एक ईरानी भाषा का भेद)
Cognate with Old Spanish tafur (Modern tahúr).
Pronunciation
: /ta.ˈfuɾ/
संज्ञा -
tafurm
gambler
13th century, attributed to Alfonso X of Castile, Cantigas de Santa Maria, E codex, cantiga 154 (facsimile):
Como un tafur tirou con hũa baeſta hũa seeta cõtra o ceo con ſanna p̈ q̇ pdera. p̃ q̃ cuidaua q̇ firia a deos o.ſ.M̃.
How a gambler shot, with a crossbow, a bolt at the sky, wrathful because he had lost. Because he wanted it to wound God or Holy Mary.
Derived terms
tafuraria ( तफ़ुरिया )
Descendants
Galician: tafur
Portuguese: taful Alternative forms
թագվոր (tʿagvor) हिन्दी उच्चारण :- टेगुर. बाँग्ला टैंगॉर रूप...
թագուոր (tʿaguor)
Etymology( व्युत्पत्ति)
From Old Armenian թագաւոր (tʿagawor).
Noun
թագւոր • (tʿagwor), genitive singular թագւորի(tʿagwori)
king
bridegroom (because he carries a crown during the wedding)
Derived terms
թագուորանալ(tʿaguoranal)
թագւորական(tʿagworakan)
թագւորացեղ(tʿagworacʿeł)
թագվորորդի(tʿagvorordi)
Descendants
Armenian: թագվոր (tʿagvor)
References
Łazaryan, Ṙ. S.; Avetisyan, H. M. (2009), “թագւոր.....
तमिल की एक बलूच शाखा है ;बलूच ईरानी और मंगोलों के सानिध्य में भी रहे है ।
जो वर्तमान बलूचिस्तान की ब्राहुई भाषा है ।
परन्तु सिंह और ठाकुर लिखने की परम्पराऐं उन राजपूतों के लिए हैं , जो पहले शूद्र रूप में विदेशी थे ,अर्थात् शक और सीथियन (Scythian) हूण जो ईरानी मूल के थे ।
और तुर्कों के लिए भी ब्राह्मण ने ठाकुर सम्बोधन किया ।
उनकी दृष्टि में ये शूद्र ही थे ।
क्योंकि तुर्की सरदार स्वयं को तक्वुर कहते ही थे ।
राजस्थान के आबू पर्वत पर छठी सदी ईसवी में जिनका ब्राह्मणों द्वारा अपने धर्म की रक्षा के लिए क्षत्रिय करण किया गया था ।
वे हूण , कुषाण ,तुर्क सीथियन आदि थे ...
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ये लोग ठाकुर अथवा क्षत्रिय उपाधि से विभूषित किये गये थे ।
जिसमे अधिकतर अफ़्ग़ानिस्तान के जादौन पठान भी थे, जो ईरानी मूल के यहूदीयों से सम्बद्ध थे।
यहुदह् ही यदु: रूप है ।
एेसा वर्णन ईरानी इतिहास में मिलता है ।
जादौन पठानों की भाषा प्राचीन अवेस्ता ए झन्द से निकली भाषा थी , जो राजस्थानी पिंगल डिंगल के रूप में विकसित हुई है।
,क्योंकि संस्कृत भाषा का ही परिवर्तित निम्न रूप फ़ारसी है ।
अत: सभी संस्कृत भाषा के ही शब्द हैं ।
इस्लाम धर्म तो बहुत बाद में सातवीं सताब्दी में आया ।
यहूदी वस्तुतः फलस्तीन के यादव ही थे ।
ईसवी सन् ५७१ में तो इस्लाम मत के प्रवर्तक सलल्लाहू अलैहि वसल्लम शरवर ए आलम मौहम्मद साहिब का जन्म हुआ है ।
इजराइल में अबीर (Abeer)इन यहूदीयों की ही एक युद्ध -प्रिय शाखा है ।
जिसका मिलान भारतीय अहीरों से है ।
भारतीय जादौन समुदाय अहीरों को अपने समुदाय में नहीं मानता है ।
जो अज्ञानता जनक भ्रान्तपूर्ण मान्यता है ।
जाधव, जादव, तथा जादौन सभी यादव शब्द से विकसित हुए ।
जो यहूदीयों में जूडान (Joodan )है ।
मराठी शब्द जाधव भी इसी से विकसित हुआ तथा इससे (जाटव शब्द बना , यह घटना सन् १९२२ समकक्ष की है ।
साहू जी महाराज का वंश जादव (जाटव) था ।
ये शिवाजी महाराज के पौत्र तथा शम्भु जी महाराज के पुत्र थे ।
निश्चित रूप से इनमें से मगध के पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायीे ब्राह्मणों ने कुछ को शूद्र तथा कुछ को क्षत्रिय बना दिया , जो उनके संरक्षक बन गये वे क्षत्रिय बना दिये गये ।
और जो विद्रोही बन गये वे शूद्र बना दिये --
संस्कृत भाषा में बुद्ध के परवर्ती काल में ठक्कुर: शब्द का प्रयोग द्विज उपाधि रूप में था ।
जो ब्राह्मण क्षत्रिय तथा वैश्य वर्ग का वाचक था ।
परन्तु ब्राह्मणों ने इस शब्द का प्रयोग द्विज उपाधि के रूप में स्वयं के लिए किया ।
जैसे संस्कृत भाषा के ब्राह्मण कवि गोविन्द ठक्कुर: --- काव्य प्रदीप के रचयिता ।
वाचस्पत्यम् संस्कृत भाषा कोश में देव प्रतिमा जिसका प्राण प्रतिष्ठा की गयी हो , उसको ठाकुर कहा जाता है । ध्यान रखना चाहिए कि पुराणों में ठाकुर शब्द प्रयोग कहीं नहीं है ।
हरिवंश पुराण में वसुदेव और नन्द दौनों के लिए केवल गोप शब्द का प्रयोग है ।
इतिहास वस्तुतः एकदेशीय अथवा एक खण्ड के रूप में नहीं होता है , बल्कि अखण्ड और सार -भौमिक तथ्य होता है ।
छोटी-मोटी घटनाऐं इतिहास नहीं,
तथ्य- परक विश्लेषण इतिहास कार की आत्मिक प्रवृति है । और निश्पक्षता उस तथ्य परक पद्धति का कवच है
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सत्य के अन्वेषण में प्रमाण ही ढ़ाल हैं ।
जो वितण्डावाद के वाग्युद्ध हमारी रक्षा करता है ।
अथवा हम कहें ;कि विवादों के भ्रमर में प्रमाण पतवार हैं।
अथवा पाँडित्यवाद के संग्राम में सटीक तर्क "रोहि " किसी अस्त्र से कम नहीं हैं।
मैं दृढ़ता से अब भी कहुँगा कि ...
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक गतिविधियाँ कभी भी एक-भौमिक नहीं होती है ।
अपितु विश्व-व्यापी होती है !
क्यों कि इतिहास अन्तर्निष्ठ प्रतिक्रिया नहीं है ।
इतिहास एक वैज्ञानिक व गहन विश्लेषणात्मक तथ्यों का निश्पक्ष विवरण है ""
सम्पूर्ण भारतीय इतिहास का प्रादुर्भाव महात्मा बुद्ध के समय से है ।
प्राय: इतिहास के नाम पर ब्राह्मण समुदाय ने जो केवल कर्म-काण्ड में विश्वास रखता था । उसने काल्पनिक रूप से ही ग्रन्थ रचना की है ।
जिसमें ब्राह्मण स्वार्थों को ध्यान में रखा गया ।
केवल वेदों को छोड़ कर सब बुद्ध के समय का उल्लेख है । फिर भी वेदों में यद्यपि पुरुष सूक्त की प्राचीनता सन्दिग्ध है ,
क्योंकि इसकी भाषा पाणिनीय कालिक ई०पू० ५०० के समकक्ष है ।
भारतीय इतिहास एक वर्ग विशेष के लोगों द्वारा पूर्व- आग्रहों से ग्रसित होकर ही लिखा गया ।
आज आवश्यकता है इसके पुनर्लेखन की ।
और हमारा प्रयास भी उसी श्रृंखला की एक कणि है ।
विद्वान् इस तथ्य पर अपनी प्रतिक्रियाऐं अवश्य दें ... ------------------------------------------------------------
यह एक शोध - लिपि है जिसके समग्र प्रमाण ।
यादव योगेश कुमार 'रोहि' के द्वारा
अनुसन्धानित है ।
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"This is a research paper( Script) whose overall ratio Is researched by
Yadav Yogesh Kumar 'Rohi'
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