रविवार, 29 सितंबर 2019

आर्य्य शब्द यौद्धा अथवा वीर का वाचक है जो कृषि और गौपालन से सम्बद्ध थे । फिर ब्राह्मणों का आर्य्य होना किस प्रकार सार्थक है ।

मित्रों ब्राह्मणों का कृषि और गौपालन से क्या वास्ता ? मन्दिर तक है इन पुरोहितों का रास्ता !

मित्रों ब्राह्मणों का कृषि और गौपालन से क्या वास्ता ? मन्दिर तक है इन पुरोहितों का रास्ता !
___________.    
ब्राह्मण समाज केवल कर्म-काण्ड मूलक पृथाओं का सदीयों से संवाहक रहा है ।

 और धार्मिक क्रियाऐं करने वाला यौद्धिक गतिविधियों से परे ही रहता है ।

 वैसे ब्राह्मण शब्द सभी महान संस्कृतियों में विद्यमान है ।
 जिसका अर्थ होता है केवल और केवल " मन्त्र -पाठ करने वाला पुजारी " 
अपने जीवन के प्रारम्भिक काल में  इस शब्द की व्युत्पत्ति इसी प्रकार हुई ।
यद्यपि पण्डित , ब्राह्मण और पुरोहित जैसे धार्मिक कर्मकाण्ड मूलक व्यक्तियों के विशेषण रह हैं ।
यूरोपीय संस्कृतियों में भी ये  शब्द क्रमश pedante, Bragman तथा prophete के रूप में हैं ।
_________
 pedant = 1-Middle French pedant, pedante, from French pédanterie. 

2- Italian pedante (“a teacher, schoolmaster, pedant”), 
of uncertain origin, 
___________
profete = person who speaks for God; 
one who foretells, inspired preacher," from Old French prophete, profete "prophet, soothsayer" Modern French prophète) and directly from Latin propheta, from . Greek prophetes (Doric prophatas) "an interpreter, spokesman," especially of the gods, "inspired preacher or teacher,"
___________

 Bremin= Origin and Etymology of (brahman) in European languages Middle English (Bragman ) inhabitant of India, and German in Bremen city , 


derived from Latin Bracmanus,) from Greek (Brachman,) it too derivetion from Sanskrit brāhmaṇa of the Brahman caste, from brahman ।
 Brahman First Known Use: 15th century
_____________
वर्तमान भारतीय संस्कृति 'ने  अपने प्रव्रजन ( यात्रा) काल में अनेक संस्कृतियों जैसे- सुमेरियन ,बैबीलॉनियन असीरियन कैसाइटी ,एमोराइट , कैनानाइटी तथा मितन्नी (मितज्ञु) संस्कृतियों से अनेक देवों को स्वीकार किया ।

 यद्यपि आर्य्य शब्द इण्डो-यूरोपियन भाषाओं में तो है 'परन्तु इसका श्रोत इण्डो -सैमेटिक है देव अरि:  है ।जो सैमेटिक संस्कृतियों में एल , इलु ,अलि तथा इलाह रूपों हैं ।
पाश्चात्य इतिहास कारों'ने आर्य्य शब्द इण्डो-यूरोपियन रूप में  भारतीय और जर्मन रोमन जन-जातियों का वंशमूलक विशेषण बना दिया ।
'परन्तु जो ईरानी स्वयं असीरीयों के असुर महत्( अहुर - मज्दा ) ईश्वर के उपासक और देव संस्कृतियों के विद्रोही थे ।
आर्य्य और वीर शब्दों का प्रयोग उन्हीं के के लिए हुआ ईरान शब्द का आधार भी आर्यन शब्द है ।
'परन्तु भारतीय भाषाओं में भी आर्य्य शब्द देव संस्कृतियों के उपासकों 'ने श्रेष्ठ आचरण वाले लोगों के अर्थ में रूढ़ कर लिया ।

देव संस्कृति के उपासक आर्यों के पुरोहित तथा सर्वेसर्वा: ब्राह्मण समाज का आगमन स्वर्ग से हुआ।
अब ये स्वर्ग कहाँ था ।
इसके भौगोलिक साक्ष्यों का भी अन्वेषण किया गया ।

 परन्तु स्वर्ग तो स्वीडन का पुराना मिथकीय नाम है ।
 समग्र भारतीय पुराणों में तथा वैदिक ऋचाओं मे भी यही तथ्य प्रतिध्वनित होता है ।
 कि ब्राह्मण तो स्वर्ग से आये । 

सर्व-प्रथम हम यूरोपीय भाषा परिवार में तथा वहाँ की प्राचीनत्तम संस्कृतियों से भी यह तथ्य उद्घाटित करते हैं कि वास्तविक रूप में स्वर्ग कहाँ था ?

 और देवों अथवा सुरों के रूप में ब्राह्मणों का आगमन किस प्रकार हुआ ?

 व्युत्पत्ति-मूलक दृष्टि से कुछ उद्धरण आँग्लभाषा में हैं ।
 जिनका सरलत्तम अनुवादित रूप भी प्रस्तुत है ।

 ( ब्राह्मण शब्द का मूल व उसकी व्युत्पत्ति-) पर एक विवेचना :- 

वास्तव में ब्राह्मण शब्द वर्ण का वाचक है ।

 भारतीय पुराणों में ब्राह्मण का प्रयोग मानवीय समाज में सर्वोपरि रूप से निर्धारित किया है ।

 क्योंकि इन -ग्रन्थों को लिखने वाले भी स्वयं वही थे । संस्कृत भाषा के ब्राह्मण शब्द सम्बद्ध है ।

 , ग्रीक ("ब्राचमन" ) तथा लैटिन ("ब्रैक्समेन" ) मध्य अंग्रेज़ी का ("बागमन ") भारतीय पुरोहितों का मूल विशेषण बामन जो ब्राह्मण शब्द का तत्सम है ।
ग्रीक ब्रेगमन ।

 इसका पहला यूरोपपीय ज्ञात प्रयोग: 15 वीं शताब्दी में है ।
 भारतीय संस्कृति में वर्णित ब्राह्मणों का तादात्म्य जर्मनीय शहर ब्रेमन में बसे हुए ब्रामरों से प्रस्तावित है ।

 पुरानी फारसी भाषा में जो अवेस्ता ए झन्द से सम्बद्ध है उसमे बिरहमन शब्द ब्राह्मण शब्द का ही तद्भव है ।
 सुमेरियन तथा अक्काडियन भाषा में बरम ( Baram ) ब्राह्मण का वाचक है ।

 वैसे अरब की संस्कृतियों में "वरामक " पुजारी का वाचक है ।
 अंग्रेज़ी भाषा में ब्रेन (Brain) मस्तिष्क का वाचक है ।
क्योंकि मस्तिष्क ज्ञान का केन्द्र होता है ।

 संस्कृत भाषा में तथा प्राचीन - भारोपीय भाषा में इसका रूप ब्रह्मण है।

 मस्तिष्क का रूप :---- क्योंकि कि भारतीय मिथकों में ब्राह्मण विराट पुरुष के मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करते हैं 
यह उपमा इन शब्दों के इन्हीं अर्थों से प्रेरित थी।
अपने प्रारम्भिक काल में सही आचरण वाले नियम और संयम में रहने वाले पुरोहित जब अर्थ लोलुप  काम -लिप्सा  में लिप्त रहने लगे ।
नाम के ब्राह्मण रह गये 

 क्योंकि इन्होंने ज्ञान पर अपना एकाधिकार कर लिया ।
 _____________________________________________
 -ब्रह्मण की व्युत्पत्ति एक उपमात्मक प्रतिष्ठा के तौर पर  ऋग्वेद के १०/९०/१२ " में हुई ।

 ब्राह्मणोऽंस्य मुखमासीत् बाहू राजन्यकृत: ।
 "उरू तदस्ययद् वैश्य: पद्भ्याम् शूद्रोऽंजायत।।
 _________________________________________
 अर्थात् ब्राह्मण विराट-पुरुष के मुख से उत्पन्न हुए, और बाहों से राजन्य ( क्षत्रिय) ,उरु ( जंघा) से वैश्य तथा पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए ।
 ________________________________________________
 यद्यपि यह ऋचा पाणिनीय कालिक ई०पू० ५०० के समकक्ष है ।

 परन्तु यहाँ ब्राह्मण को विद्वान् होने से मस्तिष्क-(ब्रेन )कहना सार्थक था ।
क्योंकि सांसारिक भोगों से निरत और आध्यात्मिक साधना में रत ब्राह्मण जन कल्याण में दृढ़-व्रत थे ।

 देव संस्कृति के उपासक ब्राह्मणों ने आध्यात्मिक विद्या को कैल्ट संस्कृति के मूर्धन्य ड्रयूड( Druids) पुरोहितों से ग्रहण किया था।
ये ड्रयूडस् Druids दुनियाँ के पहले द्रव- विद–वेत्ता थे ।
इस बात को भी  कम इतिहास कार जानते हैं ।

 यूरोपीय भाषा परिवार में विद्यमान ब्रेन (Brain) शब्द उच्च अर्थ में, "चेतना और मन का अवयव," है ।

 पुरानी अंग्रेजी मेंं (ब्रेजेगन) "मस्तिष्क", तथा प्रोटो-जर्मनिक (ब्रैग्नाम ) (मध्य जर्मन (ब्रीगेन ) आदि के स्रोत भी यहीं से हैं ,।
 भौतिक रूप से ब्रेन " (कोमल तथा भूरे रंग का पदार्थ, एक कशेरुकीय कपाल गुहा है "।
 पुरानी फ़्रिसियाई और डच भाषा में यह (ब्रीन),है ।
 यहाँ इसकी व्युत्पत्ति-अनिश्चितता से सम्बद्ध, है । 
________
कदाचित भारोपीय-मूल * मेरगम् (संज्ञा)- "खोपड़ी, मस्तिष्क" तथा (ग्रीक ब्रेखमोस) "खोपड़ी के सामने वाला भाग, सिर के ऊपर") से भी इसका साम्य है । 

लेकिन भाषा वैज्ञानिक 'लिबर्मन" लिखते हैं "कि ब्रेन (मस्तिष्क) "पश्चिमी जर्मनी के बाहर कोई स्थापित संज्ञा नहीं है ।

 ..." तथा यह और ग्रीक शब्द से जुड़ा नहीं है।
 अधिक है तो शायद, वह लिखते हैं, कि इसके व्युत्पत्ति-सूत्र भारोपीय मूल के हैं ।
 जैसे( bhragno) "कुछ टूटा हुआ है से हैं । 
संस्कृत भाषा में भ्रग्नो का समानान्तरण देखें--- भ्रंश्
 भ्रञ्ज् :-- अध: पतने भ्रंशते । बभ्रंशे । भ्रंशित्वा । भ्रष्ट्वा । भ्रष्टः । भ्रष्टिः । भ्रश्यते इति भ्रशो रूपम् 486।

_____
 परन्तु अब प्रमाण मिला है कि यह शब्द संस्कृत भाषा में प्राप्त भारोपीय धातु :--- ब्रह् से सम्बद्ध है ।

 ब्रह् अथवा बृह् धातु का अर्थ :---- मन्त्रों का उच्चारण करना विशेषत: तीन अर्थों में रूढ़ है यह धातु :--- 

१- वृद्धौ २- प्रकाशे ३- भाषे च _______________________________________
 बृह् :--शब्दे वृद्धौ च - बृंहति बृंहितम बृहिर् इति दुर्गः
 अबृहत्, अबर्हीत् बृंहेर्नलोपाद् बृहोऽद्यतनः
यूरोपीय विद्वानों के मतानुसार  ( 16 वीं सदी में प्राप्त उल्लेख "बौद्धिक शक्ति" का आलंकारिक अर्थ अथवा 14 सदी के अन्त से है; 

यूरोपीय भाषा परिवार में प्रचलित शब्द ब्रेगनॉ जिसका अर्थ हैे
 "एक चतुर व्यक्ति" इस अर्थ को पहली बार (1914 )में यूरोपीय विद्वानों द्वारा दर्ज किया गया है।

 वस्तुत यह ब्रह्माणों की चातुर्य वृत्तियों का प्रकाशन करता है- और किसी धार्मिक कर्मकाण्ड जनित क्रियाओं का सम्पादन मात्र करने वाला  पुजारी या  पुरोहित ।

आर्य्य अर्थात् यौद्धा अथवा वीर नहीं हो सकता क्योंकि 
आर्य्य शब्द  वीर शब्द का सम्प्रसारण  है ।
और वीर यौद्धिक गतिविधियों में संलग्न होता है ।

आर्य्य शब्द का श्रोत अरि है ।
 वैसे भी अरि शब्द वैदिक संहिताओं में अर्थ ईश्वर का यौद्धिक देव रूप है।

 असुरों अथवा असीरियन लोगों की भाषाओं में अरि: शब्द अलि अथवा इलु हो गया है । 

परन्तु इसका सर्व मान्य रूप अब एलॉह (elaoh) तथा एल (el) ही हो गया है । 

ऋग्वेद के अष्टम् मण्डल के ५१ वें सूक्त का ९ वीं ऋचा में अरि: का ईश्वर के रूप में वर्णित है ।
 ________________________________________

 "यस्यायं विश्व आर्यो दास: शेवधिपा अरि: 
तिरश्चिदर्ये रुशमे पवीरवि तुभ्येत् सोऽज्यते रयि:|९ । __________________________________________
 अर्थात्-- जो अरि इस सम्पूर्ण विश्व का तथा आर्य और दास दौनों के धन का पालक अथवा रक्षक है , 
जो श्वेत पवीरु के अभिमुख होता है , 
वह धन देने वाला ईश्वर तुम्हारे साथ सुसंगत है ।९।

 इसके अतिरिक्त  ऋग्वेद के दशम् मण्डल सूक्त( २८ ) ऋचा संख्या (१)
 में देखें- यहाँ भी अरि: देव अथवा ईश्वरीय सत्ता का वाचक है 
___________________________________________
 " विश्वो ह्यन्यो अरिराजगाम ,ममेदह श्वशुरो ना जगाम ।
 जक्षीयाद्धाना उत सोमं पपीयात् स्वाशित: पुनरस्तं जगायात् ।। ऋग्वेद--१०/२८/१ __________________________________________
उत सोमं पपीयात् )। 
और फिर अपने घर को लौटते 

(स्वाशित: पुनरस्तं जगायात् )। प्रस्तुत सूक्त में अरि: शब्द देव वाचक है । 
देव संस्कृति के उपासक आर्यों ने और असुर संस्कृति के उपासक आर्यों ने अर्थात् असुरों ने अरि: अथवा अलि की कल्पना युद्ध के अधिनायक के रूप में की थी । 

सुमेरियन और बैबीलॉनियन तथा असीरियन संस्कृतियों के पूर्वजों के रूप में ड्रयूड (Druids )अथवा द्रविड संस्कृति से सम्बद्धता स्पष्ट है । 
जिन्हें हिब्रू बाइबिल में द्रुज़ कैल्डीयन आदि भी कहा है ये असीरियन लोगों से ही सम्बद्ध हैं। _____________________________________________ ऋग्वेद के द्वित्तीय मण्डल के १२६ वें सूक्त का पञ्चम छन्द (ऋचा) में अरि शब्द आर्यों के सर्वोपरि ईश्वरीय सत्ता का वाचक है:- -------------------------------------------------------------------- पूर्वामनु प्रयतिमा ददे वस्त्रीन् युक्ताँ अष्टौ-अरि(अष्टवरि) धायसो गा: । 
सुबन्धवो ये विश्वा इव व्रा अनस्वन्त:श्रव ऐषन्त पज्रा: ।।५।। ---------------------------------------------------------------- ऋग्वेद---२/१२६/५ तारानाथ वाचस्पति ने वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में इसे ईश्वर वाची सन्दर्भित करते हुए वर्णित किया है-- 
अरिभिरीश्वरे: धार्य्यतेधा ---असुन् पृ० युट् च । ईश्वरधार्य्ये ।" अष्टौ अरि धायसो गा: " ऋग्वेद १/१२६/ ५/ अरिधायस: " अर्थात् अरिभिरीश्वरै: धार्य्यमाणा "भाष्य । ________________________________________

 अरि शब्द के लौकिक संस्कृत मे कालान्तरण में अनेक अर्थ रूढ़ हुए जैसे --- 
अरि :---
१---पहिए का अरा 

२---शत्रु 

३-- विटखदिर 

४-- छ: की संख्या 

५--ईश्वर । 

वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में अरि का वर्णन:- धामश्शब्दे ईश्वरे उ० विट्खरि अरिमेद:।" सितासितौ चन्द्रमसो न कश्चित बुध:शशी सौम्यसितौ रवीन्दु ।
 रवीन्दुभौमा रविस्त्वमित्रा" इति ज्योतिषोक्तेषु रव्यादीनां 
आदि हैं । ___________________________________________ हिब्रू से पूर्व इस भू-भाग में फॉनिशियन और कनानी संस्कृति थी , जिनके सबसे बड़े देवता का नाम हिब्रू में "एल - אל‎ "था जिसे अरबी में ("इल -إل‎ "या इलाह إله-" )भी कहा जाता था । 

और अक्कादियन लोग उसे "इलु - Ilu "कहते थे , इन सभी शब्दों का अर्थ "देवता -god " होता है ।

 इस "एल " देवता को मानव जाति ,और सृष्टि को पैदा करने वाला और "अशेरा -" देवी का पति माना जाता था । वस्तुत यह अशेरा ही वैदिक  सूक्तों की स्त्री देवी है ।
जिसे यूरोपीय मिथकों में  इष्ट्रो (Oestro) एस्ट्रो आदि रूपों है । ------------------------------------------------------------------- परन्तु कालान्तरण में आर्य्य शब्द नस्लीय विचार धारा का संवाहक भी बना तो इस नस्लीय विचारधारा के नाम पर किए गए अत्याचारों ने शिक्षाविदों को "आर्यन" शब्द से बचने के लिए प्रेरित किया है,।

किसी तथ्य के अर्थों को प्रकाशिका करने वाले शब्दों का भी अर्थ -पतन  तथ्यों की गिरती प्रतिष्ठा के अनुरूप ही हो जाता है ।
आर्य्य शब्द जिसे ज्यादातर मामलों में "भारत-ईरानी" संस्कृतियों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है।

 यह शब्द अब केवल "इण्डो-आर्य भाषा" के संदर्भ में दिखाई देता है। 
_____________________________________________ व्युत्पत्ति मूलक दृष्टि कोण से आर्य शब्द हिब्रू बाइबिल में वर्णित एबर से भी सम्बद्ध है ।
 लैटिन वर्ग की भाषा आधुनिक फ्राञ्च में आर्य शब्द (Arien) तथा( Aryen) इन  दौनों रूपों में है ।
 इधर पश्चिमी गोलार्ध के दक्षिणा वर्ती दक्षिणी अमेरिका की ओर पुर्तगाली तथा स्पेनिश भाषाओं में यह शब्द आरियो (Ario) के रूप में विद्यमान है।
वहाँ यह किसी जन-जाति का वाचक नहीं अपितु यौद्धा का वाचक है ।
 पुर्तगाली में इसका एक रूप ऐरिऐनॉ (Ariano) भी है और फिन्नो-उग्रियन शाखा की फिनिश भाषा में Arialainen (ऐरियल-ऐनन) के रूप में है। 

रूस की उप शाखा पॉलिस भाषा में (Aryika) के रूप में है।
 कैटालन भाषा में (Ari )तथा (Arica) दौनों रूपों में है। स्वयं रूसी भाषा में आरिजक (Arijec) अथवा आर्यक के रूप में यह आर्य शब्द ही विद्यमान है। 

इधर पश्चिमीय एशिया की सेमेटिक शाखा आरमेनियन तथा हिब्रू और अरबी भाषा में भी यह आर्य शब्द क्रमशः (Ariacoi) तथा (Ari )तथा अरबी भाषा में हिब्रू प्रभाव से (म-अारि)  M-(ariyy ) तथा अरि दौनों रूपों में है । 

. तथा ताज़िक भाषा में ऑरियॉयी (Oriyoyi )रूप में है …इधर बॉल्गा नदी मुहाने वुल्गारियन संस्कृति में आर्य शब्द ऐराइस् (Arice) के रूप में है। 

वेलारूस की भाषा में (Aryeic) तथा (Aryika) दौनों रूप में; पूरबी एशिया की जापानी ,कॉरीयन और चीनी भाषाओं में बौद्ध धर्म के प्रभाव से आर्य शब्द . Aria–iin..के रूप में है । 

भारतीय भाषाओं में वैरी  और अरि जैसे  शत्रु का अर्थ देने वाले शब्दों का विकास भी  वीर और आर्य शब्दों से हुआ ।

आर्य शब्द के विषय में इतने तथ्य अब तक हमने दूसरी संस्कृतियों से उद्धृत किए हैं। 
वहाँ भी  एक विवेचना अपेक्षित ही है ।

परन्तु जिस भारतीय संस्कृति का प्रादुर्भाव देव संस्कृति के उपासक आर्यों की संस्कृति से हुआ । 
उनका वास्तविक चित्रण होमर ने ई०पू० 800 के समकक्ष इलियड और ऑडेसी महाकाव्यों में ही किया है ;

 ट्रॉय युद्ध के सन्दर्भों में- ग्राम संस्कृति के जनक देव संस्कृति के अनुयायी यूरेशियन लोग थे। 
तथा नगर संस्कृति के जनक द्रविड अथवा ड्रयूड (Druids) लोग ।
यह कहना भी पूर्ण रूप से संगत नहीं !

 उस के विषय में हम यहाँं कुछ तथ्य उद्धृत करते हैं । विदित हो कि यह समग्र तथ्य यादव योगेश कुमार 'रोहि' के शोधों पर आधारित हैं।

 भारोपीय आर्यों के सभी सांस्कृतिक शब्द समान ही हैं स्वयं आर्य शब्द का धात्विक-अर्थ primordial-Meaning ..

आरम् (आरा )धारण करने वाला वीर …..
संस्कृत तथा यूरोपीय भाषाओं में आरम् Arrown =अस्त्र तथा शस्त्र धारण करने वाला यौद्धा अथवा वीरः |

आर्य शब्द की व्युत्पत्ति( Etymology ) संस्कृत की अर् (ऋृ) धातु मूलक है— अर् धातु के धातुपाठ मेंतीन अर्थ सर्व मान्य है ।
 १–गमन करना Togo 
२– मारना to kill
 ३– हल (अरम्) चलाना plough…. 

 हल की क्रिया का वाहक हैरॉ (Harrow) शब्द मध्य इंग्लिश में  (Harwe) कृषि कार्य करना ..

प्राचीन विश्व में सुसंगठित रूप से कृषि कार्य करने वाले प्रथम मानव आर्य ही थे ।
'परन्तु ये चरावाहे आभीर ,गुज्जर  और जाटों के पूर्व पुरुष ही थे ।
वर्तमान में हिन्दुस्तान के बड़े किसान भी यही लोग हैं ।
इन्हीं से अन्य राजपूती जनजातियों का विकास भी हुआ।
 इस तथ्य के प्रबल प्रमाण भी हमारे पास हैं ! 

पाणिनि तथा इनसे भी पूर्व ..कार्तसन धातु पाठ में …ऋृ (अर्) धातु कृषिकर्मे गतौ हिंसायाम् च.. के रूप में परस्मैपदीय रूप —-ऋणोति अरोति वा अन्यत्र ऋृ गतौ धातु पाठ .३/१६ प० इयर्ति -जाता है ।


 वास्तव में संस्कृत की अर् धातु का तादात्म्य. identity. यूरोप की सांस्कृतिक भाषा लैटिन की क्रिया-रूप इर्रेयर Errare =to go से प्रस्तावित है ।

 जर्मन भाषा में यह शब्द आइरे irre =to go के रूप में है पुरानी अंग्रेजी में जिसका प्रचलित रूप एर (Err) है

 …….इसी अर् धातु से विकसित शब्द लैटिन तथा ग्रीक भाषाओं में क्रमशः Araval तथा Aravalis भी हैं । 

अर्थात् कृषि कार्य भी ड्रयूडों की वन मूलक संस्कृति से अनुप्रेरित है ! 
देव संस्कृति के उपासक आर्यों की संस्कृति ग्रामीण जीवन मूलक है और कृषि विद्या के जनक आर्य थे ।

 परन्तु आर्य विशेषण पहले असुर संस्कृति के अनुयायी ईरानीयों का था। 
यह बात आंशिक सत्य है क्योंकि बाल्टिक सागर के तटवर्ती ड्रयूडों (Druids) की वन मूलक संस्कृति से जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध इस देव संस्कृति के उपासक आर्यों ने यह प्रेरणा ग्रहण की। 


…सर्व-प्रथम अपने द्वित्तीय पढ़ाव में मध्य -एशिया में ही कृषि कार्य आरम्भ कर दिया था। 

 देव संस्कृति के उपासक आर्य स्वभाव से ही युद्ध-प्रिय व घुमक्कड़ थे ।
 घोड़े रथ इनके -प्रिय वाहन थे । 
'परन्तु इज़राएल और फलिस्तीन के यहूदियों के अबीर कबीलों के समानान्तरण
ये भी कुशल चरावाहों के रूप में यूरोप तथा सम्पूर्ण एशिया की धरा पर अपनी महान सम्पत्ति गौओं के साथ कबीलों के रूप में यायावर जीवन व्यतीत करते थे। 
  भारत में आगत देव संस्कृतियों के अनुयायीयों 'ने गो  का सम्मान करना सुमेरियन लोगों से सीखा 
सुमेरियन भाषाओं में गु (Gu) गाय को कहते हैं ।
यहूदियों के पूर्वज  जिन्हें कहीं ब्रह्मा कहीं एब्राहम भी कहा गया सुमेरियन नायक थे ।
 विष्णु  भी सुमेरियन बैबीलॉनियन देवता हैं ।
यहूदियों का तादात्म्य भारतीय पुराणों में वर्णित यदुवंशीयों से है ।
यहूदियों का वर्णन भी चरावाहों के रूप में मिलता है ।
इसमें अबीर मार्शल आर्ट के जानकार हैं ।
राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर जिनका तादात्म्य भारतीय अहीरों से करते हैं ।

….यहीं से इनकी ग्राम - सभ्यता का विकास हुआ था . 
अपनी गौओं के साथ साथ विचरण करते हुए जहाँ जहाँ भी ये विशाल ग्रास-मेदिनी (घास के मैदान )देखते उसी स्थान पर अपना पढ़ाव डाल देते थे । 

संस्कृत भाषा में ग्राम शब्द की व्युत्पत्ति इसी व्यवहार मूलक प्रेरणा से हुई।

 …क्यों कि अब भी संस्कृत तथा यूरोप के शब्द लगभग 90% प्रतिशत साम्य - मूलक हैं । 

पुरानी आयरिश भाषा में आइर (आयर ) शब्द है जिसका अर्थ है :- अभिजात अथवा स्वतन्त्र और "महान" 


और पुरानी आयरिस. (Old Irish)में  (aire),का  meaning "freeman" and "noble" है ।
इसी एरियो- के साथ व्यक्तिगत नाम गॉलिश (प्राचीन फ्राँन्स की भाषा ) में तथा ईरानीयों के धर्म-ग्रन्थ 
 अवेस्ता में एेर्या (airya) है ।
जिसका अर्थ है आर्यन, ईरानी बड़े अर्थ में है ।
 ओल्ड इंडिक प्राचीन भारतीय भाषा में एरि-अर्थात्, वफादार, समर्पित व्यक्ति और रिश्तेदार से जुड़ा हुआ है।

 आयर आर्य्य का रूपान्तरण है । 
वस्तुत: गोपालन वृत्ति से समन्वित जन-जाति आभीर ही है जो  हिब्रू-बाइबिल के अबीर( बीर ) तथा आयरिश शब्द आयर से सम्बन्धित है । 

यूनानी देवता अरिस् एक युद्ध का ही देवता है ।
अरीज्( ares)  (/ esriːz /; 
प्राचीन यूनानी: ηςρÁ, [res [árɛːs]) युद्ध का ग्रीक देवता है।

 वह अरि: ज़ीउस और हेरा के पुत्र है जो बारह ओलंपिक में से ही एक हैं। 👇
सन्दर्भ सूची:-
________
Ares (/ˈɛəriːz/; Ancient Greek: Ἄρης, Áres [árɛːs]) is the Greek god of war. 
He is one of the Twelve Olympians, the son of Zeus and Hera. Reference:- Hesiod, Theogony 921
 (Loeb Classical Library numbering); 
Iliad, 5.890–896. By contrast, Ares's Roman counterpart Mars was born from Juno alone, according to Ovid (Fasti 5.229–260).

 ग्रीक साहित्य में, वह अरिस् अक्सर अपनी बहन के विपरीत युद्ध के भौतिक या हिंसक और अदम्य पहलू का प्रतिनिधित्व करता है।

 बख़्तरबंद एथेना, जिसके कार्यों में बुद्धि की देवी के रूप में सैन्य रणनीति और सेनापतीत्व शामिल हैं।

 In Greek literature, he often represents the physical or violent and untamed aspect of war, in contrast to his sister, the armored Athena, whose functions as a goddess of intelligence include military strategy and generalship. 
____________
Reference :- Walter Burkert, Greek Religion (Blackwell, 1985, 2004 reprint, originally published 1977 in German), pp. 141; William Hansen, Classical Mythology: A Guide to the Mythical World of the Greeks and Romans (Oxford University Press, 2005), p. 113. 
_____

रोमन देव संस्कृति के अनुयायीयों ने मार्स ( मार) के रूप में युद्ध के देवता की कल्पना की , प्राचीन रोमन धर्म और मिथक में, (लैटिन: Mārs,) युद्ध का देवता था ।
 और यह एक कृषि संरक्षक भी था, जो प्रारंभिक रोम की विशेषता थी। 

वह केवल बृहस्पति के लिए दूसरे स्थान पर था और वह रोमन सेना के धर्म में सैन्य देवताओं में सबसे प्रमुख था।
 उनके अधिकांश त्योहार मार्च, (लैटिन मार्टियस) नाम के मैहीने में और अक्टूबर में आयोजित किए जाते थे, जो एक सैन्य अभियान के लिए मौसम की शुरुआत करते थे
 और खेती के लिए मौसम का अंत करते थे। 

अंग्रेजी में प्रचलित मार्च( March) - युद्ध अभियान के अर्थ में रूढ़ हो गया है ।

यन्त्रोपारोपितकोशांशः
अमरकोशः

आर्य पुं। 

मान्यः 

समानार्थक:आर्य,मारिष 

1।7।14।2।4 

अब्रह्मण्यमवध्योक्तौ राजश्यालस्तु राष्ट्रियः। अम्बा माताथ बाला स्याद्वासूरार्यस्तु मारिषः॥ 

पदार्थ-विभागः : , द्रव्यम्, पृथ्वी, चलसजीवः, मनुष्यः

आर्य पुं। 

कुलीनः 

समानार्थक:महाकुल,कुलीन,आर्य,सभ्य,सज्जन,साधु 

2।7।3।1।3 

महाकुलकुलीनार्यसभ्यसज्जनसाधवः। ब्रह्मचारी गृही वानप्रस्थो भिक्षुश्चतुष्टये॥ 

पदार्थ-विभागः : , द्रव्यम्, पृथ्वी, चलसजीवः, मनुष्यः

Apte

आर्य [ārya], a. [ऋ-ण्यत्]

Āryan, an inhabitant of आर्यावर्त, N. of the race migrated into India in Vedic times.

Worthy of an Ārya.

Worthy, venerable, respectable, honourable, noble, high; यदार्यमस्यामभिलाषि मे मनः Ś.1.22; R.2.33; so आर्यवेषः respectable dress; oft. used in theatrical language as an honorific adjective and a respectful mode of address; आर्यचाणक्यः, आर्या अरुन्धती &c.; आर्य revered or honoured Sir; आर्ये revered or honoured lady. The following rules are laid down for the use of आर्य in addressing persons: (1) वाच्यौ नटीसूत्रधारावार्यनाम्ना परस्परम् । (2) वयस्येत्युत्तमैर्वाच्यो मध्यैरार्येति चाग्रजः । (3) (वक्तव्यो) अमात्य आर्येति चेतरैः । (4) स्वेच्छया नामभिर्विप्रैर्विप्र आर्येति चेतरैः । S. D.431.

Noble, fine, excellent.

र्यः N. of the Hindu and Iranian people, as distinguished from अनार्य, दस्यु and दास; विजानीह्यार्यान्ये च दस्यवः Rv.1.51.8.

A man who is faithful to the religion and laws of his country; कर्तव्यमाचरन् कार्यमकर्तव्यमनाचरन् । तिष्ठति प्रकृताचारे स वा आर्य इति स्मृतः ॥

N. of the first three castes (as opp. to शूद्र).

respectable or honourable man, esteemed person; वृत्तेन हि भवत्यार्यो न धनेन न विद्यया Mb.; परमार्यः परमां कृपां बभार Bu. Ch.5.6.

A man of noble birth.

A man of noble character.

A master, owner.

A preceptor; वैमानि- कार्यसमभूमा Viś. Guṇā.124; Mu.3.33.

A friend.

A Vaiśya.

A father-in-law (as in आर्यपुत्र).

A Buddha.

(With the Buddhists) A man who has thought on the four chief principles of Buddhism and lives according to them.

A son of Manu Sāvarṇa.

र्या N. of Pārvatī.

A mother-in-law.

A respectable woman; यत्रार्या रुदती भीता पाण़्डवानिदमब्रवीत् Mb.3.12.87.

N. of a metre; राजानमुद्दिश्य आर्यामिमां पपाठ K. ˚गीतिः f. A variety of the Āry&amacr metre, see Appendix.

That which comes from truth; आराद् याता तत्त्वेभ्य इति आर्या.

र्यम् Virtue, sacredness; नहि दुष्टा- त्मनामार्यमावसत्यालये चिरम् Rām.3.5.12.

Discrimination (विवेक); कोपमार्येण यो हन्ति स वीरः पुरुषोत्तमः Rām.4.31.6.-Comp. -अष्टशतम् title of a work of Ārya Bhaṭṭa consisting of eight hundred verses. -आगमः The approaching an Ārya woman sexually; अन्त्यस्यार्यागमे वधः Y.2.294. -आवर्तः [आर्यां आवर्तन्ते अत्र] 'abode of the noble or excellent (Āryas)'; particularly N. of the tract extending from the eastern to the western ocean, and bounded on the north and south by the Himālaya and Vindhya respectively; cf. Ms..2.22; आ समुद्रात्तु वै पूर्वादा समुद्राच्च पश्चिमात् । तयोरेवान्तरं गिर्योः (हिमवद्विन्ध्ययोः) आर्यावर्तं विदुर्बुधाः ॥; also 1.34. -गृह्य a. [आर्यस्य गृह्यः पक्षः]

to be respected by the noble.

a friend of the noble, readily accessible to honourable men; तमार्यगृह्यं निगृहीतधेनुः R.2.33.

respectable, right, decorous.-जुष्ट a. liked by or agreeable to noble ones. -देशः a country inhabited by the Āryas.

पुत्रः son of an honourable man.

the son of a spiritual preceptor.

honorific designation of the son of the elder brother; of a husband by his wife; or of a prince by his general &c.

the son of the father-in-law, i. e. a husband (occurring in every drama; mostly in the vocative case in the last two senses). -प्राय a.

inhabited by the Āryas.

a bounding with respectable people; Ms.7.69.-बलः N. of a Bodhisattva. -भट्टः N. of a renowned astronomer, the inventor of Algebra among the Hindus; he flourished before the 5th century of the Christian era. Hence his work is called आर्यभटीय. -भावः honourable character or behaviour. -मतिः One having a noble intellect; संक्षिप्तमार्यमतिना Sāṅ. K.71. -मार्गः the path or course of the respectable, a respectable way. -मिश्रa. respectable, worthy, distinguished. (-श्रः) a gentleman, a man of consequence; (pl.)

worthy or respectable men, an assembly of honourable men; आर्य- मिश्रान् विज्ञापयामि V.1.

your reverence or honour (a respectful address); नन्वार्यमिश्रैः प्रथममेव आज्ञप्तम् Ś.1; आर्य- मिश्राः प्रमाणम् M.1. -युवन् m. an Āryan youth. -रूप a. having only the form of an Āryan, a hypocrite, impostor; आर्यरूपमिवानार्यं कर्मभिः स्वैर्विभावयेत् Ms.1.57.-लिङ्गिन् m. an impostor; Ms.9.26. -वाक् a. speaking the Aryan language; म्लेच्छवाचश्चार्यवाचः सर्वे ते दस्यवः स्मृताः Ms.1.45. -वृत्त a. virtuous, good, pious; Ms.9. 253; R.14.55. (-त्तम्) the conduct of an Āryan or nobleman; Ms.4.175. -वेश a. well-clothed, having a respectable dress, fine. -व्रत a. observing the laws and ordinances of the Āryans or noblemen. (-तम्) the duty of an Aryan. -शील a. Having an honest character. -श्वेतः a noble or honourable man. -संघः the whole body of the Āryans, especially Buddhists; it is also the name of a renowned philosopher (founder of the school of Yogāchāras). -सत्यम् a noble or sublime truth; (there are four such truths forming the chief principles of Buddhism. In Pāli they are called चत्तारि अरियसच्चानि. They are, (1) life is suffering, (2) Desire of life is the cause of suffering, (3) Extinction of that desire is the cessation of suffering, (4) The eightfold path leads to that extinction). -सिद्धान्तः N. of a work of आर्यभट्ट. -स्त्री An Āryan woman, or a woman of the first three castes. -हलम् ind. forcibly. -हृद्य a. liked by the noble.

Monier-Williams

आर्य m. (fr. अर्य, ऋ) , a respectable or honourable or faithful man , an inhabitant of आर्यावर्त

आर्य m. one who is faithful to the religion of his country

आर्य m. N. of the race which immigrated from Central Asia into आर्यावर्त(opposed to अन्-आर्य, दस्यु, दास)

आर्य m. in later times N. of the first three castes (opposed to शूद्र) RV. AV. VS. MBh. Ya1jn5. Pan5cat. etc.

आर्य m. a man highly esteemed , a respectable , honourable man Pan5cat. S3ak. etc.

आर्य m. a master , an owner L.

आर्य m. a friend L.

आर्य m. a वैश्यL.

आर्य m. Buddha

आर्य m. (with Buddhists [ पालिअय्यो, or अरियो])a man who has thought on the four chief truths of Buddhism(See. next col. ) and lives accordingly , a Buddhist priest

आर्य m. a son of मनुसावर्णHariv.

आर्य mf( आand आरी)n. Aryan , favourable to the Aryan people RV. etc.

आर्य mf( आand आरी)n. behaving like an Aryan , worthy of one , honourable , respectable , noble R. Mn. S3ak. etc.

आर्य mf( आand आरी)n. of a good family

आर्य mf( आand आरी)n. excellent

आर्य mf( आand आरी)n. wise

आर्य mf( आand आरी)n. suitable

Purana index

(I)--opposite of Mleccha. वा. ४५. ९३; ४७. ४९; ९९. ४०४.

(II)--collective name of अङ्गिरस्' sons {{F}}1: भा. IX. 4. 2; Br. II. १६. २४.{{/F}} as oppo- sed to म्लेच्छ। {{F}}2: M. २२७. १९८; ११४. २०.{{/F}} Their country was भारतवर्ष; side by side with म्लेच्छ in Kaliyuga. {{F}}3: M. १२१. ४६-51; २७३. २५; २७४. ३७.{{/F}}

Purana Encyclopedia

Ārya : m. (pl.): Designation of a people. 


A. Location: One of the three kinds of people who live in the Bhāratavarṣa (atra te varṇayīṣyāmi varṣaṁ bhārata bhāratam) 6. 10. 5, 9; (āryā mlecchāś ca tair miśrāḥ puruṣā vibho) 6. 10. 12; they drink water of rivers like Gaṅgā, Sindhu and Sarasvatī (nadīḥ pibanti bahulā gaṅgāṁ sindhuṁ sarasvatīm) 6. 10. 13. 


B. Characteristics:

(1) The Āryas do not use irregular grammatical forms in their speech, they do not play tricks; they do not fight croockedly, nor employ deceipt; this was the way of life of the righteous persons (nāryā mlecchanti bhāṣābhir māyayā na caranty uta/ajihmam aśaṭhaṁ ynddham etat satpuruṣavrataṁ) 2. 53. 8;

(2) According to the Āryas it was best and proper to be able to say: “If reviled, I shall keep quiet; if beaten, I shall always forgive”; truth, straightforwardness and kindness was best and proper in their opinion (ākruśyamāṇo na vadāmi kiṁcit kṣamāmy aham tāḍyamānaś ca nityam/ śreṣṭhaṁ hy etat kṣamam apy āhur āryāḥ satyaṁ tathaivārjavam ānṛśaṁsyam// (12. 288. 12), (3) One should be in a position to say: “I always wait upon Āryas patiently (sadāham āryān nibhṛto 'py upāse) 12. 288. 19;

(4) The Āryas by controlling (their longing for) objects of senses and by abandoning darkness arising out of ignorance had taken the northern path and reached the regions of those who renounced everything (uttareṇa tu panthānam āryā viṣayanigrahāt/abuddhijaṁ tamas tyaktvā lokāṁs tyāgavatāṁ gatāḥ//) 12. 19. 13. 


C. Epic events:

(1) The Āryas and the Mlecchas who had seen or heard about the difficult life of the Pāṇḍavas shed tears before the war started (mlecchāś cāryāś ca ye tatra dadṛśuḥ śuśruvus tadā/vṛttaṁ tat pāṇḍuputrāṇām rurudus te) 6. 41. 103 (However, Nī. on Bom. Ed. 6. 43. 108; āryāḥ kulīnāḥ vṛttaṁ caritam);

(2) When Sudakṣiṇa and Śrutāyudha were killed, Abhīṣāhas, Śūrasenas, Śibis and Vasātis rained arrows on Arjuna; Arjuna killed six thousand Āryas of them; afraid, first they ran away, but returned again and encircled Arjuna only to get killed by him (teṣāṁ ṣaṣṭiśatān āryān prāmathnāt pāṇḍavaḥ śaraiḥ/te sma bhītāḥ palāyanta…//te nivṛtya punaḥ pārthaṁ sarvataḥ paryavārayan/ teṣām āpatatāṁ tūrṇaṁ…śirāṁsi pātayām āsa bāhūṁś caiva dhanaṁjayaḥ//) 7. 68. 2-5;

(3) When Arjuna accompanied the Aśvamedha horse, Ārya kings, together with delighted warriors and horses, went with him (āryāś ca pṛthivīpālāḥ prahṛṣṭanaravāhanāḥ/samīyuḥ pāṇḍuputreṇa) 14. 72. 25.


_______________________________
*2nd word in left half of page p631_mci (+offset) in original book.

previous page p630_mci .......... next page p632_mci

Mahabharata Cultural Index

Ārya : m. (pl.): Designation of a people. 


A. Location: One of the three kinds of people who live in the Bhāratavarṣa (atra te varṇayīṣyāmi varṣaṁ bhārata bhāratam) 6. 10. 5, 9; (āryā mlecchāś ca tair miśrāḥ puruṣā vibho) 6. 10. 12; they drink water of rivers like Gaṅgā, Sindhu and Sarasvatī (nadīḥ pibanti bahulā gaṅgāṁ sindhuṁ sarasvatīm) 6. 10. 13. 


B. Characteristics:

(1) The Āryas do not use irregular grammatical forms in their speech, they do not play tricks; they do not fight croockedly, nor employ deceipt; this was the way of life of the righteous persons (nāryā mlecchanti bhāṣābhir māyayā na caranty uta/ajihmam aśaṭhaṁ ynddham etat satpuruṣavrataṁ) 2. 53. 8;

(2) According to the Āryas it was best and proper to be able to say: “If reviled, I shall keep quiet; if beaten, I shall always forgive”; truth, straightforwardness and kindness was best and proper in their opinion (ākruśyamāṇo na vadāmi kiṁcit kṣamāmy aham tāḍyamānaś ca nityam/ śreṣṭhaṁ hy etat kṣamam apy āhur āryāḥ satyaṁ tathaivārjavam ānṛśaṁsyam// (12. 288. 12), (3) One should be in a position to say: “I always wait upon Āryas patiently (sadāham āryān nibhṛto 'py upāse) 12. 288. 19;

(4) The Āryas by controlling (their longing for) objects of senses and by abandoning darkness arising out of ignorance had taken the northern path and reached the regions of those who renounced everything (uttareṇa tu panthānam āryā viṣayanigrahāt/abuddhijaṁ tamas tyaktvā lokāṁs tyāgavatāṁ gatāḥ//) 12. 19. 13. 


C. Epic events:

(1) The Āryas and the Mlecchas who had seen or heard about the difficult life of the Pāṇḍavas shed tears before the war started (mlecchāś cāryāś ca ye tatra dadṛśuḥ śuśruvus tadā/vṛttaṁ tat pāṇḍuputrāṇām rurudus te) 6. 41. 103 (However, Nī. on Bom. Ed. 6. 43. 108; āryāḥ kulīnāḥ vṛttaṁ caritam);

(2) When Sudakṣiṇa and Śrutāyudha were killed, Abhīṣāhas, Śūrasenas, Śibis and Vasātis rained arrows on Arjuna; Arjuna killed six thousand Āryas of them; afraid, first they ran away, but returned again and encircled Arjuna only to get killed by him (teṣāṁ ṣaṣṭiśatān āryān prāmathnāt pāṇḍavaḥ śaraiḥ/te sma bhītāḥ palāyanta…//te nivṛtya punaḥ pārthaṁ sarvataḥ paryavārayan/ teṣām āpatatāṁ tūrṇaṁ…śirāṁsi pātayām āsa bāhūṁś caiva dhanaṁjayaḥ//) 7. 68. 2-5;

(3) When Arjuna accompanied the Aśvamedha horse, Ārya kings, together with delighted warriors and horses, went with him (āryāś ca pṛthivīpālāḥ prahṛṣṭanaravāhanāḥ/samīyuḥ pāṇḍuputreṇa) 14. 72. 25.


_______________________________
*2nd word in left half of page p631_mci (+offset) in original book.

previous page p630_mci .......... next page p632_mci

Vedic Index of Names and Subjects

'''Ārya''' is the normal designation in the Vedic literature from the Rigveda Rv. i. 51, 8;
130, 8;
156, 5, etc.
 onwards of an Āryan, a member of the three upper classes, '''[[ब्राह्मण|Brāhmaṇa]], [[क्षत्रिय|Kṣatriya]],''' or '''[[वैश्य|Vaiśya]],''' as the formal division is given in the Śatapatha [[ब्राह्मण|Brāhmaṇa]]. iv. 1, 6 ([[काण्व|Kāṇva]] recension). The [[आर्य|Ārya]] stands in opposition to the '''[[दास|Dāsa]],''' Rv. i. 51, 8. 9;
103, 3;
vi. 20, 10;
25, 2, 3, etc. (opposed to [[दास|Dāsa]]);
Av. iv. 20, 4. 8;
Maitrāyaṇī Saṃhitā, iv. 6, 6;
Vājasaneyi Saṃhitā, xiv. 30, etc. (opposed to Sūdra).
 but also to the '''[[शूद्र|Śūdra]].''' Sometimes Zimmer, ''Altindisches Leben,'' 205, 215, finds this use--understanding [[आर्य|Ārya]] as meant--in Atharvaveda, xix. 32, 8, and 62, 1, as well as in passages where Śūdrāryau is found. Lanman, in Whitney's Translation of the Atharvaveda, 948, 1003, quotes his view with approval;
but Whitney's version leaves no doubt that he read and understood the text as [[आर्य|Ārya]], the Āryan, not the [[वैश्य|Vaiśya]]. For Whitney's view, Av. iv. 20, 4. 8 may be cited;
and so Roth, St. Petersburg Dictionary, ''s.v.,'' takes the passages. In [[तैत्तिरीय|Taittirīya]] Saṃhitā, iv. 3, 10, 8, Śūdrāryau must mean Sūdra and [[वैश्य|Vaiśya]];
but the Padapāṭha takes it as Arya, and so does Zimmer.
 the expression is restricted to the [[वैश्य|Vaiśya]] caste, the [[ब्राह्मण|Brāhmaṇa]] and the [[क्षत्रिय|Kṣatriya]] receiving special designations; but this use is not common, and it is often uncertain also whether '''Arya''' is not meant. The phrase Śūdrāryau See [[तैत्तिरीय|Taittirīya]] Saṃhitā, vii. 5, 9, 3, with Kātyāyana Śrauta [[सूत्र|Sūtra]], xiii. 3, 7. 8;
[[काठक|Kāṭhaka]] Saṃhitā, xxxiv. 5;
[[पञ्चविंश ब्राह्मण|Pañcaviṃśa Brāhmaṇa]], v. 5, 17;
[[तैत्तिरीय|Taittirīya]] [[ब्राह्मण|Brāhmaṇa]], i. 2, 6, 7;
Lāṭyāyana [[सूत्र|Sūtra]], iv. 2, 5;
[[शाङ्खायन|Śāṅkhāyana]] Śrauta [[सूत्र|Sūtra]], xvii. 6, 2;
Anupada [[सूत्र|Sūtra]], vii. 10.
 is especially ambiguous, but appears to have denoted originally the [[शूद्र|Śūdra]] and the Āryan, for in the Mahāvrata ceremony the fight between a [[शूद्र|Śūdra]] and an [[आर्य|Ārya]] is represented in the [[तैत्तिरीय|Taittirīya]] [[ब्राह्मण|Brāhmaṇa]] as one between a [[ब्राह्मण|Brāhmaṇa]] and a [[शूद्र|Śūdra]], though the [[सूत्र|Sūtra]] treats it as a fight between a [[वैश्य|Vaiśya]] and a [[शूद्र|Śūdra]].

The word [[आर्य|Ārya]] (fem. Āryā or Ārī) also occurs frequently used as an adjective to describe the Āryan classes (''viśaḥ''), Rv. i. 77, 3;
96, 31;
x. 11, 4;
43, 4, etc.
 or name (''[[नामन्|nāman]]''), Rv. x;
49, 3.
 or caste (''[[वर्ण|varṇa]]''), Rv. iii. 34, 9. ''Cf.'' '''[[वर्ण|Varṇa]].''' or dwellings (''[[धामन्|dhāman]]''); Rv. ix. 63, 14. or again reference is made to the Āryan supremacy (''[[व्रत|vrata]]'') Rv. x. 65, 11. So Agni and Indra are styled Āryan, as supporters of the Āryan people (Rv. vi. 60, 6). being extended over the land. Āryan foes (''vṛtra'') Rv. vi. 33, 3;
vii. 83, 1;
x. 69, 6.
 are referred to beside [[दास|Dāsa]] foes, and there are many Rv. i. 102, 5;
iii. 32, 14;
vi. 22, 10;
25, 2. 3;
viii. 2, 4. 27;
x. 38, 3;
83, 1;
102, 3, etc.
 references to war of Āryan versus Āryan, as well as to war of Āryan against [[दास|Dāsa]]. From this it can be fairly deduced that even by the time of the Rigveda the Āryan communities had advanced far beyond the stage of simple conquest of the aborigines. In the later Saṃhitās and Brāhmaṇas the wars alluded to seem mainly Āryan wars, no doubt in consequence of the fusion of [[आर्य|Ārya]] and [[दास|Dāsa]] into one community.

Weber ''Indische Studien,'' 17, 288. ''Cf.'' Roth, St. Petersburg Dictionary, ''s.v. [[कृष्टि|kṛṣṭi]],'' and '''Pañca Janāsaḥ.''' considers that the five peoples known to the Rigveda were the Āryans and the four peoples of the quarters (''[[दिश्|diś]]'') of the earth, but this is doubtful. Āryan speech (''[[वाच्|vāc]]'') [[ऐतरेय|Aitareya]] Āraṇyaka, iii. 2, 5;
[[शाङ्खायन|Śāṅkhāyana]] Āraṇyaka, viii. 9. ''Cf.'' Keith, ''[[ऐतरेय|Aitareya]] Āraṇyaka,'' 196, 255;
and '''[[वाच्|Vāc]].'''

''Cf.'' Ludwig, Translation of the Rigveda, 3, 207 ''et seq.;
'' Zimmer, ''Altindisches Leben,'' 214 ''et seq.''
 is specially referred to in the [[ऐतरेय|Aitareya]] and [[शाङ्खायन|Śāṅkhāyana]] Āraṇyakas.

'''Ārya.''' See '''[[माल्य|Mālya]].'''


यद्यपि आर्य्य थ्योरी को बनाने वाले नहीं जानते कि असीरीयों के असुर महत् (अहुर मज्दा) के उपासक ईरानी ही अपने को आर्य्य कहते थे ।


असीरी सैमेटिक होने से यहूदियों के सजातीय थे।


 हिटलर 'ने यहूदियों को अनार्य कह कर मरवाया 

ये तथ्य विचारणीय हैं ।


क्योंकि ईरानी असुर संस्कृति और भारतीय देव संस्कृतियों में परस्पर विरोधाभासी स्थिति आकस्मिक नहीं अपितु प्राचीनत्तम है ।

'परन्तु ईरानीयों के लिए अवेस्ता ए जैंद में आर्य्य और वीर शब्दों का प्रयोग बहुतायत से हुआ है।


ईरानी यम को सम्मान देते हैं तो भारतीय , जर्मनिक आदि मनु को , 


कैनानाइटी, मितन्नी, ईरानी सुमेरियन आदि संस्कृतियों में यम की प्रतिष्ठा सर्वोपरि है ।

'परन्तु आर्य्य शब्द से इतिहास कारों 'ने देव संस्कृति के अनुयायीयों को नामित किया ....

जोकि मिथ्या और आधार हीन है ....



==Foot Notes==

🌸🌸🌸🌸🌸🌸

 प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार'रोहि' अलीगढ़
सम्पर्क सूत्र 8077160219





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें