सोमवार, 16 सितंबर 2019

क्योंकि जिन्दे पर पूछा नहीं न किया कभी उन्हें याद ! तैरहीं खाने अाते हैं वे उसके मरने के वाद ।

एक परम्परागत पण्डित जी कहते हैं कि  ये  त्रयोदशी भोग राज परिवारों की प्रथा है।

तो हमारा उनसे कहना कि फिर जनता  इसका अनुकरण क्यों करती है ।

क्या राजा के समान सुविधाऐं जनता के पास हैं 
नहीं !

और आज राज तन्त्र है क्या ?
नहीं !

तो  इस मूर्खता पूर्ण पृथा को राजपरिवारों के साथ समाप्त कर दो !
आज देश में राजतन्त्र नहीं है
लोक तन्त्र है ।

वर्ण-व्यवस्था भी राजतन्त्र का अवयव रही

जो पुरोहितों द्वारा निर्देशित रूढ़िवादी प्रथा है ।

कब तक ये कुप्रथाओं की गन्दगी ढ़ोते रहोगे ।
त्रयोदशी में ब्राह्मणों को भोजन कराने की पृथा ब्राह्मणों के स्वार्थ में ही निहित थी  और है ।

प्रथाओं के नाम पर  इन षड्यन्त्रों में  सदीयों से
उन पुरोहितों की निजी भौतिक स्वार्थ वत्ताऐं निहित हैं
जो पीढ़ी दर पीढ़ी उनकी परम्परागत सन्तानें के लिए भी
उपादेय रहीं
किसी के मरने पर अथवा जन्म लेने पर
ब्राह्मणों को भोजन प्राप्त हो सके !
और सृष्टि में भोजन प्रत्येक प्राणी की प्रथम आवश्यकता है।

इन परम्पराओं का भार गरीब और अनपढ़ समाज सदीयों से ढ़ोह रह
यह एक मूर्खता पूर्ण आयोजन है ।

क्योंकि इससे किसी की आत्मा को सद्गति नहीं मिल जाती है ।

क्योंकि जिन्दे पर पूछा नहीं
न किया कभी उन्हें याद !

तैरहीं खाने अाते हैं वे
उसके मरने के वाद ।

कर्ज लेकर कर इलाज कराया
जैसे खुजली में दाद ।

खेती बाड़ी सभी बिक गयी
हो गया गरीब बर्वाद ।

पण्डा पण्डित गिद्द पाँत में
फिर भी ले रहे बैठे स्वाद ।

घर हालत खस्ता हो गयी
छाया शोक विषाद ।

किस मूरख ने यह कह डाला
तैरहीं  ब्राह्मणों को -प्रसाद !
आज तुमने धन्यवाद वाद क्या दिया !

मुझे तुमने धन्य कर दिया ।
धुल गया वो पाप सारा
जो हमने कभी जघन्य कर दिया

यादव योगेश कुमार रोहि
सम्पर्क सूत्र 8077160219

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें