गुरुवार, 13 जून 2019

गायत्री जयन्ती के पावन पर्व के उपलक्ष्य में - यह लेख -

आज गायत्री जयन्ती के पावन पर्व पर श्रृद्धा प्रवण हृदय से हम सब माता गायत्री को नमन और भाव-- पूर्ण स्मरण करते हैं।

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वेद की अधिष्ठात्री देवी गायत्री अहीर की कन्या थीं और ज्ञान के अधिष्ठाता कृष्ण भी आभीर( गोप) वसुदेव के पुत्र थे ।
ऐसा महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण का कथन है

भारतीय पुराणों में गायत्री को वेदौं की अधिष्ठात्री देवी और ज्ञान स्वरूपा कहा है ।
जिस गायत्री मन्त्र के प्रभाव से ब्राह्मण भी स्वयं को पवित्र व स्वस्थ करता है ।
और गायत्री मन्त्र के उच्चारण मात्र से ही अपने वेदों का धिकारी कहता है ।
निस्संदेह 'वह अहीर समाज ब्राह्मणों का भी पूज्य व सम्माननीय है ।
जिनके पावन कुल में स्वयं ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी गायत्री अवतरित होकर ब्रह्मा की सृष्टि-यज्ञ में अपना ज्ञान मयी सहयोग देती हैं ।
यह केवल भारत में नहीं अपितु पश्चिमीय एशिया के पुरा-कथाओं में विशेषत: हिब्रू बाइबिल में अहीर का वर्णन अहीर के रूप में ईश्वर के पाँचवें नामों में से एक माना है ।
” यहूदीयों की हिब्रू बाइबिल के सृष्टि-खण्ड नामक अध्याय Genesis 49: 24 पर --- अहीर शब्द को जीवित ईश्वर का वाचक बताया है ।

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The name Abir is one of The titles of the living god for some reason it,s usually translated( for some reason all god,s in Isaiah 1:24 we find four names of The lord in rapid succession as Isaiah Reports " Therefore Adon - YHWH - Saboath and Abir ---- Israel declares...

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Abir (अभीर )---The name reflects protection more than strength although one obviously -- has to be Strong To be any good at protecting still although all modern translations universally translate this name whith ---- Mighty One , it is probably best translated whith  Protector
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यह नाम अबीर किसी जीवित देवता के शीर्षक में से किसी एक कारण से है।
जिसे आमतौर पर अनुवाद किया गया है।
(यशायाह 1:24 में किसी भी कारण से सभी ईश्वर यशायाह के रूप में बहुतायत से उत्तराधिकार में भगवान के चार नाम मिलते हैं)
"इसलिए अदोन - YHWH यह्व :  सबोथ और अबीर -इजराइल की घोषणा
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अबीर (अबर) --- नाम ताकत से अधिक सुरक्षा को दर्शाता है ।
यद्यपि एक स्पष्ट रूप से मजबूत होना जरूरी है।
यद्यपि अभी भी सभी आधुनिक अनुवादक सार्वभौमिक रूप से इस नाम का अनुवाद करते हैं। शक्तिशाली (ताकतवर)यह शायद सबसे अच्छा अनुवाद किया है।
--रक्षक ।
हिब्रू बाइबिल में तथा यहूदीयों की परम्पराओं में ईश्वर के पाँच नाम प्रसिद्ध हैं :-(१)-अबीर (२)--अदॉन (३)--सबॉथ (४)--याह्व्ह् तथा (५)--(इलॉही)बाइबल> सशक्त> हिब्रू> 46
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◄ 46. अबीर ►
सशक्त कमान
अबीर: मजबूत
मूल शब्द: אֲבִיר
भाषण का भाग: विशेषण 'पौरुष '
लिप्यान्तरण: अबीर
ध्वन्यात्मक :-वर्तनी: (अ-बियर ')
लघु परिभाषा: एक
संपूर्ण संक्षिप्तता
शब्द उत्पत्ति:-
अबार के समान ही
परिभाषा
बलवान
अनुवाद
शक्तिशाली एक (6)
[אבִיר विशेषण रूप  मजबूत; हमेशा = सशक्त, भगवान के लिए पुराने नाम (कविता में प्रयुक्त अबीर); केवल निर्माण में उत्पत्ति खण्ड(Genesis) 49:24 और उसके बाद से भजन संहिता (132: 2; भजन 132: 5; यशायाह (49:26; )यशायाह 60:16; יִשְׂרָאֵל 'या यशायाह 1:24 (सीए के महत्वपूर्ण टिप्पणी की तुलना करें) -  51 इस निर्माण को बैंक के लिए निर्दिष्ट करता है।

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सशक्त की संपूर्णता
पराक्रमी
'Abar से; शक्तिशाली (भगवान की बात की) - शक्तिशाली (एक)

हिब्रू भाषा में 'अबीर रूप
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रूप और लिप्यंतरण

אֲבִ֖יר אֲבִ֣יר אֲבִ֥יר אביר לַאֲבִ֥יר לאביר 'ר ·יי' רḇייר एक वैर ला'एरीर ला · 'ḇ ḇîr laaVir
'Ă ḇîr - 4 ओक
ला '' ırîr - 2 प्रा
उत्पत्ति खण्ड बाइबिल:-- (49:24)
יָדָ֑יו מִידֵי֙ אֲבִ֣יר יַעֲקֹ֔ב מִשָּׁ֥ם: याकूब के शक्तिशाली व्यक्ति के हाथों से
: याकूब के शक्तिशाली [परमेश्वर] (अबीर )के हाथों से;
: हाथ याकूब के पराक्रमी हाथ वहाँ
भजन 132: 2
और याकूब के पराक्रमी को  याकूब के पराक्रमी [ईश्वर] को वचन दिया;
भगवान के लिए और याकूब के शक्तिशाली करने के लिए कसम खाई

भजन 132: 5
: लेट्वाः लिबियूः יהו֑֑֑ מִ֝שְּנ֗וֹת לַאֲבִ֥יר יַעֲקֹֽב: याकूब के पराक्रमी एक के लिए एक आवास स्थान
केजेवी: याकूब के शक्तिशाली [परमेश्वर] के लिए एक निवासस्थान
: भगवान एक याकूब की ताकतवर(अबीर) निवास

यशायाह 1:24
: יְהוָ֣ה צְבָא֔וֹת אֲבִ֖יר יִשְׂרָאֵ֑ל ה֚וֹי
: मेजबान के, इज़राइल के पराक्रमी,
केजेवी: सेनाओं के, इस्राएल के पराक्रमी,
: सेनाओं के सर्वशक्तिमान इस्राएल के शक्तिशाली अहा

यशायाह 49:26
: מֽוֹשִׁיעֵ֔ךְ וְגֹאֲלֵ֖ךְ אֲבִ֥יר יַעֲקֹֽב: ס
: और अपने उद्धारकर्ता, याकूब के शक्तिशाली व्यक्ति
: और तेरा उद्धारकर्ता, याकूब के शक्तिशाली व्यक्ति।
: अपने उद्धारकर्ता और अपने उद्धारक याकूब की ताकतवर हूँ

यशायाह 60:16
: מֽוֹשִׁיעֵ֔ךְ וְגֹאֲלֵ֖ךְ אֲבִ֥יר יַעֲקֹֽב:
और अपने उद्धारकर्ता, याकूब के शक्तिशाली व्यक्ति
: और तेरा उद्धारकर्ता, याकूब के शक्तिशाली व्यक्ति।
अपने उद्धारकर्ता और अपने उद्धारक याकूब की ताकतवर हूँ
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हिब्रू भाषा मे अबीर (अभीर) शब्द के बहुत ऊँचे अर्थ हैं- अर्थात् जो रक्षक है, सर्व-शक्ति सम्पन्न है इज़राएल देश में याकूब अथवा इज़राएल-- ( एल का सामना करने वाला )को अबीर का विशेषण दिया था । इज़राएल एक फ़रिश्ता है जो भारतीय पुराणों में यम के समान है ।
जिसे भारतीय पुराणों में ययाति कहा है ।
वर्तमान में सैमेटिक और तुर्की आरमेेनियन आदि भाषाओं में हकिम याकूव का रूपान्तरण है
हुकूमत( शासन करने वाला) अस्तु !

भारतीय संस्कृति में
तुलसीदास सदृश्य परम्परा वादी कवि ने भी अहीरों की निश्छलता और पवित्रता का वर्णन किया ।
और कहा कि अहीर किसी का गुलाम नहीं होता
'वह जन्म से ही स्वतन्त्र है निर्मल मन अहीर निज दासा अर्थात्‌ निर्मल मन वाला अहीर अपना ही दास है
किसी दूसरे का नहीं ।
इतिहास गवाह है कि अहीरों को जिसने भी वर्ण व्यवस्था के विधानों में बाँध कर दास या शूद्र बनाने की कुचेष्टा की तो वे दस्यु या विद्रोही बन गये ।
दास नहीं  👇

तेइ तृन हरित चरै जब गाई।
भाव बच्छ सिसु पाइ पेन्हाई॥

नोइ निबृत्ति पात्र बिस्वासा।
निर्मल मन अहीर निज दासा॥6॥

भावार्थ
उन्हीं (धर्माचारण रूपी) हरे तृणों (घास) को जब वह गो चरे और आस्तिक भाव रूपी छोटे बछड़े को पाकर वह पेन्हावे (पसुराए)।
निवृत्ति (सांसारिक विषयों से और प्रपंच से मन का हटना) नोई (गो के दुहते समय पिछले पैर बाँधने की रस्सी) है, विश्वास (दूध दुहने का) बरतन है, निर्मल (निष्पाप)जिसका मन जो स्वयं अपना दास है।
(अपने वश में है), दुहने वाला अहीर  है॥6॥

परन्तु दुर्भाग्य से भारत में पुष्य-मित्र सुंग कालीन पुरोहितों या ब्राह्मणों ने अहीरों का इतिहास ही तहस-नहस कर दिया ।

उन्हें लगा कि इन अहीरों की पवित्रता हमारे वर्चस्व को समाप्त कर देगी ।
पवित्र होने के साथ साथ ये निर्भीक भी हैं ।

फिर द्वेष-वश इन्हीं ब्राह्मणों ने अहीरों को चोर , म्लेच्‍छ और वर्ण संकर तक परवर्ती काल खण्ड में ग्रन्थों में लिखा दिया !

अहीरों के प्रति द्वेष के कारण ही ब्राह्मणों का पतन प्रारम्भ हुआ और आज भी जारी है ...

क्यों कि अहीरों से किसी का वैर शुभ नहीं हुआ चाहें वो त्रेतायुग में समुद्र के कहने से राम ने किया हो
या द्वापर मेंअर्जुन ने  नारायणी सेना के यौद्धा अहीर से किया हो !
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पद्म पुराण के सृष्टि खण्ड के अध्याय १६ में गायत्री को  नरेन्द्र सेन आभीर (अहीर)की कन्या के रूप में वर्णित किया गया है ।
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" स्त्रियो दृष्टास्तु यास्त्व ,
      सर्वास्ता: सपरिग्रहा : |
आभीरः कन्या रूपाद्या
      शुभास्यां चारू लोचना ।७।
न देवी न च गन्धर्वीं ,
नासुरी न च पन्नगी ।
वन चास्ति तादृशी कन्या ,
यादृशी सा वराँगना ।८।

अर्थात् जब इन्द्र ने पृथ्वी पर जाकर देखा
तो वे पृथ्वी पर कोई सुन्दर और शुद्ध कन्या न पा सके
परन्तु एक नरेन्द्र सेन आभीर की कन्या गायत्री को सर्वांग सुन्दर और शुद्ध
देखकर आश्चर्य चकित रह गये ।७।

उसके समान सुन्दर  कोई देवी न कोई गन्धर्वी  न सुर और न  असुर की स्त्री ही थी ,और नाहीं कोई पन्नगी (नाग कन्या ) ही थी।
इन्द्र ने तब  उस कन्या गायत्री से पूछा कि तुम कौन हो  ? और कहाँ से आयी हो ?
और किस की पुत्री हो ८।

गोप कन्यां च तां दृष्टवा , गौरवर्ण महाद्युति:।
एवं चिन्ता पराधीन ,यावत् सा गोप कन्यका ।।९ ।।

पद्म पुराण सृष्टि खण्ड अध्याय १६ १८२ श्लोक में
इन्द्र ने कहा कि तुम बड़ी रूप वती हो , गौरवर्ण वाली महाद्युति से युक्त हो  इस प्रकार की गौर वर्ण महातेजस्वी कन्या को देखकर इन्द्र भी चकित रह गया  कि यह गोप कन्या इतनी सुन्दर है !

यहाँ विचारणीय तथ्य यह भी है कि पहले आभीर-कन्या शब्द गायत्री के लिए आया है फिर गोप कन्या शब्द ।
जो कि यदुवंश का वृत्ति ( व्यवहार मूलक ) विशेषण है ।
क्योंकि यादव प्रारम्भिक काल से ही गोपालन वृत्ति ( कार्य) से सम्बद्ध रहे है ।
और अपनी निर्भीकता के लिए भारत में आभीर कहलाए-
आभीर शब्द का मूल रूप इण्डो-हिब्रू शब्द "बीर" ही है

पद्म-पुराण के  आगे के अध्याय १७ के ४८३ में इन्द्र ने कहा कि यह गोप कन्या पराधीन चिन्ता से व्याकुल है ।९।
देवी चैव महाभागा , गायत्री नामत: प्रभु ।
गान्धर्वेण विवाहेन ,विकल्प मा कथाश्चिरम्।९।

१८४ श्लोक में विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा कि हे प्रभो इस कन्या का नाम गायत्री है ।
यह ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी गायत्री है
अब यहाँ भी देखें---
देवी भागवत पुराण में :--
१०/१/२२ में स्पष्टत: गायत्री  आभीर अथवा गोपों की कन्या है ।
और गोपों को भागवतपुराण तथा महाभारत हरिवंश पुराण आदि मे देवताओं का अवतार बताया गया है ।

" अंशेन त्वं पृथिव्या वै ,प्राप्य जन्म यदो:कुले ।
भार्याभ्याँश संयुतस्तत्र ,गोपालत्वं करिष्यसि ।१४।

वस्तुत आभीर और गोप शब्द परस्पर पर्याय वाची हैं
पद्म पुराण में पहले आभीर- कन्या शब्द आया है फिर गोप -कन्या भी गायत्री के लिए ..
तथा अग्नि पुराण में भी आभीरों (गोपों) की कन्या गायत्री को कहा है ।👇

आभीरा स्तच्च कुर्वन्ति तत् किमेतत्त्वया कृतम्
अवश्यं यदि ते कार्यं भार्यया परया मखे । ४०
एतत्पुनर्महादुःखं यद् आभीरा विगर्दिता
वंशे वनचराणां च स्ववोडा बहुभर्तृका  ।।५४
आभीर इति सपत्नीति प्रोक्तवंत्यः हर्षिताः
(इति श्रीवह्निपुराणे नांदीमुखोत्पत्तौ ब्रह्मयज्ञ समारंभे प्रथमोदिवसो नाम षोडशोऽध्यायः संपूर्णः)

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  प्रस्तुति करण -यादव योगेश  कुमार  'रोहि'
ग्राम-आज़ादपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---उ०प्र० सम्पर्क सूत्र 8077160219..

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