सोमवार, 10 जून 2019

करोली के संस्थापक -





जय श्री कृष्ण ।
भाईयों धेनुकर ओर अहिर मे कोइ फर्क नही हे ।
अब आते हे करौली राजवंश पर।
तो प्रथम मे हाथ जोड़ कर माँ राज राजेश्वरी केला देवी को नतमस्तक हो कर प्रणाम करता हूँ।
करौली माता के मंदिर मे बने बहुरा भगत के समाधि स्थल ।
बहुरा भगत इक ग्वाल (अहीर) थे । उनके पुत्र विजय पाल ने ही करौली राजवंश की स्थापना की।

इस का प्रमाण करौली राजवंश के राजचिन्ह मे भी दिखाई देता हे ।
करौली राजचिन्ह मे इक तरफ भेड़ ओर दुसरी तरफ गाय बनी हूई हे।
इस से ज्यादा प्रमाण क्या हो सकता हे।
जिस को दिन में भी दिखाई ना दे उसे क्या कहते हे आप लोग जानते होंगे।

।।बौलौ करौली वारी मईया की जय ।।
।।बौलौ बहुरा भगत की जय ।।

कोइ भी राजपूत अपने को करौली राजवंश से ना जोड़े
अपना इतिहास ओर कही जाके के खोजे ।
जय श्री कृष्ण ।।
जय माधव जय यादव ।।

यदुकल शिरोमणि भगवन श्री कृष्ण को बारम्बार प्रणाम

पाल अहीरों और बघेलों ( धेनुगरों) का विशेषण --जो कभी एक थे ।

करौली के जादौनों का उदय  आठवीं सदी के उत्तरार्द्ध  नवीं सदी के पूर्वार्द्ध में  मथुरा के यादव शासक ब्रह्मपाल अहीर से हुआ जो दशवें अहीर राजा थे ।⬇🔄

राजा धर्मपाल बाद ईस्वी  सन्  879 में इच्छपाल (ऋच्छपाल) मथुरा के शासक हुए ।

 इनके ही दो पुत्र थे  प्रथम  पुत्र ब्रहमपाल जो मथुरा के शासक थे  हुए दूसरे पुत्र विनयपाल  जो महुबा (मध्यप्रदेश) के शासक हुए 

विजयपाल भी करौली के यादव अहीरों की जादौंन शाखा का मूल पुरुष/ आदि पुरुष/ संस्थापक विजयपाल माना गया परन्तु इतिहास में  ब्रह्मपाल ही मान्य हैं 

 विजयपाल जिसने 1040 ईस्वी में अपने राज्य की राजधानी मथुरा से हटाकर बयाना
( विजय मंदिर गढ़) को बनाया ------------


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