जय श्री कृष्ण ।
भाईयों धेनुकर ओर अहिर मे कोइ फर्क नही हे ।
अब आते हे करौली राजवंश पर।
तो प्रथम मे हाथ जोड़ कर माँ राज राजेश्वरी केला देवी को नतमस्तक हो कर प्रणाम करता हूँ।
करौली माता के मंदिर मे बने बहुरा भगत के समाधि स्थल ।
बहुरा भगत इक ग्वाल (अहीर) थे । उनके पुत्र विजय पाल ने ही करौली राजवंश की स्थापना की।
इस का प्रमाण करौली राजवंश के राजचिन्ह मे भी दिखाई देता हे ।
करौली राजचिन्ह मे इक तरफ भेड़ ओर दुसरी तरफ गाय बनी हूई हे।
इस से ज्यादा प्रमाण क्या हो सकता हे।
जिस को दिन में भी दिखाई ना दे उसे क्या कहते हे आप लोग जानते होंगे।
।।बौलौ करौली वारी मईया की जय ।।
।।बौलौ बहुरा भगत की जय ।।
कोइ भी राजपूत अपने को करौली राजवंश से ना जोड़े
अपना इतिहास ओर कही जाके के खोजे ।
जय श्री कृष्ण ।।
जय माधव जय यादव ।।
यदुकल शिरोमणि भगवन श्री कृष्ण को बारम्बार प्रणाम
पाल अहीरों और बघेलों ( धेनुगरों) का विशेषण --जो कभी एक थे ।
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