शनिवार, 10 नवंबर 2018

पठानों की एक जाति लोदी ।

इरानी भाषा में लोधी पठानों की एक जाति।
ये यौद्धा वर्ग है ।
परन्तु  पशु पक्षियों को लालच दिखाकर पकड़ लेनेवाला। व्याध। बहेलिया। शिकारी को लोध व्रज के कवियों ने लिखा जैसे सूरदास लिखते हैं
"प्रभु सों मेरी गति जनु लोधक कर मीन तरयो।
— सूरसाहित्य ।
सबको लुब्ध करने वाला, सम्मोहनकारी ४. वह व्यक्ति जो अत्यंत रागी हो ।
. पिछला भाग। पीछे का हिस्सा
विशेषण रूप-- प्रबल आकांक्षायुक्त। अत्यंत राग- युक्त। उ०— जाके पदकमल लुब्ध मुनि मधुकर निकर परम सुगति हू लोभ नाहिन।—(तुलसीदास)

चाहनेवाला। इच्छुक। प्रेमी। :--उदाहरण घालि नैन ओहि राखिय, पल नहिं कीजिय ओट।
पेम क लुबुधा पाव ओ ह, काह सो बड़ का छोट।—जायसी पद्मावत।
लोधी (या लोधा, लोध) भारत में पायी जाने वाली एक किसान जाति है। ये मध्य प्रदेश में बहुतायत में पाये जाते हैं, जहां यह लोग उत्तर प्रदेश से विस्थापित होकर आ बसे है। लोधी 'अन्य पिछड़े वर्ग' की एक जाति है, परन्तु इस जाति के लोग राजपूतो से संबधित होने का दावा करते हैं तथा 'लोधी-राजपूत' कहलाना पसंद करते हैं। जबकि, इनके राजपूत मूल से उद्धृत होने का कोई साक्ष्य नहीं है और न ही इन लोगो में राजपूत परंपराए प्रचलित है।
ये शारीरिक बल में उच्च तथा श्यामल छवि के होते हैं ।

शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि कोण से ये प्राचीनत्तम यौद्धा जन-जाति है । जो लोहवर्ण की होती थी ।

ब्रिटिश शासन के एक प्रशासक, रोबर्ट वेन रुसेल ने लोधी शब्द के कई सम्भव शाब्दिक अर्थों का जिक्र किया है; उदहरणार्थ लोध वृक्ष के पत्तों से रंगो का निर्माण करने का कार्य करने के कारण ये लोग लोधी कहलाए। रुसेल ने यह भी कहा है कि 'लोधा' मूल शब्द है जो कि बाद में मध्य प्रदेश में 'लोधी' में रूपान्तरित हो गया। एक अन्य सिद्धान्त के अनुसार, लोधी अपने गृह निवास पंजाब के लुधियाना शहर के नाम से लोधी कहलाए।
परन्तु इतिहास में लोदी पठानों ने लुधियाना का किला बनवाया

इतिहास के दृष्टि कोण से--

ब्रिटिश स्रोतो में लोधियों को उत्तर भारत से विस्थापित होना बताया गया है,जहाँ से यह लोग मध्य भारत में आ बसे। ऐसा करने में उनके सामाजिक स्तर उत्थान हुआ, और यह लोग ब्राह्मण, बनिया व राजपूत आदि से नीचे के स्थानीय शासक तथा जमीदार बने। इनमे से कुछ बड़े जमींदार ' ठाकुर' की पदवी पाने में सक्षम रहे, तथा दमोह व सागर जिलो में कुछ लोधी परिवारो को पन्ना के मुस्लिम शासक द्वारा राजा, दीवान व लंबरदार करार दिया गया।
इस तरह शक्तिशाली बने लोधियों ने बुंदेला उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1857 की क्रांति में सहभागिता--
1857 कि क्रांति मे, लोधी भारत के विभिन्न भागो में अंग्रेज़ो के खिलाफ लड़े। हिंडोरिया रिसायत के लोधी तालुकदार जिले के मुख्य कार्यालय की तरफ कूच करने व खजाने को लूटने में शामिल थे, जबकि शरपुरा आदि के लोधियों ने स्थानीय पुलिस को खदेड़ दिया व उन्होने घुघरी गाँव को भी लूटा।

20वी शताब्दी की जातिगत राजनीति-
1911 की भारत कि जनगणना के बाद, लोधी राजनैतिक रूप से एकजुट होना शुरू हुये तथा 1921 कि जनगणना से पूर्व उन्होने 'फतेहगढ़' के एक सम्मेलन में 'लोधी राजपूत' नाम के लिए दावा किया।
1929 के सम्मेलन मे, " अखिल भारतीय लोधी क्षत्रिय(राजपूत) महासभा' बनी।
शताब्दी के प्रथम भाग मे लोधीयों के राजपूत या क्षत्रिय दावे के समर्थन मे महासभा द्वारा कई पुस्तके प्रकाशित की गयी, जिनमे 1912 की "महलोधी विवेचना" व 1936 की "लोधी राजपूत इतिहास" प्रमुख है।

लोध शब्द ऋग्वेद के मण्डल 3 अध्याय 4 सूत्र 53 ऋचा 23 में वर्णित है।
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न सायकस्य चिकिते जनो८सां लोधं पशुमन्यमानाः।
नवाजिनं वाजिना हासयन्ति व गर्दभं पुरो अश्वान्नयन्ति।

इस मंत्र में 'लोध' शब्द का उपयोग गुणवाचक विशेषण के रुप में उपयोग हुआ है। 'लोध' वीर रस को प्रस्तुत करता है।
वेदों के प्रमुख भाष्यकार स्वामी दयानन्द जी ने 'लोधं' शब्द की व्याख्या साहसी, बुद्धिमान, वीरश्रेष्ठ तथा युद्धद्यिा में निपुण और व्यूह रचना करना तथा रक्षा करने में सामर्थवान किया है । 'लोधं' मनुष्य का एक गुण विशेष है। जो कभी योद्धाओं को उनकी वीरता और कुशलता के कारण ही सेनापति व सेनानायकों को प्रदान किया जाता था।
जैसे वेदमन्त्रों को पढ़ने वाले को पण्डित कहा जाता है उसी प्रकार जो मनुष्य युद्ध विद्या में निपुण थे वही लोध कहलाये।
ऋग्वेद का उर्पयुक्त मंत्र विशेषकर उस सीन पर प्रयुक्त हुआ है जहां राजा को सेना के गठन संबधी ज्ञान कराया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि 'लोध' गुण विशेष वाले क्षत्रियों का नाम था। जो बाद में एक जाति के रुप में परिवर्तित हो गया।

        आचार्य सायणा ने अपने भाष्य में 'लोध' शब्द ऋषि विश्वामित्र के लिये विशेषण में प्रयुक्त किया है। जब वे अपनी तपस्या में पूर्णतया लगे हुए थे और तपस्या में लीन अपने प्राणों तक की चिन्ता नहीं थी। यदि यही मान लिया जाये कि 'लोध' ऋषि विश्वामित्र का नाम था, यह भी संभव हो सकता है कि उनकी प्रेरणा से उन्हीं के समान गुण वाले क्षत्रियों ने अपना नाम लोध रख लिया हो उसकी समुदाय विशेष का नाम लोध पड़ गया।

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