शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

भविष्यपुराण सौलहवीं सदी से अठारहवीं सदी तक की रचना भाग दो ।

भविष्य पुराण के अनुसार इसके श्लोकों की संख्या 50,000 के लगभग होनी चाहिए, परन्तु वर्तमान में कुल 14,000 श्लोक ही उपलब्ध हैं।
भारतीय प्राच्य विद्या के विद्वानों के अनुसार भविष्य पुराण में मूलतः पचास हजार श्लोक विद्यमान थे।
परन्तु श्रव्य परम्परा पर निर्भरता और अभिलेखों के लगातार विनष्टीकरण के परिणामस्वरूप वर्तमान में केवल 129 अध्याय और अठ्ठाइस हजार श्लोक ही उपलब्ध रह गए हैं।
स्पष्ट है कि अभी भी दुनिया उन अद्‍भुत एवं विलक्षण घटनाओं और ज्ञान से पूर्णतया अनभिज्ञ हैं, जो इस पुराण के विलुप्त आधे भाग में वर्णित रही होंगी।
यह पुराण ब्रह्म, मध्यम, प्रतिसर्ग तथा उत्तर- इन 4 प्रमुख पर्वों में विभक्त है-।
ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन प्रतिसर्ग पर्व में वर्णित है। यह पुराण भारतवर्ष के वर्तमान समस्त आधुनिक इतिहास का आधार है।
इसके प्रतिसर्ग पर्व के तृतीय तथा चतुर्थ खण्ड में इतिहास की महत्वपूर्ण सामग्री विद्यमान है।

इतिहास लेखकों ने प्राय: इसी का आधार लिया है। भविष्य पुराण में भारत के राजवंशों और भारत पर शासन करने वाले विदेशियों के बारे में स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
इस पुराण के संबंध में कहा जाता है कि कलियुगीन राजाओं की पुराणों में प्राप्त बहुत सी जानकारी सर्वप्रथम ‘भविष्य पुराण ’ में वर्णित की गयी थी, जिसकी रचना दूसरी शताब्दी के पश्चात् मगध देश में पाली अथवा अर्धमागधी भाषा में, एवं खरोष्ट्री लिपि में दी गयी थी।
भविष्य पुराण के इस सर्वप्रथम संस्करण की रचना आंध्र राजा शातकर्णि के राज्यकाल में (द्वितीय शताब्दी का अंत) की गयी थी। भविष्यपुराण के इस आद्य संस्करण में तत्कालीन सूत एवं मगध लोगों में प्रचलित राजवंशों के सारे इतिहास की जानकारी वर्णित की गयी थी।
यद्यपि यह पुराण 5 हजार वर्ष पूर्व ऋषि वेद व्यास द्वारा लिखे जाने का उल्लेख मिलता है ।
जैसा सभी पुराणों के रचियता होने की मौहर व्यास नामक व्यक्ति पर लगायी गयी ।
जिसका समय समय पर नवीनतम संस्करण निकलते रहे हैं।
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ईसा मसीह के बारे में भी भविष्य पुराण में वर्णन है । इस पुराण में ईसा मसीह का जन्म, उनकी हिमालय यात्रा और तत्कालीन सम्राट शालिवाहन से भेंट के बारे में कथा दी गई हैं।
जिसे आधुनिक रिसर्च के बाद प्रमाणित भी किया जा चुका है।
( Jesus Crist)  जीजस क्राइष्ट भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व के तृ‍तीय खण्ड के द्वितीय अध्याय के श्लोक में   वर्णित हैं ।
जिसमें ईसा मसीह के लंबे समय तक भारत के उत्तरा- खण्ड में निवास करने और साधना रत रहने का वर्णन है। उस समय उत्तरी भारत में शालिवाहन का शासन था।
एक दिन जब वे शालिवाहन  हिमालय गए जहां लद्दाख की ऊंची पहाड़ियों पर उन्होंने एक गौरवर्ण दिव्य पुरुष को ध्यानमग्न अवस्था में तपस्या करते हुए देखा।
समीप जाकर उन्होंने उनसे पूछा-आपका नाम क्या है और आप कहां से आए हैं? उस पुरुष ने उत्तर दिया-
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मेरा नाम ईसा मसीह है।
मैं कुंवारी मां के गर्भ से उत्पन्न हुआ हूं। विदेश से आया हूं जहां बुराइयों का अंत नहीं है।
उन आस्थाहीनों के बीच मैं मसीहा के रूप में प्रकट हुआ हूं।
जैसे कि
म्लेच्छदेश मसीहो८हं समागत।।
..... ईसा मसीह इति च ममनाम प्रतिष्ठितम् ।।
कलयुग का वर्णन : ''रविवारे च सण्डे च फाल्गुनी चैव फरवरी।
षष्टीश्च सिस्कटी ज्ञेया तदुदाहार वृद्धिश्म्।।''
अर्थात भविष्य में अर्थात आंग्ल युग में जब देववाणी संस्कृत भाषा लुप्त हो जाएगी, तब रविवार को ‘सण्डे’, फाल्गुन महीने को ‘फरवरी’ और षष्टी को सिक्स कहा जाएगा। 
अब भविष्य पुराण कार की कल्पना भी हास्यास्पद ही है ।
भविष्यपुराण में बताया गया है कि कलयुग में लोगों के दिलों में छल होगा और अपनों के लिए भी लोगों के दिलों में जहर भरा होगा। 
अपनों का भी बुरा करने से कलयुग के लोग घबराया नहीं करेंगे। दूसरों का भी हक़ खाने की आदत लोगों को हो जाएगी और चारों तरफ लूट ही लूट होगी।
कलयुग में हर व्यक्ति को किसी न किसी चीज का अहंकार होगा और वह खुद को इसलिए दूसरों से ऊपर समझने का काम करेगा।

ब्रह्मा जी ने कहा- हे नारद! भयंकर कलियुग के आने पर मनुष्य का आचरण दुष्ट हो जाएगा और योगी भी दुष्ट चित्त वाले होंगे। संसार में परस्पर विरोध फैल जाएगा।
द्विज (ब्राह्मण) दुष्ट कर्म करने वाले होंगे और विशेषकर राजाओं में चरित्रहीनता आ जाएगी।
देश-देश और गांव-गांव में कष्ट बढ़ जाएंगे। साधू लोग दुःखी होंगे।
अपने धर्म को छोड़कर लोग दूसरे धर्म का आश्रय लेंगे। देवताओं का देवत्व भी नष्ट हो जाएगा और उनका आशीर्वाद भी नहीं रहेगा।
मनुष्यों की बुद्धि धर्म से विपरीत हो जाएगी और पृथ्वी पर म्लेच्छों के राज्य का विस्तार हो जाएगा।
म्लेच्छ का अर्थ होता है दुष्ट, नीच और अनार्य।
जब हिन्दू तथा मुसलमानों में परस्पर विरोध होगा और औरंगजेब का राज्य होगा, तब विक्रम सम्वत् १७३८ का समय होगा।
उस समय अक्षर ब्रह्म से भी परे सच्चिदानन्द परब्रह्म की शक्ति भारतवर्ष में इन्द्रावती आत्मा के अन्दर विजयाभिनन्द बुद्ध निष्कलंक स्वरूप में प्रकट होगी। वह चित्रकूट के रमणीय वन के क्षेत्र (पद्मावतीपुरी पन्ना) में प्रकट होंगे।
वे वर्णाश्रम धर्म (निजानन्द) की रक्षा तथा मंदिरों की स्थापना कर संसार को प्रसन्न करेंगे।
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भविष्य पुराण कार ने मोहम्मद साहब के विषय में वर्णन किया है कि ...
लिंड्गच्छेदी शिखाहीन: श्मश्रुधारी सदूषक:। उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनोमम।।25।। विना कौलं च पश्वस्तेषां भक्ष्या मतामम।
मुसलेनैव संस्कार: कुशैरिव भविष्यति ।।26।। तस्मान्मुसलवन्तो हि जातयो धर्मदूषका:।
इति पैशाचधर्मश्च भविष्यति मया कृत:।। 27।। : (भविष्य पुराण पर्व 3, खंड 3, अध्याय 1, श्लोक 25, 26, 27)
व्याख्‍या : रेगिस्तान की धरती पर एक 'पिशाच' जन्म लेगा जिसका नाम महामद होगा, वो एक ऐसे धर्म की नींव रखेगा जिसके कारण मानव जाति त्राहिमाम् कर उठेगी। 
वो असुर कुल सभी मानवों को समाप्त करने की चेष्टा करेगा।
उस धर्म के लोग अपने लिंग के अग्रभाग को जन्म लेते ही काटेंगे, उनकी शिखा (चोटी) नहीं होगी, वो दाढ़ी रखेंगे, पर मूंछ नहीं रखेंगे।
वो बहुत शोर करेंगे और मानव जाति का नाश करने की चेष्टा करेंगे।
राक्षस जाति को बढ़ावा देंगे एवं वे अपने को 'मुसलमान' कहेंगे और ये असुर धर्म कालान्तरण में स्वत: समाप्त हो जाएगा।

भविष्य पुराण में मोहम्मद साहब के विषय में विस्तृत विवरण है ।👇

भविष्य  पुराण   में  महामद  ( मुहम्मद ) एक पैशाचिक धर्म स्थापक हैं । -भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व, खण्ड 3, अध्याय 3 श्लोक 1 -31
पुराणों की रचना भी पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी रूढ़िवादी ब्राह्मणों की परम्परागत कल्पना प्रवण मिथकीयता रचनाऐं हैं । जिनमें सूय और शौनक के संवाद रूप में वर्णन है ।जैसे भविष्य पुराण में भी वही संवाद शैली है ।

श्री सूत उवाच-
1. शालिवाहन वंशे च राजानो दश चाभवन्।
राज्यं पञ्चशताब्दं च कृत्वा लोकान्तरं ययुः।।
श्री सूत जी ने कहा - राजा शालिवाहन के वंश में दस राज हुए थे। उन सबने पञ्च सौ वर्ष पर्यन्त राज्य शासन किया था और अंत में दुसरे लोक में चले गए थे।

2. मर्य्यादा क्रमतो लीना जाता भूमण्डले तदा। भूपतिर्दशमो यो वै भोजराज इति स्मृतः।
उस समय में इस भू-मण्डल में क्रम से मर्यादा लीन हो गयी थी। जो इनमे दशम राजा हुआ है वह भोजराज नाम से प्रसिद्द हुआ। .

3. दृष्ट्वा प्रक्षीणमर्य्यादां बली दिग्विजयं ययौ। सेनया दशसाहस्र्या कालिदासेन संयुतः।
उसने मर्यादा क्षीण होते देखकर परम बलवान उसने(राजा ने) दिग्विजय करने को गमन किया था। सेना में दस सहस्त्र सैनिक के साथ कविश्रेष्ठ कालिदास थे।

4. तथान्यैर्ब्राह्मणैः सार्द्धं सिन्धुपारमुपाययौ जित्वा गान्धारजान् म्लेच्छान् काश्मीरान् आरवान् शठान्।
.तथा अन्य ब्राह्मणों के सहित वह सिन्धु नदी के पार प्राप्त हुआ(अर्थात पार किया) था। और उसने गान्धारराज, मलेच्छ, काश्मीर, नारव और शठों को दिग्विजय में जीता।

5. तेषां प्राप्य महाकोषं दण्डयोग्यानकारयत् एतस्मिन्नन्तरे म्लेच्छ आचार्येण समन्वितः।

. उनका बहुत सा कोष प्राप्त करके उन सबको योग्य दण्ड दिया था। इसी समय काल में मल्लेछों का एक आचार्य हुआ।

6. महामद इति ख्यातः शिष्यशाखा समन्वितः नृपश्चैव महादेवं मरुस्थलनिवासिनम्।
महामद शिष्यों की अपने शाखाओं में बहुत प्रसिद्द था। नृप(राजा) ने मरुस्थल में निवास करने वाले महादेव को नमन किया।

7. गंगाजलैश्च सस्नाप्य पञ्चगव्य समन्वितैः। चन्दनादिभिरभ्यर्च्य तुष्टाव मनसा हरम् ।
. पञ्चजगव्य से युक्त गंगा के जल से स्नान कराके तथा चन्दन आदि से अभ्यार्चना (महादेव) को स्तुति की।

                  भोजराज उवाच-
8. नमस्ते गिरिजानाथ मरुस्थलनिवासिने। त्रिपुरासुरनाशाय बहुमायाप्रवर्त्तिने।
  . भोजराज ने कहा - हे गिरिजा नाथ ! मरुस्थल में निवास करने वाले, बहुत सी माया में प्रवत होने त्रिपुरासुर नाशक वाले हैं।

9. म्लेच्छैर्गुप्ताय शुद्धाय सच्चिदानन्दरूपिणे। त्वं मां हि किंकरं विद्धि शरणार्थमुपागतम् ।
. मलेच्छों से गुप्त, शुद्ध और सच्चिदानन्द रूपी, मैं आपकी विधिपूर्वक शरण में आकर प्रार्थना करता हूँ।

सूत उवाच-

10. इति श्रुत्वा स्तवं देवः शब्दमाह नृपाय तम्। गन्तव्यं भोजराजेन महाकालेश्वरस्थले ।
. सूत जी ने कहा - महादेव ने प्रकार स्तुति सुन राजा से ये शब्द कहे "हे भोजराज आपको महाकालेश्वर तीर्थ जाना चाहिए।"

11. म्लेच्छैस्सुदूषिता भूमिर्वाहीका नाम विश्रुता। आर्य्यधर्मो हि नैवात्र वाहीके देशदारुणे ।
. यह वाह्हीक भूमि मलेच्छों द्वारा दूषित हो चुकी है। इस दारुण(हिंसक) प्रदेश में आर्य( देव-संस्कृति मूलक)-धर्म नहीं है।

12. बभूवात्र महामायी योऽसौ दग्धो मया पुरा। त्रिपुरो बलिदैत्येन प्रेषितः पुनरागतः ।
. जिस महामायावी राक्षस को मैंने पहले माया नगरी में भेज दिया था(अर्थात नष्ट किया था) वह त्रिपुर दैत्य कलि के आदेश पर फिर से यहाँ आ गया है।

13. अयोनिः स वरो मत्तः प्राप्तवान् दैत्यवर्द्धनः। महामद इति ख्यातः पैशाच कृति तत्परः ।
. वह मुझसे वरदान प्राप्त अयोनिज(मूसल, मूलहीन) हैं। एवं दैत्य समाज की वृद्धि कर रहा है। महामद के नाम से प्रसिद्द और पैशाचिक कार्यों के लिए तत्पर है।

14. नागन्तव्यं त्वया भूप पैशाचे देशधूर्तके। मत् प्रसादेन भूपाल तव शुद्धिः प्रजायते ।
. हे भूप(भोजराज) ! आपको मानवता रहित धूर्त देश में नहीं जाना चाहिए।
मेरी प्रसाद(कृपा) से तुम विशुद्ध राजा हो।

15. इति श्रुत्वा नृपश्चैव स्वदेशान् पुनरागमत्। महामदश्च तैः सार्द्धं सिन्धुतीरमुपाययौ ।
. यह सुनने पर राजा ने स्वदेश को वापस प्रस्थान किया। और महामद उनके पीछे सिन्धु नदी के तीर(तट) पर आ गया।

16. उवाच भूपतिं प्रेम्णा मायामदविशारदः। तव देवो महाराज मम दासत्वमागतः ।
. मायामद माया के ज्ञाता(महामद) ने  राजा से झूठ     कहा - हे महाराज ! आपके देव ने मेरा दासत्व स्वीकार किया है अतः वे मेरे दास हो गए हैं।

17. ममोच्छिष्टं संभुजीयाद्याथात त्पश्य भो नृप। इति श्रुत्वा तथा परं विस्मयमागतः ।
. हे नृप(भोजराज) ! इसलिए आज से आप   मुझे ईश्वर के संभुज(बराबर) उच्छिष्ट(अवशेष) मानिए, ये सुन कर राजा विस्मय को प्राप्त भ्रमित हुआ।

18. म्लेच्छधर्मे मतिश्चासीत्तस्य भूपस्य दारुणे, तच्छृत्वा कालिदासस्तु रुषा प्राह महामदम्।
. राजा की दारुण(भयंकर) म्लेच्छ धर्म में रूचि में वृद्धि हुई।
यह राजा के श्रवण करते देख, कालिदास ने क्रोध में भरकर महामद से कहा।

19. माया ते निर्मिता धूर्त नृपम्हन हेतवे हनिष्यामि दुराचारं वाहीकं पुरुषाधमम्।
१९. हे धूर्त ! तूने नृप(राजधर्म) से मोह न करने हेतु माया रची है। दुष्ट आचार वाले पुरुषों में अधम वाहीक (बाह्लीक) को मैं तेरा नाश कर दूंगा।

20. इत्युक्त्वा स द्विजः श्रीमान् नवार्ण जप तत्परः जप्त्वा दशसहस्रं च तद्दशांशं जुहाव सः।
. यह कह श्रीमान ब्राह्मण(कालिदास) ने नर्वाण मंत्र में तत्परता की। नर्वाण मंत्र का दश सहस्त्र जाप किया और उसके दशाश जप किया।

21. भस्म भूत्वा स मायावी म्लेच्छदेवत्वमागतः, भयभीतस्तु तच्छिष्या देशं वाहीकमाययुः।
. वह मायावी भस्म होकर मलेच्छ देवत्व अर्थात मृत्यु को प्राप्त हुआ। भयभीत होकर उसके शिष्य वाहीक देश में आ गए।

22. गृहीत्वा स्वगुरोर्भस्म मदहीनत्वमागतम्, स्थापितं तैश्च भूमध्ये तत्रोषुर्मदतत्पराः।
. उन्होंने अपने गुरु(महामद) की भस्म को ग्रहण कर लिया और और वे मदहीन को गए। भूमध्य में उस भस्म को स्थापित कर दिया। और वे वहां पर ही बस गए।

23. मदहीनं पुरं जातं तेषां तीर्थं समं स्मृतम्, रात्रौ स देवरूपश्च बहुमायाविशारदः।
. वह मदहीन पुर हो गया और उनके तीर्थ के सामान माना जाने लगा।
उस बहुमाया के विद्वान(महामद) ने रात्रि में देवरूप धारण किया।

24. पैशाचं देहमास्थाय भोजराजं हि सोऽब्रवीत् आर्य्यधर्म्मो हि ते राजन् सर्ब धर्मोतमः स्मृतः ।
. आत्मा रूप में पैशाच देह को धारण कर भोजराज आकर से कहा।
हे राजन(भोजराज) !मेरा   यह आर्य समस्त धर्मों में अतिउत्तम है।

25. ईशाज्ञया करिष्यामि पैशाचं धर्मदारुणम् लिंगच्छेदी शिखाहीनः श्मश्रुधारी स दूषकः।
. अपने ईश की आज्ञा से पैशाच दारुण धर्म मैं करूँगा। मेरे लोग लिंगच्छेदी(खतना किये हुए), शिखा(चोटी) रहित, दाढ़ी रखने वाले दूषक होंगे।

26. उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनो मम विना कौलं च पशवस्तेषां भक्ष्या मता मम।
. ऊंचे स्वर में अलापने वाले और सर्वभक्षी होंगे। हलाल(ईश्वर का नाम लेकर) किये बिना सभी पशु उनके खाने योग्य न होगा।

27. मुसलेनैव संस्कारः कुशैरिव भविष्यति तस्मात् मुसलवन्तो हि आतयो धर्मदूषकाः।
. मूसल से उनका संस्कार किया जायेगा। और मूसलवान हो इन धर्म दूषकों की कई जातियां होंगी।

28. इति पैशाच धर्म श्च भविष्यति मयाकृतः इत्युक्त्वा प्रययौ देवः स राजा गेहमाययौ।
. इस प्रकार भविष्य में मेरे(मायावी महामद) द्वारा किया हुआ यह पैशाच धर्म होगा। यह कहकर वह वह (महामद) चला गया और राजा अपने स्थान पर वापस आ गया।

29. त्रिवर्णे स्थापिता वाणी सांस्कृती स्वर्गदायिनी,शूद्रेषु प्राकृती भाषा स्थापिता तेन धीमता।
. उसने तीनों वर्णों में स्वर्ग प्रदान करने वाली सांस्कृतिक भाषा को स्थापित किया और विस्तार किया। शुद्र वर्ण हेतु वहां प्राकृत भाषा के का ज्ञान स्थापित विस्तार उसका विस्तार किया
(ताकि शिक्षा और कौशल का आदान प्रदान आसान हो)।

30. पञ्चाशब्दकालं तु राज्यं कृत्वा दिवं गतः, स्थापिता तेन मर्यादा सर्वदेवोपमानिनी।
. राजा ने पचास वर्ष काल पर्यंत राज(शासन) करते हुए दिव्य गति(परलोक) को प्राप्त हुआ। तब सभी देवों की मानी जाने वाली मर्यादा स्थापित हुई।

31. आर्य्यावर्तः पुण्यभूमिर्मध्यंविन्ध्यहिमालयोः आर्य्य वर्णाः स्थितास्तत्र विन्ध्यान्ते वर्णसंकराः।
. विन्ध्य और हिमाचल के मध्य में आर्यावर्त परम पुण्य भूमि है अर्थात सबसे उत्तम(पवित्र) भूमि है, आर्य(श्रेष्ठ) वर्ण यहाँ स्थित हुए। और विन्ध्य के अंत में अन्य कई वर्ण मिश्रित हुए।

भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व, खण्ड 3, अध्याय 3 श्लोक  . 1 -31
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इस पुराण में द्वापर और कलियुग के राजा तथा उनकी भाषाओं के साथ-साथ विक्रम-बेताल तथा बेताल पच्चीसी की कथाओं का विवरण भी है।

सत्यनारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गई है। इस पुराण में ऐतिहासिक व आधुनिक घटनाओं का वर्णन किया गया है।
इसमें आल्हा-उदल के इतिहास का प्रसिद्ध आख्यान इसी पुराण के आधार पर प्रचलित है।
इस पुराण में नन्द वंश, मौर्य वंश एवं शंकराचार्य आदि के साथ-साथ इसमें मध्यकालीन हर्षवर्धन आदि हिन्दू और बौद्ध राजाओं तथा चौहान एवं परमार वंश के राजाओं तक का वर्णन प्राप्त होता है।
इस पुराण में कबीर गुरु नानक आदि सन्तों का भी वर्णन है ।
इसमें तैमूर, बाबर, हुमायूं, अकबर, औरंगजेब, पृथ्वीराज चौहान तथा छत्रपति शिवाजी के बारे में भी स्पष्‍ट उल्लेख मिलता है।
श्रीमद्भागवत पुराण के द्वादश स्कंध के प्रथम अध्याय में भी वंशों का वर्णन मिलता है।

अब महात्मा बुद्ध को भी भविष्य पुराण कार ने असुर अवतार घोषित कर दिया ...
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पौराणिक पुरोहित सदैव ही इस बात को लेकर द्विविधा अर्थात् दो विरोधी धारणाओं से आक्रान्त रहे हैं कि वे महात्मा बुद्ध को स्वीकार करें तो किस रूप में  ?
पुराणों के अध्ययन से भी यह बात स्पष्ट हो जाती है कि  महात्मा बुद्ध को लेकर पौराणिकों मे सदैव दो मत रहे हैं। कुछ पौराणिक चाहते थे कि बुद्ध को विष्णु का अवतार बनाकर ब्राह्मण धर्म का ही अंग घोषित कर दे, और कुछ बुद्ध से काफी कुपित थे तो उनके लिये अपशब्द ही बोलते थे। गालियाँ देते चौर भी कहते 👇
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वाल्मीकि रामायण में चौर के रूप में वाल्मीकि-रामायण में यह उत्तर- काण्ड का प्रकरण
पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मणों ने शूद्रों को लक्ष्य करके यह मनगढ़न्त रूप  से  राम-कथा से सम्बद्ध कर दिया ---
ताकि लोक में इसे सत्य माना जाय  !
इतनी ही नहीं वाल्मीकि-रामायण के अयोध्या काण्ड १०९ वें सर्ग ३४ वें श्लोक में जावालि ऋषि के साथ सम्वाद रूप में राम के मुख से बुद्ध को चौर तथा नास्तिक कहलवाया गया देखें---
वाल्मीकि-रामायण अयोध्या काण्ड १०९ वें सर्ग का ३४ वाँ श्लोक--
यथा ही चौर स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि -
वायुपुराण, विष्णुपुराण और नरसिंहपुराण तथा भागवत पुराण ने  बुद्ध को विष्णु का अवतार माना तो भविष्यपुराण ने बुद्ध को आसुरी-स्वरूप घोषित कर दिया। अब स्पष्ट सी बात है कि व्यास ने ये दो विरोधी बाते क्या लिखी थी?

भविष्यपुराण (गीताप्रेस कोड-584) प्रतिसर्गपर्व चतुर्थखण्ड (पृष्ठ सं-372) मे लिखा है कि
"2700 वर्ष कलियुग बीत जाने के बाद बलि नामक असुर के द्धारा भेजा गया 'मय' नामक असुर धरती पर आया! वह असुर शाक्यगुरू बनकर दैत्यपक्ष को बढ़ाने लगा और जो उसका शिष्य होता उसे 'बौद्ध' कहा जाएगा 
वह अनेक तीर्थों पर मायावी यन्त्रों को स्थापित कर देगा , जिससे जो भी मानव उन तीर्थों पर जाता वह 'बौद्ध' हो जाएगा ।
इससे चारों तरफ बौद्ध व्याप्त हो गये और दस करोड़ आर्य बौद्ध बन गये।"

इस पुराण मे जिस "मय" असुर का वर्णन है, वह कोई और नही बल्कि गौतम बुद्ध है! इस पुराण मे बुद्ध को मानने वाले बौद्धों को "दैत्यपक्षी" कहा गया है।

भविष्यपुराण के इस कथन से यह स्पष्ट है कि पौराणिकों को बुद्ध से किस कदर चिढ़ थी कि उन्हे दैत्य ही घोषित कर दिया।
जबकि इसके पूर्व के पुराणों ने बुद्ध को विष्णु का अवतार माना है।

नरसिंहपुराण अध्याय-36 श्लोक-9 मे लिखा है-
"कलौ प्राप्ते यथा बुद्धो भवेन्नारायणः प्रभुः"
अर्थात- कलियुग प्राप्त होने पर भगवान नारायण बुद्ध का रूप धारण करेंगे।

इसी नरसिंहपुराण मे एक अन्य स्थान पर बुद्ध को राम का ही वंशज तथा सूर्यवंशी भी बताया गया है। इस पुराण के 21वें अध्याय मे लिखा है कि राम के पुत्र लव, लव के पुत्र पद्म, पद्म के पुत्र अनुपर्ण, अनुपर्ण के पुत्र वस्त्रपाणि, वस्त्रपाणि के पुत्र शुद्धोधन और शुद्धोधन के पुत्र गौतम बुद्ध हुये।
अर्थात राम की छठवीं पीठी मे बुद्ध पैदा हुये थे।

वैसे अगर इसे पूर्ण सच मान लिया जाये तो फिर राम का समय आज से लगभग तीन हजार साल के आसपास का ही होता है !
यदि बुद्ध अब से ढ़ाई हजार साल पहले थे तो उनके छः पूर्वज अधिकतम छः सौ साल और पूर्व होगे, जो लगभग ईसा से 1100 सौ वर्ष पूर्व का हो सकता है!
अब यह गणना इतनी कम है, अतः सनातनी इसे मानने से तुरन्त इनकार कर देंगे।
यहाँ मै आपको एक बात और बता दूँ कि नरसिंहपुराण हिन्दूधर्म के 18 पुराणों मे नही आता। यह एक उपपुराण है, अतः अधिकांश लोग यही मानते हैं की इसमे मिलावट नही है।

अब सोचना यह है कि यदि इतने पुराणों मे बुद्ध को विष्णु का अवतार कहा गया है तो सबसे अन्त मे लिखे गये भविष्यपुराण मे उन्हे असुर क्यों कहा गया?

इसी भविष्यपुराण प्रतिसर्गपर्व के तृतीयखण्ड मे आल्हा के भाई ऊदल को कृष्ण का अवतार कहता है, पर इतने बड़े समाज-सुधारक तथागत बुद्ध को असुर बताता है।
जबकि भागवत पुराण में बुद्ध विष्णु का रूप हैं ।
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..भागवतपुराण में महात्मा बुद्ध का वर्णन सिद्ध करता है-कि भागवतपुराण बुद्ध के बहुत बाद की रचना है ।
दशम् स्कन्ध अध्याय 40 में श्लोक संख्या 22 ( गीताप्रेस गोरखपुर संस्करण )पर
वर्णन है कि 👇
नमो बुद्धाय शुद्धाय दैत्यदानवमोहिने ।
म्लेच्छ प्राय क्षत्रहन्त्रे नमस्ते कल्कि रूपिणे ।।22
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दैत्य और दानवों को  मोहित करने के लिए आप शुद्ध अहिंसा मार्ग के प्रवर्तक बुद्ध का जन्म ग्रहण करेंगे ---मैं आपके लिए नमस्कार करता हूँ ।और पृथ्वी के क्षत्रिय जब म्लेच्छ प्राय हो जाऐंगे तब उनका नाश करने के लिए आप कल्कि अवतार लोगे ! मै आपको नमस्कार करता हूँ 22।

भागवतपुराण में अनेक प्रक्षिप्त (नकली) श्लोक हैं
जैसे- 👇

पौराणिक पुरोहित  सदैव से ही इस बात को लेकर द्विविधा अर्थात् दो विरोधी धारणाओं से आक्रान्त  रहे हैं कि वे महात्मा बुद्ध को स्वीकार करें तो किस रूप में
क्यों बुद्ध ब्राह्मण वाद और वर्ण व्यवस्था के विध्वंसक थे
पुराणों के अध्ययन से भी यह बात स्पष्ट हो  जाती है कि महात्मा बुद्ध को लेकर पौराणिकों मे सदैव दो मत रहे हैं। कुछ पौराणिक चाहते थे कि बुद्ध को विष्णु का अवतार बनाकर भारतीय धर्म का ही अंग घोषित कर दे, और कुछ बुद्ध से काफी कुपित थे तो उनके लिये अपशब्द ही बोलते थे।
जैसा कि वाल्मीकि रामायण में भी 😊😊😊😊😊
वायुपुराण, विष्णुपुराण और नरसिंहपुराण ने खुले तौर पर बुद्ध को विष्णु का अवतार माना तो भविष्यपुराण ने बुद्ध को आसुरी-स्वरूप घोषित कर दिया।

भविष्यपुराण (गीताप्रेस कोड-584) प्रतिसर्गपर्व चतुर्थखण्ड (पृष्ठ सं-372) मे लिखा है कि "2700 साल कलियुग बीत जाने के बाद बलि नामक असुर के द्धारा भेजा गया 'मय' नामक असुर धरती पर आया! वह असुर शाक्यगुरू बनकर दैत्यपक्ष को बढ़ाने लगा और जो उसका शिष्य होता उसे 'बौद्ध' कहा जाता। उसने तमाम तीर्थों पर मायावी यन्त्रों को स्थापित कर दिया था, जिससे जो भी मानव उन तीर्थों पर जाता वह 'बौद्ध' हो जाता। इससे चारों तरफ बौद्ध व्याप्त हो गये और दस करोड़ आर्य बौद्ध बन गये।"

इस पुराण मे जिस "मय" असुर का वर्णन है, वह कोई और नही बल्कि गौतम बुद्ध है! इस पुराण मे बुद्ध को मानने वाले बौद्धों को "दैत्यपक्षी" कहा गया है।

भविष्यपुराण के इस कथन से यह स्पष्ट है कि पौराणिकों को बुद्ध से किस कदर चिढ़ थी कि उन्हे दैत्य ही घोषित कर दिया। जबकि इसके पूर्व के पुराणों ने बुद्ध को विष्णु का अवतार माना है।

नरसिंहपुराण अध्याय-36 श्लोक-9 मे लिखा है-
"कलौ प्राप्ते यथा बुद्धो भवेन्नारायणः प्रभुः"
अर्थात- कलियुग प्राप्त होने पर भगवान नारायण बुद्ध का रूप धारण करेंगे।

इसी नरसिंहपुराण मे एक अन्य स्थान पर बुद्ध को राम का ही वंशज तथा सूर्यवंशी भी बताया गया है। इस पुराण के 21वें अध्याय मे लिखा है कि राम के पुत्र लव, लव के पुत्र पद्म, पद्म के पुत्र अनुपर्ण, अनुपर्ण के पुत्र वस्त्रपाणि, वस्त्रपाणि के पुत्र शुद्धोधन और शुद्धोधन के पुत्र गौतम बुद्ध हुये।
अर्थात राम की छठवीं पीठी मे बुद्ध पैदा हुये थे।

वैसे अगर इसे पूर्ण सच मान लिया जाये तो फिर राम का समय आज से लगभग तीन हजार साल के आसपास का ही होता है! यदि बुद्ध अब से ढ़ाई हजार साल पहले थे तो उनके छः पूर्वज अधिकतम छः सौ साल और पूर्व होगे, जो लगभग ईसा से 1100 सौ वर्ष पूर्व का हो सकता है!
अब यह गणना इतनी कम है, अतः सनातनी इसे मानने से तुरन्त इनकार कर देंगे।
यहाँ मै आपको एक बात और बता दूँ कि नरसिंहपुराण हिन्दूधर्म के 18 पुराणों मे नही आता। यह एक उपपुराण है, अतः अधिकांश लोग यही मानते हैं की इसमे मिलावट नही है।

अब सोचना यह है कि यदि इतने पुराणों मे बुद्ध को विष्णु का अवतार कहा गया है तो सबसे अन्त मे लिखे गये भविष्यपुराण मे उन्हे असुर क्यों कहा गया?

इसी भविष्यपुराण प्रतिसर्गपर्व के तृतीयखण्ड मे आल्हा के भाई ऊदल को कृष्ण का अवतार कहता है, पर इतने बड़े समाज-सुधारक तथागत बुद्ध को असुर बताता है

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सन्‌ 1857 में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के भारत की साम्राज्ञी बनने और आंग्ल भाषा के प्रसार से भारतीय भाषा संस्कृत के विलुप्त होने की भविष्यवाणी भी इस ग्रंथ में स्पष्ट रूप से की गई है।
भविष्य पुराण में वर्णन आता है कि एक समय जब हिन्दुस्तान की सीमा हिंदकुश पर्वत तक थी तो वहां के प्रसिद्ध शिव मंदिर था।
ऐसा कहा जाता है कि एक बार कुछ लोग हिन्दकुश पर्वत पर शिव के दर्शन करने गए थे तो भगवान शिव ने इन लोगों को बताया था कि अब आप सभी यहां से लौट जाओ।
मैं भी इस स्थान को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ रहा हूं।
जाओ और सभी को बताओ कि अब यहां किसी को नहीं आना है। थोड़े दिनों में प्रलय की शुरुआत यहां होने वाली है।
कहा जाता है कि इसके बाद खलिफाओं के आक्रमण ने अफगान और हिन्दुकुश पर्वतमाला के पास रहने वाले 15 लाख हिन्दुओं का सामूहिक नरसंहार किया था।
अफगान इतिहासकार खोण्डामिर के अनुसार यहां पर कई आक्रमणों के दौरान 15 लाख हिन्दुओं का सामूहिक नरसंहार किया गया था।
इसी के कारण यहां के पर्वत श्रेणी को हिन्दुकुश नाम दिया गया, जिसका अर्थ है 'हिंदुओं का वध।'
हालांकि कुछ संत लोग मानते हैं कि भगवान जब किसी स्थान से नाराज होते हैं तो वहां प्राकृतिक प्रलय आने लगती हैं।
आज हिंद्कुश पर्वत और आसपास का क्षेत्र भूकंप के आने का केंद्र बना हुआ है। ''अपनी तुच्छ बुद्धि को ही शाश्वत समझकर कुछ मूर्ख ईश्वर की तथा धर्मग्रंथों की प्रामाणिकता मांगने का दुस्साहस करेंगे इसका अर्थ है उनके पाप जोर मार रहे हैं।''
पुराणों में भारत में आज तक होने वाले सभी शासकों की वंशावली का उल्लेख मिलता है।
पुराणकार पुराणों की भविष्यवाणियों का अलग-अलग अर्थ निकालते हैं। यहां प्रस्तुत हैं भागवत पुराण में दर्ज भविष्यवाणी के अंश।
''ज्यों-ज्यों घोर कलयुग आता जाएगा त्यों-त्यों सौराष्ट्र, अवंति, अभीर शूर, अर्बुद और मालव देश के ब्राह्मणगण संस्कारशून्य हो जाएंगे तथा राजा लोग भी शूद्रतुल्य हो जाएंगे।'' 
जो ब्रह्म को मानने वाले हैं वही ब्राह्मण है। आज की जनता ब्रह्म को छोड़कर सभी को पूजने लगी है। जब सभी वेदों को छोड़कर संस्कारशून्य हो जाएंगे तब... ''सिंधुतट, चंद्रभाग का तटवर्ती प्रदेश, कौन्तीपुरी और कश्मीर मंडल पर प्राय: शूद्रों का संस्कार ब्रह्मतेज से हीन नाममा‍त्र के द्विजों का और म्लेच्छों का राज होगा। सबके सब राजा  आचार-विचार में म्लेच्छप्राय होंगे।
वे सब एक ही समय में भिन्न-भिन्न प्रांतों में राज करेंगे।'' आप जानते हैं कि सिंधु के ज्यादातर तटवर्ती इलाके अब पाकिस्तान का हिस्सा बन गए हैं। कुछ कश्मीर में हैं, जहां नाममात्र के द्विज अर्थात ब्राह्मण हैं। इन सभी (म्लेच्छों) के बारे में पुराणों में लिखा है कि... ''ये सबके सब परले सिरे के झूठे, अधार्मिक और स्वल्प दान करने वाले होंगे। छोटी बातों को लेकर ही ये क्रोध के मारे आग-बबूला हो जाएंगे।'' अब आगे पढ़िए कश्मीर में ब्राह्मणों के साथ जो हुआ, ''ये दुष्ट लोग स्त्री, बच्चों, गौओं और ब्राह्मणों को मारने में भी नहीं हिचकेंगे। दूसरे की स्त्री और धन हथिया लेने में ये सदा उत्सुक रहेंगे। न तो इन्हें बढ़ते देर लगेगी और न घटते।
इनकी शक्ति और आयु थोड़ी होगी।
राजा के वेश में ये म्लेच्‍छ ही होंगे।'' पूरे देश की यही हालत है अब राजा (राजनेता) न तो क्षत्रित्व धारण करने वाले रहे और न ही ब्राह्मणत्व। राजधर्म तो लगभग समाप्त ही हो गया है तो ऐसी स्थिति में, ''वे लूट-खसोटकर अपनी प्रजा का खून चूसेंगे।
जब ऐसा शासन होगा तो देश की प्रजा में भी वैसा ही स्वभाव, आचरण, भाषण की वृद्धि हो जाएगी। राजा लोग तो उनका शोषण करेंगे ही, आपस में वे भी एक-दूसरे को उत्पीड़ित करेंगे और अंतत: सबके सब नष्ट हो जाएंगे।'' -भागवत पुराण (अध्याय 'कलयुग की वंशावली' से अंश)

ब्रह्मा जी ने कहा- हे नारद! भयंकर कलियुग के आने पर मनुष्य का आचरण दुष्ट हो जाएगा और योगी भी दुष्ट चित्त वाले होंगे। संसार में परस्पर विरोध फैल जाएगा। द्विज (ब्राह्मण) दुष्ट कर्म करने वाले होंगे और विशेषकर राजाओं में चरित्रहीनता आ जाएगी। देश-देश और गांव-गांव में कष्ट बढ़ जाएंगे। साधू लोग दुःखी होंगे। अपने धर्म को छोड़कर लोग दूसरे धर्म का आश्रय लेंगे। देवताओं का देवत्व भी नष्ट हो जाएगा और उनका आशीर्वाद भी नहीं रहेगा। मनुष्यों की बुद्धि धर्म से विपरीत हो जाएगी और पृथ्वी पर मलेच्छों के राज्य का विस्तार हो जाएगा। मलेच्छ का अर्थ होता है दुष्ट, नीच और अनार्य।

जब हिन्दू तथा मुसलमानों में परस्पर विरोध होगा और औरंग जैब आयेगा ।

भविष्यपुराण (गीताप्रेस कोड-584) प्रतिसर्गपर्व चतुर्थखण्ड (पृष्ठ-343) पर तैमूरलंग द्वारा भारत पर आक्रमण की कथा लिखी है। यह घटना चौदहवीं सदी की बात है । भविष्य पुराण में लिखा है कि तैमूरलंग ने भारत पर आक्रमण करके यहाँ के देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तोड़ डाली, और पुजारियों से कहा कि तुम लोग मूर्तिपूजक हो, तुम लोग शालिग्राम को विष्णु (भगवान) मानते हो जबकि यह एक पत्थर है।
ऐसा कहकर वह शालग्राम की तमाम मूर्तियाँ ऊँट पर लदबाकर अपने देश तातार (उजबेकिस्तान के पास का क्षेत्र) लेकर चला गया और वहाँ उसने उन मूर्तियों का सिंहासन बनवाया तथा उस पर बैठने लगा!
शालग्राम की ऐसी दुर्दशा देखकर तमाम देवता दुःखी होकर इन्द्र के पास गये और बोले कि हे देवराज! अब आप ही कुछ करो।
फिर क्रोध में आकर इन्द्र ने अपना वज्र तातार देश की ओर फैंककर मारा! वज्र के प्रहार से तैमूरलंग का राज्य टुकड़े-टुकड़े हो गया और तैमूरलंग अपने सभी सभासदों समेत मृत्यु को प्राप्त हो गया।

तातपर्य यह पुराण कह रहा है कि तैमूरलंग का वध इन्द्र ने किया था।

अब जरा यह सोचो कि यदि इन्द्र इतना बड़ा यौद्धा था । तो जब बाबर के कहने पर मीरबाकी राममन्दिर तोड़ रहा था तब वे क्या कर रहे था ?

इस कथा से यह स्पष्ट होता होता है कि पुराणों में कितना काल्पनिक वर्णन है! वास्तव में जैसे इन्द्र ने तैमूरलंग को मारा,
तैमूर लंग (अर्थात तैमूर लंगड़ा) (जिसे 'तिमूर' भी कहा जाता है । इसकी जन्म (8 अप्रैल सन् 1336 –  और मृत्यु 18 फ़रवरी 1405) को इतिहास में दर्ज है । यह चौदहवी शताब्दी का एक शासक था जिसने प्रसिद्धं तैमूरी राजवंश की स्थापना की थी।
उसका राज्य पश्चिम एशिया से लेकर मध्य एशिया होते हुए भारत तक फैला था।
उसकी गणना संसार के महान्‌ और निष्ठुर विजेताओं में की जाती है। वह बरलस तुर्क खानदान में पैदा हुआ था। उसका पिता तुरगाई बरलस तुर्कों का नेता था। भारत के मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक बाबर तिमूर का ही वंशज था।
इतिहास में इसका जन्म विवरण इस प्रकार है ।
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तमेद चिन्गिज़ खान (Tamed Chingizid Khan)
जन्म६ अप्रैल १३३६
शहर-ऐ-सब्ज़, उज्बेगिस्तान
मृत्यु१९ फ़रवरी १४०५
ओत्रार, कजाख्स्तान
दफ़नगुर-ऐ-आमिर, समरकन्द उज्बेगिस्तान
राजघरानातिमुर
वंशमुगल
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अठारहवीं सदी की विक्टोरिया का वर्णन भी भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व में है ।
विक्टोरिया
पूर्व संयुक्त राजशाही की महारानी थी

महारानी विक्टोरिया, (यूनाइटेड किंगडम इग्लेण्ड) की महारानी थीं।
इसकी मृत्यु: 22 जनवरी 1901 है । भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व में (विक्टोरिया )का नाम  (विकटावती) कह कर वर्णित किया गया है ।
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वास्तव मे पुराणों मे जितने पात्रों का वर्णन है, वे पात्र तो रहे होंगे, पर उनसे जुड़ी कथाऐं इन्द्र और तैमूरलंग की कथा जितनी ही सच होगी।

अब जो लोग मुझे कहते हैं कि पुराणों मे अलंकरण है, उसे समझना आसान नही! वे लोग जरा इस कथा को आसान करके मुझे समझा दें।

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