मंगलवार, 15 अगस्त 2017

काव्य -गुण उत्तम विचार )

काव्य गुण ( शब्द गुण ) काव्य गुण ( शब्द गुण ) प्रश्न :- काव्य - गुण किसे कहते हैं ? उत्तर :- काव्य में आंतरिक सौन्दर्य तथा रस के प्रभाव एवं उत्कर्ष के लिए स्थायी रूप से विद्यमान मानवोचित भाव और धर्म या तत्व को काव्य गुण ( शब्द गुण ) कहते हैं । यह काव्य में उसी प्रकार विद्यमान होता है , जैसे फूल में सुगन्धि। प्रश्न :- काव्य - गुण कितने प्रकार के होते हैं ? प्रयेक का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए । उत्तर :- काव्य गुण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं - 1. माधुर्य 2. ओज 3. प्रसाद 1. माधुर्य गुण - किसी काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में मधुरता का संचार होता है , वहाँ माधुर्य गुण होता है । यह गुण विशेष रूप से श्रृंगार, शांत, एवं करुण रस में पाया जाता है । माधुर्य गुण युक्त काव्य में कानों को प्रिय लगने वाले मृदु वर्णों का प्रयोग होता है जैसे - क,ख, ग, च, छ, ज, झ, त, द, न, .... आदि । इसमें कठोर एवं संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग नहीं किया जाता । उदाहरण 1. बसों मोरे नैनन में नंदलाल मोहनी मूरत सांवरी सूरत नैना बने बिसाल । उदाहरण 2. कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन राम हृदय गुनि ॥ उदाहरण 3. पानी केरा बुदबुदा अस मानुष की जात । देखत ही छिप जाएगा ज्यों तारा परभात । । 2. ओज गुण - जिस काव्य को पढने या सुनने से ह्रदय में ओज, उमंग और उत्साह का संचार होता है, उसे ओज गुण प्रधान काव्य कहा जाता हैं । इस प्रकार के काव्य में कठोर संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग होता है । जैसे - ट, ठ, ड, ढ,ण एवं र के संयोग से बने शब्द , सामासिक शब्द आदि । यह गुण मुख्य रूप से वीर, वीभत्स और भयानक रस में पाया जाता है । उदाहरण 1. बुंदेले हर बोलों के मुख से हमने सुनी कहानी थी । खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी । उदाहरण 2. हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुध्द शुध्द भारती । स्वयं प्रभा, समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती । उदाहरण 3. क्रांतिधात्रि ! कविते जाग उठ आडम्बर में आग लगा दे । पतन पाप पाखण्ड जलें , जग में ऐसी ज्वाला सुलगा दे । 3. प्रसाद गुण :- प्रसाद का अर्थ है - निर्मलता , प्रसन्नता । जिस काव्य को पढ़ने या सुनने से हृदय या मन खिल जाए , हृदयगत शांति का बोध हो, उसे प्रसाद गुण कहते हैं । इस गुण से युक्त काव्य सरल, सुबोध एवं सुग्राह्य होता है । यह सभी रसों में पाया जा सकता है । उदाहरण 1. जीवन भर आतप सह वसुधा पर छ्या करता है । तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है । उदाहरण 2. हे प्रभो ज्ञान दाता ! ज्ञान हमको दीजिए । शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए । उदाहरण 3. उठो लाल ! अब आँखें खोलो । पानी लाई , मुँह धोलो । बीती रात कमल दल फूले उनके ऊपर भौंरे झूले ।

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