बुधवार, 23 अगस्त 2017

यादव योगेश कुमार रोहि की लेखनी से...√

       (अहीरों का एेतिहासक परिचय)

 अहीरों को संस्कृत भाषा में अाभीरः अथवा एकवचन रूप अभीरः  है ।

 .. संस्कृत भाषा में यह शब्द " अभि ईरयति इति अभीरः" अर्थात् चारो तरफ घूमने बाला निर्भीक व्यक्ति का वाचक है।

" अभि एक धातु ( क्रियामूल ) से पूर्व लगने बाला उपसर्ग Prifix..तथा ईर् धातु जिसका अर्थ गमन करना है इसमें कर्तरिसंज्ञा भावे में अच् प्रत्यय के द्वारा निर्मित विशेषण -शब्द अभीरः है |

 अभीरः शब्द में श्लिष्ट अर्थ है... जो पूर्णतः भाव सम्पूर्क है ...अ निषेधात्मक उपसर्ग तथा भीरः/ भीरु = कायर ..अर्थात् जो भीरः अथवा कायर न हो वीर पुरुष ..यहूदीयो की भाषा हिब्रू में भी अबीर( Abeer )शब्द का अर्थ वीर तथा सामन्त है।

 तात्पर्य यह कि इजराईल के यहूदी वस्तुतः यदु की सन्तानें थी जिन्हें अबीर भी कहा जाता था यद्यपि आभीरः शब्द अभीरः शब्द का ही बहुवचन समूह वाचक रूप है |

 अभीरः+ अण् = आभीरः ..हिब्रू बाईबिल में सृष्टिखण्ड Genesis ..में यहुदः तथा तुरबजू के रूप में यदुः तुर्वसू का ही वर्णन है आर्यों के प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में जैसा कि वर्णन है ऋग्वेद के दशम् मण्डल के 62 में सूक्त मन्त्र में 👇

उत दासा परिविषे स्मद्दिष्टी ( समत् दिष्टी )गोपरीणसा यदुस्तुर्वश् च मामहे = 

👇🏒🏒🏒🏒🏒🏒🏒 अर्थात् यदु और तुर्वशु नामक जो दास हैं गोओं से परिपूर्ण है अर्थात् चारो ओर से घिरे हुए हैं हम सब उनकी स्तुति करते हैं |

  वस्तुतः अभीरः शब्द से कालान्तरण में स्वतन्त्र रूप से एक अभ्र् नाम धातु का विकास हुआ जो संस्कृत धातु पाठ में परिगणित है जिसका अर्थ है...


-चारौ ओर घूमना ..इतना ही नही मिश्र के टैल ए अमर्ना के शिला लेखों पर (हबीरु) शब्द का अर्थ भी घुमक्कड़ ही है।

 ..अंग्रेजी में आयात क्रिया शब्द Aberrate का अर्थ है ...to Wander or deviate from the right path...अर्थात् सही रास्ते से भटका हुआ।

आवारा संस्कृत रूप अभीरयति परस्मै पदीय रूप ... सत्य तो यह है कि सदीयों से आभीरः जनजाति के प्रति तथा कथित कुछ ब्राह्मणों के द्वारा द्वेष भाव का कपट पूर्ण नीति निर्वहन किया गया जाता रहा।

 शूद्र वर्ग में प्रतिष्ठित कर उनके लिए शिक्षा और संस्कारों के द्वार भी पूर्ण रूप से बन्द कर दिए गये ।

जैसा कि " स्त्रीशूद्रौ नाधीयताम् " अर्थात् स्त्री और शूद्र ज्ञान प्राप्त न करें ।

अर्थात् वैदिक विधान का परिधान पहना कर इसे ईश्वरीय विधान भी सिद्ध किया गया ।

 क्यों कि वह तथाकथित समाज के स्वमभू अधिपति जानते थे कि शिक्षा अथवा ज्ञान के द्वारा संस्कारों से युक्त होकर ये अपना उत्धान कर सकते हैं ।

शिक्षा हमारी प्रवृत्तिगत स्वाभाविकतओं का संयम पूर्वक दमन करती है अतः दमन संयम है और संयम यम अथवा धर्म है।

 यद्यपि कृष्ण को प्रत्यक्ष रूप से तो शूद्र अथवा दास नहीं कहा गया परन्तु परोक्ष रूप से उनके समाज या वर्ग को आर्यों के रूप में स्वीकृत नहीं किया है।

 कृष्ण को इन्द्र के प्रतिद्वन्द्वी के रूप मे भी वैदिक साहित्य में वर्णित किया गया है।

 .. वस्तुतः अहीर एक गौ पालक जाति है, जो उत्तरी और मध्य भारतीय क्षेत्र में फैली हुई है।

 इस जाति के साथ बहुत ऐतिहासिक महत्त्व जुड़ा हुआ है।

 क्योंकि इसके सदस्य संस्कृत साहित्य में उल्लिखित आभीर के समकक्ष माने जाते हैं। 

'महाभारत' में इस जाति का बार-बार उल्लेख आया है। 

आभीर गोपा का नमान्तरण है ।

गोप यादवों का गो पालन वृत्ति मूलक विशेषण है।

महाभारत का खिलभाग हरिवंश पुराण इसका लक्ष्य है ।

इसमें वसुदेव, कृष्ण और नन्द को भी गोप कहा है ।

कुछ विद्वानों का मत है कि इन्हीं गौ पालकों ने, जो दक्षिणी राजस्थान और सिंध (पाकिस्तान) में बिखरे हुए हैं, गोपालन भगवान् कृष्ण की कथा का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं।


 'अहीर' भारत की प्राचीन जाति है, जो अराजकता के लिए काफ़ी प्रसिद्ध रही है।


यह सर्व सत्य है कि शिक्षा और संस्कारों से वञ्चित समाज कभी सभ्य या सांस्कृतिक रूप से समुन्नत नहीं हो सकता है अतः आभीरः जनजाति भी इसका अप वाद नहीं है ।

जैसा की तारानाथ वाचस्पत्यम् ने अहीरों की इसी प्रवृत्ति गत स्वभाव को आधार मानकर संस्कृत भाषा में आभीरः शब्द की व्युत्पत्ति भी की है।

-"आ समन्तात् भीयं राति इति आभीरः कथ्यते "

अर्थात् जो चारो ओर से जो भय प्रदान करता है वह आभीरः है ...यद्यपि यह शब्द व्युत्पत्ति प्रवृत्ति गत है अन्यत्र

 दूसरी व्युत्पत्ति अभीरः शब्द की है ।

अभिमुखी कृत्य ईरयति गाः इति अभीरः अर्थात् दौनो तरफ मुख करके जो गायें चराता है या घेरता है वह अभीरः है।

.....फारसी मूल का आवरा शब्द भी अहीर /आभीरः का तद्भव रुप है ।

.. जाटों का इन अहीरों से रक्त सम्बन्ध तथा सामाजिक सम्बन्ध मराठों और गूजरों जैसा निकटतम है।स्वयं गुज्जर / गूजर अथवा संस्कृत गुर्जरः भी संस्कृत के पूर्ववर्ती शब्द गोश्चरः ---- गायों को चराने वाला का परवर्ती रूप है जिससे गुर्जरायत या गुजरात प्रदेश वाची शब्द का विकास हुआ है ।💅

पशुपालस्त्रिधा वैश्या आभीरा गर्जरास्तथा ।

गोप वल्लभ पर्याया यदुवंश समुद्भवा : ।।७।।

भाषानुवाद – पशुपाल भी वणिक , अहीर और गुर्जर भेद से तीन प्रकार के हैं ।

इन तीनों का उत्पत्ति यदुवंश से हुई है ।

 तथा ये सभी गोप और वल्लभ जैसे समानार्थक नामों से जाने जाते हैं ।७।।

प्रायो गोवृत्तयो मुख्या वैश्या इति समारिता: ।

अन्ये८नुलोमजा: केचिद् आभीरा इति विश्रुता:।।८।

भषानुवाद– वैश्य प्राय: गोपालन के द्वारा अपना जीवन निर्वाह करते है ।और आभीर तथा गुर्जरों से श्रेष्ठ माने जाते हैं ।

अनुलोम जात ( उच्च वर्ण के पिता और निम्न वर्ण की माता द्वारा उत्पन्न ) वैश्यों को आभीर नाम से जाना जाता है ।८।।

आचाराधेन तत्साम्यादाभीराश्च स्मृता इमे ।।

आभीरा: शूद्रजातीया गोमहिषादि वृत्तय: ।।

घोषादि शब्द पर्याया: पूर्वतो न्यूनतां गता: ।।९।।

भाषानुवाद–आचरण में आभीर भी वैश्यों के समान जाने जाते हैं । ये शूद्रजातीया हैं ।

तथा गाय भैस के पालन द्वारा अपना जीवन निर्वाह करते हैं ।

 इन्हें घोष भी कहा जाता है ये पूर्व कथित वैश्यों से कुछ हीन माने जाते हैं ।९।।

_______

किञ्चिदाभीरतो न्यूनाश्च छागादि पशुवृत्तय:।

गोष्ठप्रान्त कृतावासा: पुष्टांगा गुर्जरा: स्मृता :।।१०।

भाषानुवाद – अहीरों से कुछ हीन बकरी आदि पशुओं को पालन करने वाले   तथा गोष्ठ की सीमा पर वास करने वाले गोप ही गुर्जर कहलाते हैं  ये प्राय हृष्ट-पुष्टांग वाले होते हैं ।१०।

वास्तव में उपर्युक्त रूप में वर्णित तथ्य की अहीर और गुर्जर यदुवंश से उत्पन्न होकर भी वैश्य और शूद्र हैं ।

शास्त्र सम्मत व युक्ति- युक्त नहीं हैं क्यों कि पद्मपुराण सृष्टि खण्ड अग्निपुराण और नान्दी -उपपुराण आदि में  वेदों की अधिष्ठात्री देवी गायत्री नरेन्द्र सेन आभीर की कन्या हैं जिसे गूजर और अहीर दौनों समान रूप से अपनी कुल देवी मानते हैं ।

जिस गायत्री मन्त्र के वाचन से ब्राह्मण स्वयं को तथा दूसरों को पवित्र और ज्ञानवान बनाने का अनुष्ठान करता है वह गायत्री एक अहीर नरेन्द्र सेन की कन्या है ।

जब शास्त्रों में ये बात है ते फिर 

अहीर तो ब्राह्मणों के भी पूज्य हैं 

फिर षड्यन्त्र के तहत किस प्रकार अहीर शूद्र और वैश्य हुए ।

वास्तव में जिन तथ्यों का अस्तित्व नहीं उनको उद्धृत करना भी महा मूढ़ता ही है ।

इस लिए अहीर यादव या गोप आदि विशेषणों से नामित यादव कभी शूद्र नहीं हो सकते हैं और यदि इन्हें किसी पुरोहित या ब्राह्मण का संरक्षक या सेवक माना जाए तो भी युक्ति- युक्त बात नहीं 

क्यों ज्वाला प्रसाद मिश्र अपने ग्रन्थ जाते भाष्कर में आभीरों को ब्राह्मण लिखते हैं ।

परन्तु नारायणी सेना आभीर या गोप यौद्धा जो अर्जुन जैसे महारथी यौद्धा को क्षण-भर में परास्त कर देते हैं ।

क्या ने शूद्र या वैश्य माने जाऐंगे 

सम्पूर्ण विश्व की माता गो को पालन करने वाले वाले वैश्य या शूद्र माने जाऐंगे 

किस मूर्ख ने ये विधान बनाया ?

हम इस आधार हीन बातों और विधानों को सिरे से खारिज करते हैं ।

इसी लिए यादवों ने वर्ण व्यवस्था को खण्डित किया और षड्यन्त्र कारी पुरोहितों को दण्डित भी किया ।

यादव भागवत धर्म का स्थापन करने वाले थे ।

जहाँ सारे कर्म काण्ड और वर्ण व्यवस्था आदि का कोई महत्व व मान्यता नहीं थी ।

प्रस्तुति करण - यादव योगेश कुमार "रोहि" 8077160219

.. यादव प्राय: 'अहीर' शब्द से भी नामांकित होते हैं, जो संभवत: आभीर जाति से संबद्ध हैं कुछ लोग आभीरों को अनार्य कहते हैं,...क्यो ऋग्वेद के दशम् मण्डल के62 में सूक्त के 10 वें मन्त्र में यदु और तुर्वशु को दास कहा गया है .. जैसा कि उपर्यक्त वर्णित है |

यादव योगेश कुमार "रोहि" का यह लघु ऐैतिहासिक शोध है |
ऋग्वेद से प्रमाण----
" उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टि गोपरीणसा यदुस्तुर्वसुश्च मामहे ||ऋ०10/62/10/|
प्रस्तुत ऋचा में यदु और तुर्वसु को गायों से घिरा हुआ बताया गया है |
परन्तु दास के रूप में -दास शब्द लौकिक संस्कृत में शूद्र का वाचक होगया परन्तु वैदिक काल में असुर को दास कहा गया यह सर्व-विदित है कि ईरानी आर्यों की भाषा में दास और असुर उच्च व पूज्य अर्थों में प्रकाशित हैं !
क्रमश: "दाहे " और "अहुर" रूप में
वस्तुत वेदों में भी असुर शब्द  बहुत वार प्रारम्भिक चरणों में वरुण सूर्य तथा अग्नि का भी वाचक है !

परन्तु बाद में सुर के विपरीत रूप को असुर कहा गया !
वाल्मीकि रामायण में सुरा का पान करे वाले सुर तथा सुरा (शराब) का पान नकरने वाले असुर बतलाए हैं |
___________________________________
" सुरा प्रति ग्रहाद् देवा: सुरा: अभिविश्रुता:
अप्रति ग्रहणाद् दैतेयाश्चासुरा: स्मृता: ||(वाल्मीकि रामायण बाल काण्ड)
अतः आभीरः जनजाति के पूर्व- पुरुष यदु आर्यों के समुदाय से बहिष्कृत कर दिये गये थे ..यदि आभीरः जनजाति को अभीर जाति से संबंधित किया जाये तो ये विदेशी ठहरते हैं।
परन्तु यह मूर्खों की मिथ्या धारणा है |
आभीर एशिया की सबसे प्राचीन व वृहद जन जाति है |
ईसा मसीह (कृष्ट:) तथा कृष्ण: दौनों ही महा मानवों का प्रादुर्भाव इसी यदु अथवा यहुद: वंश में हुआ है |
जैसा कि इजराईल के यहूदी अबीर Abeer जनजाति जो युद्ध और पराक्रम के लिए दुनिया मे विख्यात हैं |पशुपालस्त्रिधा वैश्या आभीरा गर्जरास्तथा ।

गोप वल्लभ पर्याया यदुवंश समुद्भवा : ।।७।।


भषानुवाद – पशुपाल भी वणिक , अहीर और गुर्जर भेद से तीन प्रकार के हैं ।

इन तीनों का उत्पत्ति यदुवंश से हुई है ।

 तथा ये सभी गोप और वल्लभ जैसे समानार्थक नामों से जाने जाते हैं ।७।।


प्रायो गोवृत्तयो मुख्या वैश्या इति समारिता: ।

अन्ये८नुलोमजा: केचिद् आभीरा इति विश्रुता:।।८।


भषानुवाद– वैश्य प्राय: गोपालन के द्वारा अपना जीवन निर्वाह करते है ।और आभीर तथा गुर्जरों से श्रेष्ठ माने जाते हैं ।

अनुलोम जात ( उच्च वर्ण के पिता और निम्न वर्ण की माता द्वारा उत्पन्न ) वैश्यों को आभीर नाम से जाना जाता है ।८।।


आचाराधेन तत्साम्यादाभीराश्च स्मृता इमे ।।

आभीरा: शूद्रजातीया गोमहिषादि वृत्तय: ।।

घोषादि शब्द पर्याया: पूर्वतो न्यूनतां गता: ।।९।।


भाषानुवाद–आचरण में आभीर भी वैश्यों के समान जाने जाते हैं । ये शूद्रजातीया हैं ।

तथा गाय भैस के पालन द्वारा अपना जीवन निर्वाह करते हैं ।

 इन्हें घोष भी कहा जाता है ये पूर्व कथित वैश्यों से कुछ हीन माने जाते हैं ।९।।


किञ्चिदाभीरतो न्यूनाश्च छागादि पशुवृत्तय:।

गोष्ठप्रान्त कृतावासा: पुष्टांगा गुर्जरा: स्मृता :।।१०।


भाषानुवाद – अहीरों से कुछ हीन बकरी आदि पशुओं को पालन करने वाले   तथा गोष्ठ की सीमा पर वास करने वाले गोप ही गुर्जर कहलाते हैं  ये प्राय हृष्ट-पुष्टांग वाले होते हैं ।१०।


वास्तव में उपर्युक्त रूप में वर्णित तथ्य की अहीर और गुर्जर यदुवंश से उत्पन्न होकर भी वैश्य और शूद्र हैं ।

शास्त्र सम्मत व युक्ति- युक्त नहीं हैं क्यों कि पद्मपुराण सृष्टि खण्ड अग्निपुराण और नान्दी -उपपुराण आदि में  वेदों की अधिष्ठात्री देवी गायत्री नरेन्द्र सेन आभीर की कन्या हैं जिसे गूजर और अहीर दौनों समान रूप से अपनी कुल देवी मानते हैं ।


जिस गायत्री मन्त्र के वाचन से ब्राह्मण स्वयं को तथा दूसरों को पवित्र और ज्ञानवान बनाने का अनुष्ठान करता है वह गायत्री एक अहीर नरेन्द्र सेन की कन्या है ।


जब शास्त्रों में ये बात है ते फिर 

अहीर तो ब्राह्मणों के भी पूज्य हैं 

फिर षड्यन्त्र के तहत किस प्रकार अहीर शूद्र और वैश्य हुए ।

वास्तव में जिन तथ्यों का अस्तित्व नहीं उनको उद्धृत करना भी महा मूढ़ता ही है ।


इस लिए अहीर यादव या गोप आदि विशेषणों से नामित यादव कभी शूद्र नहीं हो सकते हैं और यदि इन्हें किसी पुरोहित या ब्राह्मण का संरक्षक या सेवक माना जाए तो भी युक्ति- युक्त बात नहीं 

क्यों ज्वाला प्रसाद मिश्र अपने ग्रन्थ जाते भाष्कर में आभीरों को ब्राह्मण लिखते हैं ।


परन्तु नारायणी सेना आभीर या गोप यौद्धा जो अर्जुन जैसे महारथी यौद्धा को क्षण-भर में परास्त कर देते हैं ।

क्या ने शूद्र या वैश्य माने जाऐंगे 


सम्पूर्ण विश्व की माता गो को पालन करने वाले वाले वैश्य या शूद्र माने जाऐंगे 


किस मूर्ख ने ये विधान बनाया ?

हम इस आधार हीन बातों और विधानों को सिरे से खारिज करते हैं ।


इसी लिए यादवों ने वर्ण व्यवस्था को खण्डित किया और षड्यन्त्र कारी पुरोहितों को दण्डित भी किया ।

यादव भागवत धर्म का स्थापन करने वाले थे ।


जहाँ सारे कर्म काण्ड और वर्ण व्यवस्था आदि का कोई महत्व व मान्यता नहीं थी ।


प्रस्तुति करण - यादव योगेश कुमार "रोहि" 8077160219

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