गुरुवार, 3 अगस्त 2017

क्या कृष्ण का जन्म अहीर समाज में हुआ ?----

               क्या कृष्ण अहीर थे ?
विचार-विश्लेषण---योगेश कुमार रोहि ग्राम आजा़दपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---
सम्पर्क सूत्र --8077160219...../
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आभीरः, पुल्लिंग विशेषण शब्द ---
वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में इसकी व्युत्पत्ति-
(आ समन्तात् भियं राति । रा दाने आत् इति कः 
अर्थात् चारो दिशाओं में भय को प्रदान करने वाला वह आभीर है  परन्तु अभीर अथवा आभीर शब्द का एक प्रसिद्ध अर्थ है  " जो भीरु अथवा कायर न हो वही वीर अहीर (अभीर ) है ।
आभीरस्य पर्याय: गोपः ।
इत्यमरः कोश: ॥
आहिर इति भाषा तथा प्राकृत भाषा में अहीर --
वस्तुतः अभीरस्य समूह इति आभीर: प्रक्रीतता
अर्थात् अभीर: शब्द में अण् प्रत्यय समूह अथवा बाहुल्य प्रकट करने के लिए प्रयुक्त होता है
अतः आभीर और अभीर शब्द मूलत: समूह और व्यक्ति (इकाई) रूप को प्रकट करते हैं ।
_______________________________________ "ब्राह्मणादुग्रकन्यामावृतोनाम जायते। आभोरोऽम्बष्टकन्यायामा-योगव्यान्तु धिग्वणः”
इति मनु-स्मृति-!
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इसमें ब्राह्मण पिता और अम्बष्ठ माता से आभीर जन जाति को उत्पन्न मान कर मनु-स्मृति कार ने अहीरों को ब्राह्मण वर्ण में समायोजित करने का असफल प्रयास किया है ।
पुष्य-मित्र सुंग ई०पू०१८४ के समकालिक रचित ग्रन्थ मनु-स्मृति में आभीर नामक यादव जन-जाति की यह  काल्पनिक व्युत्पत्ति- है ।
कभी अहीरों को शूद्र घोषित कर दिया जाता है ,
तो कभी ब्राह्मण , ये दोगली बातें अहीरों के वास्तविक इतिहास को विकृत करने के लिए की गयीं हैं ।
अम्बष्ठ जन जाति का वर्णन चन्द्र गुप्त काल में आये यूनानी लेखक मैगस्थनीज ने भी किया है ,
अम्बष्ठ जन चिकित्सा शास्त्र के विशेषज्ञ होते थे ।

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जबकि भागवत पुराण में आभीर (अहीर) जन-जाति को यवन , किरात हूण ,अन्ध्र आदि  का सहवर्ती तथा विदेशी माना है ।
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"किरात हूणान्ध्र पुलिन्द पुलकसा आभीर कंका
यवना: खसादय: शुध्यन्ति  तस्यै प्रभविष्णवे नम:
  (द्वित्तीय स्कन्ध पृष्ठ १४३ चतुर्थ अध्याय श्लोक १८)
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अर्थात् :----- किरात ,हूण अन्ध्र , पुलिन्द , पुलकसा, तथा आभीर ,कंक यवन ,और खश आदि जन-जातियाँ
तथा दूसरे पापी जन भी कृष्ण के शरणागत भक्तों की शरण ग्रहण करने से पवित्र हो जाते हैं ।
उस सर्व -शक्तिमान् भगवान् को बारबार नमस्कार है ।
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यवन शब्द यूनानीयों के लिए प्रयुक्त होता है।
सिकन्दर यूनान के मैसीडॉनिया नगर का था ।
जिसका भारत -आगमन ई०पू० ३२२ में हुआ था ।
पुष्य-मित्र सुंग का समय ई०पू०१८४ के समकक्ष है ।
खश जन-जातीयाँ मैसॉपोटमिया की एक शाखा कैसाइट (कस्सी ) से सम्बद्ध हैं , जो कश्मीर से काशी में आकर सर्व-प्रथम वसीं -- यह घटना ई०पू० १५०० के समकक्ष की है ।
खश जाति का आगमन भारत में  आर्य संस्कृति से पूर्व हो चुका था ।
यद्यपि काशी और कशमीर जैसे शब्द कस्सीयों से सम्बद्ध है ।
खश जन-जातीयाँ जग्रौस -पहड़ीयों से निकल कर ई०पू० १५०० से पूर्व भारत में आ चुकी थीं ।
बाद में इन्हें ही खबीस अथवा खईस कहा गया ---जो भूत -प्रेतों की एक श्रेणि ही बन गयी ।
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यदि आभीर यूनानीयों के समकालिक हैं , तो राम ने समुद्र की प्रार्थना पर उत्तर दिशा में स्थित  द्रुमकुल्य देश में अपने अमोघ वाण छोड़ कर अहीरों को नष्ट कैसे  कर दिया था ? और अहीर आज भी जीवित कैसे हैं ?
ऐतिहासिक दृष्टि से राम का समय आज से सात हजार (७०००) वर्ष पूर्व माना जाता है ।
जबकि पौराणिक मतावलम्बीं राम का समय (९०००००) नौ लाख वर्ष मानते हैं ।
फिर राम आभीर जनों पर समुद्र की प्रार्थना पर उत्तर दिशा में स्थित द्रुमकुल्य देश में वाण छोड़ कर उन्हें कैसे नष्ट कर देते हैं ?
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वाल्मीकि-रामायण के युद्ध-काण्ड के २२वें सर्ग में  राम अाभीरों पर अमोघ वाण छोड़ कर आभीरों(अहीरों) को नष्ट कर देते हैं--देखें ब्राह्मण बुद्धि का काल्पनिक वर्णन--
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उत्तरेणावकाशो$स्ति कश्चित् पुण्यतरो मम ।
द्रुमकुल्य इति ख्यातो लोके ख्यातो यथाभवान्३२
"उग्र दर्शन कर्माणो बहवस्तत्र दस्यव: |
आभीर प्रमुखा पापी: पिबन्ति सलिलं मम ||३३
तैर्न तद् स्पर्शनं पापं सहेयं पाप कर्मभि: ।
अमोघ: क्रियतां राम:  अयं तत्र शरोत्तम: ।।३४।।
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सागरस्य महात्मन :
मुमोच तं शरं दीप्तं परं सागर दर्शनात् ।।३५।
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पुष्य-मित्र सुंग के काल के ब्राह्मणों की जड़ बुद्धि की काल्पनिक उड़ाने तो देखिए अर्थ :--समुद्र राम से कहता है ,हे  प्रभो ! जैसे जगत् में आप सर्वत्र विख्यात एवम् पुण्यात्मा हैं ।
उसी प्रकार मेरे  उत्तर दिशा की ओर द्रुमकुल्य नाम से विख्यात बड़ा ही पवित्र देश है ।३३।
वहाँ आभीर आदि जातियों के बहुत से मनुष्य निवास करते हैं। जिनके रूप और कर्म बड़े ही भयानक हैं ।
सबके  सब पापी और लुटेरे हैं ।
वे लोग मेरा जल पीते हैं ।।३३।
उन पापाचारियों के जल पीते हुए मुझसे स्पर्श होता रहता है ।
इसी पाप को मैं यह नहीं सकता हूँ ।
हे श्री राम आप अपने इस उत्तम वाण को वहीं सफल कीजिए ।।३४।।
महामना समुद्र का यह वचन सुनकर समुद्र द्वारा दिखाए
मार्ग के अनुसार श्री राम ने अपना अत्यन्त प्रज्वलित  अमोघ वाण द्रुमकुल्य देश में छोड़ दिया ।।३५।।
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अहीरों ने ब्राह्मणों की विषमता मूलक वर्ण-व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया, अर्थात् ब्राह्मण वर्चस्व की दासता को ठुकरा दिया  तथा इस पाखण्ड पूर्ण व्यवस्था से विद्रोह करने के लिए दस्यु बनना उचित समझा ---
दस्यु मूलत: दास का ही एक रूपान्तरण है ।
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इधर ब्राह्मण समाज ने अपने वर्चस्व को सर्वोपरि करने हेतु राम को आधार बनाकर राम के मुख से तथागत बुद्ध को भी चोर और नास्तिक कहलवाया है ।
बुद्ध का जन्म  प्रमाणत:  ई०पू० --- 566 से पूर्व ही है ।
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देखें--- वाल्मीकि-रामायण के अयोध्या काण्ड १०९ वें सर्ग ३४ वाँ श्लोक ---
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" यथा ही चोर: स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि "
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अर्थात् राम जावालि ऋषि के सम्वाद रूप में
बुद्ध को चोर और नास्तिक बताते हैं ।
अब राम के विषय में ऋग्वेद क्या कहता है ?
यह भी देखें---
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भद्रो भद्रया सचमान: आगत ।
स्वसारं जारो अभ्येति पश्चात् ।।
सुप्रकेतै: द्युभि: अग्नि वितिष्ठन् रूश द्रभिर्वर्णेरभि रामम् अस्थात् ।।
                                (ऋग्वेद १०/३/३/)
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अर्थात् भद्र: (भजनीय राम ) भद्रया -(भजनीय सीता के द्वारा) सचमान: (सेवित होते हुए )आगात (वन में आये)
स्वसारं (अर्थात् पत्नी सीता को )  जार-(जो सतीत्व को जीर्ण करे ) अभ्येति (आया ) अर्थात् राम और लक्ष्मण  परोक्ष होने पर आया और रावण के मारे जाने पर अग्नि:(अग्नि देव)  सुप्रकेतै: द्युभि: -(राम  की पत्नी सीता के ) (द्युभि:)- अग्नि के द्वारा  (रामम् अभि: -राम के सामने रुशद्भि: वर्णे:-उदीप्त वर्ण रंग या तेज के साथ
अस्थात् - (उपस्थिति हुए )और असली सीता को सौंप दिया ।
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विशेष:--- वैदिक काल में स्वसृ शब्द का अर्थ -बहिन और पत्नी भी है ।
भगिनी के सादृश्य पर महाकवि कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के १४वें सर्ग के ३३वें श्लोक में राम को सीता का बन्धु कहा है ।
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देखें--- " वैदेहि बन्धोर्हृदयं विदद्रे "
जैनमत के हरिवंश पुराण में राम और सीता को भाई -बहिन माना गया है ।
बौद्ध ग्रन्थ दशरथ जातक में भी सीता को राम की -बहिन ही माना है ।
राम का जीवन रहस्य पूर्ण है ।
दुनियाँ में अब तक ३०० रामायण लिखी जा चुकी हैं।
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मैक्सिको की माया संस्कृति में राम और सीता को राम सितवा उत्सव के रूप आज भी याद किया जाता है ।
ये परम्पराऐं सदीयों पुरानी हैं ।
निश्चित रूप से राम का समय प्राचीनत्तम है।
राम ने न कभी शम्बूक वध किया ,और न बुद्ध को चोर कहा ..
राम ने अहीरों का भी वध नहीं किया ।
ये सारी मनगढ़न्त कथाएें ब्राह्मणों की धूर्त योजनाओं के अंग हैं ।
राम-राम हमारा अभिवादन  शब्द है हमारे दैनिक जीवन के व्यवहार में राम बहुतायत से व्याप्त हैं ।
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अमरकोशः  में आभीर शब्द के पर्याय वाची रूपों में गोप:. गोपालः जैसे शब्द हैं --
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गोविन्द,गोप 2।9।57।2।5 (अमरकोशः)
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कामं प्रकामं पर्याप्तं निकामेष्टं यथेप्सितम्.
  गोपे गोपालगोसंख्यगोधुगाभीरवल्लवाः॥
अर्थात् गोप, गोपाल, गोसंख्य, गोधुक् , आभीर, वल्लभ,
ये सभी शब्द यादवों के पर्याय वाची हैं ।
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आभीर-पत्नी : आभीरी सेवक : गोपग्रामः वृत्ति : गौः : गवां_स्वामिः पदार्थ-विभागः : वृत्तिः, द्रव्यम्, पृथ्वी, चलसजीवः, मनुष्यः
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वाचस्पत्यम् '''आभीर'''¦
पु॰. आ  समन्तात् भियं राति रा--क इति आभीर:
गोपे सङ्कीर्ण्णजातिभेदे स हि अल्पभोतिहेतोरप्यधिकं बिभेतीतितस्य तथा-त्वम्
“आभीरवाममयनाहृतमानसाय दत्तं मनोयदुपते!तदिदं गृहाण” उद्भटः
स च सङ्कीर्ण्णवर्ण्णः
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अभीर का ही इतर रूप आभीर है -- जिसका व्युत्पत्ति- मूलक अर्थ ---जो भीर अर्थात् कायर नहीं है ।
अ निषेधार्थक उपसर्ग  (Prefix) + भीर: -भयभीत होने वाला अर्थात् जो किसी से भयभीत होने वाला नहीं है, वह जन अभीर अथवा आभीर है ।
हिब्रू बाइबिल में अबीर (Abeer) यहूदीयों की एक युद्ध कला में पारंगत शाखा का नाम है ।
हिब्रू भाषा में अबीर का अर्थ वीर अथवा यौद्धा अथवा सामन्त (knight) होता है ।
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सौलहवीं सदी के समकक्ष रसखान ने
व्रज की गोपिकाओं को अहीरों की छौरियाँ (लड़कीयाँ )
कह कर अपने सवैयायों की रचना की है ।
फिर महाभारत के मूसल पर्व में आभीर (अहीर)
गोपिकाओं को क्यों लूटने लगे --
ये तो स्वयं उनकी ही स्त्रीयाँ हैं ।
कितना विरोधाभासी और मूढ़तापूर्ण वर्णन सुंग कालीन ब्राह्मणों ने किया है ।
सारे ग्रन्थ ब्राह्मण वाद को परिपुुष्ट करने हेतु काल्पनिक रूप से लिपि-बद्ध किये गये हैं।
परन्तु रसखान अहीरों के विषय में क्या कहते हैं ? देखें---
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" शेष गनेश महेस दिनेस ,
        सुरेसहु जाय निरन्तर गावैं ।
जाहि अनादि अनन्त  अखण्ड,
         अछेद अभेद सुबेद बतावैं ।
नारद के सुक ब्यास रहैं ,
                       पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं ।
ताहि अहीर की छोहरियाँ
                       छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं "
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अर्थात् जिसे शेष नाग ,गणेश ,महेश (शंकर) तथा इन्द्र,सूर्य सभी देवता  निरन्तर चिन्तन करते हैं ।जिसे वेद भी अनन्त अखण्ड और अभेद्य बताते हैं ।नारद शुकदेव और व्यास जैसे मुनि भी  जिसका पार नहीं पा सके
उसी परब्रह्म परमात्मा को व्रज के अहीरों (गोपों ) की कन्याऐं राधा आदि छटाँक भर मट्ठे में ही नचाती हैं ।
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कृष्ण अहीर समाज से सम्बद्ध थे ।
यह उनका मानवीय रूप था
क्यों कि वसुदेव को महाभारत का खिल-भाग हरिवंश पुराण गोप कहता है --
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"इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेन अहमच्युत ।
गवां कारणत्वज्ञ सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति
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(हरिवंश पुराण :----ब्रह्मा की योजना नामक अध्याय)
कश्यप को वरुण ने पृथ्वी पर जाकर वसुदेव बनने का शाप दे दिया..
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“ब्राह्मणादुग्रकन्यामावृतोनाम जायते। आभोरोऽम्बष्टकन्यायामा-योगव्यान्तु धिग्वणः”
इति मनु-स्मृति--
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“श्रीकोङ्कणादधो-भागे तापीतः पश्चिमे तटे। आभीरदेशोदेविशि!
विन्ध्यशैले व्यवस्थित” इति शङ्क्तिसङ्गम॰ उक्ते २ देशभेदे ३ तद्देश-वासिनि ४ तद्देशराजे च ब॰ व॰। “एकादशकलधारिकविकुलमानसहारि।
इदमाभीरमवेहि जगणमन्त्र्यम-नुधेहि” इत्युक्तलक्षणे ५ मात्रावृत्तभेदे न॰।
शब्दसागरः आभीर¦
शक्तिसंगम तन्त्र में ही पृष्ठ संख्या १६४ पर
"आहुकवंशात् समुद्भूता आभीरा प्रकीर्तता "
के रूप में अहीर आहुक यादव के वंशज हैं ।
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इस प्रकार की उग्रसैन और देवक के पूर्वज आहुक से अहीरों की उत्पत्ति मानी है ।
देवक और शूरसेन के ही पूर्वज हैं ।
  आहुक के वंशज आभीर थे ।
नन्द तथा वसुदेव दौनों को ही महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण ---------------
में गोप कहा गया है :--
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इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेन अहमच्युत
गावां कारणत्वज्ञ : सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति "

   " ब्रह्मा की योजना नामक अध्याय "
अर्थात् वरुण ने कश्यप को व्रज में गोप (आभीर) होने का शाप दे दिया ।
क्योंकि कश्यप ने वरुण की गायों का अपहरण कर लिया था ।
ये कश्यप ही व्रज में वसुदेव नाम के गोप बने |
महाभारत के मूसल पर्व में आभीर जन के द्वारा प्रभास क्षेत्र में अर्जुन के साथ गोपिकाओं के लूटने का वर्णन"
पूर्ण रूपेण असंगत व विरोधाभासी ही है ।
मूसल पर्व में कोई उपसर्ग नहीं है ,और अध्यायों की संख्या भी केवल आठ ( ८) ही है ।
यह पर्व वाल्मीकि-रामायण के उत्तर काण्ड की तरह प्रक्षिप्त (नकली) ही है ।

*****************************************क्योंकि गोप तो स्वयं आभीरों का ही पर्याय वाची है ।
इतनी ही नहीं विरोधाभासी और विकृितियों को और भी देखें---
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व्यास-स्मृति के अध्याय प्रथम के श्लोक ११-१२ में गोप  जन-जाति को शूद्र ही माना गया है ।
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वर्द्धिकी नापितो गोप : आशाप: कुम्भकारको ।
वणिक: किरात: कायस्थो मालाकार ।
एते चान्ये बहव:शूद्रा: भिन्न स्वकर्मभि:
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अर्थात् बढ़ई नाई गोप आशाप कुम्भकार वणिक किरात कायस्थ अपने बहुत से भिन्न कर्मों के द्वारा शूद्र हैं ।
सत्य पूछा जाय तो कृष्ण को भी परोक्ष रूप से ब्राह्मण समाज ने शूद्र ही माना है ।
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जिसका सबसे प्रबल प्रमाण रूप ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त का १०वाँ श्लोक(ऋचा)है ।
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" उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे----
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अर्थात् यदु और तुर्वसु नामक दौनों दास गायों से घिरे हुए हैं ।
इस कारण हम उनकी प्रशंसा करते हैं ।
गोप विशेषण केवल यादवों का यदु के गायों से घिरे हुए होने से तथा गोपलन के कारण हुआ है।
आज तक केवल आभीर जन जाति के लोग ही यादव कहलाते है ।
दास शब्द लौकिक संस्कृत भाषा में शूद्र का वाचक है
जैसे मनु-स्मृति विधान करती है --
कि ब्राह्मण का सम्मान - विशेषण शर्मा शब्द से
क्षत्रिय का सम्मान विशेषण वर्मा शब्द से
वैश्य का गुप्त अथवा भूति अथवा दत्त शब्द से ।
तथा शूद्रों का दास शब्द से होना चाहिए
ब्राह्मणों की वर्ण-व्यवस्था के अन्तर्गत
यह विधान पारित हुआ कि --
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शर्मा देवश्च विप्रस्य, वर्मा त्राता भूभुज: ।
भूतिर्दत्तश्च वैश्यश्च ,दास:शूद्रस्य कारयेत् ।।
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अर्थात् स्मृति-ग्रन्थों में विधान पारित हुआ कि विप्र की उपाधि देव और शर्मा तथा भूभुज अर्थात् क्षत्रिय की उपाधि त्राता और वर्मा ,वैश्य की उपाधि भूति और दत्त
तथा शूद्रों को दास उपाधि से सम्बोधित करना चाहिए ।
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अत: वेदों में यदु को दास अथवा असुर कहा गया है ।
कृष्ण यदु वंशी थे ।
अत:" यदोर्पत्यं इति यादव " अर्थात् यदु की सन्तान ही यादव हैं ।
ऋग्वेद के अष्टम् मण्डल के ९६ में सूक्त की ऋचा संख्या १३,१४,१५, पर कृष्ण को असुर कहा है ।
और इन्द्र के साथ कृष्ण का युद्ध वर्णन है जो यमुना नदी (अंशुमती) के तलहटी मे कृष्ण गायें चराते हैं ।
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आवत् तमिन्द्र शच्या धमन्तमप स्नेहितीर्नृमणा अधत्त ।
द्रप्सम पश्यं विषुणे चरन्तम् उपह्वरे नद्यो अंशुमत्या ।।
न भो न कृष्णं अवतस्थि वांसम् इष्यामि ।।
वो वृषणो युध्य ताजौ ।।१४।।
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(-आभीरः) A cowhered, sprung from a Brahman and female of the medical tribe or the Ambasht'ha. f. (-री) A cowherd's wife, or a woman of that tribe. Etymology - आङ्, अभि =and  ईर = to send, affix (अच्) and fem. ङीष्, or without the first prefix अभीर। Apte आभीरः [ābhīrḥ], [आ समन्तात् भियं राति, रा-क Tv.] A cowherd;
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आभीरवामनयनाहृतमानसाय दत्तं मनो यदुपते तदिदं गृहाण UdbUdb(उद्भट्ट ).; according to Ms.1.15 आभीर is the offspring of a Brāhmaṇa and a female of the Ambaṣṭha tribe. (pl.) N. of a country or its inhabitants;
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श्रीकोंकणा- दधोभागे तापीतः पश्चिमे तटे ।
आभीरदेशो देवेशि विन्ध्यशैले व्यवस्थितः ॥ री A cowherd's wife. A woman of the Ābhīra tribe. The language of the Ābhīras; आभीरेषु तथा-भीरी (प्रयोक्तव्या) S. D.432. -Comp. -पल्लिः, -ल्ली f.,-पल्लिका a station or abode of herdsmen, a village inhabited by cowherds. Monier-Williams आभीर m. N. of a people MBh. R. VP. आभीर m. a cowherd (being of a mixed tribe as the son of a Brahman and an अम्बष्ठwoman) Mn. x , मनु-स्मृति 15 , etc. आभीर mfn. belonging to the आभीर people. Purana index --country of आभीरस्. {{F}}1: भा. I. १०. ३५; Br. II. १६. ४६ and ५७; १८. ४८.{{/F}} Dvijas of, became व्रात्यस् after Puramjaya's days. {{F}}2: भा. XII 1. ३८.{{/F}} Purified of sin by devotion to Hari. {{F}}3: Ib. II. 4. १८.{{/F}} Seven of this tribe ruled from अवभृति. {{F}}4: भा. XII. 1. २९; वा. ९९. ३५९; Vi. IV. २४. ५१, ६८.{{/F}} The ब्रःमाण्ड and वायु say ten of them ruled after the आन्ध्रस्; {{F}}5: Br. III. ७४. १७४; M. ५०. ७६; ११४. ४०; १६३. ७२; २७३. १८.{{/F}} for ६७ years. [page१-165+ ३०]
Purana Encyclopedia Ābhīra : m. (pl.): Name of a Janapada and its people. A. Location: Mentioned by Saṁjaya among the Janapadas of the Bhāratavarṣa (ata ūrdhvaṁ janapadān nibodha gadato mama) 6. 10. 37, 5; (ābhīrāḥ kālatoyakāḥ) 6. 10. 45; counted by him among the northern Mleccha people (uttarāś cāpare mlecchā janā bharatasattama) 6. 10. 63; (śūdrābhīrātha daradāḥ) 6. 10. 66; they are called residents of Pañcanada (ābhiraiḥ …pañcanadālayaiḥ) 16. 9. 16; (also cf. sa pañcanadam āsādya 16. 8. 43); in the description of the expedition of Nakula to the west of Khāṇḍavaprastha (niryāya khāṇḍavaprasthāt pratīcīṁ abhito diśam 2. 29. 2) Ābhīras are said to live on the bank of the river Sarasvatī (śūdrābhīragaṇāś caiva ye cāśritya sarasvatīm) 2. 29. 9. B. Characteristics: They are called Mlecchas 16. 8. 61; Dasyus 16. 8. 44, 47, 58, 60; they live on fish (vartayanti ca ye matsyair…) 2. 29. 9; fight with sticks (yaṣṭipraharaṇāḥ) 16. 8. 47; plunderers (loptrahāriṇaḥ) 16. 8. 47; evil doers (pāpakarmāṇaḥ) 16. 8. 45; greedy (lobhopahatacetasaḥ) 16. 8. 45; whose sight was inauspicious (aśubhadarśanāḥ) 16. 8. 45; who did not know dharma (adharmajñāḥ) 16. 8. 50; who did not follow the correct course (mūḍhāḥ) 16. 8. 51. C. Epic events: (1) Nakula in his expedition to the west before the Rājasūya brought, among others, the clans of Ābhīras under his control (śūdrābhīragaṇāś caiva…vaśe cakre) 2. 29. 9-10; (2) They fought on the side of the Kauravas; on the twelfth day of the war they were placed at the neck of the Suparṇa Vyūha (7. 19. 4-5) arranged by Droṇa (śūrābhīrā daśerakāḥ/…grīvāyām) 7. 19. 7; (3) When Arjuna reached Pañcanada along with men and women of the Bhojas, Vṛṣṇis and Andhakas (16. 8. 3338, 43), the Ābhīras consulted among themselves and knowing that Arjuna was the only warrior to escort the women, thousands of them, equipped with sticks, attacked Bhojas and others to loot their wealth; they did not mind the threats of Arjuna and kidnapped the women under his charge; Arjuna struck some of them with his arrows and when the arrows were exhausted he killed the Dasyus with the tip of his bow; but the Mlecchas succeeded in taking away with them Vṛṣṇi women in spite of Arjuna's effort to protect them (ābhīrā mantrayām āsuh sametyāśubhadarśanāḥ//ayam eko 'rjuno yoddhā…/nayaty asmān atikramya…//tato yaṣṭipraharaṇā dasyavas te sahasraśaḥ/abhyadhāvanta vṛṣṇīnām taṁ janaṁ…//tathoktās tena vīreṇa kadarthīkṛtya tadvacaḥ/abhipetur janaṁ…/…śaraih pārtho…/jaghāna dasyūn…//…dhanuṣkoṭyā tadā dasyūn avadhīt pākaśāsaniḥ//prekṣatas tv eva pārthasya vṛṣṇyandhakavarastriyaḥ/jagmur ādāya te mlecchāḥ/) 16. 8. 43-61; Arjuna reported the abduction of Vṛṣṇi women by Ābhiras to Vyāsa (paśyato vṛṣṇidārāś ca mama brahman sahasraśaḥ/ābhīrair anusṛtyājau hṛtāḥ) 16. 9. 16. D. Past event: Sarasvatī formerly disappeared at Vinaśana due to her hatred for Śūdras and Ābhīras (tato vinaśanaṁ…/śūdrābhīrān prati dveṣād yatra naṣṭā sarasvatī) 9. 36. 1. E. They figure in a prophecy; While describing the end of the Kali era to Yudhiṣṭhira, Mārkaṇḍeya counted Ābhīras among the Mleccha kings who would rule the earth (bahavo mleccharājānaḥ pṛthivyāṁ manujādhipa/ …śūdrās tathābhīrā narottama) 3. 186. 29, 30. _______________________________ *2nd word in right half of page p624_mci (+offset) in original book. previous page p623_mci .......... next page p625_mci Mahabharata Cultural Index Ābhīra : m. (pl.): Name of a Janapada and its people. A. Location: Mentioned by Saṁjaya among the Janapadas of the Bhāratavarṣa (ata ūrdhvaṁ janapadān nibodha gadato mama) 6. 10. 37, 5; (ābhīrāḥ kālatoyakāḥ) 6. 10. 45; counted by him among the northern Mleccha people (uttarāś cāpare mlecchā janā bharatasattama) 6. 10. 63; (śūdrābhīrātha daradāḥ) 6. 10. 66; they are called residents of Pañcanada (ābhiraiḥ …pañcanadālayaiḥ) 16. 9. 16; (also cf. sa pañcanadam āsādya 16. 8. 43); in the description of the expedition of Nakula to the west of Khāṇḍavaprastha (niryāya khāṇḍavaprasthāt pratīcīṁ abhito diśam 2. 29. 2) Ābhīras are said to live on the bank of the river Sarasvatī (śūdrābhīragaṇāś caiva ye cāśritya sarasvatīm) 2. 29. 9. B. Characteristics: They are called Mlecchas 16. 8. 61; Dasyus 16. 8. 44, 47, 58, 60; they live on fish (vartayanti ca ye matsyair…) 2. 29. 9; fight with sticks (yaṣṭipraharaṇāḥ) 16. 8. 47; plunderers (loptrahāriṇaḥ) 16. 8. 47; evil doers (pāpakarmāṇaḥ) 16. 8. 45; greedy (lobhopahatacetasaḥ) 16. 8. 45; whose sight was inauspicious (aśubhadarśanāḥ) 16. 8. 45; who did not know dharma (adharmajñāḥ) 16. 8. 50; who did not follow the correct course (mūḍhāḥ) 16. 8. 51. C. Epic events: (1) Nakula in his expedition to the west before the Rājasūya brought, among others, the clans of Ābhīras under his control (śūdrābhīragaṇāś caiva…vaśe cakre) 2. 29. 9-10; (2) They fought on the side of the Kauravas; on the twelfth day of the war they were placed at the neck of the Suparṇa Vyūha (7. 19. 4-5) arranged by Droṇa (śūrābhīrā daśerakāḥ/…grīvāyām) 7. 19. 7; (3) When Arjuna reached Pañcanada along with men and women of the Bhojas, Vṛṣṇis and Andhakas (16. 8. 3338, 43), the Ābhīras consulted among themselves and knowing that Arjuna was the only warrior to escort the women, thousands of them, equipped with sticks, attacked Bhojas and others to loot their wealth; they did not mind the threats of Arjuna and kidnapped the women under his charge; Arjuna struck some of them with his arrows and when the arrows were exhausted he killed the Dasyus with the tip of his bow; but the Mlecchas succeeded in taking away with them Vṛṣṇi women in spite of Arjuna's effort to protect them (ābhīrā mantrayām āsuh sametyāśubhadarśanāḥ//ayam eko 'rjuno yoddhā…/nayaty asmān atikramya…//tato yaṣṭipraharaṇā dasyavas te sahasraśaḥ/abhyadhāvanta vṛṣṇīnām taṁ janaṁ…//tathoktās tena vīreṇa kadarthīkṛtya tadvacaḥ/abhipetur janaṁ…/…śaraih pārtho…/jaghāna dasyūn…//…dhanuṣkoṭyā tadā dasyūn avadhīt pākaśāsaniḥ//prekṣatas tv eva pārthasya vṛṣṇyandhakavarastriyaḥ/jagmur ādāya te mlecchāḥ/) 16. 8. 43-61; Arjuna reported the abduction of Vṛṣṇi women by Ābhiras to Vyāsa (paśyato vṛṣṇidārāś ca mama brahman sahasraśaḥ/ābhīrair anusṛtyājau hṛtāḥ) 16. 9. 16. D. Past event: Sarasvatī formerly disappeared at Vinaśana due to her hatred for Śūdras and Ābhīras (tato vinaśanaṁ…/śūdrābhīrān prati dveṣād yatra naṣṭā sarasvatī) 9. 36. 1. E. They figure in a prophecy; While describing the end of the Kali era to Yudhiṣṭhira, Mārkaṇḍeya counted Ābhīras among the Mleccha kings who would rule the earth (bahavo mleccharājānaḥ pṛthivyāṁ manujādhipa/ …śūdrās tathābhīrā narottama) 3. 186. 29, 30. _______________________________ *2nd word in right half of page p624_mci (+offset) in original book. previous page p623_mci .......... next page p625_mci
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This thesis has been written by Yogesh kumar Rohi belong to village Azad pur
Post pahari pur district Aligarh .U.P.
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