गुरुवार, 17 अगस्त 2017

अहीरो का ऐैतिहासिक परिचय---

18, 2016 at 12:39pm · 🐃🏌🐄🐄🐄🐄🐄 ~~अहीरों का एेतिहासक परिचय ..~~~ ~~~~~~~~~~~~~~~~ अहीरों को संस्कृत भाषा में अभीरः अथवा आभीरः संज्ञा से अभिहित किया गया .. संस्कृत भाषा में यह शब्द " अभि ईरयति इति अभीरः" अर्थात् चारो तरफ घूमने बाला निर्भीक जनजाति " अभि एक धातु ( क्रियामूल ) से पूर्व लगने बाला उपसर्ग Prifix..तथा ईर् धातु जिसका अर्थ गमन करना है इसमें कर्तरिसंज्ञा भावे में अच् प्रत्यय के द्वारा निर्मित विशेषण -शब्द अभीरः है | अभीरः शब्द में श्लिष्ट अर्थ है... जो पूर्णतः भाव सम्पूर्क है ...अ निषेधात्मक उपसर्ग तथा भीरः/ भीरु = कायर ..अर्थात् जो भीरः अथवा कायर न हो वीर पुरुष ..यहूदीयो की भाषा हिब्रू में भी अबीर Abeer शब्द का अर्थ वीर तथा सामन्त है ..तात्पर्य यह कि इजराईल के यहूदी वस्तुतः यदु की सन्तानें थी जिन्हें अबीर भी कहा जाता था यद्यपि आभीरः शब्द अभीरः शब्द का ही बहुवचन समूह वाचक रूप है | अभीरः+ अण् = आभीरः ..हिब्रू बाईबिल में सृष्टिखण्ड Genesis ..में यहुदः तथा तुरबजू के रूप में यदुः तुर्वसू का ही वर्णन है आर्यों के प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में जैसा कि वर्णन है ऋग्वेद के दशम् मण्डल के 62 में सूक्त का 10 में मन्त्र में ..~~------उत दासा परिविषे स्मद्दिष्टी ( समत् दिष्टी )गोपरीणसा यदुस्तुर्वश् च मामहे = 🏒🏒🏒🏒🏒🏒🏒 अर्थात् यदु और तुर्वशु नामक जो दास हैं गोओं से परिपूर्ण है अर्थात् चारो ओर से घिरे हुए हैं हम सब उनकी स्तुति करते हैं | 🐂🐂🐂 🐂. 🐇 🐂🐄🐃🐄. 🐄🐄 वस्तुतः अभीरः शब्द से कालान्तरण में स्वतन्त्र रूप से एक अभ्र् नाम धातु का विकास हुआ जो संस्कृत धातु पाठ में परिगणित है जिसका अर्थ है...----चारौ ओर घूमना ..इतना ही नही मिश्र के टैल ए अमर्ना के शिला लेखों पर हबीरु शब्द का अर्थ भी घुमक्कड़ ही है ..अंग्रेजी में आयात क्रिया शब्द Aberrate का अर्थ है ...to Wander or deviate from the right path...अर्थात् सही रास्ते से भटका हुआ..आवारा ..संस्कृत रूप अभीरयति परस्मै पदीय रूप ... सत्य तो यह है कि सदीयों से आभीरः जनजाति के प्रति तथा कथित कुछ ब्राह्मणों के द्वारा द्वेष भाव का कपट पूर्ण नीति निर्वहन किया गया जाता रहा ..शूद्र वर्ग में प्रतिष्ठित कर उनके लिए शिक्षा और संस्कारों के द्वार भी पूर्ण रूप से बन्द कर दिए गये .. जैसा कि " स्त्रीशूद्रौ नाधीयताम् " अर्थात् स्त्री और शूद्र ज्ञान प्राप्त न करें ...अर्थात् वैदिक विधान का परिधान पहना कर इसे ईश्वरीय विधान भी सिद्ध किया गया ... क्यों कि वह तथाकथित समाज के स्वमभू अधिपति जानते थे कि शिक्षा अथवा ज्ञान के द्वारा संस्कारों से युक्त होकर ये अपना उत्धान कर सकते हैं ..शिक्षा हमारी प्रवृत्तिगत स्वाभाविकतओं का संयम पूर्वक दमन करती है अतः दमन संयम है और संयम यम अथवा धर्म है ... यद्यपि कृष्ण को प्रत्यक्ष रूप से तो शूद्र अथवा दास नहीं कहा गया परन्तु परोक्ष रूप से उनके समाज या वर्ग को आर्यों के रूप में स्वीकृत नहीं किया है ..कृष्ण को इन्द्र के प्रतिद्वन्द्वी के रूप मे भी वैदिक साहित्य में वर्णित किया गया है .. वस्तुतः अहीर एक गौ पालक जाति है, जो उत्तरी और मध्य भारतीय क्षेत्र में फैली हुई है। इस जाति के साथ बहुत ऐतिहासिक महत्त्व जुड़ा हुआ है, ...... क्योंकि इसके सदस्य संस्कृत साहित्य में उल्लिखित आभीर के समकक्ष माने जाते हैं। हिन्दू पौराणिक ग्रंथ 'महाभारत' में इस जाति का बार-बार उल्लेख आया है। कुछ विद्वानों का मत है कि इन्हीं गौ पालकों ने, जो दक्षिणी राजस्थान और सिंध (पाकिस्तान) में बिखरे हुए हैं, गोपालन भगवान् कृष्ण की कथा का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं। 'अहीर' भारत की प्राचीन जाति है, जो अराजकता के लिए काफ़ी प्रसिद्ध रही है।यह सर्व सत्य है कि शिक्षा और संस्कारों से वञ्चित समाज कभी सभ्य या सांस्कृतिक रूप से समुन्नत नहीं हो सकता है अतः आभीरः जनजाति भी इसका अप वाद नहीं है ... जैसा की तारानाथ वाचस्पत्यम् ने अहीरों की इसी प्रवृत्ति गत स्वभाव को आधार मानकर संस्कृत भाषा में आभीरः शब्द की व्युत्पत्ति भी की है--------------* "आ समन्तात् भीयं राति इति आभीरः कथ्यते "..अर्थात् जो चारो ओर से जो भय प्रदान करता है वह आभीरः है ...यद्यपि यह शब्द व्युत्पत्ति प्रवृत्ति गत है अन्यत्र दूसरी व्युत्पत्ति अभीरः शब्द की है --------- अभिमुखी कृत्य ईरयति गाः इति अभीरः अर्थात् दौनो तरफ मुख करके जो गायें चराता है या घेरता है वह अभीरः है..... शब्द- विश्लेषक योगेश कुमार रोहि ग्राम आजादपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़ के द्वारा प्रायोजित है .....फारसी मूल का आवरा शब्द भी अहीर /आभीरः का तद्भव रुप है .. जाटों का इन अहीरों से रक्त सम्बन्ध तथा सामाजिक सम्बन्ध मराठों और गूजरों जैसा निकटतम है।स्वयं गुज्जर / गूजर अथवा संस्कृत गुर्जरः भी संस्कृत के पूर्ववर्ती शब्द गोश्चरः ---- गायों को चराने बाला ,🐄🐄. 🏌🐄🐄🐄. 🐄. 🐂..का परवर्ती रूप है जिससे गुर्जरायत या गुजरात प्रदेश वाची शब्द का विकास हुआ है .. यादव प्राय: 'अहीर' शब्द से भी नामांकित होते हैं, जो संभवत: आभीर जाति से संबद्ध हैं कुछ लोग आभीरों को अनार्य कहते हैं,...क्यो ऋग्वेद के दशम् मण्डल के62 में सूक्त के 10 वें मन्त्र में यदु और तुर्वशु को दास कहा गया है .. जैसा कि उपर्यक्त वर्णित है .उत दासा ...........................|अतः आभीरः जनजाति के पूर्व- पुरुष यदु आर्यों के समुदाय से बहिष्क.त कर दिये गये थे ..यदि आभीरः जनजाति को अभीर जाति से संबंधित किया जाये तो ये विदेशी ठहरते हैं। जैसा कि इजराईल के यहूदी अबीर Abeer जनजाति जो युद्ध और पराक्रम के लिए दुनिया मे विख्यात हैं ..से साम्य है.. श्रीकृष्ण को जाे दोनों ही अपना पूर्व-पुरुष मानते हैं। यद्यपि अहीरों में परस्पर कुछ ऐसी दुर्भावनाएं उत्पन्न हो गई हैं कि वे स्वयं एक शाख वाले, दूसरी शाख वालों को, अपने से हीन समझते हैं। लेकिन जाटों का सभी अहीरों के साथ चाहे वे अपने लिए यादव, गोप, नंद, आभीर कहें, एक-सा व्यवहार है। जैसे खान-पान में जाट और गूजरों में कोई भेद नहीं, वैसे ही अहीर और जाटों में भी कोई भेद नहीं। इतिहास में इनके रहने का भी स्थान निकट-निकट बतलाया गया है। भारत से बाहर भी जहां कहीं जाटों का अस्तित्व पाया जाता है, वहीं अहीरों की बस्तियां भी मिलती हैं। ... ज्ञान की गहराईयों में प्रेषित योगेश कुमार रोहि की जानिब से यह महान ऐेतिहासिक महत्व का सन्देश.....प्रथम भाग 1⃣1⃣1⃣1⃣1⃣1⃣1⃣1⃣ ...विचार- विश्लेषक--- योगेश कुमार रोहि ग्राम आजादपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़ उ०प्र० सम्पर्क 8979503784.../ LikeShow more reactions Comment

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