मंगलवार, 28 मई 2024

कृष्ण भजन यादव लोक धुन संगीत -भाग प्रथम-★

तर्ज- वृन्दावन में हुकुम चले बरसाने वाली का-

"जिसकी महिमा  है अति शोभन
व्रज की रज को- नमन करो मन।
नमन बृषभानु-कुमारी का-।
व्रज की उजियारी का -
उसके सुमिरण से ही बनता है।
बिगड़ा भाग्य- भिखारी का।
भजन कर श्यामा प्यारी का
व्रज की उजियारी का।।
भजन कर  ! श्यामा प्यारी का -
व्रज की उजियारी का।
**********************

वही सृष्टि की है अधीश्वरी
करुणा और दया से भरी ।
जग का स्वामी अन्तर्यामी
उसके चरणों का भ्रमरी ।१।

सेवा में सब भक्त  खड़े हैं।
खिले हुए जिनके मुखड़े हैं।
कोई रंग न दुनियादारी का
नमन बृषभानु-कुमारी का
व्रज की उजियारी का।।

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सीमित श्वाँसो के मनकों की 
ये जीवन की भंगुर माला।
सुमिरन कर ले उसका रे मन।
इसको जो पिरोने वाला।२।
मोतियों के सुेमेरू जड़े है।
उन पर भक्ति के रंग चढ़े हैं।
जबाब नहीं कलाकारी का-
नमन बृषभानु-कुमारी का
व्रज की उजियारी का।।
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दुनिया के ये रोग बड़े हैं ।
जीवन में लफड़े ही लफड़े है।
ये मर्ज  दुनियादारी का-
भजन कर ! श्यामा प्यारी का -
व्रज की उजियारी का।

व्रज की रज को नमन करो मन ।
नमन बृषभानु-कुमारी का
उसके सुमिरण से ही बनता है 
बिगड़ा भाग्य  भिखारी का।।
***********************

राधे कृष्ण की सच्ची भक्ति
जिसने भी कर पायी है।
कष्टों के सागर से उतरा।
महिमा जिसने गायी है।।
बाधाओं से जो नित्य लड़े है 
वे राधा  के भक्त बड़े है।
उन पे हाथ है प्यारी का-़
राधे - बृषभानुकुमारी का
भजन कर श्यामा प्यारी का
व्रज की उजियारी का।।


राधे नाम रटो री रसना।
शक्ति नाम में पायी है।
नाम जगत में एक बड़ा 
अर्थ में शक्ति समायी है।
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उसकी यादें और फरियादें।
भव रोगों को जड़ से मिटा दें। 
हिकमत  हर बीमारी का।
भजन कर श्यामा प्यारी का
व्रज की उजियारी का।।
भजनकर श्यामा प्यारी का
व्रज की उजियारी का।।
**
व्रज की रज को- नमन करो मन।
मन बृषभानु-कुमारी का-।।
उसके सुमिरण से ही बनता है 
बिगड़ा भाग्य  भिखारी का।।
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प्रस्तुति - यादव योगेश कुमार रोहि-
8077160219


तर्ज- उमर मेरी बारी कटे कैसे-

तू कृष्ण भजन कर  प्यारे !

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तू कृष्ण भजन कर  प्यारे !
तेरी उमर बीत गयी क्षण में ।
जहाँ मतलब के ही सारे !
तेरे संग नहीं कोई रण में ।।टेक-
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बालक था- तब खेल कूद में
यौवन में - खुद के बजूद में।(निम्न - स्वर)

जोश भरा तेरी  रक्त बूँद में।(उच्च-स्वर)
जोश भरा तेरी  रक्त बूँद में
तेैने इश्क में जुल्म गुजारे
तू रहा अपनी ही अकड़ मे-★(१ )
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तू कृष्ण भजन कर प्यारे।
तेरी उमर बीत गयी क्षण में ।
यहाँ मतलब के ही सारे !
तेरे संग नहीं कोई रण में ।।
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मद के उफानों को- तूने झेला।
तू यौवन के -तूफानों में खेला।( निम्न-स्वर)

करता रहा तू पैलम- पेला ।।।(उच्च-स्वर)
अन्त समय पर रहा अकेला
फिर तैने नेक न होश मारे।
कुछ आया नहीं पकड़ में- ★(२)
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तू कृष्ण भजन कर प्यारे 
तेरी उमर बीत गयी क्षण में ।
यहाँ मतलब के ही सारे !
तेरे संग नहीं कोई रण में ।।
********************
तूफान ढले तब, बीती उमरिया( निम्न-स्वर)
तूने संग न पाया- कुछ बाबरिया।

अब तो लै तू -प्रभु की खबरिया।(उच्च-स्वर)
भक्ति को बना ले अपना जरिया।

तैने बादर  बहुत फारे !
तेरो रह गयो सब गड़बड़ में ★( ३)
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तू कृष्ण भजन कर प्यारे 
तेरी उमर बीत गयी क्षण में ।
यहाँ मतलब के ही सारे !
तेरे संग नहीं कोई रण में ।।
***********************
रोही राहो में  भटके हैं।( निम्न-स्वर)
कोई उलफल में अटके हैं।

जीवन में झटके ही झटके हैं।।(उच्च-स्वर)
सब अधबर में ही लटके हैं।
मन हाय- हाय पुकारे -
सब खोटे है इसकी जड़ में★( ४)
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तू कृष्ण भजन कर प्यारे 
तेरी उमर बीत गयी क्षण में ।
यहाँ मतलब के ही सारे !
तेरे संग नहीं कोई रण में ।।


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तर्ज - आने से उसके आये बहार-

तुझको पुकारूं मैं बारम्बार!
सुन ले मेरे तू दिल की गुहार ।।
तू ही मेरा मालिक है ! मेरे श्याम हरि !
मुझ पे बारिश हो जाए, तेरी करुणा-भरी।।
~~~~~
तुझको पुकारूं मैं बारम्बार!
सुन ले मेरे तू दिल की गुहार ।।
तू ही मेरा मालिक है ! मेरे श्याम हरि !
मुझ पे बारिश हो जाए, तेरी करुणा-भरी।।

******************
तुझे यादो में  संजोए ,फरियादे मेरी हैं साखी 
दर्द-दिल में घनेरे , सिसकना ही रह गया बाकी।।  हर तरफ तो राह छोड़ है वो तुमसे गुजारिश है
मेरे श्याम हरि-   
मुझ पे  बारिश हो तेरी करुणा भरी।   
**************  


हर श्वास चल रही है ,जैसे बहता है नदिया का पानी
मेरी धड़कनों में जैसे उठती है  लहरों की ये रवानी।                              
बीते पल और बीते कल ग़ मो की तापिश मेरे श्याम हरि-
मुझ पे  बारिश हो तेरी करुणा भरी।   
*******************************

तुझको पुकारूं मैं बारम्बार!
सुन ले मेरे तू दिल की गुहार ।।
तू ही मेरा मालिक है ! मेरे श्याम हरि !
मुझ पे बारिश हो जाए, तेरी करुणा-भरी।।
~~~~~
भव सागर है कठिन डगर है ।
हम कर बैठे खुद से समझौते !

डूब न जाए जीवन की किश्ती ।
यहाँ मोह के भंवर लोभ के गोते ।

मन का पतवार बीच की धार।
रोही उम्र बीत गई रोते-रोते।

प्रवृत्तियों के वेग प्रबल हैं ।
लहरों के भी कितने छल हैं ।

बस बच गए हैं हम खोते खोते।
सद्बुद्धि केवटिया बन जा ।
और लहरों पर सीधा तनजा-



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