बुधवार, 22 मई 2024

गीता के ब्राह्मणवादी श्लोक-


 

" दोषैरेत: कुलघनानां वर्णसङ्कर कारकै:। उत्साद्यन्ते जातिधर्मा: कुलधर्माश्च शाश्वता:।१/४३।| 

 व्याख्या--'दोषैरेतैः कुलघ्नानाम् ৷৷. कुलधर्माश्चशाश्वताः'--युद्धमें कुलका क्षय होने से कुलके साथ चलते आये कुलधर्मोंका भी नाश हो जाता है। कुलधर्मोंके नाशके कुलमें अधर्मकी वृद्धि हो जाती है। अधर्मकी वृद्धिसे स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं। स्त्रियोंके दूषित होनेसे वर्णसंकर पैदा हो जाते हैं। इस तरह इन वर्णसंकर पैदा करनेवाले दोषोंसे कुलका नाश करनेवालोंके जातिधर्म (वर्णधर्म) नष्ट हो जाते हैं।

कुलधर्म और जातिधर्म क्या हैं एक ही जातिमें एक कुलकी जो अपनी अलग-अलग परम्पराएँ हैं, अलग-अलग मर्यादाएँ हैं, अलग-अलग आचरण हैं, वे सभी उस कुलके 'कुलधर्म' कहलाते हैं। एक ही जातिके सम्पूर्ण कुलोंके समुदायको लेकर जो धर्म कहे जाते हैं, वे सभी जातिधर्म अर्थात् वर्णधर्म कहलाते हैं जो कि सामान्य धर्म हैं और शास्त्रविधिसे नियत हैं। इन कुलधर्मोंका और जातिधर्मोंका आचरण न होनेसे ये धर्म नष्ट हो जाते हैं।



या देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥15॥

या देवी सर्व-भूतेषु जाति-रूपेन्ना संस्थिता |
नमस-तस्यै नमस-तस्यै नमस-तस्यै नमो नमः ||15||

15.1: उस देवी को जो सभी प्राणियों में जीनस (हर चीज का मूल कारण) के रूप में निवास करती है , 15.2: उसे नमस्कार है , उसे नमस्कार है , उसे नमस्कार है , उसे बार-बार नमस्कार है । या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥16॥ या देवी सर्व-भूतेषु लज्जा-रूपेन्ना


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