-वचन-
संस्कृत में तीन वचन होते हैं- एकवचन, द्विवचन तथा बहुवचन।
संख्या में एक होने पर एकवचन का, दो होने पर द्विवचन का तथा दो से अधिक होने पर बहुवचन का प्रयोग किया जाता है।
जैसे- एक वचन -- एकः बालक: क्रीडति।
द्विवचन -- द्वौ बालकौ क्रीडतः।
बहुवचन -- त्रयः बालकाः क्रीडन्ति।
_______________________________
लिंग-′पुल्लिंग- जिस शब्द में पुरुष जाति का बोध होता है, उसे पुलिंग कहते हैं।
(जैसे रामः, बालकः, सः आदि)
स: बालकः अस्ति।- वह बालक है।
तौ बालकौ स्तः।- वे दोनों बालक हैं।
ते बालकाः सन्ति। -वे सब बालक हैं।
_____________________
स्त्रीलिंग- जिस शब्द से स्त्री( महिला) जाति का बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं। (जैसे रमा, बालिका, शीला , सा आदि)
सा बालिका अस्ति। वह बालिका है ।
ते बालिके स्तः। वे दो बालिका हैं।
ताः बालिकाः सन्ति। वे सब बालिका हैं।-
__________
नपुंसकलिंग (जैसे: फलम् , गृहम्, पुस्तकम् , तत् आदि)
तत् फलम् अस्ति | वह फल है ।
ते फले स्त: |वे दो फल हैं।
तानि फलानि सन्ति | वे सब फल हैं।
"संस्कृत के पुरुष"
पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
उत्तमपुरुष अहम्(मैं) आवाम्(हमदोनों) वयम्-(हमसब)
मध्यमपुरुष त्वम्(तू) युवाम्(तुम दोनों) यूयम्(तुम सब)
प्रथम/अन्य पुरुष स:/सा/तत् (वह) तौ/ते/ते (वे दोनों
ते/ता:/तानि (वे सब)
अन्य पुरुष एकवचन मे 'स:' पुल्लिङ्ग के लिये , 'सा' स्त्रीलिङ्ग के लिये और 'तत्' नपुन्सकलिङ्ग के लिये है।
क्रमश: द्विवचन और बहुवचन के लिए भी यही रीति है |
उत्तम पुरुष और मध्यम पुरुष मे लिङ्ग के भेद नही है ।
"कारक"
कारक नाम - वाक्य के अन्दर उपस्थित पहचान-चिह्न से समन्वित क्रिया से सम्बन्धित पदों का नाम कारक है
कर्ता - ने (रामः) गीतं गायति।)
कर्म - को (to) (बालकः (विद्यालयं) गच्छति।)
करण - से (by /With), द्वारा (सः (हस्तेन) फलं खादति।
सम्प्रदान -को , के लिये (for) (निर्धनाय) धनं देयं।
अपादान - से (from) अलगाव (वृक्षात् )पत्राणि पतन्ति।
सम्बन्ध - का, की, के (of) (राम: (दशरथस्य पुत्रः) आसीत्।
अधिकरण - में, पे, पर (in/on) यस्य (गृहे) माता नास्ति,)
सम्बोधन - हे!,भो !,अरे !, (हे राजन्) !अहं निर्दोषः।
भवत् स्त्रील्लिंग शब्द के रूप –
भवत् स्त्रील्लिंग शब्द रूप: “भवत् शब्द” नाम का
भवत् (भवती = आप स्त्री) अन्यपुरुष, स्त्री० –
विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा भवती=
आप एक स्त्री ने भवत्यौ=आप दौनों स्त्रीयों ने भवत्यः=
आप
सब स्त्रीयों ने
द्वितीया भवतीम्=
आप एक स्त्री को भवत्यौ=आप दौनों स्त्रियों को भवत्यः=
आप
सब स्त्रीयों को
तृतीया भवत्या=
आप एक स्त्री को द्वारा भवतीभ्याम्=
आप दौंनो स्त्रियों के द्वारा भवतीभिः=
आप सब स्त्रियों के द्वारा
चतुर्थी भवत्यै=
आप एक
स्त्री के लिए भवतीभ्याम्=
आप दौंनो स्त्रियों के लिए भवतीभ्यः=
आप सब स्त्रीयों के लिए
पञ्चमी भवत्याः=
आप एक स्त्री से भवतीभ्याम्=
आप दौनों स्त्रीयों से भवतीभ्यः=
आप सब स्त्रीयों से
षष्ठी भवत्याः=
आप एक स्त्री का भवत्योः=
आप दौंनो
स्त्रियों का
भवतीनाम्=
आप सब स्त्रीयों का
सप्तमी भवत्याम्=
आप एक स्त्री में भवत्योः= आप दौनों स्त्रीयों में भवतीषु= आप सब स्त्रीयों में
सम्बोधन हे भवति हे भवत्यौ हे भवत्यः
___________________
"भवत्" सर्वनामपद के रूप तीनों लिंगों में सदैव अन्य पुरुष के क्रियापद का प्रयोग होता है।
"डवतुप्रत्ययान्तपुल्लिङ्गः
भवत् शब्दः
(भवत् -पुल्लिङ्गः)
एकवचनम् द्विवचनम् बहुवचनम्
प्रथमा भवान्=
आप एक ने भवन्तौ=
आप दौनों
ने भवन्तः=
आप सब
ने
द्वितीया भवन्तम्=
आप एक
को भवन्तौ=
आप दौनों
को भवतः=
आप सब
को
तृतीया भवता=
आप एक
को द्वारा- भवद्भ्याम्
=आप दौनों को
द्वारा
भवद्भिः=
आप सब
के द्वारा
चतुर्थी भवते=
आप एक के लिए भवद्भ्याम्
=आप दौनों
के लिए भवद्भ्यः=
आप सब
को लिए
पञ्चमी भवतः=
आप एक से भवद्भ्याम्
आप दौनों
से भवद्भ्यः=
आप सब से
षष्ठी भवतः=
आप एक का भवतोः=
आप दौंनो का भवताम्=
आप सब
का
सप्तमी भवति=
आप एक में भवतोः= आप दौनों में भवत्सु= आप सब में
सम्बोधन हे भवान् हे भवन्तौ हे भवन्तः
"वाच्य"-
संस्कृत में तीन वाच्य होते हैं- कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य और भाववाच्य।
कर्तृवाच्य में कर्तापद में प्रथमा विभक्ति का होता है।
(छात्रः) श्लोकं पठति- यहाँ (छात्रः) कर्ता है और प्रथमा विभक्ति में है।
कर्मवाच्य में कर्तापद में तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है और कर्म में प्रथमा विभक्ति का।
जैसे, छात्रेण (श्लोकः) पठ्यते।
यहाँ छात्रेण तृतीया विभक्ति में और कर्म-श्लोक: में प्रथमा विभक्ति है।
अकर्मक क्रिया में कर्म नहीं होने के कारण क्रिया की प्रधानता होने से भाववाच्य के प्रयोग सिद्ध होते हैं।
कर्ता की प्रधानता होने से कर्तृवाच्य प्रयोग सिद्ध होते हैं। भाववाच्य एवं कर्मवाच्य में क्रियारूप एक जैसे ही रहते हैं।
कर्तृवाच्य. से -भाववाच्य
1.पु० भवान् तिष्ठतु -आप बैठो।
भवता स्थीयताम्आ=प के द्वारा बैठा जाए-
2.स्त्री० भवती नृत्यतु आप नाचो- भवत्या नृत्यताम्आ=प के द्वारा नाचा जाए-
3. त्वं वर्धस्व त्वया वर्ध्यताम् =आपके द्वारा बढ़ा जाए-
4.पु० भवन्तः न खिद्यन्ताम् भवद्भिः न खिद्यताम् =आप सबके द्वारा दु:खी न हुआ जाए-
5.स्त्री० भवत्यः उत्तिष्ठन्तु भवतीभिः उत्थीयताम् =आपके सबके द्वारा उठा जाए
6.
यूयं संचरत
युष्माभिःसंचर्यताम्= आप सबके द्वारा चरा जाए
7.पु०
भवन्तौ रुदिताम् भवद्भयां रुद्यताम् =आप सबके द्वारा रोया जाए.
8.स्त्री०
भवत्यौ हसताम् भवतीभ्यां हस्यताम् आप दौनों के द्वारा हसा जाए.
9. विमानम् उड्डयताम् विमानेन उड्डयताम् विमान के द्वारा उड़ा जाए.
10 सर्वे उपविशन्तु
सर्वै: उपविश्यताम् -सबके द्वारा बैठा जाए-
उपर्युक्त वाक्यों में क्रिया अन्य पुरुष, एक वचन और आत्मनेपदीय में रूप में है।
___________________
उप+ विश् धातुरूपाणि -लोट् लकारःविशँ प्रवेशने तुदादिःगणीय- परस्मैपदीय व आत्मनेपदीय रूप-
"उप+विश्-बैठना।
कर्तरि प्रयोगः परस्मैपदीय रूप-
प्रथमपु०-एकव०उपविशतात् / उपविशताद् / उपविशतु।
द्विव०उपविशताम्।
बहुव०उपविशन्तु।
मध्यम पु०-एकवचन-उपविश।
द्विवचन-उपविशतम्।
बहुवचन-उपविशत।
उत्तम पु०
एकव०- उपविशानि।
द्विव ०- उपविशाव।
बहुव० - उपविशाम।
_______________________
"कर्मणि प्रयोग: आत्मनेपदीय रूप"
________
प्रथमपु०
एकव०-उपविश्यताम्
द्विव० -उपविश्येताम्
बहुव०-उपविश्यन्ताम्
_______
मध्यम
एकव०-उपविश्यस्व
द्विव० - उपविश्येथाम्
बहुव०-उपविश्यध्वम्
_____
उत्तम
एकव०-उपविश्यै
द्विव०-उपविश्यावहै
बहुव०-उपविश्यामहै
_____________________
रूपिम-(Morpheme) भाषा उच्चारण की लघुत्तम अर्थवान् इकाई है।
रूपिम स्वनिमों (ध्वनि समूहों)का ऐसा न्यूनतम अनुक्रम है जो व्याकरणिक दृष्टि से सार्थक होता है।
स्वनिम के बाद रूपिम भाषा का महत्वपूर्ण तत्व व अंग है।
(रूपिम को 'रूपग्राम' और 'पदग्राम' भी कहते हैं। जिस प्रकार स्वन-प्रक्रिया की आधारभूत इकाई स्वनिम (ध्वनि है
उसी प्रकार रूप-प्रक्रिया की आधारभूत इकाई रूपिम है।
रूपिमवाक्य-रचना और अर्थ-अभिव्यक्ति की सहायक इकाई है।
स्वनिम -भाषा की अर्थहीन इकाई है, किन्तु इसमें अर्थभेदक क्षमता होती है।
_________________________________________
(रूपिम- लघुत्तम अर्थवान इकाई है, किन्तु रूपिम को अर्थिम का पर्याय नहीं मान सकते हैं;
यथा-" परमात्मा" एक अर्थिम पद है, जबकि इसमें ‘परम’ और ‘आत्मा’ दो रूपिम पद हैं।
परिभाषा - विभिन्न भाषा वैज्ञानिकों ने रूपिम को भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख विद्वानों के अनुसार पदग्राम पदों का समूह (रूपिम) वस्तुतः परिपूरक वितरण या मुक्त वितरण मे आये हुए सहपदों (शब्दों) का समूह है। रूप भाषा की लघुतम अर्थपूर्ण इकाई होती है जिसमें एक अथवा अनेक ध्वनियों का प्रयोग किया जाता है।
डॉ॰ भोलानाथ तिवारी के मतानुसार, भाषा या वाक्य की लघुतम सार्थक इकाई रूपग्राम है।
डॉ॰ जगदेव सिंह ने लिखा है, रूप-अर्थ से संश्लिष्ट भाषा की लघुतम इकाई को रूपिम कहते हैं।
पाश्चात्य विद्वानों द्वारा प्रदत्त परिभाषाएँ:-
"ब्लॉक का रूपिम के विषय में विचार है- कोई भी भाषिक रूप, चाहे मुक्त अथवा आबद्ध हो और जिसे अल्पतम या न्यूनतम अर्थमुक्त (सार्थक) रूप में खण्डित न किया जा सके, रूपिम होता है।
"ग्लीसन का विचार है- रूपिम न्यूनतम उपयुक्त व्याकरणिक अर्थवान रूप है।
"आर. एच. रोबिन्स ने व्याकरणिक संदर्भ में रूपिम को इस प्रकार परिभाषित किया है- न्यूनतम व्याकरणिक इकाईयों को रूपिम कहा जाता है।
स्वरूप- रूपिम के स्वरूप को उसकी अर्थ-भेदक संरचना के आधार पर निर्धारित कर सकते हैं।
प्रत्येक भाषा में रूपिम व्यवस्था उसकी अर्थ-प्रवृति के आधार पर होती है। इसलिए भिन्न-भिन्न भाषाओं के रूपिमों में भिन्नता होना स्वभाविक है।
____________________________________
"वाक्य विज्ञान --
दो या दो से अधिक पदों के सार्थक समूह जिसका पूरा अर्थ निकलता है, उसे वाक्य कहते हैं।
--
उदाहरण के लिए 'सत्य की विजय होती है।'
यह एक वाक्य है क्योंकि इसका पूरा पूरा अर्थ निकलता है किन्तु 'सत्य विजय होता।' परन्तु यइस प्रकार यह वाक्य नहीं है क्योंकि इसका कोई अर्थ नहीं निकलता है।
शब्दकोशीय अर्थ की दृष्टि से --
- वह पद -समूह जिससे श्रोता को वक्ता के अभिप्राय का बोध हो।
भाषा के भाषा-वैज्ञानिक आर्थिक इकाई का बोधक पद समूह। वाक्य में कम से कम कारक (कर्तृ आदि) जो संज्ञा या सर्वनाम होता है और क्रिया का होना भी आवश्यक है।
क्रियापद और कारक पद से युक्त सेच्छिक ( इच्छा-सहित) अर्थबोधक पद- समूह या पदोच्चय। जो उद्देश्यांश और विधेयांश वाले सार्थक पदों का समूह हो
विशेष—नैयायिकों और अलंकारियों के अनुसार वाक्य में
(१) आकांक्षा,
(२) योग्यता और
(३) आसक्ति या सन्निधि होनी चाहिए।
'आकांक्षा' का अभिप्राय यह है कि शब्द यों ही रखे हुए न हों, वे मिलकर किसी एक तात्पर्य अथवा इच्छा का बोध कराते हों।
जैसे, कोई कहे—'मनुष्य चारपाई पुस्तक' तो यह वाक्य न होगा।
जब वह कहेगा—'मनुष्य चारपाई पर पुस्तक पढ़ता है।' तब वाक्य होगा। क्यों कि इसमें ऐच्छिकता का क्रमिक अन्वय( सम्बन्ध) है।
'योग्यता' का तात्पर्य यह है कि पदों के समूह से निकला हुआ अर्थ असंगत या असंभव न हो।
जैसे, कोई कहे—'पानी में हाथ जल गया' तो यह वाक्य न होगा क्योंकि पानी में हाथ जलाने की योग्यता का अभाव है।
'आसक्ति' या 'सन्निधि' का मतलब है सामीप्य या निकटता अर्थात् तात्पर्यबोध करानेवाले पदों के बीच देश या काल का अधिक व्यवधान अथवा दूरी न हो। जैसे, कोई यह न कहकर कि 'कुत्ता मारा, पानी पिया' यह कहे—'कुत्ता पिया मारा पानी' तो इसमें आसक्ति न होने से वाक्य न बनेगा; क्योंकि 'कुता' और 'मारा' के बीच 'पिया' शब्द का व्यवधान पड़ता है।
इसी प्रकार यदि काई 'पानी' सबेरे कहे और 'पिया' शाम को कहे, तो इसमें काल संबंधी व्यवधान होगा।
काव्य भेद का विषय मुख्यतः न्याय दर्शन के विवेचन से प्रारंभ होता है और यह मीमांसा और न्यायदर्शनों के अंतर्गत आता है।
दर्शनशास्त्रीय वाक्यों के ३ भेद मानते हैं-
"विधि-वाक्य, अनुवाद वाक्य और अर्थवाद -वाक्य किए गए हैं ; इनमें अंतिम के चार भेद- १-स्तुति, २-निंदा, ३-परकृति और ४-पुराकल्प बताए गए हैं।
(वक्ता का अभिप्रेत अथवा वक्तव्य की अबाधकता वाक्य का मुख्य उद्देश्य माना गया है।इसी की पृष्ठ भूमि में संस्कृत वैयाकरणों ने वाक्यस्फोट की उद्भावना की है।वाक्यपदोयकार द्वारा स्फोटात्मक वाक्य की अखंड सत्ता स्वीकृत है।
भाषावैज्ञानिकों की द्दष्टि में वाक्य संश्लेषणात्मक और विश्लेषणात्मक तत्व होते हैं।
"शब्दाकृतिमूलक वाक्य के शब्द-भेदानुसार चार भेद हैं—१-समासप्रधान, २-व्यासप्रधान, ३-प्रत्ययप्रधान और ४-विभक्तिप्रधान।
इन्हीं के आधार पर भाषाओं का भी वर्गीकरण विद्वानों ने किया है।
आधुनिक व्याकरण की दृष्टि से वाक्य के संरचना के आधार पर तीन भेद होते हैं—
१-सरल वाक्य.
२-मिश्रित वाक्य और
३-संयुक्त वाक्य।
तथा अर्थ की दृष्टि से वाक्यों के आठ भेद होते हैं।________________________________________
वाक्य – अर्थ की दृष्टि से वाक्य के प्रकार |
वाक्य किसे कहते हैं?
सार्थक शब्दों का ऐसा समूह जो व्यवस्थित हो तथा पूरा आशय प्रकट करता हो, वाक्य कहलाता है।
उदाहरण– 1. सोहन विद्यालय जाता है।
2. आप की इच्छा क्या है ?
वाक्यों के प्रकार के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ें और रेखांकित वाक्य पर गौर करें।
शुभम के बड़े भाई अशोक राजनगर में रहते हैं।
शुभम् उनसे मिलने राजनगर गया।
अचानक शुभम् को देखकर अशोक ने कहा- अरे ! शुभम् तुम ! शुभम् ने बताया कि आपसे मिलने का मन हुआ तो चला आया।
अशोक ने पूछा- क्या तुम आज ही वापस जाओगे ? शुभम ने उत्तर दिया- मैं आज नहीं जाऊँगा। अशोक ने कहा ठीक है। शायद आज मैं देर से लौटू। तुम बाजार चले जाओ लो ये पैसे, माया के लिए एक अच्छा सूट खरीद लेना। अशोक ने शुभम के साथ भोजन किया और अपने काम पर चला गया।
शुभम् बाजार गया।
उसने एक छोर से दूसरे छोर तक बाजार का चक्कर लगाया किन्तु उसे कपड़ों को कोई अच्छी दुकान दिखाई नहीं दी। आखिरकार एक कोने में उसे कपड़े की एक दुकान नजर आई।
उसने वहाँ से माया के लिए एक सूट खरीदा और लौट आया। शाम को अशोक ने बताया कि कल उसकी छुट्टी रहेगी।
शुभम् ने उसे अपना लाया हुआ मोबाइल दिखाया।
अमित ने कहा- मैं चाहता हूँ कि मैं भी कल तुम्हारे साथ ही घर चलूँ।
मेरे साथ ढेर सारा सामान है।
अगर तुम मेरे साथ रहोगे तो मुझे सुविधा होगी। शुभम् ने कहा- कल हम साथ ही घर चलेंगे।
______________
जैसे– शुभम् के बड़े भाई अशोक राजनगर में रहते हैं।
यह शब्द समूह सार्थक है, व्याकरण के नियमों के अनुरूप व्यवस्थित है तथा पूरा आशय प्रकट कर रहा है। अतः यह एक वाक्य है।
अब रेखांकित वाक्यों को देखें।
रेखांकित वाक्य अर्थ की दृष्टि से एक दूसरे से भिन्न हैं।
_________
सामान्यतः वाक्य भेद दो दृष्टियों से किया जाता है -
1. अर्थ की दृष्टि से
2. रचना की दृष्टि से
__________
हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. 'ज' का अर्थ, द्विज का अर्थ
2. भिज्ञ और अभिज्ञ में अन्तर
3. किन्तु और परन्तु में अन्तर
4. आरंभ और प्रारंभ में अन्तर
5. सन्सार, सन्मेलन जैसे शब्द शुद्ध नहीं हैं क्यों
6. उपमेय, उपमान, साधारण धर्म, वाचक शब्द क्या है.
7. 'र' के विभिन्न रूप- रकार, ऋकार, रेफ
8. सर्वनाम और उसके प्रकार
__________________
-अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद–
अर्थ के आधार पर वाक्यों के निम्नलिखित आठ भेद होते हैं।
(अ) विधानवाचक वाक्य– जिन वाक्यों से किसी क्रिया के करने या होने की सामान्य सूचना मिलती है, उन्हें विधानवाचक वाक्य कहते हैं। किसी के अस्तित्व का बोध भी इस प्रकार के वाक्यों से होता है।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
अशोक राजनगर में रहता है।
(ब) निषेधवाचक वाक्य– जिन वाक्यों से किसी कार्य के निषेध (न होने) का बोध होता हो, उन्हें निषेधवाचक वाक्य कहते हैं।
इन्हें नकारात्मक वाक्य भी कहते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
मैं आज नहीं जाऊंगा।
(स) प्रश्नवाचक वाक्य– जिन वाक्यों में प्रश्न किया जाए अर्थात् किसी से कोई बात पूछी जाए, उन्हें प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
क्या तुम आज ही वापस जाओगे?
(द) विस्मयादिवाचक वाक्य– जिन वाक्यों से आश्चर्य (विस्मय), हर्ष, शोक, घृणा आदि के भाव व्यक्त हों, उन्हें विस्मयादिवाचक वाक्य कहते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
अरे! शुभम् तुम!!
इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. हिंदी गद्य साहित्य की विधाएँ
2. हिंदी गद्य साहित्य की गौण (लघु) विधाएँ
3. हिन्दी साहित्य का इतिहास चार काल
4. काव्य के प्रकार
5. कवि परिचय हिन्दी साहित्य
6. हिन्दी के लेखकोंका परिचय
7. हिंदी भाषा के उपन्यास सम्राट - मुंशी प्रेमचंद
(ई) आज्ञावाचक वाक्य– जिन वाक्यों से आज्ञा या अनुमति देने का बोध हो, उन्हें आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
तुम बाजार चले जाओ।
(फ) इच्छावाचक वाक्य– वक्ता की इच्छा, आशा या आशीर्वाद को व्यक्त करने वाले वाक्य इच्छावाचक वाक्य कहलाते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
मैं चाहता कि मैं भी कल तुम्हारे साथ ही घर चलूँ।
(ग) संदेहवाचक वाक्य– जिन वाक्यों में कार्य के होने में सन्देह अथवा संभावना का बोध हो, उन्हें संदेहवाचक वाक्य कहते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
शायद मैं आज देर से लौटूँ।
(ह) संकेतवाचक वाक्य– जिन वाक्यों से एक क्रिया के दूसरी क्रिया पर निर्भर होने का बोध हो, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते हैं। इन्हें हेतुवाचक वाक्य भी कहते हैं। इनसे कारण, शर्त आदि का बोध होता है।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
अगर तुम मेरे साथ रहोगे तो मुझे सुविधा होगी।
___________________________
-अर्थ की दृष्टि से वाक्य में परिवर्तन–
आप पढ़ चुके हैं कि अर्थ की दृष्टि से वाक्य आठ प्रकार के होते हैं। इनमें से विधानवाचक वाक्य को मूल आधार माना जाता है। अन्य वाक्य भेदों में विधानवाचक वाक्य का मूलभाव ही विभिन्न रूपों में परिलक्षित होता है। किसी भी विधानवाचक वाक्य को सभी प्रकार के भावार्थों में प्रयुक्त किया जा सकता है।
जैसे– उपरोक्त अनुच्छेद का विधानवाचक वाक्य–
"अशोक राजनगर में रहता है।" को लेते हैं– इस वाक्य को सभी प्रकार के वाक्यों में निम्नानुसार परिवर्तित किया जा सकता है।
_________
1. विधानवाचक वाक्य - अशोक राजनगर में रहता है।
2. विस्मयादिवाचक वाक्य - अरे! अशोक राजनगर में रहता है।
3. प्रश्नवाचक वाक्य - क्या अशोक राजनगर में रहता है?
4. निषेधवाचक वाक्य - अशोक राजनगर में नहीं रहता है।
5. संदेहवाचक वाक्य - शायद अशोक राजनगर में रहता है।
6. आज्ञावाचक वाक्य - अशोक! तुम राजनगर में रहो।
7. इच्छावाचक वाक्य- काश, अशोक राजनगर में रहता!।
8. संकेतवाचक वाक्य - यदि अशोक राजनगर में रहना चाहता है तो रह सकता है।
____________
वाक्यांश--
शब्दों के ऐसे समूह को जिसका अर्थ तो निकलता है किन्तु पूरा पूरा अर्थ नहीं निकलता, वाक्यांश (Phrase) कहते हैं। उदाहरण -
'दरवाजे पर', 'कोने में', 'वृक्ष के नीचे' आदि का अर्थ तो निकलता है किन्तु पूरा पूरा अर्थ नहीं निकलता इसलिये ये वाक्यांश हैं।
__________________________________________
कर्ता और क्रिया के आधार पर वाक्य के भेद करें
वाक्य के दो भेद होते हैं-
__________
उद्देश्य और
विधेय-
वाक्य में जिसके बारे में कुछ बात की जाय उसे उद्देश्य कहते हैं।
और जो बात उद्देश्य के वाले में की जाय उसे विधेय कहते हैं। उदाहरण के लिए, 'मोहन प्रयाग में रहता है'।
इसमें उद्देश्य है - 'मोहन' , और विधेय है - 'प्रयाग में रहता है।'
________________________________________
वाक्य के भेद
वाक्य -भेद दो प्रकार से किए जा सकते हँ-
१- अर्थ के आधार पर वाक्य भेद
२- रचना के आधार पर वाक्य भेद
अर्थ के आधार पर वाक्य के तीन भेद हैं ।
अर्थ के आधार पर आठ प्रकार के वाक्य होते हँ-
1-विधान वाचक वाक्य,
2- निषेधवाचक वाक्य,
3- प्रश्नवाचक वाक्य,
4- विस्म्यादिवाचक वाक्य,
5- आज्ञावाचक वाक्य,
6- इच्छावाचक वाक्य,
7-संकेतवाचक वाक्य,
8-संदेहवाचक वाक्य।
विधानवाचक सूचक वाक्य - वह वाक्य जिससे किसी प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है,
वह विधानवाचक वाक्य कहलाता है।
उदाहरण -
भारत एक देश है।
राम के पिता का नाम दशरथ है।
दशरथ अयोध्या के राजा हैं।
निषेधवाचक वाक्य : जिन वाक्यों से कार्य न होने का भाव प्रकट होता है, उन्हें निषेधवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे-
मैंने दूध नहीं पिया।
मैंने खाना नहीं खाया।
प्रश्नवाचक वाक्य - वह वाक्य जिसके द्वारा किसी प्रकार प्रश्न किया जाता है, वह प्रश्नवाचक वाक्य कहलाता है।
उदाहरण -
भारत क्या है?
राम के पिता कौन है?
दशरथ कहाँ के राजा है?
आज्ञावाचक वाक्य - वह वाक्य जिसके द्वारा किसी प्रकार की आज्ञा दी जाती है या प्रार्थना की जाती है, वह आज्ञा वाचक वाक्य कहलाता हैं।
उदाहरण -
बैठो।
बैठिये।
कृपया बैठ जाइये।
शांत रहो।
कृपया शांति बनाये रखें।
इस प्रकार के हिन्दी वाक्यों के अन्त में ओ अथवा ए की ध्वनि निकलती है ।
विस्मयादिवाचक वाक्य - वह वाक्य जिससे किसी प्रकार की गहरी अनुभूति का प्रदर्शन किया जाता है, वह विस्मयादिवाचक वाक्य कहलाता हैं।
उदाहरण -
अहा! कितना सुन्दर उपवन है।
ओह! कितनी ठंडी रात है।
बल्ले! हम जीत गये।
इच्छावाचक वाक्य - जिन वाक्यों में किसी इच्छा, आकांक्षा या आशीर्वाद का बोध होता है, उन्हें इच्छावाचक वाक्य कहते हैं।
उदाहरण- भगवान तुम्हेँ दीर्घायु करे।
नववर्ष मंगलमय हो।
संकेतवाचक वाक्य- जिन वाक्यों में किसी संकेत का बोध होता है, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते हैं। उदाहरण-
राम का मकान उधर है।
सोनु उधर रहता है।
संदेहवाचक वाक्य - जिन वाक्यों में सन्देह का बोध होता है, उन्हें सन्देह वाचक वाक्य कहते हैं।
उदाहरण-
क्या वह यहाँ आ गया ?
क्या उसने काम कर लिया ?
रचना के आधार पर वाक्य के भेद---
रचना के आधार पर वाक्य के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं-'
(१)सरल वाक्य/साधारण वाक्य :-
जिनमें एक ही विधेय होता है, उन्हें सरल वाक्य या साधारण वाक्य कहते हैं, इन वाक्यों में एक ही क्रिया होती है;
जैसे- मुकेश पढ़ता है।
राकेश ने भोजन किया।
(२) संयुक्त वाक्य - जिन वाक्यों में दो-या दो से अधिक सरल वाक्य समुच्चयबोधक अव्ययों से जुड़े हों, उन्हें संयुक्त वाक्य कहते है;
जैसे- वह सुबह गया और शाम को लौट आया।
प्रिय बोलो पर असत्य नहीं।
(३) मिश्रित/मिश्र वाक्य - जिन वाक्यों में एक मुख्य या प्रधान वाक्य हो और अन्य आश्रित उपवाक्य हों, उन्हें मिश्रित वाक्य कहते हैं।
इनमें एक मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अलावा एक से अधिक समापिका क्रियाएँ होती हैं।
जैसे - ज्यों ही उसने औषधि सेवन किया, वह सो गया।
यदि परिश्रम करोगे तो, उत्तीर्ण हो जाओगे।
मैं जानता हूँ कि तुम्हारे कार्यअच्छे नहीं होते।
प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि" संस्कृत में काल गत वाक्य निरूपण के लिए लकार हैं।
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सामान्यतः वाक्य भेद दो दृष्टियों से किया जाता है -
1. अर्थ की दृष्टि से
2. रचना की दृष्टि से
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हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. 'ज' का अर्थ, द्विज का अर्थ
2. भिज्ञ और अभिज्ञ में अन्तर
3. किन्तु और परन्तु में अन्तर
4. आरंभ और प्रारंभ में अन्तर
5. सन्सार, सन्मेलन जैसे शब्द शुद्ध नहीं हैं क्यों
6. उपमेय, उपमान, साधारण धर्म, वाचक शब्द क्या है.
7. 'र' के विभिन्न रूप- रकार, ऋकार, रेफ
8. सर्वनाम और उसके प्रकार
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अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद–
अर्थ के आधार पर वाक्यों के निम्नलिखित आठ भेद होते हैं।
(अ) विधानवाचक वाक्य– जिन वाक्यों से किसी क्रिया के करने या होने की सामान्य सूचना मिलती है, उन्हें विधानवाचक वाक्य कहते हैं। किसी के अस्तित्व का बोध भी इस प्रकार के वाक्यों से होता है।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
अशोक राजनगर में रहता है।
(ब) निषेधवाचक वाक्य– जिन वाक्यों से किसी कार्य के निषेध (न होने) का बोध होता हो, उन्हें निषेधवाचक वाक्य कहते हैं।
इन्हें नकारात्मक वाक्य भी कहते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
मैं आज नहीं जाऊंगा।
(स) प्रश्नवाचक वाक्य– जिन वाक्यों में प्रश्न किया जाए अर्थात् किसी से कोई बात पूछी जाए, उन्हें प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
क्या तुम आज ही वापस जाओगे?
(द) विस्मयादिवाचक वाक्य– जिन वाक्यों से आश्चर्य (विस्मय), हर्ष, शोक, घृणा आदि के भाव व्यक्त हों, उन्हें विस्मयादिवाचक वाक्य कहते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
अरे! शुभम् तुम!!
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2. हिंदी गद्य साहित्य की गौण (लघु) विधाएँ
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4. काव्य के प्रकार
5. कवि परिचय हिन्दी साहित्य
6. हिन्दी के लेखकोंका परिचय
7. हिंदी भाषा के उपन्यास सम्राट - मुंशी प्रेमचंद
(ई) आज्ञावाचक वाक्य– जिन वाक्यों से आज्ञा या अनुमति देने का बोध हो, उन्हें आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
तुम बाजार चले जाओ।
(फ) इच्छावाचक वाक्य– वक्ता की इच्छा, आशा या आशीर्वाद को व्यक्त करने वाले वाक्य इच्छावाचक वाक्य कहलाते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
मैं चाहता कि मैं भी कल तुम्हारे साथ ही घर चलूँ।
(ग) संदेहवाचक वाक्य– जिन वाक्यों में कार्य के होने में सन्देह अथवा संभावना का बोध हो, उन्हें संदेहवाचक वाक्य कहते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
शायद मैं आज देर से लौटूँ।
(ह) संकेतवाचक वाक्य– जिन वाक्यों से एक क्रिया के दूसरी क्रिया पर निर्भर होने का बोध हो, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते हैं। इन्हें हेतुवाचक वाक्य भी कहते हैं। इनसे कारण, शर्त आदि का बोध होता है।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
अगर तुम मेरे साथ रहोगे तो मुझे सुविधा होगी।
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अर्थ की दृष्टि से वाक्य में परिवर्तन–
आप पढ़ चुके हैं कि अर्थ की दृष्टि से वाक्य आठ प्रकार के होते हैं। इनमें से विधानवाचक वाक्य को मूल आधार माना जाता है। अन्य वाक्य भेदों में विधानवाचक वाक्य का मूलभाव ही विभिन्न रूपों में परिलक्षित होता है। किसी भी विधानवाचक वाक्य को सभी प्रकार के भावार्थों में प्रयुक्त किया जा सकता है।
जैसे– उपरोक्त अनुच्छेद का विधानवाचक वाक्य–
"अशोक राजनगर में रहता है।" को लेते हैं– इस वाक्य को सभी प्रकार के वाक्यों में निम्नानुसार परिवर्तित किया जा सकता है।
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1. विधानवाचक वाक्य - अशोक राजनगर में रहता है।
2. विस्मयादिवाचक वाक्य - अरे! अशोक राजनगर में रहता है।
3. प्रश्नवाचक वाक्य - क्या अशोक राजनगर में रहता है?
4. निषेधवाचक वाक्य - अशोक राजनगर में नहीं रहता है।
5. संदेहवाचक वाक्य - शायद अशोक राजनगर में रहता है।
6. आज्ञावाचक वाक्य - अशोक! तुम राजनगर में रहो।
7. इच्छावाचक वाक्य- काश, अशोक राजनगर में रहता!।
8. संकेतवाचक वाक्य - यदि अशोक राजनगर में रहना चाहता है तो रह सकता है।
वाक्यांश--
शब्दों के ऐसे समूह को जिसका अर्थ तो निकलता है किन्तु पूरा पूरा अर्थ नहीं निकलता, वाक्यांश (Phrase) कहते हैं। उदाहरण -
'दरवाजे पर', 'कोने में', 'वृक्ष के नीचे' आदि का अर्थ तो निकलता है किन्तु पूरा पूरा अर्थ नहीं निकलता इसलिये ये वाक्यांश हैं।
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कर्ता और क्रिया के आधार पर वाक्य के भेद करें
वाक्य के दो भेद होते हैं-
उद्देश्य और
विधेय
वाक्य में जिसके बारे में कुछ बात की जाय उसे उद्देश्य कहते हैं।
और जो बात उद्देश्य के वाले में की जाय उसे विधेय कहते हैं। उदाहरण के लिए, 'मोहन प्रयाग में रहता है'।
इसमें उद्देश्य है - 'मोहन' , और विधेय है - 'प्रयाग में रहता है।'
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वाक्य के भेद
वाक्य -भेद दो प्रकार से किए जा सकते हँ-
१- अर्थ के आधार पर वाक्य भेद
२- रचना के आधार पर वाक्य भेद
अर्थ के आधार पर वाक्य के तीन भेद हैं ।
अर्थ के आधार पर आठ प्रकार के वाक्य होते हँ-
1-विधान वाचक वाक्य,
2- निषेधवाचक वाक्य,
3- प्रश्नवाचक वाक्य,
4- विस्म्यादिवाचक वाक्य,
5- आज्ञावाचक वाक्य,
6- इच्छावाचक वाक्य,
7-संकेतवाचक वाक्य,
8-संदेहवाचक वाक्य।
विधानवाचक सूचक वाक्य - वह वाक्य जिससे किसी प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है,
वह विधानवाचक वाक्य कहलाता है।
उदाहरण -
भारत एक देश है।
राम के पिता का नाम दशरथ है।
दशरथ अयोध्या के राजा हैं।
निषेधवाचक वाक्य : जिन वाक्यों से कार्य न होने का भाव प्रकट होता है, उन्हें निषेधवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे-
मैंने दूध नहीं पिया।
मैंने खाना नहीं खाया।
प्रश्नवाचक वाक्य - वह वाक्य जिसके द्वारा किसी प्रकार प्रश्न किया जाता है, वह प्रश्नवाचक वाक्य कहलाता है।
उदाहरण -
भारत क्या है?
राम के पिता कौन है?
दशरथ कहाँ के राजा है?
आज्ञावाचक वाक्य - वह वाक्य जिसके द्वारा किसी प्रकार की आज्ञा दी जाती है या प्रार्थना की जाती है, वह आज्ञा वाचक वाक्य कहलाता हैं।
उदाहरण -
बैठो।
बैठिये।
कृपया बैठ जाइये।
शांत रहो।
कृपया शांति बनाये रखें।
इस प्रकार के हिन्दी वाक्यों के अन्त में ओ अथवा ए की ध्वनि निकलती है ।
विस्मयादिवाचक वाक्य - वह वाक्य जिससे किसी प्रकार की गहरी अनुभूति का प्रदर्शन किया जाता है, वह विस्मयादिवाचक वाक्य कहलाता हैं।
उदाहरण -
अहा! कितना सुन्दर उपवन है।
ओह! कितनी ठंडी रात है।
बल्ले! हम जीत गये।
इच्छावाचक वाक्य - जिन वाक्यों में किसी इच्छा, आकांक्षा या आशीर्वाद का बोध होता है, उन्हें इच्छावाचक वाक्य कहते हैं।
उदाहरण- भगवान तुम्हेँ दीर्घायु करे।
नववर्ष मंगलमय हो।
संकेतवाचक वाक्य- जिन वाक्यों में किसी संकेत का बोध होता है, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते हैं। उदाहरण-
राम का मकान उधर है।
सोनु उधर रहता है।
संदेहवाचक वाक्य - जिन वाक्यों में सन्देह का बोध होता है, उन्हें सन्देह वाचक वाक्य कहते हैं।
उदाहरण-
क्या वह यहाँ आ गया ?
क्या उसने काम कर लिया ?
रचना के आधार पर वाक्य के भेद---
रचना के आधार पर वाक्य के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं-
(१)सरल वाक्य/साधारण वाक्य :-
जिनमें एक ही विधेय होता है, उन्हें सरल वाक्य या साधारण वाक्य कहते हैं, इन वाक्यों में एक ही क्रिया होती है;
जैसे- मुकेश पढ़ता है।
राकेश ने भोजन किया।
(२) संयुक्त वाक्य - जिन वाक्यों में दो-या दो से अधिक सरल वाक्य समुच्चयबोधक अव्ययों से जुड़े हों, उन्हें संयुक्त वाक्य कहते है;
जैसे- वह सुबह गया और शाम को लौट आया।
प्रिय बोलो पर असत्य नहीं।
(३) मिश्रित/मिश्र वाक्य - जिन वाक्यों में एक मुख्य या प्रधान वाक्य हो और अन्य आश्रित उपवाक्य हों, उन्हें मिश्रित वाक्य कहते हैं।
इनमें एक मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अलावा एक से अधिक समापिका क्रियाएँ होती हैं।
जैसे - ज्यों ही उसने औषधि सेवन किया, वह सो गया।
यदि परिश्रम करोगे तो, उत्तीर्ण हो जाओगे।
मैं जानता हूँ कि तुम्हारे कार्यअच्छे नहीं होते।
प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"
संस्कृत में लकार — एक चिन्तन →
उससे निकली देवनागरी वर्णमाला के वर्णों की विभिन्न ध्वनियाँ ( स्वर ) और वे वर्ण जो इन ध्वनियों से अभिव्यञ्जित हुए — व्यञ्जन
इन सभी स्वर और व्यञ्जन में एक ऐसा वर्ण भी था जो न पूर्ण स्वर था और न पूर्ण व्यञ्जन ।
वह वर्ण था — ल् ।
पहले किसी पोस्ट पर मैंने कहा था कि सृष्टि के पूर्व अखिल ब्रह्माण्ड में एक ही स्वर गुञ्जायमान था — ॐ ! देवनागरी वर्णमाला के जो वर्ण महादेव के डमरू-निनाद से प्रकट हुए, यह उनमें भी नहीं था क्योंकि यह तो अनादिकाल से ब्रह्माण्ड में था ही, सतत सनातन ध्वनि । जब ब्रह्म में सृष्टि की उत्पत्ति की स्फुरणा हुई तो प्रकृति ने ब्रह्म की अध्यक्षता में त्रिविध गुणमयी सृष्टि की रचना की, वह ब्रह्म निमित्त होकर भी अपनी ही स्वभावभूता प्रकृति के संयोग से संसार के रूप में प्रकट भासने लग गया ।
वह ही भासने लग गया, यह कहने का तात्पर्य है कि वह ही इस सम्पूर्ण दृश्यमान सृजन का उपादान कारण था, सृष्टि में समाया हुआ होकर भी सृष्टि का संचालक नियामक ।
क्रिया का आरोपण तो प्रकृति पर गया परन्तु वह भी उस चेतना रूपी ब्रह्म के बिना संचालित नहीं थी ।
– स्वर अर्थात् ध्वनियाँ सीधे-सीधे ब्रह्म की द्योतक हैं और व्यञ्जन प्रकृति के द्योतक ।
बिना स्वर के प्रकृति कैसे अपने को व्यक्त कर पाती ।
बिना स्वर के प्रकृति के कार्य-व्यापार कैसे संचालित हो पाते ।
प्रकृति तो ब्रह्म के बिना सर्वथा अधूरी थी । इसलिए स्वर-स्वरूप ब्रह्म के संयोग से ही प्रकृति-स्वरूप व्यञ्जन अपने को व्यञ्जित कर पाए । तभी तो सारे व्यञ्जन हलन्त ( हल् + अन्त ) हैं । पाणिनि के माहेश्वर सूत्र से व्युत्पन्न प्रत्याहार ‘हल्’ में आने वाले समस्त वर्ण जो बिना स्वर-संयोग के उच्चारण नहीं किये जा सकते थे, हलन्त अर्थात् व्यञ्जन कहलाए ।
— ल् , जो स्वर भी था और व्यञ्जन भी । अत: प्रकृति के कार्य-व्यापार के संचालन को निर्देशित करने के लिए ‘ल्’ ( लकार ) का प्रयोग सर्वथा सम्यक् प्रतीत हुआ ।
संस्कृत में क्रिया के Mood को बताने के लिए 10 लकार नियत किये गये । इसमें छ: लकार ‘ट्’–अन्त्यक हैं, लट्, लृट्, लोट्, लिट्, लुट् और लेट् — ये छ: लकार । ट् वर्ण धनुष् की टंकार का वाचक है । टंकार से संकल्प ध्वनित होता है और बिना संकल्प के क्रिया हो नहीं सकती है । ट्-अन्त्यक लकार क्रियाओं में संकल्प को ध्वनित करते हैं ।
शेष चार लकार ‘ङ्’–अन्त्यक हैं, लङ्, लिङ्, लृङ् और लुङ् — ये चार लकार । ङ् वर्ण इच्छा का बोधक है । किसी इच्छा या इच्छा के भाव ( अपूर्णतार्थ में ) को निर्देशित करने के लिए ‘ङ्’ का उपयोग समीचीन और सम्यक् है ।
इस प्रकार संकल्प और विषयेच्छा से सृष्टि की समस्त क्रियाएँ संचालित हैं ।
"लकार -"
संस्कृत में लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् , लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् – ये दस लकार होते हैं। वास्तव में ये दस प्रत्यय ही हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं।
इन दसों प्रत्ययों के प्रारम्भ में 'ल' है इसलिए इन्हें 'लकार' कहते हैं ।
इन दस लकारों में से आरम्भ के छः लकारों के अन्त में 'ट्' है- लट् लिट् लुट् आदि इसलिए ये टित् लकार कहे जाते हैं ।
और अन्त के चार लकार (ङित् )कहे जाते हैं क्योंकि उनके अन्त में 'ङ्' है।
व्याकरणशास्त्र में जब धातुओं से पिबति, खादति आदि रूप सिद्ध किये जाते हैं तब इन टित्" और ङित् "शब्दों का बहुत बार प्रयोग किया जाता है।
इन लकारों का प्रयोग विभिन्न कालों की क्रिया बताने के लिए किया जाता है।
जैसे – जब वर्तमान काल की क्रिया बतानी हो तो धातु से 'लट् लकार' जोड़ देंगे, अनद्यतन परोक्ष भूतकाल की क्रिया बतानी हो तो लिट् लकार जोड़ेंगे।
(१) लट् लकार (= वर्तमान काल) जैसे :- श्यामः खेलति । ( श्याम खेलता है।)
(२) लिट् लकार (= अनद्यतन परोक्ष भूतकाल) जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो । जैसे :-- रामः रावणं ममार। ( राम ने रावण को मारा ।)
(३) लुट् लकार (= अनद्यतन भविष्यत् काल) जो आज का दिन छोड़ कर आगे होने वाला हो । जैसे :-- सः श्वः विद्यालयं गन्ता। ( वह कल विद्यालय जायेगा ।)
(४) लृट् लकार (= अद्यतन भविष्यत् काल - सामान्य भविष्य काल) जो आने वाले किसी भी समय में होने वाला हो आज से लेकर कभी भी । जैसे :--रामः इदं कार्यं करिष्यति । (राम यह कार्य करेगा।)
(५) लेट् लकार (= यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है, ईश्वर की प्रार्थना के लिए, क्योंकि वह किसी काल में बंधा नहीं है।)
(६) लोट् लकार (= ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना,प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है ।) जैसे :-भवान् गच्छतु । (आप जाइए ) ; सः क्रीडतु । (वह खेले) ; त्वं खाद । (तुम खाओ ) ; अहं किं वदानि । ( मैं क्या बोलूँ ?)
(७) लङ् लकार (= अनद्यतन भूत काल ) आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो । जैसे :- भवान् तस्मिन् दिने भोजनमपचत् । (आपने उस दिन भोजन पकाया था।)
(८) लिङ् लकार = इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं :--
(क) आशीर्लिङ् (= किसी को आशीर्वाद देना हो) जैसे :- भवान् जीव्यात् (आप जीओ ) ; त्वं सुखी भूयात् । (तुम सुखी रहो।)
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"आशीर्लिङ्लकार का प्रयोग-
लकारों के क्रम में लिङ् लकार के विषय में समझाते हुए हमने इसके दो भेदों का उल्लेख किया था- विधिलिङ् और आशीर्लिङ्। विधिलिङ् लकार के प्रयोग के नियम तो आपने जान लिये। अब आशीर्लिङ् के विषय में बताते हैं। आपने यह वेदमन्त्र तो कभी न कभी सुना ही होगा –
"मधुमन्मे निष्क्रमणं मधुमन्मे परायणम्।
वाचा वदामि मधुमद् ‘भूयासं’ मधुसंदृशः॥
( मेरा जाना मधुर हो, मेरा आना मधुर हो। मैं मधुर वाणी बोलूँ, मैं मधु के सदृश हो जाऊँ। अथर्ववेद १।३४।३॥ )
इसमें जो ‘भूयासम्’ शब्द है, वह भू धातु के आशीर्लिङ् के उत्तमपुरुष एकवचन का रूप है। भू धातु के आशीर्लिङ् में रूप देखिए –___________________________
भूयात् भूयास्ताम् भूयासुः
भूयाः भूयास्तम् भूयास्त
भूयासम् भूयास्व भूयास्म
१) इस लकार का प्रयोग केवल आशीर्वाद अर्थ में ही होता है। इसके सन्दर्भ में पाणिनि ने एक सूत्र लिखा है – “आशिषि लिङ्लोटौ।३।३।१७२॥” अर्थात् आशीर्वाद अर्थ में आशीर्लिङ् लकार और लोट् लकार का प्रयोग करते हैं। जैसे – सः चिरञ्जीवी भूयात् = वह चिरञ्जीवी हो।
२) इस लकार के प्रयोग बहुत कम दिखाई पड़ते हैं, और जो दिखते भी हैं वे बहुधा भू धातु के ही होते हैं। अतः आपको भू धातु के ही रूप स्मरण कर लेना है।
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शब्दकोश :
‘गर्भवती’ के पर्यायवाची शब्द –
(१) आपन्नसत्त्वा
(२) गुर्विणी
(३) अन्तर्वत्नी
(४) गर्भिणी
(५) गर्भवती
पतिव्रता स्त्री के पर्यायवाची-
(१) सुचरित्रा
(२) सती
(३) साध्वी
(४) पतिव्रता
स्वयं पति चुनने वाली स्त्री के लिए संस्कृत शब्द –
(१) स्वयंवरा
(२) पतिंवरा
(३) वर्या
वीरप्रसविनी – वीर पुत्र को जन्म देने वाली
बुधप्रसविनी – विद्वान् को जन्म देने वाली
उपर्युक्त सभी शब्द स्त्रीलिंग में होते हैं।
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वाक्य अभ्यास प्रयोग-:
यह गर्भिणी वीर पुत्र को उत्पन्न करने वाली हो !
= एषा आपन्नसत्त्वा वीरप्रसविनी भूयात्।
ये सभी स्त्रियाँ पतिव्रताएँ हों!
= एताः सर्वाः योषिताः सुचरित्राः भूयासुः।
ये दोनों पतिव्रताएँ प्रसन्न रहें!
= एते सुचरित्रे मुदिते भूयास्ताम्।
हे स्वयं पति चुनने वाली पुत्री ! तू पति कीप्रिय होवे।
= हे पतिंवरे पुत्रि ! त्वं भर्तुः प्रिया भूयाः।
तुम दोनों पतिव्रताएँ होवो ।
= युवां सत्यौ भूयास्तम् ।
वशिष्ठ ने दशरथ की रानियों से कहा –
= वशिष्ठः दशरथस्य राज्ञीः उवाच –
तुम सब वीरप्रसविनी होओ।
= यूयं वीरप्रसविन्यः भूयास्त ।
मैं मधुर बोलने वाला होऊँ।
= अहं मधुरवक्ता भूयासम्।
सावित्री ने कहा –
सावित्री उवाच
मैं स्वयं पति चुनने वाली होऊँ।
= अहं वर्या भूयासम्।
माद्री और कुन्ती ने कहा –
माद्री च पृथा च ऊचतुः –
हम दोनों वीरप्रसविनी होवें।
= आवां वीरप्रसविन्यौ भूयास्व ।
हम सब राष्ट्रभक्त हों।
वयं राष्ट्रभक्ताः भूयास्म ।
हम सब चिरञ्जीवी हों।
= वयं चिरञ्जीविनः भूयास्म।
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श्लोक :
एकः स्वादु न भुञ्जीत नैकः सुप्तेषु जागृयात्।
एको न गच्छेत् अध्वानं नैकः चार्थान् प्रचिन्तयेत्॥
(पञ्चतन्त्र)
स्वादिष्ट भोजन अकेले नहीं खाना चाहिए, सोते हुए लोगों में अकेले नहीं जागना चाहिए, यात्रा में अकेले नहीं जाना चाहिए और गूढ़ विषयों पर अकेले विचार नहीं करना चाहिए।
इस श्लोक में जितने भी क्रियापद हैं वे सभी विधिलिङ् लकार प्रथमपुरुष एकवचन के हैं।
आशीर्लिङ्लकार का प्रयोग
(ख) विधिलिङ् (= किसी को विधि बतानी हो ।) जैसे :- भवान् पठेत् । (आपको पढ़ना चाहिए।) ; अहं गच्छेयम् । (मुझे जाना चाहिए।
(९) लुङ् लकार (= अद्यतन भूत काल) आज का भूत काल) जो आज कभी भी बीत चुका हो । जैसे :- अहं भोजनम् अभक्षत् । (मैंने खाना खाया।)
(१०) लृङ् लकार हेतुहेतुमद्भविष्य काल(= ऐसा भविष्य काल जिसका प्रभाव वर्तमान तक हो जब किसी क्रिया की असिद्धि हो गई हो । जैसे :- यदि त्वम् अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् भवितुम् अर्हिष्यत् । (यदि तुम पढ़गे तो विद्वान् बनोगे।)
इस बात को स्मरण रखने के लिए कि धातु से कब किस लकार को जोड़ेंगे, निम्नलिखित श्लोक स्मरण कर लीजिए-
लट् -वर्तमाने लेट् -वेदे भूते- लुङ् लङ् लिटस्तथा ।
विध्याशिषोर्लिङ् लोटौ च लुट् लृट् लृङ् च भविष्यति ॥
(अर्थात् लट् लकार वर्तमान काल में, लेट् लकार केवल वेद में, भूतकाल में लुङ् लङ् और लिट्, विधि और आशीर्वाद में लिङ् और लोट् लकार तथा भविष्यत् काल में लुट् लृट् और लृङ् लकारों का प्रयोग किया जाता है।)
लकारों के नाम याद रखने की विधि-
ल् में प्रत्याहार के क्रम से ( अ इ उ ऋ ए ओ ) जोड़ दें और क्रमानुसार 'ट' जोड़ते जाऐं । फिर बाद में 'ङ्' जोड़ते जाऐं जब तक कि दश लकार पूरे न हो जाएँ । जैसे लट् लिट् लुट् लृट् लेट् लोट् लङ् लिङ् लुङ् लृङ् ॥ इनमें लेट् लकार केवल वेद में प्रयुक्त होता है । लोक के लिए नौ लकार शेष रहे|
"समास:"
१) द्वन्द्व
२) तत्पुरुष
३) कर्मधारय
४) बहुव्रीहि
५) अव्ययीभाव
६) द्विगु समास क्रिया पदों में नहीं होता। समास के पहले पद को 'पूर्व पद' कहते हैं, बाकी सभी को 'उत्तर पद' कहते हैं।
समास मुख्य क्रियापद में नहीं होता गौण क्रियापद में होता है। समास के पहले पद को 'पूर्व पद' कहते हैं, बाकी सभी को 'उत्तर पद' कहते हैं।
समास के तोड़ने को विग्रह कहते हैं, जैसे -- "रामश्यामौ" यह समास है और रामः च श्यामः च (राम और श्याम) इसका विग्रह है।
पाठ - द्वितीय-
प्रस्तुति -यादव योगेश कुमार रोहि - 8077160219
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