जयन्ती" शब्द का मूल अर्थ "विजय पाने वाली स्त्री अथवा नायिका से" है; ऋग्वेद की एक ऋचा में किये इस शब्द के सबसे प्राचीन उल्लेख में यही अर्थ ध्वनित होता है। यथा,
असपत्ना सपत्नघ्नी जयन्त्यभिभूवरी ( जयन्ती+अभिभूवरी)।
आवृक्षमन्यासां वर्चो राधो अस्थेयसामिव ॥५॥(अ॒स॒प॒त्ना । स॒प॒त्न॒ऽघ्नी । जय॑न्ती । अ॒भि॒ऽभूव॑री । आ । अ॒वृ॒क्ष॒म् । अ॒न्यासा॑म् । वर्चः॑ । राधः॑ । अस्थे॑यसाम्ऽइव ॥)
— ऋग्वेदः १०.१५९.५
[भावार्थ :—
इन्द्र पत्नी शची पौलुमी इस ऋचा में कहती हैं कि मैं सपत्नियों का विनाश कर उन पर विजय प्राप्त करने वाली हूँ। अस्थिर व्यक्तियों का तेज और ऐश्वर्य जिस प्रकार नष्ट होता है वैसे ही मैं सपत्नियों के तेज और ऐश्वर्य नष्ट करती हूँ।
टिप्पणी : सामान्य रूप से सपत्नी का अर्थ सौतन है;
वाचस्पत्यम् के अनुसार जयन्ती शब्द के यह अर्थ हैं
जयन्ती = स्त्री जि धातु--झ(अन्त) तथा ङीष्(ई) प्रत्यय।
१- दुर्गा शक्ति भेदे (माँ दुर्गा का एक नाम)
२ जयन्तभगिन्यां शक्रपुत्र्यां (इन्द्र के पुत्र जयन्त की बहिन का नाम)
३ -पताकायां च (पताका (युद्ध में विजय की सूचिका) पताका
४ -स्वनामख्याते वृक्षभेदे (एक प्रकार का वृक्ष; जैत अथवा जैता)
५-श्रावणकृष्णाष्टमीरोहिणीयोगे
कृष्णाष्टमीशब्दे (रोहिणी नक्षत्र योग वाली श्रावण मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी; श्री कृष्ण जन्माष्टमी)
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रोहिणी योग को जयन्ती नाम दिया गया है। यथा सङ्कीर्ण ग्रन्थों में एक श्रीमद आनन्दतीर्थ भगवत्पादाचार्य विरचित जयन्ती कल्प में यह विवरण इस प्रकार है
रोहिण्यामर्धरात्रे तु यदा कालाष्टमी भवेत् ।
जयन्ती नाम सा प्रोक्ता सर्वापापप्रणाशनी ॥ १ ॥यस्यां जातो हरिः साक्षान्निशीते भगवानजः ।
तस्मात्तद्दिनमत्यन्तं पुण्यं पापहरं स्मृतम् ॥ २ ॥तस्मात् सर्वैरुपोष्या सा जयन्ती नाम वै सदा ।
द्विजातिभिर्विशेषेण तद्भक्तैश्च विशेषतः ॥ ३ ॥
[भावार्थ :—
जब काल मास का आठवें दिन आधी रात को रोहिणी नक्षत्र योग होता है, तब वह योग जयन्ती कहा जाता है; जोकि सभी पापों का नाश करने वाला है ॥ उसी रात भगवान हरि का जन्म हुआ। इसलिए वह दिन अत्यन्त पवित्र और सभी पापों का नाश करने वाला माना जाता है ॥ अत: सभी को, विशेषकर उन ब्राह्मणों को जो भगवान के परम भक्त हैं ॥
अग्नि पुराण में भी इसी प्रकार का विवरण मिलता है।
वक्ष्ये व्रतानि चाष्टम्यां रोहिण्यां प्रथमं व्रतं ।
मासि भाद्रपदेऽष्टभ्यां रोहिण्यामर्धरात्रके ॥
कृष्णो जातो यतस्तस्यां जयन्ती स्यात्ततोऽष्टमी ।
सप्तजन्मकृतात्पापात्मुच्यते चोपवासतः ॥
कृष्णपक्षे भाद्रपदे अष्टम्यां रोहिणीयुते ।
उपाषितोर्चयेत्कृष्णं(१) भुक्तिमुक्तिप्रदायकं ॥ — अग्नि पुराण १८३.१-३
रोहिणी मास की अष्टमी तिथि के व्रतों तथा प्रथम व्रत का वर्णन करता हूँ; भाद्रपद माह में अष्टमी तिथि को आधी रात के समय रोहिणी होती है; महीने का आठवाँ दिन जयन्ती है क्योंकि कृष्ण का जन्म हुआ था; इस दिन का उपवास सात जन्मों के पापों से वह मुक्ति दिलाता है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष के आठवें दिन रोहिणी नक्षत्र में मनुष्यों को कृष्ण की पूजा-आराधना करनी चाहिए जो मुक्ति प्रदान करते हैं।
ज्योतिषी कहते हैं कि जयन्ती योग दुर्लभ है; 2023 को श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर जयन्ती योग था। गौतमीमहातन्त्रं के अनुसार सोमवार अथवा बुधवार को रोहिणी नक्षत्र वाली अष्टमी को जयन्ती योग होता है।
सोमाह्नी बुधवारे वा अष्टमी रोहिणीयुता।
जयन्ती सा समाख्याता लभ्यते पुण्यसञ्चयैः ॥ — गौतमीयमहातन्त्रम् ३१.८४।
सोमवार अथवा बुधवार को रोहिणीयुता अष्टमी जयन्ती कही गई यह योग अतिशय पुण्य से ही प्राप्त होती हे। ]
अतः यह प्रतीत होता है कि जयन्ती (पापों पर विजय दिलाने वाले) योग के समय श्री कृष्ण जन्माष्टमी के होने से इस दिन को श्री कृष्ण जयन्ती कहा जाने लगा। जिससे जयन्ती का अर्थ विस्तार जन्मोत्सव के अर्थ में भी हो गया। समय के साथ अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों के जन्मदिवस भी जयन्ती कहलाने लगे!
विशेष टिप्पणी :—
जिज्ञासु पाठकों के संशय निवारण हेतु—
जयन्ती को जीवित नहीं मात्र मृत व्यक्ति के लिए ही प्रयोग करने का मत तर्कसङ्गत नहीं है; क्योंकि
1 जयन्ती शब्द का जन्म-मृत्यु से सम्बन्ध नहीं है।
2 भाषाओं में अर्थ-सङ्कोच तथा अर्थ-विस्तार सामान्य प्रक्रिया है; अतः अर्थ-विस्तार कर हनुमान जयन्ती आदि लिखना अनुचित नहीं कहा जा सकता है। विशेषकर जब अधिकांश व्यक्ति इस शब्द को जन्मोत्सव के अर्थ में ही मुख्य अर्थ मानने लगे हैं।
3 काल के किसी महत्वपूर्ण पड़ाव पर पहुँचना भी विजय है। जैसे, किसी फिल्म का पच्चीस सप्ताह लगातार प्रदर्शन होने को रजत-जयन्ती कहना उचित है।
तो किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति की स्मृति का हमारे मन-मस्तिष्क में, हमारी भावनाओं पर विजय पाकर कालजयी हो जाना; और उसके लिए एक विशेष दिन का हमारे द्वारा मनाया जयन्ती कहलाने की योग्यता रखता है।
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