पुराणों में यादवों का गोप और आभीर पर्याय वाची रूपों में वर्णन मिलता है। पद्म-पुराण के सृष्टि-खण्ड , अग्नि पुराण "लक्ष्मीनारायण संहिता" नान्दीपुराण स्कन्दपुराण आदि ग्रन्थों में प्राचीन वर्णन है।
गोपों अथवा अहीरों के साथ परवर्ती भारतीय ग्रन्थों में दोगले विधान किए गये ।
कहीं उन्हें क्षत्रिय तो कहीं वैश्य तो कहीं शूद्र कहा गया है । यह सब परिवर्तन क्रमोत्तर रूप से होता हुआ आज तक विद्यमान है। यद्यपि ये सब बातें अस्तित्व हीन ही हैं।
और अस्तित्व हीन बातों को उद्धृत करना शास्त्रीय विद्वित्ता नहीं है।
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नन्द जी को तो कथावाचक और भागवत आदि पुराण "गोप" कहते हैं। परन्तु
कृष्ण और वसुदेव को भी प्राचीन पुराणों में "गोप" ही कहा गया है। , देवीभागवत पुराण तथा हरिवशं पुराण गर्गसंहिता आदि में वसुदेव और कृष्ण को गोप कहा गया है।
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(हरिवंश पुराण "संस्कृति-संस्थान " ख्वाजा कुतुब वेद नगर बरेली संस्करण अनुवादक पं० श्री राम शर्मा आचार्य)
अर्थात् :- जो प्रभु विष्णु पृथ्वी के समस्त जीवों की रक्षा करने में समर्थ है ।
वही गोप (आभीर) के घर (अयन)में गोप बनकर आता है ।९।
हरिवंश पुराण १९ वाँ अध्याय ।
गीताप्रेस गोरखपुर संस्करण पृष्ठ संख्या १८२
हरिवंशपुराणम्/पर्व १ (हरिवंशपर्व)/अध्यायः ४०
< हरिवंशपुराणम् | पर्व १ (हरिवंशपर्व)
हरिवंशपुराणम्
अध्यायः ४०
जनमेजयेन भगवतः वराह, नृसिंह, परशुराम, श्रीकृष्णादीनां अवताराणां रहस्यस्य पृच्छा
चत्वारिंशोऽध्यायः
_________________________________________स्कन्दपुराणम् | खण्डः ७ (प्रभासखण्डःअध्याय ९-) प्रभासक्षेत्र माहात्म्यम् ★
26. (ऐसा कैसे है ?) भगवान विष्णु, गोपों के घर जन्म लेने वाले होकर जो पूरे विश्व में सार्वभौमिक सुरक्षा प्रदान करते हैं,वह कैसे भगवान् विष्णु हैं जिन्होंने प्रभासक्षेत्र का आसरा ले लिया ?
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देखें--- महाभारत का खिल-भाग हरिवंश पुराण
•– ब्रह्मा जी 'ने कहा – सर्वव्यापी नारायण आप मुझसे इस उपाय को सुनिए जिसके द्वारा सारा प्रयोजन सिद्ध हो जाएगा ।
भूतल पर जो तुम्हारे पिता , जो माता होंगी ।१८।
•–और जहाँ जन्म लेकर आप अपने कुल की वृद्धि करते हुए यादवों के सम्पूर्ण विशाल वंश को धारण करेंगे ।
•–तथा उन समस्त असुरों का संहार करके अपने वंश का महान विस्तार करते हुए जिस प्रकार मनुष्यों के लिए धर्म की मर्यादा स्थापित करेंगे वह सब बताता हूँ सुनिए !
–२०
•– विष्णो ! पहले की बात है महर्षि कश्यप अपने महान यज्ञ के अवसर पर महात्मा वरुण के यहांँ से कुछ दुधारू गायें माँग लाए थे ।
जो अपने दूध आदि के द्वारा यज्ञ में बहुत ही उपयोगिनी थीं ।
•– यज्ञ कार्य पूर्ण हो जाने पर भी कश्यप की उन दौनों पत्नियों अदिति और सुरभि 'ने वरुण को उनका गायें लौटा देने की इच्छा नहीं की अर्थात् उनकी नीयत खराब हो गयी।।२२।
•–तब वरुण मेरे पास आये और मस्तक झुकाकर मुझे प्रणाम करके बोले – भगवन् ! पिता के द्वारा मेरी गायें हरण कर ली गयी हैं ।३२।
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कृतकार्यो हि गास्तास्तु नानुजानाति मे गुरु: ।अन्ववर्तत भार्ये द्वे अदितं सुरभिं तथा ।२४।
कृतकार्यो हि गास्तास्तु नानुजानाति मे गुरु: ।अन्ववर्तत भार्ये द्वे अदितं सुरभिं तथा ।२४।
•–यद्यपि उन गोओं से जो कार्य लेना था वह पूरा हो गया है ; तो भी पिता जी मुझे उन गायों को वापस ले जाने की आज्ञा नहीं देते ; इस विषय में उन्होंने अपनी दौनों पत्नियों अदिति और सुरभि के मत का अनुसरण किया है ।२४।
•– मेरी वे गायें अक्षया , दिव्य और कामधेनु हैं। तथा अपने ही तेज से रक्षिता वे स्वयं समुद्रों में भी विचरण और चरण करती हैं ।२५।
•–हे देव ! जो अमृत के समान उत्तम दूध को अविछिन्न रूप से देती रहती हैं मेरी उन गायों को पिता कश्यप के सिवा दूसरा अन्य कौन बलपूर्वक रोक सकता है ।२६।
"प्रभुर्वा व्युत्थितो ब्रह्मन् गुरुर्वा यदि वेतर: ।त्वया नियम्या: सर्वै वै त्वं हि 'न: परमा गति ।२७।
•– ब्रह्मन्! कोई कितना ही शक्ति शाली हो , गुरु जन हो अथवा कोई और हो यदि वह मर्यादा का त्याग करता है तो आप ही ऐसे सब लोगों पर नियन्त्रण कर सकते हैं
क्योंकि आप हम सब लोगों के परम आश्रय हैं ।२७।
•–लोक गुरु ! यदि संसार में अपने कर्तव्य से अनिभिज्ञ रहने वाले शक्ति शाली पुरुषों के लिए दण्ड की व्यवस्था 'न हो तो जगत की सारी मर्यादाऐं नष्ट हो जायँगी ।२८।
•–इस कार्य का जैसा परिणाम होनेवाला वैसा ही कर्तव्य का पालन करने या कराने में आप ही हमारे प्रभु हैं। मुझे मेरी गायें दिलवा दीजिए तभी मैं समुद्र को जाऊँगा ।।२९।
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