गुरुवार, 27 अक्तूबर 2022

अहीरों को बाल्मीकि-रामायण और रामचरितमानस तथा पद्म पुराण सृष्टिखण्ड और पातालखण्ड में परस्पर विरोधी रूपों में वर्णन-




समस्त अहीर जाति को रामचरितमानस किताब का बहिष्कार कर श्रीमद्भगवद्गीता को पढ़ना चाहिए।
 
क्यों की जब  तुलसीदास ने अहीरों को पाप का रूप बता़ ही दिया  है तो क्या वे रामचरित पढ़कर पुण्यरूप हो जाऐंगे। 

और भागवत धर्म के प्रतिनिधि ग्रन्थ  हरिवंश पुराण पद्म पुराण" गर्ग संहिता और श्रीमद्भगवद्गीता में अहीरों को "सुव्रतज्ञ तथा सदाचरणवादी बताया गया।


धर्मवन्तं सदाचारं भवन्तं धर्मवत्सलम्।
मया ज्ञात्वा ततः कन्या दत्ताचैषा विरञ्चये।१५।

अनया आभीरकन्याया तारितोगच्छ! दिव्यान्लोकान्महोदयान्।
युष्माकं च कुले चापि देवकार्यार्थसिद्धये।१६।

अवतारं करिष्येहं सा क्रीडा तु भविष्यति।
यदा नन्दप्रभृतयो ह्यवतारं धरातले।१७।

पद्म पुराण सृष्टि खण्ड अध्याय ।।१७।।

उपर्युक्त श्लोकों में अहीरों को विष्णु भगवान धार्मिक सदाचारी और धर्मवत्सल बताया है।
जिसकी जाति में ही भविष्य में द्वापर युग में विष्णु देव कार्य की सिद्धि के लिए अवतरण करते हैं।
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अहीरों के वर्चस्व से अभिभूत होकर ही कालान्तर में उनके खिलाफत में हिन्दू खलीफाओं ( पुरोहितों ने पूर्ण अहितकारी काल्पनिक बातें जोड़ कर बाद के समय में अहीरों को कहीं  " पापयोनि , म्लेच्छ और शूद्र तथा महाशूद्र के रूप में शास्त्रों में जोड़ डाला - इसी लिए अहीरों के विषय में शास्त्रों में पहले तो उन्हें धर्मवत्सल" पुण्यजन और सुव्रतज्ञ बताया जाता है।

और बाद के संस्करणों में उन्हें ही  "पापयोनि "म्लेच्छ आदि बताकर विरोधीयो द्वारा अपने अहम् की तुुष्टि कर ली जाती है । कितना तमाशाई है ये मंजर

  सर्वेऽधिकारिणश्चात्र चण्डालांता मुनीश्वर
स्त्रियः शूद्रादयश्चापि जडमूकादि पंगवः ।१९।
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अन्ये हूणाः किराताश्च पुलिंदाः पुष्कसास्तथा
आभीरा यवनाः कंकाः खसाद्याः पापयोनयः ।२०।

दंभाहंकारपरमाः पापाः पैशुन्यतत्पराः
गोब्राह्मणादि हंतारो महोपपातकान्विताः ।२१।
इति श्रीपद्मपुराणे पातालखंडे वृंदावनमाहात्म्ये
एकाशीतितमोऽध्यायः (८१)
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पद्म पुराण सृष्टि खण्ड पुराणों का सबसे पुराना रूप है । परन्तु इसी पद्म पुराण  के  पाचवें पातालखण्ड तक पहुँचते पहुँचते पुरोहितों नें उन्हें अहीरों को "पापयोनि तक लिख कर पुराणों का पुरानापन ही खत्म कर दिया।

तुलसीदास ने भी इस परम्परा का  निर्वहन कर अहीरों को कही "निर्मल मन "  बताया तो बाद में फिर कहीँ "पापयोनि कहकर  परस्पर विरोधी बाते कह डाली-

जड़ समुद्र भी राम से बाते करता है । जिसने राम से अहीरों को मारने सा निवेदन किया।
और राम ने भी समु्द्र के कहने पर सम्पूर्ण अहीरों को अपने अमोघ वाण से त्रेता युग-- में ही  मार डाला  ।
परन्तु अहीर आज भी कलियुग में  जिन्दा होकर ब्राह्मण और राजपूतों की नाक में दम किये हुए हैं।

उनके मारने में रामबाण भी चूक गया और शायद ये राम की ही पराजय सिद्ध हुई।

निश्चित रूप से यादवों (अहीरों) के विरुद्ध इस प्रकार से लिखने में  ब्राह्मणों की धूर्त बुद्धि ही दिखाई देती है।
अन्यथा समाज के एक सीधे सच्चे गोपालक वर्ग को नाहक बुरा बुरा बोलना राष्ट्र निर्माण सा उपक्रम नहीं ।

कितना अवैज्ञानिक व मिथ्या वर्णन है
कि जड़  निर्जीव जलता समूह  समुद्र भी अहीरों का शत्रु बना हुआ है।

 जिनमें चेतना नहीं हैं  फिर भी  ब्राह्मणों ने  राम को भी अहीरों का हत्यारा' बना कर  राम के नाम की तौहीन ही की है।

राम ने अहीरों को त्रेता युग अपने राम वाण से द्रुमकुल्य" देश में मार दिया  फिर भी अहीर लोग कलि युग में जिन्दा है।

इस द्रुमकुल्य देश का आज तक नक्शा नहीं मिला
और फिर राम के द्वारा मारे जाने पर भी अहीरों की आज तादाद है।

अहीरों को कोई नहीं जीत सकता है यह सच है अहीर अजेय हैं ।
अत:आज  अहीरों से भिड़ने वाले नेस्तनाबूद हो जाओगे 

अहीरों को वैसे भी हिब्रू बाइबिल के जेनेसिस खण्ड और भारतीय पुराणों में ईश्वरीय शक्तियों से युक्त माना है ।

ब्राह्मण ने स्वयं को धर्म का निर्णायक मान कर धर्म की मनमानी अपने स्वार्थ हित के अनुरूप व्याख्या की और हिन्दू अहीर लोग  धर्म के अनुयायी बने  हाथ जोड़ कर इन काल्पनिक तथ्यों को सही मान रहे हैं।

 भला हो हमारी बुद्धि का जिसको मनन रहित श्रृद्धा (आस्था) ने दबा दिया ।

और मन गुलाम हो गया पूर्ण रूपेण अन्धभक्ति का ! आश्चर्य  ! घोर आश्चर्य !
वाल्मीकि रामायण के युद्ध-काण्ड २२वाँ सर्ग में 
अहीरों को राम द्वार मारा जाने काम वर्णन नीचे देंखे-)
"उत्तरेणावकाशोऽस्ति कश्चित् पुण्यतरो मम।
द्रुमकुल्य इतिख्यातो लोके ख्यातोयथा भवान् ।३२।

उग्रदर्शनं कर्माणो बहवस्तत्र दस्यव: ।
आभीर प्रमुखा: पापा: पिवन्ति सलिलम् मम ।।३३।
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तैर्न तत्स्पर्शनं पापं सहेयं पाप कर्मभि: ।
अमोघ क्रियतां रामो$यं  तत्र शरोत्तम: ।।३४।।

तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सागरस्य महात्मन: ।
मुमोच तं शरं दीप्तं परं सागर दर्शनात् ।।३५।।
  (वाल्मीकि-रामायण युद्ध-काण्ड २२वाँ सर्ग)

अर्थात् समुद्र राम से बोला हे प्रभो ! जैसे जगत् में आप सर्वत्र विख्यात एवम् पुण्यात्मा हैं।
 उसी प्रकार मेरे उत्तर की ओर "द्रुमकुल्य नामका बड़ा ही प्रसिद्ध देश है।३२।

वहाँ आभीर आदि जातियों के बहुत से मनुष्य निवास करते हैं।  जिनके कर्म तथा रूप बड़े भयानक हैं ; सबके सब पापी और लुटेरे हैं ।
वे लोग मेरा जल पीते हैं ।३३।

उन पापाचारियों का मेरे जल से स्पर्श होता रहता है 
इस पाप को मैं नहीं सह सकता हूँ ।

हे राम आप अपने इस उत्तम वाण को वहीं सफल कीजिए ।३४।

महामना समुद्र का यह वचन सुनकर समुद्र के दिखाए मार्ग के अनुसार उसी अहीरों के देश द्रुमकुल्य की दिशा में राम ने वह वाण छोड़ दिया ।३५।

निश्चित रूप से ब्राह्मण समाज ने राम को आधार बनाकर ऐसी मनगढ़न्त 
कथाओं का सृजन किया है । 
ताकि इन पर सत्य का आवरण  चढ़ा कर अपनी काल्पनिक बातें को सत्य व प्रभावोत्पादक बनाया जा सके ।

अब आप ही बताओ मूर्खों की जब राम अहीरों को त्रेता युग में अपने राम वाण से द्रुमकुल्य देश में मार देते हैं ।
केवल निर्जीव जड़ समु्द्र के ही कहने पर  फिर भी अहीर पर रामवाण भी निष्फल हो जाता है ।

फिर भी अहीर राम मन्दिर को बनाने के लिए अपना बलिदान कर दें ।

और मन्दिरों के रूप में धर्म की दुकान चलाऐं पाखण्डी कामी धूर्त ब्राह्मण ।

दान दक्षिणा हम चड़ाऐं और और ब्राह्मण उससे एश-आराम करें ।

इससे बड़ी मूर्खता क्या हो सकती है ?

पुरुष सूक्त, मनुस्मृति ,रामायण ,रामचरितमानस इन सभी ने  धर्म की संस्कृति को नष्ट कर डाला है ।
भारत की अखण्डता के लिए ये मिला बची मिथक खतरा हैं ।
इसका ध्यान रखो

कर्म प्रधान होता है । कहने वाले हरामखोर ढकोसली उपाख्यानों और दान  और भीख पर जीवन जीने वाले ब्राह्मण श्रेष्ठ कैसे ?

 शोषण और व्यभिचार करने वाला क्षत्रिय ब्राह्मणों के बाद श्रेष्ठ है ।

ये क्षत्रिय किसी भी गरीब की सुन्दर लड़कियों को बल पूर्वक अपनी रखैल बना लेते थे ।

और हेराफेरी करने वाला वैश्य भी क्षत्रियों के वाद श्रेष्ठ है ।

परन्तु मेहनत और इन तीनों की सेवा करने वाला  शूद्र और अछूत है । जिसे ब्राह्मणों ने शिक्षा और संस्कार के लिए निषिद्ध घोषित कर दिया हो ।
ये कौन सा धर्म है ।
 ये ही हिन्दू धर्म है ।

राम का युद्ध यद्यपि अहीरों से कभी नहीं हुआ । परन्तु पुष्यमित्र सुंग कालीन पाखण्डी ब्राह्मणों नें जड़ चेतना हीन समु्द्र के राम से यह करने पर कि पापी अहीर मेरा जल पीकर मुझे अपवित्र करते हैं ।

 ---हे राम आप उनका वध कर दो ! यह कहा परन्तु
राम का अमोघ वाण भी अहीरों पर निष्फल हो गया !

ब्राह्मण समाज ने राम को आधार बनाकर ऐसी मनगढ़न्त कथाओं का सृजन इस कारण से किया  है । 

कि अहीरों को लोक मानस में हेय व दुष्ट घोषित किया जा सके !
परन्तु त्रेता युग में जिस राम ने रावण जैसे- वीर पुरुष को मार दिया हो ! और वही राम अहीरों का कुछ न बिगाड़ पाए हों !

तो निश्चित रूप अहीरों की वीरता रावण से भी अधिक रही होगी । और समु्द्र भी जिन्हें न डुबा पाया हो !
वो अहीर साधारण नहीं हो सकते ।
पुराणों में तथा यहूदीयों की हिब्रू बाइबिल में अहीरों को ईश्वरीय सत्ता स्वीकार किया गया है ।

 
अहीरों के प्रति सोच आज भी रूढ़िवादी ब्राह्मण समाज की बहुत ही तुच्छ है ।
कदाचित् इसी कारण तुलसीदास के अनुयायी गोलोकवासी श्रद्धेय मुलायम सिंह यादव को उनके अन्तिम प्रयाण पर गालीयाँ देते रहे रामद्रोही कहकर- 

इसका पैमाना उनके पास नहीं कि पापी कौन है । दान दक्षिणा के नाम पर भीख माँगकर खाने कमाने वाले पापी हैं ? अथावा खेतों में हल चलाकर अन्नोत्पादन करके सबको  खिलाने वाले पापी है ?
भीख माँकर

जिस समाज में सम्मान और स्वाभिमान सलामत न हो उस समाज का तत्काल बहिष्कार ही श्रेय कर है 

बोलो राधे कृष्ण !
प्रस्तुतिकरण - यादव योगेश कुमार रोहि-

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