सुदासे दस्रा वसु बिभ्रता रथे पृक्षो वहतमश्विना ।
रयिं समुद्रातुत वा दिवस्पर्यस्मे धत्तं पुरुस्पृहम् ।।6।
यत्रासत्या परावति यदु आस्थो अधि तुर्वशे ।
अतो रथेन सुवृता न आगतं साकं सूर्यस्य रश्मिभि: ।।7।
हे ! उग्र -कर्मा अश्वनि-द्वय तुमने रथ में धन धारण कर सुदास के लिए वहाँ वहन किया।
उसी प्रकार यदु और तुर्वशु से उन्हें अधीन कर हम्हें उनका धन दो ।7।
परन्तु यदु और तुर्वशु का अर्थ रूढ़िवादी पुरोहितों ने अन्तरिक्ष या अाकाश किया है ।
वस्तुत यहाँं पुरोहित प्रार्थना करता है कि यदु और तुर्वशु जो दूर सुरक्षित होते हैं उन्हें हमारे अधीन कर उनसे बहुत सा इच्छित धन हम्हें प्राप्त कराओ।
मण्डल एक अध्याय नौ सूक्त सैंतालीस 1/47/7-
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