बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

अग्रं पृष्ठञ्च सर्वतोमुखं सच्चिदानन्दं सर्वतोखं।


अग्रं पृष्ठञ्च सर्वतोमुखं सच्चिदानन्दं सर्वतोखं।
नमोऽस्तु य: विनष्यन्ति दारि द्रव दु:खं।।१

अनुवाद:- आगे पीछे और सब ओर विराजमान सत चिद् और आनन्द स्वरूप वाले  सर्वत्र गमन शील  प्रभु को नमस्कार है। जो  भय , ताप और दु:ख को नष्ट करता है।१।

जले तरङ्गैव नवनीता प्रसूयते दुग्धैव च ।
इदं जगद् हिमवद् वाष्परूपाय प्रभवे नुम:।२।

अनुवाद- जल में तरंगों के समान दुग्ध में नवनीत( मक्खन) के समान और वाष्प से हिम के समान जिस परमेश्वर से यह संसार उत्पन्न हुआ है हम उसे नमस्कार करते है।२।

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