अग्रं पृष्ठञ्च सर्वतोमुखं सच्चिदानन्दं सर्वतोखं।
नमोऽस्तु य: विनष्यन्ति दारि द्रव दु:खं।।१।
अनुवाद:- आगे पीछे और सब ओर विराजमान सत चिद् और आनन्द स्वरूप वाले सर्वत्र गमन शील प्रभु को नमस्कार है। जो भय , ताप और दु:ख को नष्ट करता है।१।
जले तरङ्गैव नवनीता प्रसूयते दुग्धैव च ।
इदं जगद् हिमवद् वाष्परूपाय प्रभवे नुम:।२।
अनुवाद- जल में तरंगों के समान दुग्ध में नवनीत( मक्खन) के समान और वाष्प से हिम के समान जिस परमेश्वर से यह संसार उत्पन्न हुआ है हम उसे नमस्कार करते है।२।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें