शनिवार, 20 जनवरी 2024

भागवत के प्रक्षिप्त श्लोक-

कश्यः कुशो गृत्समद् इति गृत्समद्भूत्।
शुनक: शौनको यस्य बवृचप्रवरो मुनि:॥ 3॥
अनुवाद:-
शुकदेव  ने कहा: पुरुरवा से आयु उत्पन्न हुआ, जिससे अत्यंत शक्तिशाली पुत्र नहुष, क्षत्रियवृद्ध, रजि, राभ और अनेना उत्पन्न हुए थे। हे परिक्षित, अब क्षत्रिय वंश के बारे में सुनो।
क्षत्रियवृद्ध के पुत्र सुहोत्र थे, काश्य, कुश और गृत्समद नाम के तीन पुत्र थे। गृत्समद से शुनक पैदा हुए, और उनके शुनक, महान संत, ऋग्वेद के सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता, पैदा हुए।


भागवतपुराण का उपर्युक्त श्लोक महाभारत के आदि पर्व के निम्न श्लोक ते विपरीत होने से प्रक्षिप्त है।

उग्रश्रवा जी कहते हैं- ब्रह्मन! भृगुपुत्र च्यवन ने अपनी पत्नी सुकन्या के गर्भ से एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रमति था। महात्मा प्रमति बड़े तेजस्वी थे। फिर प्रमति ने घृताची अप्सरा से रुरु नामक पुत्र उत्पन्न किया तथा रुरु के द्वारा प्रमद्वरा के गर्भ से शुनक का जन्म हुआ। महाभाग शौनक जी! आप शुनक के ही पुत्र होने के कारण ‘शौनक’ कहलाते हैं। 

शुनक महान सत्त्वगुण से सम्पन्न तथा सम्पूर्ण भृगुवंश का आनन्द बढ़ाने वाले थे। 

(महाभारत-आदिपर्व चतुर्थ- अध्याय श्लोक - १-१२

निगदामि यथायुक्तं पुराणाश्रयसंयुतम्।भृगुर्महर्षिर्भगवान्ब्रह्मणा वै स्वयंभुवा।7।

वरुणस्य क्रतौ जातः पावकादिति नः श्रुतम्। भृगोः सुदयितः पुत्रश्च्यवनो नाम भार्गवः।8।

च्यवनस्य च दायादः प्रमतिर्नाम धार्मिकः।प्रमतेरप्यभूत्पुत्रो घृताच्यां रुरुरित्युत।9।

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रुरोरपि सुतो जज्ञे शुनको वेदपारगः।प्रमद्वरायां धर्मात्मा तव पूर्वपितामहः।10।

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तपस्वी च यशस्वी च श्रुतवान्ब्रह्मवित्तमः।धार्मिकः सत्यवादी च नियतो नियताशनः।11।

शौनक उवाच। 1-5-12

सूतपुत्र यथा तस्य भार्गवस्य महात्मनः।च्यवनत्वं परिख्यातं तन्ममाचक्ष्व पृच्छतः।12।

सौतिरुवाच। 1-5-13x

भृगोः सुदयिता भार्या पुलोमेत्यभिविश्रुता।तस्यां समभवद्गर्भो भृगुवीर्यसमुद्भवः।13।

तस्मिन्गर्भेऽथ संभूते पुलोमायां भृगूद्वह।समये समशीलिन्यां धर्मपत्न्यां यशस्विनः।14।

अभिषेकाय निष्क्रान्ते भृगौ धर्मभृतां वरे।आश्रमं तस्य रक्षोऽथ पुलोमाऽभ्याजगाम ह।15।

तं प्रविश्याश्रमं दृष्ट्वा भृगोर्भार्यामनिन्दिताम्।हृच्छयेन समाविष्टो विचेताः समपद्यत।16।

अभ्यागतं तु तद्रक्षः पुलोमा चारुदर्शना।न्यमन्त्रयत वन्येन फलमूलादिना तदा।17।

तां तु रक्षस्तदा ब्रह्मन्हृच्छयेनाभिपीडितम्।दृष्ट्वा हृष्टमभूद्राजञ्जिहीर्षुस्तामनिन्दिताम्।18।

जातमित्यब्रवीत्कार्यं जिहीर्षुर्मुदितः शुभाम्।सा हि पूर्वं वृता तेन पुलोम्ना तु शुचिस्मिता ।19।

महाभारत आदिपर्व अध्याय -(5)

उपर्युक्त श्लोक पुरुरवा के वंशजों को भृगुवंश के ब्राह्मण बनाने के लिए जोड़ा गया। 

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