Abhir 

Abhir (आभीर)[1] Abhira (आभीर)[2] were Jats of republic named Abhira (आभीर) during Mahabharata times in the Punjab on the banks of River Saraswati now in Haryana. They had fought against Pandavas and in support of Kauravas.[3]

विषय सूची

Variants

Mention by Panini

Abhira (आभीर) is a term mentioned by Panini in Ashtadhyayi[4]

History

According to H.A. Rose[5]The first historical mention of the Abhiras occurs in the confused statements of the Vishnu Parana concerning them and the Sakas, Yavanas, Bahlikas and other outlandish dynasties which succeeded the Andhras in the 3rd century A. D.

In the 4th century the Abhiras, Arjundyanas and Malavas are described as republican tribes settled in eastern Rajasthan and Malwa.[6]


Ram Sarup Joon[7] writes that ....Samudra Gupta conquered the whole of Punjab and a major part of India. The clans defeated by him included

आभीर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[8] ने लेख किया है ...आभीर (AS, p.66) गुजरात का दक्षिण-पूर्वी भाग है। यूनानियों ने इसे अबेरिया कहा है। टॉलमी ने इस देश को सिंध-नदी के मुहाने के निकट स्थित बताया है। (मेकिंडल टॉलमी-पृ. 140) ब्रह्मांडपुराण 6 में भी इसी तथ्य का उल्लेख है और सिंधु को आभीर देश में बहने वाली नदी कहा गया है। पुराण उन्नीसवीं सदी तक लिखे जाते रहे हैं ।

पुराणों में पद्मपुराण का सृष्टि खण्ड भाग सबसे प्रचीन है । और कालान्तर में पुरोहितों द्वारा महाभारत ग्रन्थ का भी विस्तार किया गया।

महाभारत सभा पर्व 31 में आभीरों को सरस्वती नदी (सोमनाथ के निकट) के तीर तथा समुद्र‌-तट के निवासी बताया गया है।

आभीर जाटवंश इतिहासकार दलीप सिंह अहलावत[9] ने लिखा है।

12. आभीर - महाभारत भीष्मपर्व अध्याय 9 के अनुसार आभीर जाटवंश के दो जनपद थे।

उनका प्रजातन्त्रगण पंचनद (पंजाब) में सरस्वती नदी के किनारे पर था। पाण्डवों की दिग्विजय में नकुल ने पश्चिम दिशा की ओर सभी देशों के नरेशों को जीत लिया।

 उसने सरस्वती नदी के किनारे निवास करने वाले  कुछ आभीरों गण को भी जीत लिया। (महाभारत सभापर्व, अ० 32)।

महाराजा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में आभीर लोग नाना प्रकार के रत्न, स्वर्ण, बकरी, भेड़, गाय, गधे, ऊंट, मधु और कम्बल लाये (सभापर्व, अध्याय 51, श्लोक 8) पर देखें। 

महाभारत युद्ध में शूर (वीर) आभीरगण कौरवपक्ष में होकर पाण्डवों के विरुद्ध लड़े थे (भीष्मपर्व)।

महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद द्वारिका में समुद्र के तट पर अंधकशिविवृष्णिकुकुर (सब जाटवंश से सम्बन्धित थे )  जिनमें आपस में लड़कर कुछ मर गये।

सूचना मिलने पर अर्जुन हस्तिनापुर से द्वारिका पहुंचे। वहां से वह भोज, अन्धक, वृष्णि, कुल (सब जाटवंश) की अनाथ स्त्रियों, बालकों और वृद्धों के साथ लेकर चले।

अर्जुन ने पंचनद (पंजाब) देश में पहुंचकर वहां पड़ाव डाला। 

तभी जो नारायणी सेना के जो बचे हुए गोप अथवा आभीर थे (जाटवंश) ने पड़ाव पर आक्रमण कर दिया और अपने कुल की स्त्रियों को तथा बहुत रत्नों को  ले गये।

अर्जुन का अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान लुप्त हो गया अथवा वह नारायणी सेना के उन योद्धाओं से युद्ध न कर सका जो वस्तुत कृष्ण के ही समान बलवान् थे। 

In Mahabharata

Abhira (आभीर) are mentioned in Mahabharata (II.29.9), (VI.10.45),

Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 29 mentions the Countries subjugated by Nakula in West. Abhira (आभीर) are mentioned in Mahabharata (II.29.9).[10]....And the illustrious hero (Nakula ) soon brought under subjection the mighty Gramaniya that dwelt on the shore of the sea, and the Sudras and the Abhiras that dwelt on the banks of the Saraswati, and all those tribes that lived upon fisheries, and those also that dwelt on the mountains,...

In Puranas

Vishnu Purana[11] gives list of Kings who ruled Magadha. ...After these, various races will reign, as seven Ábhíras, ten Garddhabas, sixteen Śakas, eight Yavanas, fourteen Tusháras, thirteen Mundas, eleven Maunas, altogether seventy-nine princes , who will be sovereigns of the earth for one thousand three hundred and ninety years.

Total--85 kings, Váyu; 89, Matsya; 76, and 1399 years, Bhág.

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Distribution

Notable persons

External links

References

  1.  Dr Ompal Singh TuganiaJat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.28,sn-85.
  2.  Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. आ-10
  3.  Mahendra Singh Arya et al.: Ādhunik Jat Itihas, p.222,s.n.18
  4.  V. S. AgrawalaIndia as Known to Panini, 1953, p.80
  5.  A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/A,p.5
  6.  V. A. Smith, Ancient History of India, pp. 240 and 250,
  7.  History of the Jats/Chapter IV ,p. 58
  8.  Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.66
  9.  Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III (Page 292)
  10.  9 शूद्राभीर गणाश्चैव ये चाश्रित्य सरस्वतीम, वर्तयन्ति च ये मत्स्यैर ये च पर्वतवासिनः (II.29.9)
  11.  Vishnu Purana/Book IV:Chapter XXIV pp.474-476