शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

बकरी ब्राह्मणों के यज्ञ का साधन थीं

महात्मा गाँधी और उनकी निर्मला नामक " बकरी की महानता  कौन नहीं जानता बकरी प्राचीन काल में ब्राह्मण वर्ण के यज्ञ का साधन होती थी।
ब्राह्मण ग्रन्थों में मन्त्र विधान करते हुए कहा-
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"यदि च छागी याग साधनं भवति ।
तदा अयं मन्त्रः संगताथो भवति नान्यथा ।।
अनुवाद-
और ये बकरी यज्ञ का साधन होती थी। तब यही मन्त्र संगत होता है दूसरा कोई नहीं ।।

शास्त्रों ने भी स्वीकारा-बकरी या महत्व-  शास्त्रों में बकरी को गाय से भी श्रेष्ठ पशु बताया गया है परन्तु-इस सत्य को न के बराबर लोग जानते हैं ।

विश्व के जन्तु वैज्ञानिकों ने जब बकरी के दूध की गुणवत्ता का अनुसन्धान किया तो वे चमत्कृत हो गये उन्होंने बकरी का दूध संसार के सभी पशुओं नें श्रेष्ठ पाया ।
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कितने शास्त्रों के विद्वान जानते है । कि जिस बकरी के नाम से ब्राह्मण  आज  अज्ञानी  होने से नफरत करता है ।  
और स्वयं को यादवों के पाल्य पशु गौ से जोड़ता है।
 परन्तु ब्राह्मण को बकरी ही पालनी
 चाहिए यही शास्त्रों  का विधान है । 

गाय  तो यादव लोग ही पालते थे सदियों से यह वैश्य वर्ण और क्षत्रिय वर्ण से सम्बन्धित पशु है।

 -परन्तु ब्राह्मण गाय पाले तों उनके लिए हेय ही है क्यों की गाय ब्रह्मा के उदर से ही उत्पन्न हुई थी 
और बकरी (अजा) ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण के साथ उनके यज्ञों के साधन रूप में उत्पन्न हुई स्वयं अग्नि देव ने अज( बकरे ) को अपना बाहन स्वीकार किया।
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ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः ।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रोऽजायतः ॥
(ऋग्वेद संहिता, मण्डल 10, सूक्त 90, ऋचा 12)

(ब्राह्मणः अस्य मुखम् आसीत् बाहू राजन्यः कृतः ऊरू तत्-अस्य यत्-वैश्यः पद्भ्याम् शूद्रः अजायतः ।)
अर्थात ब्राह्मण इस विराट पुरुष को मुख से बाहों से क्षत्रिय ,उरू से वैश्य और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुआ।

यदि दूसरे शब्दों के अनुसार कहे  तो इस ऋचा का अर्थ इस र्रकार समझा जा सकता है:

सृष्टि के मूल उस परम ब्रह्म के मुख से ब्राह्मण हुए, बाहु क्षत्रिय के कारण बने, उसकी जंघाएं वैश्य बने और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुआ ।

वर्ण-व्यवस्था मानने वाले ब्राह्मण वैदिक
विधानों के  अनुसार गाय के स्थान पर बकरी ही पालें-

अत: गाय को  वैश्य से सम्बन्धित कर दिया गया -
जैसा कि पुराणों तथा वेदों का कथन है ।

सृष्टि के प्रारम्भ ब्रह्मा ने अपने मुख से बकरियाँ उत्पन्न कीं और वक्ष से भेड़ों को  और उदर से गायों को उत्पन्न किया ।
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ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने को कारण ही बकरियाँ  पशुओं में मुख्य(श्रेष्ठ) हैं ।
मुख्य शब्द मुख से व्युत्पन्न तद्धितान्त पद है ।

मुखे आदौ भवः यत् प्रथमकल्पे अमरःकोश -श्रेष्ठे च ।
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और उस विराट ने दोनों पैरों से घोड़े और तुरंगो, गदहों और नील गाय तथा ऊँटों को उत्पन्न किया और भी इसी प्रकार सूकर(वराह)कुत्ता जैसी अन्य जातियाँ उत्पन्न हुईं ।
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बकरी ब्राह्मणों की सजातीय  इसीलिए है कि 
ब्राह्मण भी ब्रह्मा जी के मुख से उत्पन्न हुए हैं।

 अग्नि, इन्द्र ,ब्राह्मण और अजा ये सभी पहले उत्पन्न हुए और विराट पुरुष के मुख से उत्पन्न हुए इसी लिए इन्हें मुख्य कहा गया।
 "अग्रजायते ब्रह्मण:मुखात् इति अजा।
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(ऋग्वेद मण्डल दश सूक्त नवति ऋचा द्वादश)
१०/९०/ १ से १२ तक ऋग्वेद मैं वर्णन है कि

सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ।
स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम् ॥१॥

पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भव्यम् ।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥२॥

एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः ।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥३॥

त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः ।
ततो विष्वङ्व्यक्रामत्साशनानशने अभि ॥४॥

तस्माद्विराळजायत विराजो अधि पूरुषः ।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः ॥५॥

यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।
वसन्तो अस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः॥६॥

तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन्पुरुषं जातमग्रतः।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये॥७॥

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम् ।
पशून् ताँश्चक्रे वायव्यानारण्यान्ग्राम्याश्च ये॥८॥

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे ।
छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ॥९॥
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तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः ।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजा अवयः।१०॥
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यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन् ।
मुखं किमस्य कौ बाहू का ऊरू पादा उच्येते।११।

ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत॥१२॥

मुखतोऽजाः सृजन्सो वै वक्षसश्चावयोऽसृजत् गावश्चैवोदराद्ब्रह्मा  पुनरन्याँश्च निर्ममे ।1.107.३० । 

पादतोऽश्वांस्तुरङ्गांश्च रासभान्गवयान्मृगान् ।उष्ट्रांश्चैव वराहांश्च श्वानानन्यांश्च जातयः 1.107.३१।

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ब्रह्मा ने मुख से बकरियाँ उत्पन्न कीं ।
वक्ष से भेड़ों को  और उदर से गायों को उत्पन्न किया   
।३०।
और दोनों पैरों से घोड़ो और तुरंगो गदहों और नील-गाय तथा ऊँटों को उत्पन्न किया और भी इसी प्रकार सूकर(वराह)कुत्ता जैसी अन्य जातियाँ उत्पन्न हुईं ।३१। यह तथ्य विष्णु धर्मोत्तर पुराण खण्ड प्रथम अध्याय (१०७) में है।

अन्य बहुतायत पुराणों में भी वेदों के सन्दर्भों का ही हवाला दिया गया है ।
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"अवयो वक्षसश्चक्रे मुखत: अजाः स सृष्टवान् ।
सृष्टवानुदराद्गाश्च पार्श्वभ्यां च प्रजापतिः ।४८।

पद्भ्यां चाश्वान्समातङ्गान्रासभान्गवयान्मृगान्।
उष्ट्रानश्वतरांश्चैव न्यङ्कूनन्याश्च जातयः। ४९।

(विष्णु पुराण प्रथमाँश पञ्चमो८ध्याय (५) 
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विष्णु पुराण पञ्चमांश पञ्चम अध्याय नें भी वर्णन है कि भी बकरी और ब्राह्मण विराट-पुरुष  के मुख से उत्पन्न हुए हैं ।
ततः स्वदेहतोऽन्यानि वयांसि पशवोऽसृजत् ।
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मुखतोऽजाः ससर्जाथ वक्षसश्चावयोऽसृजत्॥४८.२५॥
गावश्चैवोदराद् ब्रह्मा पार्श्वाभ्याञ्च विनिर्ममे ।
पद्भ्याञ्चाश्वान् स मातङ्गान् रासबान् शशकान् मृगान्॥४८.२६॥
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बकरी को शास्त्रों में सर्वाधिक श्रेष्ठ पशु माना गया है ब्राह्मण भी प्रारम्भिक काल में बकरी ही पालते थे  बकरी ही उनके यजन का साधन थीं ।
क्यों कि बकरी ब्रह्मा के मुख से निकली- जो ब्राह्मणों की सजातीय है।

दु:ख तो तब होता है जब बकरी पालने वाले हजरत ईसा'  हजरत मूसा और राम,और भगवान श्रीकृष्ण जैसे महानायक थे ;

परन्तु आज के जाहिल बकरी को तुच्छ पशु मानते हैं और कहते हैं की बकरी तो पाल (गड्ढरि) समाज के  लोगों का पालने का काम रिवाज सदीयों पुराना है ।

कुछ विरोधी लोग गाँधी जी को अपनी निर्मला बकरी पालने के कारण से हीन बनाते हैं ।
यद्यपि पाल समाज के लोग बकरी नहीं अपितु भेड़ (गड्डरिक) पालते थे,यह शब्द प्राकृत भाषा में गड्डरहै । गड़डरि -एक जाति जो भेड़ें पालती और उनके ऊन से कंबल बुनती हैं ये धेनुगर धेनु भी पालते थे जो कि यादवों के समकक्ष उन्ही से सम्बन्धित थे । 
विदित हो कि 
हिब्रू भाषा नें गडेरी जिसका अर्थ चरवहा  और ईश्वर का भक्त होता है ।

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महात्मा गाँधी शास्त्रों के सार को जानते थे 
इसी लिए बकरी माता को पालने का उनका कार्य उनके शास्त्रों का तत्वज्ञानी होने कि प्रमाण है ।
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"अजेन ब्रह्मणा दक्षयज्ञभङ्गसमये मेषरूपग्रहणेन पलायमानत्वात् अजाधिष्ठितरूपवत्त्वात् मेषस्य उपचारात् अजत्वम्,।।


सांख्य दर्शन में बकरी( अजा) को ही संसार की आदि माता कहा है ।
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अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां वह्वी: प्रजा सृजामानां सरूपा:।
अजो हि एको जुषमाणोऽनुशेते जहात्येनां भुक्तभोगामजोऽन्य:॥
सन्दर्भ-श्वेताश्वेतरउपनिषद-४/५]

यहाँ लोहित शुक्ल कृष्ण रंग ( वर्ण)क्रमश: रजस, सत्त्व तथा तमस-त्रिगुण के लिए प्रयुक्त है। इन तीन रंगों वाली अथवा इन तीन गुणों से युक्त एक अजा ( बकरी)  है ; इसका भोग करता हुआ एक अज (बकरा) है।
तथा भोग रहित एक और अज तत्त्व (परमात्मा) है। 
इस प्रकार यह उपनिषदवाक्य त्रिगुणात्मक प्रसवधर्मि (सृजन करने वाली) प्रकृति का उल्लेख भी अजा के रूप में करता है।

परमात्मा को मायावी कहकर प्रकृति को ही माया कहा गया है। इस प्रसंग में पुन: मायावी और माया से बन्धे हुए अन्य तत्त्व जीवात्मा का उल्लेख भी है।
अज शब्द ब्रह्मा या वाचक न होकर बकरे कि ही वाचक था ।
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बकरी सदीयों से अनके संस्कृतियों में पाली जाती रही है। इसका दूध प्राणी मात्र को लिए अमृत तुल्य व आसानी से पच जाने वाला है।

आधुनिक वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किरण कि
बकरी के दूध में (लिपिड कण) प्रचुर हैं जबकि ये गाय के दूध में काफी छोटे होते हैं। 

लिपिड एक अघुलनशील पदार्थ हैं, जो कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन के साथ मिलकर प्राणियों एवं वनस्पति के ऊतक का निर्माण करते है।

इनका प्रमुख कार्य शरीर में उर्जा संरक्षण करना, ऊतकों की कोशिका झिल्ली बनाना और हार्मोन और विटामिन के अभिन्न अवयव निर्माण करना होता है। बकरी यह तत्व बहुतायत से पाया जाता है ।

बड़ी संख्या में छोटे व्यास के साथ वसा' ग्लोबुल्स होने से बकरी का दूध अधिक सुपाच्य होता है। 
इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम और फोस्फोरस की उच्च मात्रा सम्यक होती है।

इसमें पॉलीअनसेचुरेटेड वसा( PUFA )की उच्च मात्रा है। 

जो (LDL) एलडीएल (खराब) कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है।

यह हृदय रोग, जठरांत्र रोगों और एलर्जी की रोकथाम में मददगार है।

इसके अलावा पाचन विकार, दमा, अल्सर, एलर्जी, सूखा रोग, क्षय रोग में भी बकरी सा दूध लाभकारी है।
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शोधों को अनुसार-
बकरी का दूध शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, जिससे शरीर को कोई बीमारी अटैक नहीं कर पाती है। 
यह एलर्जी के लिए भी फायदेमंद है।

बकरी का दूध ज्यादा सफ़ेद होता है। 
ये इसलिए की इसमें विटामिन( ए) की मात्रा ज्यादा होती है। विटामिन( ए) ही प्रतिरक्षा और एंटीबॉडी प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करता है।
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बकरी के दूध में पोटेशियम, कैल्शियम, क्लोराइड, फास्फोरस, सेलेनियम, जिंक और तांबा जैसे तत्व गाय के दूध की तुलना में ज्यादा होते है।

यही तत्व आंत्र सूजन को कम करने और कोलाइटिस से राहत देता है।
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बकरी के दूध में गाय के दूध से ज्यादा पौष्टिक और स्वास्थ्यकर तत्व होते हैं| 

बकरी के दूध का नियमित सेवन आपको ताकतवर बनाता है 
और बिमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है| महात्मा गाँधी इस गुणवत्ता को जानते थे ।

बकर सा दूध पचाने में आसान है –जबकि कुछ लोगों को गाय के दूध से गैस और सूजन या फुलावट की समस्या होती है| 

बकरी का दूध इन उदर से सम्बंधित विकारों का समाधान है| 
ऐसा इसलिए है क्योंकि बकरी के दूध में फैट के तत्व छोटे होते हैं और ये गाय के दूध की अपेक्षा जल्दी टूट या पच भी जाते हैं|

 इसके अलावा बकरी के दूध में मौजूद पोटेशियम की मात्रा मानव शरीर में क्षारीय गुण पैदा करता है|

 जबकि गाय के दूध में इन पोषक तत्वों की कमी होती है जिससे गैस जैसी समस्या पैदा होती है|
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इसका प्राकृतिक रूप से एकरूप होने का गुण
अर्थात होमाजनाइज़्ड जिसका मतलब है एक रूपता  बकरी को दूध में प्रचुर रूप नें पाया जाता है| 

गाय के दूध में फैट होता है जिसकी पानी जैसी परत इसकी सतह पर आ जाती है| 

इसको दूर करने के लिए गाय के दूध के साथ एक प्रक्रिया करनी होती है जिसे "होमाजनाइजेशन कहा जाता है, इससे फैट के अणु ख़त्म हो जाते हैं| 

इससे क्रीम बनती है और दूध होमोजेनेस और अच्छी तरह मिला हुआ बनता है|
होमाजनाइजेशन के नुकसान भी हैं| 

इससे दूध में तथा साथ ही साथ हमारे शरीर में फ्री रेडिकल्स इकट्ठे होते हैं| 
ये आगे चलकर स्वास्थ्य से सम्बंधित परेशानियां पैदा करते हैं| 

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जबकी बकरी का दूध प्राकृतिक रूप से होमोग्नाइज़्ड होता है और इसके साथ अन्य कोई प्रक्रिया करने की आवश्यकता नहीं होती है|

इसलिए बकरी का दूध आपको होमाजनाइजेशन से दूर रखता है|

इससे एलर्जी कम होती है-  गाय के दूध में हाई लेवल मिल्क प्रोटीन होता है जिसे "कैसिइन" कहते हैं| 

गाय के दूध से बहुत से बच्चों को इस दूध से एलर्जी होती हैं, परिणामस्वरूप उलटी, दस्त, खुजली आदि होते हैं|

परन्तु इन एलेर्जीज से बचने के लिए बकरी के दूध को एक विकल्प के रूप में लिया जा सकता है| 
बकरी के दूध में 'कैसिइन की मात्रा काफी कम होती है|

‘लेक्टोज इंटॉलरेंस‘जैसी समस्या नहीं: लेक्टोज को भी मिल्क शुगर के रूप में जाना जाता है|

 इस लेक्टोज को पचाने के लिए मनुष्य शरीर में एक एंजाइम पैदा होता है जिसे लेक्टेस कहते हैं|

 जिन लोगों में लेक्टेस की कमी होती है उनमे ‘लेक्टोज इंटॉलरेंस’ जैसी समस्या रहती है|

बकरी के दूध में लेक्टोज की मात्रा कम होती है जिससे यह पचाने में आसान रहता है
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बकरी का दूध ज्यादा सफ़ेद होता है। 
ये इसलिए की इसमें विटामिन ए की मात्रा ज्यादा होती है।
विटामिन ए प्रतिरक्षा और एंटीबॉडी प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करता है।

बकरी के दूध में पोटेशियम, कैल्शियम, क्लोराइड, फास्फोरस, सेलेनियम, जिंक और तांबा गाय के दूध की तुलना में ज्यादा होते है। 

यह आंत्र सूजन को कम करने और कोलाइटिस से राहत देता है।
यह हम पूर्व में ही बता चुके हैं ।

बकरी के दूध में गाय के दूध से ज्यादा पौष्टिक और स्वास्थ्यकर तत्व होते हैं| 

बकरी के दूध का नियमित सेवन आपको ताकतवर बनाता है और बिमारियों  से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है| 

बकरी का दूध कई रोगों के उपचार एवं रोकथाम में लाभदायक है, जैसे कि-
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अधिक पोषक:बकरी के दूध में विटामिन "ए" की अधिकता होती है जिसे मानव शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित कर लिया जाता है|

इसमें विटामिन बी-2 और राइबोफ्लेविन की मात्रा भी अधिक होती है जिसे प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट्स जैसे तत्व भी आसानी से पच जाते हैं|

बकरी के दूध में प्रोटीन, कैल्शियम और फास्फोरस की भी अधिकता होती है| यह एंटीबॉडीज का निर्माण कर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है | 

बकरी का दूध बायो-आर्गेनिक सोडियम का भी अच्छा स्त्रोत है जो पाचन क्षमता बढ़ाने वाले एन्जाइम्स पैदा करता है|

डेंगू रोग के उपचार में–डेंगू बीमारी से हम हर साल एक समस्या के रूप में रुबरु होते हैं। 
यह रोग जमे हुए पानी में पनपने वाले एडीज मच्छर के काटने से होता है।

बीमारी से बचने के लिए सतर्क और सावधान रहें तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाएं।

इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना। 
शोध में पाया गया है कि बकरी का 

इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना। 
शोध में पाया गया है कि बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक है।

मधुमेह के रोग के उपचार में– बकरी के दूध का सेवन करने से शरीर में मौजूद एसिड आसानी से पच जाता है ।
जिससे उच्च रक्तचाप, कैंसर और मुधमेह आदि का इलाज आसानी से हो सकता है।

बकरी के दूध में कई गुण होते हैं जो शरीर के आलस्य को दूर करने के साथ-साथ थकान, मांसपेशियों का खिचाव, सिर दर्द और वजन का बढ़ना आदि की समस्याओं को आसानी से ठीक कर देता है!

इससे एलर्जी कम होती है- गाय के दूध में हाई लेवल मिल्क प्रोटीन होता है जिसे कैसिइन कहते हैं| 
बहुत से बच्चों को इस दूध से एलर्जी होती हैं, परिणामस्वरूप उलटी, दस्त, खुजली आदि होते हैं|
 इन एलेर्जीज से बचने के लिए बकरी के दूध को एक विकल्प के रूप में लिया जा सकता है|

बकरी के दूध में कैसिइन की मात्रा काफी कम होती है|

‘लेक्टोज इंटॉलरेंस‘जैसी समस्या नहीं: लेक्टोज को भी मिल्क शुगर के रूप में जाना जाता है|

इस लेक्टोज को पचाने के लिए मनुष्य शरीर में एक एंजाइम पैदा होता है जिसे लेक्टेस कहते हैं|
 जिन लोगों में लेक्टेस की कमी होती है उनमे ‘लेक्टोज इंटॉलरेंस’ जैसी समस्या रहती है|

बकरी के दूध में लेक्टोज की मात्रा कम होती है जिससे यह पचाने में आसान रहता है|

अधिक पोषक:बकरी के दूध में विटामिन ए की अधिकता होती है जिसे मानव शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित कर लिया जाता है| 

इसमें विटामिन बी-2 और राइबोफ्लेविन की मात्रा भी अधिक होती है जिसे प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट्स जैसे तत्व भी आसानी से पच जाते हैं|

बकरी के दूध में प्रोटीन, कैल्शियम और फास्फोरस की भी अधिकता होती है| यह एंटीबॉडीज का निर्माण कर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है|

 बकरी का दूध बायो-आर्गेनिक सोडियम का भी अच्छा स्त्रोत है जो पाचन क्षमता बढ़ाने वाले एन्जाइम्स पैदा करता है|

डेंगू रोग के उपचार में–डेंगू बीमारी से हम हर साल एक समस्या के रूप में रुबरु होते हैं। यह रोग जमे हुए पानी में पनपने वाले एडीज मच्छर के काटने से होता है। 

बीमारी से बचने के लिए सतर्क और सावधान रहें तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाएं। 

इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना। शोध में पाया गया है कि बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक है।

मधुमेह के रोग के उपचार में– बकरी के दूध का सेवन करने से शरीर में मौजूद एसिड आसानी से पच जाता है जिससे उच्च रक्तचाप, कैंसर और मुधमेह आदि का इलाज आसानी से हो सकता है।

बकरी के दूध में कई गुण होते हैं जो शरीर के आलस्य को दूर करने के साथ-साथ थकान, मांसपेशियों का खिचाव, सिर दर्द और वजन का बढ़ना आदि की समस्याओं को आसानी से ठीक कर देता है।

रोग–प्रतिरोधक क्षमता बढाने में–शोध में पता चला है कि बकरी के दूध में सेलेनियम की अधिक मात्रा होती है जिससे यह दूसरे दुधारू पशुओं की तुलना में तीन गुना अधिक सेलेनियम प्रदान करती है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है।

एचआईवी के रोग के उपचार में– बकरी के दूध में मौजूद गुण से एचआईवी एड्स से पीडि़त मरीजों को लंबे समय तक बचाया जा सकता है। 

सीडी 4 काउन्टस को बढ़ाता है बकरी का दूध। 

जो एचआईवी पीडि़त रोगीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है।

11.इम्यूनिटी -
बकरी के दूध में सेलेनियम नामक एक मिनरल पाया जाता है जो बॉडी के इम्यून पावर कोबढ़ाने में मददगार होता है।
स्ट्रॉन्ग इम्यूनिटी बॉडी को कई तरह के रोगों से दूर रखती है।
बहुत से डॉक्टर भी बकरी का दूध पीने की सलाह देते हैं।

डेंगू से बचाव में फायदेमंद है बकरी का दूध, जानिए कारण——

डेंगू से बचने के लिए सावधानियां तो आवश्यक है ही, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना भी बेहद जरूरी है।
इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना।
एक शोध के अनुसार बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक है।

इस तरह से बकरी का दूध डेंगू से बचने के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है। 

हरे पौधों और पत्ति‍यों को आहार के रूप में ग्रहण करने के कारण इसके दूध में भी औषधीय गुण होते हैं, और यह कई तरह की बीमारियों को दूरकरने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

यही कारण है कि जो व्यक्ति नियमित तौर पर बकरी का दूध पीता है, उसे बुखार जैसी समस्याएं नहीं होती।

बकरी के दूध में विटामिन और मिनरल्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो बीमारियों से लड़ने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करते हैं।

विटामिन बी6, बी12, विटामिन डी, फोलिक एसिड और प्रोटीन से भरपूर बकरी का दूध शरीर को पुष्ट कर, प्रतिरक्षी तंत्र को मजबूत करता है, 

जिससे बीमारियों की संभावना नहीं के बराबर हो जाती है।

एक अन्य शोध के अनुसार किसी बच्चे को बकरी का दूध पिलाने पर उसकी रोधप्रतिरोधक क्षमता में इस कदर इजाफा होता है,

 कि उसके बीमार होने की संभावना नहीं के बराबर होती है।

हालांकि 1 साल से छोटे बच्चों को बकरी का दूध नहीं पिलाना चाहिए, क्यों‍कि इससे उन्हें एलर्जी का खतरा होता है।

बकरी के दूध में पाया जाने वाला प्रोटीन, गाय या भैंस के दूध में मौजूद प्रोटीन की तुलना में बेहद हल्का होता है। 
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जहां गाय के दूध का पाचन लगभग 8 घंटे में होता है, वहीं बकरी का दूध पचने में महज 20 मिनट का समय लेता है।

बकरी का दूध अपच की समस्या को दूर कर शरीर में उर्जा का संचार करता है। 

इसके अलावा इसमें मौजूद क्षारीय भस्म आंत्र तंत्र में अम्ल का निर्माण नहीं करता जिससे थकान, मसल्स में खिंचाव, सिर दर्द आदि की समस्या नहीं होती।

डेंगू के इलाज व डेंगू से बचाव में बकरी का दूध बेहद कारगर उपाय है।

डेंगू रोग के उपचार में–डेंगू बीमारी से हम हर साल एक समस्या के रूप में रुबरु होते हैं।
यह रोग जमे हुए पानी में पनपने वाले एडीज मच्छर के काटने से होता है।

बीमारी से बचने के लिए सतर्क और सावधान रहें तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाएं।
इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना।

शोध में पाया गया है कि बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक है।

मधुमेह के रोग के उपचार में– बकरी के दूध का सेवन करने से शरीर में मौजूद एसिड आसानी से पच जाता है जिससे उच्च रक्तचाप, कैंसर और मुधमेह आदि का इलाज आसानी से हो सकता है।

बकरी के दूध में कई गुण होते हैं जो शरीर के आलस्य को दूर करने के साथ-साथ थकान, मांसपेशियों का खिचाव, सिर दर्द और वजन का बढ़ना आदि की समस्याओं को आसानी से ठीक कर देता है।

रोग–प्रतिरोधक क्षमता बढाने में–शोध में पता चला है कि बकरी के दूध में सेलेनियम की अधिक मात्रा होती है जिससे यह दूसरे दुधारू पशुओं की तुलना में तीन गुना अधिक सेलेनियम प्रदान करती है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है।

"एचआईवी" के रोग के उपचार में– बकरी के दूध में मौजूद गुण से एचआईवी एड्स से पीड़ित मरीजों को लंबे समय तक बचाया जा सकता है। सीडी 4 काउन्टस को बढ़ाता है बकरी का दूध।

 जो एचआईवी पीडि़त रोगीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है।

बकरी के दूध में सेलेनियम नामक एक मिनरल पाया जाता है जो बॉडी के इम्यून पावर को बढ़ाने में मददगार होता है।
स्ट्रॉन्ग इम्यूनिटी बॉडी को कई तरह के रोगों से दूर रखती है।
 बहुत से डॉक्टर भी बकरी का दूध पीने की सलाह देते हैं।

डेंगू से बचाव में फायदेमंद है बकरी का दूध, जानिए कारण———

डेंगू से बचने के लिए सावधानियां तो आवश्यक है ही, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना भी बेहद जरूरी है।
इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना। 

एक शोध के अनुसार बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक हैं।
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प्रस्तुति- करण 
यादव योगेश कुमार" रोहि" - 8077160219 हैं।
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कूर्मपुराण में दर्शन और वेदों कि व्याख्या करते हुए अज ( बकरे) कि नाभि से सृष्टि या विस्तार दर्शाया है ।

(न जायते न म्रियते वर्द्धते न च विश्वसृक्।
मूलप्रकृतिरव्यक्ता गीयते वैदिकैरजः।। ३८.७६।

ततो निशायां वृत्तायां सिसृक्षुरखिलञ्जगत्।
अजस्य नाभौ तद् बीजं क्षिपत्येष महेश्वरः।३८.७७। कूर्मपुराण उत्तर भाग ★- 

‘‘प्रकृति पुरुषं चौव विद्धयनादी उभावपि’[सन्दर्भ]श्री मद्भगवद्गीता१३/९

प्रकृति एवं पुरुष दोनों ही अनादि हैं। तात्पर्य कि पुरुष अज है तो प्रकृति भी अजा है।
सृष्टि के प्रारम्भ में उस ईश्वर ने स्वयं को बकरा अजऔर प्रकृति (माया) को बकरी के रूप में प्राप्त कर के सृष्टि कि प्रजनन किया!

श्वेताशवेतरो- उपनिषद  और साँख्यदर्शन व उसकी प्रतिपादिका सांख्य कारिका में  यही वर्णन  है:-
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‘अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां बह्वीः प्रजाः सृजमानां सरूपाः।
अजोह्येको जुषमाणोऽनुशेते जहात्येनां भुक्तभोगामजोन्य।।
( श्वेताशवेतरोपनिषद्-४/५) 


(इस ब्रह्माण्ड में) एक अजन्मी, या उपमा से, एक अजा = बकरी  है जिसे सांख्यदर्शन नें (प्रकृति) कहा है जो कि लाल, सफेद और काले रंग (रज, सत्त्व और तम) रंग वाली है । वह अपने जैसे रूप में बहुत प्रजाओं( सन्तानों )को जन्म देती है।

 एक अज = बकरा जिसे साख्यदर्शन में
 पुरुष( ईश्वर) कहा गया है। वह  उस अजा का भोग करता हुआ शयन करता  है, जबकि दूसरे एक बकरे (जीवात्मा), ने पहले ही  उस बकरी का भोग करके उसको त्याग दिया है। जहां यह उपमा जीव और प्रकृति के सम्बन्ध में स्पष्ट है ही, वहां यह देखने योग्य है 
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ज्ञाज्ञौ  द्वावजावीशनीशावजा  ह्येका  भोक्तृभोग्यार्थयुक्ता  । अनन्तश्वात्मा  विश्वरूपो  ह्यकर्ता   त्रयं   यदा  विन्दते  ब्रह्मेतत्॥ १।९ ॥

अर्थात् दो अज हैं, एक तो ज्ञ है – जानने वाला है, सर्वज्ञ है; दूसरा अज्ञ है – कम जानता है ; एक सब पदार्थों का प्रभु है, दूसरा उसके वश में रहता है ; और तीसरी एक अजा भोक्ता के भोग के लिए युक्त होती है । 

जब यह जीव, जो कि अनन्त आत्मा है, अनेक शरीर धारण करने से ’विश्वरूप’ है और अकर्ता है (क्योंकि शरीर ही कर्ता है), इन तीनों सत्ताओं को जान लेता है, तब वह ब्रह्म को पा लेता है । इससे स्पष्ट रूप से और क्या कहा जा सकता है ?
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तं मां वित्त महात्मानं ब्रह्माणं विश्वतो मुखम्।
महान्तं पुरुषं विश्वमपां गर्भमनुत्तमम् ।३८.७८

न तं जानीथ जनकं मोहितास्तस्य मायया ।
देवदेवं महादेवं भूतानामीश्वरं हरम् ।। ३८.७९

एष देवो महादेवो ह्यनादिर्भगवान् हरः ।
विष्णुना सह संयुक्तः करोति विकरोति च ।। ३८.८०

चतुर्वेदश्चतुर्मूर्त्तिस्त्रिमूर्त्तिस्त्रिगुणः परः ।
एकमूर्त्तिरमेयात्मा नारायण इति श्रुतिः ।७५।
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रेतोऽस्य गर्भो भगवानापो मायातनुः प्रभुः ।
स्तूयते विविधैर्मन्त्रैर्ब्राह्मणैर्मोक्षकांक्षिभिः ।। ७६।

संहृत्य सकलं विश्वं कल्पान्ते पुरुषोत्तमः ।
शेते योगामृतं पीत्वा यत् तद् विष्णोः परं पदम् ।।.७७
न जायते न म्रियते वर्द्धते न च विश्वसृक् ।
मूलप्रकृतिरव्यक्ता गीयते वैदिकैरजः ।।७८।।
ततो निशायां वृत्तायां सिसृक्षुरखिलञ्जगत् ।
अजस्य नाभौ तद् बीजं क्षिपत्येष महेश्वरः ।७९।

तं मां वित्त महात्मानं ब्रह्माणं विश्वतो मुखम् ।
महान्तं पुरुषं विश्वमपां गर्भमनुत्तमम् ।८०।

(कूर्मपुराण-उत्तर-भाग).  अध्याय (३८)
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माया से विविध शरीर धारण करने वाले समस्त जगत के जीवन -जल को अपने आयतन( आकार) को रूप नें स्वीकार करने वाले जल स्वरूप भगवान कर्म -फल को एक मात्र अधिष्ठाता हैं।

धर्म और मोक्ष कि इच्छा रखने वाले ब्राह्मण लोग-विविध मन्त्रों के द्वारा उनकी स्तुति करते हैं। कल्पनान्त में समस्त विश्व की प्रलय करने को उपरान्त योगामृत का पान कर वह विष्णु जो परम पद है वहाँ शयन करते हैं। 
विश्व की सृष्टि करने वाले ये महान ईश्वर न तो जन्मते नाही मरते हैं। और न वृद्धि को प्राप्त होते हैं । वैदिक विद्वान इसी ईश्वर को "अज"  (बकरा) कहते है ।७८-७९।।

प्रलय रूपी रात्रि के बीत जाने पर सम्पूर्ण जगत का सृजन करने की  इच्छा से अज -(बकरे) की नाभि में सृष्टि -बीज  को स्थापित करता है यह महान ईश्वर (महेश्वर)।।८०।
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न तस्य विद्यते कार्यं न तस्माद् विद्यते परम् ।
स वेदान् प्रददौ पूर्वं योगमायातनुर्मम ।। ३८.८१

स मायी मायया सर्वं करोति विकरोति च ।
तमेव मुक्तये ज्ञात्वा व्रजेत शरणं भवम् ।। ३८.८२

इतीरिता भगवता मरीचिप्रमुखा विभुम् ।
प्रणम्य देवं ब्रह्माणं पृच्छन्ति स्म सुदुः खिताः ।। ३८.८३

इति अष्टाचत्वारिंशोध्यायः ॥ 
कूर्मपुराण-उत्तरभाग-
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"छागलो वर्करश्छागो वस्तोऽजः छेलकः स्तुभः अजा छागी स्तुभा चापि छेलिका च गलस्तनी"

अब आवश्यकता है कि ब्राह्मण समाज बकरी की महिमा स्वीकार करे और शास्त्रीय परम्परा व विधानों के अनुरूप बकरी को स्वीकार करते हुए वैश्यवर्णीय गाय भैंस को छोड़कर बकरीयों को आत्म -साथ  करें।

आर्य पशु पालक वे चरावाहे थे जो बहुतायत से गाय भैंस पालते थे। वैदिक ऋचाओं तथा लौकिक संस्कृत के श्रेण्य साहित्य नें  भी आर्य का अर्थ पशुपालन को कारण वैश्य किया गया है।
 जो दोगला विधान है ।
भैंस विराट पुरुष के ऊरू से उत्पन्न  होने से ऊरूद्भवा कहा ऊरू जानु-उपरिभाग( जंघा और उदर को कहते हैं) वैश्य का उत्पत्ति स्थान भी यही होने से वह गाय या सजातिय है । यादवों को गाय पालने के कारण ही परवर्ती स्मृतिकारों ने वैश्य वर्ण में गोप रूप में समाहित कर दिया है ।

त्रीणि पदा विचक्रमे विष्णुर्गोपा अदाभ्यः। अतो धर्माणि धारयन्” इसमें भी कहा गया है कि किसी के द्वारा जिसकी हिंसा नहीं हो सकती, उस सर्वजगत के रक्षक विष्णु ने अग्निहोत्रादि कर्मों का पोषण करते हुए पृथिव्यादि स्थानों में अपने तीन पदों से क्रमण किया। इस तरह अनेक श्रुतियों में परमात्मा के सगुण साकार रूप का वर्णन है।
 “प्रजापतिश्वरति गर्भे अन्तरजायमानो बहुधा विजायते। तस्य योनिं परिपश्यन्ति धीरास्तस्मिन्ह तस्थुर्भुवनानि विश्वा” 
यहाँ भी कहा है कि प्रजा-पति गर्भ के भीतर आता है, वह स्वरूप से अज होकर भी अनेक रूपों से प्रकट होता है, उसके प्राकट्य का धर्मरक्षणादि प्रयोजन धीरे लोग जानते हैं। 
या ते रुद्र शिवा तनूरघोरा पापकाशिनी। तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि।।” “नीलग्रीवाः शितिकण्ठाः” इत्यादि अनेक स्थानों में परमेश्वर का ही नीलकण्ठ महादेव रूप में वर्णन मिलता है।

‘एषो ह देवः प्रदिशोऽनुसर्वाः पूर्वो ह जातः स उ गर्भे अन्तः।
स एव जातः स जनिष्यमाणः प्रत्यङ् जनस्तिष्ठति सर्वतोमुखः।।”

इस मन्त्र में कहा गया है कि यही ईश्वर सब दिशाओं में व्याप्त होकर, पहले गर्भ में रहकर प्रकट हुआ, वही सर्वतोमुख परमेश्वर पहले अनेक रूप से उत्पन्न हुआ है और आगे भी उत्पन्न होगा।

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“अजोऽपि अन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्‌।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया।।”

इस श्लोक पर निम्नलिखित अभिप्राय केशव काश्मीरी का है- ‘यद्यपि में अज बकरा हूँ और अपनी अजा को न छोड़कर ही अपनी माया-संकल्प से लोकहितार्थ जन्म लेता हूँ।’


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