रविवार, 19 अप्रैल 2020

क्यों अहीरों 'ने अर्जुन को पंजाब में परास्त कर दिया था

जो मूर्ख ये कहते हैं कि नन्द गोप या अहीर थे ; और वसुदेव यदुवंशी क्षत्रिय ! 
तो उन अल्प मति भ्रान्त चित व्यक्तियों को हरिवंशपुराण को सम्यक रूप से पढ़ना चाहिए यह हरिवंशपुराण महाभारत का ही खिल-भाग है ।
हरिवंश पुराण में  नन्द को ही नहीं अपितु वसुदेव को भी गोप ही कहा गया है। 

और कृष्ण का जन्म भी गोप (आभीर) जन-जाति के अयन (घर) में हुआ था; एेसा वर्णन है । 
प्रथम दृष्ट्या तो ये देखें-- कि वसुदेव को गोप कहाँ कहा है ?
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"इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेनाहमच्युत ।
गावां कारणत्वज्ञ:कश्यपे शापमुत्सृजन् ।२१

येनांशेन हृता गाव: कश्यपेन महर्षिणा ।
स तेन अंशेन जगतीं गत्वा गोपत्वमेष्यति।२२

द्या च सा सुरभिर्नाम अदितिश्च सुरारिण: 
ते८प्यमे तस्य भार्ये वै तेनैव सह यास्यत:।।२३

ताभ्यां च सह गोपत्वे कश्यपो भुवि संस्यते।
स तस्य कश्यस्यांशस्तेजसा कश्यपोपम: ।२४

वसुदेव इति ख्यातो गोषु तिष्ठति भूतले ।
गिरिगोवर्धनो नाम मथुरायास्त्वदूरत: ।२५।

तत्रासौ गौषु निरत: कंसस्य कर दायक:।
तस्य भार्याद्वयं जातमदिति सुरभिश्च ते ।२६।

देवकी रोहिणी देवी चादितिर्देवकी त्यभृत् ।।
सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति।२७।

गीता प्रेस गोरखपुर की हरिवंश पुराण 'की कृति में 
श्लोक संख्या क्रमश: 32,33,34,35,36,37,तथा 38 पर देखें--- अनुवादक पं० श्री राम नारायण दत्त शास्त्री पाण्डेय "राम" "ब्रह्मा जी का वचन " नामक 55 वाँ अध्याय।

अनुवादित रूप :-हे विष्णु ! महात्मा वरुण के ऐसे वचनों को सुनकर तथा इस सन्दर्भ में समस्त ज्ञान प्राप्त करके भगवान ब्रह्मा ने कश्यप को शाप दे दिया और कहा 
।२१। 

कि हे कश्यप अापने अपने जिस तेज से प्रभावित होकर उन गायों का अपहरण किया ।

उसी पाप के प्रभाव-वश होकर भूमण्डल पर तुम अहीरों (गोपों)का जन्म धारण करें ।२२। 

तथा दौनों देव माता अदिति और सुरभि तुम्हारी पत्नीयाें के रूप में पृथ्वी पर तुम्हरे साथ जन्म धारण करेंगी।२३।

इस पृथ्वी पर अहीरों ( ग्वालों ) का जन्म धारण कर महर्षि कश्यप दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि सहित आनन्द पूर्वक जीवन यापन करते रहेंगे ।

हे राजन् वही कश्यप वर्तमान समय में वसुदेव गोप के नाम से प्रसिद्ध होकर पृथ्वी पर गायों की सेवा करते हुए जीवन यापन करते हैं।

मथुरा के ही समीप गोवर्धन पर्वत है; उसी पर पापी कंस के अधीन होकर वसुदेव गोकुल पर राज्य कर रहे हैं।

कश्यप की दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि ही क्रमश: देवकी और रोहिणी के नाम से अवतीर्ण हुई हैं 
२४-२७।(उद्धृत सन्दर्भ --)

पितामह ब्रह्मा की योजना नामक ३२वाँ अध्याय पृष्ठ संख्या २३० अनुवादक -- पं० श्रीराम शर्मा आचार्य " ख्वाजा कुतुब संस्कृति संस्थान वेद नगर बरेली संस्करण)
अब कृष्ण को भी गोपों के घर में जन्म लेने वाला बताया है ।
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गोप अयनं य: कुरुते जगत: सार्वलौकिकम् ।
स कथं गां गतो देशे विष्णुर्गोपर्त्वमागत: ।।९।

अर्थात्:-जो प्रभु भूतल के सब जीवों की 
रक्षा करनें में समर्थ है ।
वे ही प्रभु विष्णु इस भूतल पर आकर गोप (आभीर) के घर ( अयन) में क्यों हुए ? ।९।

हरिवंश पुराण "वराह ,नृसिंह आदि अवतार नामक १९ वाँ अध्याय पृष्ठ संख्या १४४ (ख्वाजा कुतुब वेद नगर बरेली संस्करण) 
सम्पादक पण्डित श्री राम शर्मा आचार्य .गीता प्रेस गोरखपुर की हरिवंश पुराण की कृति में वराहोत्पत्ति वर्णन " नामक पाठ चालीसवाँ अध्याय 
पृष्ठ संख्या (182) श्लोक संख्या (12)।

अब निश्चित रूप से आभीर और गोप परस्पर पर्याय वाची रूप हैं। 
यह शास्त्रीय पद्धति से प्रमाणित भी है ।

अब बात रही अहीरों या गोपों द्वारा अर्जुन को लूटने वाली  तो  इसका प्रस्तुति-करण ही कालान्तरण में  पुराणों के पुरोहितों 'ने गलत तरीके से सम्पादित किया ।

जैसा कि प्रभास क्षेत्र में प्रमुख यादवों के परस्पर मारे जाने के बाद चोरी अर्जुन करके ले जा रहा है यदुकुल की स्त्रीयों की और यदुवंशी गोपों 'ने जब अर्जुन को पञ्चनद प्रदेश पंजाब में घेर लिया और अपने कुल की स्त्रियों को अपने साथ ले लिया तो पाखण्डीयों 'ने उसे ही इस घटना को गोपों द्वारा अर्जुन को लूटना बता दिया ।

कृष्ण के समय में अर्जुन यदुकुल की एक स्त्री या कन्या को छुपकर अपहरण कर ले गया था ।
 तब कुपित यादव गोपों से कृष्ण 'ने उसे बचा लिया था।
तब उसे घमण्ड ये भी हो गया कि मेरा तो अजेय नारायणी सेना  भी कुछ नहीं कर पायी ।

उन्हीं यादव गोपों नें कृष्ण के देहावसान के उपरान्त पंजाब में अर्जुन को बुरी तरह परास्त किया था सेना सहित  जो अर्जुन उस समय का  महान यौद्धा था 

विचारणीय तथ्य यह भी है कि अर्जुन जैसे महान यौद्धा को साधारण भील या किरात कैसे परास्त कर सकते हैं ?
वस्तुत अर्जुन को पञ्चनद प्रदेश (पंजाब ) में परास्त करने वाले यादवों की नारायणी सेना के यौद्धा गोप ही थे.

नारायणी सेना के गोपों ने ही पंजाब प्रदेश में अर्जुन को परास्त कर यदुवंशीयों की स्त्रियों को अपने साथ ले लिया था तो इस घटना को लूटने की घटना बता दिया।
 वे यादव भी गोप अहीर नामान्तरण से हैं  'परन्तु इस घटना के लूट कहकर दर्शाया जाना 
पुराणकारों का घोर षड्यन्त्र है पूर्व दुराग्रह है।
और  ये मिलाबट बाद की है। 
इसलिए कथानक का विरोधाभासी होना स्वाभाविक है।
 क्यों कि जब नन्द और वसुदेव दौनों ही सजातीय गोप बन्धु हैं 
ये हृदीक पुत्र देवमीढ़ के पौत्र (नाती) हैं ।
तो फिर गोप ही गोपिकाओं को लूटें  ये असंगत बातें हैं ।

बाद के व्रज भाषा के कवियों ने इन घटनाओं को प्रक्षिप्त मान कर ही गोप या आभीर के स्थान पर (भील) शब्द का प्रयोग कर दिया है- ।
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प्राय: कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने वाले 
महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से 
यह प्रक्षिप्त (नकली)श्लोक उद्धृत करते हैं ।

यद्यपि नारायणी सेना के गोपों' ने यदुकुल की स्त्रियों को अपने साथ ले जाते हुए अर्जुन को पञ्चनद प्रदेश (पंजाब) में परास्त किया था  ।
और अपने यदुकुल की स्त्रियों को अपने साथ चलने के लिए भी कहा था और कुछ विधवाएें पुन: अपने ही पुराने घरों में यदुवंशी गोपों के साथ स्वेच्छा से चली गयी थीं।

'परन्तु इन तथ्यों को परवर्ती पुराण कारों 'ने गलत तरीके से प्रस्तुत किया है।
और घटना के मूल तथ्य को मध्य में ही तिरोहित ( गायब) कर दिया है- ।

जैसा कि महाभारत के मूसल पर्व में जिसका श्लोक निम्नलिखित है ।
यहाँ अहीरों को लोभी लालची और अशुभदर्शी वर्णित किया है ।👇
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ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । 
आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।

अर्थात् वे पापकर्म करने वाले तथा लोभ से पतित चित्त वाले !अशुभ -दर्शन अहीरों ने एकत्रित होकर वृष्णि वंशी यादवों को लूटने की सलाह की ।४७। 

अब इसी बात को बारहवीं शताब्दी में पुनारचित ग्रन्थ श्री-मद्भगवद् पुराण के प्रथम स्कन्ध के पन्द्रहवें अध्याय में आभीर शब्द के स्थान पर गोप शब्द सम्बोधन द्वारा कहा गया है ।
इसे देखें---
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"सो८हं नृपेन्द्र रहित: पुरुषोत्तमेन । 
सख्या प्रियेण सुहृदा हृदयेन शून्य: ।। 

अध्वन्युरूक्रम परिग्रहम् अंग रक्षन् । 
गौपै: सद्भिरबलेव विनिर्जितो८स्मि ।२०।

हे राजन् ! जो मेरे सखा अथवा -प्रिय मित्र -नहीं ,नहीं मेरे हृदय ही थे ; उन्हीं पुरुषोत्तम कृष्ण से मैं रहित हो गया हूँ ।कृष्ण की पत्नीयाें को द्वारिका से अपने साथ इन्द्र-प्रस्थ लेकर आर रहा था । 

परन्तु मार्ग में दुष्ट गोपों ने मुझे एक अबला के समान हरा दिया ।
और मैं अर्जुन उनकी गोपिकाओं तथा वृष्णि वंशीयों की पत्नीयाें की रक्षा नहीं कर सका!

( श्रीमद्भगवद् पुराण अध्याय एक श्लोक संख्या २०(पृष्ट संख्या --१०६ गीता प्रेस गोरखपुर देखें---
महाभारत के मूसल पर्व में गोप के स्थान पर आभीर शब्द का प्रयोग सिद्ध करता है कि गोप ही आभीर है। 

उपर्युक्त घटनाओं का सम्पादन पुराण कारों'ने द्वेष वश किया  इस  प्रकार किया कि पढ़ने वाले गोप अथवा अहीर और यादवों को अलग 
मानें ये बाद की मिलाबटें हैं ।

 यद्यपि अर्जुन की सुभद्रा अपहरण की घटना ने यदुवंशी गोपों के क्रोध को चरम पर  पहुँचा दिया था ।

  हरिवंशपुराण या पद्म-पुराण में गोप ही यादव हैं।
और गोपों का नामान्तरण आभीर है ।
भागवत पुराण में मिलाबट हद से ज्यादा है ।

बारहवीं सदी में लिपिबद्ध ग्रन्थ श्रीमद्भागवत् पुराण में अहीरों को बाहर से  यवन  हूण तथा शकों के साथ आया बताया गया फिर महाभारत में मूसल पर्व में वर्णित अभीर कहाँ से आ गये.

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