गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

इतिहास में पूर्वाग्रह के स्थल ...

प्रत्येक काल में इतिहास पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर लिखा जाता रहा है ;
आधुनिक इतिहास हो या फिर प्राचीन इतिहास या पौराणिक आख्यानकों में वर्णित कल्पना रञ्जित कथाऐं 
सभी में लेखकों के पूर्वाग्रह समाहित रहे हैं ।
भारतीय पुराणों अथवा मिथकों में यह पूर्वाग्रह यादवों को हेय व हीन वर्णित करने के रूप में आया ।
और अहीरों की पक्षपात विरोधी प्रवृत्ति के कारण या 'कहें' उनका बागी प्रवृत्ति के कारण 
भारतीय पुरोहित वर्ग ने अहीरों को (Criminal tribe ) अापराधिक जन-जाति के रूप में अथवा दुर्दान्त हत्यारों  और लूटेरों के रूप में भी वर्णित किया है। 

पता नहीं ब्राह्मण इतिहासकारों की कौन सी भैंस अहीरों ने चुरा ली थी ।

विदित हो की यादवों ने अपने अधिकारों और अस्मिता के लिए दस्यु या डकैटी को तो अपनाया था ।
'परन्तु चौरी करना डकैटी करना या डकैट होना  गरीबों की सम्पत्ति चुराना कभी नहीं है ।

और चोर और डकैट एक दूसरे समानार्थक शब्द कदापि नहीं हैं 
अपने अधिकारों को छीनने वाला डकैट है ; तो चोर वह है जो विना किसी की इजाज़त के उसकी वस्तु को छुपा ले ...

डकैटी नीति परक है ।
 डकैट चुराते कभी नहीं वह छीनते हैं और वह भी उन शोषकों से  जिन्होंने गरीबों के हक मार लिए हैं ।

दस्यु यदि हेय हैं यदि ऐसी होता तो महाभारत में दस्युओं की प्रसंशा नहीं की जाती ।
दस्यु वे विद्रोही थे जिन्होंने कभी भी किसी की अधीनता स्वीकार  करके उनके द्वारा लागू किए गये अनुचित कानून को ना माना हो ।

अपितु  ऐसे विद्रोही हर युग और हर समाज में अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए सदैव से बनते रहे हीे हैं ।
और अागे भी बनते रहेंगे !

और यह भी सर्वविदित है कि 
 इतिहास कार भी विशेष समुदाय वर्ग के ही आश्रित थे ।
उस वर्ग के जो समाज पर सदीयों से अपना वर्चस्व स्थापित कर के समाज के निम्न और मध्य वर्गों पर शासन करते थे ।

उनकी सुन्दर कन्याओं और स्त्रीयों को अपनी वासना पूर्ति के लिए तत्काल तलब कर लेते थे ।
 इसलिए अहीरों ने दासता स्वीकार 'न करके दस्यु बनना बहतर समझा !

क्यों की वीर अथवा यौद्धा कभी असमानता मूलक सामाजिक अव्यवस्थाओं से समझौता नहीं करते हैं ।

अहीरों के विषय में निम्न सोच रखने वाले  तथा केवल नकारात्मक ऐैतिहासिक विवरण पढ़ने वाले गधों से अधिक कुछ और नहीं हैं।

अहीर क्रिमिनल ट्राइब कदापि  नही हैं अपितु विद्रोही ट्राइब अवश्य रही है ; 
और विद्रोही या  क्रान्तकारीयों को विरोधी लोग  लूटेरा या आतंकवादी तो कहेंगे ही ... 

इन अहीरों की श्रृँखला में में गूजर तथा जाटों की भी लम्बी फेहरिस्त है ।
वे भी इतिहास में उपेक्षित रहे पश्चिमी एशिया में ये तीनों जनजातियाँ सजातीय और सहवर्ती के रूप में अवर , कज्जर और गेटे (जेटे) के रूप में विद्यमान रहीं हैं ।

आज भी तीनों जनजातियाँ एक दूसरे को समानता का दर्जा देती हैं ।
यहाँ हम बात अहीरों के विषय में करते हैं ।
अहीर बागी थे वो भी अत्याचारी शासन व्यवस्थाओं  के खिलाफ ,
क्योंकि इतिहास भी शासन के प्रभाव में ही लिखा जाता था इसी लिए इसकी निश्पक्षता 
सन्दिग्ध है ।
 और कोई शासक इसीलिए विद्रोहियों को सन्त तो कहेगा नहीं
और 'न ही उसको सम्मानित दर्जा ही देगा ।

 परन्तु जनता भी क्यूँ सच मान लेती है इन सारी काल्पनिक बातों को! यही समझ में नहीं आती  ? 
सम्भवत: जनता में भी वर्चस्व वादीयों की धाक होती है ।

 नकारात्मक रूप से ऐसी ऊटपेटांग बातें आजादी के बाद यादवों के बारे में वर्ण-व्यवस्था के अनुमोदकों ने ही पूर्व-दुराग्रहों से ग्रसित होकर लिखीं ।

क्यों की उन्हें उनसे खतरा था कि ये तो सबकी समानता के पक्षधर हैं ।
तो हमारी स्वार्थ वत्ता कैसे सिद्ध होती रहेंगी ?
हमारी गुलामी कौन करेगा ?
जो हमारी परम्परागत विरासत है ।

परन्तु यथार्थोन्मुख सत्य तो ये है कि यादवों ने ना कभी कोई  अापराधिक कार्य अपने स्वार्थ या अनुचित माँगों को मनवाने के लिए किया हो !

 कोई तोड़ फोड़ कभी  की हो ! और ना ही -गरीबों की -बहिन बेटीयों  को सताया हो ।
गरीबों को अपना हमकदम अपना भाई ही माना 

केवल कुकर्मीयों , व्यभिचारीयों के खिलाफ विद्रोह अवश्य किया, वो भी हथियार बन्ध होकर ,
इसे डकैटी या लूट कहो तो अतिरञ्जना है ।

यादवों का विद्रोह शासन और उस  शासक के खिलाफ रहा हमेशा से , जिसने समाज का शोषण किया हो 'न कि आम लोगों के खिलाफ !

जनता को सोचना-समझना चाहिए ! 
न कि बोगस( बुल्गर) लोगो के कहने पर विश्वास करना चाहिए !

जिस प्रकार से आज समाज में अहीरों के खिलाफ सभी रूढ़ि वादी समुदाय एक जुट हो गये हैं ।
और उन्हें घेरने की कोशिश करते हैं 
नि: सन्देह यह भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है 

क्यों की हर क्रिया की प्रतिक्रियाऐं शाश्वत हैं ।
जो धूल को ठोकर मार कर यह सोचते हैं की हम बादशह हैं तो वह धूल उन्हीं के सिर पर बैठती है ।
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पुष्यमित्र सुंग कालीन पुरोहितों ने मौखिक रूप से तो अहीरों को हीन और हेय सिद्ध करने के लिए  पदे- पदे 
 दुष्चेष्टा की ही अपितु उनको पूर्ण रूप से हीन बनाने के लिए उनकी वंश उत्पत्ति भी बेतुकी और अनार -सनाप तर्क हीन पद्धति से कर डाली ।

अहीरों की उत्पत्ति कभी अम्बष्ठ कन्या में ब्राह्मण की अवैध सन्तान के रूप में की ; तो कभी माहिष्य कन्या में ब्राह्मण के द्वारा अवैध सन्तान के रूप में कर डाली ।
ऐसा इस लिए कि अहीर कभी भी ब्राह्मणों से अधिक पूजनीय न हो जाऐं ।

क्यों की पश्चिमी एशिया फलिस्तीन,  इज़राएल आदि के मिथकों में अहीर  अबीर के रूप में ईश्वरीय सत्ता के रूप हैं ।
इतनी ही नहीं भारतीय पुराणों विशेषत : हरिवंशपुराण अग्निपुराण पद्म-पुराण आदि ग्रन्थों में अहीरों को  गोप रूप में देवों का अवतार ही वर्णित किया है ।

ब्राह्मण अहीरों की प्रतिष्ठा से आशंकित थे कि कहीं ये ब्राह्मण धर्म के वर्चस्व को धूमिल 'न कर दें 
इस लिए सबसे ज्यादा ब्राह्मण समाज 'ने अहीरों को ही हीन, शूद्र और वर्ण संकर जाति के रूप वर्णित किया 'परन्तु ये मूर्ख यह भी भूल गये कि बादलों से सूर्य कुछ पल के लिए छिप सकता है हमेशा के लिए नहीं ...

इन मूर्खो ने नये चमत्कारिक ढ़ंग से अहीरों की उत्पत्ति एक ब्राह्मण के द्वारा दो स्त्रियों में बता दी ...
जो पूर्ण रूपेण अवैज्ञानिक और हास्यापद है ।

तात्पर्यं दो स्त्रीयों में एक ही ब्राह्मण के द्वारा जो एक सन्तान हुई वह आभीर है ।
'परन्तु ये असम्भव है आज तक एक स्त्री में अनेक पुरुषों द्वारा सन्तानें उत्पन्न सुनी थी और सम्भवत भी थीं 'परन्तु यहाँ तो 
अम्बष्ठ कन्या और माहिष्य कन्या में एक ही सन्तान आभीर उत्पन्न हो गये ।

 विदित हो की अम्बष्ठ और माहिष्य दौनों ही अलग अलग जनजातियाँ हैं

माहिष्यजनजाति स्मृतियों के अनुसार एक संकर जाति है विशेष—याज्ञवल्क्य स्‍मृति इसे क्षत्रिय पिता और वैश्या माता की औरस संतान मानती है । 
तो आश्रलायन इसे सुवर्ण नामक जाति से करण जाति की माता में उत्पन्न सन्तान मानती है ।

 सह्याद्रि खण्ड में इसको यज्ञोपवीत  आदि संस्कारों का वैश्यों के समान ही अधिकारी कहा हैं; ।
पर आश्वलायन इसे यज्ञ करने का निषेध करते हैं ।

 इस जाति के लोग अब तक बालि द्वीप में मिलते हैं और अपने को माहिष्य क्षत्रिय कहते हैं ।
 संभवत: ये लोग किसी समय महिष- मंडल देश के रहनेवाले होंगे ।
अब यही गड़बड़ है कि सभी स्मृतियों के विधान भी परस्पर विरोधाभासी व भिन्न-भिन्न हैं ।

अब अम्बष्ठ नामक वर्णसंकर जाति का उल्लेख भी देखें इनका वर्णन महाभारत में हुआ है। 
यह वैश्य स्त्री  और ब्राह्मण के वीर्य से उत्पन्न सन्तान थी।
नीचे सन्दर्भ सूची देखें👇
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस.पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 126 |
'परन्तु ये असम्भव है ! 

अहीरों का गोपालन वृत्ति मूलक विशेषण गोप भी है ।
गोपो की उत्पत्ति के विषय में ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है।👇

कृष्णस्य  लोमकूपेभ्य: सद्यो गोपगणो मुने:
आविर्बभूव रूपेण वैशैनेव च तत्सम:।
              (ब्रह्म-वैवर्त पुराण अध्याय -5 श्लोक 41)
अर्थात कृष्ण के रोमकूपों से गोपोंं की उत्पत्ति हुई है , जो रूप  और वेश में उन्हीं कृष्ण के समान थे ।

और जब भगवान की नंद राय से बात हुई है तब उन्होनें नन्द से कहा !
"हे वैश्येन्द्र सति कलौ न नश्यति वसुन्धरा "
     ब्रह्म-पुराण 128/33
है वैश्यों के मुखिया कलि का आरम्भ होने से कलि धर्म प्रचलित होंगेे ।
पर वसुन्धरा नष्ट नहीं होगी ।
इसमें नन्द जी का वैश्य होना पाया जाता है ।
परन्तु हरिवंश पुराण में तो 👇

और यह श्रेणि पुरोहितों ने गो-पालन वृत्ति के कारण दी थी  तो ध्यान रखना चाहिए कि चरावाहे ही किसान हुए।
तो क्या किसान क्षत्रिय न होकर वैश्य हुए।
क्यों कि गाय-भैंस सभी किसान पालते हैं ।
क्या वे वैश्य हो गये ?
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धूर्त पुरोहितों ने द्वेष वश यादवों का इतिहास विकृत किया अन्यथा विरोधाभास और भिन्नता का सत्य के रूप निर्धारण में  स्थान हि कहाँ ?
क्यों की झूँठ बहुरूपिया तो सत्य हमेशा एक रूप ही होता है। 

परन्तु कृष्ण जी जब नंद राय के घर थे तब उनके संस्कार को नंद जी के पुरोहित ना आए गर्ग जी को वसु देव जी ने भेजा यह बड़े आश्चर्य की बात है !
नन्द के पुरोहित साण्डिल्य भी गर्ग के शिष्य थे।
यही कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ के पुरोहित भी थे।

तो इसमें भेद निरूपण नहीं होता कि यादवों के पुरोहित गर्गाचाय थे और अहीरों के शाण्डिल्य ! 
जैसा कि कुछ धूर्त अल्पज्ञानी भौंका करते हैं ।

परन्तु उसी पुराण में लिखा है कि जब श्रीकृष्ण गोलोक को गए तब सब गोपोंं को साथ लेते गए और अमृत दृष्टि से दूसरे गोपो से गोकुल को पूर्ण किया जता है।
वस्तुत यहाँं सब विकृत पूर्ण कल्पना मात्र है ।👇

योगेनामृतदृष्ट्या च कृपया च कृपानिधि:।
गोपीभिश्च तथा गोपै: परिपूर्णं चकार स:।। 
(ब्रह्म-वैवर्त पुराण)

क्यों कि यदि गोप वैश्य ही होते तो कृष्ण की नारायणी सेना के यौद्धा कैसे बन गये।
जिन्होनें ने अजुर्न -जैसे यौद्धा को परास्त कर दिया।

अब सत्य तो यह है कि जब धूर्त पुरोहितों ने किसी जन-जाति से द्वेष किया तो 
उनके इतिहास को निम्न व विकृत करने के लिए
कुछ काल्पनिक उनकी वंशमूलक उत्पत्ति कथाऐं ग्रन्थों में लिखा दीं ।
क्यों कि जिनका वंश व उत्पत्ति का ज्ञान होने पर 
ब्राह्मणों से उनकी गुप्त या अवैध उत्पत्ति कर डाली ।
ताकि वे हमेशा हीन बने रहें !

-जैसे यूनानीयों की उत्पत्ति 
क्षत्रिय पुरुष और शूद्रा स्त्री ( गौतम-स्मृति)

पोलेण्ड वासी (पुलिन्द) वैश्य पुरुष क्षत्रिय कन्या।(वृहत्पाराशर -स्मृति)

आभीर:- ब्राह्मण पुरुष-अम्बष्ठ कन्या।
आभीरो८म्बष्ठकन्यायाम् मनुःस्मृति 10/15
अब दूसरी -स्मृति में अाभीरों की उत्पत्ति का भिन्न जन-जाति की कन्या से  है कि
"महिष्यस्त्री ब्राह्मणेन संगता जनयेत् सुतम् आभीर ! 
तथैव च आभीर पत्न्यमाभीरमिति ते विधिरब्रवीत् (128-130)
माहिष्य की स्त्री में ब्राह्मण द्वारा जो पैदा हो वह आभीर है।

तथा ब्राह्मण द्वारा अाभीर पत्नी में भी अाभीर ही उत्पन्न होता है ।
अब कल्पना भी मिथकों का आधार है 
सत्य सदैव सम और स्थिर होता है जबकि असत्य बहुरूपिया और विषम होता है ।

यह तो सभी बुद्धिजीवियों को विदित ही है । ।
अत: एक -स्मृति कहती है की ब्राह्मण द्वारा माहिष्य स्त्री में आभीर उत्पन्न होता है।

और दूसरी -स्मृति कहती है कि अम्बष्ठ की स्त्री में ब्राह्मण द्वारा उत्पन्न आभीर है ।

अब देखिए माहिष्य और अम्बष्ठ अलग अलग जातियाँ हैं 
स्मृतियों और पुराणों में भी 👇
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ब्राह्मणाद्वैश्यकन्यायामम्बष्ठोनाम जायते मनुःस्मृति “
( ब्राह्मण द्वारा वैश्य कन्या में उत्पन्न अम्बष्ठ है ।

क्षत्रेण वैश्यायामुत्पादितेमाहिष्य: 
( क्षत्रिय पुरुष और वैश्य कन्या में उत्पन्न माहिष्य है वैश्यात्ब्राह्मणीभ्यामुत्पन्नःमाहिष कथ्यते।
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ब्राह्मणादुग्रकन्यायां आवृतो नाम जायते ।आभीरोऽम्बष्ठकन्यायां आयोगव्यां तु धिग्वणः ।।10/15
आर्य्य समाजी विद्वान मनुःस्मृति के इस श्लोक को प्रक्षिप्ति मानते हैं ।

जबकि हम तो सम्पूर्ण 
मनुःस्मृति को ही प्रक्षिप्त मानते हैं ।

क्यों बहुतायत से मनुःस्मृति में प्रक्षिप्त रूप ही है ।
तो शुद्ध रूप कितना है ?

क्यों कि मनुःस्मृति पुष्य-मित्र सुंग के परवर्ती काल खण्ड में जन्मे सुमित भार्गव की रचना है ।

यदि मनुःस्मृति मनु की रचना होती तो इसकी भाषा शैली केवल उपदेश मूलक विधानात्मक होती ;  

परन्तु इसमें ऐैतिहासिक शैली का प्रयोग सिद्ध करता है कि यह तत्कालीन उच्च और वीर यौद्धा जन-जातियों को निम्न व हीन या वर्ण संकर बनाने के लिए 'मनु के नाम पर लिखी गयी।

परन्तु इन श्लोकों की शैली ऐतिहासिक है ।
'वह भी कल्पना प्रसूत जैसा कि 
आर्य्य समाज के कुछ बुद्धिजीवी इस विषय में निम्नलिखित कुछ उद्धरण देते रहते हैं 👇
कैवर्त्तमिति यं प्राहुरार्यावर्त्तनिवासिनः ।।
(10/34) मनुःस्मृति
शनकैस्तु क्रियालोपादिमाः क्षत्रियजातयः ।
वृषलत्वं गता लोके ।।
(10/43) 
पौण्ड्रकाश्चौड़द्रविडाः काम्बोजाः यवनाः शकाः ।। (10/44)मनुःस्मृति
द्विजैरुत्पादितान् सुतान सदृशान् एव तानाहुः ।। (10

पुष्यमित्र सुंग कालीन पुरोहितों को जब किसी जन जाति की वंशमूलक उत्पत्ति का ज्ञान 'न होता था तो वे उसे अजीब तरीके से उत्पन्न होने की कथा लिखते हैं। 

जैसा यह विवरण प्रस्तुत है ।
इतना ही नहीं रूढ़ि वादी अन्ध-विश्वासी ब्राह्मणों ने यूनान वासीयों हूणों,पारसीयों ,पह्लवों ,शकों ,द्रविडो ,सिंहलों तथा पुण्डीरों (पौंड्रों) की उत्पत्ति नन्दनी गाय की यौनि, मूत्र ,गोबर आदि से बता डाली है।👇
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असृजत् पह्लवान् पुच्छात् 
प्रस्रवाद् द्रविडाञ्छकान् 
(द्रविडान् शकान्)।योनिदेशाच्च यवनान् 
शकृत: शबरान् बहून् ।३६।

मूत्रतश्चासृजत् कांश्चित् शबरांश्चैव पार्श्वत: ।
पौण्ड्रान् किरातान् यवनान् 
सिंहलान् बर्बरान् खसान् ।३७। 
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यवन,शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व हेयतापूर्ण व्युत्पत्तियाँ अविश्वसनीय हैं ।
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•नन्दनी गाय ने पूँछ से पह्लव उत्पन्न किये ।

•तथा धनों से द्रविड और शकों को।

•यौनि से यूनानीयों को और गोबर से शबर उत्पन्न हुए।

कितने ही शबर उसके मूत्र ये उत्पन्न हुए उसके पार्श्व-वर्ती भाग से पौंड्र किरात यवन सिंहल बर्बर और खसों की सृष्टि ।३७।

ब्राह्मण -जब किसी जन-जाति की उत्पत्ति-का इतिहास न जानते तो उनको विभिन्न चमत्कारिक ढ़गों से उत्पन्न कर देते । 

अब इसी प्रकार की मनगड़न्त उत्पत्ति अन्य पश्चिमीय एशिया की जन-जातियों की कर डाली है देखें--नीचे👇
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चिबुकांश्च पुलिन्दांश्च चीनान् हूणान् सकेरलान्।
ससरज फेनत: सा गौर् म्लेच्छान् बहुविधानपि ।३८।

इसी प्रकार गाय ने फेन से चिबुक ,पुलिन्द, चीन ,हूण केरल, आदि बहुत प्रकार के म्लेच्छों की उत्पत्ति हुई ।
(महाभारत आदि पर्व चैत्ररथ पर्व १७४वाँ अध्याय)
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भीमोच्छ्रितमहाचक्रं बृहद्अट्टाल संवृतम् ।
दृढ़प्राकार निर्यूहं शतघ्नी जालसंवृतम् ।।

तोपों से घिरी हुई यह नगरी बड़ी बड़ी 
अट्टालिका वाली है ।

(महाभारत आदि पर्व विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व ।१९९वाँ अध्याय )

वाल्मीकि रामायण के बाल काण्ड के चौवनवे सर्ग में वर्णन है कि 👇

-जब विश्वामित्र का वशिष्ठ की गोै को बलपूर्वक ले जाने के सन्दर्भ में दौनों की लड़ाई में हूण, किरात, शक और यवन आदि जन-जाति उत्पन्न होती हैं ।

अब इनके इतिहास को यूनान या चीन में या ईरान में खोजने की आवश्यकता नहीं।
👴...

तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सुरभि: सासृजत् तदा ।
तस्या हंभारवोत्सृष्टा: पह्लवा: शतशो नृप।।18।

राजकुमार उनका 'वह आदेश सुनकर उस गाय ने उस समय वैसा ही किया उसकी हुँकार करते ही सैकड़ो पह्लव जाति के वीर (पहलवान)उत्पन्न हो गये।18।

पह्लवान् नाशयामास शस्त्रैरुच्चावचैरपि।
विश्वामित्रार्दितान् दृष्ट्वा पह्लवाञ्शतशस्तदा ।20।

भूय एवासृजद् घोराञ्छकान् यवनमिश्रतान् ।।
तैरासीत् संवृता भूमि: शकैर्यवनमिश्रतै:।21।।

उन्होंने छोटे-बड़े कई तरह के अस्त्रों का प्रयोग करके उन पहलवानों का संहार कर डाला विश्वामित्र द्वारा उन सैकडौं पह्लवों को पीड़ित एवं नष्ट हुआ देख उस समय उस शबल गाय ने पुन: 
यवन मिश्रित जाति के भयंकर वीरों को उत्पन्न किया उन यवन मिश्रित शकों से वहाँ की सारी पृथ्वी भर गई 20 -21।

ततो८स्त्राणि महातेजा विश्वामित्रो मुमोच ह।
तैस्ते यवन काम्बोजा बर्बराश्चाकुलीकृता ।23।

तब महा तेजस्वी विश्वामित्र ने उन पर बहुत से अस्त्र छोड़े उन अस्त्रों की चोट खाकर वे यवन ,कांबोज और बर्बर जाति के योद्धा व्याकुल हो उठे ।23।।

अब इसी बाल-काण्ड के पचपनवें सर्ग में भी देखें---
कि यवन गाय की यौनि से उत्पन्न होते हैं 
और गोबर से शक उत्पन्न हुए थे ।

योनिदेशाच्च यवना: शकृतदेशाच्छका: स्मृता।
रोमकूपेषु म्लेच्‍छाश्च हरीता सकिरातका:।3।

यौनि देश से यवन शकृत् देश यानि( गोबर के स्थान) से शक उत्पन्न हुए रोम कूपों म्लेच्‍छ, हरित ,और किरात उत्पन्न हुए।3।।

यह सर्व विदित है कि बारूद का आविष्कार चीन में हुआ 
बारूद की खोज के लिए सबसे पहला नाम चीन के एक व्यक्ति ‘वी बोयांग‘ का लिया जाता है।

कहते हैं कि सबसे पहले उन्हें ही बारूद बनाने का आईडिया आया.
माना जाता है कि चीन के "वी बोयांग" ने अपनी खोज के चलते तीन तत्वों को मिलाया और उसे उसमें से एक जल्दी जलने वाली चीज़ मिली.
बाद में इसको ही उन्होंंने ‘बारूद’ का नाम दिया.

300 ईसापूर्व में ‘जी हॉन्ग’ ने इस खोज को आगे बढ़ाने का फैसला किया और कोयला, सल्फर और नमक के मिश्रण का प्रयोग बारूद बनाने के लिए किया.

इन तीनों तत्वों में जब उसने पोटैशियम नाइट्रेट को मिलाया तो उसे मिला दुनिया बदल देने वाला ‘गन पाउडर‘ बन गया ।
बारूद का वर्णन होने से ये मिथक अर्वाचीन हैं ।

अब ये काल्पनिक मनगड़न्त कथाऐं किसी का वंश इतिहास हो सकती हैं ।

हम एसी नकली ,बेबुनियाद  आधार हीन मान्यताओं का शिरे से खण्डन करते हैं ।

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जय श्री कृष्णाय नम:  !
समर्पण उनको  जो अपनी बेवाक -विचार धारा के लिए किसी से समझौता नहीं करते हैं ।

वञ्चित समाज के उत्थान में अहर्निश संघर्ष करने वाले 
साम्यवादी मसीहा हैं ! 
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प्रस्तुति-करण :- यादव योगेश कुमार 'रोहि'
ग्राम-आज़ादपुर 
पत्रालय- पहाड़ीपुर
 जनपद- अलीगढ़---उ०प्र० 8077160219





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