रविवार, 19 अप्रैल 2020

नारायणी सेना के यौद्धा गोप क्षत्रिय ही थे ...


यादवों का गोपालन वृत्ति व्यवसाय मूलक विशेषण गोप है । ये क्षत्रिय तो अपनी वीरता मूलक प्रवृत्ति से हैं ही ✍इसलिए ईसा० पूर्व द्वितीय सदी में संस्कृत भाषा के विद्वानों द्वारा आभीर शब्द की व्युत्पत्ति " आ समन्तात् भियं राति  ददाति शत्रुषु हृत्सु  इति आभीर कथ्यते ।
जो शत्रुओं के हृदय में भय भर दे वह आभीर है ।

 अहीरों का गोपालन वृत्ति मूलक विशेषण है । 
और गोप नारायणी सेना के यौद्धा ही है जो युद्ध को तत्काल फ़तह कर लेते हैं 
जैसा की संस्कृति साहित्य का इतिहास 368 पर गर्गसंहिता के हबाले से लिखा है कि 👇 __________________________________________

अस्त्र हस्ताश़्च धन्वान: संग्रामे सर्वसम्मुखे । 
प्रारम्भे विजिता येन स: गोप क्षत्रिय उच्यते ।।

यादव: श्रृणोति चरितं वै गोलोकारोहणं हरे :
 मुक्ति यदूनां गोपानं सर्व पापै: प्रमुच्यते ।102। _______________________

अर्थात् जिसके हाथों में अस्त्र एवम् धनुष वाण हैं ---जो युद्ध को प्रारम्भिक काल में ही विजित कर लेते हैं वह गोप क्षत्रिय ही कहे जाते हैं । 

जो मनुष्य गोप अर्थात् आभीर (यादवों )के चरित्रों का श्रवण करता है । 
वह समग्र पाप -तापों से मुक्त हो जाता है ।।102।

फिर यह कहना पागलपन है कि कृष्ण यादव थे नन्द गोप थे ।
भागवतपुराण में वर्णित यह विरोधाभासी बकवास स्वयं ही खण्डित हो जाती है । 
भागवतपुराण बारहवीं सदी की पुनारचना है । 
और इसे लिखने वाले कामी व भोग विलास -प्रिय ब्राह्मण थे । पुष्यमित्र सुंग के विधानों का प्रकाशन करने वाला है। 
अब कोई बताएे कि गोप ही गोपिकाओं को लूटने वाले कैसे हो सकते हैं ?
 यदु की गोप वृत्ति को प्रमाणित करने के लिए ऋग्वेद की ये ऋचा सम्यक् रूप से प्रमाण है । ऋग्वेद भारतीय संस्कृति में ही नहीं अपितु विश्व- संस्कृतियों में प्राचीनत्तम है । __________________________________________ 
" उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी
 गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे । (ऋ०10/62/10)
अर्थात् यदु और तुर्वसु नामक दौनों दास गायों से घिरे हुए हैं ; गो-पालन शक्ति के द्वारा सौभाग्य शाली हैं हम उनका वर्णन करते हैं । (ऋ०10/62/10/) 

विशेष:- व्याकरणीय विश्लेषण - उपर्युक्त ऋचा में दासा शब्द प्रथमा विभक्ति के अन्य पुरुष का द्विवचन रूप है । 

क्योंकि वैदिक भाषा ( छान्दस् ) में प्राप्त दासा द्विवचन का रूप पाणिनीय द्वारा संस्कारित भाषा लौकिक संस्कृत में दासौ रूप में है ।
परिविषे:-परित: चारौ तरफ से व्याप्त ( घिरे हुए) स्मद्दिष्टी स्मत् दिष्टी सौभाग्य शाली अथवा अच्छे समय वाले द्विवचन रूप ।
गोपर् ईनसा सन्धि संक्रमण रूप गोपरीणसा :- गो पालन की शक्ति के द्वारा ।

गोप: ईनसा का सन्धि संक्रमण रूप हुआ गोपरीणसा जिसका अर्थ है शक्ति को द्वारा गायों का पालन करने वाला । 
अथवा गो परिणसा गायों से घिरा हुआ यदु: तुर्वसु: च :- यदु और तुर्वसु दौनो द्वन्द्व सामासिक रूप मामहे :- मह् धातु का उत्तम पुरुष आत्मने पदीय बहुवचन रूप अर्थात् हम सब वर्णन करते हैं ।

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अब करणी सेना के राजपूत या मैनपुरी  से कोई चौहान राजपूत अहीरों या यादवों से क्षत्रिय प्रमाण पत्र माग रहा है 
और कोर्ट में मान-हानि का मुकद्दमा करने की धमकी दे रहा है । चौधरी सुधीर यादव को जोकि यदुवंशीयों क्षत्रिय महा सभा के अध्यक्ष हैं ।
हम पहले तो करणी शब्द के आधार करण चारण बंजारों से उनके क्षत्रिय प्रमाण होने के प्रमाण की अपेक्षा करते हैं राजपूत कहाँ क्षत्रिय हैं ।
किस पुराण में विवरण ह उसे दें 

क्यों की —ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार करण वैश्य और शूद्रा से उत्पन्न है और लिखने का काम करते थे यह एक वर्ण संकर ( Hybrid) जन जाति है ।
ब्रह्मवैवर्तपुराणम् में ही दशम अध्याय में राजपूत की उत्पत्ति का वर्णन है ।।

 तिरहुत में अब भी करण पाए जाते हैं । १३. कायस्थों का एक अवांतर भेद ।१४. आसाम, बरमा और स्याम की एक जंगली जाति भी है 
आप पुराणों को व्यास की रचना मानते हो तथा स्मृतियों (धर्मशास्त्रों) में आस्था रखते हो
तो इन ग्रन्थों में राजपूतों की उत्पत्ति इस प्रकार है 👇
_________________________
क्षत्रात्करणकन्यायां राजपुत्रो बभूव ह ।।
राजपुत्र्यां तु करणादागरीति प्रकीर्तितः ।। 
~ब्रह्मवैवर्तपुराणम्/खण्डः १ (ब्रह्मखण्डः)/अध्यायः १० श्लोक ११०

क्षत्रिय पुरुष से करण कन्या में जो पुत्र पैदा होवे उसे राजपूत कहते हैं।

मिश्रित अर्थात् दोगली जाति की स्त्री ।
एक जाति । 
विशेष—ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार करण वैश्य और शूद्रा से उत्पन्न है और लिखने का काम करते थे । तिरहुत में अब भी करण पाए जाते हैं ।

●वैश्य पुरुष और शूद्र कन्या से उत्पन्न हुए को करण कहते हैं और ऐसी करण कन्या से क्षत्रिय के सम्बन्ध से राजपुत्र (राजपूत) पैदा हुआ।
राजा की वैध पुत्र राजकुमार होता है राजपूत नहीं ।
इस लिए राजपूत क्षत्रिय नहीं हो सकता है ।

जो करणी सेना के महाशय अहीरों से क्षत्रिय प्रमाण पत्र माँगते हैं वे अपना क्षत्रियत्व ही सिद्ध करे शास्त्रीय प्रमाणों से क्यो कि 
डिंगल' भाषा-शैली का सम्बन्ध चारण बंजारों से था। जो अब स्वयं को राजपूत कहते हैं।
जैसे जादौन ,भाटी आदि छोटा राठौर और बड़ा राठौर के अन्तर्गत समायोजित बंजारे समुदाय हैं ।

राजपूतों का जन्म करण कन्या और क्षत्रिय पुरुष के द्वारा हुआ यह ब्रह्मवैवर्त पुराण के दशम् अध्याय में वर्णित है । 
परन्तु ये मात्र मिथकीय मान्यताऐं हैं 
जो अतिरञ्जना पूर्ण हैं ।
👇

इसी करण कन्या को चारणों ने करणी माता के रूप में अपनी कुल देवी स्वीकार कर लिया है ।
जिसका विवरण हम आगे देंगे -

ब्रह्मवैवर्त पुराण में राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में वर्णन है।👇

< ब्रह्मवैवर्तपुराणम्‎ (खण्डः १ -(ब्रह्मखण्डः)
← अध्यायः ०९ ब्रह्मवैवर्तपुराणम्
अध्यायः १०

क्षत्रात्करणकन्यायां राजपुत्रो बभूव ह ।। 
राजपुत्र्यां तु करणादागरीति प्रकीर्तितः।। 
1/10।।

"ब्रह्म वैवर्तपुराण में राजपूतों की उत्पत्ति क्षत्रिय के द्वारा करण कन्या से बताई "🐈
करणी मिश्रित या वर्ण- संकर जाति की स्त्री होती है 
ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार करण जन-जाति वैश्य पुरुष और शूद्रा-कन्या से उत्पन्न है।
और करण लिखने का काम करते थे ।
ये करण ही चारण के रूप में राजवंशावली लिखते थे ।
एेसा समाज-शास्त्रीयों ने वर्णन किया है ।

तिरहुत में अब भी करण पाए जाते हैं ।
लेखन कार्य के लिए कायस्थों का एक अवान्तर भेद भी करण कहलाता है  ।

करण नाम की एक आसाम, बरमा और स्याम की  जंगली जन-जाति है ।

क्षत्रिय पुरुष से करण कन्या में जो पुत्र पैदा होता उसे राजपूत कहते हैं।

वैश्य पुरुष और शूद्रा कन्या से उत्पन्न हुए को करण कहते हैं ।

और ऐसी करण कन्या से क्षत्रिय के सम्बन्ध से राजपुत्र (राजपूत) पैदा हुआ।

वैसे भी राजा का  वैध पुत्र राजकुमार कहलाता था राजपुत्र नहीं  ।
इसी लिए राजपूत शब्द ब्राह्मणों की दृष्टि में क्षत्रिय शब्द की अपेक्षा हेय है ।

चारण जो कालान्तरण में राजपूतों के रूप में ख्याति-लब्ध हुए और अब इसी राजपूती परम्पराओं के उत्तराधिकारी हैं ।

करणी चारणों की कुल देवी है ।
जिसका मिथकीय परिचय इस प्रकार है ।🚩

करणी मांँ एक सामान्य ग्रामीण कन्या थी लेकिन उनके संबंध में अनेक चमत्कारी घटनाएं भी जुड़ी बताई जाती हैं, जो उनकी उम्र के अलग-अलग पड़ाव से संबंध रखती हैं।

किंवदन्तियों के अनुसार बताते हैं कि संवत 1595 की चैत्र शुक्ल नवमी गुरुवार को  करणी माँ ज्योति में लीन हो गयी ।

संवत 1595 की चैत्र शुक्ला 14वीं  से राजस्थान के राजपूतों में श्री करणी माता की  पूजा आज तक होती चली आ रही है।

करणी  का जन्म चारण बंजारों के कुल में विक्रम संवत :- 14 44 अश्विनी शुक्ल सप्तमी शुक्रवार तदनुसार 20 सितम्बर, 1387 ई०  को सुआप (जोधपुर) में मेहाजी किनिया चारण के घर में हुआ था।

करणी ने जन्म लेकर तत्कालीन जांगल प्रदेश को अपनी कार्यस्थली बनाया।सन्दर्भ:-
Deshnok – Kani Mata Temple India, by Joe Bindloss, Sarina Singh, James Bainbridge, Lindsay Brown, Mark Elliott, Stuart Butler. Published by Lonely Planet, 2007. ISBN 1-74104-308-5. Page 257.

और दूसरी बात रही यादवों को क्षत्रिय होने की या 'न होने की तो हम पुराणों से सन्दर्भ प्रस्तुत करते हैं ।
कि यादव गाय पालन भी करते हैं और नारायणी सेना के यौद्धा बन कर क्षत्रिय धर्म का पालन भी करते हैं ।

महाभारत का उद्योग पर्व से उद्धृत निम्नलिखित श्लोकों का अवलोकन करें
जिसमें गोपों या अहीरों को अर्जुन जैसे महान यौद्धा को भी परास्त कर 'ने वाला वर्णित किया है ।👇
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मत्सहननं तुल्यानाँ , गोपानामर्बुद महत् ।
नारायण इति ख्याता सर्वे संग्राम यौधिन: ।107।
नारायणेय: मित्रघ्नं कामाज्जातभजं नृषु ।
सर्व क्षत्रियस्य पुरतो देवदानव योरपि 108।
महाभारत के उद्योग पर्व अ०7,18,22,में 
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जब अर्जुन और दुर्योधन दौनों विपक्षी यौद्धा कृष्ण के पास सहायक मागने के लिए गये तो  श्री कृष्ण ने प्रस्तावित किया कि आप दौनों मेरे लिए समान हो 
आपकी युद्धीय स्तर पर सहायता के लिए एक ओर मेरी  गोपों की नारायणी सेना होगी ! 

और दूसरी और ---मैं  स्वयं नि: शस्त्र  ---जो  अच्छा लगे वह मुझसे मांगलो ! 
तब स्थूल बुद्धि दुर्योधन ने कृष्ण की नारायणी गोप सेना को माँगा ! 
और अर्जुन ने स्वयं कृष्ण को !
गोप अर्थात् अहीर निर्भीक यदुवंशी यौद्धा तो थे ही 
इसी लिए दुर्योधन ने उनका ही चुनाव किया!
यही कारण था कि गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर लूट किया था । 

क्योंकि नारायणी सेना को ये यौद्धा दुर्योधन को पक्ष में थे । 
और यादव अथवा अहीर किसी को साथ विश्वास घात नहीं करते थे ।
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गर्ग संहिता अश्व मेध खण्ड अध्याय 60,41,में यदुवंशी गोपों ( अहीरों) की सुनने और गायन करने से मनुष्यों को सब पार नष्ट हो जाते हैं । 

और यही भाव कदाचित महाभारत के मूसल पर्व में आभीर शब्द के द्वारा वर्णित किया गया है ।
परन्तु कालान्तरण में स्मृति-ग्रन्थों में गोपों को शूद्र रूप में वर्णित करना यादवों के प्रति द्वेष भाव को ही इंगित करती है ।
_______
गोप शूद्र नहीं अपितु स्वयं में क्षत्रिय ही हैं ।
जैसा की गर्गसंहिता के हबाले से  संस्कृति साहित्य का इतिहास 368 पर वर्णित किया है ।
कि गोप हाथों धनुष वाण लेकर संग्राम (युद्ध) में सबको सामने ही विजय प्राप्त कर लेते हैं ।

अस्त्र हस्ताश़्च धन्वान: संग्रामे सर्वसम्मुखे ।
प्रारम्भे विजिता येन स: गोप क्षत्रिय उच्यते ।।

यादव: श्रृणोति चरितं वै गोलोकारोहणं हरे :
मुक्ति यदूनां गोपानं सर्व पापै: प्रमुच्यते ।102।

अब महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण में वसुदेव को गोप ही कहा गया है। 
और कृष्ण का जन्म भी गोप (आभीर) जन-जाति में हुआ था; एेसा वर्णन है । 

प्रथम दृष्ट्या तो ये देखें-- कि वसुदेव को गोप कहा है 
"इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेनाहमच्युत ।
गावां कारणत्वज्ञ:कश्यपे शापमुत्सृजन् ।२१
येनांशेन हृता गाव: कश्यपेन महर्षिणा ।
स तेन अंशेन जगतीं गत्वा गोपत्वमेष्यति।२२
द्या च सा सुरभिर्नाम अदितिश्च सुरारिण: 
ते८प्यमे तस्य भार्ये वै तेनैव सह यास्यत:।।२३
ताभ्यां च सह गोपत्वे कश्यपो भुवि संस्यते।
स तस्य कश्यस्यांशस्तेजसा कश्यपोपम: ।२४
वसुदेव इति ख्यातो गोषु तिष्ठति भूतले ।
गिरिगोवर्धनो नाम मथुरायास्त्वदूरत: ।२५।
तत्रासौ गौषु निरत: कंसस्य कर दायक:।
तस्य भार्याद्वयं जातमदिति सुरभिश्च ते ।२६।
देवकी रोहिणी देवी चादितिर्देवकी त्यभृत् ।२७।
सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति।
गीता प्रेस गोरखपुर की हरिवंश पुराण 'की कृति में 
श्लोक संख्या क्रमश: 32,33,34,35,36,37,तथा 38 पर देखें--- अनुवादक पं० श्री राम नारायण दत्त शास्त्री पाण्डेय "राम" "ब्रह्मा जी का वचन " नामक  55 वाँ अध्याय।
अनुवादित रूप :-हे विष्णु ! महात्मा वरुण के ऐसे वचनों को सुनकर तथा इस सन्दर्भ में समस्त ज्ञान प्राप्त करके भगवान ब्रह्मा ने कश्यप को शाप दे दिया और कहा 
।२१। कि  हे कश्यप  अापने अपने जिस तेज से  प्रभावित होकर उन गायों का अपहरण किया ।
उसी पाप के प्रभाव-वश होकर भूमण्डल पर तुम अहीरों (गोपों)का जन्म धारण करें ।२२। 

तथा दौनों देव माता अदिति और सुरभि तुम्हारी पत्नीयाें के रूप में पृथ्वी पर तुम्हरे साथ जन्म धारण करेंगी।२३।
इस पृथ्वी पर अहीरों ( ग्वालों ) का जन्म धारण करें ।
यहाँ नीचे पुराणों से प्रमाण है कि हैहयवंश यादव वंश का सहस्रबाहु चक्रवर्ती सम्राट भी था ।

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