सोमवार, 7 जुलाई 2025

अत्रि/ चंद्रमा/ बुध /और इला 🙏योगेश रोहि- शोधित सत्य परख व्याख्या गुरु को समर्पित 🌺🌹 🛐🙏

🙏        अत्रि/ चंद्रमा/ बुध /और इला       🙏
योगेश रोहि- शोधित सत्य परख व्याख्या गुरु को समर्पित 🌺🌹 🛐🙏

1. अत्रि और चंद्रमा की उत्पत्ति
प्रश्न का आधार- यह दावा कि चंद्रमा की उत्पत्ति अत्रि और अनुसूया से नहीं हुई, बल्कि यह एक काल्पनिक धारणा है, और चंद्रमा का उद्भव विराट् पुरुष विष्णु के मन से हुआ है। साथ ही, वैदिक और पौराणिक साहित्य में अत्रि को अग्नि और तुरीय अवस्था से जोड़ा गया है। गायत्री गोविल अथवा नरेन्द्र सेन अहीर की पुत्री थीं।
और अत्रि नें ब्रह्मा के साथ गायत्री माता कहकर सम्बोधित किया तो अहीरों( गोपों) का गोत्र अत्रि कैसे हुआ। वस्तुत: अत्रि के साथ अहीरों का यही संयोग है कि अत्रि आभीर कन्या के  विवाह में होता( मुख्य ऋत्विक होने से ही अत्रि से गुरु गोत्र  अत्रि है।

वैदिक और पौराणिक संदर्भों का विश्लेषण
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1.1. ब्रह्मवैवर्त पुराण (ब्रह्मखण्ड, अध्याय -22)
श्लोक- 
 त्रिगुणायां प्रकृत्यां त्रिर्विष्णावश्च प्रवर्त्तते। 
 तयोर्भक्तिः समा यस्य तेन बालोऽत्रिरुच्यते।। १५।। 
 अनुवाद- 
 त्रिगुणात्मक प्रकृति का वाचक "त्रि" और विष्णु का "अ" है। इन दोनों में समान भक्ति रखने वाले मुमुक्षु बालक को अत्रि कहा जाता है। 
 टिप्पणी- 
 जब तक चेतना मनोमय कोश तक सीमित रहती है, तब तक वह तीन रूपों—भावनामय, क्रियामय, और ज्ञानमय—में बंटी रहती है। 

विज्ञानमय कोश में पहुंचने पर चेतना एकाकार हो जाती है, जहां प्रकृति के तीनों गुणों (सत्त्व, रजस, तमस) का वियोग होता है। इसे अ+त्रि = अत्रि कहा गया है। 

विश्लेषण -यह श्लोक अत्रि को एक आध्यात्मिक अवस्था के रूप में प्रस्तुत करता है, न कि केवल एक भौतिक ऋषि के रूप में। अत्रि का अर्थ है वह जो तीनों गुणों से परे है, अर्थात् तुरीय अवस्था (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति से परे)। यह वैदिक दर्शन में अग्नि (सर्वभक्षी) और चेतना की उच्चतम अवस्था से जोड़ा जाता है। अवेस्ता में अतर (अग्नि) के रूप में इसका उल्लेख इसकी पुष्टि करता है। 
इस संदर्भ में, चंद्रमा को अत्रि से उत्पन्न मानना एक प्रतीकात्मक व्याख्या हो सकती है, जो पुराणों में काल्पनिक कथानक के रूप में जोड़ी गई हो।

1.2. ऋग्वेद (मण्डल 5, सूक्त 40, ऋचा 5-9)

श्लोक 5- यत्त्वा सूर्य स्वर्भानुस्तमसाविध्यदासुरः। अक्षेत्रविद्यथा मुग्धो भुवनान्यदीधयुः ॥ 

अनुवाद-  जब असुर स्वर्भानु (राहु) ने सूर्य को अंधकार से ढक दिया, तब सारे लोक ऐसे दिखाई देने लगे जैसे कोई अपने बहुविध स्वरूप को न जानते हुए मोहग्रस्त हो गया हो। 

सायण भाष्य- 
स्वर्भानु राहु का एक नाम है, जो कश्यप और दनु का पुत्र या हिरण्यकशिपु की बहन सिंहिका से उत्पन्न विप्रचिति का पुत्र माना जाता है। यह ग्रहण का कारण बनता है। 

श्लोक 6- स्वर्भानोरध यदिन्द्र माया अवो दिवो वर्तमाना अवाहन्। 
 गूळ्हं(गुलहम) सूर्यं तमसापव्रतेन तुरीयेण ब्रह्मणाविन्ददत्रिः ॥ 

अनुवाद- जब इंद्र ने स्वर्भानु की माया को दूर किया, तब अत्रि ने अपनी तुरीय ब्रह्म प्रार्थना द्वारा अंधकार में छिपे सूर्य को खोज लिया। 
विश्लेषण- 
यहाँ अत्रि को तुरीय अवस्था (चौथी चेतना) का प्रतीक माना गया है, जो अंधकार (अज्ञान) को हटाकर सूर्य (ज्ञान) को प्रकट करता है। 

श्लोक 8- ग्राव्णो ब्रह्मा युयुजानः सपर्यन्कीरिणा देवान्नमसोपशिक्षन्। 
 अत्रिः सूर्यस्य दिवि चक्षुराधात्स्वर्भानोरप माया अघुक्षत् ॥ 

अनुवाद- अत्रि ने पत्थरों को जोड़कर, देवताओं की स्तुति करके, और उन्हें प्रणाम करके, आकाश में सूर्य का नेत्र स्थापित किया और स्वर्भानु की माया को नष्ट किया। 

श्लोक 9 -यं वै सूर्यं स्वर्भानुस्तमसाविध्यदासुरः। 
अत्रयस्तमन्वविन्दन्नह्यन्ये अशक्नुवन् ॥ 

अनुवाद -सूर्य, जिसे स्वर्भानु ने अंधकार से ढक दिया था, उसे अत्रि के पुत्रों ने पुनः प्राप्त किया; अन्य कोई इसे मुक्त करने में समर्थ नहीं था। 

विश्लेषण - ऋग्वेद में अत्रि को अग्नि और तुरीय अवस्था के रूप में वर्णित किया गया है। स्वर्भानु (राहु) द्वारा सूर्य के ग्रहण का उल्लेख प्रतीकात्मक रूप से अज्ञान द्वारा ज्ञान के आवरण को दर्शाता है। अत्रि की भूमिका इस अज्ञान को हटाने की है। यहाँ चंद्रमा का कोई प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि चंद्रमा को अत्रि से उत्पन्न मानना वैदिक साहित्य में नहीं, बल्कि बाद के पुराणों में जोड़ा गया कथानक हो सकता है।

1.3. ब्रह्माण्ड पुराण (मध्यभाग, तृतीय उपोद्धातपाद, अध्याय 8)  में अत्रि की वंशावली बहुत भिन्न है।
श्लोक 73- अत्रेर्वशं प्रवक्ष्यामि तृतीयस्य प्रजापतेः॥ 

अनुवाद -मैं तीसरे प्रजापति अत्रि के वंश का वर्णन करूंगा। 

श्लोक 74-76- तस्य पत्न्यस्तु सुन्दर्यों दशैवासन्पतिव्रतः। 
भद्राश्वस्य घृताच्यां वै दशाप्सरसि सूनवः ॥ 
भद्रा शूद्रा च मद्रा च शालभा मलदा तथा। 
 बला हला च सप्तैता या च गोचपलाः स्मृताः ॥ 
 तथा तामरसा चैव रत्नकूटा च तादृशः। 
 तत्र यो वंशकृच्चासौ तस्य नाम प्रभाकरः ॥ 

अनुवाद- अत्रि की दस सुंदर पतिव्रता पत्नियां थीं, जो भद्राश्व की पुत्री और घृताची अप्सरा से उत्पन्न थीं। इनके नाम हैं- भद्रा, शूद्रा, मद्रा, शालभा, मलदा, बला, हला, गोचपला, तामरसा, और रत्नकूटा। इनमें से प्रभाकर नामक पुत्र ने वंश को आगे बढ़ाया।  यद्यपि अत्रि का भी नाम ‌सूर्य को स्वर्भानु से मुक्त करने पर प्रभाकर पड़ा - परन्तु दश पत्नीयों से उनके दश पुत्रों में एक प्रभाकर भी था।

श्लोक 77-78- मद्रायां जनयामास सोमं पुत्रं यशस्विनम्। 
 स्वर्भानुना हते सूर्ये पतमाने दिवो महीम् ॥ 
 तमोऽभिभूते लोकेऽस्मिन्प्रभा येन प्रवर्त्तिता। 
 स्वस्ति तेस्त्विति चोक्तो वै पतन्निह दिवाकरः ॥ 

अनुवाद- प्रभाकर (अत्रि) ने मद्रा नामक पत्नी से सोम (चंद्रमा) नामक प्रसिद्ध पुत्र को जन्म दिया। जब स्वर्भानु (राहु) ने सूर्य पर प्रहार किया और वह स्वर्ग से पृथ्वी पर गिर रहा था, तब अत्रि ने अंधकार में प्रकाश उत्पन्न किया और सूर्य से कहा, “तुम्हारा कल्याण हो।” 

श्लोक 79-84- ब्रह्मर्षेर्वचनात्तस्य न पपात दिवो महीम्। 
 यज्ञेष्वनिधनं चैव सुरैर्यस्य प्रवर्तितम्। 
 स तासु जनयामास पुत्रानात्मसमानकान्। 
 दश तान्वै सुमहता तपसा भावितः प्रभुः। 
 स्वस्त्यात्रेया इति ख्याता ऋषयो वेदपारगाः। 
 तेषां द्वौ ख्यातयशसौ ब्रह्मिष्ठौ सुमहौजसौ। 
 दत्तो ह्यनुमतो ज्येष्ठो दुर्वासास्तस्य चानुजः। 
 यवीयसी सुता तेषामबला ब्रह्मवादिनी। 

 अनुवाद- अत्रि के वचनों से सूर्य पृथ्वी पर नहीं गिरा। उन्होंने यज्ञों में देवताओं की मृत्यु को रोका। अत्रि ने दस अप्सराओं से अपने समान दश पुत्र उत्पन्न किए, जो स्वस्त्यात्रेय नाम से विख्यात और वेदों में पारंगत थे। इनमें दत्तात्रेय और दुर्वासा दो  विशेष रूप से प्रसिद्ध थे।  जो उनकी बड़ी पत्नी भद्रा से उत्पन्न हुए थे। उनकी छोटी पुत्री आत्रेयी थी, जो ब्रह्मज्ञान की व्याख्या करती थी। 

विश्लेषण- ब्रह्माण्ड पुराण में चंद्रमा (सोम) को अत्रि और उनकी पत्नी मद्रा से उत्पन्न बताया गया है। 
जबकि भागवत पुराण में और कप अन्य पुराणों में अत्रि की एक पत्नी अनुसूया जो कर्दम ऋषि और देवहूति की पुत्री है। उसको गर्भ से चन्द्रमा की उत्पत्ति ब्रह्मा के अंश रूप में की गयी ।

वैष्णव चन्द्रमा को ब्राह्मण बनाने के लिए यह काल्पनिक कथाऐं कालान्तर में भागवत आदि पुराणों में जोड़ी गयीं। अत: उपर्युक्त 
कथन ऋग्वेद के सिद्धान्त के विपरीत है, जहाँ चन्द्रमा का कोई प्रत्यक्ष संबंध अत्रि से नहीं जोड़ा गया। 
अनुसूया का इस संदर्भ में कोई उल्लेख नहीं है, जो यह दर्शाता है कि अनुसूया से चंद्रमा की उत्पत्ति की कथा बाद में जोड़ी गई हो सकती है। 

अत्रि का सूर्य की रक्षा करने का उल्लेख ऋग्वेद 5/40  से मेल खाता है, जो उनकी आध्यात्मिक शक्ति को दर्शाता है। 

1.4. पुरुष सूक्त (ऋग्वेद, मण्डल 10, सूक्त 90, ऋचा 13-14) 
श्लोक 13 - चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत। 
 मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च प्राणाद्वायुरजायत ॥ 
 
अनुवाद- चन्द्रमा विराट विष्णु के मन से, सूर्य नेत्रों से उत्पन्न हुए ,।
इन्द्र की उत्पत्ति अदिति से होने से विराट् विष्णु से कराना प्रक्षेपण है। अग्नि विराट् विष्णु के मुख से और वायु उनके प्राणों से उत्पन्न हो सकती है। यह सैद्धान्तिक भी है।

 
श्लोक 14- नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत। 
 पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँ अकल्पयन्॥ 
अनुवाद-  नाभि से अंतरिक्ष, शीर्ष से द्युलोक, पैरों से पृथ्वी, और कानों से दिशाएं उत्पन्न हुईं। इस प्रकार लोकों का निर्माण हुआ। 

विश्लेषणष- पुरुष सूक्त स्पष्ट रूप से कहता है कि चंद्रमा विराट् पुरुष (विष्णु) के मन से उत्पन्न हुआ। यह अत्रि से चंद्रमा की उत्पत्ति के दावे का खण्डन करता है। 

शिव के सहस्रनाम में शिव का नाम अत्रि भी है क और चंद्रमा को उनके शिखर पर सुशोभित मानना एक प्रतीकात्मक व्याख्या है, न कि शाब्दिक उत्पत्ति।
1.5. श्रीमद्भगवद्गीता (11.19)
श्लोक- अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्यं मनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम्। 
 पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रं स्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम् ॥ 

अनुवाद-  मैं आपको आदि, मध्य, और अंत से रहित, अनंत प्रभावशाली, अनंत भुजाओं वाले, चंद्रमा और सूर्य रूप नेत्रों वाले, प्रज्वलित अग्नि के समान मुख वाले, और अपने तेज से विश्व को संतप्त करते देखता हूं। 

विश्लेषण- यहाँ चंद्रमा को विष्णु के नेत्रों का हिस्सा बताया गया है, जो उनकी उत्पत्ति को विराट् पुरुष से जोड़ता है। यह अत्रि से उत्पत्ति के दावे को और कमजोर करता है। 

निष्कर्ष- वैदिक साहित्य (ऋग्वेद, पुरुष सूक्त) और गीता में चंद्रमा की उत्पत्ति विराट् पुरुष (विष्णु) के मन से मानी गई है। 

ब्रह्माण्ड पुराण में चन्द्रमा को अत्रि और मद्रा का पुत्र बताया गया है, लेकिन अनुसूया का कोई उल्लेख नहीं है। यह कथा बाद में जोड़ी गयी काल्पनिक कथानक प्रतीत होती है। 
अत्रि को अग्नि और तुरीय अवस्था का प्रतीक माना गया है, न कि चंद्रमा के शाब्दिक जनक के रूप में। 

2. बुध की चंद्रमा से उत्पत्ति-प्रश्न का आधार बुध की उत्पत्ति चंद्रमा से मानी गई कथा (तारा और चंद्रमा के प्रेम और तारकामय युद्ध की कहानी) को काल्पनिक माना गया है। साथ ही, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बुध का चंद्रमा से उत्पन्न होना असंभव है। 

पौराणिक कथा का विश्लेषण
कथा का सार (पुराणों से)- देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा चंद्रमा की सुंदरता पर मोहित हुईं और उनके साथ प्रेम और सहवास में चली गईं। 
बृहस्पति और चंद्रमा के बीच युद्ध (तारकामय युद्ध) हुआ, जिसमें शुक्राचार्य ने चंद्रमा का और अन्य देवताओं ने बृहस्पति का साथ दिया। 
ब्रह्मा ने हस्तक्षेप कर तारा को बृहस्पति को लौटाया। तारा से एक पुत्र बुध का जन्म हुआ, जिसे चंद्रमा का पुत्र माना गया। 
दूसरा मत- चंद्रमा ने तारा का बलात्कार किया, जिससे बुध का जन्म हुआ। 

वैज्ञानिक तथ्य- चंद्रमा  का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का 1.2% और व्यास 3,474 किमी है। 
बुध का व्यास 4,879 किमी है, जो चंद्रमा से 40% अधिक है। 
इस कारण बुध का चंद्रमा से उत्पन्न होना भौतिक रूप से असंभव है। ❌

वैदिक और पौराणिक विश्लेषण- वैदिक साहित्य में बुध की उत्पत्ति का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है। पुरुष सूक्त में चंद्रमा को विराट् पुरुष के मन से उत्पन्न बताया गया है, लेकिन बुध का उल्लेख विराट पुरुष की बुद है। 

इला गोलोके राधायाः कलेवराद् भूता  प्रसूता । बुधेन सह  पुरूरवसित नाम्ना बुधः स्वरात: बुद्धिपतेः प्रजायते  लौकिकोपमासु बुधेले च ज्ञानवाक्शक्तेश्च प्रतिनिधे *।

इला गोलोक में राधा जी की अंशरूपा गोपी है।और बुध को बुद्धि का अधिष्ठाता स्वराट से उत्पन्न बताया गया है। लौकिक उपमानों में  बुध और इला ज्ञान और वाक्शक्ति के प्रतिनिधि हैं।

इन दोनों से पुरूरवा का प्रादुर्भाव एक आदि कवि के रूप में हुआ ।

इला पिन्वते विश्वदानीम् ( ऋग्वेद4/50/8)

इला विश्व का पोषण करती है।

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इस प्रकार, ऋग्वेद में इला का एक बहुआयामी चरित्र है, जो अन्न, पृथ्वी, ज्ञान, और वाणी से संबंधित है, साथ ही यज्ञों और पारिवारिक सम्बन्धों में भी उनकी भूमिका है. ।

परन्तु पुरूरवा की ऐतिहासिकता प्रमाणित है। उसका वर्णन वेद, पुराण और अन्य लौकिक आख्यानों में है। पुरूरवा के गोष (घोष-अथवा गो पालक होने का सन्दर्भ भी वैदिक है।


पुराणों (जैसे भागवत पुराण, विष्णु पुराण) में तारा और चंद्रमा की कथा एक प्रतीकात्मक या काल्पनिक कथानक प्रतीत होती है, जो ग्रहों के बीच संबंधों को मानवीय कहानियों के रूप में प्रस्तुत करती है। 

तारकामय युद्ध का उल्लेख भी पुराणों में मिलता है, लेकिन यह वैदिक साहित्य में अनुपस्थित है, जो इसकी बाद की उत्पत्ति को दर्शाता है। 

निष्कर्ष- बुध की चंद्रमा से उत्पत्ति की कथा पुराणों में एक काल्पनिक कथानक है, जो वैदिक साहित्य में समर्थन नहीं पाती। 

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह असंभव है, क्योंकि बुध का आकार और द्रव्यमान चंद्रमा से अधिक है। 
 यह कथा संभवत- ग्रहों के प्रतीकात्मक संबंधों को दर्शाने के लिए रची गई, जिसमें चंद्रमा (मन) और बुध (बुद्धि)  और इला वाणी को जोड़ा गया। 
3. इला और बुध की कथा-प्रश्न का आधार-इला को बुध की पत्नी मानने की कथा को काल्पनिक और असंभव माना गया है, क्योंकि इला का लिंग परिवर्तन (एक माह पुरुष, एक माह स्त्री) गर्भावस्था की पूर्ण अवधि (9 माह) के लिए स्थिर स्त्रीत्व को असंभव बनाता है। 

पौराणिक कथा का विश्लेषण-
श्रीमद्भागवत पुराण (स्कन्ध 9, अध्याय 1)- 
 श्लोक 8-10- परावरेषां भूतानां आत्मा यः पुरुषः परः। 
 स एवासीदिदं विश्वं कल्पान्ते अन्यत् न किञ्चनप॥ 
 तस्य नाभेः समभवत् पद्मकोषो हिरण्मयः। 
 तस्मिन् जज्ञे महाराज स्वयंभूः चतुराननः ॥ 
 मरीचिः मनसस्तस्य जज्ञे तस्यापि कश्यपः। 
 दाक्षायण्यां ततोऽदित्यां विवस्वान् अभवत् सुतः॥ 
अनुवाद- कल्प के अंत में केवल परम पुरुष ही विद्यमान थे। उनकी नाभि से सुनहरा कमल उत्पन्न हुआ, जिसमें ब्रह्मा का जन्म हुआ। ब्रह्मा के मन से मरीचि, मरीचि से कश्यप, और कश्यप से अदिति के गर्भ से विवस्वान (सूर्य) का जन्म हुआ। 

श्लोक 11-12 -विवस्वान से श्राद्धदेव मनु और श्रद्धा के गर्भ से दस पुत्र हुए- इक्ष्वाकु, नृग, शर्याति, दिष्ट, धृष्ट, करुषक, नरिष्यन्त, पृषध्र, नभग, और कवि। 

श्लोक 13-16- श्राद्धदेव मनु को पुत्र प्राप्ति के लिए वसिष्ठ ने यज्ञ करवाया। श्रद्धा ने पुत्री की याचना की, जिससे इला नामक कन्या का जन्म हुआ। 

श्लोक 17-22- मनु ने वसिष्ठ से शिकायत की कि यज्ञ पुत्र के लिए था, फिर पुत्री क्यों? वसिष्ठ ने पुरोहित की त्रुटि को सुधारते हुए इला को सुद्युम्न (पुरुष) में परिवर्तित किया। 

श्लोक 23-27- सुद्युम्न शिकार के लिए सुकुमार वन (शिव-पार्वती का विहार स्थल) में गया, जहां वह और उसके साथी स्त्री बन गए। 

श्लोक 29-32- पार्वती के लज्जित होने पर शिव ने शाप दिया कि इस वन में प्रवेश करने वाला पुरुष स्त्री बन जाएगा। 

श्लोक 34-35- इला (स्त्री रूप में) को बुध ने देखा और उससे प्रेम किया। इला ने भी बुध को पति स्वीकार किया, और उनके गर्भ से पुरूरवा का जन्म हुआ। 

श्लोक 36-40- वसिष्ठ ने शिव की पूजा की, जिसके फलस्वरूप इला को एक माह पुरुष और एक माह स्त्री का वरदान मिला । 

श्लोक 41-सुद्युम्न के तीन पुत्र हुए- उत्कल, गय, और विमल। 

वाल्मीकि रामायण (उत्तरकाण्ड, सर्ग 87-90) 
सर्ग 87, श्लोक 3-15- इला को कर्दम का पुत्र और बाह्लीक का राजा बताया गया। वह शिकार के लिए वन में गया, जहां शिव-पार्वती के शाप से वह स्त्री बन गया। 

सर्ग 87, श्लोक 16-28- 
इला ने पार्वती से प्रार्थना की, और उसे एक माह पुरुष और एक माह स्त्री बनने का वरदान मिला। 

सर्ग 88- 
इला (स्त्री रूप में) की बुध से भेंट हुई, और उनके प्रेम के फलस्वरूप पुरूरवा का जन्म हुआ। 
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इला गोलोके राधायाः कलेवराद् भूता  प्रसूता । बुधेन सह  पुरूरवसित नाम्ना बुधः स्वरात: बुद्धिपतेः प्रजायते  लौकिकोपमासु बुधेले च ज्ञानवाक्शक्तेश्च प्रतिनिधे *।

इला गोलोक में राधा जी की अंशरूपा गोपी है।और बुध को बुद्धि का अधिष्ठाता स्वराट से उत्पन्न बताया गया है। लौकिक उपमानों में  बुध और इला ज्ञान और वाक्शक्ति के प्रतिनिधि हैं।

इन दोनों से पुरूरवा का प्रादुर्भाव एक आदि कवि के रूप में हुआ ।

इला पिन्वते विश्वदानीम् ( ऋग्वेद4/50/8)

इला विश्व का पोषण करती है।



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इस प्रकार, ऋग्वेद में इला का एक बहुआयामी चरित्र है, जो अन्न, पृथ्वी, ज्ञान, और वाणी से संबंधित है, साथ ही यज्ञों और पारिवारिक सम्बन्धों में भी उनकी भूमिका है. ।

परन्तु पुरूरवा की ऐतिहासिकता प्रमाणित है। उसका वर्णन वेद, पुराण और अन्य लौकिक आख्यानों में है। पुरूरवा के गोष (घोष-अथवा गो पालक होने का सन्दर्भ भी वैदिक है।

   इला की कथा में लिंग परिवर्तन का तत्व प्रमुख है। भागवत पुराण और रामायण दोनों में इला को एक माह पुरुष और एक माह स्त्री बनने का वरदान मिला। 
गर्भावस्था की पूर्ण अवधि (9 माह) के लिए इला का स्थायी स्त्रीत्व असंभव है, क्योंकि वह हर माह लिंग बदलती थी। 
पुरूरवा का जन्म इला और बुध से माना गया है, लेकिन यह कथा प्रतीकात्मक प्रतीत होती है, क्योंकि इला का लिंग परिवर्तन गर्भावस्था की निरंतरता को असंभव बनाता है। 

वाल्मीकि रामायण में इला से बुध के जन्म का विश्लेषण-

मासं स स्त्री तदा भूत्वा रमयत्यनिशं शुदा ।
मासं पुरुषभावेन धर्मबुद्धिं चकार सः ।। ७.८९.२२ ।।

ततः सा नवमे मासि इला सोमसुतात्सुतम् ।
जनयामास सुश्रोणी पुरूरवसमूर्जितम् ।। ७.८९.२३ ।।

जातमात्रं तु सुश्रोणी पितुर्हस्ते न्यवेशयत् ।
बुधस्य समवर्णभमिला पुत्रं महाबलम् ।। ७.८९.२४ ।।

फिर, नौवें महीने में इला ने एक पुत्र को जन्म दिया, जो सोम का पुत्र था।
सुन्दर नितम्बो वाली इला से शक्तिशाली पुरुरवा का जन्म हुआ। 7.89.23।

जैसे ही वह पैदा हुआ, उस सुंदर स्त्री ने उसे उसके पिता बुध  की गोद में रख दिया।
7.89.24 

वाल्मीकि रामायण (81) वाँ सर्ग-
समालचना- उपर्युक्त श्लोक में पुरूरवा के नवम मास में उत्पन्न होने की थ्योरी किस प्रकार एक मास पुरुष और एक मास स्त्री होने पर सम्भव है।
ये दोनों बाते परस्पर विरोधी हैं।
इला के चार माता पिता तो हो नहीं सकते 
क्योंकि भागवत पुराण इला को मनु और श्रद्धा की सन्तान बताते है तो बाल्मीकि रामायण इला को कर्दम ऋषि और देवहूति की पुत्री बताते हैं।
इसमें कोई भी बात सत्य नहीं है।
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वैदिक साहित्य में इला को पृथ्वी, वाणी, या गाय के रूप में प्रतीकात्मक रूप से वर्णित किया गया है। ऋग्वेद में इला को पुरूरवा की माता कहा गया है, लेकिन इसका शाब्दिक अर्थ संदिग्ध है। 

निष्कर्ष- 
 इला और बुध की कथा पुराणों और रामायण में एक काल्पनिक और प्रतीकात्मक कथानक है। 
लिंग परिवर्तन के कारण इला का बुध की पत्नी के रूप में स्थायी संबंध असंभव है। जो वेदों
पुरूरवा का जन्म इस कथा का हिस्सा है, लेकिन यह वैदिक साहित्य में स्पष्ट रूप से समर्थित नहीं है। 

संपूर्ण निष्कर्ष-
1. अत्रि और चंद्रमा -वैदिक साहित्य (ऋग्वेद, पुरुष सूक्त) और गीता में चंद्रमा की उत्पत्ति विराट् पुरुष (विष्णु) के मन से मानी गई है। 
 ब्रह्माण्ड पुराण में चंद्रमा को अत्रि और मद्रा का पुत्र बताया गया, लेकिन अनुसूया का कोई उल्लेख नहीं है। यह कथा बाद में जोड़ा गया काल्पनिक कथानक प्रतीत होता है। 
अत्रि को अग्नि और तुरीय अवस्था का प्रतीक माना गया है, न कि चंद्रमा के शाब्दिक जनक के रूप में। 

2. बुध और चंद्रमा - बुध की चंद्रमा से उत्पत्ति (तारा की कथा) पुराणों में एक काल्पनिक कथानक है, जो वैदिक साहित्य में समर्थन नहीं पाती। 
 - वैज्ञानिक रूप से भी यह असंभव है,❌ क्योंकि बुध का आकार और द्रव्यमान चंद्रमा से अधिक है। 

3. इला और बुध- 
 इला की लिंग परिवर्तन की कथा (भागवत पुराण, रामायण) में पुरूरवा का जन्म बुध और इला से बताया गया है, लेकिन लिंग परिवर्तन के कारण यह शाब्दिक रूप से असंभव है। 
 वैदिक साहित्य में इला को वाणी या पृथ्वी के रूप में प्रतीकात्मक माना गया है। 

चन्द्रमा मन का रूपांतरण बुध बुद्धि का अधिष्ठाता इला वाणी की प्रतिनिध बुद्धि और वाणी की कुशलता से महाकवि ( पुरूरवा) का जन्म होता है। उर्वशी काव्य कीअधिष्ठात्री है।
अहीरों ने काव्य कला और संगीत को अपनी लोक संस्कृति में चरितार्थ किया-आभीर राग और छन्द उनके योगदानों के स्मारक है-
बुध और इला गोपेश्वर श्रीकृष्ण और गोप्येश्वरी राधा जी के अंशों उत्पन्न क्रमश बुद्धि और वाणी के प्रतिनिधि हैं।

अंतिम टिप्पणी- 
वैदिक और पौराणिक साहित्य में अत्रि,चंद्रमा, बुध, और इला की कथाएं प्रतीकात्मक और दार्शनिक अर्थों से युक्त हैं। पुराणों में जो कथानक जोड़े गए, वे संभवतः ग्रहों, चेतना, और आध्यात्मिक अवस्थाओं को मानवीय कहानियों के रूप में प्रस्तुत करने के लिए रचे गए। वैदिक साहित्य इन कथाओं को शाब्दिक रूप में समर्थन नहीं करता, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी ये काल्पनिक प्रतीत होती हैं। 

संदर्भ -
ऋग्वेद (मण्डल 5, सूक्त 40; मण्डल 10, सूक्त 90) 
ब्रह्मवैवर्त पुराण (ब्रह्मखण्ड, अध्याय 22) 
ब्रह्माण्ड पुराण (मध्यभाग, तृतीय उपोद्धातपाद, अध्याय 8) 
श्रीमद्भगवद्गीता (11.19) 
श्रीमद्भागवत पुराण (स्कन्ध 9, अध्याय 1) 
वाल्मीकि रामायण (उत्तरकाण्ड, सर्ग 87-90) 


करूषान् मानवाद् आसन् कारूषाः क्षत्रजातयः ।
 उत्तरापथगोप्तारो ब्रह्मण्या धर्मवत्सलाः ॥१६॥

 धृष्टाद् धार्ष्टमभूत् क्षत्रं ब्रह्मभूयं गतं क्षितौ ।
 नृगस्य वंशः सुमतिः भूतज्योतिः ततो वसुः॥१७ ॥
धृष्ट के धार्ष्ट नामक क्षत्रिय हुए अन्त में वे इसी क्षत्रिय शरीर से ब्राह्मण बन गये।नृग का पुत्र सुमति और सुमति भूतज्योति का पुत्र वसु  हुआ।१७।

नाभागो दिष्टपुत्रोऽन्यः कर्मणा वैश्यतां गतः ।
 भलन्दनः सुतस्तस्य वत्सप्रीतिः भलन्दनात् ॥ २३
दिष्ट का पुत्र नाभाग था जो कर्म से वैश्य हो गया 
इसका पुत्र हुआ भलन्दन और भलन्दन का वत्तप्रीति हुआ।२३।
सन्दर्भ-
भागवत पुराण नवम स्कन्ध अध्याय(2) 

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