शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

इसके पश्चात् अवभृति-नगरी के सात आभीर, दस गर्दभी और सोलह कंक पृथ्वी का राज्य करेंगे।


श्रीमद्भागवतपुराणम्/स्कन्धः १२/अध्यायः १
श्रीमद्भागवतपुराणम्/स्कन्धः ११/अध्याय१-




अथ प्रथमोऽध्यायः 12.1
राजोवाच -
(अनुष्टुप्)
स्वधामानुगते कृष्ण यदुवंशविभूषणे ।
कस्य वंशोऽभवत् पृथ्व्यां एतद् आचक्ष्व मे मुने
श्रीशुक उवाच
योऽन्त्यः पुरञ्जयो नाम भाव्यो बार्हद्रथो नृप
तस्यामात्यस्तु शुनको हत्वा स्वामिनमात्मजम् १।


प्रद्योतसंज्ञं राजानं कर्ता यत्पालकः सुतः
विशाखयूपस्तत्पुत्रो भविता राजकस्ततः २।


नन्दिवर्धनस्तत्पुत्रः पञ्च प्रद्योतना इमे
अष्टत्रिंशोत्तरशतं भोक्ष्यन्ति पृथिवीं नृपाः ३।


शिशुनागस्ततो भाव्यः काकवर्णस्तु तत्सुतः
क्षेमधर्मा तस्य सुतः क्षेत्रज्ञः क्षेमधर्मजः ४।


विधिसारः सुतस्तस्या जातशत्रुर्भविष्यति
दर्भकस्तत्सुतो भावी दर्भकस्याजयः स्मृतः ५।


नन्दिवर्धन आजेयो महानन्दिः सुतस्ततः
शिशुनागा दशैवैते सष्ट्युत्तरशतत्रयम् ६।


समा भोक्ष्यन्ति पृथिवीं कुरुश्रेष्ठ कलौ नृपाः
महानन्दिसुतो राजन्शूद्रा गर्भोद्भवो बली ७।


महापद्मपतिः कश्चिन्नन्दः क्षत्रविनाशकृत्
ततो नृपा भविष्यन्ति शूद्र प्रायास्त्वधार्मिकाः ८।


स एकच्छत्रां पृथिवीमनुल्लङ्घितशासनः
शासिष्यति महापद्मो द्वितीय इव भार्गवः ९।


तस्य चाष्टौ भविष्यन्ति सुमाल्यप्रमुखाः सुताः
य इमां भोक्ष्यन्ति महीं राजानश्च शतं समाः १०।


नव नन्दान्द्विजः कश्चित्प्रपन्नानुद्धरिष्यति
तेषां अभावे जगतीं मौर्या भोक्ष्यन्ति वै कलौ ११।


स एव चन्द्र गुप्तं वै द्विजो राज्येऽभिषेक्ष्यति
तत्सुतो वारिसारस्तु ततश्चाशोकवर्धनः १२।


सुयशा भविता तस्य सङ्गतः सुयशःसुतः
शालिशूकस्ततस्तस्य सोमशर्मा भविष्यति
शतधन्वा ततस्तस्य भविता तद्बृहद्रथः १३।


मौर्या ह्येते दश नृपाः सप्तत्रिंशच्छतोत्तरम्
समा भोक्ष्यन्ति पृथिवीं कलौ कुरुकुलोद्वह १४।


अग्निमित्रस्ततस्तस्मात्सुज्येष्ठो भविता ततः
वसुमित्रो भद्रकश्च पुलिन्दो भविता सुतः १५।


ततो घोषः सुतस्तस्माद्वज्रमित्रो भविष्यति
ततो भागवतस्तस्माद्देवभूतिः कुरूद्वह १६।


शुङ्गा दशैते भोक्ष्यन्ति भूमिं वर्षशताधिकम्
ततः काण्वानियं भूमिर्यास्यत्यल्पगुणान्नृप १७।


शुङ्गं हत्वा देवभूतिं काण्वोऽमात्यस्तु कामिनम्
स्वयं करिष्यते राज्यं वसुदेवो महामतिः १८।


तस्य पुत्रस्तु भूमित्रस्तस्य नारायणः सुतः
काण्वायना इमे भूमिं चत्वारिंशच्च पञ्च च
शतानि त्रीणि भोक्ष्यन्ति वर्षाणां च कलौ युगे १९।


हत्वा काण्वं सुशर्माणं तद्भृत्यो वृषलो बली
गां भोक्ष्यत्यन्ध्रजातीयः कञ्चित्कालमसत्तमः २०।


कृष्णनामाथ तद्भ्राता भविता पृथिवीपतिः
श्रीशान्तकर्णस्तत्पुत्रः पौर्णमासस्तु तत्सुतः २१।


लम्बोदरस्तु तत्पुत्रस्तस्माच्चिबिलको नृपः
मेघस्वातिश्चिबिलकादटमानस्तु तस्य च २२।


अनिष्टकर्मा हालेयस्तलकस्तस्य चात्मजः
पुरीषभीरुस्तत्पुत्रस्ततो राजा सुनन्दनः २३।


चकोरो बहवो यत्र शिवस्वातिररिन्दमः
तस्यापि गोमती पुत्रः पुरीमान्भविता ततः २४।


मेदशिराः शिवस्कन्दो यज्ञश्रीस्तत्सुतस्ततः
विजयस्तत्सुतो भाव्यश्चन्द्र विज्ञः सलोमधिः २५।


एते त्रिंशन्नृपतयश्चत्वार्यब्दशतानि च
षट्पञ्चाशच्च पृथिवीं भोक्ष्यन्ति कुरुनन्दन २६।


सप्ताभीरा आवभृत्या दश गर्दभिनो नृपाः
कङ्काः षोडश भूपाला भविष्यन्त्यतिलोलुपाः २७।


ततोऽष्टौ यवना भाव्याश्चतुर्दश तुरुष्ककाः
भूयो दश गुरुण्डाश्च मौला एकादशैव तु २८।


एते भोक्ष्यन्ति पृथिवीं दश वर्षशतानि च
नवाधिकां च नवतिं मौला एकादश क्षितिम् २९।


भोक्ष्यन्त्यब्दशतान्यङ्ग त्रीणि तैः संस्थिते ततः
किलकिलायां नृपतयो भूतनन्दोऽथ वङ्गिरिः ३०।


शिशुनन्दिश्च तद्भ्राता यशोनन्दिः प्रवीरकः
इत्येते वै वर्षशतं भविष्यन्त्यधिकानि षट् ३१।


तेषां त्रयोदश सुता भवितारश्च बाह्लिकाः
पुष्पमित्रोऽथ राजन्यो दुर्मित्रोऽस्य तथैव च ३२।


एककाला इमे भूपाः सप्तान्ध्राः सप्त कौशलाः
विदूरपतयो भाव्या निषधास्तत एव हि ३३।

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मागधानां तु भविता विश्वस्फूर्जिः पुरञ्जयः
करिष्यत्यपरो वर्णान्पुलिन्दयदुमद्र कान् ३४।


प्रजाश्चाब्रह्मभूयिष्ठाः स्थापयिष्यति दुर्मतिः
वीर्यवान्क्षत्रमुत्साद्य पद्मवत्यां स वै पुरि
अनुगङ्गमाप्रयागं गुप्तां भोक्ष्यति मेदिनीम् ३५।


सौराष्ट्रावन्त्याभीराश्च शूरा अर्बुदमालवाः
व्रात्या द्विजा भविष्यन्ति शूद्र प्राया जनाधिपाः ३६।


सिन्धोस्तटं चन्द्रभागां कौन्तीं काश्मीरमण्डलम्
भोक्ष्यन्ति शूद्रा व्रात्याद्या म्लेच्छाश्चाब्रह्मवर्चसः ३७।


तुल्यकाला इमे राजन्म्लेच्छप्रायाश्च भूभृतः
एतेऽधर्मानृतपराः फल्गुदास्तीव्रमन्यवः ३८।


स्त्रीबालगोद्विजघ्नाश्च परदारधनादृताः
उदितास्तमितप्राया अल्पसत्त्वाल्पकायुषः ३९।


असंस्कृताः क्रियाहीना रजसा तमसावृताः
प्रजास्ते भक्षयिष्यन्ति म्लेच्छा राजन्यरूपिणः ४०।


तन्नाथास्ते जनपदास्तच्छीलाचारवादिनः
अन्योन्यतो राजभिश्च क्षयं यास्यन्ति पीडिताः ४१।


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इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां द्वादशस्कन्धे प्रथमोऽध्यायः

श्रीमद्भागवत महापुराण द्वादश स्कन्ध अध्याय 1 श्लोक 21-39 द्वादश स्कन्ध: प्रथम अध्याय श्रीमद्भागवत महापुराण: द्वादश स्कन्ध: प्रथम अध्याय श्लोक 21-39 का हिन्दी अनुवाद

 कण्व वंश के चार नरपति काण्वायन कहलायेंगे और कलियुग में तीन सौ पैंतालिस वर्ष तक पृथ्वी का उपभोग करेंगे। प्रिय परीक्षित! कण्ववंशी सुशर्मा का एक शूद्र सेवक होगा-बली। वह अन्ध्रजाति का एवं बड़ा दुष्ट होगा। वह सुशर्मा को मारकर कुछ समय तक स्वयं पृथ्वी का राज्य करेगा। इसके बाद उसका भाई कृष्ण राजा होगा। कृष्ण का पुत्र श्रीशान्तकर्ण और उसका पौर्णमास होगा। पौर्णमास का लम्बोदर और लम्बोदर का पुत्र चिविलक होगा।
चिविलक का मेघस्वाति, मेघस्वाति का अटमान, अटमान का अनिष्टकर्मा, अनिष्टकर्मा का हालेय, हालेय का तलक, तलक का पुरीषभीरु और पुरीषभीरु का पुत्र होगा राजा सुनन्दन। परीक्षित! सुनन्दन का पुत्र होगा चकोर; चकोर के आठ पुत्र होंगे, जो सभी ‘बहु’ कहलायेंगे।
 इनमें सबसे छोटे का नाम होगा शिवस्वाति। वह बड़ा वीर होगा और शत्रुओं का दमन करेगा। शिवस्वाति का गोमतीपुत्र और उसका पुत्र होगा पुरीमान्। पुरीमान् का मेदःशिरा, मेदःशिरा का शिवस्कन्द, शिवस्कन्द का यज्ञश्री, यज्ञश्री का विजय और विजय के दो पुत्र होंगे-चन्द्रविज्ञ और लोमधि। परीक्षित! ये तीस राजा चार सौ छप्पन वर्ष तक पृथ्वी का राज्य भोगेंगे। परीक्षित!
 इसके पश्चात् अवभृति-नगरी के सात आभीर, दस गर्दभी और सोलह कंक पृथ्वी का राज्य करेंगे। 

ये सब-के-सब बड़े लोभी होंगे। इनके बाद आठ यवन और चौदह तुर्क राज्य करेंगे। इसके बाद दस गुरुदण्ड और ग्यारह मौन नरपति होंगे। 

मौनों के अतिरिक्त ये सब एक हजार निन्यानबे वर्ष तक पृथ्वी का उपभोग करेंगे तथा ग्यारह मौन नरपति तीन सौ वर्ष तक पृथ्वी का शासन करेंगे। जब उनका राज्यकाल समाप्त हो जायेगा, तब किलिकिला नाम की नगरी में भूतनन्द नाम का राजा होगा। भूतनन्द का वंगिरि, वंगिरि का भाई शिशुनन्दि तथा यशोनन्दि और प्रवीरक-ये एक सौ छः वर्ष तक राज्य करेंगे।
 इनके तेरह पुत्र होंगे और वे सब-के-सब बाह्लिक कहलायेंगे। 

उनके पश्चात् पुष्यमित्र नामक क्षत्रिय और उसके पुत्र दुर्मित्र का राज्य होगा। परीक्षित! बाह्लिकवंशी नरपति एक साथ ही विभिन्न प्रदेशों में राज्य करेंगे। उनमें सात अन्ध्र देश के तथा साथ ही कोसल देश के अधिपति होंगे, कुछ विदूर-भूमि के शासक और कुछ निषेध देश के स्वामी होंगे। इनके बाद 

मगध देश का राजा होगा विश्व-स्फूर्जि। यह पूर्वोक्त पुरंजय के अतिरिक्त द्वितीय पुरंजय कहलायेगा। 
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मागधानां तु भविता विश्वस्फूर्जिः पुरञ्जयः
करिष्यत्यपरो वर्णान्पुलिन्दयदुमद्र कान् ३४।


यह ब्रह्माणादि उच्च वर्णों को पुलिन्द, यदु और मद्र आदि म्लेच्छप्राय जातियों के रूप में परिणत कर देगा।
इसकी बुद्धि इतनी दुष्ट होगी कि यह ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों का नाश करके शुद्रप्राय जनता की रक्षा करेगा।
यह अपने बल-वीर्य से क्षत्रियों को उजाड़ देगा और पद्मवतीपुरी को राजधानी बनाकर हरिद्वार से लेकर प्रयागपर्यन्त सुरक्षित पृथ्वी का राज्य करेगा। परीक्षित! 
ज्यों-ज्यों घोर कलियुग आता जायेगा, त्यों-त्यों सौराष्ट्र, अवन्ती, आभीर, शूर, अर्बुद और मालव देश के ब्राह्मणगण संस्कारशून्य हो जायेंगे 

तथा राजा लोग भी शूद्रतुल्य हो जायेंगे। सिन्धुतट, चन्द्रभागा का तटवर्ती प्रदेश, कौन्तीपुत्री और

 काश्मीर-मण्डल पर प्रायः शूद्रों का, संस्कार एवं ब्रह्मतेजस से हीन नाम मात्र के द्विजों का और म्लेच्छों का राज्य होगा।


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