बुधवार, 17 जून 2020

ययाति पुत्र यदु बनाम हर्यश्व पुत्र यदु ...

यह सत्य है कि यादवों का इतिहास किस प्रकार विकृत हुआ उसे सहजता से नहीं जाना जा सकता है ।

यद्यपि कृष्ण और पाण्डवों के प्रतिद्वन्द्वीयों में समाहित रहे  जरासन्ध,  दमघोष आदि एक कुल ही हैहयवंश के यादव ही थे 'परन्तु उन्हें यादव कहकर  कितनी बार सम्बोधित किया गया ?
सायद नहीं के बरावर ...

इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है हरिवंशपुराण से यह विश्लेषण ...

और किस प्रकार कालान्तरण में परवर्ती पुराण कारों 'ने यदु को ही एक रहस्यमय विधि से सूर्य वंश में घसीटने की भी कोशिश की ...

दरअसल भारतीय पुरोहित वर्ग 'ने यदु की कथाऐं सैमेटिक जनजातियों  यहूदियों और असीरीयों से ग्रहण की और  श्रुत्यान्तरण से उसमें व्युत्क्रम होना स्वाभाविक ही था।
विदित हो की यहूदी और असीरीयों ( असुर) दौनों' जनजातियाँ ही सैमेटिक लोग थे ।
जिन्हें भारतीय पुराणों ने सोमवंश कहा ..
'परन्तु जब ईसा० पूर्व की सदीयों में  भारतीय मिथकों में यदु और तुर्वशु की कथाऐं समाविष्ट हुईं ।
तो पूर्वाग्रह 'ने कथाओं का स्वरूप ही बदल दिया।

हरिवंशपुराण  हो या भागवत पुराण सभी में एक कृत्रिम विधि से  कुछ बातें जोड़ी और तोड़ी गयी तो परिणाम स्वरूप विरोधाभास और एक क्षेपक उत्पन्न होने लगा ।

किस प्रकार यादवों के आदि पुरुष यदु के वंशजों को ही एक शाखा को यादव तो दूसरी को भोज तीसरी को अन्धक  तो चौथी को वृष्णि भी कहा गया 'परन्तु थे सभी यादव ही 'परन्तु भोज या अन्धक  या भैम को क्यों यादव नहीं कहा गया ?
'परन्तु आभीर जो यदु के पूर्वजों ययाति की भी उपाधि थी वह भी प्रवृत्ति मूलक विशेषण रूप में जो कालान्तरण में गोप अर्थ में समाहित हो गयी ।
आभीर यादवों का भी विशेषण रहा 
जबकि ये भी यदु के वंशजों में सुमार थे ।🌸

यादव शब्द ही कालान्तरण में केवल कुछ यदुवंशीयों  के लिए रूढ़ हो गया था क्या ? जैसा कि निम्नलिखित श्लोक में भी यादव अलग से कुल बताया गया है ।
जो मूर्खता पूर्ण है ।
जिसके विषय में हमने पूर्व संकेत किया ।👇
यह भविष्य वाणी नागराज धूम्रवर्ण करता है जो हर्यश्व पुत्र यदु को अपनी पाँच कन्याऐं पत्नी रूप देता है।
हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 37 श्लोक 66-70 संस्कृत श्लोक ...

स तस्मै धूम्रवर्णो वै कन्या: कन्याव्रते स्थिता:।
जलपूर्णेन योगेन ददाविन्द्रवसमाय वै।।66।।
 
वरं चास्मै ददौ प्रीत: स वै पन्नगपुंगव:।
श्रावयन् कन्यका: सर्वा यथाक्रममदीनवत्।।67।।

एतासु ते सुता: पंच सुतासु मम मानद।
उत्पस्यन्ते पितुस्तेजो मातुश्चैव समाश्रिता:।।68।।

अस्मत्समयबद्धाश्च सलिलाभ्यन्तरेचरा:।
तव वंशे भविष्यन्ति पार्थिवा: कामरूपिण:।।69।।

स वरं कन्यकाश्चैव लब्ध्वा यदुवरस्तदा।
उदतिष्ठत वेगेन सलिलाच्चन्द्रमा इव।।70।।

____
भैमाश्च कुकुराश्चैव भोजाश्चान्धक यादव: दाशार्हा वृष्णयश्चेति ख्यातिं यास्यन्ति सप्त ते ।।६५।
अर्थ:- जैसे कुक्कुर, भोज, अन्धक ,दाशार्ह ,भैम, यादव,  और वृष्णि नाम  सात वंश वाले शाखा में  प्रसिद्ध होंगे 

हरिवंशपुराण विष्णुपर्व सैंतीस वाँ अध्याय

अब हद तो तब हो गयी जब यदु को सैमेटिक या सोमवंश से हाइजैक कर हैम या सूर्य वंश में स्थापित करने की दुष्चेष्टा की गयी 


दरअसल भारतीय पुराणों में यदु के विषय में जो कथाऐं आलेखित की गयीं  वे यहूदियों के आख्यानकों से ली गयीं हैं !
ऋग्वेद में उद्गाता पुरोहित यदु और तुर्वशु को परास्त करने के लिए इन्द्र से प्रार्थना करते हैं ।
इस बात को भी कम 'लोग'जानते हैं ।

क्योंकि जो यहूदियों के आख्यानकों में इश्हाक है वही पात्र पुराणों में इक्ष्वाकु है ।

कहीं सैमेटिक तो कहीं हैमेटिक रूप में इसे माना गया 
भारतीय पुराणों में भी सोम का रूपान्तरण चन्द्र में कर के चन्द्र वंश की कल्पना कर ली गयी ।
______
जैसे हरिवंशपुराण विष्णुपर्व सप्तत्रिंशो८ध्याय: 
में वर्णित है कि वैवस्वत मनु के वश में इक्ष्वाकु के पुत्र हर्यश्व राजा हुए ।
जो प्रजा का रञ्जन करते थे इसी राजा कहलाये ।

मधु असुर की पुत्री मधुवती ये हर्यश्व का विवाह हुआ ।
_____
एक दिन हर्यश्व के बड़े भाई 'ने उसे राज्य से निकाल दिया तब हर्यश्व 'ने अयोध्या छोड़ दी ।

तब मधुमती हर्यश्व को मधुवन ले गयी  यही मधपुरी भी था 

मधु असुर 'ने केवल मधुवन को छोड़कर अपना सारा राज्य अपने जामाता हर्यश्व को दे दिया ।
लवण मधु का पुत्र भी हर्यश्व का सहायक बना ।

 यह मधुवन  गौंओं से सम्पन्न और लक्ष्मी से सेवित है यहांँ आभीर या गोप जाति ही बहुतायत से रहती था ।
इस प्रकार का वर्णन भी हरिवंशपुराण में है ।
देखें निम्नलिखित श्लोक इस विषय में तथा हिन्दी अनुवाद  विस्तृत रूप में
_____ 
हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 37 श्लोक 16-20 में हर्यश्व और मधुमती के विषय में वर्णित है 👇

सा तमिक्ष्वांकुशार्दूलं कामयामास कामिनी।
स कदाचिन्नरश्रेष्ठो भ्रात्रा ज्येष्ठे्न माधव।।16।।

राज्यान्निरस्तो विश्वस्त: सोऽयोध्यां सम्परित्यजत्।
स तदाल्प‍परीवार: प्रियया सहितो वने।।17।।

रेमे समेत्य कालज्ञ: प्रियया कमलेक्षण:।
भ्रात्रा विनिष्कृतं राज्यात् प्रोवाच कमलेक्षणा।।18।।

एह्यागच्छ नरश्रेष्ठ त्यज राज्यकृतां स्पृहाम्।
गच्छाव: सहितौ वीर मधोर्मम पितुर्गृहम्।।19।।

रम्यं मधुवनं नाम कामपुष्पफलद्रुमम्।
सहितौ तत्र रंस्यावो यथा दिवि गतौ तथा।।20।।

 वह कामिनी होकर इक्ष्वाकु वंश के श्रेष्ठ वीर हर्यश्व को सम्पूर्ण से हृदय चाहती थी।

 माधव! एक दिन बड़े भाई ने उनके विश्वास पर रहने वाले नरश्रेष्ठ हर्यश्व को राज्य से निकाल दिया, 

तब उन्होंने अयोध्या छोड़ दी और थोड़े से परिवार के साथ अपने प्रिया मधुमती सहित वे वन में रहने लगे काल की महिमा को जानने वाले कमलनयन हर्यश्व अपनी प्यारी पत्नी के साथ मिलकर वहाँ बड़े आनन्द से समय बिताने लगे।

 एक दिन कमलनयनी मधुमती ने भाई द्वारा राज्य से निकाले गये पति से कहा- ‘नरश्रेष्ठ वीर! अयोध्या के राज्य की अभिलाषा छोड़ दो और आओ मेरे साथ चलो।

 हम दोनों मेरे पिता मधु के घर चलें सुरम्य मधुवन नामक वन ही मेरे पिता का निवास स्थान है। 

वहाँ के वृक्ष इच्छानुसार फूल और फल देने वाले हैं।

वहाँ हम दोनों साथ रहकर स्वर्गवासियों के सामने मौज करेंगे।' 

पृथ्वीनाथ! मेरे पिता और माता दोनों को ही तुम बहुत प्रिय हो और मेरा प्रिय करने के लिये मेरा भाई लवणासुर भी तुम्हें अत्यन्त प्रिय मानेगा। 

नरश्रेष्ठ! वहाँ जाकर हम दोनों साथ-साथ रहकर राज्य पर बैठे हुए दम्पत्तियों की भाँति इच्छानुरूप वस्तुओं का उपभोग करते हुए रमण करेंगे। 

जैसे देवपुरी के नन्दवन में देवांगना और देवता विहार करते हैं, उसी प्रकार वहाँ हम दोनों विहार करेंगे। 
_______
हर्यश्व को राज्य देकर मधु तप करने वन में चला गया। ययाति पुत्र महाराज यदु योगबल से पुन: मधुमती के गर्भ में आए। 

इनके वंश में ही मथुरा के सभी यादव हैं। 
जो आभीर रूप में पहले रहते हैं ।

ये महाराज यदु एक बार अपनी पत्नियों सहित समुद्र स्नान करने गए।
 वहाँ सर्पराज धूम्रवर्ण उन्हें खींच कर नाग लोक ले गए और अपनी पाँच कन्याएं उन्होंने विवाह दीं। 
ये पाँचों प्रसिद्ध महाराज यौवनाश्य की बहन की संतति भानजी थीं। 

नाग राज ने साथ ही वरदान दिया–तुमसे सात कुल चलेंगे। 
ये वंश भैम, कुक्कुर, भोज, अन्धक, यादव, दाशार्ह और वृष्णि रूप में होगा ।

नाग लोक में विवाह करके महाराज यदु अपनी नवीन पत्नियों के साथ पृथ्वी पर आए। उन नाग कन्याओं से पाँच पुत्र हुए– मुचुकुन्द, पद्मवर्ण, माधव, सारस और हरित। 
ये बड़े हुए तो इन्हें पिता ने आज्ञा दी–मुचुकुन्द को विन्ध्य एवं ऋक्षवान पर्वतों के निकट दो नगर बसाना चाहिए।

 पद्मवर्ण दक्षिण भारत में सह्य पर्वत पर अपनी राजधानी बनाए।
 पश्चिम भारत में सारस अपना राज्य स्थापित करे। हरित को समुद्र के भीतर जाकर अपने नाना नागराज धूम्रवर्ण के नगर का पालन करना चाहिए। 
________


माधव ज्येष्ठ है, अत: युवराज होकर इस राज्य का पालन करेगा।

पिता की आज्ञा से मुचुकुन्द ने नर्मदा तट पर महिष्मतीपुरी और ऋक्षवान पर्वत के समीप पुरिका नामक पुरी बसाई।

 पद्मवर्ण ने दक्षिण में वैणा के तट पर पूरे राज्य को ही परकोटे से घेर दिया।

 इस पद्मावत राज्य की राजधानी करवीरपुर हुई।
 सारस ने वैणा के दक्षिण तट पर क्रोञ्चपुर बसाया।

युवराज माधव के पुत्र हुए सत्त्वत।
 इनके पुत्र भीम।

 इसके आगे यह वंश भैम या सात्त्वत कहा जाने लगा। 
त्रेता में जब अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम राज सिंहासन पर थे, तब आनर्तनरेश भीम थे। 

उसी समय श्री राम के छोटे भाई शत्रुघ्न कुमार ने लवणासुर को मार कर मधुपुरी बसाई।

'परन्तु भागवत पुराण में यदु के पिता ययाति ही है और यदु के पुत्र चार  थे सहस्रजित् ,क्रोष्टा ,नल , और रिपु 
यत्रावतीर्णो भगवान् परमात्मा नराकृति: ।
यदो: सहस्रजित् क्रोष्टा नलो रिपु: इति श्रुता : ।।२०।
चत्वार: सूनवस्तत्र शतजित् प्रथमात्मज: ।
महाहयो वेणुहयो हैहयेश्चेति तत्सुता: ।२१।
भागवत पुराण नवम स्कन्द अध्याय चौबीस( पृष्ठ संख्या ९३... गीताप्रेस गोरखपुर संस्करण)

इस वंश में स्वयं भगवान् पर ब्रह्म श्रीकृष्ण 'ने नर रूप में अवतार लिया था - यदु के चार पुत्र थे सहस्रजित् ,क्रोष्टा ,नल , और रिपु 
सहस्रजित् से  शतजित् का जन्म हुआ - शतजित् के तीन' पुत्र उत्पन्न हुए -महाहय, वेणुहय और हैहय ।।२०-२१।।

अब 'हरि वंश पुराण में यदु के पाँच पुत्र हैं ।
नाग लोक में विवाह करके महाराज यदु अपनी नवीन पत्नियों के साथ पृथ्वी पर आए। उन नाग कन्याओं से पाँच पुत्र हुए–
 मुचुकुन्द, पद्मवर्ण, माधव, सारस और हरित। 
______________
ये बड़े हुए तो इन्हें पिता ने आज्ञा दी–मुचुकुन्द को विन्ध्य एवं ऋक्षवान पर्वतों के निकट दो नगर बसाना चाहिए।

 पद्मवर्ण दक्षिण भारत में सह्य पर्वत पर अपनी राजधानी बनाए।
 पश्चिम भारत में सारस अपना राज्य स्थापित करे। हरित को समुद्र के भीतर जाकर अपने नाना नागराज धूम्रवर्ण के नगर का पालन करना चाहिए। 
________


माधव ज्येष्ठ है, अत: युवराज होकर इस राज्य का पालन करेगा।

पिता की आज्ञा से मुचुकुन्द ने नर्मदा तट पर महिष्मतीपुरी और ऋक्षवान पर्वत के समीप पुरिका नामक पुरी बसाई।

 पद्मवर्ण ने दक्षिण में वैणा के तट पर पूरे राज्य को ही परकोटे से घेर दिया।

 इस पद्मावत राज्य की राजधानी करवीरपुर हुई।
 सारस ने वैणा के दक्षिण तट पर क्रोञ्चपुर बसाया।

युवराज माधव के पुत्र हुए सत्त्वत।
 इनके पुत्र भीम।

 इसके आगे यह वंश भैम या सात्त्वत कहा जाने लगा। 
त्रेता में जब अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम राज सिंहासन पर थे, तब आनर्तनरेश भीम थे। 


अब सहस्रजित् क्रोष्टा नल और रिपु का कहाँ गये उनका वंश कहाँ गया 
कोई बताए !

'परन्तु यहांँ क्षेपक है यह तथ्य कि मधुरा शत्रुघ्न ने बसाई क्यों कि उसका नामकरण मधु असुर के आधार पर है ।।

 मधुवन का उच्छेद करके यह पुरी बसी।
 श्री राम के परमधाम जाने पर शत्रुघ्न के पुत्र ने विरक्त होकर राज्य त्याग दिया ये बातें भी क्षेपक ही हैं ।

 
हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 38 श्लोक 36-40

स यदुर्माधवे राज्यं विसृज्य यदुपुंगवे।
त्रिविष्टपं गतो राजा देहं त्यक्त्वा महीतले।।36।।

बभूव माधवसुत: सत्त्वतो नाम वीर्यवान्।
सत्त्ववृत्तिर्गुणोपेतो राजा राजगुणे स्थित:।।37।।

सत्त्वतस्य सुतो राजा भीमो नाम महानभूत्।
येन भैमा: सुसंवृत्ता: सत्त्वतात् सात्त्वता: स्मृता:।।38।।

राज्ये स्थिते नृपे तस्मिन् रामे राज्यं प्रशासति।
शत्रुघ्नो लवणं हत्वा् चिच्छेद स मधोर्वनम्।।39।।

तस्मिन् मधुवने स्थाने पुरीं च मथुरामिमाम्।
निवेशयामास विभु: सुमित्रानन्दवर्धन:।।40।।

✍✍✍✍
तब मधुपुरी–मथुरा पर भीम ने अधिकार कर लिया। अयोध्या में जब कुश राजा थे–मथुरा सिंहासन पर भीम के पुत्र अंधक का अभिषेक हुआ।
ये अन्धक के पिता भीम यादव थे ।
अन्धको नाम भीमस्ये सुतो राज्यवमकारयत्।।43।।
___
अन्धकस्या सुतो जज्ञे रेवतो नाम पार्थिव:।
ऋक्षोऽपि रेवताज्जयज्ञे रम्येन पर्वतमूर्धनि।।44।।

ततो रैवत उत्पकन्नय: पर्वत: सागरान्तिके।
नाम्नाव रैवतको नाम भूमौ भूमिधर: स्मृत:।।45।।

अन्धक के पुत्र रैवत थे। 
इनकी पत्नी ने पुत्र ऋक्ष को पर्वत शिखर पर जन्म दिया था। 
_______
हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 38 श्लोक 46-50

रैवतस्यात्माजो राजा विश्वागर्भो महायशा:।
बभूव पृथिवीपाल: पृथिव्यां प्रथित: प्रभु:।।46।।

तस्य तिसृषु भार्यासु दिव्यारूपासु केशव।
चत्वारो जज्ञिरे पुत्रा लोकपालापमा: शुभा:।।47।।

वसुर्बभ्रु: सुषेणश्च सभाक्षश्चैव वीर्यवान्।
यदुप्रवीरा: प्रख्याता लोकपाला इवापरे।।48।।

तैरये यादवो वंश: पार्थिवैर्बहुलीकृत:।
यै: साकं कृष्णर लोकेऽस्मिन् प्रजावन्त: प्रजेश्वरा:।।49।।

वसोस्तु कुन्तिविषये वसुदेव: सुतो विभु:।
तत: स जनयामास सुप्रभे द्वे च दारिके।।50।।
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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: श्लोक 46-58 का हिन्दी अनुवाद--
रैवत (ऋक्ष) के महायशस्वी राजा विश्वगर्भ हुए, जो पृथ्वी पर प्रसिद्ध एवं प्रभावशाली भूमिपाल थे।
 केशव! उनके तीन भार्याऐं थीं। 

तीनों ही दिव्य रूप-सौन्दर्य से सुशोभित होती थीं। 
उनके गर्भ से राजा के चार सुन्दर पुत्र हुए, जो लोकपालों के समान पराक्रमी थे।

 उनके नाम इस प्रकार हैं- वसु, बभ्रु, सुषेण और बलवान सभाक्ष। 
ये यदुकुल के प्रख्यात श्रेष्ठ वीर दूसरे लोकपालों के समान शक्तिशाली थे।

श्रीकृष्ण! उन राजाओं ने इस यादव वंश को बढ़ाकर बड़ी भारी संख्या से सम्पन्न कर दिया।

 जिनके साथ इस संसार में बहुत-से संतानवान नरेश हैं। वसु से (जिनका दूसरा नाम शूर था) वसुदेव उत्पन्न हुए। ये वसुपुत्र वसुदेव बड़े प्रभावशाली हैं।

 वसुदेव की उत्पत्ति के अनन्तर वसु ने दो कान्तिमती कन्याओं को जन्म दिया (जो पृथा (कुन्ती) और श्रुतश्रवा नाम से विख्यात हुईं) इनमें से पृथा कुन्ति देश में (राजा कुन्तिभोज की दत्तक पुत्री के रुप में) रहती थी।

 कुन्ती जो पृथ्वी पर विचरने वाली देवांगना के समान थी, महाराज पाण्डु की महारानी हुईं तथा सुन्दर कान्ति से प्रकाशित होने वाली श्रुतश्रवा चेदिराज दमघोष की पत्नी हुईं।

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रैवत के पुत्र विश्वगर्भ हुए जिनका दूसरा नाम देवमीढ था 
इस ऋक्ष का दूसरा नाम रैवत था।
 इन महाराज रैवत के पुत्र विश्वगर्भ को देवमीढ़ कहा जाता है। 
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उनकी तीन रानियों से चार पुत्र हुए– वसु, वभ्रु, सुषेण और सभाक्ष।
 ज्येष्ठ पुत्र वसु का ही दूसरा नाम शूरसेन है।
वभ्रु, सुषेण और सभाक्ष ये ही क्रमश अर्जन्य पर्जन्य और राजन्य थे ।
 शूरसेन की संतान ही वसुदेव  हैं।
और पर्जन्य के पुत्र नन्द थे।
🌸
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हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 37 श्लोक 26-30

ततो मधुपुरं राजा हर्यश्व: स जगाम च।
भार्यया सह कामिन्या कामी पुरुषपुंगव:।।26।।

मधुना दानवेन्द्रेण स साम्न समुदाहृत:।
स्वागतं वत्स हर्यश्व प्रीतोऽस्मि तव दर्शनात्।।27।।

यदेतन्मम राज्यं वै सर्वं मधुवनं विना।
ददामि तव राजेन्द्र वासश्च प्रतिगृह्यताम्।।28।।

वनेऽस्मिल्लँवणश्चायं सहायस्ते भविष्यति।
अमित्रनिग्रहे चैव कर्णधारत्ववमेष्यति।।29।।
हरिवशं पुराणों में अन्य जनजातियों की उत्पत्ति भी प्रक्षिप्त ही है ।
प्रस्तुत हैं ये प्रमाण ....👇

हरिवंशपुराण हरिवशंपर्व पञ्चम अध्याय में एक स्थान पर वर्णन है कि 
निषादवंशकर्तासौ बभूव वदतां वर ।
धीवरानसृजच्चाथ वेनकल्मषसम्भवान्।।१९।

•-- वक्ताओं में श्रेष्ठ जनमेजय ! वह निषादों के वंश को चलाने वाला हुआ और उसने धीवरों को जन्म दिया  वे  निषाद , धीवर वेन के पाप से उत्पन्न हुए थे ।१९।
( क्या यह सत्य कथन है ?)

ये चान्ये विन्ध्यनिलय तुषार तुम्बरास्तथा ।
अधर्म रुचयो ये च विद्धि तान्  वेनसम्भवान् ।२०।

धीवरों के अतिरिक्त तुषार (तोखारी)
•--तुम्बर ( तोमर) तथा अधर्म से प्रेम करने वाले वन वासी ( गोण्ड- कोल आदि )हैं इन सबको तुम वेन के पाप से उत्पन्न हुआ समझो !

( तोमर जन-जाति राजपूत संघ गुर्जर संघ और जाट संघ में भी समायोजित है ।
'परन्तु हरिवंशपुराण विष्णुपर्व में ये  वनवासी के रूप में हैं । 

हरिवंशपुराण हरिवशं पर्व इकतालीसवाँ अध्याय में श्रीमद्भगवदगीता के एक श्लोक का पूर्वार्द्ध हरिवंशपुराण में भी यथावत है ।👇
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
धर्म संस्थापनार्थाय तदा सम्भवति प्रभु ।।१७।

यह श्लोक श्रीमद्भगवदगीता के श्लोक से साम्य रखता है 

भागवत धर्म के अधिष्ठात्री देवता के रूप में वर्णन हरिवंशपुराण में है ।
इतनी ही नहीं ...
भागवत धर्म के विषय में ही एक श्लोक है ।👇
जिसके उद्गाता अक्रूर नामक यादव हैं
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अक्रूर ने श्रीकृष्‍ण से कहा- 'भैया! रथ को यहीं खड़ा रखो और घोड़ों को काबू में रखने का प्रयत्‍न करो। तात!

 घोड़ों को दाना-घास देकर, इनके पात्र और रथ की विशेष यत्नपूर्वक देखभाल करते हुए एक क्षण तक मेरी प्रतीक्षा करो।

 तब तक मैं यमुना जी के इस कुण्‍ड में प्रवेश करके दिव्‍य भागवत मन्‍त्रों द्वारा सम्‍पूर्ण जगत के स्‍वामी नागराज अनन्‍त की स्‍तुति कर लूँ। 

वे गुहरास्‍वरूप भागवत देवता हैं, सम्‍पूर्ण लोकों के उत्‍पादक एवं उन्नायक हैं।

 उनका मस्तिक कान्तिमान स्‍वस्तिक चिह्न से अलंकृत है। वे सर्प-विग्रहधारी भगवान अनन्‍त देव सहस्र सिरों से सुशोभित तथा नील वस्‍त्र धारण करने वाले हैं। मैं उन्‍हें प्रणाम करूँगा।

यमुनाया ह्रदे ह्यस्मिन् स्तोष्यामि भुजगेश्वरं ।
दिव्यैर् भागवतैर्मन्त्रै: सर्व लोक प्रभु यत: ।।४२।

तब तक 'मैं यमुना जी के इस कुण्ड के जल
 में प्रवेश करके दिव्य भागवत मन्त्रों द्वारा सम्पूर्ण जगत के स्वामी नागराज अनन्त की स्तुति कर लूँ ।४२।

गुह्यं भागवतं देवं सर्वलोकस्य भावनम् ।
श्रीमत्स्वस्तिकमूर्द्धानं प्रणमिष्यामि भोगिनम् ।
सहस्रशिरसं देवमनन्तं नीलवाससम् ।।४३।

वे गुह्य स्वरूप भागवत देवता हैं । 
सम्पूर्ण लोकों के उत्पादक और उन्नायक हैं ।

 उनका मस्तक कान्ति वान स्वास्तिक चिन्ह से अलंकृत है  वे सर्प-विग्रहधारी अनन्त देव सहस्र शिरों से सुशोभित तथा नील वस्त्रधारण करने वाले हैं । 
'मैं उन्हें प्रणाम करुँगा ।४३।

हरिवंशपुराण विष्णुपर्व छब्बीस वें अध्याय में भागवत धर्म के अधिष्ठात्री देवता के रूप में बलराम की स्तुति की गयी है ।

 कृष्ण को परामर्श देने वाले बलराम ही थे ।
ब्राह्मण धर्म के विरुद्ध वर्ण व्यवस्था रहित लोकतन्त्र मूलक भक्तियोग समन्वित भागवत धर्म स्थापन का श्रेय कृष्ण 'ने बलराम को ही दिया ।

'परन्तु इसका तथ्य को पुराणों में दबाया- गया ।..

यह श्लोक गुप्त काल की धर्म मूलक अवधारणा को प्रतिध्वनित करता है ।


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यहीं तीसवें श्लोक में आभीर वर्णन है ।👇

पालयैनं शुभं राष्ट्रं समुद्रानूपभूषितम्।
गोसमृद्धं श्रिया जुष्टम् आभीर प्रायमानुषम्।।30।।

हरिवंशपुराण विष्णुपर्व में सैंतीसवाँ अध्याय श्लोक संख्या ३० पर 

वस्तुतः ये ययाति पुत्र यदु के वंशजों में सुमार आभीर हैं जिन्होंने ही व्रज क्षेत्र की प्रतिष्ठा की 
यह आभीर नामक यादव जाति का ही वर्णन है ।

तीसवें श्लोक का अर्थ है 👇
अर्थात्‌ तुम समुद्र के जलप्राय प्रदेश से विभूषित इस सुराष्ट्र (सूरत ) का पालन करो ! यह गौंओं से सम्पन्न और लक्ष्मी से सेवित है तथा यहीं अधिकतर अहीर ( आभीर ) निवास करते हैं।३०।
गुजरात नामकरण आभीर की उपशाखा गौश्चर गौज्जर गूर्जर से है ।

 हरिवंशपुराण के इसी अध्याय के चौंतीसवें श्लोक में वर्णन है कि

ययातमपि वंशस्ते समेष्यति च यादववम्।
अनुवंशं च वंशस्ते सोमस्य भविता किल ।।३४।

•--अर्थात्‌ तुम्हारा यह वंश ययाति पुत्र यदु के वंश में मिल जाएगा । जो सोम वंश का रूप है ।३४।
 
 विदित हो कि हर्यश्व का राज्य आनर्त (गुजरात)था ।
वहीं सुराष्ट्र( सूरत )है ।

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•♪--

•--सर्पराज 'ने कहा कि तुम से सात कुल विख्यात होंगे 👇

 " भैमाश्च कुकुराश्चैव भोजाश्चान्धक यादव: 
दाशार्हा वृष्णयश्चेति ख्यातिं यास्यन्ति सप्त ते ।।६५।

(हरिवंशपुराण विष्णुपर्व सैंतीसवाँ अध्याय )

जैसे कुक्कुर, भोज, अन्धक, यादव ,दाशार्ह ,भैम  और वृष्णि के नाम वाल ये सात कुल प्रसिद्ध होंगे ।

अब प्रश्न यहांँ भी उत्पन्न होता है कि  कुकुर, भोज, अन्धक, वृष्णि दाशार्ह ये यदुवंशीयों में शुमार नहीं थे ? 
यादव विशेषण तो इनका भी बनता है ।
फिर ये अलग से यादव कुल कहाँ से आगया ।
सरे आम बकवास है ये तो !

आगे हरिवंशपुराण में ही वर्णन है कि
इन नागकन्याओं से यदु के पाँच पुत्र उत्पन्न हुए ।
१-मुचुकुन्द २,पद्मवर्ण३-,माधव, ४-सारस,तथा 
राजा ५-हरित ये पाँच पुत्र थे ।

राजा यदु अपने बड़े पुत्र माधव को राज्य देकर परलोक को चले गये ।

माधव के पुत्र सत्वत्त नाम से प्रसिद्ध हुए ।

सत्वत्त के पुत्र भीम हुए । 
इनके वंशज भैम कहलाये  
जब राजा भीम आनर्त देश पर राज्य करते थे और तब अयोध्या मे राम का शासन था । 

तब इसके समय पर ही मधु के पुत्र लवण को शत्रुघ्न 'ने मारकर मधुवन का उच्छेद कर डाला था।३९।

 और उसी मधुवन के स्थान पर शत्रुघ्न' ने मधुपुरी को बसाया ।।४०।

तस्मिन् मधुवन स्थाने पुरीं च मथुरामिमाम्।
निवेशयामास विभु: सुमित्रानन्दवर्धन: ।।४०।।

'परन्तु प्रश्न यहांँ भी है कि मधु के नाम पर ही मधु पुर या मधुपुरी( मथुरा) शत्रुघ्न'ने क्यों बसाई अपने पूर्वजों के नाम ये अपने नाम से क्यों नहीं?
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'परन्तु जब शत्रुघ्न परलोक पधारे तो पुन: यादव राजा भीम ने इस वैष्णव स्थान मथुरा को पुन: प्राप्त किया ।क्यों कि यह भी उनके नाना मधु की नगरी थी ।

कालान्तरण भीम के पुत्र अन्धक मथुरा के राजा हुए और अन्धक के पुत्र रैवत ( ऋक्ष) के पुत्र विश्वगर्भ ( देवमीढ) हुए मथुरा के राजा हुए  ।

विश्वगर्भ का नामान्तरण ही देवमीढ है ।

 ये देवमीढ ही नन्द और वसुदेव के पूर्वजों में थे ।
पर्जन्य और शूरसेन के पिता देवमीढ थे ।


यद्यपि भागवत पुराण में एक प्रसंग के अनुसार जब अर्जुन को  द्वारिका गये हुए कई महीने हो जाते हैं तब युधिष्ठर भीम को वहाँ यह जानने के लिए भेजते हैं कि 
क्या कारण है अर्जुन को वहाँ इतना समय क्यों हो गया ?

इसी सन्दर्भ में समस्त ननिहाल के लोगों का कुशल क्षेम पूछने के लिए युधिष्ठर सबको पूछने के क्रम में सुनन्द और नन्द जो दूसरे अन्य यदुकुल के हैं उनका भी कुशल क्षेम पूछते हैं 
अब प्रश्न यह बनता है कि ये सुनन्द और नन्द कौन दूसरे अन्य यदुकुल 'लोग' हैं ?

वास्तव में ये नौ नन्द ही हैं 

धरानन्द, ध्रुवनन्द , उपनंद,नन्द,सुनंद अभिनंद,  ., कर्मानन्द , धर्मानंद ,  और वल्लभ। 
 नन्द से  नन्द वंशी यादव शाखा का प्रादुर्भाव हुआ। 


श्रीमद्भागवत पुराण में प्रथम स्कन्द अध्याय पन्द्रह में ही श्लोक संख्या ३२ पर तथैवानुचरा: शौरे: श्रुतदेवोद्धवाय: सुनन्द नन्द शीर्षण्या ये चान्ये  सात्वतर्षभा: ।।३२।

अर्थ-  भगवान् कृष्ण के सेवक  श्रुतदेव ,उद्धव , तथा दूसरे अन्य सुनन्द नन्द आदि शीर्ष यदुकुल के कृष्ण और बलराम के बाहुबल से संरक्षित हैं ।
सब के सब सकुशल हैं 'न?
हमसे अत्यंत प्रेमकरने वाले वे 'लोग' कभी हमारा कुशल-मंगल पूछते हैं ?३२-३३
नन्द उपनन्द कृतक, शूर,आदि मदिरा नामकी वसुदेव की पत्नी से उत्पन्न चार पुत्र थे ।
'परन्तु सुनन्द और नन्द और उपनन्द ये पर्जन्य के पुत्रों में समविष्ट थे ।

नन्दोपनन्दकृतकशूराद्या मदिरात्मजा:।

कौसल्या केशिनं त्वेकमसूत कुलनन्दनम्।।४८।

अर्थ:- नन्द ,उपनन्द, कृतक, शूर,आदि मदिरा नामकी वसुदेव की पत्नी से उत्पन्न चार पुत्र थे ।

और वसुदेव की कौसल्या नामकी पत्नी 'ने एक ही वंश- उजागर पुत्र उत्पन्न किया उसका नाम केशी था ।४८। ( भागवत पुराण नवम् स्कन्द अध्याय चौबीस पृष्ठ संख्या १००(गीता प्रेस गोरखपुर संस्करण)

इसलिए उपर्युक्त श्लोक में नौ नन्द सुनन्द, नन्द और उपनन्द आदि नव गोपों' का अर्थ ग्रहण करना चाहिए ..

आनर्त देश के विषय में कतिपय जानकारी करें 👇 --+-

आनर्त प्राचीन भारत में गुजरात के उत्तर भाग को कहा जाता था। 
द्वारावती आधुनिक द्वारका इसकी प्रधान नगरी थी।

महाभारत के अनुसार अर्जुन ने पश्चिम दिशा की विजय-यात्रा में आनर्तों को जीता था।

महाभारत के सभापर्व के एक अन्य वर्णन से ज्ञात होता है कि आनर्त का राजा शाल्व था, जिसकी राजधानी सौभनगर में थी। 

श्री कृष्ण ने इस देश को शाल्व से जीत लिया था।
विष्णु पुराण में आनर्त की राजधानी कुशस्थली 
बताई गई है-
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'आनर्तस्यापि रेवतनामा पुत्रो जज्ञे, योऽसावनर्तविशयं बुभुजे पुरीं च कुशस्थलीमध्युवास।'

इस उद्धरण से यह भी सूचित होता है कि आनर्त के राजा रेवत के पिता का नाम आनर्त था। 
इसी के नाम से इस देश का नाम आनर्त हुआ होगा।

रेवत बलराम की पत्नी रेवती के पिता थे।

महाभारत से भी विदित होता है कि आनर्त नगरी, द्वारका का नाम था-
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'तमेव दिवसं चापि कौन्तेय: पांडुनंदन:, आनर्त नगरीं रम्यां जगामाशु धनंजय:।'

गिरनार के प्रसिद्ध अभिलेख के अनुसार रुद्रदामन आभीर ने 150 ई. के लगभग अपने पहलव अमात्य सुविशाख को आनर्त और सौराष्ट्र आदि जनपदों का शासक नियुक्त किया था-
___
'कृत्स्नानामानर्त सौराष्ट्राणां पालनार्थं नियुक्तेन पह्लवे कुलैप पुत्रेणामात्येन सुविशाखेन।'

रुद्रदामन ने आनर्त को सिंधु-सौवीर आदि जनपदों के साथ विजित किया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
ऐतिहासिक स्थानावली | 
पृष्ठ संख्या= 63-64| विजयेन्द्र कुमार माथुर |
 वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | 
मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार 

( यादव योगेश कुमार'रोहि'अलीगढ़ --8077160219)

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 59 श्लोक 16-20

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पृथ्वी पति राजा जरासन्ध 'ने चेदिराज सुनीथ के पुत्र शिशुपाल के लिए भयानक पराक्रमी भीष्मक  से उनकी कन्या रुक्मणि को माँगा था ।१९।

क्योंकि जरासन्ध दमघोष का वंशज था ।
विदित हो की चेदिराज उपरिचर वसु के एक पुत्र का नाम बृहद्रथ था जिसने मगध में पहले गिरिव्रज नामक नगर का निर्माण किया था उसी के वंश में जरासन्ध उत्पन्न हुए। उपरिचर वसु के ही वंश में उन्हीं दिनों दमघोष (सुनीथ) उत्पन्न हुए जो चेदि देश के राजा थे । 

दमघोष के पाँच पराक्रमी पुत्र उत्पन्न हुए शिशुपाल, दशग्रीव ,रैभ्य,उपदिश,और बली ।
जरासन्ध दमघोष का वंशज या कुटुम्बी था और समान वंश में उत्पन्न हुआ इसलिए दमघोष ने अपना पुत्र शिशुपाल जरासन्ध को सौंप दिया था ।

रुक्मिणी त्वयभवद् राजन् रूपेणासदशी भूवि।
चकमे वासुदेवस्तां श्रवादेव महाद्युति:।।16।।

स तया चाभिलषित: श्रवादेव जनार्दन:।
तेजोवीर्यबलोपेत: स मे भर्ता भवेदिति।।17।।

तां ददौ न च कृष्णाय द्वेषाद् रुक्मीि महाबल:।
कंसस्यौ वधसंतापात् कृष्णाययामिततेजसे।।18।।
याचमानाय कंसस्य द्वेष्योदयमिति चिन्तययन्।

चैद्यस्याकर्थे सुनीथस्य जरासंधस्तु् भूमिप:।
वरयामास तां राजा भीष्म कं भीमव्रिकमम्।।19।।

चेदिराजस्यं तु वसोरासीत् पुत्रो बृहद्रथ:।
मगधेषु पुरा येन निर्मितोऽसौ गिरिव्रज:।।20।।

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 58 श्लोक 21-25

तस्यान्वावाये जज्ञेऽसौ जरासंधो :।
वसोरेव तदा वंशे दमघोषोऽपि चेदिराट्।।21।।

दमघोष पुत्रास्तु पंच भीमपराक्रमा:।
भगिन्यां वसुदेवस्य श्रुतश्रवसि जज्ञिरे।।22।।

शिशुपालो दशग्रीवो रैभ्योयऽथोपदिशो बली।
सर्वास्त्रकुशला वीरा वीर्यवन्तो महाबला:।।23।।

निम्नलिखित श्लोक दमघोष जरासन्ध समान कुल वंशञ् समानवंशस्य सुनीथ: प्रददौ सुतम्।
जरासंधस्तु सुतवद् ददर्शैनं जुगोप च।।24।।

जरासंधं पुरस्कृत्य वृष्णिशत्रुं महाबलम्।
कृतान्यागांसि चैद्येन वृष्णीनां चाप्रियौषिणा।।25।।

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इसी पुराण में  पृथ्वी के प्रथम राजा पृथु का वर्णन यूनानी-माइथॉलॉजी के प्रोटियस् से ग्राह्य है ।
हरिवंशपुराण के निम्नलिखित श्लोक में पृथु की पुत्री है पृथ्वी ।👇

तत८भयुपगमाद् राज्ञ्य: पृथोर्वैन्यस्य भारत ।
दुहितृत्वमनुप्राप्ता देवी पृथ्वीति चोच्यते ।।
पृथुना प्रविभक्ता च शोधिता च वसुंधरा ।।४६।

अर्थात्‌ भरत वंशी राजन्य ! फिर वेनपुत्र राजा पृथु के पुत्री रूप में  स्वीकार करने पर यह देवी उसकी पुत्री बनगयी और पृथ्वी कहलाया । 
इस प्रकार पृथु 'ने पृथ्वी को अनेक
भागों 'ने विभक्ति किया और शुद्ध किया ।४६।
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देखें निम्नलिखित यूनानी-माइथॉलॉजी से उद्धृत तथ्य साम्य--
In Greek mythology, Proteus (/ˈproʊtiəs, -tjuːs/;[1] Ancient Greek: Πρωτεύς) is an early prophetic sea-god or god of rivers and oceanic bodies of water, one of several deities whom Homer calls the "Old Man of the Sea" (halios gerôn).

[2] Some who ascribe a specific domain to Proteus call him the god of "elusive sea change", which suggests the constantly changing nature of the sea or the liquid quality of water.

 He can foretell the future, but, in a mytheme familiar to several cultures, will change his shape to avoid doing so; he answers only to those who are capable of capturing him. From this feature of Proteus comes the adjective protean, meaning "versatile", "mutable", or "capable of assuming many forms". "Protean" has positive connotations of flexibility, versatility and adaptability.

Name Origin -

Proteus' name suggests the "first" (from Greek "πρῶτος" prōtos, "first"), as prōtogonos (πρωτόγονος) is the "primordial" or the "firstborn".

 It is not certain to what this refers, but in myths where he is the son of Poseidon, it possibly refers to his being Poseidon's eldest son, older than Poseidon's other son, the sea-god Triton. 

The first attestation of the name, although it is not certain whether it refers to the god or just a person, is in Mycenaean Greek; the attested form, in Linear B, is 𐀡𐀫𐀳𐀄, po-ro-te-u.[3][4][5]

Family -

Proteus was generally regarded as the son of the sea-god Poseidon.[6][7] 

The children of Proteus, besides Eidothea, include Polygonus and Telegonus, who both challenged Heracles at the behest of Hera and were killed, one of Heracles' many successful encounters with representatives of the pre-Olympian world order.

 Cabeiro, mother of the Cabeiri and the three Cabeirian nymphs by Hephaestus, was also called the daughter of Proteus.[8]

Mythology-

Proteus, prophetic sea-god Edit
According to Homer (Odyssey iv: 355), the sandy island of Pharos situated off the coast of the Nile Delta was the home of Proteus, the oracular Old Man of the Sea and herdsman of the sea-beasts.

 In the Odyssey, Menelaus relates to Telemachus that he had been becalmed here on his journey home from the Trojan War. 

He learned from Proteus' daughter Eidothea ("the very image of the Goddess"), that if he could capture her father, he could force him to reveal which of the gods he had offended and how he could propitiate them and return home. 

Proteus emerged from the sea to sleep among his colony of seals, but Menelaus was successful in holding him, though Proteus took the forms of a lion, a serpent, a leopard, a pig, even of water or a tree.

 Proteus then answered truthfully, further informing Menelaus that his brother Agamemnon had been murdered on his return home, that Ajax the Lesser had been shipwrecked and killed, and that Odysseus was stranded on Calypso's Isle Ogygia.

According to Virgil in the fourth Georgic, at one time the bees of Aristaeus, son of Apollo, all died of a disease. 

Aristaeus went to his mother, Cyrene, for help; she told him that Proteus could tell him how to prevent another such disaster, but would do so only if compelled.

 Aristaeus had to seize Proteus and hold him, no matter what he would change into. Aristaeus did so, and Proteus eventually gave up and told him that the bees' death was a punishment for causing the death of Eurydice.

 To make amends, Aristaeus needed to sacrifice 12 animals to the gods, leave the carcasses in the place of sacrifice, and return three days later. 

He followed these instructions, and upon returning, he found in one of the carcasses a swarm of bees which he took to his apiary. The bees were never again troubled by disease.

There are also legends concerning Apollonius of Tyana that say Proteus incarnated himself as the 1st century philosopher.

 These legends are mentioned in the 3rd century biographical work Life of Apollonius of Tyana.

Proteus, king of Egypt -
Main article: Proteus of Egypt
In the Odyssey (iv.430ff) Menelaus wrestles with "Proteus of Egypt, 

ग्रीक पौराणिक कथाओं में, प्रोटियस (/ ʊproəti ,s, -tju /s /; [1] प्राचीन ग्रीक: Greekρ:) एक प्रारंभिक भविष्यवक्ता समुद्र-देवता या नदियों और समुद्र के पानी के देवता हैं, कई देवताओं में से एक जिन्हें होमर "ओल्ड मैन ऑफ" कहते हैं। द सी ”(हेलोस गेरोन)।

[२] कुछ लोग जो प्रोटीज को एक विशिष्ट डोमेन बताते हैं, उन्हें "मायावी समुद्र परिवर्तन" का देवता कहते हैं, जो समुद्र के निरंतर बदलते स्वरूप या पानी की तरल गुणवत्ता का सुझाव देता है।

 वह भविष्य की भविष्यवाणी कर सकता है, लेकिन, कई संस्कृतियों से परिचित एक मिथक में, ऐसा करने से बचने के लिए अपना आकार बदल देगा; वह केवल उन लोगों को जवाब देता है जो उसे पकड़ने में सक्षम हैं। प्रोटीन की इस विशेषता से विशेषण का अर्थ आता है, जिसका अर्थ है "बहुमुखी", "परस्पर", या "कई रूपों को ग्रहण करने में सक्षम"। "प्रोटियन" में लचीलापन, बहुमुखी प्रतिभा और अनुकूलनशीलता के सकारात्मक अर्थ हैं।

नाम की उत्पत्ति -

प्रोटियस का नाम "प्रथम" (ग्रीक "ῶτρςοō" pr'tos, "प्रथम") से पता चलता है, क्योंकि pr )togonos (πρωτόγονος) "प्रिमोरियल" या "प्रथम" है।

 यह निश्चित नहीं है कि यह क्या संदर्भित करता है, लेकिन मिथकों में जहां वह पोसिडॉन का पुत्र है, संभवतः यह पोसिदोन के सबसे बड़े पुत्र, पोसिदोन के दूसरे बेटे, समुद्र-देवता ट्राइटन से बड़ा है।

नाम का पहला सत्यापन, हालांकि यह निश्चित नहीं है कि यह भगवान या सिर्फ एक व्यक्ति को संदर्भित करता है, माइसेनियन ग्रीक में है; अनुप्रमाणित रूप, रैखिक बी में, po, पो-रो-ते-यू है। [३] [४] [५]

परिवार -

प्रोटीन को आमतौर पर समुद्र-देवता पोसिडॉन का पुत्र माना जाता था। [६] [regarded]

प्रोटिओस के बच्चों में ईडोथिया के अलावा, पॉलीगोनस और टेलीगोनस शामिल हैं, जिन्होंने दोनों हेरा के इशारे पर हेराक्लेज़ को चुनौती दी और मारे गए, हेराक्लीज़ के पूर्व ओलंपियन विश्व व्यवस्था के प्रतिनिधियों के साथ कई सफल मुठभेड़ों में से एक।

 हेबेस्टस द्वारा कैबेरियो, कैबिरी की मां और तीन कैबेरियन अप्सराओं को प्रोटियस की बेटी भी कहा जाता था। [of]

पौराणिक कथा-

प्रोटीन, भविष्यद्वक्ता समुद्री देवता
होमर (ओडिसी iv: 355) के अनुसार, नील डेल्टा के तट से दूर फैरोस का रेतीला द्वीप, प्रोटियस का घर था, जो समुद्र का अलौकिक ओल्ड मैन और समुद्र-घाटों का चरवाहा था।

 ओडिसी में, मेनलॉस टेलिमैचस से संबंधित है कि ट्रोप युद्ध से अपनी यात्रा के घर पर उसे यहां लाया गया था।

उसने प्रोटियस की बेटी ईडोथिया ("देवी की बहुत छवि") से सीखा, कि यदि वह अपने पिता को पकड़ सकती है, तो वह उसे यह बताने के लिए मजबूर कर सकती है कि उसने किस देवता को नाराज किया था और वह उन्हें कैसे बता सकता था और घर वापस लौट सकता था।

प्रोटीज समुद्र से अपनी कॉलोनी की सीलों के बीच सोने के लिए उभरा, लेकिन मेनलॉस उसे पकड़ने में सफल रहा, हालांकि प्रोटियस ने एक शेर, एक सर्प, एक तेंदुआ, एक सुअर, यहां तक ​​कि पानी या पेड़ का रूप ले लिया।

 इसके बाद प्रोटियस ने सच्चाई से जवाब दिया, मेनेलॉस को सूचित करते हुए कि उसके भाई अगेम्नोन की घर लौटने पर हत्या कर दी गई थी, कि अजाक्स द लेवर को मार दिया गया था और उसे मार दिया गया था, और ओडीसियस को कैलिप्सो के आइल ओगियागिया में फंसा दिया गया था।

चौथे जॉर्जीक में वर्जिल के अनुसार, एक समय में अपोलो के बेटे अरिस्टेअस की मधुमक्खियों की बीमारी से मौत हो गई थी।

अरिस्टियस मदद के लिए अपनी माँ साइरेन के पास गया; उसने उसे बताया कि प्रोटियस उसे बता सकता है कि इस तरह की दूसरी आपदा को कैसे रोका जाए, लेकिन मजबूर होने पर ही ऐसा करेगा।

 अरिस्टेअस को प्रोटीज को जब्त करना और उसे पकड़ना था, चाहे वह किसी भी स्थिति में बदल जाए। अरिस्टेअस ने ऐसा किया, और प्रोटियस ने अंततः हार मान ली और उसे बताया कि मधुमक्खियों की मौत यूरियाडाइस की मौत का कारण है।

 संशोधन करने के लिए, अरिस्टेअस को देवताओं को 12 जानवरों की बलि देने की जरूरत थी, बलिदान के स्थान पर शवों को छोड़ दें, और तीन दिन बाद वापस आ जाएं।

उसने इन निर्देशों का पालन किया, और लौटने पर, उसने शवों में से एक को मधुमक्खियों के झुंड में पाया, जिसे वह अपने आशिक के पास ले गया था। मधुमक्खियां फिर कभी बीमारी से परेशान नहीं हुईं।

वहाँ भी Tyana के Apollonius से संबंधित किंवदंतियों है कि कहते हैं कि प्रोटियस ने खुद को 1 शताब्दी के दार्शनिक के रूप में अवतार लिया।

 इन किंवदंतियों का उल्लेख तीसरी शताब्दी की जीवनी कार्य लाइफ ऑफ़ एपोलोनियस ऑफ़ टायना में किया गया है।

प्रोटीज, मिस्र का राजा -
मुख्य लेख: मिस्र का प्रोटीन
ओडिसी (iv.430ff) मेनेलॉस कुश्ती में "मिस्र के प्रोटीन,"

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As a concept and as a word, Proteus is not a commonly used term today, but has been adopted by some companies to be an interesting concept for the basis of their business names, ranging from healthcare to industrial supplies all the way to sports nutrition and supplementation.

In medicine, Proteus syndrome refers to a rare genetic condition characterized by symmetric overgrowth of the bones, skin, and other tissues.

 Organs and tissues affected by the disease grow out of proportion to the rest of the body. This condition is associated with mutations of the PTEN gene.

 Proteus also refers to a genus of Gram-negative Proteobacteria, some of which are opportunistic human pathogens known to cause urinary tract infections, most notably. Proteus mirabilis is one of these and is most referenced in its tendency to produce "stag-horn" calculi composed of struvite (magnesium ammonium phosphate) that fill the human renal pelvis.

In Professional Wrestling, British company PROGRESS Wrestling has announced the introduction of a Proteus Championship.

 The current holder of the championship will be allowed to declare the type of match they will defend the championship in, with each new champion being able to set their own match type.

 The name of the championship was chosen due to its ever-changing nature, reflecting the shape-changing abilities of the deity it was named for.

Biology -
The protist Amoeba proteus is named for the Greek god, as it has no fixed shape and constantly changes form.

एक अवधारणा के रूप में और एक शब्द के रूप में भी , प्रोटियस आज आमतौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाने वाला शब्द है, ।
लेकिन कुछ कंपनियों द्वारा अपने व्यवसाय के नाम के आधार पर एक दिलचस्प अवधारणा को अपनाया गया है, स्वास्थ्य सेवा से लेकर औद्योगिक आपूर्ति तक सभी खेल पोषण के लिए और पूरकता के लिए भी ।
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चिकित्सा में, प्रोटियस सिंड्रोम एक दुर्लभ आनुवंशिक स्थिति को दर्शाता है जो हड्डियों, त्वचा और अन्य ऊतकों के सममित अतिवृद्धि द्वारा विशेषता है।

 रोग से प्रभावित अंग और ऊतक शरीर के बाकी हिस्सों के अनुपात से बढ़ते हैं।
 यह स्थिति PTEN जीन के उत्परिवर्तन से जुड़ी है।

 प्रोटीन ग्राम-नकारात्मक प्रोटीनोबैक्टीरिया के एक जीनस को भी संदर्भित करता है, जिनमें से कुछ अवसरवादी मानव रोगजनकों का समावेश हैं जिन्हें मूत्र पथ के संक्रमण के कारण जाना जाता है, 
विशेष रूप से प्रोटीज मिराबिलिस इनमें से एक है और इसकी सबसे अधिक संदर्भित "स्टैग-हॉर्न" केल्चुरी (मैग्नीशियम अमोनियम फॉस्फेट) से बना है जो मानव वृक्कीय श्रोणि को भरता है।

प्रोफेशनल रेसलिंग में, ब्रिटिश कंपनी PROGRESS रेसलिंग ने प्रोटियस चैंपियनशिप शुरू करने की घोषणा की है।

 चैंपियनशिप के वर्तमान धारक को उस प्रकार के मैच की घोषणा करने की अनुमति दी जाएगी, जिसमें वे चैंपियनशिप की रक्षा करेंगे, प्रत्येक नए चैंपियन को अपना मैच प्रकार सेट करने में सक्षम होना चाहिए।

 चैंपियनशिप का नाम अपने कभी बदलते स्वभाव के कारण चुना गया था, जिसे देवता की आकार-बदलती क्षमताओं को दर्शाया गया था।

( यूनानी-माइथॉलॉजी से उद्धृत ---

जीवविज्ञान -
प्रोटेस्टिस्ट अमीबा प्रोटक्टस का नाम ग्रीक देवता के लिए रखा गया है, क्योंकि इसका कोई निश्चित आकार नहीं है और यह लगातार रूप बदलता रहता है। [१eb]

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प्रस्तुति-करण:-
 यादव योगेश कुमार'रोहि'  8077160219

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