गुरुवार, 28 मई 2020

भारतीय भाषाओं में ठाकुर शब्द का उदय व प्रयोग ...


हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम 
( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।

और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था ।

'परन्तु इसका आधिकारिक रूप से प्रयोग तेरहवीं सदी में सामन्त अथवा माण्डलिकों के अर्थ में हुआ ।

 कालान्तरण में  विशेषत: भारतीय मध्य काल अर्थात्‌ सोलह वीं सदी में ( तेक्वुर उल उमरा- अमीरों का राजा) ये ठाकुर/ ठक्कुर होकर भारत में सोलहवीं सदी में मुगलों द्वारा प्रदत्त जमीदारों के लकब के दौर पर प्रयोग किया गया यही जमीदार मुगल सल्तनत के नुमाइन्दों के रूप में जमीनों के मालिक बनकर समाज के निम्न मद्य वर्गीय लोगों का शारीरिक और सामाजिक शोषण मुगलों की शय पर करते थे ।
 इनके हरम अय्याशी के के मरक़ज होते थे ।
गरीबों की सन्दर लड़कीयों या स्त्रीयों को सरेआम उठवाकर अपनी अय्याश मनोवृत्तियों की 
तृप्ति करते थे ।

जन साधारण में ठाकुर शब्द रुतवेदार था ।
भारतीय प्रचीन फिल्में इन दृश्यों को दिखाती हैं ।
ठाकुर शब्द कभी भी सात्विक वृत्ति से समन्वित नहीं रहा 
'परन्तु मुगल काल में ही कृष्णा के लिए बल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय के द्वारा
 प्रथम सम्बोधन दिया गया था ।

यद्यपि पश्चिमी एशिया में उसमान खलीफा के समय ही तक्वुर उपाधि स्वायत्त और अर्द्ध स्वायत्त सामन्त अथवा माण्डलिकों की उपाधि थी 

यही शब्द भारतीय भाषाओं में ठक्कुर या ठाकुर हो गया 
भारतीय भाषाओं तक ठाकुर शब्द की यात्रा चार चरणों में होती है ।
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सर्वप्रथम उस्मानी सलतनत (१२९९ - १९२३) तक रहा ।

इसी समय तेक्वर शब्द सामन्त अथवा माण्डलिकों के लिए प्रचलित हुआ ।

 स्वतंत्रता के लिये संघर्ष के बाद २९ अक्तुबर सन् १९२३ में तुर्की गणराज्य की स्थापना पर इसे समाप्त माना जाता है।
 उस्मानी साम्राज्य सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में अपने चरम शक्ति के शिखर पर था।

 अपनी शक्ति के चरमोत्कर्ष के समय यह एशिया, यूरोप तथा उत्तरी अफ़्रीका के हिस्सों में भी फैला हुआ था।

 यह साम्राज्य पश्चिमी तथा पूर्वी सभ्यताओं के लिए विचारों के आदान प्रदान के लिए एक सेतु की तरह था।

 इसने १४५३ में क़ुस्तुन्तुनिया (आधुनिक इस्ताम्बुल) को जीतकर बीज़ान्टिन साम्राज्य का अन्त कर दिया। तुर्की शहर इस्ताम्बुल ही बाद में इनकी राजधानी बनी रही।

 इस्ताम्बुल पर इसकी जीत ने यूरोप में पुनर्जागरण को प्रोत्साहित किया था।
बाईज़न्टाइन साम्राज्य (या 'पूर्वी रोमन साम्राज्य') मध्य युग के दौरान रोमन साम्राज्य को दिया गया नाम था।
जो ईसाइयों की सल्तनत का रूप था ।

 इसकी राजधानी क़ुस्तुंतुनिया (कॉन्स्टैन्टिनोप्ल) थी, जोकि वर्तमान में तुर्की में स्थित है, और अब इसे इस्तांबुल के नाम से जाना जाता है। 
जैसा कि ऊपर बताया भी गया 

पश्चिमी रोमन साम्राज्य  (बाइज़ेंटाइन साम्राज्य )के विपरीत, इसके लोग यूनानी बोलते थे,
 नाकि लैटिन  यह लैटिन रोमनों की सांस्कृतिक भाषा तो यूनानी-माइथॉलॉजी के प्रभाव से बनी  थी  ।
और यूनानी में संस्कृति और पहचान का प्रभुत्व था।

 यह साम्राज्य लगभग ३२४ ई से १४५३ ई तक (एक हजार वर्षों से अधिक) अस्तित्व में रहा।

क़ुस्तुंतुनिया या कांस्टैंटिनोपुल  बोस्पोरुस जलसन्धि और मारमरा सागर के संगम पर स्थित एक ऐतिहासिक तुर्की शहर है, जो रोमन, बाइज़ेंटाइन, और उस्मानी साम्राज्य की भी राजधानी रही थी। 👇

 दरअसल सन् 324 ई. में प्राचीन बाइज़ेंटाइन सम्राट कोन्स्टान्टिन प्रथम द्वारा रोमन साम्राज्य की नई राजधानी के रूप में इसे पुनर्निर्मित किया गया, जिसके बाद इन्हीं के नाम पर इसे नामित किया गया।


सलजूक़​ साम्राज्य या सेल्जूक साम्राज्य(तुर्की: Büyük Selçuklu Devleti; फ़ारसी: دولت سلجوقیان‎, दौलत-ए-सलजूक़ियान​; अंग्रेज़ी: Seljuq Empire) एक मध्यकालीन तुर्की साम्राज्य था जो सन् १०३७ से ११९४ ईसवी तक चला।
ये तेक्वुर उपाधि धारक थे 

 यह सलजूक साम्राज्य एक बहुत बड़े क्षेत्र पर विस्तृत था जो पूर्व में हिन्दू कुश पर्वतों से पश्चिम में अनातोलिया तक और उत्तर में मध्य एशिया से दक्षिण में फ़ारस की खाड़ी तक फैला हुआ था। 👇


सलजूक़ लोग मध्य एशिया के स्तेपी क्षेत्र के तुर्की-भाषी लोगों की ओग़ुज़​ शाखा की क़िनिक़​ उपशाखा से उत्पन्न हुए थे। 

सप्तम सदी में अरबों के बाद  भारत पर तुर्कों ने ही आक्रमण किया।

अलप्तगीन पहला भारत में आने वाला तुर्की था ।
अलप्तगीन समनी वंश के शासक अबुल मलिक का ग़ुलाम था। 

उसकी प्रतिभा और सैनिक गुणों से प्रभावित होकर अबुल मलिक ने उसे खुरासान का गवर्नर नियुक्त कर दिया था।
यह वास्तविक रूप में उसी के कबीले का था ।
बताया तो यह भी जाता है कि यह अलप्तगीन अबुलमलिक का दामाद भी था ।

जब अबुल मलिक की मृत्यु हो गई, तब अलप्तगीन ने अफ़ग़ानिस्तान के पास एक नया राज्य स्थापित किया और ग़ज़नी को अपनी राजधानी बनाया।

यह गजनी साम्राज्य यामिनी वंश/गजनी वंश का संस्थापक था।

सुबुक्तगीन का समय इतिहास में 
 (977-997) ग़ज़नी की गद्दी पर अलप्तगीन की मृत्यु के बाद बैठने के रूप में दर्ज है । 

प्रारम्भ में वह एक ग़ुलाम था, जिसे अलप्तगीन ने ख़रीद लिया था।

 अपने ग़ुलाम की प्रतिभा से प्रभावित होकर अलप्तगीन ने उसे अपना दामाद बना लिया था ।
और 'अमीर-उल-उमरा' या 
(तेक्वुर उल उमरा अर्थात्‌ अमीरों का राजा) की उपाधि से उसे सम्मानित किया।

सुबुक्तगीन भारत पर आक्रमण करने वाला पहला तुर्क शासक था।

इसने 986 ई. में जयपाल(शाही वंश के राजा) पर आक्रमण किया और जयपाल को पराजित किया।

 जयपाल का राज्य सरहिन्द से लमगान(जलालाबाद) और कश्मीर से मुल्तान तक था।

 शाही शासकों की राजधानी क्रमशः ओंड, लाहौर और भटिण्डा थी।

महमूद गजनवी
उपाधि - सुल्तान, यामीन-उद्दौला तथा ‘अमीन-ऊल-मिल्लाह’
महमूद गजनवी का जन्म 1 नवंबर 971 ई. को हुआ।
महमूद गजनवी सुबुक्तगीन का पुत्र था।

998 ई. में सुबुक्तगीन की मृत्यु के बाद महमूद गजनवी गजनी का शासक बना।

खलीफा अल-कादिर-बिल्लाह ने महमूद को ‘सम्मान का चोगा’ दिया और यमीन उद्दौला(साम्राज्य की दक्षिण भुजा), अमीन-उल-मिल्लत(धर्म संरक्षक) की आदि उपाधियाँ प्रदान की।👇

विदित हो की सुल्तान की उपाधि तुर्की शासकों ने ही प्रारम्भ की थी। 
उसे यह उपाधि बगदाद के खलीफा ने प्रदान की। 
सुल्तान की उपाधि लेने वाला पहला शासक महमूद गजनवी था।

गजनवी के भारतीय आक्रमण

इसने खैबर दर्रे से रास्ते से भारत पर प्रथम आक्रमण 1001 ई. में पंजाब के आस-पास के क्षेत्रों में किया। महमूद गजनवी का पहला आक्रमण हिन्दुशाही शासक जयपाल के विरूद्ध था।

महमूद गजनबी ने 1001 ई. से 1027 ई. के बीच भारत पर 17 बार आक्रमण किए।
तेक्वुर लकब ही हिन्दी भाषाओं में ठक्कुर रूप में अवतरित हुआ ।
इस शब्द के वर्चस्व को धार्मिक जगत में अपने इष्ट देव के रूप में पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय के वैष्णव सन्त बल्लभाचार्य 'ने स्वीकार करते हुए अपने आराध्य कृष्ण क दिया ।

बल्लभाचार्य ने कृष्ण के श्रीविग्रह को ठाकुर सम्बोधन दिया ।

वल्लभाचार्य का जन्म: विक्रम संवत 1530 -और   मृत्यु: विक्रम संवत 1588 भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधार स्तंभ एवं पुष्टिमार्ग के प्रणेता के रूप में हुआ । 

जिनका प्रादुर्भाव ईस्वी सन् 1479, वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्राह्मण श्री लक्ष्मणभट्ट जी की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से काशी के समीप हुआ।
कृष्ण तो ठक्कुर सम्बोधन देने का 

भारतीय भाषाओं में ठाकुर एक उपाधि है ।
जो छोटी रियासतों के राजाओं एवं बड़े ज़मीदारों को दी गई थी। 

ठाकुर शब्द का अर्थ हिन्दी भाषाओं में "स्वामी" माना जाता है, 
जैसे की "ठाकुरघर" अर्थात पूजाघर।

बल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग के द्वारा मान्यता से है 

उत्तर भारत में यह विभिन्न राजपूत भी मुगल काल से उनके समुदायों के उपनाम या उपाधि के लिए प्रयुक्त होता रहा है।

 जबकि स्थान परिवर्तन भेद से यह नाई और रसोइये के लिए भी प्रयुक्त होता है।

ठाकुर शब्द का प्रयोग बंगाली ब्राह्मणों  को भी होता है ।
इन  ब्राह्मणों का परिवार (1690-1951) में सांस्कृतिक रूप से उन्नत था ।

जिसमें देवेन्द्रनाथ ठाकुर, अबनीन्द्रनाथ ठाकुर, गोपीमोहन ठाकुर, द्वारकानाथ ठाकुर, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, आदि  ब्राह्मण साहित्यकारों, कवियों, चित्रकारों, दार्शनिकों आदि ने जन्म लिया एवं जिसके मूल में पंचानन कुशारी थे।

ठाकुर  ब्राह्मण परिवार जिसका इतिहास तीन सौ वर्ष से भी पुराना है।

 बंगाली नवजागरण के समय से ही कलकत्ता के प्रमुख परिवारों में से एक रहा है।

 इस परिवार में कई ऐसे महापुरुषों का जन्म हुआ जिन्होंने कला, साहित्य, समाज सुधार आदि के कार्यों में अभूतपूर्व योगदान दिया है।

ठाकुर शब्द का प्रयोग मध्यकाल में ईश्वर, स्वामी या मन्दिर की प्रतिमा (मूर्ति) के लिए किया जाता था।

 मुगलकाल में शासकवर्ग ने इसका व्यवहार अपने नाम के साथ करना प्रारम्भ कर दिया। 

विदित हो कि अक्तूबर 1720 ई० में देहली के सम्राट् मुहम्मदशाह ने चूड़ामन जाट को ठाकुर की पदवी तथा अधिकार देकर सम्मानित किया था।
अत टाकुर शब्द के व्यापक अर्थ रूपों में उद्भासित हुआ ।

हिन्दी शब्दसागर में ठाकुर  [सं॰ ठक्कुर]  शब्द के अर्थ
 देवता, विशेषकर विष्णु या विष्णु के अवतारों की प्रतिमा  देवमूर्ति आदि 
 यौगिक रूप में —ठाकुरद्वारा । ठाकुरबाड़ी । 
२. ईश्वर । परमेश्वर । भगवान् । 
३. पूज्य व्यक्ति । 
४. किसी प्रदेश का अधिपति । नायक । सरदार । अधिष्ठाता ।

 उदाहरण—
 सब कुँवरन फिर खैंचा हाथू ।
 ठाकुर जेव तो जैंवै साथू ।
— जायसी (शब्दावली) । 

५. जमींदार । गाँव का मालिक । 
६. मुगल काल मे राजपूतों की उपाधि । 
७. मालिक । स्वामी । 

उदाहरण—(क) ठाकुर ठक भए गेल चोरें चप्परि घर लिज्झअ ।—कीर्ति॰, पृ॰ १६ । 

(ख) निडर, नीच, निर्गुन, निर्धन कहँ जग दूसरो न ठाकुर ठाँव ।—तुलसी (शब्दावली) । 
८. नाइयों की उपाधि । नापित ।
ये थे ठाकुर शब्द के अब तक के अर्थ ....
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प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार 'रोहि' 
सम्पर्क सूत्र 8077160219



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