गुरुवार, 4 जुलाई 2019

गुर्जर और अहीरों का सम्बन्ध - भाग एक संशोधित संस्करण

गुर्जर और अहीरों का सम्बन्ध - भाग एक
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गुर्ज्जर शब्द की व्युत्पत्ति के भी अनेक मत हैं ।
शब्दरत्नी वली के रचयिता ने काल्पनिक रूप से गुर्जर शब्द की व्युत्पत्ति की है :---

गुर् शत्रुकृत ताडनंबधोद्यम आदिकंवा उज्जरयतियोदेशः।
कलिङ्गाःसाहसिका इतिवद्देशस्थजनेलक्षणेतिज्ञेयम्
गुज्जराटदेशः।
इतिशब्दरत्नावलि॥

अर्थात्‌ 'शत्रु का वध करने वाला ' गु: शत्रु + उज्जर= उज्जीर्ण या नष्ट करने वाला।

यद्यपि गुर्जर वीर और निर्भीक होते हीे हैं , इसमें कोई सन्देह नहीं ,परन्तु व्युत्पत्ति-आनुमानिक रूप से ही की गयी है ।

संस्कृत भाषा में और भी गुर्जर जन-जाति के उद्धरण ---
प्राप्त हैं ।

परन्तु बहुत बाद के लगभग अष्टम सदी बाद के
जो गुर्जर शब्द की व्युत्पत्ति पर स्पष्ट प्रकाश - प्रक्षेपण नहीं करते हैं।
जैसे-
गुर्जर :--( गुर्+जॄ + णिच् + अच्)।गुरितिशत्रुकृतताडनादिकंतज्जीर्य्यत्यत्रइतिअधिकरणे
अप्।
गुर्ज्जरःदेशःतस्यप्रियेतिङीष्।यद्वागुर्ज्जरदेशःप्रियोऽस्याइतिअण्ङीप्च।गुर्ज्जरदेशवासिनीअतोगुर्ज्जरीतिकेचित्।) 
रागिणीविशेषः।
इतिहलायुधः कोश॥

इयन्तुभैरवरागस्यरागिणीतिबोध्यम्।
यथा  सङ्गीतदर्पणेरागविवेकाध्याये।१६।     “भैरवीगुर्ज्जरीरामकिरीगुणकिरीतथा।वाङ्गालीसैन्धवीचैवभैरवस्यवराङ्गनाः॥”     अस्यागानवेलानिर्णयोयथा  तत्रैव।२०।     “वेलावलीचमल्लारीवल्लारीसोमगुर्ज्जरी।”     इयंहिग्रीष्मऋतौस्वस्वामिनाभैरवरागेणसहगीयते।यथा  तत्रैव।२७।

“भैरवःससहायस्तुऋतौग्रीष्मेप्रगीयते।”     इतिसोमेश्वरमतम्।
हनूमन्मतेतु।इयमेवमेघरागस्यस्त्री।यथा  तत्रैव।३७।     “मल्लारीदेशकारीचभूपालीगुर्ज्जरीतथा।टङ्काचपञ्चमीभार्य्यामेघरागस्ययोषितः॥”   
इयंपुनारागार्णवमतेपञ्चमरागाश्रयारागिणीत्यवधेयम्।यथा  तत्रैव।४०।     “ललितागुर्ज्जरीदेशीवराडीरामकृत्तथा।मतारागार्णवेरागाःपञ्चैतेपञ्चमाश्रयाः॥)
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चौदहवीं सदी की रचना योग वाशिष्ठ महारामायण में आभीर देश में गुर्ज्जरों का वर्णन यौद्धा रुप में  वर्णित है 👇

वैराग्य- प्रकरण 37 वें सर्ग के श्लोक संख्या 19 में
वर्णन है कि👇

"गुर्जरानीकनाशेन गुर्जरीकेशलुञ्चनम् ।
अर्थात् गुर्जर सेना के विनाश होने पर गुर्ज्जरः नारीयों ने अपने केश काट लिए -
तथा इसी सर्ग में  21 वें श्लोक में वर्णन है कि..
आभीरेष्वरय: पातेर्गोगणा हरितेषु इव ।।
अर्थात्‌ अहीरों के उस देश में 'वह शत्रु सेना उसी प्रकार टूट पड़ी जैसे हरी घास पर गायों के समूह टूट पड़ते हैं ।

वस्तुत यहाँं गौश्चर :(गुर्ज्जरः) विशेषण आभीर का प्रतिनिधित्व करते हुए समानार्थक रूप से प्रयुक्त है ।

वैसे भी संस्कृत कोश कारों ने गुर्ज्जरः अहीरों की एक शाखा के रूप में वर्णित है ।
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गुर्जर शब्द का यह प्रयोग केवल काव्य-गत है ।
जो राज शेखर से सम्बद्ध है ।
राजशेखर का समय  (विक्रमाब्द 930- 977 तक) है !
ये काव्यशास्त्र के पण्डित थे।
वे कान्यकुब्ज के गुर्जरवंशीय नरेश महेंद्रपाल एवं उनके बेटे महीन्द्र पाल के गुरू एवं मंत्री थे।
उनके पूर्वज भी प्रख्यात पण्डित एवं साहित्य मनीषी रहे थे।
काव्यमीमांसा उनकी प्रसिद्ध रचना है।
समूचे संस्कृत साहित्य में कुन्तक और राजशेखर ये दो ऐसे आचार्य हैं जो परंपरागत संस्कृत पंडितों के मानस में उतने महत्त्वपूर्ण नहीं हैं जितने रसवादी या अलंकारवादी अथवा ध्वनिवादी हैं।

राजशेखर लीक से हट कर अपनी बात कहते हैं, और कुन्तक विपरीत धारा में बहने का साहस रखने वाले आचार्य हैं।
राजशेखर महाराष्ट्र देशवासी थे और यायावर वंश  में उत्पन्न हुए थे किन्तु उनका जीवन बंगाल में बीता।

इनकी माता का नाम शिलावती तथा पिता का नाम दुहिक या दुर्दुक था , और वे महामंत्री थे।
इनके प्रपितामह अकालजलद का विरद 'महाराष्ट्रचूड़ामणि' था।

राजशेखर की पत्नी चौहान कुल की क्षत्राणी विदुषी महिला थी जिसका नाम अवन्तिसुन्दरी था।

महेंद्रपाल के उपाध्याय होने के साथ ये उसके पुत्र महीपाल के भी कृपापात्र बने रहे।
इन दोनों नरेशों के शिलालेख दसवीं शताब्दी के प्रथम चरण (९०० ई. और ९१७ ई.) के प्राप्त होते हैं अत: राजशेखर का समय ८८०-९२० ई० के लगभग मान्य है।
परन्तु इनके समय तक प्राकृत
भाषाओं का बोल-बाला था ।

गुर्जर शब्द प्रारम्भिक चरण में  गौश्चर: के रूप में गोपोंं का वाचक रहा है ।
  जो कालान्तरण में गुर्जर रूप हो गया ।
गौश्चर शब्द गोपों का विशेषण था ।

परन्तु यह शब्द ऐैतिहासिक सन्दर्भों में ही रही है, साहित्य सन्दर्भों में कभी नहीं -
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हिन्दी व्रज भाषाओं के कवियों ने गूजर शब्द अहीरों के लिए किया है ।
जैसे ---
संज्ञा पुं० [सं० गुर्जर] [स्त्री० गूजरी, गुजरिया] १. अहीरों की एक जाति  ग्वाला ।
२. क्षत्रियों का एक भेद ।
संज्ञा स्त्री० [हिं० गूजरी] १. गूजर जाति की स्त्री । ग्वालिन । गोपी ।

२. धोबियों के नृत्य में स्त्री के रूप में नाचनेवाला । उ०—लो छनछन, छनछन, छनछन, छनछन, नाच गुजरिया हरती मन । —ग्राम्या०, पृ० ३१

संस्कृत भाषा के विद्वान् प्रोफेरसर मदन- मोहन झा ने अपने हिन्दी कोश में गूजरों को अहीरों के रूप में उद्धृत किया है।

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मीरा वाई ने गोपिकाओं के लिए अहीरिणी शब्द का प्रयोग अपने पदों में किया है ---
जो ठेठ राजस्थानी रूप है ।
देखें--👇
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अच्छे मीठे चाख चाख, बेर लाई भीलणी।।
ऐसी कहा अचारवते, रूप नहीं एक रती;

नीचे कुल ओछी जात, अति ही कुचीलणी।
जूठे फल लीन्हें राम, प्रेम की प्रतीत जाण;

ऊच नीच जाने नहीं, रस की रसीलणी।
ऐसी कहा वेद पढ़ी, छिन में बिमाण चढ़ी;

हरि जूँ सूँ बाँध्यो हेत बैकुण्ठ मैं झूलणी।
दासी मीराँ तरै सोइ ऐसी प्रीति करै जोई;
पतित-पावन प्रभु गोकुल अहीरणी।।222।।

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शब्दार्थ-अचारवती = अचार-विचार से रहने वाली।

एक रती = रत्ती भर भी।
कुचीलणी = मैंले-कुचैले वस्त्रों वाली। प्रतीति = प्रतीत, विश्वास।
रस की रसीलणी = भक्ति का प्रेम-रस की रसिकता। छिन में विमाण चढ़ी = स्वर्ग चली गई।
हेत = प्रेम।
गोकुल = अहीरणी = गोकुल की ग्वालिन; पूर्व जन्म की गोपी।
अब रीति कालीन व्रज के कवियों ने राधा आदि गोपिकाओं को गुजरिया शब्द से सम्बोधित करते हुए वर्णन किया है ।
इसे भी देखें---
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" खातिर करले नई गुजरिया
रसिया ठाडो तेरे द्वार ।।

                  ये रसिया नित द्वार न आवे,
                  प्रेम होय तो दरसन पावे।

अधरामृतको भोग लगावे,
कर महेमानी अब मत चूक
            समय न वारंवार ।।
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निश्चित रूप से ये पक्तियाँ श्रृंगारिकता की पराकाष्ठा का भी अतिक्रमण करते हुए, अश्लीलता की उद्भावक हो गयी हैं ।

जो की  रीति कालीन प्रवृत्ति-मूलक हैं ।
गुर्जर जन-जाति का ऐैतिहासिक सन्दर्भों में जो वर्णन है वह यथार्थ की सीमाओं से परे है ।
-जैसे  भारतीय में गुर्ज्जरों ने सूर्य वंशी होने की मान्यताऐं रूढ़िवादी करली हैं ।
और नन्द तथा वृषभानु आदि गोपोंं से स्वयं को सम्बद्ध मानते हैं।
विकीपीडिया पर लिखा है ।
देखें---
गुर्जर मुख्यत: उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफ़्ग़ानिस्तान में बसे हैं।
इस जाति का नाम अफ़्ग़ानिस्तान के राष्ट्रगान में भी आता है।
गुर्जरों के ऐतिहासिक प्रभाव के कारण उत्तर भारत और पाकिस्तान के बहुत से स्थान गुर्जर जाति के नाम पर रखे गए हैं, जैसे कि भारत का गुजरात राज्य, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरात ज़िला और गुजराँवाला ज़िला और रावलपिंडी ज़िले का गूजर ख़ान शहर।
इसको उदाहरण- है ।

परन्तु पुस्तकों में वर्णन है कि
आधुनिक स्थिति में गुर्जर जन-जाति -
" प्राचीन काल में युद्ध कला में निपुण रहे गुर्जर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।

निश्चित रूप से ये आभीर जन-जाति से सम्बद्ध हैं " गुर्जर अच्छे योद्धा माने जाते थे ,और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है।
अभीर शब्द भी अपने इसी निर्भीकता के अर्थ को ध्वनित करता है ।

अ नकारात्मक उपसर्ग (Prefix) + भीर -- कायर /डरपोंक अर्थात् जो कायर (भीर) नहीं है ।
वह अभीर है ।

भारत मे गुर्जर की जनसंख्या लगभग 20 करोड की है। गुर्जर महाराष्ट्र (जलगाँव जिला), दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर राजस्थान जैसे राज्यों में फैले हुए हैं।
राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं।

सामान्यत: गुर्जर हिन्दू, सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो मे देखे जा सकते हैं।
यहाँं तक की ईसाईयों में कज्जर नाम से हैं

वर्ण-व्यवस्था के समर्थकों ने गुर्जर जन-जाति को शूद्र घोषित करने की चेष्टा की तो ये अपने स्वाभिमान की खातिर मुसलमान ,सिक्ख  और ईसाई हो गये ।

ईसाईयों में कज्जर नाम से गुज्जर विद्यमान हैं ।
,मुस्लिम तथा सिख ,गुर्जर, हिन्दू गुर्जरो से ही परिवर्तित हुए थे।

पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है।

गुर्जर और अहीरों का सम्बन्ध - अहीरों को संस्कृत भाषा में अभीरः अथवा आभीरः संज्ञा से अभिहित किया गया ।

संस्कृत भाषा में इस शब्द की व्युपत्ति
" अभित: ईरयति इति अभीरः" अर्थात् चारो तरफ घूमने वाली निर्भीक जनजाति " अभि एक धातु ( क्रियामूल ) से पूर्व लगने वाला उपसर्ग (Prifix)..तथा ईर् एक धातु है । परन्तु कुछ संस्कृत कोश कारों ने 🐂

(अभीरयति गा अभिमुखीकृत्य गोष्ठं नयति इति अभीर
अभि + ईर + णिच् + अच् )
आभीरः ।  गोपः । गौश्चर:
इत्यमरटीकायां रमानाथः ॥
अमर कोश के अभीर शब्द की टीका ( व्याख्या-) के अनुरूप..

परन्तु यह व्युत्पत्ति केवल आनुमानिक अवधारणाओं पर अवलम्बित है ।
अभि उपसर्ग + ईर् धातु -
जिसका अर्थ :-  चारो ओर गमन करना (जाना)है ;
इसमें कर्तरिसंज्ञा भावे में अच् प्रत्यय के द्वारा निर्मित विशेषण -शब्द अभीरः विकसित होता है |

और इस अभीरः शब्द में श्लिष्ट अर्थ है... जो पूर्णतः भाव सम्पूर्क है ।

..."अ" निषेधात्मक उपसर्ग तथा भीरः/ भीरु कृदन्त शब्द जिसका अर्थ है "कायर" ..अर्थात् जो भीरः अथवा कायर न हो वह वीर पुरुष ।
(अ) नञ्  भीरव: कायरा: असौ अभीर: तत्पश्चात् सन्तति अथवा समूह वाची रूप में तद्धित प्रत्यय अण् होने से आभीर: शब्द बनता है ।

ईज़राएल के यहूदीयो की भाषा हिब्रू में भी अबीर (Abeer) शब्द का अर्थ वीर तथा सामन्त का वाचक है।
..तात्पर्य यह कि इजराईल के यहूदी वस्तुतः यदु की सन्तानें थीं जिनमें अबीर भी एक प्रधान युद्ध कौशल में पारंगत शाखा थी ।

यद्यपि आभीरः शब्द अभीरः शब्द का ही बहुवचन समूह वाचक रूप है |

अभीरः+ अण् = आभीरः ..हिब्रू बाईबिल में सृष्टिखण्ड (Genesis) ..में यहुदः तथा तुरबजू के रूप में यदुः तुर्वसू का ही वर्णन है !

और देव संस्कृति के अनुयायीयों के प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में जैसा कि वर्णन है देखें -
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ऋग्वेद के दशम् मण्डल के 62 में सूक्त की 10 वीं ऋचा में वर्णन है कि
"उत दासा परिविषे स्मद्दिष्टी (समत् दिष्टी ) गोपरीणसा यदुस्तुर्वश् च मामहे ।।

= अर्थात् यदु और तुर्वशु नामक जो दास हैं !
जो गोओं से परिपूर्ण है अर्थात् चारो ओर से घिरे हुए हैं हम सब उनकी स्तुति करते हैं |

वस्तुतः अभीरः शब्द से कालान्तरण में स्वतन्त्र रूप से एक अभ्र् नामधातु का विकास हुआ ; जो संस्कृत धातु पाठ में भी परिगणित है !

जिसका अर्थ है...----चारौ ओर घूमना ..इतना ही नही मिश्र के टैल ए अमर्ना के शिला लेखों पर हबीरु शब्द का अर्थ भी घुमक्कड़ ही है।

..अंग्रेजी में आयात क्रिया शब्द (Aberrate )
का अर्थ है।...
"to Wander or deviate from the right path"turn aside or wander from the (right) way," from Late Latin deviatus, past participle of deviare "to turn aside, turn out of the way," from Latin phrase de via, from de "off" (see de-) + via "way" (see via). Meaning "take a different course, diverge,
बाद की लैटिन में डेवियतस से अर्थ अलग-अलग मोड़ने के लिए, रास्ते से बाहर निकलने के लिए, "लैटिन वाक्यांश से," ऑफ "से (दाएं देखें) से (दाएं) रास्ते से अलग हो जाएं, + "रास्ता" के माध्यम से (देखें)।

मतलब "1690 से एक अलग कोर्स लेना, अलग करना, आदि अर्थ रूढ़ हो गये व्युत्पत्ति रूप - लैटिन aberrātus से, aberrō ("भटकना, या विचलित होना") Ab + errō ("भटकना घुम्मकड़ होना ") से बना है।

विदित हो कि यहाँं भी आर्य्य शब्द प्रतिध्वनित हो रहा है ।
aberrate (तीसरे व्यक्ति एकवचन सरल वर्तमान aberrates, वर्तमान भागने aberrating, सरल अतीत और पिछले भाग aberrated)

Etymology -- शब्द- व्युपत्ति From Latin aberrātus, perfect passive participle of aberrō अबेरो (“wander, stray or deviate from ), formed from ab (“from, away from”) + errō (“stray” or Go).

(अप्रचलित रूप ) भटकने के लिए; अलग करना; विचलित करने के लिए से सम्बद्ध अर्थ; वस्तुत यह अर्थ
[18 वीं शताब्दी के मध्य से प्रारम्भ है । ____________________________________________
अर्थात् सही रास्ते से भटका हुआ..आवारा ..संस्कृत रूप अभीरयति परस्मै पदीय रूप ... सत्य तो यह है कि सदीयों से आभीरः जनजाति के प्रति तथा कथित कुछ ब्राह्मणों के द्वारा द्वेष भाव का कपट पूर्ण नीति निर्वहन किया गया जाता रहा ।

..शूद्र वर्ग में प्रतिष्ठित कर उनके लिए शिक्षा और संस्कारों के द्वार भी पूर्ण रूप से बन्द कर दिए गये .. जैसा कि एक ग्रन्थ में वर्णन है 👇

" स्त्रीशूद्रौ नाधीयताम् " अर्थात् स्त्री और शूद्र ज्ञान प्राप्त न करें ...अर्थात् वैदिक विधान का परिधान पहना कर इसे ईश्वरीय विधान भी सिद्ध किया गया ... क्यों कि वह तथाकथित समाज के स्वमभू अधिपति जानते थे कि शिक्षा अथवा ज्ञान के द्वारा संस्कारों से युक्त होकर ये अपना उत्धान कर सकते हैं ।

..शिक्षा हमारी प्रवृत्तिगत स्वाभाविकतओं का संयम पूर्वक दमन करती है अतः दमन संयम है और संयम यम अथवा धर्म है ।
शिक्षा और संस्कारों के अभाव में ये जन-जातियाँ पतित भी हुईं
... यद्यपि कृष्ण को प्रत्यक्ष रूप से तो शूद्र अथवा दास नहीं कहा गया परन्तु परोक्ष रूप से उनके समाज या वर्ग को आर्यों के रूप में स्वीकृत नहीं किया है ।
जबकि असली आर्य्य विशेषण के हकदार यही लोग थे ।

.कृष्ण को इन्द्र के प्रतिद्वन्द्वी के रूप मे भी वैदिक साहित्य में वर्णित किया गया है ।
.. वस्तुतः अहीर एक गौ पालक जाति है, जो उत्तरी और मध्य भारतीय क्षेत्र में फैली हुई है।
इस जाति के साथ बहुत ऐतिहासिक
महत्त्व जुड़ा हुआ है ।
क्योंकि इसके सदस्य संस्कृत साहित्य में उल्लिखित आभीर के समकक्ष माने जाते हैं।
स्वयं अहीर शब्द आभीर शब्द का
प्राकृत भाषा का रूप है ।
हिन्दू पौराणिक ग्रंथ 'महाभारत' में इस जाति का बार-बार उल्लेख आया है।
नारायणी सेना के यौद्धाओं के रूप में ये कालान्तरण में सुभद्रा के अपहरण करने के कारण अर्जुुन के शत्रु हो गये और पंजाब प्रदेश में इन्होंने ही अर्जुुन को परास्त कर समस्त यदुवंशी स्त्रीयों को अपने साथ चलने के लिए कहा
कुछ स्वेच्छा से साथ चली तो कुछ को बलपूर्वक साथ ले गये और जिन्हें पुन: राजस्थान गुजरात, हरियाणा और व्रज प्रान्त मे बसा दिया।
कुछ विद्वानों का मत है कि इन्हीं गौ पालकों ने, जो दक्षिणी राजस्थान और सिंध (पाकिस्तान) में बिखरे हुए हैं, गोपालन भगवान् कृष्ण की कथा का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं।

'अहीर' भारत की प्राचीन जाति है, जो अराजकता के लिए काफ़ी प्रसिद्ध रही है।

यह सर्व सत्य है कि शिक्षा और संस्कारों से वञ्चित समाज कभी सभ्य या सांस्कृतिक रूप से समुन्नत नहीं हो सकता है ।

अतः आभीरः जनजाति भी इसका अपवाद नहीं है ... जैसा की तारानाथ वाचस्पत्यम् ने अहीरों की इसी प्रवृत्ति गत स्वभाव को आधार मानकर संस्कृत भाषा में आभीरः शब्द की व्युत्पत्ति भी की है।

"आ समन्तात् भीयं राति इति आभीरः कथ्यते "..अर्थात् जो चारो ओर से जो भय प्रदान करता है वह आभीरः है।

...यद्यपि यह शब्द व्युत्पत्ति प्रवृत्ति गत है अन्यत्र दूसरी व्युत्पत्ति अभीरः शब्द की भी वृत्ति गत है ।

अभिमुखी कृत्य ईरयति गाः इति अभीरः अर्थात् दौनो तरफ मुख करके जो गायें चराता है या घेरता है वह अभीरः है।
ये व्युत्पत्ति केवल वृत्ति मूलक और प्रवृत्ति मूलक है
वंश मूलक व्युत्पत्ति के स्तर पर ये यदुवंश से सम्बद्ध हैं ।
क्यों कि गोप तो यदु को भी कहा है ।
ऋग्वेद- 10/62/10
शब्द- विश्लेषक यादव योगेश कुमार "रोहि" ग्राम- आजादपुर पत्रालय -पहाड़ीपुर जनपद -अलीगढ़ के द्वारा प्रायोजित है .....फारसी मूल का आवरा शब्द भी अहीर /आभीरः का तद्भव रुप है ।

.. जाटों का इन अहीरों से रक्त सम्बन्ध तथा सामाजिक सम्बन्ध मराठों और गूजरों जैसा निकटतम है।
सूरजमल जाट यदु वंश से सम्बद्ध थे ।

स्वयं गुज्जर / गूजर अथवा संस्कृत गुर्जरः भी संस्कृत के पूर्ववर्ती शब्द गोश्चरः ---- गायों को चराने वाला !
परवर्ती रूप है जिससे गुर्जरायत या गुजरात प्रदेश वाची शब्द का विकास हुआ है ।

.
यादव प्राय: 'अहीर' शब्द से भी नामांकित होते हैं, जो  आभीर जाति से संबद्ध हैं कुछ लोग आभीरों को देव-संस्कृति को न मानने वाला  कहते हैं !

..क्यो ऋग्वेद के दशम् मण्डल के 62 में सूक्त के 10 वें मन्त्र में यदु और तुर्वशु को दास कहा गया है ..
जैसा कि उपर्यक्त वर्णित है ।

उत दासा परिविषे स्मत् दृष्टी
गोपरिणसा यदुस्तुर्वसुश्च मामहे |
कहा जाता है कि इन्द्र की पूजा का विरोध कृष्ण ने ही सबसे पहले किया।

अतः आभीरः जनजाति के पूर्व- पुरुष यदु आर्यों के समुदाय से बहिष्कृत कर दिये गये थे ..यदि आभीरः जनजाति को अभीर जाति से संबंधित किया जाये तो ये विदेशी ठहरते हैं।
परन्तु यह भ्रान्ति मूलक अवधारणा है ।
ये इज़राएल के अबीर भी आभीरों की ही शाखा थी

जैसा कि इजराईल के यहूदी अबीर Abeer जनजाति जो युद्ध और पराक्रम के लिए दुनिया मे विख्यात हैं ।
यह तो इनके पराक्रम का साम्य है..
श्रीकृष्ण को जाे दोनों ही अपना पूर्व-पुरुष मानते हैं।
यद्यपि अहीरों में परस्पर कुछ ऐसी दुर्भावनाएं उत्पन्न हो गई हैं कि वे स्वयं एक शाख वाले, दूसरी शाख वालों को, अपने से हीन समझते हैं।
जैसा कि उत्तर प्रदेश में घोसी और कमलिया ( कमरिया)
अहीरों में है ..

लेकिन जाटों का सभी अहीरों के साथ चाहे वे अपने लिए यादव, गोप, नंद, आभीर कहें, एक-सा ही  व्यवहार है।
जैसे खान-पान में जाट और गूजरों में कोई भेद नहीं, वैसे ही अहीर और जाटों में भी कोई भेद नहीं।
ये सदीयों से समान हैसियत के लोग हैं।
पाश्चात्य इतिहास कारों की अवधारणा है कि गुर्जर और आभीर आयबेरिया या गुर्जिस्तान के निवासी भी रहे हैं जो जॉर्जिया अथवा
आयरलेण्ड का का ही एक उपनिवेश था ।

इसी लिए विदेशी इतिहास कार अहीर /अहीर  इस शब्द के अन्य अर्थ करते  हैं, इबेरिया । Iberia, Iberia, Iviria Kartli , ग्रीक में Ἰβηρία , लैटिन इबेरिया ) ________________________________________

जॉर्जियाई और प्राचीन आर्मेनियाई, बीजान्टिन लेखक दोनों के द्वारा वर्णित ऐतिहासिक पूर्वी जॉर्जिया के क्षेत्र में प्राचीन जॉर्जियाई साम्राज्य को आइबेरिया कहते थे ।

( ქართლი ) यह राज्य तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व - 537 वर्ष तक ट्रांसकेशिया के नक्शा में राजधानी अरमाजी , मत्शेखे , तबीलिसी आदि रूपों में रहा है ।

(5 वीं शताब्दी के बाद से) सबसे बड़े शहर आर्मज़ी , मत्शेखे , तबीलिसी , अपलिस्टिचे , नेकेरेस , तुंडा भाषाओं वाले जॉर्जियाई सरकार का फॉर्म साम्राज्य तथ ऐैतिहासिक दृष्टि से प्राचीन काल से इबेरिया का क्षेत्र कई संबंधित रूपों में रहा है । _________________________________________
यहाँ कभी अवर और कज़र जनजातियों ने निवास किया गया था ।

जिनकी एक रूपता अहीरों और गुर्जर (गौश्चर) से पाश्चात्य इतिहास विदों ने की है ।

लेखकों ने इसको "सस्पेरी", "तिब्बारेन्स" और सामूहिक "इबेरियन" ( पूर्वी इबेरियन ) कहा है।

स्थानीय लोगों ने बाद में एक लोकप्रिय संस्करण के अनुसार अपने देश को कार्तली कह कर बुलाया, ऐसा माना जाता है ।

कि देश का नाम कार्तलोस के पौराणिक पूर्वजों की ओर से दिखाई दिया।

द्वितीय सहस्राब्दी ईसा पूर्व में दक्षिण जॉर्जियाई भूमि में 7 वीं शताब्दी में ताओ या दीओही ईरानी रूप दह्यु जिसे वेदों में दास रूप में वर्णित किया है इस नाम का एक राज्य था।

ईसा पूर्व में उरर्तू ने किस पर हमला किया था ।
और आंशिक रूप से अपनी रचना में प्रवेश किया, और आंशिक रूप से कोल्किस में यह अज्ञात ही है।

तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की बारी में इबेरिया के क्षेत्र में एक वर्ग राज्य का गठन किया गया था।
समुदाय में एकजुट कुछ किसान स्वतंत्र थे, अन्य शाही परिवार और कुलीनता के अधीन थे।

गुलामों(मुख्य रूप से युद्ध के कैदियों से) श्रम का निर्माण और अन्य भारी काम के साथ-साथ महल निर्माण का कार्य भी अर्थव्यवस्था के सुधार रूप में भी किया जाता था।

इबेरियन बस्तियों के बीच प्रमुख स्थिति ने मत्शेता पर कब्जा कर लिया, जो बाद में इबेरिया की राजधानी बन गया।

इसमें, साथ ही Urbnisi, Uplistsikhe और अन्य शहरों में, विकसित और व्यापार किया। पहली शताब्दी ईसा पूर्व में।

इबेरिया ने यूनानी और अरामाईक लेखन का उपयोग किया।

साथ ही, इबेरिया में विशेष रूप से फारसमैन द्वितीय (द्वितीय शताब्दी ईस्वी) के शासनकाल में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

चौथी शताब्दी में, इबेरिया में सामंती संबंध विकसित होने लगे। 318-332 ग्राम की अवधि में।

(विभिन्न स्रोतों के अनुसार), मिरियन III ने ईसाई धर्म को राज्य धर्म घोषित कर दिया। चौथी शताब्दी के अंत में, इबेरिया फारस के अधीन था।
और भारी श्रद्धांजलि से घिरा हुआ था।👇

अहीरों और गुज्जर दोैंनों को हूणों की एक शाखा के रूप में भी विदेशी इतिहास कारों ने वर्णित किया है
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Each year, the Huns [Avars] came to the Slavs,
to spend the winter with them;
then they took the wives and daughters of the Slavs and slept with them, and among the other mistreatments
[already mentioned] the Slavs were also forced to pay levies to the Huns. But the sons of the Huns, who were [then]
raised with the wives and daughters of these Wends could not finally endure this oppression anymore and refused obedience to the Huns and began, as already mentioned, a rebellion.
When now the Wendish army went against the Huns, the [aforementioned] merchant Samo accompanied the same.
And so the Samo’s bravery proved itself in wonderful ways and a huge mass of Huns fell to the sword of the Wends.

— Chronicle of Fredegar, Book IV, Section 48, written circa 642

पांचवीं शताब्दी के मध्य में, इबेरिया वख्तंग प्रथम गोरगासली का राजा सासनिद की शक्ति के विरूद्ध विद्रोह का प्रमुख बन गया।

प्राचीन इतिहास हेलेनिस्टिक काल में पहले से ही, इबेरिया शब्द ने एक निश्चित राजनीतिक इकाई (राज्य) को बताया, जो आज के जॉर्जिया के दक्षिण और पूर्व के क्षेत्र में स्थित था।

इस क्षेत्र में, बहुमत में, जॉर्जियाई जनजाति (कार्तवेली-इबरी) रहते थे।
जॉर्जियाई देश को गुर्जिस्तान भी कहा जाता था ।

हेलेनिस्टिक काल के दौरान, कई अंतःविषय संघों का निर्माण यहां किया गया था, और प्रारंभिक वर्ग राज्य गठन की अवधारणाओं को पहले से ही देखा गया था।
अक्मेनिड्स के युग में, इस क्षेत्र में मौजूद जॉर्जियाई जनजातियों के संगठन को एरियन-कार्तली के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ है पूर्वी जॉर्जियाई संघ, जो सीधे फारसी साम्राज्य में प्रवेश करता था।

तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की बारी में यह संगठन शिदा कार्तली को अपनी शक्ति का विस्तार करने में सक्षम था। इस प्रकार, एक राज्य मत्शेता के आसपास के केंद्र के साथ बनाया गया था।

"मत्शेता" नाम शायद जीवन के जीवन को दर्शाने वाले शब्दों के जॉर्जियाई रूट से निकला है, लेकिन मेस्केटियन के जनजातियों में से एक से इस नाम की उपस्थिति का संस्करण अधिक आम है।

एशिया माइनर से यहां पहुंचे मेस्की उन्हें हित्ती देवताओं ( आर्मज़ी , ज़ेडनी ) को पूजा की पंथ लेकर आए थे। जिन्होंने धीरे-धीरे सर्वोच्च देवताओं के रूप में माना जाने लगा। मत्शेता के आसपास के इलाकों में इन देवताओं के सम्मान में दो बड़े किलों का निर्माण किया गया - अरमात्त्शेखे और ज़ेडांतेशीखे।

1706 में लीपजिग में प्रकाशित क्रिस्टोफर सेलियस द्वारा कोल्किस और इबेरिया का मानचित्र इबेरिया की मुक्ति की अवधि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की शुरुआत में।

कार्तली (इबेरिया) में शक्ति पर फर्नवाज ने कब्जा कर लिया था, जो स्थानीय लोगों में से एक थे (जीनस "मत्शेतेस ममास्खलिसेबी" के एक प्रतिनिधि), जो फार्नवाज़ीड्स के राजवंश के संस्थापक बने।

फार्नवाज और उसके तत्काल वंशजों के शासनकाल के दौरान, इबेरिया एक बड़े क्षेत्र के साथ एक राज्य बन गया। शिडा कार्तली, कखेती और मेस्केती के अलावा, इसमें कोल्किस (Argveti, Achara) का हिस्सा शामिल था। यह माना जाता है कि इसकी संरचना में मूल रूप से पाराड्रा की तलहटी में गोगारेन और खॉर्डन क्षेत्र थे (स्ट्रैबो के अनुसार, वे द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व में आर्मेनियाई साम्राज्यों द्वारा इबेरिया से अलग हो गए थे)।

अस्वीकार अवधि हेलेनिस्टिक काल का इबेरिया एक प्रारंभिक वर्ग पूर्व-सामंती राज्य था।

उत्पादकों का बड़ा हिस्सा मुक्त किसान और योद्धा थे। मुख्य रूप से शाही परिवार के प्रतिनिधियों द्वारा विजय प्राप्त कृषि जनजातियों का शोषण किया गया था।
जनसंख्या के विशेषाधिकार वर्गों का भी सेना, अदालत अभिजात वर्ग और पुजारी द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया था। वर्णित अवधि में, शाही सिंहासन की विरासत का सिद्धांत अभी तक पुष्टि नहीं हुई है।

और सिंहासन पर मृत राजा के निकटतम रिश्तेदारों में से सबसे पुराना बनाया गया था।
सीमा शुल्क के लिए, पहाड़ी इलाकों के निवासी निचले इलाकों के निवासियों से बहुत अलग थे, न केवल चरित्र में बल्कि जीवन के रास्ते में भी।
उस समय वे एक आदिवासी सांप्रदायिक प्रणाली में रहते थे।

65 ईसा पूर्व में रोमन सैन्य नेता गेनेस पोम्पी द ग्रेट ने इबेरिया के खिलाफ अभियान चलाया।

जोरदार प्रतिरोध के बावजूद, इबेरियन राजा आर्टक को रोमियों को जमा करना पड़ा।

रोम के साथ संघ लेकिन बहुत जल्दी Iberia रोम पर निर्भर होने के लिए बंद कर दिया।

Iसे II शताब्दी ईस्वी में इबेरिया एक बार फिर से मजबूत हो गया और अक्सर ट्रांसकेशसस और मध्य पूर्व में रोम के दुश्मन के रूप में कार्य करता था।

कोबेकन रिज के पारों पर नियंत्रण स्थापित करने और उत्तरी काकेशस के क्षेत्र में रहने वाले मनोदशाओं के उपयोग से इबेरिया को सुदृढ़ बनाना था।

पहली शताब्दी ईस्वी के दूसरे छमाही में।
इबेरिया ने रोम के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखा, लेकिन 130-150 के दशक में। किंग फार्समैन II के समय, इबेरिया की उच्चतम शक्ति की अवधि के दौरान, रोम के साथ संबंध अधिक जटिल हो गए।

किंग फार्समैन द्वितीय ने रोमन सम्राट हैड्रियन के निमंत्रण को नजरअंदाज कर दिया, और केवल अपने बेटे एंटोनिनस पायस के शासनकाल के दौरान, रोम की अपनी पत्नी, बेटे और सहयोगियों के एक बड़े सूट के साथ रोम का दौरा किया।
सम्राट रोम में इबेरिया के राजा के लिए एक घोड़ा स्मारक रखा गया।
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सन्दर्भ ग्रन्थों का विवरण-👇
चशासन राजवंश फार्नवाज़ीडी (2 9 -18-18 बीसी Artashesides (लगभग 165-30 ईसा पूर्व) अर्शाकिड्स (18 9 -284) Khosroids (284 के बाद) नोट्स ↑ किरिल तुमानोव "क्रॉनोलॉजी ऑफ़ द अर्ली किंग्स ऑफ इबेरिया", ट्रेडिटीओ, वॉल्यूम। 25 (1 9 6 9), पीपी। 8-17। द्वारा प्रकाशित: फोर्डहम विश्वविद्यालय ↑ सिरिल टौमनॉफ « क्रोनोलॉजी ऑफ़ द अर्ली किंग्स ऑफ इबेरिया » पृष्ठ 11-12 साहित्य संपादित करें Apakidze ए, "प्राचीन जॉर्जिया के शहरों का जीवन", पुस्तक। 1. टीबी।, 1 9 63; लॉर्टकिप्निडेज़ ओ।, "प्राचीन दुनिया और कार्तली का राज्य (इबेरिया)", तबील।, 1 9 68; जॉर्जिया का इतिहास, खंड 1. टीबी।, 1 9 62; मत्शेता, पुरातात्विक शोध के परिणाम, खंड 1, टीबी।, 1 9 58; बोल्टुनोवा एआई, स्ट्रैबो के "भूगोल" में इबेरिया का विवरण, "प्राचीन इतिहास बुलेटिन", 1 9 47, संख्या 4; मेलिकिशविली जीए, प्राचीन जॉर्जिया के इतिहास पर, तबील।, 1 9 5 9।

Etymology Gyula Németh, following Zoltán Gombocz, derived Xazar (कज़र) from a hypothetical *Qasar (क़सर) reflecting a Turkic root qaz- ("to ramble, to roam") गुजरना being an hypothetical velar variant of Common Turkic kez-. In the fragmentary Tes and Terkhin inscriptions of the Uyğur empire (744–840) the form 'Qasar' is attested, though uncertainty remains whether this represents a personal or tribal name, gradually other hypotheses emerged. Louis Bazin derived it from Turkic qas- ("tyrannize, oppress, terrorize") on the basis of its phonetic similarity to the Uyğur tribal name, Qasar. András Róna-Tas connects it with Kesar, the Pahlavi transcription of the Roman title Caesar. D.M.Dunlop tried to link the Chinese term for "Khazars" (ख़ज्जर) to one of the tribal names of the Uyğur Toquz Oğuz, namely the Gésà. The objections are that Uyğur Gesa/Qasar was not a tribal name but rather the surname of the chief of the Sikari tribe of the Toquz Oğuz, and that in Middle Chinese the ethnonym "Khazars", always prefaced with the word Tūjué (Tūjué Kěsà bù:突厥可薩部; Tūjué Hésà:突厥曷薩), is transcribed with characters different from those used to render the Qa- in the Uyğur word 'Qasar'.

मिहिर -अथवा महर :- . व्रज में बोला जानेवाला एक आदर- सूचक शब्द था ।

जिसके अवशेष आज भी हैं ।
महर शब्द जिसका व्यवहार विशेषतः जमादारों और वैश्यों व्यापारियों  आदि के सम्बन्ध में होता है।

(कभी कभी इस शब्द का व्यवहार केवल श्रीकृष्ण के पालक और पिता नंद के लिये भी बिना उनका नाम लिए ही होता रहा है)।

व्रज भाषा के कवियों ने लिखा भी है 👇

" महर निनय दोउ कर जोरे घृत मिष्टान पय बहुत मनाया।—सूर (शब्दावली)।
फूर आभलाषन को चाखने के माखन लै दाखन मधुर भरे महर मंगाय रे।

(ग) व्रज की विरह अरु संग महर की कुवरिहि वरत न नेकु लजान।—तुलसी

इधर राजस्थान में गुर्ज्जरों को मिहर कहा जाता है जो सम्मानित व महाशय होते हैं ।

मिहिर ! विभासि यतः सुतरां त्रिभुवनभावनभानिकरैः सूर्य का वाचक ॥

सूर्य से सम्बद्ध होने के कारण आक( अकौआ) वृक्ष का वाचक अर्क  ।
इत्यमरः कोश।
मह्- पूजायाम् धातु से महिर या मिहिर - पूज्य व सम्माननीय व्यक्ति --जो ज्ञान वृद्ध तथा आयु- वृद्ध भी हो
मेघ का भी वाचक -
  १ । ३ ।  २९ ॥  वृद्धः । इति मेदिनीशब्दरत्नावल्यौ ।
  रे   २०४ ॥  मेघः । इति हेमचन्द्रः ।  २ ।  ११ ॥

व्रज भाषा में कृष्ण को महार का बेटा कहा गया

प्रदेश के प्रसिद्ध हूण राजा तीरमाण
(तुरमान शाह) के पुत्र का नाम। मिहिर था
विशेष— इसने गुप्त सम्राटों पर विजय प्राप्त करके मध्य भारत पर अधिकार जमाया था।

यह बौद्धों का बहुत बड़ा शत्रु था।एक बार मगध के राजा बालादित्य ने इसे पकड़ लिया था; पर फिर अपनी माता के कहने से छोड़ दिया था।
इसने कुछ दिनों तक काश्मीर पर भी शासन किया था। यह ईसवी छठी शताब्दी के मध्य में हुआ था।
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गुर्जर ईसाईयों के रूप में -- Hebrew script, and it is likely that, though speaking a Türkic language, the Khazar chancellery under Judaism probably corresponded in Hebrew. In Expositio in Matthaeum Evangelistam, Gazari, presumably Khazars, are referred to as the Hunnic people living in the lands of Gog and Magog and said to be circumcised and omnem Judaismum observat, observing all the laws of Judaism.

व्युत्पत्ति एपिट्यूशन ग्यूला नेमेट, ज़ोलटान गॉंबोकज़ के बाद, एक तुष्टीकरणिक रूप क़ाज़- ("घूमने के लिए, घूमने के अर्थ में") एक अवधारणात्मक रूप * कसार से एक्सज़र बनाकर आम तुर्किक कीज़ का एक काल्पनिक वेल्टर प्रकार होता है।
उज्गुर साम्राज्य (744-840) के खंडित टेस और टेरखिन शिलालेख में 'कसार' रूप को प्रमाणित किया गया है, हालांकि अनिश्चितता यह बनी हुई है कि यह एक निजी या आदिवासी नाम का प्रतिनिधित्व करती है, धीरे-धीरे अन्य परिकल्पना उभरेगी।
लुइस बज़िन ने इसे तुर्किक क्यूस ("जबरन, दमन, आतंकित") से उयगुर आदिवासी नाम, कसार को अपनी ध्वन्यात्मक समानता के आधार पर प्राप्त किया। एंड्रॉस रोना-तास ने केसर के साथ, रोमन शीर्षक सीज़र के पहलवी ट्रांसक्रिप्शन को जोड़ लिया है।

डी.एम.डुनलोप ने उइगुर टोक्ज़ ओगुज़ नामक गेजा के आदिवासी नामों में से एक को "खजार" के लिए चीनी शब्द को जोड़ने का प्रयास किया।

आपत्तियां हैं कि उइगुर जीसा / क़सर एक आदिवासी नाम नहीं था, बल्कि टोक्ज़ ओगुज़ के सिकरी जनजाति के प्रमुख का उपनाम नहीं था, और मध्य चीनी नाम में "खजार" नाम हमेशा ताजूज़ (तुरवसु) से सम्बद्ध है । तुरवसु भारतीय वैदिक साहित्य में यदु का सहवर्ती तथा तुर्की संस्कृति का पूर्व-पिता है ।

ऋग्वेद १०/ ६२/ १०/ उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे----अर्थात् यदु और तुर्वसु नामक दौनों दास---जो गायों से घिरे हुए हैं हम उनका वर्णन करते हैं ।

उनका सराहना अथवा वर्णन करते हैं । दास शब्द का ईरानी रूप दाहे है ---जो दाहिस्तान Dagestan के अधिवासी हैं ।
यहूदी और तुर्की दौनों कबीले दाहे कहलाते थे ।

(तुजूई कासा ब्यू) : 突厥 可 薩 部; तुजूए हस्सा: 突厥 曷 薩), उन पात्रों के साथ लिखे गए हैं जो क्यू-क्यू के उत्तरार्द्ध शब्द 'कसार' में प्रस्तुत किए गए थे।

अपने रूपांतरण के बाद यह सूचित किया जाता है कि उन्होंने हिब्रू लिपि को अपनाया है, और यह संभव है कि, हालांकि तुर्किक भाषा की बात करते हुए, यहूदी धर्म के तहत खजार चांसलर शायद हिब्रू में लिखे हुए थे।

मैथ्यूम इंजीलिस्टम में एक्सपोजिटियो में, गज़री, संभवत: खजर्स को गोग और मागोग की भूमि में रहने वाले हुन्नी लोगों के रूप में जाना जाता है । और ये यहूदी धर्म के सभी कानूनों की देखरेख में सुन्नत और यहूदी धर्म की सभी विशेषताओं से युक्त हैं। हिन्दुस्तान में गोर्जी गौर्जर गूज़र तथा घोषी इन्हीं से सम्बद्ध हैं। _______________________________________

शूद्र शब्द का जन्म शूत्र- Oswald Szemerényi devotes a thorough discussion to the etymologies of ancient ethnic words for the Scythians in his work Four Old Iranian Ethnic Names: Scythian – Skudra – Sogdian – Saka.
वैदिक सन्दर्भों में दास शब्द का रूपान्तरण शूद्र के रूप में होना है ।

In it, the names provided by the Greek historian Herodotus and the names of his title, except Saka, as well as many other words for "Scythian," such as Assyrian Aškuz and Greek Skuthēs, descend from *skeud-, an ancient Indo-European root meaning "propel, shoot" (cf. English shoot).skud- is the zero-grade; that is, a variant in which the -e- is not present.

عبر
: غبر‎ and غ ب ر‎
Arabic

Etymology 1

Compare Hebrew עָבַר‎ (ʿāḇar, “to cross”), Old South Arabian 𐩲𐩨𐩧‎ (“to transgress”), Akkadian 𒁄 (ebēru, “to cross”).

Verb

عَبَرَ • (ʿabara) I, non-past يَعْبُرُ‎‎ (yaʿburu)

to cross, to traverse
to ford
to swim (something)
to pass over
Conjugation

Conjugation of عَبَرَ (form-I sound, verbal nouns عَبْر or عُبُور)
Etymology 2

Noun

عَبْر • (ʿabr) m

verbal noun of عَبَرَ (ʿabara) (form I)
Declension
Declension of noun عَبْر (ʿabr)
Etymology 3

Adverbial accusative of عَبْر‎ (ʿabr, “crossing”). Compare Old South Arabian  (“towards”).

Preposition

عَبْرَ • (ʿabra)

across
Inflection
Etymology 4

From the root ع ب ر‎ (ʿ-b-r) and in the meanings of explaining, interpreting, expressing
a semantic loan from Middle Persian wtltn' (widardan) = Persian گذاردن‎ (gozârdan, “to cause to pass;
to clean, to purge; to put, to place”)
, گزاردن‎ (gozârdan, “to cause to pass; to draw the outline of a picture; to express”).

Verb

عَبَّرَ • (ʿabbara) II, non-past يُعَبِّرُ‎‎ (yuʿabbiru)

to make cross
to express, to put into terms
Conjugation
Conjugation of عَبَّرَ (form-II sound)

References
“ebēru”, in The Assyrian Dictionary of the Oriental Institute of the University of Chicago (CAD), volume 4, E, Chicago: University of Chicago Oriental Institute, 1958, page 10.

Fraenkel, Siegmund (1898), “Zum sporadischen Lautwandel in den semitischen Sprachen”, in Beiträge zur Assyriologie und semitischen Sprachwissenschaft (in German), volume 3, pages 69–70

عبر

इन्हें भी देखें: غبر और ر ب ر
अरबी

व्युत्पत्ति १

हिब्रू ע ,ב Hebrewר (“াָর, "पार करने के लिए") की तुलना करें, पुराने दक्षिण अरब 𐩲𐩨𐩧 ("स्थानांतरित करने के लिए"), अक्कादियान 𒁄 (Ebēru, "पार करने के लिए")।

क्रिया

عَبَرَ • (بabara) I, गैर-अतीत يَعَبُرُ (yaburu)

पार करना, पार करना
tod
तैरना (कुछ)
पार होने के लिए
विकार

[शो Con] عَبَرَ की परिणति (रूप-मैं ध्वनि, मौखिक संज्ञाएँ عَبْر या عْب Conور)
व्युत्पत्ति २

संज्ञा
عَب .ر • ()abr) मी

عَبَرَ ((abara) की मौखिक संज्ञा (I)
अवनति

संज्ञा की गिरावट عَب (ر ()abr)
व्युत्पत्ति ३

عَبbر (अब्द, "क्रॉसिंग") के क्रियाविशेषण। पुराने दक्षिण अर𐩲𐩨𐩧 ("की ओर") की तुलना करें।

पूर्वसर्ग

عَب )رَ • (ْabra)

भर में
मोड़

व्युत्पत्ति ४

मूल ع ب ر (ʿ-br) और मध्य फ़ारसी wtltn (widardan) = फ़ारसी داردن (gozârdan) से अर्थ शब्द को व्यक्त करने, व्याख्या करने, व्याख्या करने के अर्थ में, पास करने के लिए, साफ करने के लिए; शुद्ध करना; लगाना, रखना ”, دزاردن (गूज़र्डन,“ पास करने का कारण; चित्र की रूपरेखा तैयार करना; व्यक्त करना

क्रिया

عَبَaraرَ • (بabbara) II, गैर-अतीत يّعَبِّرʿ (युआबबीरु)

पार करना
शब्दों में व्यक्त करना
विकार

[शो ّ] عَبََرَ (फॉर्म- II ध्वनि) का संयोजन
संदर्भ-
"Ebentalru", शिकागो विश्वविद्यालय (सीएडी), मात्रा 4, ई, शिकागो के ओरिएंटल संस्थान के असीरियन डिक्शनरी में: शिकागो ओरिएंटल इंस्टीट्यूट, 1958, पृष्ठ 10
फ्रैन्केल, सिगमंड (1898), "ज़म स्पोरडिसचेन लॉटवंडेल इन डेन सेमिटिचेन स्प्राचेन", बेइट्रेज ज़्यूर असिरोलोगी में पूर्व सेमिटिसन स्पचस्विनेस्चैफ्ट [1] (जर्मन में), खंड 3, पृष्ठ 69-70

Abir
Submitted names are contributed by users of this website. The accuracy of these name definitions cannot be guaranteed.
Submitted Name (1)

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Gender Masculine
Usage Hebrew
Scripts אביר (Hebrew)
Pron. ah-BEER
FormsAbeer, Abeeri, Abiri/Aviri ("my hero")
Status
Contrib.ekatz7 on 6/22/2006
EditorEvil on 5/17/2018  [revision history]
Meaning & History
Means "strong, mighty" in Hebrew (compare Adir), derived from the root of אבר (ʿabar) "to strive upward, mount, soar, fly" (allegedly the name also means "aroma"; cf. the feminine אבירית (Avirit) "air, atmosphere, spirit").
Submitted Name (2)

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Gender Masculine
Usage Bengali, Indian
Scripts আবীর (Bengali)
Status
Contrib.highexpectasians on 5/2/2018
Meaning & History
Refers to abir (or gulal), which is a type of coloured powder used during the Hindu Holi festival. The word itself is ultimately derived from Arabic عَبِير‎ (ʿabīr) meaning "scent, perfume".
Submitted Name (3)

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Gender Feminine
Usage Arabic
Scripts عبير (Arabic)
FormsAbeer
Status
Contrib.highexpectasians on 5/2/2018
Meaning & History
Derived from Arabic عَبِير‎ (ʿabīr) meaning "scent, perfume".

अबीर
इन नाम परिभाषाओं की सटीकता की गारंटी नहीं दी जा सकती है।
प्रस्तुत नाम (1)

बचाना
लिंग मर्दाना
उपयोग हिब्रू
लिपियों אביר (हिब्रू)
प्रोन। आह-बीयर
फॉर्मअएबर, अबेरी, अबिरी / अविरी ("मेरे हीरो")
स्थिति
6/22/2006 को Contrib.ekatz7
5/17/2018 को संपादकीय [संशोधन इतिहास]
अर्थ और इतिहास
हिब्रू में "मजबूत, पराक्रमी" (एडिर की तुलना करें), इसका मतलब है कि उरुद (toabar) की जड़ से व्युत्पन्न, ऊपर की ओर, माउंट, ऊंची उड़ान भरना, उड़ने का प्रयास करना (कथित रूप से नाम का अर्थ "सुगंध" भी है; सीएफ) स्त्री अविवाहित (अविरिट) ) "हवा, वातावरण, आत्मा")।
प्रस्तुत नाम (2)

बचाना
लिंग मर्दाना
बंगाली, भारतीय
लिपियों criar (बंगाली)
स्थिति
5/2/2018 को Contrib.highexpectasians
अर्थ और इतिहास
अबीर (या गुलाल) को संदर्भित करता है, जो हिंदू होली के त्योहार के दौरान उपयोग किए जाने वाले रंगीन पाउडर का एक प्रकार है। यह शब्द अंततः अरबी عَب itselfير (rabīr) से लिया गया है जिसका अर्थ है "खुशबू, इत्र"।
प्रस्तुत नाम (3)

बचाना
लिंग स्त्री

लिपियों عبير (अरबी)
FormsAbeer
स्थिति
5/2/2018 को Contrib.highexpectasians
अर्थ और इतिहास
अरबी से व्युत्पन्न عَبِير (rabīr) जिसका अर्थ है "खुशबू, इत्र"।

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