सोमवार, 10 सितंबर 2018

पृथ्वी गोल है ! तथ्य का ज्ञान कैसे हुआ ? लेखक : अज़ीज़ राय, प्रकाशन की तारीख :

पृथ्वी गोल है ! तथ्य का ज्ञान कैसे हुआ ? लेखक : अज़ीज़ राय, प्रकाशन की तारीख : मंगलवार, फ़रवरी 09, 2016 | टिप्पणियाँ : 14 आकार : अ⁻ | अ⁺ पृथ्वी गोल है ! कहना, आज जितना सरल और सही लगता है। आज से लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व पृथ्वी को गोल कहना उतना सरल और सही नहीं लगता था। क्योंकि तब हम पृथ्वी को सपाट मानते थे। ऐसा नहीं है कि पृथ्वी को सपाट मानने के पीछे हमारे पास कोई तर्क नहीं थे। हमारे पास वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं था या पृथ्वी को सपाट मानना महज एक कोरी कल्पना थी। बल्कि पृथ्वी को सपाट मानने के पीछे हम मानवों के पास सबसे बड़ा साक्ष्य था। अर्थात "आप स्वयं देखकर के (अवलोकन करके) बताओ कि पृथ्वी आपको कैसी मालूम पड़ती है ?" आज भी आपका उत्तर पृथ्वी को सपाट ही कहेगा, न कि पृथ्वी को गोल कहेगा। इसे आगमन विधि कहते हैं। परन्तु आज हम जानते हैं कि पृथ्वी की संरचना गोल है। अब प्रश्न यह उठता है कि सर्वप्रथम किसने पृथ्वी के रूप का पता पृथ्वी के सपाट होने और पृथ्वी के गोल होने के रूप में लगाया था ? सच कहूँ तो हम्मे से यह किसी को भी पता नहीं है कि सर्वप्रथम पृथ्वी को सपाट किसने कहा था ? परंतु ऐसा कैसे हो सकता है !! दरअसल वास्तविकता यह है कि पृथ्वी गोल है इस तथ्य को हमने समय के साथ भुला दिया था और मानव जाति एक बार पुनः पृथ्वी को सपाट मानने लगी थी। अर्थात पृथ्वी के गोल होने का पता सर्वप्रथम पांच सौ वर्ष पूर्व नहीं लगाया गया था। बल्कि न केवल यूनानी, भारतीय लोग भी पृथ्वी के गोल होने को सही मानते थे। वे तर्क और प्रमाण दोनों देते थे। बाबजूद हम सभी एक बार फिर पृथ्वी को सपाट मानने के भ्रम में फंस गए थे। जब हम पृथ्वी के किसी एक भू-भाग का भ्रमण करते हैं, तो हम अवलोकन द्वारा यह नहीं बता सकते हैं कि पृथ्वी गोल है। क्योंकि पृथ्वी प्रेक्षक के रूप में हम मानवों की तुलना (आकार) में बहुत बड़ी है और दूसरी बात हम मानव पृथ्वी के धरातल में रहते हैं। इसलिए प्रेक्षक के रूप में हम मानव किसी एक भू-भाग के अवलोकन द्वारा पृथ्वी के रूप का सही पता नहीं लगा सकते हैं। अपोलो अभियान के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा ली गई पृथ्वी की तस्वीरों को जब पृथ्वी पर भेजा गया और इन तस्वीरों के आधार पर "फ्लैट अर्थ सोसाइटी" के सचिव को पृथ्वी के गोल होने का सबूत दिया गया। तब उनका हाजिर जबाब था : "देखा ! यह चित्र भी हमारी धारणाओं को प्रमाणित करता है।" अपोलो मिशन के दौरान चन्द्रमा से ली गई पृथ्वी की फोटो इसलिए माना जाता है कि पृथ्वी के रूप को जानने का विचार सर्वप्रथम चीन में आया होगा। क्योंकि प्राचीन चीन (प्राचीन नाम : त्यान स्या अर्थात मध्य राज्य) समृद्ध, विशाल और एक राष्ट्र के रूप विकसित था। कहा जाता है कि एक बार सम्राट ने अपने राज्य की सीमाओं के निर्धारण के लिए चारों ओर अधिकारी भेजे। उन सभी को गुप्तयंत्र कुतुबनुमा अर्थात दिशा सूचक यंत्र दिए गए। जिन्हे चीन में "दक्षिण सूचक" कहा जाता था। महीनों चली इस यात्रा के अनुभवों को दरबार में साझा किया गया। परन्तु कुछ प्रश्नों के उत्तर तब भी नहीं मिल रहे थे। और अंततः यह मान लिया गया कि पृथ्वी का रूप सपाट है जिसके चारों ओर खम्बे द्वारा आकाश टिका हुआ है। किसी दिन एक अजदहे ने एक खम्बे को मोड़ दिया होगा इसलिए पृथ्वी का पूर्वी हिस्सा समुद्र की ओर झुक गया और पश्चिमी हिस्सा पहाड़ बनकर आकाश को छूने लगा। इसलिए सभी नदियां पूर्व की ओर बहती हैं। (चीन के बारे में यह जो वर्णन है यह किस दौर का है ? समझना मुश्किल है। क्योंकि दिशा सूचक यंत्र को अरब साम्राज्य की देन मानते हैं। जिसका स्वर्ण काल 800 ई. से 1300 ई. तक चला। इसी के समकालीन चीन में बड़े-बड़े जहाज बनाए गए थे। परन्तु चीन में दिशा सूचक यंत्र के चलन के प्रमाण 900 ई. पुराने तक के हैं। इसके अलावा चीन में सर्वप्रथम सम्राट की पदवी 200 ई. पू. से मानी जाती है।) ठीक इसी प्रकार हम भारतीयों ने भी पृथ्वी को चपटा माना था। आज भी पुराणों में सात-समुंदर की कथाएँ सुनने को मिलती हैं। जम्बूद्वीप को थल स्थल अर्थात सम्पूर्ण पृथ्वी माना गया था। जिसके केंद्र में मेरु पर्वत को स्थित माना जाता था। इस द्वीप को क्रमशः मधु सागर, इक्षु (गन्ने का रस) सागर, सुरा सागर, सर्पि सागर, क्षीर (दूध) सागर, दधि (दही) सागर, स्वादुद सागर के वलयों से घिरा हुआ बतलाया जाता था। एक अन्य कथा के अनुसार सम्पूर्ण थल स्थल को चार भागों में विभाजित माना गया था। इनके मध्य में मेरु पर्वत है। जिसकी परिक्रमा चन्द्रमा और सूर्य करते हैं। केवल दक्षिणी भाग के स्थल में ही मानव पाए जाते हैं। जिसे जम्बूद्वीप कहा गया। जिसे लवण सागर से घिरा हुआ बतलाया जाता था। एक और भारतीय कल्पना के अनुसार क्षीर सागर में एक कछुआ तैरता है जिसकी पीठ पर चार हाथी अलग-अलग दिशाओं की ओर मुँह करके खड़े हैं जिन्होंने मिलकर पृथ्वी को धारण किया हुआ है। इसके पीछे का यह तर्क दिया जाता था कि कछुए की पीठ के समान मजबूती और हाथी से अधिक बलवान और कौन हो सकता है ? समझने योग्य बात यह है कि पृथ्वी सपाट अर्थात चपटी है का आशय स्थल का कोई अंत नहीं है या फिर जल का कोई अंत नहीं है ? क्योंकि तब पृथ्वी के सपाट रूप के संगत किसी न किसी को तो अनंत होना पड़ेगा। इसलिए अनेकों कल्पनाएं की गई थी। अधिकतर कल्पनाओं में जल को अनंत बताया गया है। इसी प्रकार की कल्पनाएँ यूनान, मिस्र, रोम, रूस और इंग्लैंड आदि सभी जगह प्रचलित थी। 6 वी. शताब्दी में कोस्मा नामक व्यापारी ने एक "पुस्तक ईसा मसीह की, चहुँ ओर व्याप्त संसार के वर्णन सहित" नामक पुस्तक लिखी थी। उसने अपनी पुस्तक में देश-विदेश का वर्णन किया है। जो कभी भारत भी आया था। उसने बाइबिल का अनुसरण करते हुए, पुस्तक में पृथ्वी को सपाट बताया है। वह अपनी पुस्तक में पृथ्वी को चौकोर और ऊँची दीवारों से घिरा हुआ बतलाता है। पारदर्शी आकाश इसी दीवार के सहारे टिका हुआ है अर्थात आकाश को ठोस बतलाया गया है। जिसके ऊपर आकाश का पानी है जो समय-समय पर बरसता है। उत्तर की ओर पर्वत है जिसके पीछे रात को जाकर सूरज छिप जाता है। इस पुस्तक का कईयों भाषाओँ में अनुवाद हुआ है। जबकि लेखक ने इस पुस्तक को "स्वयं सुनी-सुनाई कहानियों की पुस्तक" कहा है। यूनान की कल्पना के अनुसार पृथ्वी निराधार नहीं हो सकती है। इसलिए उन्होंने एक खम्बे की कल्पना की, जिसके सहारे पृथ्वी को टिका हुआ बताया जाता था। यह खम्बा पृथ्वी को भेदते हुए केंद्र से आकाश की ओर जाता है। जिसके सहारे गोल (छत्ते के समान आधा-वृत्त) आकाश खम्बे से टिका रहता है। खम्बे के साथ-साथ आकाश भी घूमता है। जिससे की तारे, नक्षत्र और अन्य सभी ग्रह घूमते नज़र आते हैं। परन्तु किसी ने भी पृथ्वी के घूमने (घूर्णन गति) के बारे में नहीं सोचा था ! स्वर्ग में बैठे देवता गण इन गतियों को नियंत्रित करते हैं। इसी प्रकार रूस में पृथ्वी को व्हेल मछली के ऊपर स्थित बतलाया जाता था। और इसके पीछे का कारण भूकम्प का आना बतलाया जाता था। ठीक यही कारण हमे भी बचपन में शेषनाग के ऊपर पृथ्वी का होना बताया गया था। माना जाता है कि पृथ्वी को गोल कहने वाली बात सर्वप्रथम पाइथागोरस ने कही थी। परन्तु सिर्फ इस तर्क के साथ कि "गोल, सबसे सुन्दर ज्यामितीय आकृति होती है और यदि पृथ्वी ब्रह्माण्ड (उस समय सौरमंडल को ही ब्रह्माण्ड मान लिया गया था।) का केंद्र है। तो उसे गोल होना चाहिए।" परन्तु यह किस तरह का गोल है ? चन्द्रमा-सूरज वाला गोल, रोटी-कचौड़ी वाला गोल या साइकिल के चक्के वाला गोल ? मुझे तो बचपन की "चंदा गोल, सूरज गोल" कविता याद आ रही है। वास्तव में गोल एक 3 आयाम की संरचना है और चूँकि पृथ्वी हम से आकार में बहुत बड़ी है। इसलिए पृथ्वी को गोल+आकार (गोलाकार) कहते हैं। पृथ्वी के सपाट होने और गोल होने का जो संवाद है। वह संरचना आधारित है। इसलिए सपाट और गोल होने की शर्तों को समझना बहुत आवश्यक है। साइकिल के चक्के वाला गोल तो जम्बूद्वीप भी था। परन्तु क्या वह पृथ्वी का सही रूप है ? नही न। पृथ्वी का रूप गोल या सपाट होने में अंततः यह विरोध है कि गोल होने का अर्थ है पृथ्वी सीमित है और सपाट होने का अर्थ था पृथ्वी असीमित (जल या थल) है। फिर चाहे दोनों स्थितियों में हम मानवों की तुलना में पृथ्वी कितनी भी बड़ी क्यों न हो !! दोनों ही स्थितियों में थल भाग के सीमित होने की संभावना बनती है। परन्तु पृथ्वी के सपाट होने का अर्थ था जल भाग का असीम होना। परन्तु पृथ्वी के गोलाकार होने का अर्थ है अंतरिक्ष का असीमित होना। एक अशिक्षित व्यक्ति से पृथ्वी के रूप का सही पता पूछने पर वह उसे सपाट बतलाता है। छोटा बच्चा उसे लड्डू जैसा गोल बतलाता है। पंद्रह साल का बच्चा उसे संतरे के समान ध्रुवों पर चपटा बतलाता है। विज्ञान की समझ रखने वाला व्यक्ति उसे नाशपाती के समान उत्तरी ध्रुव से उभरा और दक्षिणी ध्रुव से चपटा बतलाता है तथा एक वैज्ञानिक इसी पृथ्वी के रूप को भू-आभ (Geoid) या पृथ्वीयकार बताता है अर्थात पृथ्वी, पृथ्वी जैसी है। यूनानी पृथ्वी के स्थल भाग को एक द्वीप मानते थे। जिसके बीच में एक समुद्र है तथा द्वीप चारों ओर से ओशियन नामक नदी से घिरा हुआ है। ओशियन नदी का कोई अंत नहीं है और स्थलाकृतियों से निर्मित भू-भाग को ओइकोमीन (Oikoumene) कहते थे। जिसका अर्थ निवास योग्य विश्व होता है। याद रहे उस समय तक केवल एशिया, यूरोप और अफ्रीका (प्राचीन नाम इथियोपिया और लीबिया, बाद में अफ़्रीगी नाम की जनजाति के नाम पर अफ्रीका नाम पड़ा) महाद्वीप के बारे में ज्ञान था। आज का भूमध्यसागर और काला सागर मिलकर प्राचीन काल का वही सागर कहलाते थे, जिसे सम्पूर्ण स्थल भाग के बीच में इंगित किया जाता था। इस प्रकार यूनानियों का मानचित्र भी पृथ्वी के अधूरे ज्ञान को व्यक्त करता है। इसके बाबजूद अरस्तु (Aristotle, 384-322 ई. पू. यूनानी दार्शनिक और ज्योतिर्विद) पृथ्वी को गोल मानते थे। क्योंकि वे ग्रहण को ग्रहों का एक मात्र संयोग कहते थे। याद रहे अरस्तु यूनानी थे। पृथ्वी की स्थलाकृतियों का सम्पूर्ण ज्ञान न रखते हुए (अन्य महाद्वीपों के ज्ञान के आभाव में) भी, वे पृथ्वी की संरचना को गोल कहते थे। क्योंकि वे ग्रहण होने का कारण जानते थे। अरस्तु पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य सहित सभी ग्रहों को गोल मानते थे। क्योंकि जब उन्होंने अवलोकन के दौरान देखा कि ग्रहण के समय सूर्य के प्रकाश से बनने वाली छाया सदैव वक्राकार होती है। तब उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यह तभी संभव है जब पृथ्वी (चन्द्र ग्रहण से) और चन्द्रमा (सूर्य ग्रहण से) दोनों की संरचना गोल हो ! सूर्य हमें सदैव गोल मालूम पड़ता है। ग्रहों के इस सिद्धांत के सरलीकरण (आगमन विधि) का यह प्रभाव हुआ कि अन्य सभी पाँचों ग्रहों को गोल मान लिया गया। तथा इन ग्रहों के मार्ग को भी खगोल (खः+गोल=आकाशीय, उड़ने योग्य गोल) बोला गया। अर्थात वृत्तीय मार्ग जिस पर अन्य गोल संरचना के ग्रह लुढ़कते हैं। (याद रहे अरस्तु ने पृथ्वी के गोल होने का सही प्रमाण दिया था। इसके बाद भी वे ब्रह्माण्ड के सही स्वरुप को नहीं पहचान पाए थे। क्योंकि वे पृथ्वी को ब्रह्माण्ड का केंद्र मानते थे।) अरस्तू के अनुयायियों में से बहुत से दार्शनिक और ज्योतिर्विद ऐसे भी थे। जिन्होंने अलग-अलग तर्क देकर पृथ्वी की संरचना को गोल बतलाया था। उन्ही में से एक अनुयायी अरिस्टार्कस (Aristarchus, 310 – 230 ई. पु.) ने पृथ्वी को गोल मानते हुए, ग्रहण होने के समय को पूर्व निर्धारित करने की गणना की थी। उन्होंने ही सर्वप्रथम यह बतलाया था कि क्रमशः चन्द्रमा, पृथ्वी और सूर्य एक दूसरे से बड़े हैं। एक अनुयायी ऐरातोस्थेनस (Eratosthenes, 276 - 195 ई. पु.) ने पृथ्वी की परिधि की गणना की थी। ऐरातोस्थेनस अलेक्जेंड्रिया के कला और विज्ञान पुस्तकालय के लिए लिखी जाने वाली पुस्तकों का एक लेखक था। उसे जब यह जानकारी मिली कि सियेना नगर के केंद्र में एक बहुत गहरा कुआँ है। जिसके अंदर से पानी के चमकने जैसी रोशनी आती है। परन्तु यहाँ अलेक्जेंड्रिया में कुओं के पानी में तो ऐसा नहीं होता है !! इस आधार पर उसने सोचा जरूर से पृथ्वी गोल है। सूर्य का प्रकाश सियेना नगर में दोपहर को सीधा पड़ता होगा और यहाँ अलेक्जेंड्रिया में सूर्य का प्रकाश थोड़े झुकाव के साथ आपतित होता है। सियेना नगर से आए सौदागरों से सियेना नगर से यहाँ तक की दूरी जानने के बाद ऐरातोस्थेनस ने पृथ्वी की परिधि को ज्ञात किया था। ज्ञात वर्तमान परिधि की लम्बाई ऐरातोस्थेनस द्वारा की गई गणना से मात्र 1200 कि. मी. छोटी थी। जो सियेना नगर से आए सौदागरों द्वारा (18 कि. मी. दूर ) बतलाई गई अनुमानित दूरी पर आधारित थी। इसी क्रम में यूनानियों ने यह भी अनुभव किया था कि रात के वक्त ध्रुव तारे (उत्तर दिशा) की ओर आगे चलने पर ध्रुव तारा ऊपर उठता हुआ दिखाई पड़ता है और जबकि भूमध्य सागर की ओर चलने पर ध्रुव तारा क्षितिज पर झुकते हुए दिखाई पड़ता है। तब स्पष्ट निष्कर्ष निकाला गया कि पृथ्वी गोल है। क्योंकि ध्रुव तारा उत्तर ध्रुव के ठीक ऊपर स्थिर दिखाई देता है। माना जाता है कि मिस्र और यूनान से देखने पर ध्रुव तारे की स्थिति में जो अंतर दिखाई देता है। उस आधार पर अरस्तु ने पृथ्वी की परिधि को मापा था। पृथ्वी की संरचना गोल है। इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिए यूनानी जिस तर्क को देते थे। वह तर्क सातवी शताब्दी ई. पूर्व का है। आज के लेबनान राज्य के लोग उस समय निडर हुआ करते थे। उन्हें समुद्रों की लहरों से डर नहीं लगता था। क्योंकि वे साहसी थे। इसलिए मिस्र के फ़राऊन नेहो द्वितीय ने इन लोगों को आदेश दिया कि "तुम लोग द्वीप (आज का अफ्रीका) के किनारे-किनारे तब तक आगें जाते जाओ, जब तक कोई बड़ी बाधा सामने न आ जाए।" इस तरह से यह यात्रा तीन वर्ष तक चली। यात्रा का अंत यात्रियों के समुद्र में विपरीत दिशा से वापस आने के साथ हुआ। इसी यात्रा के दौरान यात्रियों ने पाया कि "भूमि की ओर चलते हुए देखने पर सर्वप्रथम पहाड़ों की चोटियां, उसके बाद नगर की बड़ी-बड़ी इमारतें तत्पश्चात छोटे भवन और मनुष्य दिखाई देते हैं।" यह दृश्य समुद्र में रहकर डॉल्फ़िन के झांकने के समान दिखाई पड़ता था। इसलिए जहाज की पाल पर चढ़कर देखने से दूर तक दिखाई देता है। और तब अंततः यह निष्कर्ष निकाला गया कि पृथ्वी अर्ध गोल के समान उभारदार है। क्योंकि पृथ्वी यदि सपाट होती तो समस्त स्थलाकृतियां एक साथ दिखाई पड़ती। गोल संरचना का तो सवाल ही नहीं उठता था। क्योंकि यदि पृथ्वी गोल होती तो हम गिर नहीं जाते !! जिस प्रकार पाइथागोरस के शिष्य फिलोलस की खोज पृथ्वी परिक्रमण गति करती है को प्लूटो और अरस्तु के मतों के सामने समय के साथ भुला दिया गया था। ठीक उसी प्रकार अरस्तु और उसके अनुयायियों की खोज पृथ्वी का रूप गोल है को एक्विनास के एकीकरण के सामने भुला दिया गया था। एक्विनास ने चर्च के लिए बाइबिल और अरस्तु-टॉलमी के निदर्श का एकीकरण किया था। वास्तविकता यही है कि इसे एकीकरण कहना गलत होगा। क्योंकि एक्विनास ने अरस्तु-टॉलमी के निदर्श और खोजों का उपयोग प्रमाण के रूप में किया था। अर्थात जो खोजे बाइबिल का समर्थन नहीं करती थी या खंडन करती थी। उन्हें गलत बोला गया। इस प्रकार एक बहुत बड़े समूह ने पुनः पृथ्वी को सपाट कहना शुरू कर दिया। ठीक यही गलती हम भारतीयों ने भी दोहराई है। सर्वप्रथम आर्यभट्ट (Aryabhata, 476-550 ई.) ने पृथ्वी के गोल होने, उसकी घूर्णन और परिक्रमण गति तथा सूर्य सिद्धांत की बात कही थी। इस आधार पर उन्होंने कर्क और मकर रेखा का निर्धारण किया था तथा उस दिन के निर्धारण के लिए लिए गणना की थी। जिस दिवस दिन और रात एक बराबर होते हैं। प्रत्येक दिवस के दिन और रात के अंतर को मापा था। यह निर्धारण आज से पहले विश्व के किसी भी गणितज्ञ या ज्योतिर्विद ने नहीं किया था। उनके बाद आचार्य लल्ल (720-790 ई.) ने "लल्ल सिद्धांत" के माध्यम से और भास्कराचार्य जी (Bhāskaracharya II, 1114-1185 ई.) ने "सिद्धांत-शिरोमणि" के माध्यम से पृथ्वी की संरचना को गोल बताया था। आचार्य लल्ल का तर्क था कि "यदि पृथ्वी सपाट है तो ताड़ के समान ऊँचे पेड़ दूर से नज़र क्यों नहीं आते हैं ?" समता यदि विद्यते भुवस्तखस्ताल निभा बहुच्छृयाः। कथमेव न दृष्टिगोचर नुरहु यान्ति सुदूर संस्थिताः।। (लल्ल सिद्धांत से) सर्वतः पर्वतानाम ग्राम चैत्य चयैश्चितः। कदंबकुसुमग्रथिः केसर प्रसरैरिव।। (सिद्धांत-शिरोमणि से) इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए, पृथ्वी गोल है !! परन्तु हम सब इससे बंधे हुए हैं ? के कारण गुरुत्वाकर्षण की खोज सर्वप्रथम भारतीय ज्योतिर्विद भास्कराचार्य जी ने बारह्वी शताब्दी में की थी। भास्कराचार्य जी और आचार्य ब्रह्मगुप्त जी की रचनाओं का सन 1817 ई. में टी. कोलब्रुक द्वारा तथा सूर्य सिद्धांत का सन 1860 ई. में ई. बर्जेस द्वारा अनुवाद किया गया था। फ्लोरेंटाइन के वैज्ञानिक तथा गणितज्ञ पावतो तोस्कानेली (1397-1482 ई.) ने भी अपनी पुस्तक में पृथ्वी की संरचना गोल है के बारे में लिखा है। इन सबके बावजूद संचार के माध्यमों की कमी के चलते और समाज में फैले अन्धविश्वास के कारण हम पृथ्वी के रूप को सपाट मानते रहे। सभी धर्मों ने अपने-अपने ग्रंथों की आड़ में हमसे झूट बोला। लोगों से धन इकठ्ठा किया और सच कभी भी सामने आने नहीं दिया गया। "दैवीय सिद्धांत" के नाम पर हम मनुष्यों की परिक्रमा/आरती स्वयं चन्द्रमा और सूरज करते हैं कहा जाता था। पृथ्वी सपाट है कहकर हम को समुद्रों और लम्बी यात्राओं से दूर रखा गया। ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ भारत में हुआ है। मैं तो कहता हूँ कि आपको यह पूछना चाहिए "ऐसा कहाँ नहीं हुआ है ?" मेरा उत्तर होगा "ऐसा सभी जगह हुआ है।" यह हमारी सजगता का सो जाना है जिसके न रहते हुए हम सच को देरी से जान पाए हैं। पृथ्वी का रूप नाशपाती के समान है !! विषय संबंधी प्रमुख जानकारियाँ : 1. 20 सितम्बर 1519 से लेकर 6 सितम्बर 1522 तक की समुद्री यात्रा करके विक्टोरिया नामक जहाज ने अटलांटिक महासागर में स्थित सेविले बंदरगाह पर पहुंचकर पृथ्वी की एक पूरी परिक्रमा की। जिससे यह प्रमाणित हो गया कि "पृथ्वी का रूप गोल है।" 2. चिकित्सक विलियम गिल्बर्ट (William Gilbert, 1544-1603 ई.) ने अपने 17 वर्ष चले लंबे अनुसंधान में पाया कि पृथ्वी चुम्बक की तरह व्यवहार करती है। जिसका वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक "दी मैग्नेट" (De Magnete) में किया है। 3. पृथ्वी गोल नहीं अपितु संतरे के समान ध्रुवो पर चपटी है। सर्वप्रथम न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण की खोज करने के बाद गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को समझाते हुए बतलाया था। और इस प्रकार फ़्रांस और इंग्लैंड के वैज्ञानिकों/लोगों में पृथ्वी के रूप को लेकर मतभेद हो गए थे। क्योंकि फ़्रांसिसी लोग पृथ्वी को ध्रुवों की ओर उभरा तथा ब्रिटेन के लोग पृथ्वी को भूमध्य रेखा की ओर से उभरा बतलाते थे। 4. पृथ्वी संतरे के समान नहीं अपितु नाशपाती के समान उत्तरी ध्रुव से उभरी तथा दक्षिणी ध्रुव से चपटी है सर्वप्रथम सर जेम्स जीन ने बतलाया था। और इस तरह से फ्रांस और इंग्लैंड के लोगों में मतभेद समाप्त हो गया था। Facebook Twitter Google+ Stumble Digg श्रेणियाँ : खगोल विज्ञान भौतिक स्वरुप वैज्ञानिक कार्यविधियाँ वैज्ञानिक दृष्टिकोण BHAUTIK SWAROOP आधारभूत ब्रह्माण्ड के बारे में आधारभूत ब्रह्माण्ड, एक ढांचा / तंत्र है। जिसमें आयामिक द्रव्य की रचनाएँ हुईं। इन द्रव्य की इकाइयों द्वारा ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ। आधारभूत ब्रह्माण्ड के जितने हिस्से में भौतिकता के गुण देखने को मिलते हैं। उसे ब्रह्माण्ड कह दिया जाता है। बांकी हिस्से के कारण ही ब्रह्माण्ड में भौतिकता के गुण पाए जाते हैं। वास्तव में आधारभूत ब्रह्माण्ड, ब्रह्माण्ड का गणितीय भौतिक स्वरुप है। « अगला लेख भय : अंधविश्वास और प्रयोग दोनों का स्रोत है ! » पिछला लेख समय और समय के बारे में भ्रम 14BLOGGER1FACEBOOK0DISQUS 14 COMMENTS HARSHVARDHAN10 फ़रवरी, 2016 आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और 'देशद्रोही' में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।। उत्तर दें Jyoti Khare15 फ़रवरी, 2016 सार्थक और रोचक जानकारी सादर उत्तर दें Jyoti Khare15 फ़रवरी, 2016 सार्थक और रोचक जानकारी सादर उत्तर दें ISTIKHAR AHMAD21 अक्तूबर, 2016 इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है. उत्तर दें ISTIKHAR AHMAD21 अक्तूबर, 2016 अच्छी जानकारी दी आपने,thanks उत्तर दें ISTIKHAR AHMAD21 अक्तूबर, 2016 अच्छी जानकारी दी आपने,thanks उत्तर दें aman singh02 दिसंबर, 2016 Thanku aapki ye jankari achi lgi उत्तर दें Unknown30 मार्च, 2017 Koi mujhe ye bayega ki pirtavi ki akarti sahi mayane me kasi. Hai Pls any body tell me उत्तर दें उत्तर आधारभूत ब्रह्माण्ड05 अप्रैल, 2017 राधे श्याम जी, पृथ्वी का रूप नाशपाती के समान है। जिसका रेखांकन ऊपर चित्र में किया गया है। जिसे रॉयल एयरक्राफ्ट स्टैब्लिसमेंट के किंग-हेल और उनके सहकर्मी जी. ई. कूक ने 27 उपग्रहों के पथों से प्राप्त आंकड़ों का अध्ययन करके बनाया है। इस लेख का उद्देश्य यह बतलाना है कि "पृथ्वी उस तरह से सपाट नहीं है जैसे कि वह हमें प्रतीत होती है। और वह बिना किसी आधार के अंतरिक्ष में सूर्य (तारा) की परिक्रमा करती है। उत्तर दें Sanoj Kumar20 मार्च, 2018 Good information उत्तर दें Rasikjee24 जुलाई, 2018 विस्तृत विवरण सहित जानकारी है।धन्यबाद।विश्व में समान रूप से मान्य पृथ्वी का स्वरूप किस तिथि से हुआ ? उत्तर दें उत्तर आधारभूत ब्रह्माण्ड07 सितंबर, 2018 माफ़ी चाहता हूँ मैं पुस्तक लिखने में व्यस्त था. हालाँकि आपकी प्रतिक्रिया की सूचना मुझे मेल द्वारा नहीं मिली थी. इसलिए भी मैं आपके प्रश्न का उत्तर अब तक नहीं दे पाया था. विज्ञान में किसी भी खोज या सर्वसम्मति की एक नियत दिनांक नहीं होती है. क्योंकि वह खोज कई वैज्ञानिकों के द्वारा स्वतंत्र कार्य करते हुए भिन्न विधियों के द्वारा भी परखी जाती है. परखने का यह क्रम निरंतर चलता रहता है. तथा प्रत्येक वैज्ञानिक खोज की एक अवसान तिथि भी होती है जो कभी भी पूर्व निर्धारित नहीं होती है. पृथ्वी के रूप को सर्वसम्मति से स्वीकार करने की कोई तिथि नहीं है क्योंकि आज भी कुछ लोग पृथ्वी के चपटे होने के समर्थक हैं उत्तर दें Unknown31 जुलाई, 2018 Mujhe meri jankari nahi mili उत्तर दें उत्तर Unknown05 सितंबर, 2018 Mujhe mera questions ka jawab nahi mila उत्तर दें

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