शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

बृहस्पते  तपुषा श्नेव विध्य वृकद् वरसो असुरस्य वीरान् ऋग्वेद 2/30/3    त्वं राजेन्द्र ये च देवा रक्षा नृन् पाहि असुर त्वम् अस्मान्  ऋग्वेद १/ अध्याय २३ सूक्त १७४


बृहस्पते  तपुषा श्नेव विध्य वृकद् वरसो असुरस्य वीरान्
ऋग्वेद 2/30/3

   त्वं राजेन्द्र ये च देवा रक्षा नृन् पाहि असुर त्वम् अस्मान्  ऋग्वेद १/ अध्याय २३ सूक्त १७४

युवं नरा स्तुवते पज्रियाय कक्षीवते अरदतं पुरंधिम्
कारो तरात् शाफाद् अश्वस्य वृष्ण: शतं कुम्भाँ असिञ्चतं सुराया: ।7।
हे वीरो !   तुमने स्तुति करने वाले कक्षीवान को अश्व
के खुर रूप घड़े से सुरा की वर्षा की ।7।
ऋग्वेद मण्डल 1अध्याय 17 सूक्त 116 ऋचा 7।

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