रविवार, 16 सितंबर 2018

लिंग और योनि पूजा -

शिवजी की पूजा लिंग (Penis) रूप मे क्यों होती है, इसके बारे मे लिंगपुराण (डायमण्ड प्रेस) मे दो कथाऐं आती है-
पहली कथा के अनुसार एक बार भृगुऋषि त्रिदेवों की परीक्षा लेने के लिये निकले, और वो जब शिव के पास पहुँचे तो उस समय भोलेनाथ देवी पार्वती के साथ शयनकक्ष मे थे! भृगु ने उनसे मिलना चाहा, पर द्वारपालों ने रोक दिया...
भृगु ने कुछ देर तक प्रतीक्षा की, और फिर क्रुद्ध होकर अन्दर शयनकक्ष मे चले गये! उन्होने शयनकक्ष मे देखा कि शिव पार्वती के साथ विहार कर रहे थे!
क्रोधित होकर भृगु ने शिव को श्राप दिया कि मै तुम्हारे द्वार पर कब से प्रतीक्षारत हूँ, और तुम यहाँ मौजमस्ती कर रहे हो, इसीलिये मै तुम्हे श्राप देता हूँ कि आज के बाद तुम्हारी पूजा लिंगरूप मे और पार्वती की पूजा योनिरूप मे होगी।

दूसरी कथा के अनुसार एक बार शिव दारुकवन मे नग्न खड़े थे, और कुछ ऋषियों की पत्नियों ने उन्हे उसी नग्नावस्था मे देख लिया! ऋषि-पत्नियाँ शिव के लावण्य पर मोहित हो गयी और आकर उनसे लिपट गयी! थोड़ी ही देर मे उन औरतों के पति ऋषिगण भी वहाँ आ गये और शिव को नग्न देखकर उनका क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया! उन्होने शिव को श्राप दिया कि हे अघोरी-रूपी शिव! तुम नग्न होकर धर्म का लोप कर रहे हो, इसलिये हम तुम्हे श्राप देते हैं कि तुम्हारा लिंग अभी कटकर भूमि पर गिर जाये।
श्राप देते ही शिव का लिंग कटकर भूमि पर गिर गया, और उसमे से अग्नि प्रज्वलित होने लगी! अब वह लिंग जहाँ भी जाता, वहाँ सब कुछ जलकर भस्म हो जाता था। ऐसी स्थिति देखकर देवतागण घबरा गये और इसके निवारण का उपाय पूँछने ब्रह्माजी के पास आये! ब्रह्मा ने कहा कि शिवलिंग अमोघ है और इसे केवल माता पार्वती ही शान्त कर सकती है...
अब सारे देवताओं ने पार्वती की शरण ली, और उनसे प्रार्थना किया कि माते शिवलिंग को शान्त करके संसार की रक्षा करो!
तब पार्वती वहाँ पहुँची, जहाँ वह लिंग दहक रहा था, उन्होने शिवलिंग को अपनी योनि मे धारण करके उसे शान्त किया! तभी से योनि और लिंग पूजा शुरू हुई!
इसका एक श्लोक भी हैं-
"भगस्य हृदयं लिंग, लिंगस्य हृदयं भगः।
तस्मै ते भगलिंगाय, उमारुद्राव्यै नमः।।"

ये दोनो कथाऐं बहुत सारे लोगों ने पढ़ा भी है, और जानते भी हैं। पर अब जो कथा मै बताने जा रहा हूँ उसे शायद कम ही लोग जानते होंगे...
पण्डित बाबूराम उपाध्याय अनुवादक भविष्यपुराणम् (हिन्दी साहित्य प्रकाशन, प्रयाग) प्रतिसर्गपर्व-3 खण्ड-4 अध्याय-17 श्लोक-67-82 तक मे एक कथा वर्णित है-
"एक बार ब्रह्मा, विष्णु और शिव अत्रिऋषि की पत्नि अनुसुइया के पास गये, और उसकी सुन्दरता पर मंत्रमुग्ध होकर उससे कहने लगे हे मदभरे नेत्रों वाली सुन्दरी! तुम हमे रति प्रदान करो, अन्यथा हम यहीं तुम्हारे सामने अपने प्राण त्याग देंगे!
पतिव्रता अनुसुइया ने तीनों को मना कर दिया! तब शिवजी अपना लिंग हाथ मे पकड़ लिये, और विष्णु उसमे रसवृद्धि करने लगे, तथा ब्रह्मा भी काम पीड़ित होकर अनुसुइया पर टूट पड़े।
जब तीनो जबरन अनुसुइया को मैथुनार्थ पकड़ने लगे तब उसने तीनों को श्राप दिया कि तुम तीनों ने मेरा पतिव्रत् धर्म भंग करने की चेष्टा की है, इसलिये महादेव का लिंग, विष्णु के चरण और ब्रह्मा के सिर हमेशा उपहास का कारण बनेगे! और तुम तीनों ने मेरे ऊपर कुदृष्टि डाली है, अतः तुम तीनों ही मेरे पुत्र बनोगे!
अनुसुइया के श्राप से शिव के लिंग की पूजा होती है, और उसका उपहास भी होता है! बाद मे शिव ने दुर्वासा, विष्णु ने दत्तात्रेय और ब्रह्मा के चन्द्र के रूप मे अनुसुइया के गर्भ से जन्म भी लिया।"

मैने इस कथा के पूरे प्रमाण दिये है... अब तनिक सोचो कि ये कथाऐं कितनी अश्लील है! मैने जिस पुराण का उल्लेख किया, वह इलाहाबाद मे आसानी से मिल भी जायेगा।
शायद इसी अश्लीलता की वजह से दयानन्द सरस्वती पूरे देश मे घूमकर इन पुराणों का विरोध करते थे, पर पौराणिक-पंडों ने उनकी एक न सुनी।

पिछले कुछ दिनों से इस बात पर बहस छिड़ी है कि क्या धर्मग्रंथों मे विज्ञान है?
भाजपा नेता डा० हर्षवर्धन और सत्यपाल सिंह ने तो यहाँ तक कह दिया कि वेद विज्ञान से भी बड़े है...

वैसे वेदों मे विज्ञान है या नही, ये तो बाद की बात है, पर भागवतपुराण मे विज्ञान जरूर है!

सोना-चाँदी की उत्पत्ति के बारे मे वैज्ञानिक बताते हैं कि करीब 20 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर धूमकेतुओं की वर्षा हुई थी, और उससे पिघले खनिज ही आज सोना और चाँदी के रूप मे मौजूद है!
पर वैज्ञानिक क्या जाने सच क्या है, सच तो हमारे धर्मग्रंथों मे लिखा है।

भागवतपुराण द्वितीयखण्ड मे सोना-चाँदी की उत्पत्ति के बारें मे पूरी कहानी बतायी गयी है--
एक बार शिवजी विष्णु से मिलने गये, और उन्होने विष्णु से निवेदन किया कि आप मुझे वही मोहिनी वाला रूप दिखा दो, जिसे देखकर असुरों ने आपको अमृत का घड़ा दे दिया था!
विष्णु ने कहा कि उचित समय पर आपको वह रूप जरूर दिखा दूँगा!

कुछ समय बाद एक दिन शिवजी पार्वती के साथ कहीं जा रहे थे, अचानक उन्होने एक सुन्दर स्त्री को देखा! वह स्त्री एक गेंद को उछालकर खेल रही थी, और जब वह गेंद को ऊपर उछालती तो उसके स्तन जालीदार कपड़ों से बाहर झांकने लगते थे...
उसे देखते ही शिवजी मदहोश और कामातुर हो गये, शिवजी ने इतनी सुन्दर स्त्री कभी नही देखी थी! वह स्त्री कोई और नही, बल्कि मोहिनी रूप मे विष्णु ही थे।

शिवजी मोहिनी को पकड़ने के लिये उसकी तरफ दौड़े, वे कामपिपासा से इस तरह व्यग्र थे कि यह भी भूल गये कि उनके साथ पार्वती भी है!

शिवजी को अपनी तरफ आता देखकर मोहिनी भी उनसे दूर जाने लगी...
अब तो शिवजी अपना त्रिशूल फेंककर उसकी तरफ ऐसे झपटे जैसा किसी गाय के पीछे मतवाला सांड़ भागता हो!

मोहिनी रूपधारी विष्णु भी समझ गये कि मैने 'मोहिनी' बनकर आफत मोल ले लिया है, अब अगर इस भंगेड़ी के हाथ लग गये तो मेरी सजी-सजाई हवेली खण्डहर बन जायेगी...
फिर क्या था, अपनी जान बचाकर मोहिनी भी भागी!
शिवजी मोहिनी के अद्भुत सौन्दर्य को देखकर कामाग्नि मे जल रहे थे, उन्होने मोहिनी को पूरी ताकत झोककर खदेड़ लिया कि 'कहाँ तक भागकर जाओगी छम्मक-छल्लो'

शिवजी किसी कामुक घोड़े की तरह मोहिनी को पकड़ने के लिये दौड़ रहे थे, वे इतने कामातुर हो गये थे कि यूँ समझ लो कि भुसावली केला छिलके के बाहर आ गया, और शिवजी का वीर्य टपकने लगा...

शिवजी का वीर्य जहाँ-जहाँ टपका, वहाँ सोने की खादाने हुई, अर्थात भागवतपुराण के अनुसार सोना और चाँदी शिवजी के वीर्य से बने हैं! अतः ऐसे ही सोना-चाँदी की उत्पत्ति हुई.....

वैसे शिवजी के बारह ज्योतिर्लिंगों की पूजा हम भारतीय करते है, और ये वीर्य टपकाने दक्षिण अफ्रीका चले गये!
भला ये कैसा न्याय हुआ महादेव।

और जो लोग कहते हैं कि धर्म मे विज्ञान नही है, वो जान लें कि हमारे धर्मग्रंथों मे करोड़ो साल पहले ही यह वैज्ञानिकी बातें लिखी थी!

वैसे इस कथा से जुड़ी कुछ लोककथाऐं भी है, केरल के हिन्दुओं का मानना है कि मोहिनी ने शिव के एक पुत्र को जन्म दिया था, जिसका नाम "अयप्पा" था!
केरल के हिन्दू सबसे अधिक अयप्पा की ही पूजा करते है, और वहाँ अयप्पा के कई मन्दिर हैं...
जबकि भागवतपुराण की माने तो मोहिनी शिव के हाथ से निकलकर भाग गयी थी!
इस कथा को लिखने से मेरा अभिप्राय शिव का अपमान करना नही है, पर जरा खुद विचार करो कि इस कथा के माध्यम से भागवतपुराण ने शिवजी पर 'Attempt to rape' का दोष तो लगा ही दिया है।

ऋगवेद/पुरुषसूक्त मंत्र-12/13 मे लिखा है-
"चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षो: सूर्यो अजायत।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत।।"

विराट पुरुष (ईश्वर) के मन से चन्द्रमा, नेत्रों से सूर्य, कर्ण (कान) से वायु एवं प्राण तथा मुख से अग्नि का प्रकटीकरण हुआ।

"नाभ्याSआसीदन्तरिक्ष शीर्ष्णो द्यौः समवर्त्तत।
पद्भ्यां भूमिर्दिश: श्रोत्रात्तथा लोकांर्Sअकल्पयन् ।।"

विराट पुरुष की नाभि से अंतरिक्ष, सिर से द्युलोक, पाँवों से भूमि तथा कानों से दिशाएँ प्रकट हुई, और इसी प्रकार अनेकों लोकों को रचा गया है।

खैर ये तो वेदों की बात हुई, कि कैसे सूर्य, चन्द्र और धरती बनी...
अब जरा कुरान मे देखो-
कुरान की सूर-41 आयत-9 मे अल्लाह कह रहे हैं कि मैने धरती को दो दिन मे बनाया!
और सूर-2 आयत-29 मे फरमाते हैं मैने सात आसमान ठीक ढ़ंग से बनाया!

भाई ये वेद-कुरान ने तो कन्फ्यूज कर दिया है! अल्लाह कह रहें हैं कि मैने दो दिन मे बनाया, तो ईश्वर अपने आदतानुसार नाभि,सिर,कान और पाँव से बनाने का दंभ भर रहे हैं!

हमारे आर्यसमाजी मित्र कहते हैं की वेदो मे पाखण्ड नही है, क्या यह कम पाखण्ड है कि ईश्वर कान से हवा, मुँह से आग और नाभि से नाभि से अंतरिक्ष बना रहे हैं!
अगर ईश्वर ने मुँह से आग बनायी थी, तो आदिमानव क्यो पत्थर रगड़कर आग बनाते थे!
क्या वह पत्थर ईश्वर का मुँह था?

अरे ये विराट पुरुष (ईश्वर) महाशय ने हाथ से भी कुछ बनाया कि सब कुछ मुँह,नाक,कान और पैर से ही बनाया!

इसी तरह मुसलमान कहते हैं कि कुरान मे विज्ञान है, अब अगर अल्लाह ने धरती को दो दिन मे बनाया, तो भाई उनसे कह दो कि दो दिन और मेहनत करके एक धरती और बना दें.....
शपथ पूर्वक कहता हूँ कि फिर मै भी नमाज पढ़ने लगूँगा!

अल्लाह का फेंकना यहीं नही बन्द हुआ, सूर-79 आयत-28 मे कह रहें हैं कि 'आकाश बनाकर उसकी छत को ऊँचा किया'
अरे भाई! फिर तो अल्लाह ने बड़ी मेहनत की, आकाश की छत को ऊँचा करने के लिये ना जाने कितने बांस-बल्ली लगाये होंगे!

इसीलिये मै कहता हूँ कि धार्मिक किताबों मे ऐसे ही अवैज्ञानिक बातें भरी पड़ी है!
मेरे लिये तो ये किताबें रद्दी के कागज के बराबर ही हैं!

स्कन्दपुराण/काशीखण्ड (गीताप्रेस) पृष्ठ-763 पर स्पष्ठ शब्दों मे लिखा है कि भगवान शिव का धाम 'कैलाश' धरती से 2 अरब 56 करोड़ योजन दूर है....
अब अगर कैलाशधाम इतने ऊपर है तो हर साल भारतीय कैलाश मानसरोवर की यात्रा और दर्शन करने चीन (तिब्बत) मे क्यों जाते हैं!

कभी उत्तराखण्ड से नेपाल के रास्ते तो कभी सिक्किम से नाथूला के रास्ते क्यों समय बर्बाद करते हैं!
इनके ही वजह से हर बार चीन भारत को धमकाता है कि 'कैलाश मानसरोवर' यात्रा रोक दूँगा।

अरे अंधभक्तों जब कैलाश धाम ढ़ाई अरब योजन ऊपर आकाश मे है, तो धरती पर क्यों माथा टेक रहे हों, अगर इतने बड़े शिवभक्त हो तो रॉकेट मे बैठकर अंतरिक्ष मे जाओ और वही कैलाशधाम खोजो!

3 टिप्‍पणियां: