गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

शब्दों का सफ़र ......

वक्ष’ और ‘बॉक्स’ पि छले दिनों बक्सा, बकस, बॉक्स जैसे शब्दों के बारे में एक पोस्ट लिखी थी । 'शब्दों का सफर' के पहले पड़ाव की समीक्षा में हिन्दी के ख्यात विद्वान डॉ भगवान सिंह ने ‘बॉक्स’ की व्युत्पत्ति के बारे में महत्वपूर्ण बात कही है । उनका कहना है कि ‘संस्कृत का ‘वक्ष’ शब्द जिसे हम सीना, छाती के रूप में पहचानते हैं, उसकी अंग्रेजी के ‘बॉक्स’ से रिश्तेदारी है । वे कहते हैं- “वृक्ष का अर्थ है फैलना, ढकना, छाया देना...इसी से इसका एक अर्थ पेटी बना । ‘वृक्ष’ से ही ‘वक्ष’ बना । वक्ष ही अंग्रेजी का बॉक्स है ।“ बॉक्स बना है लैटिन के बक्सिस buxis या बक्सस buxus से जिनमें लकड़ी के संदूक या एक किस्म की झाड़ी का भाव है । विभिन्न संदर्भों के मुताबिक यह ग्रीक भाषा के पाइक्सोस pyxos से बना है । पाइक्सोस का एक और ग्रीक रूप पाइक्नोस भी है । वहीं चैम्बर्स डिक्शनरी में पाइक्नोस का अर्थ भरा हुआ, भीड़, समूह, संकुल आदि बताया गया है । अंग्रेज़ी में एक बक्सम buxom भी है जो भरे हुए वक्षो का अर्थ देता है । मोनियर विलियम्स के कोश में ‘वृक्ष’ के पारम्परिक अर्थ अर्थात ऐसा पेड़ जिसमें फल, फूल, पत्ती आदि हों, के अलावा ‘वृक्ष’ के कुछ अन्य अर्थ भी है जैसे पेड़ का तना, शवपेटिका या एक ढाँचा (पेटी ?) आदि । मुझे ‘वृक्ष’ से ‘वक्ष’ की व्युत्पत्ति के प्रमाण न तो मोनियर विलियम्स के कोश में मिले और न ही वाशि आप्टे को कोश में । अलबत्ता ‘वृक्ष’ के तने वाले भाव का अर्थविकास वही है जो ‘पाइक्सोस’ या ‘पाइक्नोस’ से ‘बॉक्स’ या पेटिका का भाव ग्रहण करने में हुआ है । यह एक सहज प्रक्रिया है जो अलग अलग स्थानों के लोगों द्वारा प्राकृतिक चीज़ों के प्रति एक नज़रिये को दर्शाती है । ‘वक्ष’ में भी फैलने, विकसित होने, फूलने का भाव है । इसके अलावा हृदय-स्थल के तौर पर इसे एक कोटर भी समझा जाता है । इसी अर्थ में अंग्रेजी का ‘चेस्ट’ शब्द है जिसका अर्थ सीना भी है और पेटी भी । ‘वक्ष’ और ‘बॉक्स’ की साम्यता हो सकती है , पर ‘बॉक्स’ का विकास ‘पाइक्सोस’ या ‘पाइक्नोस’ से हुआ है । सीधे संस्कृत के ‘वक्ष’ से तो ‘बॉक्स’ बना नहीं होगा । इसी मुकाम पर पाश्चात्य भाषाविज्ञानियों की यह कल्पना ज्यादा तार्किक लगती है कि किसी काल में प्रोटो भारोपीय भाषा रही होगी जिसके विकास की दो दिशाएँ थीं-पूर्व और पश्चिम । ‘वक्ष’ या ‘बॉक्स’ का प्रोटो इंडो-यूरोपीयन मूल निश्चित ही काल्पनिक होगा, पर यह माना जा सकता है कि इन दोनों ही शब्दों का विकास एक ही प्राच्यभारोपीय भाषा से हुआ होगा । ‘वक्ष’ के ‘वक्षस्’ रूप को देखें तो समझा जा सकता है कि ‘वक्ष’ का आदि रूप ‘वक्षस्’ रहा होगा । ‘वक्षस्’ और पाइक्सोस/ पाइक्सस में काफी समानता है । ये विकासक्रम की दो दिशाएँ हैं । ‘वक्षस’ से ‘वक्ष’ और ‘पाइक्सस’ से ‘बॉक्स’ । न कि सीधे ‘वक्ष’ से ‘बॉक्स’ की रचना । ‘पाइक्नोस’ शब्द में मूलतः सघनता पिण्ड का भाव था इसका पुख़्ता संकेत वाल्टर.पी. राइट के “इन्साक्लोपीडिया ऑफ़ गार्डनिंग” से मिलता है । वाल्टर के मुताबिक ‘पाइक्नोस’ का अर्थ है गहन, घनीभूत, भरपूर जिसे आमतौर पर लकड़ी के तने की चौड़ाई और उसकी मोटाई के संदर्भ में लिया जाता है । कुल मिलाकर संदूक निर्माण के लिए ‘वृक्ष’ को मुख्य स्रोत मानते हुए उसकी गुणवत्ता के ये आधार महत्वपूर्ण हैं और किसी बॉक्स ट्री में लकड़ी का भरपूर उपलब्धता सिद्ध होती है । यह भी स्पष्ट होता है कि ग्रीक के ‘पाइक्नोस’ से ‘पाइक्सोस’ बना । इससे ही लैटिन का ‘बक्सस’ बना जिससे अंग्रेजी का ‘बॉक्स’ शब्द बना । मैं डॉ. भगवान सिंह की बात को अत्यंत महत्व देते हुए इस रूप में ‘बॉक्स’ का रिश्ता वक्ष से तार्किक मानता हूँ । साथ ही यह भी कहूँगा कि अपने तमाम शोध के दौरान मुझे कहीं भी ‘वक्ष’ और ‘बॉक्स’ की रिश्तेदारी का संदर्भ नहीं मिला । ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें अजित वडनेरकर पर 1:28 AM 7 comments: Share Monday, June 4, 2012 कुलीनों का पर्यावरण हि न्दी की पारिभाषिक शब्दावली के जो शब्द बोलचाल में खूब प्रचलित हैं उनमें पर्यावरण का भी शुमार है । यहाँ तक कि यह शब्द अब कुलीन वर्ग की शब्दावली में भी जगह बना चुका है क्योंकि पर्यावरण पर बात करना आभिजात्य होने का लक्षण है । जिस तरह वातावरण शब्द से आशय वात + आवरण यानी पृथ्वी के चारों और हवा के आच्छादन से है मगर इसका प्रयोग परिस्थिति, परिवेश, माहौल जैसे आशय प्रकट करने के लिए भी होता है । पर्यावरण का प्रयोग ऐसी अभिव्यक्तियों के लिए भी होने लगा है । पर्यावरण शब्द, वातावरण की तुलना में बहुत व्यापक है । हालाँकि माहौल, परिस्थिति जैसे भावों को अभिव्यक्त करने के लिए वातावरण की तुलना में पर्यावरण का प्रयोग कम होता है । हमारे आस-पास के जीवन घटकों जिसमें, समाज, आचार-विचार, जीवजगत, वनस्पतिजगत, बोली-भाषा और जलवायु आदि का समावेश है, उन सबका आशय पर्यावरण में प्रकट होता है । पर्यावरण शब्द बना है आवरण में परि उपसर्ग लगने से । आवरण में छा जाने, आच्छादन, कवर, ढकने का भाव है । आवरण शब्द भी वरण में आ उपसर्ग लगने से बना है । वरण में चुनने, छाँटने जैसे भावों के अलाव ढकने, पर्दा करने जैसे भाव हैं जो आवरण में व्यक्त हो रहे हैं । वरण के मूल में संस्कृत की वृ धातु है । जिसका अर्थ है घेरना, लपेटना, ढकना, छुपाना और गुप्त रखना । ध्यान रहे आवरण में किसी आकार को चारो ओर से ढकने, घेरने का भाव है । संस्कृत का परि उपसर्ग बड़ा महत्वपूर्ण है और इसकी व्याप्ति तमाम भारोपीय भाषाओं में है । परि उपसर्ग जिन शब्दों में लगता है, उनमें वह शब्द के मूल भावों को बढ़ा देता है । मूलतः परि में चारों ओर, घेरा, सम्पूर्ण जैसे आशय हैं । परिनिर्वाण, परिभ्रणण, परिकल्पना, परिचर्या, परितोष जैसे शब्दों से यह स्पष्ट हो रहा है । भाषाविज्ञानियों नें प्रोटो भारोपीय भाषा परिवार में वृ के समकक्ष वर् wer धातु की कल्पना की है जिससे इंडो-यूरोपीय भाषाओं में कई शब्द बने हैं । आवरण के अर्थ वाले अंग्रेजी के कवर, रैपर जैसे शब्द भी इसी कड़ी में आते हैं । वृ बने वर्त या वर्तते में वही भाव हैं जो प्राचीन भारोपीय धातु वर् wer में हैं । गोल, चक्राकार के लिए हिन्दी संस्कृत का वृत्त शब्द भी इसी मूल से बना है। गोलाई दरअसल घुमाने, लपेटने की क्रिया का ही विस्तार है। वृत्त, वृत्ताकार जैसे शब्द इसी मूल से बने हैं । संस्कृत की ऋत् धातु से भी इसकी रिश्तेदारी है जिससे ऋतु शब्द बना है । गोलाई और घूमने का रिश्ता ऋतु से स्पष्ट है क्योंकि सभी ऋतुएं बारह महिनों के अंतराल पर खुद को दोहराती हैं अर्थात उनका पथ वृत्ताकार होता है। दोहराने की यह क्रिया ही आवृत्ति है जिसका अर्थ मुड़ना, लौटना, पलटना, प्रत्यावर्तन, चक्कर खाना आदि है । ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें अजित वडनेरकर पर 11:18 PM 5 comments: Share ‹ › Home View web version अजित वडनेरकर वाराणसी /भोपाल, उत्तरप्रदेश /मध्यप्रदेश, India बीते 30 वर्षों से पत्रकारिता। प्रिंट व टीवी दोनों माध्यमों में कार्य। View my complete profile Powered by Blogge

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