सोमवार, 10 अप्रैल 2017

असुर जन- जाति असीरिया से

हिन्दू धर्मग्रन्थों में असुर वे लोग हैं जो 'सुर' (देवताओं) से संघर्ष करते हैं।
धर्मग्रन्थों में उन्हें शक्तिशाली, अतिमानवीय, असु राति अर्थात् जो प्राण देता है, के रूप में चित्रित किया गया है
'असुर' शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में लगभग १०५ बार हुआ है। उसमें ९० स्थानों पर इसका प्रयोग 'असु युक्त अथवा प्राण -युक्त के अर्थ में किया गया है ।
और केवल १५ स्थलों पर यह 'देवताओं के शत्रु' का वाचक है।
'असुर' का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है- प्राणवंत, प्राणशक्ति संपन्न ('असुरिति प्राणनामास्त: शरीरे भवति, निरुक्ति ३.८)
और इस प्रकार यह वैदिक देवों के एक सामान्य विशेषण के रूप में व्यवहृत किया गया है।
विशेषत: यह शब्द इंद्र, मित्र तथा वरुण के साथ प्रयुक्त होकर उनकी एक विशिष्ट शक्ति का द्योतक है।
इंद्र के तो यह वैयक्तिक बल का सूचक है, परंतु वरुण के साथ प्रयुक्त होकर यह उनके नैतिक बल अथवा शासनबल का स्पष्टत: संकेत करता है।
असुर शब्द इसी उदात्त अर्थ में पारसियों के प्रधान देवता 'अहुरमज़्द' ('असुर: महत् ') के नाम से विद्यमान है।
यह शब्द उस युग की स्मृति दिलाता है जब वैदिक आर्यों तथा ईरानियों (पारसीकों) के पूर्वज एक ही स्थान पर निवास कर एक ही देवता की उपासना में निरत थे। अन्तर आर्यों की इन दोनों शाखाओं में किसी अज्ञात विरोध के कारण फूट पड़ी गई।
फलत: वैदिक आर्यों ने 'न सुर: असुर:' यह नवीन व्युत्पत्ति मानकर असुर का प्रयोग दैत्यों के लिए करना आरंभ किया ।
और उधर ईरानियों ने भी देव शब्द का ('द एव' के रूप में) अपने धर्म के दानवों के लिए प्रयोग करना शुरू किया।
फलत: वैदिक 'वृत्रघ्न' (इंद्र) अवस्ता में 'वेर्थ्रोघ्न' के रूप में एक विशिष्ट दैत्य का वाचक बन गया तथा ईरानियों का 'असुर' शब्द पिप्रु आदि देवविरोधी दानवों के लिए ऋग्वेद में प्रयुक्त हुआ जिन्हें इंद्र ने अपने वज्र से मार डाला था।
(ऋक्. १०।१३८।३-४)। शतपथ ब्राह्मण की मान्यता है कि असुर देवदृष्टि से अपभ्रष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं (तेऽसुरा हेलयो हेलय इति कुर्वन्त: पराबभूवु:)।
अर्थात् वे असुर हे अरय: हे अरय इस प्रकार करते हुए पराजित हो गये ।

वाल्मीकि-रामायण में वर्णित किया गया है कि देवता सुरा पान करने के कारण सुर कहलाए ,
और जो सुरा पान नहीं करते वे असुर कहलाते थे  ।
" सुरा प्रति ग्रहाद् देवा: सुरा इति अभिविश्रुता ।
अप्रति ग्रहणात् तस्या दैतेयाश्चासुरा: स्मृता ।।
वस्तुत देव अथवा सुर जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध हैं ।
स्वीडन के स्वीअर (Sviar)लोग जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध हैं ।
यूरोपीय संस्कृतियों में सुरा एक सीरप (syrup)
के समान है l
यूरोपीय लोग शराब पीना शुभ और स्वास्थ्य प्रद समझते है ।
कारण वहाँ की शीतित जल-वायु के प्रभाव से बचने के लिए शराब औषधि तुल्य है ।     फ्रॉञ्च भाषा में शराब को सीरप syrup ही कहते हैं ।
अत: वाल्मीकि-रामायण कार ने सुर शब्द की यह अानुमानिक व्युत्पत्ति- की है ।
परन्तु सुर शब्द का विकास जर्मनिक जन-जाति स्वीअर (Sviar) से हुआ है ।
असुर और सुर दौनों शब्दों की व्युत्पत्ति भिन्न भिन्न हुई है
पतञ्जलि ने अपने 'महाभाष्य' के पस्पशाह्निक में शतपथ के इस वाक्य को उधृत किया है।
शबर स्वामी ने 'पिक', 'नेम', 'तामरस' आदि शब्दों को असूरी भाषा का शब्द माना है।
आर्यों के आठ विवाहों में 'आसुर विवाह' का संबंध असुरों से माना जाता है।
पुराणों तथा अवान्तर साहित्य में 'असुर' एक स्वर से दैत्यों का ही वाचक माना गया है।
असुर संस्कृति असीरियन लोगों की संस्कृति थी ।
असीरियन अक्काडियन हिब्रू आदि जातियों के आवास वर्तमान ईराक और ईरान के प्राचीनत्तम रूप में थे ।
जिसे यूनानीयों ने मैसॉपोटामिया अर्थात् दजला और फ़रात के मध्य कीआवासित सभ्यता माना --
उत्तरीय ध्रव से भू-मध्य रेखीय क्षेत्रों में आगमन काल में आर्यों ने  दीर्घ काल तक असीरियन लोगों से संघर्ष किया प्रणाम स्वरूप बहुत से सांस्कृतिक तत्व ग्रह किये ।
वेदों में अरि शब्द देव वाची है ।
देखें---
विश्ववो हि अन्यो अरि: आजगाम ।
मम इदह श्वशुरो न आजगाम ।
जक्षीयाद्धाना उत सोमं पपीयात् स्वाशित पुनरस्तं जगायात् ।।
             (10/28/1 ऋग्वेद )
अर्थात् ऋषि पत्नी कहती है कि सब देवता निश्चय हमारे यज्ञ में आये परन्तु परन्तु हमारे श्वशुरो नहीं आये इस यज्ञ में यदि वे आते तो भुने हुए जौ के साथ सोमपान करते ।।10/28/1
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तथा अन्यत्र भी ऋग्वेद 8/51/9 -
यस्यायं  विश्वार्यो दास: शेवधिपा अरि:।
तिरश्चिदर्ये रुशमे पवीरवि तुभ्येत् सो अज्यते रयि:।।

अरि: आर्यों का प्रधान देव था  आर्यों ने स्वयं को अरि पुत्र माना ।
असुर संस्कृति में अरि: शब्द अलि के रूप में परिणति हुआ । सुमेरियन और बैबीलॉनियन तथा असीरियन अक्काडियन हिब्रू आदि संस्कृतियों में अरि एल (el)
इलु एलॉह elaoh तथा बहुवचन रूप एलोहिम Elohim हो गया । अरबों के अल्लाह शब्द का विकास अल् उपसर्ग Prefix के पश्चात् इलाह करने से हुआ है ।
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                  योगेश कुमार रोहि ग्राम आजा़दपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---के सौजन्य से

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