मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

(प्रेम की यथार्थ परिभाषा )

जहाँ आधार- प्रेम का नहि ,
                वहाँ लोभ- स्वार्थ व्यापार ||
शरीर के प्रति आकर्षण ,
                        सद्गुण का नहीं विचार ||
सद्गुण का नहीं विचार
          - प्रेम वह क्षणिक है" रोहि "
कर्तव्यों को कहाँ , वहन कर पाता मोहि ?
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लोभ के भँवर मोह के गोते ,
                       जीवन गुजरे रोते रोते 
नहीं सम्बल पाता कोई ,
                               बड़ी तेज ये धार  !
थोड़ी सी मौज़ो में पड़कर ,
                  जीवन की किश़्ती डुबोहि !
वासनाओं की उद्वेलित लहरें |
                              हमारे टूटे सब पतवार,
अब भीसंयम से ना तैरे हम. 
                                  तो डूब जायें मझधार !! *********************** *****************
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अर्थात् जहाँ प्रेम के नाम पर
लोभ से प्रेरित स्वार्थ के सारे व्यवहार सम्पन्न होते हैं ! वह प्रेम नहीं है ! हमारी संस्कृति में प्रेम भक्ति का पर्याय है --- और भक्ति है आत्म - समर्पण की पवित्र अहंकार शून्य भावना ---
इसमें गुणानुवाद का बाहुल्य है ....रूप का नहीं...
🌺🌺🌺🌺🌺🌺
हम फूल की रंगत के नहीं
महज खुशुबू के दिवाने हैं !
जमाने के लोगो से कह दो .
हमारे अब नये ठिकाने हैं!!
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
प्रेम के सम्बन्ध में जो पाश्चात्य धारणाऐं हैं
वह उनकी ही संस्कृति के अनुरूप हैं-----
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प्रेम के लिए अंग्रेजी में लव love शब्द
का प्रयोग असंगत है ..लव तो केवल लोभः और वासना का विशेषण है .....
भारतीय आध्यात्मिकता में प्रेम का भाव तत्व- ज्ञान का वाचक है ...////....//////////................
""" जैसा की भगवान् सन्त कबीर ने कहा है ...
पोथी पढ़ पढ़ जग मरा ,
     भया न पण्डित कोय !
ढ़ाई आखर प्रेम के ,
      पढ़े सो पण्डित होय !!
*************,******
विचार- विश्लेषक योगेश कुमार रोहि ग्राम आजादपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़ उ०प्र० सम्पर्क
8077160219 ... ..
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यह पाश्चात्य संस्कृति का वासना मयी प्रदूषण है ...यहाँ प्रेम भी वस्तुतत: - लोभ व वासना का अभिव्ञ्जक हो गया है
,वास्तव में भारोपीय भाषा परिवार का लव. Love शब्द संस्कृत भाषा में लुभःअथवा लोभः के रूप में प्रस्तावित है ..जोकि लैटिन में लिबेट Libet तथा लुबेट Lubet के रूप में विद्यमान है ..जिसका संस्कृत में लुब्ध ( लुभ् + क्त )
भूतकालिक  कर्मणि कृदन्त रूप से व्युत्पन्न होता है ...संस्कृत भाषा में लुभः / लोभः का अभिधा मूलक अर्थ है ..काम की तीव्रता अथवा वासना की उत्तेजना ..
वस्तुतः लोभः में प्रत्यक्ष तो लाभ दिखाई देता है परन्तु परोक्षतः व्याज सहित हानि है
अंग्रेजी भाषा में यह शब्द Love लव शब्द के रूप में है ...
तथा जर्मन में लीव Lieve है
ऐंग्लो -सैक्शन अथवा पुरानी अंग्रेजी में Lufu लूफु के रूप में है
यह तो सर्व विदित है कि यूरोपीय संस्कृति में वासना का उन्मुक्त ताण्डव है ..
.....जबकि प्रेम निः स्वार्थ रूप से आत्म समर्पण का भाव है प्रेम तो भक्ति है
राधा वस्तुतः प्रेम अर्थात् भक्ति की अधिष्ठात्री देवी थी . और कृष्णः ज्ञान योग के द्वारा कर्षण करने बाले आभीर शिरोमणि तत्कालीन यादव समाज के महानायक थे .
संस्कृत भाषा में राधा का अर्थ ही प्रेम , भक्ति और सिद्धि है ..और आज के नवयुवक और नव युवतियाँ पूर्णतः प्रेम के नाम पर दिग्भ्रमित है ..
...अतः ये नव युवक व युवतीयाँ लोभ और वासना के पुजारी ....
प्रेम के तत्व को ये क्या समझ सकते है ?...मित्रों मेरे इस वक्तव्य पर प्रतिक्रिया दें ! योगेश
कुमार रोहि ग्राम आजादपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़ उ०प्र० सम्पर्क ---  सूत्र-----8077160219 ☎☎☎
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काम भाव से अब मुक्त नहिं
            गाँव शहर घर द्वार  !
विचर रहे देखो कहीं
       पार्कों में गलबहियाँ डारि |
पार्कों में गलबहियाँ डारि
     हाइ प्रॉफाइल विद्यार्थी
विद्या की अरथी को
          आज ढ़ो रहा विद्यार्थी  !
स्कूल या इश्क़ हॉल हैं
अब कहाँ ज्ञान की आरती !
जो विद्या अँधेरे में दिया
       बनाकर जीवन सारथी
हमने नकल उनका कर डाली
जिनकी संस्कृतियों थी एक गाली
मैकाले की सह- शिक्षा प्रणाली
          रोहि हम सबको  बेकार थी
  उस भोग - लिप्सा की संस्कृति में .
        बन गये हम सब  स्वार्थी !!
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वह प्रेम नहीं है जहाँ केवल रूप सौन्दर्य की महत्ता हो
गुण सौन्दर्य की कोई मूल्यांकन न हो
हमारी संस्कृति में प्रेम भक्ति का पर्याय है --- और भक्ति है आत्म - समर्पण की पवित्र अहंकार शून्य भावना --- इसमें गुणानुवाद का बाहुल्य है ....रूपाकर्षण का नहीं... 🌺🌺🌺🌺🌺🌺
हम फूल की रंगत के नहीं
               महज खुशुबू के दिवाने हैं !
जमाने के लोगो से कह दो रोहि
              . हमारे अब नये ठिकाने हैं!
🌻🌻🌻🌻🌻🌻 प्रेम के सम्बन्ध में जो पाश्चात्य धारणाऐं हैं वह उनकी ही संस्कृति के अनुरूप हैं----- ________________,__ प्रेम के लिए अंग्रेजी में लव love शब्द का प्रयोग असंगत है ..लव तो केवल लोभः और वासना का विशेषण है ..... भारतीय आध्यात्मिकता में प्रेम का भाव तत्व- ज्ञान का वाचक है ...
............... """ जैसा की भगवान् सन्त कबीर ने कहा है ... पोथी पढ़ पढ़ जग मरा , भया न पण्डित कोय ! ढ़ाई आखर प्रेम के , पढ़े सो पण्डित होय !! *************,****** विचार- विश्लेषक योगेश कुमार रोहि ग्राम आजादपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़ उ०प्र० . ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~­~~~ यह पाश्चात्य संस्कृति का वासना मयी प्रदूषण है ...यहाँ प्रेम - लोभ व वासना का अभिव्ञ्जक हो गया है ,वास्तव में भारोपीय भाषा परिवार का लव. Love शब्द संस्कृत भाषा में लुभःअथवा लोभः के रूप में प्रस्तावित है ..जोकि लैटिन में लिबेट Libet तथा लुबेट Lubet के रूप में विद्यमान है ..जिसका संस्कृत में लुब्ध ( लुभ् + क्त ) भूतकालिक कृदन्त रूप व्युत्पन्न होता है ...संस्कृत भाषा में लुभः / लोभः का अभिधा मूलक अर्थ है ..काम की तीव्रता अथवा वासना की उत्तेजना .. वस्तुतः लोभः में प्रत्यक्ष तो लाभ दिखाई देता है परन्तु परोक्षतः व्याज सहित हानि है अंग्रेजी भाषा में यह शब्द Love लव शब्द के रूप में है ... तथा जर्मन में लीव Lieve है ऐंग्लो -सैक्शन अथवा पुरानी अंग्रेजी में Lufu लूफु के रूप में है यह तो सर्व विदित है कि यूरोपीय संस्कृति में वासना का उन्मुक्त ताण्डव है .. .....जबकि प्रेम निः स्वार्थ रूप से आत्म समर्पण का भाव है प्रेम तो भक्ति है राधा वस्तुतः प्रेम अर्थात् भक्ति की अधिष्ठात्री देवी थी . और कृष्णः ज्ञान योग के द्वारा कर्षण करने बाले आभीर शिरोमणि तत्कालीन यादव समाज के महानायक थे . संस्कृत भाषा में राधा का अर्थ ही प्रेम , भक्ति और सिद्धि है ..और आज के नवयुवक और नव युवतियाँ पूर्णतः प्रेम के नाम पर दिग्भ्रमित है .. ...अतः ये नव युवक व युवतीयाँ लोभ और वासना के पुजारी .... प्रेम के तत्व को ये क्या समझ सकते है ?...मित्रों मेरे इस वक्तव्य पर प्रतिक्रिया दें ! योगेश कुमार रोहि ग्राम आजादपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़ उ०प्र० सम्पर्क --- सूत्र--------- 8445730852☎☎☎ 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 काम भाव से अब मुक्त नहिं गाँव शहर घर द्वार ! विचर रहे देखो कहीं पार्कों में गलबहियाँ डारि | पार्कों में गलबहियाँ डारि हाइ प्रॉफाइल विद्यार्थी विद्या की अरथी को आज ढ़ो रहा विद्यार्थी ! स्कूल या इश्क़ हॉल हैं अब कहाँ ज्ञान की आरती ! जो विद्या अँधेरे में दिया बनाकर जीवन सारथी मैकाले की सह- शिक्षा प्रणाली बिल्कुल बेकार थी भोग - लिप्सा की संस्कृति में . बनते है छात्र जहाँ स्वार्थी !! _______________________________________
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