वन्दे मातरम् और जय श्रीराम का उद्घोष करते हुए और सभी समाजवादियों को विशेषत:यादवों को माँ "बहिन की गाली देने वाले लोग
आज अपनी हैसियत को भूल गये हैं सायद ये अवश्य वर्णसंकर पैदाइश हैं। ये वही लोग हैं जो स्वयं को क्षत्रिय कहते हैं।
स्वघोषित क्षत्रिय- वैसे नाम लेने में मुझे कोई हर्ज भी नहीं है।
क्यों कि जो फूल जिस बगिया से आता है वह उसकी दुर्गन्ध -सुगन्ध के रूप में पारिवेैषिक और जनननात्मक गुण-दोषों को साथ लेकर चलता है।
यादवों को अनावश्यक रूप से अश्लील गालियाँ देने वाले राज पूत समाज के लोग ! इस मुगालते में न रहें कि सत्ता से बेदखल होने पर समाजवादी लोग कमजोर हो गये।
यादव सदैव से समाज वादी रहे भले ही आज उनका सिम्बल लोकतान्त्रिक हो गया है।
अहीरों कि प्रचीन इतिहास भी इसी भावना से प्रेरित है।
स्वयं भगवान कृष्ण इस समाज वाद के प्रवर्तक थे
जिन्होंने बलराम के संरक्षण में स्त्री और पतित जातियों के लिए भक्ति मार्ग और ईश्वर अन्वेषण के रूप में भागवत धर्म की स्थापना की ।
जन्म मूलक वर्णव्यवस्था को नकार दिया-
आज भी यादव हर उस जाति अथवा व्यक्ति के पक्षधर रहे जिसे समाज के उच्च दर्जा प्राप्त वर्ग ने सताया हो।
जब समाज में मनुवाद के नाम पर दलितों और पिछड़े वर्ग को शूद्र वर्ण में परिगणित किया जा रहा था।
और जय श्रीराम के उद्घोषणाओं से पुन: दलितों और पिछड़ों पर अत्याचार हो रहा था उसी समय माननीय कांशीराम जी ने एक साक्षात्कार में कहा कि यदि मुलायम सिंह से वे हाथ मिला लें तो उत्तर प्रदेश से सभी उन दलों का सुपड़ा साफ हो जाएगा जो मनुवाद के पोषक हैं।
मुलायम सिंह को उन्होंने केवल इसीलिए चुना क्योंकि वही बहुजन समाज के मिशन का हिस्सा बन सकते थे; जो गरीबों पिछड़े और छोटी जाति वालों के हमदर्द थे।
माननीय काशीराम जी के एक इंटरव्यू को पढ़ने के बाद मुलायम सिंह यादव दिल्ली में कांशीराम से मिलने उनके निवास पर स्वयं गए थे।
उस मुलाक़ात में कांशीराम ने नये समीकरण के लिए मुलायम सिंह को पहले अपनी पार्टी बनाने की सलाह दी और (1992 में मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी का गठन किया)
और उस समय मैं लगभग दश वर्ष का ही था। मुझे बहुत चीनी सी स्मृति है।
1993 में समाजवादी पार्टी ने 256 सीटों पर और बहुजन समाज पार्टी ने 164 सीटों पर विधानसभा के लिए चुनाव लड़ा और पहली बार उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज की सरकार बनाने में कामयाबी भी हासिल कर ली।
उस वक़्त एक तरफ बाबरी मस्जिद को ढाहने और उसकी जगह पर मंदिर बनाने के लिए अड़े भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता 'जयश्रीराम' का नारा लगा रहे थे.
लेकिन गठबंधन की सरकार से उत्साहित होकर बहुजन कार्यकर्ताओं ने नारा लगाया-
'मिले मुलायम-कांशीराम , हवा हो गए जय श्रीराम.'
यद्यपि राम से न तो काशीराम जी को घृणा थी और ना ही मुलायम सिंह जी को परन्तु राम के नाम पर होने वाले सदीयों के जुल्मों से ये लोग बाकिफ थे ।
देश को इस समय समाजवाद की आवश्यकता थी।
लोग भूल जाते हैं कि राम के बहाने दलितों पर उन्हें शूद्र मानकर कितने जुल्म हुए ।
इन्हीं लोगों ने अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए ही धर्मपरिवर्तन किया ये ही मुसलमान, सिख, ईसाई और बौद्ध तक बने।
ये इसी सरजमीं की पैदावार थे।
मुसलमान इस देश में कहीं बाहर से नहीं आये हैं ।
हिन्दुस्तान मुसलमान को किराए कि घर बताया जाता है उन में हीनता भाव भरा जाता है ।
भयभीत मुसलमानों को मुलायम ने आश्वस्त किया। मुसलमान सही मायने में अपने फर्ज के मुहाफिज हैं और शरीयत के हाफिज हैं।
भारत विभिन्न सम्प्रदाय और फिरकों का बहुरंगी गुलदस्ता है । दुनिया के पटल पर यही इसकी महानता है ।
हमारे देश की कमजोरी और गुलामी सा कारण जातिवाद वर्णव्यवस्था ही थी जिसे जातीय रूप दिया गया।
विदित हो कि विदेशी आक्रमण करने वाले भी भारत देश की इसी सामाजिक विषमता से परिचित हुए और यहाँ के विखण्डित समाज को अपने अनुकूल शासित करते रहे।
ईरानी कभी यूनानी अरबी ,तुर्की , मुगल तो कभी पुर्तगाली फ्रांसीसी और अंग्रेजों आदि सभी ने लगभग दो हजार वर्षों तक भारत लूटा- खसोटा-
परन्तु भारतीय समाज की दुर्दशा करने वाले वही वर्णव्यवस्था और ऊँच-नीचता के पोषक लोग वही जातीय राग अलापते रहे और रूढ़ियो
की दुहाई उनकी पराजय का कारण रहीं और विदेशी ही समाज पर काबिज रहे
इतिहास गवाह है कि
दलित समाज के लोगों के प्रति इस प्रकार का दुर्व्यवहार और हीनता फैलाने वाले लोगों ने उन्हें हिन्दू विशेषण से रहित कर दिया और वे स्वयं को हिन्दू कहलबाने से बचाते रहे।
परिणाम ये हुआ कि वे बौद्ध बनकर ब्राह्मणों के ईश्वर, धर्म और ब्राह्मण वाद के विरोध में ये दलित लोग मुखर होगये।
आज ये दलित लोग स्वयं को हिन्दू नहीं मानते वास्तव में सदीयों से इन लोगों के प्रति जयश्रीराम का हल्ला मचाने वाले इन्ही लोगों के पूर्वजों ने बहुत अत्याचार किये चाहें तो वो राम कथा में सम्बूक वध के बहाने हों या मनुस्मृति के लिंग और जिह्वा छेदन से सम्बन्धित दण्ड विधान रहे हों-
अब इसी प्रकार से कुछ जाति विशेष के लोग अहीरों के प्रति दलितों जैसे व्यवहार को दोहरा रहे हैं । जो स्वयं को हिन्दुत्व का पैरो कार कहते हैं ।
इसी प्रकार का दुर्व्यवहार यदि ये तथाकथित जाति के लोग यादवों के प्रति व्यवहार करेंगे तो यादव स्वयं को कभी हिन्दू नहीं कहेगा।
यद्यपि हिन्दू एक पारसी( ईरानी) शब्द है जिसको अपने पुरालेख में भूसांस्कृतिक अवधारणा के तौर पर सिन्धु नदी के लिए ईरानी शासक दारा-प्रथम ने उद्धृत किया था।
आज दुर्भाग्य से सिन्धु नदी का बड़ा भाग पाकिस्तान में है।
और सीधी सी बात है कि
जहाँ समानता का अधिकार नहीं उस समाज " धर्म और परम्परा का हम बहिष्कार क्यों न करें
और बहिष्कार करना ही उचित है।
हम्हें भागवत धर्म के पथ पर चलना होगा ।
अब आधुनिक परिप्रेक्ष्य.( Perspective) की बात करें तो हम यादवों को विशेष रूढ़िवादी लोगों द्वारा हीन दृष्टिकोण से देखा जाता है।
यह दृष्टिकोण उनकी एक विरासत है जो उनके परिवार के बड़े बूढ़े लोगों से मिली है ।
बगावतों के दौर में बागीयों को विरोधी आतंकवादी और डकैत और पता नहीं क्या क्या विशेषणों से इनके प्रतिद्वंद्वी नबाजते रहे हैं।
रूढ़िवादी पुरोहितों ने महा शूद्र तो दूसरे लोगों ने अहीरों को डकैत ही मान लिया है ।
बहुत से अन्ध भक्त चोर भी समझते हैं।
परन्तुहम अहीरों के विषय में विश्व -इतिहास में और प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में बहुत ही प्रशंसात्मक तथ्य हैं । जिन्हें भारतीय पुरोहितों द्वारा कभी समाज के समक्ष नहीं प्रस्तुत किया जाता है ।
हम यादव महान थे मानवाता की शान थे ।
हमारे जातीय अस्तित्व की पावनता
के प्राचीन मनीषियों नें भी तमाम मिथक शास्त्रों में गढ़े हैं।
भले ही ये पुराण कल्पना रंजित अधिक हों तो भी हमारे जातीय अस्तित्व की प्रतीनत्तम पड़ताल और दस्तावेज हैं ।
ये ग्रन्थ अहीरों ने स्वयं नहीं लिखे अपितु उन लोगों ने लिखे जो अहीरों को सदाचार साधक और धर्मवत्सल समझते थे।
परन्तु हमारी जातीय प्रशंसा से बौखलाकर
कुछ द्वेष वादियों ने हमारे साथ नकारात्मक विशेषण भी संलग्न किए।
परन्तु विरोध और अनुरोध मूलक अभिधानों से हमारी जातीय प्रवृत्ति और वृत्ति पर कोई फर्क नहीं पड़ा। हाँ समाज की बहुत सी जनजातियां भ्रान्त-चित होकर हमारे खिलाफ अवश्य हुईं ।
जिनके अपशब्दावलियाँ समाज में कहीं कहीं कर्ण-गोचर हो जाती हैं।
आज हालातें ये हैं कि जब हमने भारतीय समाज में अन्य जातियों के मुख से अहीरों की आचरण गतिविधियों के बारे में जानने की पहल की तो लोगों के विचार नकारात्मक ही अधिक थे।
कि अहीर चोर होते हैं ये दुराचारी होते हैं ये फर्जी यादव हैं यदुवंशी तो राजपूत होते हैं। बगैर बगैरह-
भारतीय समाज में आज यही धारणाओं का बोलबाला है ।
और सबसे बड़ा आश्चर्य यही है कि स्वयं अहीरों को अपने अतीत और जातियाँ इतिहास के विषय में कोई जानकारी नहीं है ।
रूढ़िवादी पुरोहितों ने कहीं अहीरों को शूद्र तो कहीं महा शूद्र कर दिया है । परन्तु कहीं वैश्य तो कहीं म्लेच्छ भी सिद्ध किया है ।
अधिकतर पुरोहितों ने अहीरों को महा शूद्र
ही लिखा है।
यादवों ने स्वयं को शूद्र रूप में भी स्वीकार कर लिया और सभी पतित दलित और पिछड़े लोगों को साथ लेकर उनके उत्थान के लिए भी भरसक प्रयास किए - धर्म से हम चाहें बौद्ध हों या सिख ईसाई और या मुसलमान ( पाकिस्तान में अहीर मुसलमान हैं) या फिर हिन्दू धर्म गत धारणाओं या परिवर्तन तो होता रहता है परन्तु जातियों के गुणसूत्र और जननात्मक धाराओं कभी नहीं बदलती हैं ।
हम यादव हैं यादव थे और आगे भी यादव ही रहेंगे
हमारी जाति अहीर जाति भारतीय ग्रन्थों में सबसे प्राचीन है । जिसमें यदुवंश का प्रादुर्भाव हुआ और इस यदुवंश में महाभारत काल में एक सौ एक से भी अधिक कुलों का प्रादुर्भाव हुआ है। हम उन्हीं के वंशज हैं।
राजनैतिक पार्टियों या बजूद आज जातिगत अधिक हो गया है ।
दूसरे जाति के लोग मानते हैं कि समाज वादी यादवों की पार्टी है। और यादवों ने मुसलमानों को समाजवादी बना दिया है।
यद्यपि आज कि मुसलमान निर्दोष ही है । असाह्य
भी है ऐसी स्थिति में मुलायम सिंह जी ने इन्हें अपने विश्वास में लिया परन्तु फिर भी मुसलमानों ने देशकी खुशहाली के लिए राष्ट्रीयता को सम्मान दिया। परन्तु राजनीति में धर्म-सम्प्रदाय को ही आधार बनाने वाले दल भाजपा ने मुसलमानों को उपेक्षित दृष्टि से देखा है।
आज भाजपा सरकार बनने कि खुशी में जिस प्रकार वर्णसंकर जाति के कुछ लोग अहीरों को गालियाँ दे कर जश्न मना रहे हैं । वे अपने ही विनाश का मार्ग बना रहे हैं।
यादवों को दलितों को और मुसलमानों को जय श्रीराम का उद्घोष करते हुए गालियाँ देने वाले लोग खुद को तो डुबोऐंगे ही ये जयश्रीराम को भी ले डूबेंगे
क्यों कि जयश्रीराम का नारा लगा लगाकर यादवों अथवा दूसरी जातियों के विरुद्ध गाली देने वाले लोग और इनके घरों में आग लगाने वाले लोग
देश और समाज में गृहयुद्ध कि स्थिति पैदा करदेंगे और एक दिन इतिहास में दर्ज होगा कि जय श्रीराम" कह कह कर लोग नफरत और गालियों कि भाषा बोलते थे।
यद्यपि आज विश्व समुदाय दो गुटों में बँटता नजर आ रहा । जो कि विश्व युद्ध के भावी संकेत हैं ।
लोगो ! इतिहास भी अपने अतीत को अवश्य दोहराता है और समय आने पर हम यादव आज हम्हें गालियाँ और नफरत देने वालों को व्याज सहित बदला देंगे।
नफरत से नफरत बढ़ेगी ही सभी राजनैतिक पार्टियाँ इन नफरतों को शह दे रहीं हैं
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प्रस्तुति करण:- यादव योगेश कुमार रोहि-
Sab tmhare jaise logo ki vajah se ho rha hai.24*7 netagiri krna vaampanthi/ ambedkarvadi itihas padh kr Yadavo ko inferiority complex se grasit krna.Chamar/maharo ko apna bhai smjhna...bamano ko vyarth me hi gaali dena.Jhutha itihaas bnaana...gwala,golla gwar jaise samudayo ko Yadav/aheer btana.Murkh gwala yadavo (bihar/purab) ke btaye rasto par chalna.
जवाब देंहटाएंApne samaj se zyada samajwaadi party ki gulami krna.Ek neta ke talwe chaatna....samaj ko majboot krne ke bajay....dusri jatiyon ko vote dekr jitana.
Aue sbse badi baat zameen chhod kr hawa me udna....tmhare jaise murkho ki vajah se hi ye haal hai....purab/bihar ke gwalo ke chaakar me pad kr murkh hi rahoge....age tmhari aur bhi halat kharab honi hai...aur kudo..samajvadi bnakr...😭
Apna hijrapan band kr
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